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ओल की खेती से उद्यमी बने किसान

नया जोश व उत्साह

कृषि का प्रचार-प्रचार कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा बखूबी किया जा रहा है। इन केंद्रों से किसान उपयोगी तकनीक व उपयोग की जानकारी हासिल कर रहे हैं। आज प्रगतिशील किसान खेती के जरिये अपने सामाजिक-आर्थिक जीवन स्तर को ऊपर उठाने में सफल हो रहे हैं। उसी की एक मिसाल हैं वैशाली जिला मुख्यालय स्थित हाजीपुर के निवासी शंकर चौधरी। ये एक ऐसे प्रगतिशील किसान हैं, जिन्होंने ओल, क्योकंद, आम, हल्दी तथा सतवार आदि की खेती कर आसपास के किसानों में नया जोश व उत्साह पैदा कर दिया है। साथ ही उन्होंने ओल से कई तरह के व्यंजन बना कर उद्यमी के रूप में पहचान बनायी है। इन्हें इसके लिए देश भर में कई पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। ओल अलग-अलग प्रदेशों में भिन्न-भिन्न नामों से, जैसे-जिमीकंद, सूरन, कलिंगु, स्वर्ण गत्ती तथा हाथी पांव, नमों से जाना जाता है। ओल अथवा जिमीकंद की किस्मों पर वैज्ञानिक शोध हुए। जैसे इसकी खेती कैसे करें तथा कौन-कौन सी-उपजाऊ किस्में हैं, पर ओल का उपयोग किन-किन रूपों में करें, इस ओर शायद ही किसी का ध्यान गया हो। शंकर चौधरी ने इस ओल पर ऐसा व्यावहारिक प्रयोग किया कि वे अपने क्षेत्र में ओल विशेषज्ञ के रुप में जाने-पहचाने जाने लगे।

ओल की खेती की शुरूआत

ओल की खेती की शुरूआत 1994 में लगभग 1700 रुपये प्रति क्विंटल की दर से हैदराबाद से बीज (कंद) लाकर शंकर चौधरी ने लगभग तीन एकड़ में खेती की शुरुआत की। तब से अपने साथ कई अन्य किसानों को जोड़कर खेती करा रहे हैं। इनसे जुड़े किसानों द्वारा जितने भी ओल का उत्पादन किया जाता है, उसे शंकर बाजार के वर्तमान मूल्य के हिसाब से दो-तीन प्रतिशत की मार्जिन पर खरीद कर बिहार के अलावा बंगाल, झारखंड तथा उत्तरप्रदेश की मंडियों में बेच रहे हैं। इससे उनकी कमाई अच्छी होती है। इसके अलावा स्थानीय किस्म मनीगाछी की खेती भी यहां के किसानों द्वारा की जाती है। उन्होंने कहा कि चाइना में एक नयी किस्म, जिसमें स्टार्च की मात्र 34 प्रतिशत पायी जाती है, लाने का प्रयास किया जा रहा है। अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए ताजा गोबर तथा वेविस्टीन को दो ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बना कर बीजोपचार करना आवश्यक होता है। इसके अलावा प्रति गड्ढा तीन किलोग्राम गोबर की खाद या कंपोस्ट, दस ग्राम यूरिया, चालीस ग्राम एसएसपी व 15 ग्राम पोटेशियम सल्फेट देने से पैदावार अच्छी होगी। ओल की खेती में इनकी सफलता का राज है कृषि वैज्ञानिकों का भरपूर सहयोग। इन्होंने कहा कि कृषि वैज्ञानिकों के सहयोग व मार्गदर्शन से ही हम आज सफलता की इस ऊंचाई को छूने में कामयाब हुए हैं। कृषि विज्ञान केंद्र ढोली के कंदमूल वैज्ञानिक ने लगभग एक दश्क पहले हैदराबाद से कुछ ही कंद यहां लाया था। बाद के वर्षो में इसी ओल से बीज तैयार किये गये और आज राज्य के एक बड़े भूभाग पर ओल की खेती किसानों द्वारा की जा रही है। इसके अलावा ओल की पद्या किस्में भी लोकप्रिय हो रही हैं। ढोली के समीप बखरी ओल गांव के नाम से जाना जाता है।

पुरस्कार व सम्मान

शंकर किशोर चौधरी को उद्यान रत्न अवार्ड से नवाजा जा चुका है। कृषि विभाग से कांस्य पदक भी मिला। देश के विभिन्न हिस्सों से उन्हें कई पुरस्कार व प्रशिस्त पत्र मिल चुके हैं।

कई हिस्सों में लगी प्रदर्शनी

देश के कई हिस्सों में लगायी प्रदर्शनी दिल्ली से तिवनंतपुरम तक चौधरी ने विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र मेला, सोनपुर के अलावा केरल, कोच्चि में लगी राष्ट्रीय बागबानी मिशन की प्रदर्शनी, छत्तीसगढ़ के बस्तर में प्रदर्शनी, तिवनंतपुरम में राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान परिषद की प्रदर्शनी, बीज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, नयी दिल्ली की प्रदर्शनी के अलावा भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी की प्रदर्शनी में ओल के व्यंजन की प्रदर्शनी भी लगा चुके हैं।

जिमीकंद की उन्‍नत तरीके से खेती करना सीखें

स्त्रोत : संदीप कुमार,स्वतंत्र पत्रकार,पटना बिहार।

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



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