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खस की खेती

परिचय

वेटिवर (Vetiveria Zizanioides) Nash या खस का उद्भव स्थान भारत पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका एवं मलेशिया माना जाता है। तमिल भाषा में Vetiveru का शाब्दिक अर्थ Root that dug up है। Zizanioides का अर्थ By the river side है, जो स्पष्टतः नदी किनारे धाराओं के अगल-बगल पैदा होने के मूल स्थान को इंगित करता है। खस कड़ी प्रवृत्ति का घास है जो सूखे की स्थिति एवं जल-जमाव दोनों को बर्दास्त कर लेता है। इसकी खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं जैसे ऊसर भूमि, जलमग्न भूमि, रेलवे लाईन के पास की भूमि, क्षारीय मृदाएँ, उबड़-खाबड़, गड्ढेयुक्त क्षेत्र एवं बलुई भूमि में आसानी से उगाया जा सकता है। वैसी भूमि जिसमें अन्य महत्त्वपूर्ण फसलों का उत्पादन नहीं किया जा सकता है वहाँ पर खस का उत्पादन कर भूमि का उपयोग एवं उसकी जड़ों से उच्च गुणवत्ता का तेल (Essential Oil) प्राप्त किया जा सकता है। समस्याग्रस्त मृदाओं में खस की खेती की संस्तुति की जाती है ताकि बेकार पड़े जमीन का सदुपयोग किया जा सके। प्राचीन काल से इसके जड़ों का उपयोग तेल निकालने, चटाइयाँ बनाने एवं औषधीय उपयोग होता रहा है। इसकी जड़ों से बनी गई चटाईयों को गर्मी के मौसम में दरवाजे पर लटका कर पानी का छिड़काव किया जाता है, जिससे चटाई से होकर गुजरने वाली हवाएं खुशबूदार हो जाती हैं। वर्तमान में हैती, इण्डोनेशिया, ग्वाटेमाला, भारत, रियूनियन द्वीप, चीन एवं ब्राजील खस के मुख्य उत्पादक देश हैं। खस उष्ण एवं उपोष्ण क्षेत्रों में उगने वाला पौधा है। दक्षिण भारतीय राज्यों में खस के जड़ों की उत्पादन क्षमता ज्यादा है, लेकिन इस निकले तेल की कीमत कम मिलती है। उत्तर भारत में उगने वाले खस के जड़ों की गुणवत्ता काफी अच्छी होती है, तथा कीमत ज्यादा मिलती है। बिहार राज्य में लगभग 100 हे० में खस की खेती मधुबनी, सिवान, वैशाली एवं भागलपुर जिले में की जा रही है। उत्तर भारत से उत्पादित जड़ों से तेल 14 से 18 घंटा में आसवन विधि द्वारा निकाला जा रहा है, जबकि दक्षिण भारत में उत्पादित खस की जड़ों से 60-70 घंटा में तेल निकाला जाता है। उत्तर भारत से उत्पादित तेल की वर्तमान कीमत लगभग 10000/- से 18000/- रूपये प्रति किलोग्राम मिल सकती है। विश्व बाजार में खस तेल की वर्तमान की लगभग 25000/- रूपये किलोग्राम है।

मृदा एवं जलवायु

भारी एवं मध्यम श्रेणी की मृदाऐं जिसमें पोषक तत्वों की प्रचूर मात्रा हो एवं जलस्तर ऊँचा हो खस की सफलतापूर्वक खेती की जा सकती है। मध्यम विन्यास वाली मृदाओं में जड़ों की अच्छी वृद्धि होती है। किंतु चिकनी मृदाओं में जड़ों की खुदाई कठिन कार्य है। बलुई एवं बलुई दोमट मृदा में जड़ों की खुदाई पर अपेक्षाकृत कम खर्च आता है तथा जड़े लम्बी गहराई तक जाती है। खस गर्म एवं तर जलवायु में अच्छी पनपती है। पहाड़ी इलाकों को छोड़कर अन्य सभी भागों में उपजाया जा सकता है। छायादार स्थानों में जड़ों की वृद्धि अधिक नहीं होती है।

खेत की तैयारी

खस का पौधा कठोर प्रवृत्ति का होने के कारण मामूली देखभाल एवं मृदा की तैयारी कर लगाया जा सकता है। भूमि में मौसमी खरपतवारों का प्रकोप नहीं हो। खरपतवारों एवं जड़ों के अवशेषों को हटाने हेतु 2-3 गहरी जुताई की आवश्यकता होती है।

प्रसारण

उत्तर भारत में खस का प्रसारण 6-12 माह के मूढ़ों से किया जाना चाहिए। इन मूढ़ों को 30-40 से. मी. ऊपर से काट लिया जाता है। बनाई गई कलमों या स्लिप में 2-3 कलमें होना चाहिए। कलमों को बनाने के बाद छाया में रखना चाहिए एवं सूखी पत्तियों को हटा देने से बीमारी फैलने की सम्भावना नहीं रहती हैं। नई प्रजातियाँ विकसित करने के लिए बीज से पौधे तैयार किये जाते हैं।

रोपण

सिंचाई की व्यवस्था रहने पर खस की रोपाई काफी जाड़े को छोड़ कर कभी भी की जा सकती है। उत्तरी भारत में जाड़ों में तापमान काफी गिर जाने के कारण पौधे/कलम सही ढंग से स्थापित नहीं हो पाते हैं। जिन स्थानों में सिंचाई की सही व्यवस्था नहीं है, खस की रोपाई वर्षा ऋतु में की जाती है। अच्छी गुणों से युक्त मृदाओं में कलमों 60 x 60 से.मी. की दूरी पर एवं बेकार पड़ी एवं कमजोर मृदाओं में रोपाई 60 x 30 से.मी. पर करना उचित होता है।

खाद एवं उर्वरक

मध्यम एवं उच्च उर्वरायुक्त मृदाओं में सामान्यतः खस बिना खाद एवं उर्वरक के उगाया जाता है। कम उर्वरायुक्त जमीन में नेत्रजन, फॉसफोरस, पोटास का 60:25:25 की दर से व्यवहार करने से जड़ों की अच्छी ऊपज होती है। नेत्रजन का उपयोग खंडित कर करें । खस स्थापन के प्रथम वर्ष में नेत्रजन का उपयोग दो बराबर भाग में करें ।

खरपतवार नियंत्रण

खस तीव्र गति से बढ़ने वाला पौधा है। इसलिए इस खरपतवार को बढ़ने का मौका कम मिलता है। किंतु ऐसे क्षेत्र जहाँ पर खरपतवारों की सघनता है। वहाँ पर फावड़े या वीडर का प्रयोग किया जा सकता है। फसल के पूर्ण विकसित होने पर खरपतवार नियंत्रण की आवश्यकता नहीं रहती है।

सिंचाई

खस की रोपाई के तत्काल बाद बेहतर पौध स्थापना हेतु सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। पौधे एक माह में पूर्णतः स्थापित हो जाते हैं, तब ये पौधे साधारणतः मरते नहीं हैं। जड़ों के बेहतर बढ़वार के लिए शुष्क मौसम में सिंचाई देना लाभकर होता है।

बीमारियाँ एवं कीट पतंग

खस बीमारी एवं कीट पतंगों के प्रति काफी सहनशील होते हैं। कभी कभी पत्तियों पर काले धब्बे कवक कवुलेरिया ट्राईफोलाई कारण होता है किंतु हानि नहीं के बराबर होती है। शल्क कीट के प्रकोप पर मेटासिस्टोक्स 0.04 प्रतिशत का व्यवहार किया जाना चाहिए।

तनों की कटाई

सामान्यतः सिमवृद्धि को छोड़कर अन्य प्रभेद 18-20 माह में खुदाई योग्य हो जाती हैं। सिमवृद्धि 12 माह में खुदाई योग्य हो सकती है। रोपाई के प्रथम वर्ष में तनों की 30-40 से.मी ऊपर से पहली कटाई तथा खुदाई पूर्व एक कटाई अवश्य की जानी चाहिए। काटे गये ऊपरी भाग को चारे, ईंधन या झोपड़ियाँ बनाने के काम में लाया जाता है।

जड़ों की खुदाई

पूर्ण विकसित जड़ों को जाड़े के मौसम दिसम्बर-जनवरी माह में खुदाई किया जाना चाहिए। खुदाई के समय जमीन में हल्की नमी रहना आवश्यक है। खुदाई पश्चात् जड़ों से मिट्टी अलग होने के लिए खेत में दो-तीन दिन सूखने देना चाहिए । पूर्ण परिपक्व जड़ों से अच्छी गुणवत्ता के तेल प्राप्त होते हैं, जिसका विशिष्ट घनत्त्व एवं ऑप्टिकल रोटेशन ज्यादा होता है। आजकल जड़ों की खुदाई पर खर्च कम करने के लिए दो फारा कल्टिवेटर का व्यवहार हो रहा है। विशिष्ठ गुणवत्ता के खुदाई यंत्र सीमैप, लखनऊ में उपलब्ध हैं।

जड़ों का आसवन एवं एसेन्सियल तेल का उत्पादन

जड़ों से तेल निकालने में लगने वाला समय बिहार राज्य की स्थिति में 14-18 घंटा लगता है। इस आसवन के लिए क्लीभंजर उपकरण के सिद्धान्त पर कोहोबेसन आसवन संयंत्र विकसित की गयी है, जिसके द्वारा खस की अच्छी प्रजाति के आधार पर 1 से 2 प्रतिशत तक एसेन्सियल तेल निकाला गया है। स्टेनलेस स्टील से बने आसवन संयंत्र द्वारा उच्च गुणवत्ता का तेल प्राप्त होता है।

विभिन्न प्रकार की जमीन में खस जड़ों का उत्पादन एवं तेल प्राप्ति

 

भूमि का प्रकार

 

जड़ क्विंटल/हे०

तेल कि.ग्रा./हे०

उपजाऊ दोमट व बलुई दोमट

35-40

20-30

मध्यम उपजाऊ बलुई

25-30

15-25

बलुई

10-15

6-10

जलमग्न

9-10

 

4-8

लवणीय एवं समस्याग्रस्त

10-15

6-10

 

उन्नतशील किस्में के.एस.-1 में बिहार की स्थिति में 0.6 प्रतिशत से 1.00 प्रतिशत तक तेल उत्पादन की क्षमता है। सिमवृद्धि प्रजाति का दावा 2 प्रतिशत तक तेल पैदा करने का है, हालांकि जड़ों का उत्पादन कम होता है।

आय–व्यय

(अ) लागत

कृषि क्रियाएँ

 

प्रथम वर्ष

द्वितीय वर्ष

मृदा तैयारी एवं आलेखन

2500.00

 

कलम (स्लिप) बनाने की मजदूरी

1000.00

1000.00

खाद एवं उर्वरक

3000.00

1000.00

रोपाई

3000.00

 

निराई एवं गुड़ाई

3000.00

 

सिंचाई

3000.00

2000.00

तनों की कटाई

2000.00

2000.00

जड़ों की खुदाई

15000.00

 

अन्य

2000.00

2000.00

योग

19500.00

21000.00

जड़ उत्पादन पर कुल खर्च

40500.00

 

 

आसवन लागत (2500 किग्रा जड़)

10000.00

 

 

तेल उत्पादन पर कुल खर्च

50500.00

 

 

(ब) आय (1) जड़ों की बिक्री करने पर (2500 किग्रा जड़) दर रू० 40/ किग्रा 100000 कुल आय 24 महीनों में (रू० 100000-40500) 59500 कुल आय/ हे० वर्ष

उपरोक्त विवरण अपने द्वारा उत्पादित खस से कलमें बनाकर खेती के आधार पर अनुमोदित हैं।

 

स्रोत- बिहार राज्य बागवानी मिशन, बिहार सरकार

अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020



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