भारत में पशुओं की संख्या बहुत अधिक है। परन्तु प्रति पशु दुग्ध उत्पादन बहुत कम है। इसका मुख्य कारण आनुवंशिक क्षमता की कमी तथा पौष्टिक व संतुलित आहार की उचित आपूर्ति न होना है। फसल अवशेष ही हमारे पशुओं के मुख्य आहार हैं। फसल अवशेषों में नाइट्रोजन तथा खनिज की मात्रा बहुत ही कम होती है। जबकि इनमें थोड़ा कार्बोहाईड्रेटस ही होते हैं। अधिक होने के कारण पशु इनका पूरी तरह उपयोग नहीं कर पाता है, इसलिए फसल अवशेष में अल्प मात्रा में पाये जाने वाले तत्वों की पूर्ति आवश्यक है।
जुगाली करने वाले पशुओं की विशेषता है कि वे अपनी प्रोटीन तथा उर्जा की आवश्यकता केवल नाइट्रोजन तथा रेशेदार आहार से पूरा कर लेते है। इसके लिए रोमन्थ में असंख्य जीवाणु (बैक्टीरिया, प्रोटोजोआ, फफूद आदि) होते हैं जो कि नाइट्रोजन को प्रोटीन तथा रेशेदार कार्बोहाइड्रेट को वाष्पशील वसा व अम्ल में परिवर्तित कर पशु में प्रोटीन तथा उर्जा प्रदान करते है। लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि जीवाणुओं की नाइट्रोजन ऊर्जा तथा खनिज की आवश्यकता को पूरा किया जाये। फसलों के अवशेष खिलाने से पशु पोषण या उत्पादन की बात तो दूर इसके सेवन से पाये जाने वाले जीवाणुओं की पूर्ति भी नहीं हो पाती हैं।
यूरिया, शीरा तथा खनिज सूखे चारे में मिलाकर खिलाने से पशुओं की जीवन निर्वाहन की आवश्यकता पूरी हो जाती है। इसके लिए पशुपालकों को विशेष परीक्षण की आवश्यकता होती है क्योंकि अगर तीन तत्त्व ठीक प्रकार तथा उचित अनुपात में नहीं मिलाये गये तो यूरिया की विषाक्ता से पशु मर भी सकता है। इसलिये कृषकों व पशुपालकों की सुविधा के लिए यूरिया, शीरा व खनिज तैयार किया जाता है जो कि पशुओं के लिए हर तरह से सुरक्षित है। पशु अपनी आवश्यकता के अनुसार पिंड को चाट सकता है और फसल अवशेष में जो तत्त्व कम होते हैं उनकी आपूर्ति खनिज पिंड से हो जाती है।
अगर बिनौले अथवा मूंगफली की खली उपलब्ध नहीं हो तो दूसरी खली का उपयोग भी कर सकते है। यह पिंड बाजार में भी उपलब्ध होता है, परन्तु महँगा पड़ता है तथा अवयवों की प्रतिशतमात्रा की विश्वनीयता नहीं होती। इसलिए पशुपालक के लिए अगर इसे घर पर तैयार कर लें तो यह काफी सस्ता व विश्वसनीय होता है।
सबसे पहले शीरै को गर्म करके उसमें यूरिया कैल्साइट पाउडर और सोडियम बैण्टोनाइट डालकर अच्छी तरह मिला लें। मिश्रण को धीरे-धीरे हिलाते हुए उसमें खनिज मिश्रण खली आदि को मिलाये। जब मिश्रण का तापमान 120°C हो जाये तो इसको 10 मिनट तक अच्छी तरह मिलायें और जब सभी पदार्थ अच्छी तरह मिल जाये तो मिश्रण को ठण्डा ( 80-90°c) कर लें। फिर उचित आकार के सांचों में डालकर ठण्डा होने के लिए रख दें।
इस विधि में यूरिया, कैल्शियम आक्साइड (चूना) का प्रयोग किया जाता है। चूने के मिश्रण को मिलाकर ही इतनी गर्मी पैदा हो जाती है कि सारे मिश्रण को अर्द्धतरल अवस्था में बदल देती हैं तथा मिश्रण को सांचों में डालकर आसानी से पिंड बनाया जा सकता है।
यूरिया, शीरा, खनिज पिण्ड खिलाने के लाभ:
मिथेन गैस कम बनती है जो कि वातावरण को प्रदूषित होने से बचाता है।
यूरिया, शीरा व खनिज युक्त पशु आहार पशुओं के लिए पूरक पोषण का महत्त्वपूर्ण स्रोत है जिसके फलस्वरूप पशुओं की उत्पादन क्षमता में सुधार होता है। यह स्थानीय 3. सामग्री जैसे गुड, यूरिया, कैल्साइट और गेहूँ के भूसे के साथ मिलाकर बनाया जा सकता है। यह पशुओं के लिए एक सस्ता व सम्पूर्ण पोषण का आहार है। इससे पशुओं के उत्पादन में वृद्धि होती है।
लेखन: अनिता मीणा, सत्यवीर सिंह, अजय वर्मा, अनुज कुमार, अनिल खिप्पल, जितेन्द्र कुमार एवं नीतू मीणा
स्त्रोत: पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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