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गांवों की तकदीर बदलने में लगे हैं युवा

अच्छी नौकरी छोड़-खेती का रास्ता

जब पढ़े लिखे युवा ऊंची तनख्वाह करने वाली नौकरी छोड़ कर गांव की अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए गांव, कस्बों व छोटे शहरों की ओर रुख करेंगे, तभी गांव की सूरत बदलेगी। देश के अलग-अलग हिस्से में कई युवाओं ने ऐसे प्रयास किये हैं। ऐसी पहल बिहार में देखने को मिल रही है, जहां अच्छी नौकरी को छोड़ कर युवा गांव के किसानों के लिए लाभदायक बाजार तैयार करने के अभियान में जुटे हैं।

मनीष-शशांक-एमटेक युवा की किसानी

बदलते बिहार की तस्वीर को और बेहतर बनाने में मनीष कुमार और शशांक कुमार बहुत चर्चित नाम हैं, जो तकनीकी व प्रबंधन क्षेत्र में एमटेक कर गांवों में किसानों की मदद के लिए आगे आये हैं। मनीष और शशांक सामूहिक खेती को बढ़ावा देते हुए किसानों के लिए बीज से लेकर बाजार तक का तकनीकी प्रबंधन करने में जुटे हैं। मनीष जहां किसानों को संगठित करने और उन्नत तकनीक के माध्यम से खेती के तरीके सिखाने में तल्लीन हैं, वहीं शशांक किसानों के लिए उत्तम कोटि के बीज एवं अच्छे बाजार की तलाश कर रहे हैं। इन दोनों युवाओं ने मिलकर सात सदस्यीय ‘फार्म एंड फार्मर्स’ नामक संस्था का गठन किया है। जिसके अंतर्गत 10 से 15 किसानों के छोटे-छोटे समूह बनाये जा रहे हैं। समूह के किसानों की बैठक आहूत कर उन्हें सामूहिक खेती से होने वाले लाभ के बारे में बता रहे हैं। अपने पैतृक गांव वैशाली जिले के चकदरिया में मई, 2010 में संस्था का पहला समूह बनाया गया। इस समूह के किसानों द्वारा राजमा की खेती की गई, जिसके लिए उच्च तकनीकी, उन्नत बीज, वर्मी कार्बिनक खाद व कीटनाशक पदार्थों का सही मात्र में उपयोग किया गया। इससे पैदावार में दोगुना वृद्धि हुई, साथ ही कृषि लागत में भी कमी आई। खेती के दौरान फसलों के चयन में भौगोलिक वातावरण एवं मिट्टी की संरचना पर विशेष ध्यान दिया जाता है। अब किसानों का रुझान भी सामूहिक खेती की ओर होने लगा है और वे संस्था से जुड़कर अधिक से अधिक समूह बनाने में रुचि दिखा रहे हैं।

विशेषज्ञों की सलाह

संस्था के सचिव मनीष कुमार ने कहा कि हमारी संस्था द्वारा समय-समय पर किसानों की सभा आयोजित की जाती है जिसे कृषि वैज्ञानिक एवं विशेषज्ञ संबोधित करते हैं। विशेषज्ञों द्वारा किसानों को न्यूनतम लागत और कम समय में होने वाली फसलों की खेती करने की सलाह दी जाती है। साथ ही उन्हें यह भी बताया जाता है कि ऐसा करके अधिक लाभ कैसे कमाया जा सकता है। मनीष कुमार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी जुड़े रहे हैं। वे 1999 में रांची के हरमू में स्वयंसेवक बने, फिर हरमू में ही विवेकानंद शाखा में मुख्य शिक्षक के रूप में दायित्व का निर्वहन किया। मनीष कहते हैं कि संघ के संपर्क में आने पर ही उनके अंतर्मन में सेवा-भाव का बीज प्रस्फुटित हुआ। संस्था के अध्यक्ष शशांक कुमार कहते हैं कि संस्था द्वारा यह ध्यान भी रखा जाता है कि खेती के दौरान रासायनिक व हानिकारक पदार्थों का प्रयोग न किया जाए। फसलों के लिए अच्छे बाजार की भी व्यवस्था संस्था द्वारा की जाती है ताकि किसानों को अधिक से अधिक लाभ मिल सके। इन दोनों युवा प्रतिभाओं ने करियर और ऐशो-आराम की सहज जिंदगी को ठुकराकर गांवों की पगडंडियों व मेड़ों को अपनाया है। नि:स्वार्थ भाव से समाज हित में बढ़ाये गये इनके कदम सर्वत्र सराहनीय व प्रशंसनीय हैं।

राजमा की खेती

स्त्रोत : संदीप कुमार,स्वतंत्र पत्रकार,पटना बिहार।

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



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