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कृषि योग्य मिट्टी-एक संक्षिप्त परिचय

परिचय

मिट्टी-भूमि की सतही परत होती है जो पृथ्वी के भू-भाग के एक पतले आवरण के रूप में ढकती है और जल एवं वायु क उपयुक्त मात्रा मिलने पर सभी पौधों के आधार एवं जीविका प्रदान करती है| मिट्टी प्राक्रतिक खनिज पदार्थों और कार्बिनक पदार्थों के सड़ने एवं प्राकृतिक प्रक्रियाओं के प्रभाव से विकसित हुई है|

मिट्टी एक प्रकार से जीवंत संरचना है| मिट्टी का जन्म जैविक पदार्थों एवं चट्टानों से होता है और यह परिपक्व अवस्था में पहुँच कर कई प्रकार की परतों के रूप में विकसित होती है| जीवित पदार्थों के समान, मिट्टी का भी धीरे-धीरे विकास होता है| मिट्टी में पौधे तथा जंतु निरंतर सक्रिय रहते हैं जिससे इसमें लगातार परिवर्तन होता रहता है इसलिए मिट्टी को एक गतिशील कार्बिनक एवं खनिज पदार्थों का एक प्राकृतिक समुच्चय भी कहते है| मिट्टी में पाए जाने वाले जीव एवं सूक्ष्म जीव मिट्टी के विशेष कार्यों को प्रभावित करते हैं|

सतही मिट्टी बनाम अवमिट्टी

मिट्टियों की गहराई कुछ इंचों से लेकर सैंकड़ों तथा कभी-कभी हजारों फीट तक होती है| कृषि योग्य मिट्टी में कृषि कार्यों जैसे जुताई, गुड़ाई करने से मिट्टी की ऊपरी सतह की कुछ इंचों  में परिवर्तन होता है| इन क्रियाओं के फलस्वरूप मिट्टी में दो स्पष्ट परतें बनती हैं| मिट्टी की ऊपरी परत जिसमें कृषि करते समय औजार तथा यंत्र आदि चलाते हैं, सतही मिट्टी कहलाती है| सतही मिट्टी लगभग 6 इंच गहरी होती है और अपेक्षाकृत अधिक भुरभुरी तथा गहरे रंग की होती है| सतही मिट्टी में पौधों की जड़ों की संख्या अधिक होती है| मिट्टी में कार्बिनक पदार्थ एवं पौधों को जीवन प्रदान करनेवाले पोषक तत्वों की मात्रा भी अधिक पाई जाती है साथ ही साथ इसमें सूक्ष्म जीवों की संख्या और रासायनिक एवं जैविक क्रियाएँ भी अधिक होती है|

सतही मिट्टी के नीचे की परत को अवमिट्टी कहा जाता है जिस की गहराई कुछ इंच से लेकर सैकड़ों फीट तक हो सकती है| इस परत को कणों की संरचना के आधार पर तीन भागों में बाँटा गया है| यह सतही मिट्टी की अपेक्षा हल्के रंग की तथा सख्त होती है| इसमें महीन कणों एवं लवणों की मात्रा एक समान होती है| अवमिट्टी सतही मिट्टी  की अपेक्षा कम उपजाऊ होती अहि| एक सख्त अवमिट्टी में जल निकास उचित न होने पर जल भराव हो जाता है जिससे मिट्टी में हवा की कमी होने से फसलों एवं पेड़-पौधों की वृद्धि बुरी तरह प्रभावित होती है|

मिट्टी, पादप वृद्धि का एक माध्यम

पौधों की वृद्धि को प्रभावित करने वाले कारकों को तीन वर्गों में विभाजित किया गया :-

  • जलवायु कारक
  • जैव कारक
  • मिट्टी कारक

मिट्टी के सभी भौतिक, रासायनिक और जैविक गुण और मिट्टी में होने वाली सभी प्रक्रियाएं मिट्टी से पौधों को खनिज तत्व एवं जल प्रदान करने की क्षमता को प्रभावित करती है| वास्तव में मिट्टी पौधों की वृद्धि के लिए लगभग सभी आवश्यकताओं को पूर्ण करने में सक्षम है|

पादप वृद्धि हेतु आवश्यक पोषक तत्व

सभी पौधों को पानी वृद्धि के लिए मुख्यतः 20 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है जैसे कि: कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्सियम, मैग्नीशियम, सल्फर तथा अन्य सूक्ष्म तत्व आयरन, बोरोन, मैगनीज, कॉपर, जस्ता, मोलिबिडीनम, सोडियम, क्लोरीन, तथा सिलिकॉन आदि| पौधों को नाइट्रोजन मिट्टी एवं हवा दोनों से प्राप्त होती है| वायु एवं जल से पौधों को कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन प्राप्त होती है| जल मिट्टी का एक प्रमुख अंग है जो आवश्यक पोषक तत्वों को पौधों द्वारा ग्रहण करने हेतु मुख्य विलयक के रूप में सर्वाधिक मात्रा में पौधों द्वारा ग्रहण किया जाता है|

मिट्टी के अवयव

कृषि योग्य मिट्टी में तीन अवस्थाएँ पाई जाती हैं ठोस, द्रव एवं गैस, पौधों को खाद्य तत्व प्रदान करने में केवल ठोस एवं द्रव अवस्थाएँ ही महत्वपूर्ण हैं| मिट्टी के आयतन का लगभग 50% भाग ठोस पदार्थों से घिरा  होता है तथा शेष भाग में रन्ध्र होते हैं|  जिसमें जल एवं वायु उपस्थित होती हैं, इस प्रकार मिट्टी के मुख्य अवयव खनिज पदार्थ, कार्बनिक पदार्थ और जल एवं वायु हैं|

खनिज मिट्टी का आयतनात्मक संगठन

वायु शुष्क मिट्टी में आयतनानुसार 45-50% खनिज पदार्थ, लगभग 40% वायु, 5-10% जल और 5% कार्बनिक पदार्थ होते हैं|

सिल्ट में आयतनात्मक संगठन

  • हवा 25%
  • जल 25%
  • जैविक कार्बन 5%
  • खनिज पदार्थ 45%

 

खनिज मिट्टी का भारात्मक संगठन

एक घनफुट मिट्टी में 31 कि० ग्रा० खनिज पदार्थ, 6.5 कि० ग्रा० जल, 1.2 कि० ग्रा०  जीवांश पदार्थ 1.6 कि० ग्रा० वायु होती है| अधिकांश मिट्टियों की ऊपरी परत में भार के अनुसार 1-6% कार्बनिक मिट्टी होता है, यह मिट्टियों में पौधों एवं पशुओं के अवशेषों से प्राप्त होता है| कार्बनिक मिट्टी में पौधों के अवशेष लगातार मिलते रहते हैं| जैविक पदार्थों के मिट्टी में जीवों द्वारा विघटन की प्रक्रियाओं से  ह्यूमस बनता है, ह्यूमस का रंग प्रायः काला या बादामी होता है इसमें जल एवं पोषक तत्वों को धारण करने की क्षमता अधिक होती है|

मिट्टी की अम्लीयता व  क्षारीयता (पी०एच०)

मिट्टी के पी०एच० मान द्वारा अम्लीयता व  क्षारीयता का ज्ञान होता है मिट्टी को पी०एच० मान द्वारा तीन भागों में बाँटा गया है अम्लीय मिटटी, क्षारीय मिट्टी एवं उदासीन मिट्टी| है अम्लीय मिटटी विलयन में विभिन्न तत्व आयन्स के रूप में होते हैं जैसे H, NO3, SO4 तथा  क्षारीय  आयन्स OH,CA++, Mg++, Na+, H+ आदि तत्व पाए जाते हैं|  यदि मिट्टी  में हाइड्रोक्साइड आयन्स (OH) के सान्द्रण से अधिक होता है तो मिट्टी अम्लीय बनती है और अगर आयन्स (OH) के सान्द्रण हाइड्रोजन आयन्स (H) से अधिक होता है तो मिट्टी क्षारीय  बनती है|  इसके विपरीत हाइड्रोजन आयन्स (H) एवं हाइड्रोक्साइड आयन्स (OH) समान मात्रा में होते हैं तो मिट्टी उदासीन बनती है|

भारत में पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की मिट्टियों का पी०एच० मान द्वारा प्रायः 4 से 10 तक पाया गया है| पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाने वाली मिट्टियों प्रायः अम्लीय होती है और उनका  पी०एच० मान-7.0 से कम होता है इन मिट्टियों का पी०एच० मान 4.0 से 6.8 तक होता है| क्षारीय मिट्टी का पी०एच० मान-7.5 से 10.0 तक  होता है| उदासीन मिट्टी का पी०एच० मान-6.8 से 7.2 तक  होता है| भारत में पाई जाने वाली कृषि योग्य मिट्टी का पी०एच० मान-6.8 से 7.5 तक अच्छा माना जाता है|

 

उदासीन मिट्टी

अम्लीय मिट्टी

क्षारीय मिट्टी

पी०एच०

7.5

6.0

6.5

7.0

7.5

8.0

8.5

पी०एच०

अत्यधिक अम्लीय

माध्यम अम्लीय

हल्की अम्लीय

सामान्य अम्लीय

 

सामान्य अम्लीय

हल्की अम्लीय

माध्यम अम्लीय

अत्यधिक अम्लीय

 

मिट्टी की संरचना एवं गठन

मिट्टी के खनिज कण विभिन्न आकार के होते हैं जो बालू, सिल्ट तथा क्ले कहलाते हैं| मिट्टी के कणों के आपसी अनुपात से मिट्टी की संरचना होती है| बालू , सिल्ट तथा क्ले के कणों के अनुपात के आधार पर मिट्टी को एक नाम दिया जाता है| इस प्रकार जो नाम दिया जाता है वह मिट्टी की संरचना एवं गठन के अतिरिक्त मिट्टी के गुणों को भी दर्शाता है| जैसे बलुई मिट्टी और दोमट मिट्टी आदि| कणों के आकार के आधार पर मिट्टी का नामकरण समान्यतः निम्नवत किया जाता है|

क्रम सं.

मिट्टी के प्रकार

कण का व्यास (मि० मी०)

1

मोटी बालू

2.0- 0.20

2

महीन बालू

0.2- 0.02

3

सिल्ट

0.02 - 0.002

4

क्ले

0.002 से कम

भारत की मिट्टियाँ

भारत में पच्चीस प्रकार के खेती योग्य मृदायें जाती हैं| इनमें से मुख्य मृदाओं का विवरण निम्नवत हैं:

दोमट मिट्टी- ये भारत के सबसे महत्वपूर्ण और उपजाऊ मिट्टी है| भारत में इन मिट्टियों का क्षेत्रफल लगभग 300.000 वर्ग मील है| ये मिट्टियाँ-पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, असम की सुरमाघाटी तथा ब्रह्मापुत्र, कृष्णा, गोदावरी, कावेरी, और मध्य प्रदेश में नर्मदा, ताप्ती नदियों की सम्पूर्ण घाटियों में पाई जाती है| इस मिट्टी का रंग गहरा भूरा या भूरा होता है तथा इस मिट्टी में क्ले की मात्रा अधिक पायी जागी है| यह मिट्टी अधिकांशतः बलुई दोमट या भुरभुरी होती है| इस मिट्टी का पी०एच० मान-6.8 से 7.5 तक पाया जाता है तथा मिट्टी में कभी-कभी नाइट्रोजन की कमी पायी जाती है| किन्तु अन्य मृदाओं की अपेक्षा इसमें फास्फोरस की मात्रा पर्याप्त होती है तथा पोटाश की मात्रा 0.1 से 0.35% पाई जाती है| ये मिट्टी –गेंहूँ, कपास, मक्का, चना ज्वार, बाजरा, तेलीय बीजों, गन्ना, सब्जियाँ तथा विभिन्न प्रकार की खेती के लिए उपयुक्त होती है|

कपास की काली मिट्टी

यह भारतीय मिट्टी का दूसरा प्रमुख समूह है इनका क्षेत्रफल लगभग 2,00,000 वर्ग मील है| ये दक्षिण भारत में दक्षिणी आधे भाग, दक्कन के पठार, महाराष्ट्र के एक बड़े भाग, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश के पशिचमी भाग, उत्तरप्रदेश में काली मिट्टी गंगा नदी के निचले क्षेत्रों में तथा तमिलनाडु के कुछ भागों में फैली हुई है| इस मिट्टी का रंग काला होता है जो टिटेनीफेरस मेगनेटाइट की उपस्थिति के कारण होता है तथा गीली मिट्टी चिपचिपी होती है| गर्मियों में जल के अधिक मात्रा में वाष्पीकरण होने से इनमें सिकुड़न होने लगती है| जिससे बड़ी-बड़ी तथा गहरी दरारें पड़ जाती हैं| इस मिट्टी में लोहा मन्टमोरिलोनाइट तथा वीडेलाइट समूह की मात्र अधिक मात्र अधिक पाई जाती है इस मिट्टी में चूना प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, जबकि पोटेशियम व फास्फोरस की मात्रा भी काफी होती है| इस मिट्टी का पी०एच० मान-8.5 से 9.0 तक पाया जाता है| इसमें कार्बनिक पदार्थ कम तथा क्ले की मात्रा 35-50% तक पाई जाती है| इस मिट्टी में कपास की अच्छी फसल होती इसके अलावा, ज्वार, बाजरा, गेंहूँ, धनिया, प्याज, तम्बाकू, सब्जियाँ तथा नीबू वर्गीय फलों की अच्छी पैदावार होती है|

लाल मिट्टी

भारत में लाल एवं पीली मिट्टी का क्षेत्रफल लगभग 2,00,000 वर्ग मील है| ये मिट्टी मैसूर, उड़ीसा, बम्बई प्रान्त के दक्षिण-पूर्वी भाग, मध्यप्रदेश व उत्तरप्रदेश के पूर्वी भाग, राजस्थान में अरावली की पहाड़ियों तथा तमिलनाडु में लगभग दो तिहाई कृषि क्षेत्र में पाई जाती है| इनकी उत्पत्ति ग्रेनाइट तथा सिल्ट आदि खनिजों से हुई है| इन में अपघटन ऑक्साइड खनिज की मात्रा अधिक होती है तथा क्ले भाग में केओलीनाइट की मात्रा की मात्रा भी अधिक पाई जाती है| इस मृदा का पी०एच० मान-6.0 से 7.5 तक पाया जाता है तथा इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस,  कैल्सियम व कार्बनिक पदार्थ की कमी पाई जाती है इस मिट्टी में सिंचाई का उचित प्रबंध होने पर दलहन, बाजरा, ज्वार, गेंहूँ तथा कपास की खेती की जा सकती है|

शुष्क मिट्टी

ये मृदायें शुष्क तथा अर्द्धशुष्क प्रदेशों में पायी जाती है| इस प्रकार की मिट्टी का का क्षेत्रफल लगभग 40,000 वर्ग मील है| इस प्रकार की मिट्टी राजस्थान के मरुस्थल, काठियावाड़, दक्षिणी पंजाब, तथा उत्तरप्रदेश के पशिचमी भाग में पायी जाती है| इन क्षेत्रों  में वर्षा बहुत मात्रा कम मात्रा होती है| यहाँ की जलवायु शुष्क रहती है| इन क्षेत्रों में लीचिंग की अपेक्षा वाष्पीकरण अत्यधिक होता है जिससे मिट्टी में विलेय लवण ऊपर आ जाते हैं| इस प्रकार की मिट्टी का पी०एच० मान-0.8-9.5 तक पाया जाता है| मुख्य रूप से ये मृदायें बलुई होती हैं इनमें पानी तथा जीवांश पदार्थ सूक्ष्म मात्रा में पाया जाता है और यह मिट्टी बहुत कम उपजाऊ होती है| इस प्रकार की मिट्टी में सिंचाई की उचित व्यवस्था होने पर ज्वार, बाजरा, ग्वार, लोबिया, मोठ, जई, जौ, चना, गेंहूँ सरसों आदि उगाई जा सकती है|

 

स्रोत:  उत्तराखंड राज्य जैव  प्रौद्योगिकी विभाग; नवधान्य, देहरादून

अंतिम बार संशोधित : 9/28/2019



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