महाराष्ट्र राज्य के लिए उर्वरकों कीसिफारिश करने हेतु एक द्विभाषी (मराठी एवं अंग्रेजी) एसटीसीआर मोबाइल ऐप को राष्ट्रीय सूचना प्रणाली केन्द्र (NIC), पुणे की मदद से तैयार किया गया। किसानों की संसाधन संवर्धन क्षमता के आधार पर इस ऐप द्वारा फसलों की लक्षित उपज का पता लगाने में मदद मिलती है। इस ऐप की मदद से किसान मृदा जांच मान के आधार पर तथा एक विशिष्ट उपज लक्ष्य के लिए सटीक उर्वरक संस्तुतिपा सकते हैं।
भाकृअनुप-सार्वजनिक इन्टरफेस, ई-कृषि मंच को हितधारकोंके लिए एक सार्वजनिक सम्पर्क प्लेटफार्म के रूप में विकसित किया गया है। इस प्रणाली में यूजर्स वेब इन्टरफेस अथवा एसएमएस के माध्यम से भाकृअनुप के विषय विशेषज्ञ प्रभाग अथवा अनुसंधान संस्थानों को अपने प्रश्न भेज सकते हैं और उनके उत्तर तुरंत प्राप्त कर सकते हैं।
गन्ने कीCo 0238 किस्म का प्रदर्शन खेतों में किया गया। स्थानीय किस्म की 710 क्विंटल/है. पैदावार की तुलना में इसकी खेतों में औसत पैदावार 1375 क्विंटल/है. दर्ज की गई। इसमें खेती की लागत रु. 151,960/है., कुल आय रु. 412,500/है. तथा शुद्ध लाभ रु. 2,60,540/है.। कृषि विज्ञान केन्द्र, सहारनपुर ने जिले में इस किस्म को लोकप्रिय बनाने के प्रयास किए हैं।
गेहूं की यह किस्म देश के उत्तर-पूर्वी और उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में लगभग 10 मिलियन हैक्टर क्षेत्रफल पर उगाई जाती है। देश के गेहूं उत्पादन में इसका लगभग 50 मिलियन टन का योगदान है। यह पीला रतुआ रोग की प्रतिरोधी है और129-143 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसका औसत उत्पादन लगभग 5 टन प्रति हैक्टर है।
अधिक जानकारी के लिए भाकृअनुप-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा,नई दिल्ली-110012 से संपर्क किया जा सकता है।
क) जैविक खेती के लिए कृषि पद्धतियां
जैविक उत्पादों का बाजारमें अधिक मूल्य मिलने के कारण किसानों का जैविक खेती की ओर बड़ी संख्या में आकर्षित होना स्वाभाविक है। किसानों के बीच जैव कृषि की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए 45 फसलों/ फसल पद्धतियों पर आधारित जैविक कृषि पद्धतियों का विकास किया गया है। इनका प्रचार-प्रसार राष्ट्रीय जैविक कृषि केन्द्र, परंपरागत कृषि विकास योजना तथा राष्ट्रीय बागवानी मिशन के माध्यम से किया जा रहा है। देश में जैविक खेती के लिए चिन्हित क्षेत्रों में इन कृषि पद्धतियों का विशेष महत्व है।
(ख) समेकित कृषि प्रणाली मॉडल
देश के विभिन्न कृषि पारिस्थितिकी क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से लघु एवं सीमान्त कृषकों के अनुरूप विभिन्न फसलों, बागवानी उत्पादों, कृषि वानिकी, पशुधन तथा मात्स्यिकी पर आधारित 45 बहुउद्यमी समेकित कृषि प्रणाली मॉडलों का विकास किया गया है। इनके उपयोग से कृषकों की आय को 1.5-3.6 लाख रुपये तक बढ़ाया जा सकता है। इस बारे में विस्तृत जानकारी के लिए भाकृअनुप-भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान, मोदीपुरम (उ.प्र.)से संपर्क किया जासकता है।
(क) दूध में डिटरजेंट की मिलावट की त्वरित जांच के लिए जुया रंग आधारित परीक्षण
इस प्रौद्योगिकी से केवल 100 सेकेंड में 0.02 प्रतिशत के स्तर तक दूध में डिटरजेंट की मिलावट का पता लगाया जा सकता है। इसका उपयोग मदर डेरी, नई दिल्ली और हैवमोर आईसक्रीम जैसे दो डेरी संगठनों द्वारा किया जा रहा है।
(ख) दूध में निष्प्रभावित करने वाले तत्व (न्यूट्रलाइजर) की जांच के लिए स्ट्रिप आधारित परीण : दूध में 0.04 प्रतिशत सीमा तक निष्प्रभावित करने वाले तत्व की त्वरित जांच के लिए यह परीक्षण उपयोगीहै। इससे डेरी संस्थानों में प्राप्त होने वाले दूध की गुणवत्ता में सुधार होता है। आंतरिक गुणवत्ता नियंत्रण के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।
(ग) दूध में यूरिया मिलावट की जांच के लिए स्ट्रिप आधारित परीण: दूध में 0.08 प्रतिशत सीमा तक यूरिया की त्वरित जांच के लिए यह परीक्षण काफी उपयोगी सिद्ध हुआ है। अधिक जानकारी के लिए भाकृअनुप - राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान,करनाल (हरियाणा)से संपर्क करें ।
हरियाणा में पशु आहार और चारेमें कैल्शियम, पोटेशियम, जिंक, मैगनीशियम और कॉपर जैसे खनिज तत्वों की कमी पाई जाती है। इस क्षेत्र में प्रजनन योग्य 70 से 80 प्रतिशत तक मैंसों की संख्या में लंबा मदकाल पाया गया। क्षेत्र विशेष के लिए खनिज लवण मिश्रण को संपूरक आहार के रूप में देने से 75 प्रतिशत पशुओं में4-6 सप्ताह में मदकाल पाया। गया। हरियाणा और राजस्थान के हजारों किसानों ने इसेसफलतापूर्वक अपनाया है। इससे दुग्ध उत्पादन भी बढ़ा है।
मत्स्य प्रग्रहण हेतु अधिकाधिक मछलियों की उपस्थिति का पता लगाने के लिए इस इलैक्ट्रॉनिक डाटा एक्विजिशन सिस्टम (eDAS) का विकास किया गया है। मोबाइल एसएमएस के जरिये मत्स्य कृषक यह जानकारी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए भाकृअनुप-केंद्रीय ताजा जलजीव अनुसंधान संस्थान, भुबनेश्वर से संपर्क किया जा सकता है।
(क) बकरियों की विलुप्त होने वाली नस्लों के संरण एवं उत्पादकतामें सुधारअखिल भारतीय बकरी सुधार समन्यवन परियोजना ने भारत की सुरती, संगमनेरी, जमुनापारी, बरबरी नस्लों को विलुप्त होने से सफलतापूर्वक बचा लिया है। कई नस्लों की संख्या में तो हजार गुना वृद्धि प्राप्त की गई, जिससे इनका संरक्षण संभव हो सका। इनका उपयोग किसानों की बकरियों में नस्ल सुधार हेतु किया जा रहा है। ग्रामीण परिस्थितियों में चलाए जा रहे नस्ल सुधार एवं तकनीकी उपयोग द्वारा असोम के हिलगोट के किसानों में पांच वर्षों के दौरान प्रति किसान बकरी पालने की संख्या में 500 प्रतिशत तक वृद्धि देखी गई जिससे उनकी आय में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई।
(ख) अजुस-बक्री दूध से तैयार सौंदर्य साबुन : स्वस्थ त्वचा के लिए। बकरी दूध से बना एक साबुन तैयार किया गया है। इसमें बकरी के प्रसंस्करित दूध, वसा, तेलों का मिश्रण और हर्बल सत का उपयोग किया गया है। इसके लिए नारियल, अलसी, अरण्डी, सूरजमुखी और बादाम के तेल को निश्चित अनुपात में बकरी के प्रसंस्करित दूध के साथ मिलाया गया है। इस मिश्रण में हर्बल जैल/ सत का 3 प्रतिशत प्रयोग किया गया है। इससे साबुन के एंटीसेप्टिक गुणों में वृद्धि हुई। इसमें पैट्रोलियम जैली का प्रयोग नहीं किया गया।अधिक जानकारी के लिए भाकृअनुप-केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, फरह, मथुरा (उत्तर प्रदेश) से संपर्क करें |
मानव ब्रुसेला IgGऔर IgMकी जांच के लिए एंटीब्रुसेला IgG/IgM LFA कॉम्बो युक्ति का मानकीकरण किया गया है। इसमें लिपोपॉलीसैकराइड एंटीजन, गोल्ड कोल्इडल (कलिलीय) कणों के साथ प्रतिमानवीय IgGऔर IgMइम्यूनोग्लोब्यूलिन का प्रयोग किया गया है। अधिक जानकारी के लिए भाकृअनुप-निवेदी, बेंगलुरु(कर्नाटक) से संपर्क करें।
(क) पीपीआर विषाणू प्रतिजन (एंटीबॉडी) की जांच के लिए मल्टीपलएंटीजेनिक पेप्टाइड एस्सेछोटे रूमंथी पशुओं के उच्च संक्रमण रोग पीपीआर की सेरो जांच के लिए चुनिंदा कृत्रिम बहुप्रतिजन पेप्टाइड का प्रयोगइस खोज में किया गया है। पीपीआर की जांच के लिए असंक्रामक, सुरक्षित और स्थिर कृत्रिम पेप्टाइड प्रतिजन का प्रयोग एंजाइम और गैरएंजाइमयुक्त इम्यूनोएस्से में किया गया है।
(ख) पीपीआर विषाणु प्रतिजन (एंटीबॉडी) की जांच के लिए कृत्रिम पेप्टाइड एंटीजन: छोटे रूमंथी पशुओं के उच्च संक्रमण रोग पीपीआर की सेरो जांच के लिए कृत्रिम पेप्टाइड एंटीजन की खोज की गई है। पीपीआर विषाणु में प्रतिरोधक क्षमता विकास के लिए कृत्रिम पेप्टाइड के मिश्रण का प्रयोग असंक्रामक और सुरक्षित एंटीजन के रूप में किया जा सकता है। यह नैदानिक एस्से संपूर्ण विषाणु प्रतिजन का निवारण करता है। अतः इसका परिवहन आसानी से किया जा सकता है। अधिक जानकारी के लिए भाकृअनुप-भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधानसंस्थान, इज्जतनगर, उत्तर प्रदेश से संपर्क करें।
मुर्गी पालन अपशिष्ट द्वारा हरित ऊर्जा उत्पादन हेतु ‘डीएसी प्रौद्योगिकी का मानकीकरण किया गया। इसमें 60.02 प्रतिशत वी/वी मिथेन पाई जाती है। एक घन मीटर बायोगैस उत्पादन के लिए 12 से 20 किलोग्राम मुर्गी विष्ठा की आवश्यकता होती है। एक औसत परिवार के तीनों पहर का भोजन बनाने के लिए बायोगैस की यह मात्रा पर्याप्त होती है। पोल्ट्री फार्म में ऊष्मा स्रोत के रूप में भी इसका प्रयोग किया जा सकता है। पोल्ट्री बायोगैस की स्लरी की उपयोगिता उच्च गुणवत्ता की खाद के रूप में भी है और जैविक फसल उत्पादन के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है। इससे पर्यावरण प्रदूषण में भी कमी आएगी और पोल्ट्री उत्पादन की लागत में कमी के साथ ही अतिरिक्त आय प्राप्त की जा सकती है। अधिक जानकारी के लिए भाकृअनुप-केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर, उत्तर प्रदेशसे संपर्क करें।
हरियाणा,पंजाब, राजस्थान एवं उत्तर प्रदेश में किसानों को लवणीय मृदा एवं लवणीय भूजल की समस्या का बड़े पैमाने पर सामना करना । पड़ता है। भाकृअनुप-सीफे (मुम्बई) द्वारा व्यावसायिक स्तर पर इस प्रकार केलवणीय जल में झींगा पालन सफलतापूर्वक करने हेतु तकनीकी का विकास किया गया है। इन प्रदेशों में अब श्वेत समुद्री झींगों का लगभग 400 हैक्टर क्षेत्रफल में उत्पादन किया जा रहा है। अधिक जानकारी के लिए भाकृअनुप-केन्द्रीय मात्स्यिकी शिक्षा संस्थान, मुम्बई सेसंपर्क किया जा सकता है।
(क) झींगा उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए सीबास्टीम्
यह झींगा केस्वास्थ्य और उत्पादन में सुधार के लिए उत्प्रेरक का कार्य करता है। सीबास्टीम एक स्वदेशी सूक्ष्म जैविक उत्पाद है। यह पर्यावरण हितैषी और सुरक्षित है। झींगाआहार में इसे 1 मि.ली. प्रति ग्राम की दर से मिलाया जाता है।
(ख) वजागेई प्लस
यह एक लागत प्रभावी झींगा आहार है। इसमें 33 प्रतिशत प्रोटीन होता है। आंध्र प्रदेश, गुजरात, केरल, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और तेलंगाना के 5 हजार हैक्टर झींगा पालन क्षेत्र में इसका प्रयोग किया जा रहा है। आयातित झींगा आहार की तुलना में इसकी लागत 15 रुपये प्रति कि.ग्रा. कम है।अधिक जानकारी के लिए भाकृअनुप-केन्द्रीय खारा जल जीवपालन अनुसंधान संस्थान, बैरकपुर से संपर्क किया जा सकता है।
पूसा डिजिटलसॉयल टैस्ट फर्टिलाइजर रिकमन्डेशन मीटर मृदा में 12 पोषक तत्वों का आकलन करने में सक्षम है। संतुलित फसल पोषण के लिए यह पोषक तत्वों की मात्रा की संस्तुति भी करता है, जैसे जैविक कार्बन, फॉस्फोरस, पोटेशियम, जिंक, बोरॉन, सल्फर, लोहा, मैंग्नीज, चूनाऔर जिप्सम आदि। अधिक जानकारी के लिए। भाकृअनुप-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली-110012से संपर्क किया जा सकता है।
यह बहुउद्देशीय,हवा भरने से फूलने वाला फलैक्सी रबड़ डैम, चैक डैम की तुलना में 20-25 प्रतिशत अतिरिक्त जल का संचयन करने के साथ भूजल पुनर्भरण(रिचार्जिंग) की प्रक्रिया को अधिक । प्रभावी बनाने में सक्षम है। इस प्रौद्योगिकी का सबसे अधिक लाभ वर्षा आधारित कृषि पारिस्थितिकी पर निर्भर कृषकों के लिए है। अधिक सूचना के लिए भाकृअनुप-भारतीय जल प्रबंधन संस्थान, भुबनेश्वर, ओडिशा से संपर्क कर सकते हैं।
देश भर मेंकोल्ड स्टोरेज का ढांचागत विकास कर फलों और सब्जियों की शेल्फ लाइफ को काफी हद तक बढ़ाया जा सकता है। उदाहरण के लिए आम को 15 दिनों तक ताजा स्थिति में रख पाना कोल्ड स्टोरेज की मदद से संभव है जबकि सामान्य तापमान पर मात्र 4 दिनों तक ही इसकी ताजगी को बनाए रखा जा सकता है। सौर ऊर्जा चालित कोल्ड स्टोरेज की इस प्रणाली में बागवानीफसलों के भण्डारण की संचालन लागत 1.50 रु. प्रति किलोग्राम प्रति सप्ताह पड़ती है। इस बारे में अधिक जानकारी के लिए राष्ट्रीय कृषि विज्ञान कोष, कैब-1, पूसा गेट, नई दिल्ली-110012 से संपर्क किया जा सकता है।
यह उपकरण रोपाई के दौरान उपयुक्त स्थान पर शाकनाशियों का सटीक रूप से उपयोग सुनिश्चित करता है। इस क्रम में श्रम लागत में उल्लेखनीय रूप से कमी आतीहै। इसकी उपयोगिता वर्षा आश्रित क्षेत्रों में ज्यादा है। इससे संबंधित विस्तृत जानकारी के लिए भाकृअनुप-केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद(आन्ध्र प्रदेश) से संपर्क किया जा सकता है।
दलदली भूमि में धान के खेतों सेखरपतवार हटाने के लिए इसका विकास किया गया था। इसके संचालन में कम मशक्कत की जरूरत होती है। इसकी दक्षता अन्य कोनो वीडर के मुकाबले 74 प्रतिशत अधिक है।
अधिक जानकारी के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के कृषि अभियांत्रिकी संभाग, कृषि अनुसंधान भवन–॥, पूसा, नई दिल्ली-110012 से संपर्क कियाजा सकता है।
(क) मूंगफली दूध आधारित स्वादिष्ट पेय, दही और पनीर : भाकृअनुप-सिफेट द्वारा मानव की प्रोटीन और अन्य पोषक तत्वों कीआवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मूंगफली दूध आधारित स्वादिष्ट पेय, दही और पनीर का विकास एवं इनका व्यावसायीकरण किया गया। ये स्वाद में उत्तम और पोषक तत्वों से भरपूर हैं। पायलट प्लांट (क्षमता 20 लीटर मूंगफली दूध प्रति बैच) की लागत 3.5 लाख रुपये है।
(ख) मखाना पॉपिंग मशीन : मखाना बीजों की प्रसंस्करण प्रक्रिया बेहद कठिन है। इसके पोषण महत्व के मद्देनजर भाकृअनुप-सिफेट, लुधियाना ने मखाना पॉपिंग मशीन का विकास किया है। इस मशीन द्वारा मखाना को भूनकर इसकी गिरी का छिलका उतारा जाता है। इसकी कार्य क्षमता 35 से 40 कि.ग्रा. प्रति घंटा है। इस मशीन की छिलका उतारने की क्षमता 95 प्रतिशत है और पॉपिंग क्षमता 90 से 94 प्रतिशत है। इसकी लागत 3.5 लाख रुपये है।अधिक जानकारी के लिए भाकृअनुप-केंद्रीय कटाई उपरांत प्रौद्योगिकी एवं अभियांत्रिकी संस्थान, लुधियाना (पंजाब) से संपर्क किया जा सकता है।
भाकृअनुप-केन्द्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान ने ऑरेंज स्पाटिड ग्रुपर, ग्रीसी ग्रुपर, इंडियन पम्पानो, सिल्वर पम्पानो, पिंक इयर एम्परर, कोबिया और पर्लस्पॉट की खुला पिंजड़ा मत्स्य पालन प्रणाली के लिए प्रजनन और बीज उत्पादन प्रौद्योगिकी का विकास किया है। इन मछलियों में तीव्र विकास होता है और ये मत्स्य पालन उद्योग के लिए आकर्षक हैं। अधिक जानकारी के लिए भाकृअनुप-केन्द्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान, कोच्चि, केरल से संपर्क किया जा सकता है।
भारत के प्रमुख प्राकृतिक भौगोलिक क्षेत्रों,भारत के उप-प्राकृतिक भौगोलिक क्षेत्रों, कृषि पारिस्थितिकीय क्षेत्रों (1992), कृषि पारिस्थितिकीय क्षेत्रों (2015) तथा देश के कृषि पारिस्थितिकीय उप क्षेत्रों में विभिन्न विषयी सूचना तक पहुंच स्थापित करने के उद्देश्य से भाकृअनुप-राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो द्वारा एनबीएसएस भूमि भू-पोर्टलविकसित किया गया।
उत्तरदायित्वपूर्ण मात्स्यिकी के लिए आचारसंहिता (सीसीआरएफ) में जीवित जलीय संसाधनों, समुद्री तथा मीठे जल के संसाधनों के प्रभावी संरक्षण का प्रबंध व विकास सुनिश्चित करने के लिए व्यवहार संबंधी मानक निर्धारित किये गये हैं। इसमें पारिस्थितिक प्रणालियों पर मात्स्यिकी के पड़ने वाले प्रभावों और जैवविविधता के संरक्षण की आवश्यकता, दोनों का ध्यान रखा गया है। भाकृअनुप-सीएमएफआरआई तथा भाकृअनुप-सीआईएफटी ने उत्तरदायित्वपूर्ण मात्स्यिकी के लिए खाद्य एवं कृषि संगठन आचार संहिता (एपफएओसीसीआरएफ, 1995)को अपनाया है तथा इसे 'भारतीय समुद्री मात्स्यिकी कोड (आईएमएफसी) नाम दिया है, ताकि उस विधि में परिवर्तन लाया जा सके जो देश में समुद्रीमात्स्यिकी के प्रबंध के लिए अपनायी जा रही है।
शीत के दौरानब्रूड और कामगार मधुमक्खियों की उच्च मृत्युदर को रोकने के लिए कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ठंडी हवाओं से बचाव करते हुए मधुमक्खी को ऊष्मा प्रदान किया जाना बहुत महत्वपूर्ण है। एसकेयूएएसटी, कश्मीर में एआईसीआरपी (मधुमक्खी और परागक) केंद्र द्वारा शीत पैकिंग के लिए कम लागत वाली प्रौद्योगिकी तथा शीत में आहार के अभाव के लिए प्रौद्योगिकी विकसित की गई। थर्मोकोल और धान की भूसी। के साथ शीत प्रौद्योगिकी में मधुमक्खियों की बस्ती को बेहतर ऊष्मा प्रदान की गई, जिसके कारण उनके बस्ती निष्पादन को बिना प्रभावित किए ब्रूड औरवयस्क मधुमक्खियों को संरक्षित किया गया।
प्राकृतिक परिस्थितियों के अंतर्गत, अकेसिया सेनेगल के प्रत्येक वृक्ष से आमतौर पर 10-15 ग्राम गम अरेबिक हासिल किया जाता है। गम अरेबिक को खाने योग्य सर्वश्रेष्ठ गोंद माना जाता है और इसका उपयोग अनेक प्रकार की मिठाइयों, कन्फेक्शनरी उत्पादों, आईसक्रीम, हर्बल दवाइयों आदि को बनाने में किया जाता है। साथ ही इससे अधिक बाजार मूल्य (रुपये 1,0001,200 प्रति किग्रा.) भी मिलता है। एक नई तकनीक विकसित की गई है, जिससे प्रत्येक वृक्ष से दस गुना से भी अधिक गोंद उत्पादन में बढ़ोतरी हुई। है। इस तकनीक को किसानों द्वारा व्यापक रूप से अपनाया गया है। इस बारे में अधिक जानकारी के लिए भाकृअनुप-काजरी, जोधपुर से सम्पर्ककिया जा सकता है।
कदन्न आधारित छः मूल्यवर्धित उत्पादनामतः पोंगल मिश्रण, इडली मिश्रण, इंस्टेंट उपमा मिश्रण, रागी वर्मीसेली, रागी कुकीज तथा मिलेट रवा को सफलतापूर्वक विकसित एवं व्यावसायीकृत किया गया, जिसके परिणामस्वरूप इनकी मांग देशभर में बढ़ी।
अधिक जानकारी के लिए भाकृअनुप-भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान, राजेन्द्रनगर, हैदराबाद, तेलंगाना से संपर्क किया जा सकता है।
स्त्रोत: कृषि ज्ञान प्रबंध निदेशालय
अंतिम बार संशोधित : 3/2/2020
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