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मिश्रित खेती कर तिलकधारी प्रसाद ने बनायी पहचान

मिश्रित सब्जियों की खेती बगहा एक प्रखंड के धरमकता गांव की पहचान बन गयी है। इस गांव के 20 -22 किसानों का परिवार पूरी तरह से सब्जी की खेती पर आश्रित है। सब्जी की खेती से इनके जीवन-यापन एवं आर्थिक स्थिति में बेहद परिवर्तन आया है। कभी इनके घरों में शिक्षा नाम मात्र की थी। अभी इनके घर के बच्चे बेंगलुरु समेत अन्य बड़े शहरों के महंगे-से महंगे कॉलेजों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इनकी माली हालत काफी सुदृढ़ हो गयी है। एक तरह से इलाके के लिए धरमकता गांव के सब्जी की खेती करने वाले परिवार प्रेरणा स्नेत बन गये हैं। धीरे - धीरे गांव एवं आसपास के इलाके के किसानों में भी मिश्रित सब्जी की खेती करने के प्रति इच्छा जगी है। लोग अपने हिसाब से सब्जी की खेती कर रहे हैं। पर, इन्हें सरकार की ओर से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा है। इस वजह से छोटे किसान सब्जी की खेती करने में पिछड़ जा रहे हैं। क्योंकि इस खेती में पूंजी अधिक लगता है। फसल के मारे जाने की संभावना रहती है। ऐसे में सब्जी की खेती के लिए कोई बीमा योजना लागू नहीं है, जिसका लाभ किसानों को मिले।

पूरा परिवार खेती पर निर्भर

  • धरमकता गांव के तिलकधारी प्रसाद कुशवाहा का परिवार। इनके पूर्वज पहले से सब्जी की खेती करते आ रहे हैं। लेकिन हाल के दिनों में आधुनिक एवं वैज्ञानिक पद्धति से यह परिवार सब्जी की खेती कर रहा है। सब्जी की खेती ही इनका जीवन है। तिलकधारी प्रसाद कुशवाहा ने खेती के माध्यम से अपनी जिंदगी संवारी है। आज भी पूरा परिवार खेती पर निर्भर है। 1984 में तिलकधारी प्रसाद कुशवाहा ने बीए की पढ़ाई पूरी की। नौकरी की तलाश में भटकते रहे। लेकिन कोई सफलता नहीं मिली । उन्होंने सब्जी की खेती अपनी परंपरागत पेशा को अपनाया। 1990 में उन्होंने सब्जी की खेती वैज्ञानिक पद्धति से आंरभ की। दृढ़ इच्छा शक्ति, कठोर परिश्रम के बल पर अपनी अलग पहचान बनायी। कुशवाहा के तीन पुत्र और चार पुत्रिया हैं। इनके घर में कुल 21 सदस्य हैं। जिनका भरण - पोषण खेती से होता है। उनकी अच्छी शिक्षा भी चल रही है।

मिश्रित खेती को अपनाया

  • तिलकधरी प्रसाद कुशवाहा कृषि में मिश्रित फसल की खेती के लिए जाने जाते है। मिश्रित फसलों की खेती के वजह से उनकी अलग पहचान बनी है। वह मिश्रित फसलों में परवल, करैला, भिंडी, लौकी, टमाटर, आलू, बैंगन, मूली, नेनुआ, पालक, हरी मिर्चा, सुथनी, ओल आदि की खेती करते हैं। लगभग पांच एकड़ भूमि में मिश्रित खेती का अभिनव प्रयोग किया है। फिलहाल मौसम के हिसाब से इनके खेतों में परवल, भिंडी, नेनुआ, करैला, हरा मिर्चा,सुथनी व ओल लहलहा रहा है। करैला और हरा मिर्च के बड़े व्यवसायी यहां आते हैं। धरमकता गांव से सब्जियां ट्रक पर लोड हो कर जिले के बाहर जाती हैं।

खेतों में पहुंच जाते हैं व्यापारी

  • यहां हर मौसम में सब्जियों का उत्पादन होता है। मौसम के अनुरूप। सुबह होते ही किसानों के खेतों में व्यापारी सब्जियों की खरीदारी करने के लिए पहुंच जाते है। किसानों को नगद पैसा मिलता है। कभी- कभी बाहर से भी व्यापारी यहां पहुंच कर सब्जियों की खरीदारी करते है। कुछ किसान स्थानीय बाजारों में भी अपने सब्जियों को ले जाकर बेचते हैं। किसान नंद कुशवाहा ने बताया कि स्थानीय बगहा और आसपास के मार्केट में भी सब्जियां बिकती हैं। लेकिन वाजिब कीमत नहीं मिल पाती। इस लिए बाहरी व्यापारियों के हाथों सब्जी बेचना पड़ता है।

गांव में शहर जैसी सुविधा

  • सब्जी की खेती ने गांव की तसवीर को बदल दिया है। हर किसान खाने के लिए धान- गेहूं की खेती करता है। नगदी फसल के रूप में सब्जी की खेती कर रहे है। आमदनी अच्छी होने के कारण अधिकांश किसानों का पक्का मकान है। घरों में दो पहिया व चार पहिया वाहन भी उपलब्ध है। किसान भले ही गांव में रहते है, लेकिन सुविधाएं शहरों से कम नहीं हैं। इनके घरों में सारी अत्याधुनिक सुविधाएं हैं। प्रत्येक घर की छत पर टाटा स्काई की छतरी नजर आती है। बिजली की वैकल्पिक व्यवस्था में इनवर्टर, सोलर आदि लगाये गये हैं।

स्त्रोत : संदीप कुमार,स्वतंत्र पत्रकार,पटना बिहार ।

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



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