गन्ना, भारत की महत्वपूर्ण नकदी फसल होने के कारण देश की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका अदा करती है। देश की बढ़ती जनसंख्या की चीनी की मांग को पूरा करने के लिए वर्ष 2030 में लगभग 33 मिलियन टन चीनी की आवश्यकता होगी, जबकि वर्तमान में वार्षिक चीनी उत्पादन लगभग 25 मिलियन टन है। गन्ना कटाई के उपरांत खेत में बचे ट्रैश (गन्ने की सूखी पत्तियां) रासायनिक उर्वरक डालने तथा अन्य अंत: सस्यक्रियाओं के निष्पादन में अड़चनें पैदा करते हैं। इसकी वजह से ट्रैश जलाने की प्रथा गन्ने की पेड़ी फसल में एक आम बात है। जलाने के बजाय ट्रैश को खेत में डालने पर यह मृदा की गुणवत्ता में सुधार करने के साथ – साथ पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, लेकिन ट्रैश आच्छादित खेत में उर्वरकों को डालने के लिए उपयुक्त मशीनी की कमी है। पेड़ी गन्ने की कम पैदावार के लिए उत्तरदायी इन कारकों तथा अन्य समस्याओं के समाधान के लिए एक बहुउद्देशिया मशीन का विकास किया गया है। यह मशीन, पेड़ी गन्ने में ठूंठ (स्टबल) छंटाई, रेज्ड बेड की बगल तुड़ाई (ऑफ – बारींग, जड़ कर्तन व ट्रैश आच्छादित खेतों में उर्वरकों को खेतों में डालने इत्यादि कार्यों को एक साथ करने में सक्षम है। अत: ये पद्धतियां न केवल मृदा स्वास्थ्य, संसाधन उपयोग दक्षताव पेड़ी गन्ने की पैदावार में वृद्धि करने में सहायक हैं बल्कि पर्यवारण की दृष्टि से हितकारी भी हैं।
गन्ना, भारत की महत्वपूर्ण नकदी फसल होने के साथ –साथ चीनी का भी प्रमुख स्रोत है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका अदा करने वाली फसल है। एक अनुमान के अनुसार गन्ने की खेती एवं प्रसंस्करण द्वारा देश को प्रति वर्ष लगभग 50,000 करोड़ रूपये का राजस्व मिलता है। लगभग 50 मिलियन गन्ना किसान तथा उनके परिवार अपनी दैनिक जीविका के लिए इस फसल व इस पर आधारित चीनी उद्योग से सीधे जुड़े हुए हैं। भारत में गन्ना 5.28 मिलियन हे. क्षेत्रफल में उगाया जाता है\ इससे लगभग 349 मिलियन टन गन्ने का उत्पादन प्रति वर्ष होता है। वर्तमान में भारत 25 मिलियन टन के औसत वार्षिक उत्पादन के साथ चीनी उत्पादन में ब्राजील के बाद दुनिया में दुसरे नंबर पर है।यह अनुमान लगाया गया है कि सन 2030 में भारत की बढ़ती आबादी की वार्षिक चीनी की मांग को पूरा करने के लिए लगभग 33 मिलियन टन चीनी की आवश्यकता होगी। अत: तथ्यों को ध्यान में रखते हुए भविष्य में चीनी की मांग को पूरा करने के लिए गन्ना उत्पादन में वृद्धि करने की अत्यंत आवश्यकता है। हमारे देश में प्रतिवर्ष गन्ने के कुल क्षेत्रफल का लगभग
प्रतिशत क्षेत्र पेड़ी गन्ने की फसल के रूप में लिया जाता है। इसकी औसत उत्पादकता (50 टन प्रति हे.) गन्ने की बावक फसल (85 टन प्रति हे.) लो तुलना में सामान्यतया 20 – 25 प्रतिशत कम है। अत: सर्वप्रथम पेड़ी गन्ने की पैदावार में बढ़ोतरी करना अति आवश्यक है, क्योंकि पेड़ी की फसल बावक फसल की अपेक्षा अधिक चीनी युक्त होने के साथ – साथ पहले पककर तैयार हो जाती है। इसके अलावा, पेड़ी की फसल उगाने पर खेत की तैयारी तथा बीज व बुआई पर होने वाले खर्च की बचत होने से कुल उत्पादन लागत में कमी के साथ – साथ लाभार्जन में भी बढ़त होती है। पेड़ी गन्ने की खेती से जूडी समस्याएं तथा इसकी पैदावार में कमी होने के प्रमुख कारण हैं:
गन्ना कटाई के उपरांत खेत में लगभग 10 15 टन प्रति हे. ट्रैश (गन्ने की सूखी पत्तियां) जमीन की सतह पर एक मोटी परत के रूप में रह जाता है। फलस्वरूप, रासायनिक उर्वरक डालने तथा अन्य अंत:सस्य क्रियाओं के निष्पादन करने में अड़चनें होने के कारण पेड़ी की फसल में ट्रैश प्रबंधन एक गंभीर समस्या बनी हुई है। किसान इससे निजात पाने के लिए इसको जलाना ही सबसे सरल व सस्ता समझते हैं।
एक तरफ ट्रैश जलाने से महत्वपूर्ण पोषक तत्वों जैसे की नाइट्रोजन, पोटेशियम , गंधक व कैल्शियम आदि नष्ट होने के साथ – साथ लाभकारी सूक्ष्म जीवों व कार्बन पदार्थ की भी भारी मात्रा में कमी होती है। वहीं दूसरी ओर ग्रीनहाउस गैसों जैसे कि मीथेन, कार्बनडाईऑक्साइड व नाइट्रस ऑक्साइड इत्यादि का भी उत्सर्जन होता है। यह ग्लोबल वार्मिंग जैसी गंभीर समस्या पैदा करने में महत्वपूर्ण कारक है। इसके विपरीत ट्रैश को खेत में रखने से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा व सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ती है। तापमान का नियमन होता है, जलधारण व उर्वराशक्ति बढ़ती हैं, जिससे अंतत: फसल की पैदावार में वृद्धि होती है। लेकिन फिर भी उचित मशीनरी की अनुपलब्धता के कारण ट्रैश को सतह पर आच्छादित बनाये रखने की पद्धति लोकप्रिय नहीं हो रही है। हालाँकि हाल ही में ट्रैश कुट्टी करने वाली मशीन लोकप्रिय हुई है, लेकिन, ट्रैश आच्छादित खेत में उर्वरकों का इस्तेमाल करने में उपयोगी मशीनों का विकास नहीं हो पाया है।
ट्रैश (गन्ने की सूखी पत्तियां) प्रबंधन से फसल को होने वाले फायदों के कारण आज किसान पेड़ी गन्ने में ट्रैश को जलाने की बजाय खेत में रखना पसंद करने लगे हैं। लेकिन ट्रैश आच्छादित खेत में उर्वरकों को कैसे दिया जाय? यह अभी भी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। किसान, उर्वरकों को भूमि की सतह पर डालने के लिए बाध्य है, क्योंकि उसके पास इसके अलावा और कोई उपयुक्त तकनीक/मशीन नहीं है। इसके कारण किसान को उर्वरक भी अधिक मात्रा में डालना पड़ता है, फलस्वरूप आर्थिक बोझ भी ज्यादा आता है। दूसरी ओर फसल को बी उचित मात्रा में पोषण नहीं मिल पाता है, क्योंकि उपयोग में लाये गये उर्वरक की ज्यादातर मात्रा ट्रैश के ऊपर ही रह जाती है। इससे उर्वरक की उपयोग दक्षता में भी कमी के साथ – साथ फसल की पैदावार में भी कमी आती है तथा वातावरण भी दूषित होता है।
पेड़ी गन्ने में किल्लों की संख्या मुख्य फसल की तुलना में सामान्यतया 20 – 40 प्रतिशत कम होती है। किल्ले जमीन की सतह से नहीं निकलकर पेड़ी गन्ने के असमतल स्टबलों (ठूंठों) से निकलते हैं, उनमें मृत्युदर अधिक होती है। फलस्वरूप पेड़ी गन्ने के कटने के समय किल्लों की संख्या में लगभग 50 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है, जिससे फसल की पैदावार में भारी कमी आती है।
गन्ने की पेड़ी फसल में जड़ – तंत्र पुराना होने के कारण प्रभावी व स्वस्थ पतली जड़ों की संख्या कम तथा उथली होती हैं। इसके कारण पौधों द्वारा जल व पोषक तत्वों का कम अवशोषण होता है। इससे फसल को पोषक तत्वों की उपयुक्त आपूर्ति नहीं हो पाती, फलस्वरूप पेड़ी गन्ने की पैदवार में कमी आती है।
फसलों के अवशेषों में मुख्य पोषक तत्वों की मात्रा व अवशेषों के दहन का मीथेन और नैट्र्स ऑक्साइड उत्सर्जन पर प्रभाव (आंकड़े 2010 – 11)
फसल प्रकार |
मुख्य पोषक तत्व |
मीथेन उत्सर्जन (हजार टन कार्बन समतुल्य) |
नैट्र्स ऑक्साइड उत्सर्जन (हजार टन कार्बन समतुल्य) |
कुल उत्सर्जन (हजार टन कार्बन समतुल्य) |
||
नाइट्रोजन |
फास्फोरस |
पोटाश |
|
|
|
|
गेहूं |
0-49 |
0-25 |
1-28 |
73-32 |
11-42 |
84-74 |
धान |
0-58 |
0-23 |
1-66 |
82-37 |
32-44 |
114-81 |
मक्का |
0-47 |
0-57 |
1-65 |
16-74 |
5-50 |
22-24 |
गन्ना |
0-35 |
0-10 |
0-60 |
115-12 |
26-48 |
141-60 |
कपास |
0-57 |
0-28 |
1-40 |
14-06 |
2–01 |
16-07 |
कुल |
- |
- |
- |
301-60 |
77- 85 |
379-45 |
(खेती, अंक : 4 व 5, 2014 |
|
सोर्फ़ मशीन, ट्रैश आच्छादित खेत में भी रासायनिक उर्वरकों को जमीन के अंदर पेड़ी गन्ने की जड़ों के समीप स्थापित करने में सक्षम है। इससे नाइट्रोजन ही नहीं बल्कि फास्फोरस व पोटाश जैसे पोषक तत्व भी पौधों को आसानी से प्राप्त हो जाते हैं। इसके अलावा यूरिया (नाइट्रोजन) को जब जमीन के अंदर स्थापित किया जाता है तो अमोनिया उत्सर्जन द्वारा होने वाले नुकसान में भी कमी आती है। जब उर्वरकों को पेड़ी फसल की जड़ों के समीप डाला जाता है तो वह शीघ्र व सीधा पौधों को प्राप्त होता है तथा हानि भी कम होती है, इसके फलस्वरूप रासायनिक उर्वरक उपयोग दक्षता में भी वृद्धि होती है। इससे कम मात्रा उर्वरकों की आवश्यकता होने के साथ – साथ फसल की पैदावार में भी बढ़ोतरी होती है।
यह मशीन, गन्ना काटने के बाद खेत में बचे हुए असमतल ठूंठों को जमीन की सतह के पास से एक समान आधार से काटने के लिए उपयुक्त है। इसके फलस्वरूप स्वस्थ, मजबूत व ज्यादा किल्लों का निर्माण होता है तथा किल्लों की मृत्यु भी कम होती है जो कि पेड़ी की पैदावार बढ़ाने में काफी सहायक है।
इस मशीन द्वारा गन्ने की पुरानी मेड़ों की मिट्टी को बगल से आंशिक रूप से काटकर उसको दो मेड़ों के बीच पड़ी ट्रैश के ऊपर दाल्दिया जाता है, जिससे ट्रैश के शीघ्र अपघटन में सहायता मिलती है बाद में यही मिट्टी गन्ने के किल्लों पर मिट्टी चढ़ाने के काम आ जाती है।
सोर्फ़ मशीन द्वारा पेड़ी गन्ने की पुरानी जड़ों का बगल से कर्तन कर दिया जाता है। इसके फलस्वरूप नई जड़ों का विकास होता है, जो जल व पोषक तत्वों के अवशोषण को बढ़ाने में सहायक होती हैं। इससे पेड़ी गन्ने में किल्लों की संख्या व पैदावार में वृद्धि होती है।
उपरोक्त तत्यों को ध्यान में रखते हुए भाकृअनुप – भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ द्वारा विकसित मशीन को उन्नत बनाया गया है। इसको उसकी विशेषताओं जैसे कि ठूंठ छंटाई, रेज्ड बेड की बगल तुड़ाई, जड़ कर्तन व उर्वरकों का भूमि पर प्रयोग के कारण सोर्फ़ उपनाम से जाना जाता है।
गन्ने की पेड़ी फसल के उचित प्रबंधन में सोर्फ़ मशीन की उपयोगिता को देखते हुए इस प्रौद्योगिकी को गन्ना किसानों तक पहुँचाना अति –आवश्यक था। इसलिए सोर्फ़ मशीन की विशेषताओं के बारे में किसानों को अवगत कराने तथा उसके उपयोग द्वारा पेड़ी फसल से अधिक पैदावार व मुनाफा कमाने के लिए इस मशीन के पुणे जिले के अनेक गांवों में 50 से भी अधिक प्रदर्शन किये गये। मशीन के इन प्रदर्शनों से न केवल किसानों को फायदा हुआ बल्कि मशीनरी निर्माताओं को भी रोजगार प्राप्त हुआ और वो आज इस तरह की मशीनें ने केवल बाजार में उपलब्ध करवा रहे हैं बल्कि अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं।
लेखन: आर. एल. चौधरी. ए. के. सिंह, जी. सी. वाकचौरे, महेश कुमार, पी. ए. काले, के. के. कृष्णानी, और एन. पी. सिंह
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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