অসমীয়া   বাংলা   बोड़ो   डोगरी   ગુજરાતી   ಕನ್ನಡ   كأشُر   कोंकणी   संथाली   মনিপুরি   नेपाली   ଓରିୟା   ਪੰਜਾਬੀ   संस्कृत   தமிழ்  తెలుగు   ردو

उर्वरक,सिंचाई एवं कीट प्रबंधन

उर्वरक देने की विधि एवं समय

असिंचित अवस्था में उर्वरको की संपूर्ण मात्रा आधार रूप में देना चाहिए। सिंचित अवस्था में नाइट्रोजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस, पोटाश एवं जिंक सल्फेट की पूरी  मात्रा बोने के पहले अंतिम जुताई के समय देना चाहिए। नाइट्रोजन की शेष आधी मात्रा खड़ी फसल में टाप ड्रेसिंग के रूप में प्रथम सिंचाई के बाद देना चाहिए। खाद हमेशा बीज के नीचे देवें । खाद और बीज को मिलाकर नही देवें। धनिया की फसल में एजेटोबेक्टर एवं पीएसबी कल्चर का उपयोग 5 कि.ग्रा./हे. के हिसाब से 50 कि.ग्रा. गोबर खाद मे मिलाकर बोने के पहले डालना लाभदायक है ।

बोने की विधि

बोने के पहले धनिया बीज को सावधानीपूर्वक हल्का रगड़कर बीजो को दो भागो में तोड़ कर दाल बनावें। धनिया की बोनी सीडड्रील से कतारों में करें। कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 10-15से.  मी. रखें । भारी भूमि या अधिक उर्वरा भूमि में कतारों की दूरी 40 से.मी. रखना  चाहिए । धनिया की बुवाई पंक्तियों मे करना अधिक लाभदायक है। कूड में बीज की गहराई 2-4 से.मी. तक होना चाहिए। बीज को अधिक गहराई पर बोने से अंकुरण कम प्राप्त होता है ।

अंतर्वर्तीय फसलें

चना+धनिया,(10:2),अलसी+धनिया (6:2), कुसुम+धनिया(6:2),धनिया+गेंहूँ(8:3) आदि अंतर्वर्तीय फसल पद्धतियां उपयुक्त पाई गई है। गन्ना+धनिया(1:3) अंतर्वर्तीय फसल पद्धति भी लाभदायक पाई गई है ।

फसल चक्र

धनिया-मूंग,धनिया-भिण्डी, धनिया-सोयाबीन ,धनिया-मक्का आदि फसल चक्र लाभ दायक पाये गये है ।

सिंचाई प्रबंधन

धनिया में पहली सिंचाई 30-35 दिन बाद  (पत्ति बनने की अवस्था), दूसरी सिंचाई50-60 दिन बाद (शाखा  निकलने की अवस्था), तीसरी सिंचाई 70-80 दिन बाद (फूल आने की अवस्था) तथा चौथी सिंचाई 90-100 दिन बाद (बीज बनने की अवस्था) करना चाहिऐ। हल्की जमीन में पांचवी सिंचाई 105-110 दिन बाद (दाना पकने की अवस्था) करना लाभदायक है ।

धनिया में फसल-खरपतवार प्रतिस्पर्धा की क्रांतिक अवधि 35-40 दिन है । इस अवधि में खरपतवारों की निंदाई नहीं करते है तो धनिया की उपज 40-45 प्रतिशत कम हो जाती है । धनिया में खरपतवरों की अधिकता या सघनता व आवश्यकता पड़ने पर निम्न में से किसी एक खरपतवानाशी दवा का प्रयोग कर सकते हैं ।

खरपतवार नाशी का तकनीकी नाम

खरपतवार नाशी का व्यवसायिक नाम

दर सक्रिय तत्व(ग्राम/हे.

खरपतवार नाशी की कुल मात्रा(मि.ली./हे.)

पानी की मात्रा(ली./हे.)

उपयोग का समय(दिन)

पेंडिमीथालिन

स्टाम्प30 ई.सी

1000

3000

600-700

0-2

पेंडिमीथालिन

स्टाम्प एक्स्ट्रा 38.7 सी.एस.

900

2000

600-700

0-2

क्विजोलोफॉप इथाईल

टरगासुपर 5 ई.सी.

50

100

600-700

15-20

कीट प्रबंधन

माहू /चेपा (एफिड)

धनिया में मुखयतः माहू/चेपा रसचूसक कीट का प्रकोप होता है। इस कीटे के हल्के हरें रंग वाले शिशु व प्रौढ़ दोनो ही पौधे के तनों, फूलों एवं बनते हुए बीजों जैसे कोमल अंगो का रस चूसते हैं। चेपा की रोकथाम के लिए निम्न कीटनाशी दवाईयों का प्रयोग करें।

रासायनिक नाम

दवा की मात्रा (एम एल/ली.)

पानी की मात्रा(ली./हे.)

आक्सीडेमेटानमिथाइल  25 ईसी

डायमेथियोट     35 ईसी

इमिडाक्लोप्रिड  17.8ईसी

0.03:  (1.5 एम एल/ली.)

0.20:  (2.0 एमएल/ली.)

0.025 :( 0.25एमएल/ली.)

500-600

500-600

500-600

रोग प्रबंधन

उकठा/उगरा(विल्ट)रोग

उकठा रोग फ्यूजेरियम आक्सीस्पोरम एवं फ्यूजेरियम कोरिएनड्री कवक के द्वारा फैलता है ।

इस रोग के कारण पौधे मुरझा जाते है और पौधे सूख जाते हैं। इस रोग का प्रबंधन निम्नानुसार करें

1. ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें एवं उचित फसल चक्र अपनाएं ।

2. बीज की बुवाई नवम्बर के प्रथम से द्वितीय सप्ताह में करें ।

3. बुवाई के पूर्व बीजों को  कार्बेन्डिजम 50 डब्ल्यू पी 3 ग्रा./कि.ग्रा. या ट्रायकोडरमा विरडी ५ ग्रा./कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करें ।

4. उकठा के लक्षण दिखाई देने पर कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 2.0 ग्रा./ली. या हेक्जाकोनोजॉल 5 ईसी 2एमएल/ली. या मेटालेक्जिल 35 प्रतिशत 1 ग्रा./ली या मेटालेक्जिल+मेंकोजेब 72 एम जेड 2 ग्रा./ली. दवा का छिड़काव कर जमीन को तर करें ।

तनाव्रण/तना सूजन/तना पिटिका (स्टेमगॉल)

यह रोग प्रोटामाइसेस मेक्रोस्पोरस कवक के द्वारा फैलता है। रोग के कारण फसल को अत्यधिक क्षति होती है। पौधो के तनों पर सूजन हो जाती है। तनों, फूल वाली टहनियों एवं अन्य भागों पर गांठें बन जाती है। बीजों में भी   विकृतिया आ जाती है। इस रोग के प्रबंधन के निम्न उपाय हैं।

  1. ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें एवं उचित फसल चक्र अपनाएं ।
  2. बीज की बुवाई नवम्बर के प्रथम से द्वितीय सप्ताह में करें ।
  3. बुवाई के पूर्व बीजों को कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 3 ग्रा./कि.ग्रा. या ट्रायकोडरमा विरडी 5 ग्रा./कि.ग्रा.बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करें ।
  4. रोग के लक्षण दिखाई देने पर स्टे्रप्टोमाइसिन 0.04 प्रतिशत (0.4 ग्रा./ली.) का 20 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें ।

चूर्णिलआसिता /भभूतिया/धौरिया (पावडरी मिल्ड

यह रोग इरीसिफी पॉलीगॉन कवक के द्वारा फैलता रोग की प्रारंभिक अवस्था में पत्तियों एवं शाखाओं सफेद चूर्ण की परत जम जाती है। अधिक प्रभावित पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती है ।

इस रोग का प्रबंधन निम्न प्रकार से करें ।

1. ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें एवं उचित फसल चक्र अपनाएं ।

2. बीज की बुवाई नवम्बर के प्रथम से द्वितीय सप्ताह में करें ।

3. बुवाई के पूर्व बीजों को कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 3 ग्रा./कि.ग्रा. या ट्रायकोडरमा विरडी 5 ग्रा./कि.ग्रा. बीज  की  दर से उपचारित कर बुवाई करें ।

4. कार्बेन्डाजिम 2.0 एमएल/ली. या एजॉक्सिस्ट्रोबिन 23 एस सी 1.0 ग्रा./ली. या हेक्जाकोनोजॉल 5 ईसी 2.0एम एल/ ली. या मेटालेक्जिल+मेंकोजेब 72 एम जेड 2.0 ग्रा./ली. की दर से घोल बनाकर 10 से 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें ।

पाले (तुषार) से बचाव के उपाय

सर्दी के मौसम मेंजब ताममान शून्य डिग्री सेंटीग्रेड से नीचे गिर जाता है तो हवा में उपस्थित नमी ओस  की  छोटी-छोटी बूंदें बर्फ के छोटे-छोटे कणों में बदल जाती है और ये कण पौधों पर जम जाते है। इसे ही पाला या तुषार कहते है। पाला ज्यादातर दिसम्बर या जनवरी माह में पड़ता है । पाले से बचाव के निम्न उपाय अपनायें ।पाला अधिकतर दिसम्बर-जनवरी माह में पड़ता है। इसलिये फसल की बुवाई में 10-20 नवंबर के बीच में करें।

  1. यदि पाला पड़ने की संभावना हो तो फसल की सिंचाई तुरंत कर देना चाहिए ।
  2. जब भी पाला पड़ने की संभावना दिखाई दे, तो आधी रात के बाद खेत के चारो ओर कूड़ा-करकट जलाकर धुऑ कर देना चाहिए।
  3. पाला पड़ने की संभावना होने पर फसल पर गंधक अम्ल 0.1 प्रतिशत (1.0 एम एल/ली.) का छिड़काव शाम को करें ।
  4. जब पाला पड़ने की पूरी संभावना दिखाई दे तो डाइमिथाइल सल्फोआक्साईड (डीएमएसओ) नामक रसायन 75ग्रा./1000ली. का 50 प्रतिशत फूल आने की अवस्था में 10-15 दिन कें अंतराल पर करने से फसल पर पाले का प्रभाव नही पड़ता है ।
  5. व्यापारिक गंधक 15 ग्राम+ बोरेक्स 10 ग्राम प्रति पम्प का छिड़काव करें ।

कटाई

फसल की कटाई उपयुक्त समय पर करनी चाहिए। धनिया दाना दबाने पर मध्यम कठोर तथा पत्तिया पीली पड़ने लगे , धनिया डोड़ी का रंग हरे से चमकीला भूरा/पीला होने पर तथा दानों में 18 प्रतिशत नमी रहने पर कटाई करना चाहिए। कटाई में देरी करने से दानों का रंग खराब हो जाता है । जिससे बाजार में उचित कीमत नही मिल पाती है। अच्छी गुणवत्तायुक्त उपज प्राप्त करने के लिए 50 प्रतिशत धनिया डोड़ी का हरा से चमकीला भूरा कलर होने पर कटाई करना चाहिए ।

गहाई

धनिया का हरा-पीला कलर एवं सुगंध प्राप्त करने के लिए धनिया की कटाई के बाद छोटे-छोटे बण्डल बनाकर 1-2 दिन तक खेत में खुली धूप में सूखाना चाहिए। बण्डलों को 3-4 दिन तक छाया में सूखाये या खेत मे सूखाने के लिए सीधे खड़े बण्डलों के ऊपर उल्टे बण्डल रख कर ढेरी बनावें । ढेरी को 4-5 दिन तक खेत में सूखने देवें । सीधे-उल्टे बण्डलों की ढेरी बनाकर सूखाने से धनिया बीजों पर तेज धूप नही लगने के कारण वाष्पशील तेल उड़ता नही है ।

उपज

सिंचित फसल की  वैज्ञानिक तकनीकी  से खेतीकरने पर 15-18 क्विंटल बीज एवं 100-125 क्विंटल पत्तियों की उपज तथा असिंचित फसल की 5-क्विंटल/हे. उपज प्राप्त होती है ।

भण्डारण

भण्डारण के समय धनिया बीज  में  9-10प्रतिशत नमी रहना चाहिए।धनिया बीज का भण्डारण पतले चाहिए। बोरों को जमीन पर तथा दिवार चाहिए। जमीन पर लकड़ी के गट्‌टों पर जूट के बोरों में करना से सटे हुए नही रखना बोरों को रखना चाहिए। बीज के 4-5 बोरों से ज्यादा एक के ऊपर नही रखना चाहिए। बीज के बोरों को ऊंचाई से नही फटकना चाहिए।बीज के बोरें न सीधे जमीन पर रखें और न ही दीवार पर सटाकर रखें। बोरियों में भरकर रखा जा सकता है। बोरियों को ठण्डे किन्तु सूखे स्थानों पर भण्डारित करना चाहिए। भण्डारण में 6 माह बाद धनिया की सुगन्ध में कमी आने लगती है।

प्रसंस्करण

धनिया प्रसंस्करण द्वारा 97 प्रतिशत धनिया बीजों की पिसाई कर पावडर बनाया जाता है । जो मसाले के रूप में भोजन को स्वादिष्ट,सुगंधित एवं महकदार बनाने के उपयोग में आता है । शेष तीन प्रतिशत धनिया बीज, धनिया दाल एवं वाष्पशील तेल बनाने में उपयोग होता है । धनिया की ग्रेडिंग कर पूरा बीज,दाल एवं टूटा-फूटा, कीट-व्याधि ग्रसित बीज अलग किये जाते है । धनिया की ग्रेडिंग करने से 15-16 रू. प्रति किलो का खर्च आता है ।ग्रेडेड धनिया बैग या बंद कंटेनर में रखा जाता है । धनिया ग्रेडिंग की स्पेशिफिकेशंस (मापदण्ड)निम्न है ।

विवरण

स्पेशिफिकेशन (मापदण्ड)

स्पेशिफिकेश न (मापदण्ड)

अन्य बीज दाल/टुकड़े क्षतिग्रस्त बीज

नमी

कलर

 

 

पैकिंग

 

अधिकतम 2 प्रतिशत

अधिकतम 5 प्रतिशत

अधिकतम 2 प्रतिशत

अधिकतम 10 प्रतिशत

कलर प्राकृतिक रंग

(बिना कलरिंग मटेरियल मिलाये)25 कि.ग्रा. बीज (निर्यात के लिये) 100 ग्राम धनियापावडर है। 200 ग्राम धनिया पावडर

निर्यात के लिये निर्धारित मापदण्डों का अनुपालन करना आवश्यक है।

 

आर्थिक विश्लेषण

कुल लागत    : 18730 रु. /हे.

धनिये की उपज : 15.00 क्विं / हे.

कुल आमदनी  :  60000 रू.

शुद्ध आय     :  41270 रू.

आमदनीःलागत अनुपात:  3.20:1

शुद्ध आमदनीःलागत अनुपात: 2.20:1

प्रचलित बाजार मूल्य : 40.00 रू. / कि.ग्रा.

धनिया फसल की उत्पादकता बढ़ाने हेतु प्रमुख बिन्दु

  1. पाले से बचाव के लिए बुआई नवम्बर के द्वितीय सप्ताह में तथा गंधक अम्ल 0.1 प्रतिशत का छिड़काव भाम को करें।
  2. धनिया की खेती उपजाऊ भूमि में करे।
  3. तनाव्रण एवं चूर्णिल आसिता प्रतिरोधी उन्नत किस्मों का उपयोग करें।
  4. उकठा, तनाव्रण, चूर्णिलआसिता जैसे रोगों का समेकित नियंत्रण करें।
  5. खरपतवार का प्रारंभिक अवस्था में नियंत्रण करें।
  6. भूमि में आवश्यक एवं सूक्ष्म तत्वों की पूर्ति करें।
  7. चार सिंचाई क्रांतिक अवस्थाओं पर करें।
  8. कटाई उपयुक्त अवस्था पर करे एवं छाया में सुखायें। इस हेतु कटाई उपरांत प्रौद्योगिकी को अपनावे ।

धनिया पत्ती की खेती

स्त्रोत: मध्यप्रदेश कृषि,किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग,मध्यप्रदेश

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



© C–DAC.All content appearing on the vikaspedia portal is through collaborative effort of vikaspedia and its partners.We encourage you to use and share the content in a respectful and fair manner. Please leave all source links intact and adhere to applicable copyright and intellectual property guidelines and laws.
English to Hindi Transliterate