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मोठ की उन्नत खेती

पश्चिमी राजस्थान में उगाई जाने बाली दलहन फसलों में मोठ प्रमुख फसल हैIइससे सूखा सहन करने की क्षमता अन्य दलहन फसलों की अपेक्षा अधिक होती हैl इसकी जड़ें अधिक गहराई तक जाकर भूमि से नमी प्राप्त कर लेती हैं। राज्य की पश्चिम क्षेत्र में मोठ की औसत पैदावार राज्य की कुल पैदावार का 99प्रतिशत होती हैl मोठ की औसत उपज 338 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के लगभग हैl उन्नत तकनीकों द्वारा खेती करने पर 25 से 60प्रतिशत तक अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती हैl

उन्नत किस्में

किस्म

पकने की अवधि(दिनों में)

औसत उपज (कु /प्रति है.)

विशेषतायें

आर एम ओ-40

 

55-60

 

6-8

पीत शिरा मोजेक  के प्रति रोधी l सूखा सहन करने की क्षमताI

आर एम ओ-225

 

60-65

 

6-8

सूखा रोधी/पौधा 30-35 से.मी. ऊँचा I

काजरी मोठ-2

 

70-75

 

8-9

अधिक दाना एवं चारा 100 से150 फलियां प्रति मोजेक के प्रति रोधी

 

काजरी

मोठ-3

 

 

65-70

 

 

8-9

दाने चमकदार एवं बड़े आकर व वालेIपीत शिरा मोजेक के प्रतिरोधी I

 

आर एम ओ-257

 

62-65

 

5-6

पीत शिरा एवं थ्रिप्स के प्रति सहनशील I

फसल उपज प्राप्त करने एवं भूमि की उर्वरा शक्ति बनाये रखने के लिए उचित फसल चक्र अपनाना चाहिएI

वर्षा आधारित क्षेत्रों में मोठ-बाजरा फसल चक्र उचित रहता हैI

भूमि की तैयारी

मूंग की खेती के लिए दोमट एवं बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम होती हैl भूमि में उचित जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चहियेl पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल या डिस्क हैरो चलाकर करनी चाहिए  तथा फिर एक क्रॉस जुताई हैरो से एवं एक जुताई कल्टीवेटर से कर पाटा लगाकर भूमि समतल कर देनी चाहिएl

बीज की बुवाई

मूंग की वुबाई 15 जुलाई तक कर देनी चाहिएl देरी से वर्षा होने पर शीघ्र पकने वाली किस्म की वुबाई 30 जुलाई तक की जा सकती हैl स्वस्थ एवं अच्छी गुणवता वाला तथा उपचरित बीज बुवाई के काम लेने चाहिएl बुवाई कतरों में करनी चाहिए l कतरों के बीच दूरी 45 से.मी. तथा पौधों से पौधों की दूरी 10 से.मी. उचित है l

फसल चक्र

फसल उपज प्राप्त करने एवं भूमि की उर्वरा शक्ति बनाये रखने के लिए उचित फसल चक्र अपनाना चाहिए I
वर्षा आधारित क्षत्रो में मोठ -बाजरा फसल चक्र उचित रहता है I

खाद एवं उर्वरक

मोठ दलहन फसल होने के कारण इसे नाइट्रोजन की कम मात्रा की आवश्यकता होती हैl एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिए 20 किलोग्राम नाइट्रोजन व 40 किलोग्राम फास्फोरस की आवश्यकता होती हैl मोठ के लिए समन्वित पोषक प्रबंधन उचित रहता हैI इसके लिए खेत की तैयारी के समय 2.5 टन गोबर या कम्पोस्ट की मात्रा भूमि में अच्छी प्रकार से मिला देनी चाहिए I

इसके उपरांत बुबाई के समय 44 किलो डीएपी एवं 5किलोग्राम यूरिया भूमि में मिला देना चाहिये I बुवाई से पहले 600 ग्राम राइजोबियम कल्चर को 1लीटर पानी व 250 ग्राम गुड के घोल में मिलाकर बीज को उपचारित कर छाया में सुखाकर बोना चाहिएI

खरपतवार नियंत्रण

मोठ की फसल को खरपतवाक बहुत हानि पहुंचाते हैं खरपतवार नियंत्रण के लिए बाज़ार में उपलब्ध पेन्डीमैथालीन (स्टोम्प) की 3.30 लीटर लीटर का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से समान रूप से छिड़काव कर देना चाहिएIफसल जब 25-30दिन की हो जाये तो एक गुड़ाई कस्सी से कर देनी चाहिएIयदि मजदूर उपलब्ध न हो तो इसी समय इमेजीथाइपर(परसूट) की बाजार में उपलब्ध  750 मि. ली. मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिए I

कीट एवं रोग नियंत्रण

दीमक

पौधों की जड़ें काटकर दीमक बहुत नुकसान पहुंचाती है। इससे पौधा कुछ ही दिनों में सूख जाता है I दीमक की रोकथाम के लिये अंतिम जुताई के समय क्यूनालफोस या क्लोरोपैरिफॉस पॉउडर की20-25 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से मिटटी में मिला देनी चाहिए तथा बीज को बुबाई से पूर्व  क्लोरोपैरिफॉस की 2 मि.ली. मात्रा को प्रति किलो बीज दर से उपचारित कर बोना चाहिए I

कातरा

कातरे की लट फसल की प्रारम्भिक अवस्था में पौधों को काटकर हानि पहुँचाती हैंI इसके नियंत्रण के लिए खेत के चारों तरफ क्षेत्र साफ़ रहना चाहिए तथा लत के प्रकोप होने पर मिथाइल पैराथयोन पाउडर  की 20-25 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर दर से प्रयोग करनी चाहिए I

जैसीडस

यह कीट हरे रंग का होता है तथा पौधों की पत्तियों से रस चूस कर फसल को नुकसान पहुँचाता है।पत्तियां मुड़ी सी लगने लगती हैंl इस किट के नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफास की आधा लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिएl इमिडाक्लोप्रिड की 500 मि.ली. मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव किया जा सकता हैl

मोयला,हरा तेला मक्खी

इन कीटों की रोकथाम के लिए मेलाथिऑन 50 इ.सी. 1लीटर या डायमियोऐट 30 इ.सी. या 25 इ.सी. एक लीटर या मेलथियोंन 5 प्रतिशत पॉउडर 25 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए ल ब्लैक लीप बिवील एवं लीप बिटल- इन कीटो के नियंत्रण हेतु की 20-25 किलो मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करनी चाहिये l

फली छेदन

यह कीट फसल के पौधों की पत्तियों को खा कर फसल को नुकसान पहुँचाता हैI इसकी रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास 36 डब्ल्यू ए सी या मेलाथियोंन 50 ई. सी. या क्यूनालफ़ांस 25 ई.सी. आधा लीटर या क्यूनालफ़ांस 1.5 प्रतिशत पॉउडर की 20 -25 किलो हेक्टेयर की दर से छिड़काव /भुरकाव करनी चहिये l

पीला मोजक विषाणु रोग

यह रोग मोठ की फसल को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाता है। इससे प्रभावित पत्तियां पूरी तरह से  पीली हो जाती हैं एवं आकार में मोटी रह जाती हैं इसकी रोकथाम के लिए सफ़ेद मक्खी जिसके द्वारा यह रोग फैलता है का नियंत्रण आवश्यक हैl लक्षण दिखाई देते ही डियमिथोएट 30 ईसी या मेटासिस्टोक्स आधा लीटर व आधा लीटर मेलाथियोंन प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिये l

चिती जीवाणु रोग

इस रोग के कारण पौधे मुरझा जाते हैंl रोग के कारण छोटे गहरे भूरे रंग के धब्बे पत्ती, फलियों एवं तनों पर दिखाई देते हैं l इसके नियंत्रण हेतु अग्रीमयसिन की 200  ग्राम मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहियेl मोठ के बीज को 100 पी.पी.एम. स्ट्रप्टोसाइक्लिन के घोल में एक घंटा भिगोकर सूखने के पश्चात 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करनी चाहिएl

तना झुलसा रोग

इस रोग के कारण पौधे मुरझाने लगते हैं। इसके लक्षण दिखाई देने पर 2 किलो मैन्कोजेब  को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।

किंकल विषाणु रोग

इस रोग के लक्षण पत्तियों पर दिखाई देते हैं इसके द्वारा पत्ती मोटी एवं भारी हो जाती है रोग के कारण पत्तियां सिकुड़ सी जाती हैं। इसके नियंत्रण के लिए डियमिथोएट 30 ई.सी. अथवा मिथाइलडिमेटोन 25 ई.सी.की750मी.ली.मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर सी 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। दूसरा छिड़काव15 दिन बाद करना चाहिए l

सरस्कोस्पोरा रोग

इस रोग के कारण पत्तियों पर कोणदार भूरे लाल रंग के धब्बे बन जाते हैं।रोगी पौधों की नीचे की पत्तियां पीली पड़कर सूखने लगती हैं तथा पौधों की जड़ें भी सुख जाती हैंl इस रोग के नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम की 500 ग्राम मात्रा 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिएl बीज को बुवाई से पूर्व 3 ग्राम कैप्टान या 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलोबीज की दर से उपचारित करना चाहिए l

बीज उत्पादन

किसान अपने खेत पर भी अच्छी किस्म के बीज का उत्पादन कर सकते हैंl खेत के चयन के समय कुछ सावधानियां रखनी चाहिएं। पिछले साल इस खेत में मोठ नहीं उगाया गया हो। भूमि में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहियेl प्रमाणित बीज के लिए खेत के चारों ओर १० से २० मीटर तक मोठ का कोई खेत नहीं होना चाहियेल खेत की तैयारी बीज एवं उसकी बुवाई,पोषक प्रबंधन, खरपतवार नियंत्रण रोग एवं किट नियंत्रण का विशेष ध्यान रखना चाहिये। समय-समय पर खेत से अवांछनीय पौधों को निकालते रहना चाहिये तथा बीज के लिए लाटा काटते समय खेत के चारों तरफ 5 से10 मीटर छोड़कर फसल की कटाई करनी चाहियेl लाते को खलिहानों में अलग सुखाना चाहियेएवं दाने को फलियों से निकल कर अच्छी प्रकार सुखाना चाहिये जिससे 8-9 प्रतिशत से अधिक नमी रहे l इसके बाद बीज को ग्रेडिंग कर देना चाहियेl इस बीज को किसान अगले वर्ष बुवाई के लिए उपयोग कर सकते हैंl

कटाई एवं गहाई

जब मोठ की फलियां पाक कर भूरी हो जाएं तथा पौधा पीला पड़ जाये तो फसल की कटाई कर लेनी चाहियेl लाटे को अच्छी प्रकार सूखने के पश्चात थ्रैसर द्वारा दाने को अलग कर लिया जाता है l

उपज एवं आर्थिक लाभ

मोठ की उन्नत तकनीको द्वारा केटी करने पर 6 से 8 कुन्तल दाने की उपज प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती हैl मोठ की एक हेक्टेयर खेती के लिए 15 से 18 हज़ार रूपये प्रति हेक्टेयर लागत आती है l यदि मोठ के बीज का बाजार भाव 40 रुपये प्रति किलो हो तो मोठ की खेती द्वारा 9 से 12 हज़ार रुपये प्रति हेक्टेयर शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है l

स्त्रोत: राजसिंह एवं शैलेन्द्र कुमार,केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान(भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद), जोधपुर

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



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