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जेट्रोफा या रतनजोत का परिचय

भूमिका

जैसे कि इसका नाम ही इसका परिचायक है, यह वृक्षमूल वाले सभी तिलहनों में सर्वाधिक उपादेय, हरा-भरा रहने वाला, मुलायम व चिकनाईयुक्त लकड़ीवाला झाड़ीदार पौधा है जिसका वानस्पतिक नाम जेट्रोफा करकास है । मौलिक रूप से इसका उदगम स्थान अफ्रीका एवं दक्षिणी अमेरिका माना गया है और ऐसी मान्यता है कि दुनिया के शेष भागो में इसके प्रसार का कार्य पुर्तगालियों द्वारा किया गया है । 16वीं शताब्दी में पुर्तगालियों द्वारा ही भारतवर्ष में इसे लाया गया जो कि कमोवेश पुरे देश भर में उगता है या उगाया जाने लगा है । यह दुनिया भर के सभी उष्णकटिबन्धीय तथा उपोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में पाया जाता है ।

जेट्रोफा के क्षेत्रीय नाम

विश्व में जेट्रोफा को लगभग 200 से अधिक विभिन्न नामों से जाना जाता है । भारत देश में विभिन्न भाषाओं में पुकारे जाने वाले नाम निम्नलिखित हैं –

भाषा

नाम

संस्कृत

पर्वत अरण्ड, काननअरण्ड, भद्रदन्तिका दुवन्त

हिंदी

रत्नज्योत, बाग़भेरण्ड, भगेरण्डा, जंगली अरण्डी

अंग्रेजी

जेट्रोफा, फिजिक, नट

बंगला

अरण्डागच्छ, भीरेण्ड बाग़भेरण्ड

तमिल

कदलमनाक्कू, स्तमनक्कू, स्त्तनमनाक्कू

तेलगू

नेपालामू, पेडडानेपालामू, अदावियामिदामू

मराठी

मोगली अरण्ड, रानेअरण्ड, वनअरण्ड, चन्द्रज्योत, चन्द्री मोगाली  रेन्दा

कन्नड़

अदालूहरालू, बेटटाडाहरालू, मराहरालू, कारनोक्ची

गुजराती

रत्नज्योति, जमालगोटा, पारसी अरण्ड, कालाअरण्ड

आसामी

बोंगालीभोटोरा

मलयालम

कटटावनक्का, कत्तवंक कदलनक्का

उड़िया

जहाजीगबा, बायगाबा, नोरोकाकालों

पंजाबी

कालाअरण्ड, कालारेन्दा, जमालगोटा

उर्दू

जंगली अरण्ड, वैज्ञानिक नाम – जेट्रोफा करकास मिअर्स

प्राप्ति स्थान

जेट्रोफा आमतौर पर विश्व के कटिबन्धीय तथा उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में पाया जाता है । इसके प्राकृतिक स्रोतों में दक्षिणी अमेरिका, मेक्सिको, अफ्रीका, बर्मा, श्रीलंका, पाकिस्तान तथा भारत प्रमुख हैं । भारत में यह समस्त मैदानी क्षेत्रों व 1500 मीटर तक ऊँचाई वाले पहाड़ी स्थानों की कंकरीली, रेतीली, पथरीली, ऊसर इत्यादि भूमियों में आसानी से उगता है । राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, मध्यप्रदेश राज्यों तथा इसे उगाने वाले प्रमुख क्षेत्र कोंकण क्षेत्र, मालाबार समुद्रतटीय क्षेत्र हैं । इसे आमतौर पर अर्द्धजंगली अवस्था में गाँवों के आस-पास खेतों, सड़कों तथा नदी-नालों के किनारे उगा हुआ देखा जा सकता है । आजकल भारत में अनेक क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर इसकी खेती करने पर बल दिया जा रहा है। यह पौधा शुष्क जलवायु में उगाने के लिए बहुत उपयुक्त है ।

वानस्पतिक विवरण

जेट्रोफा (रतनजोत) एक बहुवर्षीय, छोटे आकार एवं चौड़ी पत्तियों वाला झाड़ी नुमा वृक्ष है । यह पौधा 3-4 मीटर लंबा, पतझड़ी, नर्म छालयुक्त, तेजी से बढ़ने की प्रकृति वाला होता है ।

पत्ती

इसकी पत्तियाँ, पीपल की पत्तियों से मिलती-जुलती, एकांत, अक्षत, 3-5 पालियुक्त या कोणी, गोलाकार, हृदयाकार, 10-15 सें. मी. लंबी तथा 7.5-12.5 सें. मी. चौड़ी होती हैं । शिराविन्यास पाणीवत होता है ।

तना

इसका तना चिकना, मुलायम, काष्ठीय व शाखित होता है । परन्तु इसमें नोड व इंटरनोड नहीं होते । तने पर अत्यंत नरम छाल होती हा । कच्ची अवस्था में छाल रसीली होती है तथा तने से आसानी से अलग हो जाती है। पत्तियों को तोड़ने पर सफेद रंग का दूध जैसा तरल पदार्थ निकलता है जिसे लेटेक्स कहते है ।

पुष्प

रतनजोत के एक वर्ष की आयु वाले पौधों पर फूल आने आरंभ हो जाते हैं । इसके पौधों की शाखाओं के अंतिम सिरे पर अगस्त से नवम्बर माह के दौरान सफेद हरे रंग के पुष्पों का प्रस्फुटन होता है । अनुकुल जलवायु व सिंचाई की व्यवस्था रहने पर इसके पौधों में वर्ष में दो बार फूल व फल आते हैं जिन्हें अप्रैल-मई के महीनों में भी देखा जा सकता है । इसके पुष्प उभयलिंगाश्रयी (मोनोइसीयस) अर्थात न्र एवं मादा पुष्प एक ही पौधे पर होते हैं । पुष्प का वाह्य दलपुंज (कैलिक्स) व दलपुंज (कोरोला) की संख्या पाँच-पाँच होती है । पुष्पक्रम जटिल तथा साइयोथियम प्रकार का होता है । प्रथम शाखाएं एक वर्ध्यक्षीय (रेसीमोस) या अनिश्चत (साइयोथियम) पुष्पक्रम वाली तथा बाद की बहुवर्धीयक्षीय साइमोस पुष्पक्रम वाली होती हैं। पुष्पक्रम का कटोरिया निचक्र से घिरा रहता है । कटोरिया के बीच मादा पुष्प और इनके जायांग, (गाइनोइसीयम मादा अंग) ट्राइकारपिलरी से घिरा होता है । प्रत्येक ब्रैकट (सहपत्र) के केंद्र में नरपुष्प बहुवर्ध्यक्ष में उपस्थित रहते हैं । हरेक पुष्पक्रम में नरपुष्पों की संख्या 25 से 93 तक तथा मादा पुष्पों की संख्या 1 से 5 तक पाई जाती है । मादा पुष्प (10 मि. मी.) का आकार नर पुष्पों (3 मि. मी.) की तुलना में बड़ा होता है । नर एवं मादा पुष्प 29:1 के अनुपात में होते हैं । इनमें परागण कीड़ों द्वारा होता है ।

फल

रतनजोत का फल गुच्छे में आता है जो किढाई से चार सेंटीमीटर व्यास का होता है । फल प्रारंभ में हरे रंग के होते हैं जो कि पकने के क्रम में पीले और पूरी तरह से पकने के बाद काले हो जाते हैं । फल अंडे के आकार वाला होता है । इसके पुष्प हरे-पीले रंग के चिकने या रोयेंदार व ससीमाक्षी होते हैं, जो ग्रीष्म से वर्षाकाल तक खिलते हैं तथा सर्दियों में इसके फल बनते हैं । फल (संपुट) 2.5 से 4.0 सें. मी. लंबे होते हैं, जिनके अंदर काले रंग के अंडाकार, अरण्डी से मिलते-जुलते बीज होते हैं । फल फटने पर तीन हिस्सों में बंट जाता है अर्थात एक फल में अधिकतम तीन बीज हो सकते है ।

बीज

बीजों का रंग काला, एक कि. ग्रा. बीजों की संख्या 1400-1800, लम्बाई 1.6 -18 सें. मी. व चौड़ाई 1.01 – 1.11 सें. मी. होती है । बोजों का वजन आकार के अनुसार अत्यंत कम होता है । यह इनमें उपस्थित लगभग 50 प्रतिशत तेल के कारण होता है । यह एक तेजी से बढ़ने वाला पौधा है । इसका जीवन काल लगभग 40-50 वर्षों तक का माना गया है जिसे वृद्धि के लिए अधिक प्रकाश की आवश्यकता है ।

 

स्रोत: राष्ट्रीय तिलहन एवं वनस्पति तेल विकास बोर्ड,कृषि मंत्रालय, भारत सरकार

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



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