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प्याज

उन्नत किस्में

नासिक रेड, एन – 53, 56, 57, मल्लिका

जलवायु

प्याज के लिए समशीतोष्ण जलवायु, जिसमें छत्तीसगढ़ क्षेत्र आता है, उपयुक्त रहती है। प्याज की वृद्धि पर प्रकाश काल एवं तापमान का बहुत प्रभाव पड़ता है। इसलिए इन पर ध्यान व नियंत्रण अत्यंत आवश्यक है। पौधों के लिए कम तापमान व छोटे दिन तथा गांठो के लिए अधिक तापमान व लंबे दिनों की आवश्यकता है।

बीज की मात्रा एवं नर्सरी

बीज की बोवाई 15 जून से 30 जून तक कर देनी चाहिए। खरीफ प्याज की फसल को देरी होने पर किसी भी हालत में जुलाई के प्रथम सप्ताह तक बोवाई कर देना चाहिए। इसके बाद बोने से कंद उचित नहीं मिलता और इसका असर आमदनी पर दिखाई देता है, रबी एक लिए अक्टूबर से मध्य नवंबर का समय अच्छा रहता है।

मात्रा – 1 वर्षा ऋतु – 10-12 कि. ग्रा./हेक्टे.

2. ग्रीष्म ऋतु – 8-10 कि. ग्रा./हेक्टे

क्षेत्र की तैयारी

प्याज के लिए गहरी जुताई करके 3-4 बार हैरो चला दें। इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए। पौधों की रोपाई कतारें बनाकर करनी चाहिए।

रोपाई विधि

पौध की रोपाई करते समय कतार से कतार की दूरी 15 से. मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 से. मी. रखते हैं। कंदों को 35 से. मी. से 45 से. मी. की दूरी पर डोलियों के दोनों किनारों पर 16 से. मी. के फासलें पर लगाते हैं। इनको लगाने के बाद सिंचाई करना अति आवश्यक है।

खाद एवं उर्वरक

खेत की तैयारी के समय गोबर खाद 200 क्विंटल/हेक्ट. तथा एनपीके क्रमशः 100:50:100 प्रति हेक्ट. आवश्यक है, जिसमें स्फुर (पी) तथा पोटाश (के) की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन (एन) की कुल मात्रा का एक तिहाई भाग मिट्टी में मिलाकर शेष नाइट्रोजन (एन) के कुल मात्रा का एक तिहाई भाग मिट्टी में मिलाकर शेष नाइट्रोजन दो भागों में बांटकर एक भाग रोपाई के 30-40 दिन तथा दूसरा 70 दिन बाद खड़ी फसल में टाप ड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए।

सिंचाई

अगस्त से अक्टूबर तक यदि वर्षा नहीं होती है तो 08 – 10 दिन के अंतर पर सिंचाई करते हैं। जब कंद की बढ़वार शुरू हो जाती है तो सिंचाई का अंतर कम कर देते हैं।

निदाई – गुड़ाई

प्याज की फसल को न बराबर निंदाई – गुड़ाई करनी चाहिए। क्योंकि यह हल्की जड़ें वाली फसल है, अत: गहरी गुड़ाई करनी चाहिए। अन्यथा पौधों की जड़ें क्षतिग्रस्त होने की संभावना बढ़ जाती है।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवारों को उगने से रोकने के लिए भूमि में खरपतवार नाशक दवा का प्रयोग करना चाहिए। फ्यूक्लोरालिन नामक दवा की एक कि.ग्रा. मात्रा 400 लिटर पानी में मिलाकर एक हेक्टेयर भूमि में रोपाई से पहले छिड़काव के बाद भी कुछ खरपतवार उग जाएँ तो 30 – 35 दिन बाद एक बार निंदाई कर देना आवश्यक हो जाता है। दूसरी बार निंदाई 60-70 दिन बाद कर देने से खेत के खरपतवार नियंत्रित हो जाते हैं।

खुदाई

खरीफ प्याज की फसल बोवाई के 4-5 महीने में तैयार हो जाती है, इस फसल की पत्ती पीली न होकर हरी रहती है। खड़ी फसल के पौधों के गर्दन से मुड़ जाने को फसल का गिरना कहते हैं। जिसके लिए 4-5 महीने होते ही खड़ी फसल पर हल कतार पर चलाना पड़ता है। फसल गिराने के करीब एक सप्ताह बाद शल्क कंद की खुदाई करना चाहिए।

बीमारियाँ एवं रोकथाम

थ्रिप्स

ये कीड़े फसल को सबसे ज्यादा हानि पहुंचाते है। यह पौधों का रस चुस कर पत्तियों के उपर किनारे सुखा देते हैं। जिसके कारण पत्तियों के शीर्ष भूरे होकर मुरझाने लगते हैं एवं सुख जाते हैं।

निवारण

फसल में रोगोर या मैटासिस्टॉक्स 25 E.C. नामक दवा (0.1 प्रति) का घोल बनाकर 10-15 दिन के अंतर पर 3-4 बार छिड़काव करना चाहिए।

मैगोट

यह मक्खी की सूंडी है जो पौध की जड़ में घुसकर रस चूसती है, और उन्हें सफेद कर देती है।

निवारण

इसके रोकथाम के लिए फ्यूराडान 30 किग्रा प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करना चाहिए। इसके उपयोग पश्चात् 45 – 50 दिन तक प्याज खाने में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि यह बहुत जहरीली है।

गुलाबी धब्बे

यह एक फफूंदी है, जो पत्तियों, गांठों और डंठलों पर आक्रमण करता है। यह नम वातावरण में अधिक पनपते हैं और समय के साथ काफी बड़े हो जाते हैं, एवं इनका रंग बैंगनी हो जाता है।

निवारण

बीज को उपचारित करके बोना चाहिए। फसल चक्र अपनाना चाहिए। फसल बोर्डों मिश्रण अथवा डायथेन एम. 45 का छिड़काव करना चाहिए।

अन्य रोग

चूर्णी फफूंदी, सडन रोग झुलसा एवं बैंगनी धब्बा।

निवारण

इनके लिए डायमीथेन एम. 45 के 4 – 5 छिड़काव 7 – 10 दिन के अंतर पर करने चाहिए।

स्त्रोत: कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग, भारत सरकार

अंतिम बार संशोधित : 2/8/2020



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