सबसे पहले जेट्रोफा बीज का तेल निकालने के लिए उच्च क्वालिटी का बीज लेते हैं| इस तेल को परिशोधन प्रक्रिया द्वारा जैविक डीजल का रूप दिया जाता है, इस तेल में उपस्थित ट्राई ग्लिसरॉयड को वसीय अम्ल (फैटी ऐसिड) ईथर में परिवर्तित कर लिया जाता है | परिशोधन प्रक्रिया में बीज सीधे ही एक्सपेलर (तेल निकालने की मशीन) में डाल दिए जाते हैं अथवा डिकाटिकेटर से इनकी गिरी अलग करके उसे भी एक्सपेलर से प्रक्रियाकृत करके अलग कर लिया जाता है | बीजों के साथ एल्कोहल जो कि मेथेनोल या इथेनोल (कोई भी एक हो सकता है) तथा पोटेशियम हाईड्रोक्साइड या सोडियम हाइड्रोक्साइड की गोलियों को उत्प्ररेक के रूप में मिलाते हैं | उत्प्रेरक क्रिया के बाद ही आसवन विधि प्रारम्भ की जाती है | इनका क्वथनांक अलग होने के कारण एल्कोहल अलग हो जाता है, इसके बाद इस मिश्रण की अभिक्रिया शोधित जल द्वारा परिशुधिकरण कर लिया जाता है | अब वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया द्वारा डीजल पृथक तथा ग्लिसरीन अलग हो जाती है | तेल बायो डीजल के रूप में काम आ जाता है तथा ग्लिसरीन को अनेक प्रकार के उपयोग में लाया जाता है | इसलिए विश्व स्तर पर इसकी मांग की पूर्ति नहीं हो पाती है | बाकी बची हुई खली जैविक खाद के रूप में खेतों में या बायोगैस बनाने के संयंत्र में काम आ जाती है | इसकी परिशोधन प्रक्रिया में प्रयुक्त होने वाली सामग्रियों का ब्यौरा निम्नलिखित है -
जेट्रोफा तेल : 100 कि. ग्रा.
मेथेनोल : 24 कि. ग्रा.
सोडियम हाइड्रोक्साइड : 2.5 कि. ग्रा.
बायोडीजल : 100 कि. ग्रा.
ग्लिसरोल : 26 कि. ग्रा.
स्रोत: राष्ट्रीय तिलहन एवं वनस्पति तेल विकास बोर्ड,कृषि मंत्रालय, भारत सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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