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फल पौधों में एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्धन

फल पौधों में एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्धन

परिचय

एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्धन एक ऐसी विधि है जिसमें का कार्बनिक, अकार्बनिक और जैविक स्रोतों के मिश्रित उपयोग द्वारा पौधों को उचित मात्रा में पोषक तत्व उपलब्ध करवाये जाते हैं| इसके मुख्य उद्देश्य उर्वरक उपयोग क्षमता को अधिक करना, मिट्टी के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों को बढ़ाना आदि से सम्बन्धित रहते हैं ताकि लबे समय तक स्थाई कृषि द्वारा अधिक उत्पादन लिया जा सके| एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्धन, तकनीकी रूप से परिपूर्ण, आर्थिक रूप से आकर्षक, व्यावहारिक रूप से सम्भव और पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित होना अनिवार्य है|

एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्धन

आवश्यकता क्यों?

क)  उचित उर्वरक उपयोग: लम्बे समय तक की जाने वाली स्थाई कृषि में एकीकृत पोषक तत्व प्रणाली का एक विशेष महत्व है क्योंकि जहाँ बढ़ती हुई जनसख्या के लिए पर्याप्त मात्रा में कृषि उत्पाद अनिवार्य है वहीं प्राकृतिक सम्पदा जैसे मृदा एवं जल को संरक्षित करना और उन्हें दूषित होने से बचाना भी आवश्यक है| एक अनुमान के अनुसार, 2050 तक भारत वर्ष की जनसख्या 1.5 अरब हो जाएगी| इस बढ़ती हुई जनसंख्या की जरूरत पूरी करने के लिए हमें लगभग 350 मिलियन टन अनाज की पैदावार करनी होगी| इस कारण, मृदा से अधिक में पोषक तत्व निकल जायेंगे जिन्हें हमें फिर से मिट्टी में वापिस डालना पड़ेगा ताकि मृदा की उर्वरकता एवं उत्पादन क्षमता बनी रहे| इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एकीकृत पोषक तत्व प्रंबधन अनिवार्य है| पर्वतीय क्षेत्रों में वर्षा जल द्वारा पोषक तत्वों के बहाव व नुकसान को कम करने में एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन विशेष भूमिका निभाता है|

ख)  पोषक तत्व की हानि में कमी: साधारणतः मिट्टी की उर्वरता व पैदावार क्षमता बनाये रखने के लिए रासायनिक उर्वरकों का उपयोग किया जाता है| परन्तु रासायनिक पोषक तत्वों का बहुत कम भाग पौधों को उपलब्ध होता है और शेष भाग व्यर्थ चला जाता है| जैसे कि नत्रजन उर्वरक के कुल भाग का 35 से 40%. फास्फोरस उर्वरकों का 15 से 25% और पोटाश उर्वरकों का 30 से 50% भाग ही पौधों को उपलब्ध हो पाता है| एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्धन द्वारा उपयोग क्षमता को बढ़ाया तथा तत्वों की हानि को कम किया जा सकता है| इसी प्रकार लबे समय तक रासायनिक उर्वरकों क अधिक प्रयोग कई तरह के हानिकारक प्रभाव उत्पन्न करता है जैसे-

  • मृदा एवं पौधों में पोषक तत्वों का असंतुलन होना तथा पैदावार कम होना
  • अधिक कीड़े-मकोड़े व बीमारियों का प्रकोप|
  • मृदा से जैविक पदाथों का क्षय होना|
  • वातावरण का दूषित होना|
  • दूषित खाद्य पदार्थ पैदा होना|

ग)  उर्वरक के बढ़ते मूल्य: उर्वरक के बढ़ते मूल्य को देखते हुए फसलों से अधिक पैदावार लेने के लिए यह जरुरी है कि हम रासायनिक उर्वरकों का संतुलित और सही मात्रा में प्रयोग करें एवं अन्य स्रोतों द्वारा पोषक तत्वों को उपलब्ध करवाएं| वास्तव में यही एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्धन है|

घ)  पोषक तत्वों का असंतुलन: रासायनिक उर्वरकों के लगातार प्रयोग से कुछ सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होने लगती है| भूमि में उचित व संतुलित पोषक तत्वों की मात्रा बनाये रखने में एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्धन विशेष भूमिका निभाता है|

ङ)  मृदा का स्वस्थ पर्यावरण: एकीकृत तत्वों से मृदा में स्वस्थ वातावरण बना रहता है जो कि सूक्ष्म जीवों की वृद्धि के लिए अत्यंत लाभदायक है| ये जीव मृदा में कई तरह की रासायनिक प्रक्रियाओं में अपना योगदान देते हैं जिससे स्वस्थ वातावरण के साथ-साथ मृदा में पोषक तत्वों का सही संतुलन भी बना रहता है| ये सूक्ष्म जीव जैविक पदार्थों के गलने-सड़ने में भी सहायक होते हैं जिससे कई पोषक तत्व मुख्यतः नत्रजन, फास्फेट, सल्फर, जस्ता, लोहा, ताम्बा इत्यादि पौधों को उपलब्ध होते हैं जो कि मृदा की उर्वरता को बढ़ाते हैं|

च)    अकेले कार्बनिक और जैविक पोषक तत्व, फसल की उत्पादकता को नहीं बनाये रख सकते हैं: अकेले जैविक पदार्थों का उपयोग भी अधिक लाभदायक नहीं रहता | जैविक खादों का प्रयोग पर्यावरण व मानवता की दृष्टि से भले ही महत्वपूर्ण है लेकिन बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए खाद्य पदार्थों की आपूर्ति करने के लिए ये अकेले ही उपयुक्त  नहीं माने गए हैं| क्योंकि जैविक खादों में पोषक तत्व बहुत कम मात्रा में मौजूद होते हैं| जो पोषक तत्व मौजूद  होते हैं वो भी कुछ रासायनिक प्रक्रियाओं के बाद ही पौधों को उपलब्ध हो पाते हैं| इसलिए व्यावहारिक रूप से कार्बनिक स्रोतों के उपयोग से पोषक तत्वों को पूरा करना, साथ ही उच्च फसल की पैदावार का लक्ष्य पूर्ण करना बहुत ही मुशिकल है|

छ) अन्य लाभ: इसके अलावा एकीकृत पोषक तत्व प्रणाली के और भी लाभ हिया, इसे पैदावार बढ़ती  है तथा मृदा की पैदावार क्षमता लम्बे समय तक कायम रहती है| पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है जिससे उर्वरकों के कम उपयोग से अधिक पैदावार होती है| मृदा की संरचना बनी रहती है| मृदा में जैविक पदार्थ मौजूद होने के कारण उसकी जल सोखने की क्षमता बढ़ जाती है| मृदा में मौजूद कई तरह के एंजाइम सक्रिय हो जाते हैं जिससे फसलों की पैदावार व गुणवत्ता में वृद्धि होती है|

पोषक तत्वों के मुख्य स्रोत

  1. अकार्बनिक या रासायनिक उर्वरक: इन खादों में एक या  एक से अधिक पोषक तत्व होते हैं जों कि पौधों को तुरंत उपलब्ध हो जाते हैं| अलग-2 फसलों के लिए सही अनुपात में रासायनिक खादों का प्रयोग बहुत अनिवार्य है|

नत्रजन उर्वरक

फास्फोरस उर्वरक

पोटाश उर्वरक

यूरिया नत्रजन (46%)

सिंगल सुपर फास्फेट (16%)

म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (60%)

कैन नत्रजन (25%)

राक फास्फेट: (25%)

  1. जैविक खाद: जैविक पदार्थों में गली सड़ी पत्तियां, टहनियां, फल, फूल तथा जानवरों के मलमूत्र इत्यादि सम्मलित होते हैं| सभी प्रकार के जैविक व्यर्थ जैसे फसलों के अवशेष, खरपतवार इत्यादि भी जैविक पदार्थों के प्रकार हैं| इन पदार्थों को खेतों में डालने से पहले अच्छी तरह से गलाया व सड़ाया जाता ही, जिसे कम्पोस्टिंग कहते हैं|

समृद्ध खाद बनाने की विधि

  • सर्वप्रथम (3x1x1  मीटर) की न्यूनतम आयतन का गड्ढा खोदें| गड्ढे का आकार उपलब्ध भूमि के अनुसार बदला भी जा सकता है|
  • उपलब्ध जैविक अवशेषों जैसे खरपतवार, घासफूस, वृक्षों के पत्ते तथा फसलों आदि को बारीक काट लें|
  • यूरिया (2.8 किलोग्राम) रॉक फास्फेट (5.6 किलोग्राम) ताजा गाय का गोबर (180 किलोग्राम), सिचाई पानी, मिट्टी आदि तैयार रखें| ये मात्रा उपरोक्त आयात के गड्ढे के लिए पर्याप्त है|
  • लगभग 10 किलो गोबर का 10-15 लीटर पानी में घोल बनाएं और पहली परत के रूप में डाल दें|
  • गड्ढे में कटे कार्बनिक अवशेष तथा 200 ग्राम यूरिया + 400 ग्राम रॉक फास्फेट + 10 किलो ताजा गोबर + 10-15 लीटर पानी का घोल बना के 4.5 इंच की परत बना दें|
  • इस प्रकार गड्ढे में गोबर व जीवांश क्रमशः डालें|
  • जब गड्ढा भर जाये तो इसे ऊपर से घासफूस से ढक दें|
  • यह एक महीने के लिए छोड़ दें|
  • इसे खोलें और अच्छी तरह मिलाएं तथा 50-60 लीटर पानी डालें और 15-20 दिन इसी रूप में रखें| जिसके उपरांत, समृद्ध खाद तैयार हो जाएगी|

एक अच्छी जैविक खाद वही होती है जो गहरी भूरे रंग के साथ-साथ भुरभुरी प्रकृति की हो|
क) हरित खाद: हरित खाद के लिए कुछ खास फसलों को उगाया जाता है जिन्हें परिपक्व होने से पहले ही काट दिया जाता है तथा मृदा में मिलाया जाता है| एक दो महीने में सड़ कर जैविक खाद बना देती है| इन फसलों में मुख्यतः वो फसलें आती हैं जो वातावरण से नत्रजन जैसे महत्वपूर्ण तत्व को वायुमंडल से लेकर अपनी जड़ों में स्थिर कर उस खेत में में उगाई जाने वाली अगली फसल को उपलब्ध करवाती है इसके अतिरिक्त हरी खादें भूमि में कार्बनिक पदार्थ की बढ़ोतरी कर भूमि संरचना में महत्वपूर्ण सुधार लाती है| उदाहरणतः घास, सैंसवेनियाँ, इंडिगो ग्वार, सनहैप, हरित खाद के लिए उपयुक्त हैं|

ख)कन्सेन्ट्रेटीड जैविक पदार्थ: जैविक पदार्थों को कुछ विशेष प्रक्रियाओं से गुजारने पर कन्सेन्ट्रेटीड जैविक पदार्थ बनते हैं जिन्हें जैविक खादों के रूप में उपयोग किया जाता है| इनमें  पोषक तत्वों की मात्रा साधारण जैविक पदार्थों से अधिक होती है| इस श्रेणी में मुख्यतः सूखी मछली का चूरा, हड्डियों का चूर्ण, चोकर व खली शामिल हैं|

क)  गोबर खाद: अच्छी गली सड़ी गोबर की खाद की गुणवत्ता भी अच्छी होती है और उसमें पोषक तत्वों की उपलब्धता भी अधिक होती है| यह पशुओं के मलमूत्र तथा उनके विघटन से तैयार की जाती है| एसेमं नत्रजन 0.5-15% फास्फोरस 0.4-0.8%, पोटाश 0.5-19% मात्रा में उपलब्ध होते हैं|

  1. फलीदार पौधे लगाना: खेतों के आस-पास फलीदार पौधे लगाना भी एकीकृत पोषक तत्व प्रणाली का एक अभिन्न अंग है| इन पौधों की जड़ों में गाठें होती हैं जिनमें राईजोबियम बैक्टीरिया होते हैं| इस बैक्टीरिया में वातावरण से नत्रजन की स्थिर करने की क्षमता होती है जिसे पौधे उपयोग करते हैं तथा अपनी नत्रजन की जरूरत को पूरा करते हैं | ल्यूसिनिया इस प्रकार का एक महत्वपूर्ण पौधा है|
  2. जीवांश खादें: इस श्रेणी में मुख्यतः नत्रजन स्थिरीकरण, फास्फोरस परिवर्तनशील सूक्ष्म जीव आते हैं | इन खादों में सूक्ष्म जीवों के सक्रिय एंव सुप्त कोशिकाएं होती हैं| बाजार में कई तरह की जीवांश खादें मौजूद हैं|

क)   राईजोबियम बैक्टीरिया: यह एक सहजीवी नत्रजन स्थिरीकरण सूक्ष्म जीव हैं जो पौधों की जड़ों मने बनी विशेष गांठों में मौजूद होता है| यह बैक्टीरिया मृदा में 25-30 किलोग्राम/हैक्टेयर की दर से नत्रजन मिलाता है|

ख)  ब्लू ग्रीन एल्गी (बी.जी.ए.): जैसे ऐनाबीना, नौस्टोक –ये जीव प्रतिवर्ष 20-30 किलोग्राम/हैक्टेयर की दर से नत्रजन स्थिर करते हैं|

ग)  ऐजोटोबैक्टर: यह बैक्टीरिया मृदा में मौजूदा होता है जो 24-27 किलोग्राम/हैक्टेयर की दर से हर साल नत्रजन स्थिर करता है| इसके अलावा, यह सूक्ष्म जीव कई तरह के पादप वृद्धि हारमोन, विटामिन था कवकरोधी पदार्थ भी स्रावित करता है|

घ)  ऐजोस्पाईरिलम: यह हर साल मृदा में 15-20 किलोग्राम/हैक्टेयर की दर से नत्रजन मिलाता है|

ङ)  माइकोराईजा: माइकोराईजा के प्रयोग से पौधों को पोषक तत्वों की होने वाली उपलब्धता बढ़ जाती है| इन पोषक तत्वों में मुख्यतः फास्फोरस, पोटाश तथा सूक्ष्म पोषक तत्व आते हैं| इसके साथ-साथ जड़ क्षेत्र के आस-पास नत्रजन स्थिरीकरण बैक्टीरिया की संख्या भी बढ़ जाती है|

च) फास्फेट घुलनशील जीव: ये सूक्ष्म जीव मृदा में मौजूद अघुलनशील फास्फेट को घुलनशील अवस्था में परिवर्तित करता है जिससे पौधों के लिए इसकी उपलब्धता बढ़ जाती है| उदाहरणतः रूयुडोमोनास, बैसीलस, एसपरजिलस जैसे सूक्ष्म जीव|

निष्कर्ष

पौधों को संतुलित आहार प्रदान करने हेतु व भूमि की भौतिक, रासायनिक व जैविक गुणवत्ता के लिए एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्धन रणनीतियों का लचीला दृष्टिकोण लागू करना आवश्यक है| अतः कार्बनिक और अकार्बनिक पोषक स्रोतों पर अत्यधिक निर्भरता फसल उत्पादकता और मिट्टी पर्यावरण स्वास्थ्य बनाये रखने में सफल नहीं हो सकती है| एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्धन, तकनीकी रूप से परिपूर्ण, आर्थिक रूप से आकर्षक, व्यावहारिक रूप से सम्भव और पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित होना अनिवार्य है|

स्रोत: मृदा एवं जल प्रबंधन विभाग, औद्यानिकी एवं वानिकी विश्विद्यालय; सोलन

अंतिम बार संशोधित : 3/4/2020



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