आम को भारतवर्ष के विभिन्न भागों में प्राचीन काल से उगाया जा रहा है। इस फल का हमारे जीवन व इतिहास से गहरा संबंध रहा है। हिमाचल प्रदेश में आम का कुल क्षेत्रफल 38,444 हें. तथा पैदावार 23,962 मीट्रिक टन है। इसके फल अपने स्वाद व पोष्टिकता के लिए जाने जाते है और इसे फलों का राजा भी कहा जाता है। आम की बागवानी व्यवसायिक स्तर पर कर लाभ अर्जित करने के लिए बागीचों के लिए उचित स्थान व किस्म के चुनाव के साथ अन्य कार्य! जैसे पौधों की स्थापना एवं रखरखाव, व बीमारी व कीटों से पौधों के बचाव आदि पर निर्भर करता है।
आम बागीचों की स्थापना ऐसे स्थानों/क्षेत्रों में की जानी चाहिए जहां दिन के अधिकांश समय धूप खिली रहे व पाला न पड़ता हो या कम पड़ता हो। बागीचों को आने जाने के लिए उचित व्यवस्था हो, ऐसे स्थान जहां प्राकृतिक आपदाओं जैसे ओलावृष्टि, तूफ़ान आदि का प्रकोप न हो तथा ये स्थान जंगली जानवरों से भी सुरक्षित हो।
हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा में अधिकांश क्षेत्रों में आम की बागवानी सफलता पूर्वक की जा सकती है। आम की बागवानी के लिए समुद्र तल से 600 मीटर ऊँचाई तक के क्षेत्र अधिक उपयोगी पाए गये हैं। आम के पौधें अधिक सर्दी व पाले को सहने में असमर्थ होते है। ऐसे क्षेत्र जहां वर्षा ऋतु में जून से सितम्बर के मध्य अच्छी वर्षा होती है, परन्तु इसके पश्चात मौसम शुष्क रहता हो, इस फल की बागवानी के लिए अधिक उपयुक्त है। आम की बागवानी सभी प्रकार की मिट्टी में संभव है परन्तु चिकनी दोमट मिट्टी जिसका पी.एच. मान 5.7-7.5 हो और जहां जल निकासी ठीक होती हो, इसकी बागवानी के लिए श्रेष्ठ है।
वर्षा पर आधारित क्षेत्रों में आम के पौधें जुलाई-अगस्त के महीनों में रोपे जाते हैं। आम के पौधे 8 से 10 मीटर तथा आम्रपाली (बौनी किस्म) के पौधे 3 मीटर के अंतर पर लगाने चाहिए। पौधों की रोपाई से पहले रेखांकन कर पौधों के लिए स्थान सुनिश्चित कर लें उसके उपरान्त मई-जून के मास में इन स्थानों पर गड्ढे करें। गड्ढे (1 मीटर x 1 मीटर x मीटर) आकार के करें, खुदाई करते समय ऊपरी सतह की एक तिहाई मिट्टी का ढेर अलग से लगाएं और शेष 2/3 मिट्टी का ढेर अलग से लगाए! गड्ढों को 15-20 दिनों के लिए खुला रखें। तत्पश्चात गड्ढों की भराई करें। ऊपरी 1/3 तथा नीचे की 2/3 भाग की मिट्टी में गोबर की गली सड़ी खाद मिला लें। ऊपरी 1/3 भाग की मिट्टी को गड्ढों में पहले भरें तथा शेष मिट्टी को बाद में भरें। क्लोरपाइरीफोस 20 मिली./10 लीटर पानी की सिंचाई प्रति गड्ढे के हिसाब से करें।
आम के एक वर्ष आयु के पौधों को 10 कि.ग्रा. गोबर की गली सड़ी खाद, 100 ग्राम कैन या 50 ग्रा. यूरिया, 100 ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट और 100 ग्रा. म्यूरेट ऑफ़ पोटाश की आवश्यकता होती है। गोबर व सुपर फ़ॉस्फेट की पूरी मात्रा दिसम्बर माह में डालें। कैन या यूरिया और म्यूरेट ऑफ़ पोटाश की पूरी मात्रा फरवरी मास में डालें। फलत वर्ष में फलदार पौधों में कैन या यूरिया की मात्रा दो गुना कर डालें। आयु अनुसार खाद एवं उर्वरकों की मात्रा को गुणा कर प्रतिवर्ष दस वर्ष की आयु तक बढ़ाये और उसके पश्चात इसे स्थिर कर दें। उदाहरण के लिए 2 वर्ष की आयु पौधे के लिए गोबर की खाद 2 x 10 कि.ग्रा. = 20 कि.ग्रा., कैन की मात्रा 2 x 100 ग्रा.=200 ग्रा., या यूरिया की मात्रा 2 x 50 ग्रा.= 100 ग्रा., सिंगल सुपर फास्फेट 2 x 100 ग्रा.=200 ग्रा. तथा म्यूरेट ऑफ़ पोटाश 2 x 100 ग्रा. = 200 ग्रा. । इस प्रकार मात्रा बढ़ाते रहने से 10 वर्ष आयु के पौधों के लिए 1 क्विंटल (गोबर की गली सड़ी खाद), 1 कि.ग्रा. कैन या 500 ग्रा. यूरिया, 1 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट तथा 1 कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ़ पोटाश की मात्रा की आवश्यकता होगी। उसके उपरान्त इसे स्थिर कर लें।
आम की सघन बागवानी के लिए आम्रपाली किस्म को 2.5 x 2.5 मीटर या 3 x 3 मीटर के अंतर पर लगायें। पौधों में शुरूआती दो वर्षों में शाखाओं के सिरों की वानस्पतिक बढ़ोत्तरी को रोकने के लिए काट-छांट करें। खाद एवं उर्वरकों की अनुमोदित मात्रा का उचित समय पर प्रयोग करें। फल तथा पत्तियों की उचित संख्या रखें। अंतर फसलें न लगाये। 12-14 वर्ष की आयु के उपरान्त पौधों की पैदावार घटने लगती है। इस के लिए काट-छांट करना जरूरी है। तुड़ाई के तुरंत बाद (अगस्त) में काट-छांट करें। गुच्छा रोग से ग्रसित पौधों में छिड़काव करें। आम की मिली वग व हॉपर का नियंत्रण करें। रोगों का नियंत्रण भी करें।
यह छोटा व भूरे सलेटी रंग का कीट है। इसका प्रकोप बसंत ऋतु में फूल आने के समय होता है। इस कीट के शिशु झुण्ड में फूलों का रस चूसते है जिससे फूल मुरझाने लगते है और असमय ही पेड़ से झड़ने लगते है। इस कीट के व्यसक पत्तों से रस चूस पत्तियों को चिपचिपा बनाते है जो कि बाद में फफूंद के आक्रमण से काली पड़ जाती हैं, फल कम लगते है और छोटे फल गर्मी में हवा से झड़ जाते हैं।
नियंत्रण
यह एक अन्य महत्त्वपूर्ण व आम का प्रमुख कीट है। जो टहनियों में गांठे बनाता है। इस कीट के शिशु फूलों व कलियों में प्रवेश कर सख्त व शंखुनुमा गांठे बनाते है जिससे नई शाखाओं व फूल वाली टहनियों का विकास रुक जाता है और फूल भी नहीं आते हैं।
नियंत्रण
यह कीट फरवरी माह तक बढ़ती शाखाओं व फूलों से रस चूस कर उन्हें हानि पहुंचाते है जिससे प्रकोपित भाग मुरझाने लगते हैं और फूलों से फल नहीं बन पाते या फिर असमय ही झड़ने लगते हैं। यह कीट आम के तौलियों में तने के आस-पास 5-12 सै. मी. गहराई तक मिट्टी में रहते हैं। इन अण्डों से जनवरी-फरवरी माह में छोटे भूरे कीट पौधों के ऊपरी भागों की ओर चढ़ने लगते हैं।
नियंत्रण
तने और शाखाओं में छेद करके या कीट सुरंगे बनाता है। बाहर से इस कीट के प्रकोप का पता नहीं चलता जबकि छोटे-2 छिद्रों से रस की बूंदे निकलने लगती है। बहुत ज्यादा नुकसान होने पर ही पता चलता है और बुरादा निकलने लगता है।
नियंत्रण
यह कीट सिरे की नई टहनियों को नुकसान पहुंचाता है जिससे यह सूखने लगती है।
नियंत्रण
नई निकलने वाली टहनियों पर मोनोक्रोटोफ़ॉस 0.036 प्रतिशत या साइपरमैयरिन 0.01 प्रतिशत (1 मिली. रिपकोर्ड 10 ई. सी./लीटर पानी) का छिड़काव अगस्त में करें। यदि आवश्यकता हो तो 20 दिन के अंतराल पर पुन: छिड़काव करें।
इस कीट की सुंडियां पत्तों पर आक्रमण करती हैं। यह पत्तों को आपस में जोड़कर जाला देती है तथा इन्हें खाती है। पत्ते सूखने लगते हैं और पेड़ कमजोर हो जाते है। आक्रमण जून माह में शुरू हो जाता है परन्तु मानसून के बाद इसका अधिक प्रकोप नजर आता है।
नियंत्रण
यह कीट आम का प्रमुख कीट है। इस कीट का प्रकोप अप्रैल अंत से शुरू हो फलों के पकने तक जारी रहता है। फल मक्खी पीले रंग की एक छोटी मक्खी होती है जो कि फलों की सतह में अपने पिछले नुकीले हिस्से को चुभो कर अंडे देती है। इन अण्डों से निकल कर शिशु सुंडियां फलों के अंदर पनपती हैं। जिससे फलों का वह भाग सड़ने लगता है तथा फल गिर जाते हैं।
नियंत्रण
छाल खाने वाली सुंडियां: रिबन के भीतर ये सुंडियां तने और तने की छाल को नुकसान पहुंचाती है।
नियंत्रण
प्रभावित फुल या कुर मोटा हो जाता है उनका गुच्छा बन जाता है और ऐसे फूलों पर फल नहीं लगते है।
नियंत्रण
इस रोग का प्रकोप होने से नये तथा पुराने पौधे ऊपर से नीचे की ओर सुखना शुरू कर देते है, और पौधा मर जाता है।
नियंत्रण
इसकी रोकथाम के लिए गोंद खुरच कर उस भाग में बोर्डोपेस्ट (800 ग्रा. फ़ॉस्ट सल्फेट + 1 किग्रा. चूना + 10 लीटर पानी) कलम स्थान से मिट्टी सतह तक लेप करें तथा कॉपर आक्सीक्लोराइड (300 ग्रा./100 लीटर पानी) का छिड़काव सर्दी के आरम्भ में करें, दो छिड़काव सितम्बर व मार्च महीने में पुन: करें।
पौधे के सभी भाग जैसे पत्तियों, टहनियों और फलों पर इस रोग के लक्षण दिखाई देते है। पत्तों पर गहरे भूरे रंग के अंदर की तरफ दबे हुए धब्बे पड़ जाते है। नई टहनियों सिरों की ओर से मुरझाने लगती है। बौर या कुर भी मुरझाने लगता है और फल भी गिरने लगते है।
नियंत्रण
आम के फूलों या बौर, कलियों और फल डंडियों पर सफेद से राख के रंग के चूर्णी धब्बे पड़ते है यह फफूंद नई पत्तियों पर मार्च-अप्रैल के महीने में फैलता है।
नियंत्रण
लक्षण दिखाई देने पर घुलनशील सल्फर (500 ग्रा.) या कैराथेन (50 मिली.) या कारबेंडाजिम (50 ग्रा.) या ट्राइडोमोरफ (100 मिली. या बीटरटानोल (50 ग्रा.) 100 ली. पानी में मिलाकर छिड़काव फूल खिलने से पहले फल स्थापना के समय (जब फल मटर के आकार के हो जाए) करें।
फल झड़ने का समस्या: अधिकतर फल जब छोटे होते है, तभी गिरने लगते है। कीट व रोगों के प्रकोप से गिरने वाले फलों को छिड़काव से रोका जा सकता है।
क्र.सं. |
क्रमबार कार्यक्रम |
जनवरी |
फरवरी |
मार्च |
अप्रैल |
मई |
जून |
जुलाई |
अगस्त |
सितम्बर |
अक्टूबर |
नवम्बर |
दिसम्बर |
1 |
मिट्टी की जांच |
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2 |
पत्तों का विश्लेषण |
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3 |
खेत की जुताई |
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4 |
बाग़ लगाने की तैयारी |
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5 |
सिंचाई |
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6 |
खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग |
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7 |
खरपतवार नियंत्रण एवं गुड़ाई |
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8 |
पौधों का बचाव |
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9 |
कीट एवं बीमारी का प्रबंध |
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10 |
काट-छांट |
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सुझाई गयी सारणी अनुसार बाग़ प्रबंध
स्त्रोत: कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंध अभिकरण (आत्मा), हिमाचल प्रदेश
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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