आधुनिकता के इस दौर में किसान भी खेती को नए रूप में देख रहा है। एक फसल कटी भी नहीं कि दूसरी फसल के लिए तैयारी शुरू हो जाती है। कुछ किसान तो फसल संयोजन को व्यवस्थित कर खड़ी फसल में ही दूसरी फसल की बुआई कर देते है। कृषि विज्ञान की भाषा में इसे रिले क्रॉपिंग कहते है। झालावाड़ जिले में भी किसान इस तरह की पहल कर खेती को नया आयाम दे रहे हैं। झालावाड़ को राजस्थान का चेरापूंजी कहते हैं। यहाँ औसतन 1200 मिमी. वार्षिक वर्षा होती है। जुलाई से सितंबर वर्षा का मुख्य समय होता है। यहाँ मुख्य रूप से काली कपासी मिट्टी का विस्तार है। वर्षा समाप्ति के बाद किसान खेत की तैयारी में लग जाते हैं। यहाँ लहसुन व्यावसायिक फसल के रूप में उगाया जाता है।
जिले के एक प्रगतिशील कृषक श्री बालमुकुन्द डांगी हैं, जो ग्राम: बानोर, डाकघर: बानोर, जिला: झालावाड़ के रहने वाले हैं। तैंतीस वर्षीय श्री बालमुकुन्द ने 8वीं तक शिक्षा प्राप्त की है। इन्होंने वर्ष 2013-14 में लहसुन की खड़ी फसल में कद्दू की उत्तरवर्ती खेती कर 3200 वर्ग मीटर क्षेत्रफल से 208000 रूपये शुद्ध लाभ अर्जित किया है। उन्होंने बताया कि 15 सितंबर से लहसुन की बुआई हेतु खेत की तैयारी का कार्य शुरू होता है। खेत को तीन बार जुताई कर 15 दिन के लिए खुला छोड़ दिया जाता है। खेत की आखिरी जुताई के समय 10 टन प्रति हैक्टर की दर से गोबर की खाद का प्रयोग करते हैं। बुआई से पूर्व खेत में सूक्ष्म पोषक तत्व 10 किग्रा., म्यूरेट ऑफ़ पोटाश 50 किग्रा. व सिंगल सुपर फ़ॉस्फेट 150 किग्रा. का प्रयोग करते है।
इन्होने लहसुन को 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किग्रा. की दर से उपचारित कर 15 अक्टूबर 2013 को बोया। पहली बार बुआईके 25 दिनों बाद निराई-गुड़ाई की गई। इस कार्य में कुल 10 श्रमिक लगे। बुआई के 45 दिनों बाद दूसरी बार निराई की गई। दूसरी निराई के बाद 160 किग्रा. प्रति हैक्टर की दर से यूरिया का प्रयोग किया गया। फसल में 50 दिनों की अवस्था पर घुलनशील खाद एनपीके 19:19:19 के 5 प्रतिशत का छिड़काव किया गया।
इस तरह उन्होंने फसल को खरपतवार से मुक्त रखा व पोषक तत्वों की आवश्यकताओं को भी पूर्ण किया। उनकी लहलहाती हुई फसल धीरे-धीरे तैयार होती गई। फसल को कीटों से बचाव हेतु रोगोर 1.5 मिमी. प्रति लीटर की दर से फसल की 60 से 65 दिनों की अवस्था पर छिड़काव किया। इसी तरह व्याधियों से बचाव हेतु डाइथेन एम-45, 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से फसल की 55 से 60 दिनों की अवस्था पर छिड़काव किया। जब फसल की पत्तियाँ पीली पड़ने लगीं और डंठल सूख कर जमीन को छुने लगी, फसल की खुदाई की तैयारी हुई और 1 मार्च 2014 को फसल खोद ली गई।
खुदाई के बाद लहसुन के कंदों को 5 दिनों के लिए खेत में ही खुला छोड़ दिया गया। उसके उपरांत उनको इकट्ठा करके खेत के आसपास छाया वाले स्थान पर 5-6 दिनों के लिए रख दिया। इसके बाद कंदों के डंठल को लगभग 5 सें.मी. आधारीय भाग छोड़ते हुए काट दिया गया। किसान को अपने बोये गये क्षेत्रफल से 60 क्विंटल कंदों की पैदावार प्राप्त हुई। कंदों को 25 रूपये/किग्रा. की दर से स्थानीय मंडी में बेचा गया, जिससे कुल 150000 रूपये की आमदनी प्राप्त हुई।
पारंपरिक खेती में एक फसल की कटाई के बाद ही दूसरी फसल की बुआई की जाती है। श्री बालमुकुन्द ने 1 दिसंबर 2014 को खड़ी लहसुन की फसल के बीच ही कद्दू के बीजों की बुआई कर दी। उन्होंने लहसुन की क्यारियों की उठी हुई पाल पर बीज से बीज 3 फीट व पंक्ति से पंक्ति की दूरी 2 मीटर रखते हुए कद्दू के बीजों की बुआई की। ऐसा करने से न तो खेत की अतिरिक्त जुताई की आवश्यकता हुई और न ही बुआई से पूर्व पलेवा, खाद-उर्वरक प्रयोग की। धन एवं समय दोनों की बचत हुई। बेलों की समय-समय पर सिंचाई की गई। कद्दू की फसल का लाल भृंग कीट से बचाव के लिए एसीफेट 75 एस.पी. आधा ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से तथा फल मक्खी कीट से बचाव हेतु डाइमिथोएट 30 ई.सी. एक मिली. प्रति लीटर की दर से छिड़काव किया गया। रोग से बचाव हेतु मैन्कोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव किया गया। कद्दू की फसल में 1 अप्रैल 2014 से फल आना शुरू हुआ, जो जून तक चलता रहा। इन्हें लहसुन वाले क्षेत्रफल से ही कुल 250 क्विंटल कद्दू की उपज प्राप्त हुई, जिसको 600 रूपये प्रति क्विंटल की दर से बाजार में बेचने से कुल 150000 रूपये की आमदनी प्राप्त हुई। इस प्रकार श्री बालमुकुन्द ने लहसुन-कद्दू सह उत्तरवर्ती फसल 3200 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में लगाकर कुल 208000 रूपये की शुद्ध आय अर्जित की जा सकता है कि कोई भी किसान इस तर्ज पर आधारित खेती करने से एक हैक्टर भूमि से करीब 650000 रूपये की आमदनी प्राप्त कर सकता है। दोनों ही फसलों के लाभ-लागत का ब्यौरा सारणी 1 में दिया गया है।
श्री बालमुकुन्द समय-समय पर कृषि विज्ञान केंद्र व उद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय में आयोजित कृषक प्रशिक्षण, संगोष्ठी आदि में भाग लेते रहते हैं। वे नवीन तकनीकों को अपनाने में आगे रहते हैं। हमेशा कुछ नया करने की चाहत ने उन्हें एक प्रगतिशील कृषक के रूप में पहचान दिलाई है। इनकी खेती गाँव के दूसरे किसानों के लिए प्रेरणास्पद साबित हो रही है। कई किसान इस तरह की नवीन खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
किसान द्वारा लहसुन-कद्दू सह उत्तरवर्ती फसल के लिए कुल बोया गया क्षेत्रफल 3200 वर्ग मीटर |
||
अ. |
लहसुन की फसल में लागत व लाभ का विवरण |
|
क्र.सं. |
कार्य विवरण |
|
1 |
खेत की जुताई |
2,00/- |
2 |
खाद एवं उर्वरक |
23,000/- |
3 |
बुआई सहित मजदूरी खर्च |
6,000/- |
4 |
सिंचाई |
4,000/- |
5 |
निराई-गुड़ाई |
2,000/- |
6 |
रसायनों का छिड़काव |
4,500/- |
7 |
खुदाई, कटाई, ग्रेडिंग, पैकिंग व अन्य कार्य |
10,000/- |
|
कुल खर्च |
51,500/- |
|
कुल उपज (क्विंटल) |
60 |
|
कुल आमदनी (25 रूपये प्रति किग्रा. की दर से) |
1,50,000/- |
|
लहसुन की फसल से शुद्ध लाभ |
98,500/- |
ब. |
कद्दू की फसल में लागत व लाभ का विवरण |
|
1 |
बीज व बुआई का खर्च |
4,500/- |
2 |
रसायनों का छिड़काव |
4,000/- |
3 |
लहसुन की फसल के अतिरिक्त सिंचाई का खर्च |
2,000/- |
4 |
तुड़ाई का खर्च |
5,000/- |
5 |
बाजार में ले जाने के लिए वाहन किराया |
25,000/- |
|
कुल खर्च |
40,500/- |
|
कुल उपज (क्विंटल) |
250 |
|
कुल आमदनी (600 रूपये प्रति क्विं. की दर से) |
1,50,000/- |
|
कद्दू की फसल से शुद्ध लाभ |
1,09,000/- |
|
किसान द्वारा अर्जित शुद्ध आय |
2,08,000/- |
|
इस प्रकार प्रति हैक्टर अर्जित शुद्ध आय |
6,50,000/- |
लेखन: रामराज मीणा, जीतेन्द्र सिंह एवं भरत लाला मीणा
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
इस पृष्ठ में अगस्त माह के कृषि कार्य की जानकारी दी...
इस भाग में जनवरी-फरवरी के बागों के कार्य की जानकार...
इस भाग में अंतर्वर्ती फसलोत्पादन से दोगुना फायदा क...
इस पृष्ठ में केंद्रीय सरकार की उस योजना का उल्लेख ...