तरूण सेब खरपतवारों से पोषण के लिए प्रतिस्पर्धा हेतु बहुत ही वेदनीय होता है। प्रारंभिक वर्षों के दौरान नियमित अन्तरालों पर निराई की जानी चाहिए। हाथ से खरपतवार नष्ट करने के अलावा, नर्सरी एवं फील्ड दोनों में खरपतवार खत्म करने के लिए तृणनाशकों का प्रयोग करने की सिफारिश भी की गई है। नर्सरी में खरपतवारों को नाइट्रोफेन (0.5-1 कि.ग्रा. ए.आई./है0) अथवा सिमाजाइन (0.2-4 कि.ग्रा. ए.आई./है0) के प्री-एमेरजेंस अनुप्रयोग द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। फील्ड में, अट्राजाइन (2-6 कि.ग्रा. ए.आई.है0) अथवा टेरबासिल (1-3 कि.ग्रा. आई./है0) का प्री-एवं-पोस्ट एमेरजेंस अनुप्रयोग खरपतवार आबादी को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करता है। तृणनाशक अनुप्रयोग के बाद मल्चिंग खरपतवार आबादी को नियंत्रित करने का सबसे प्रभावी तरीका है। इन तृणनाशकों के अनुप्रयोग का उत्तम समय वसंत ऋतु की शुरूआत है।
तिनका, फूस, बुरादा, बलूत के पत्तों के साथ मल्चिंग अथवा अन्य जैविक तत्व मिट्टी के खाद-मिट्टी तत्व और इसकी नमी धारण क्षमता में वृद्धि कर देते हैं। विभिन्न प्लास्टिक और पोलीथिन मल्च भी प्रयोग किए जाते हैं। कूलर जलवायु परिस्थितियों में काली अल्काथीन मल्च खरपतवार नियंत्रण और नमी संरक्षण में बहुत प्रभावी है। यह फल गिराव में कमी लाने और फल के आकार, रंग और गुणवत्ता में सुधार लाने में भी मदद करता है।
प्रशिक्षण का उद्देश्य पेड़ के केन्द्र तक अधिकतम सूरज की रोशनी और हवा प्रवेश करवाना है और सूरज की रोशनी पर पत्तों की अधिकतम अनाश्रयता रखना है। यह इस नज़रिये से भी किया जाता है कि इस तरीके से पौधों की संवृद्धि की जाए कि कल्चरल परिचालन अधिकतम कुशलता के साथ तथा कम लागत पर संभव हो जाए। सेबों में अंगीकृत प्रशिक्षण की विभिन्न पद्धतियां निम्नवत् हैं -
इस प्रणाली में, एक तना और पर्याप्त दूरी पर अधीनस्थ शाखाएं होती हैं। केन्द्रीय लीडर शाखा का सिरा प्राय - कट बैक होता है जिसके परिणामस्वरूप स्कफोल्ड लिम्ब्स का विकास होता है। प्रशिक्षण की यह प्रणाली बड़े पेड़ देती है इसलिए छंटाई शिथिल मौसम के दौरान की जाती है।
केन्द्रीय लीडर की भू-स्तर से लगभग 1 मीटर छंटाई की जाती है और 3-5 पर्याप्त दूरी पर स्कफोल्ड शाखाएं रखी जाती हैं। सेकेंडरी स्कफोल्ड शाखाओं को प्राथमिक स्कफोल्ड पर विकसित होने दिया जाता है। फल वाले लेटरल्स प्राथमिक और सेकेंडरी दोनों स्क्फोल्ड शाखाओं पर उगते हैं। चूंकि पेड़ का केन्द्र खुला होता है, इसलिए अधिक प्रकाश प्रवेश करता है तथा हवा इस प्रकार फलों की गुणवत्ता तथा रंग में सुधार करती है।
यह केन्द्रीय लीडर तथा ओपन सेन्टर प्रणाली के बीच मध्यवर्ती है। प्रारंभ में 3-4 वर्षों के लिए पेड़ को तब तक केन्द्रीय लीडर प्रणाली जैसे बढ़ने दिया जाता है जब तक केन्द्रीय लीडर के चारों ओर 6 से 8 स्क्फोल्ड शाखाएं विकसित नहीं हो जाती हैं। तब केन्द्रीय लीडर को ओपन प्रणाली में खुले पेड़ का केन्द्र रखते हुए केन्द्रीय एक्सिस से काटा जाता है। इस प्रकार के प्रशिक्षण में, पेड़ कठोर कांटों के साथ पर्याप्त दूरी पर लिम्बस विकसित करता है। चूंकि पेड़ों का ऊपरी हिस्सा खुला होता है, इसलिए पेड़ की कनोपी के भीतर गहराई तक सूर्य प्रकाश भेदन होता है।
छंटाई एक बहुत महत्वपूर्ण पद्धति है जो पेड़ सत्व और उत्पादकता को बढ़ावा देती है। छंटाई फलदार शाखाओं की ओर सैप फ्लो विपथन को ध्यान में रखकर किया जाता है और पौधों को अधिक फल वहन करने के लिए शक्ति देता है। अथवा जोरदार वानस्पतिक वृद्धि को प्रवृत्त करता है। छंटाई के दौरान, कमजोर तथा विकृत शाखाओं को पेड़ से काट दिया जाता है। आमतौर पर, पेड़ों की छंटाई प्रत्येक वर्ष दिसम्बर-जनवरी माह में की जाती है। सेब की बागवानी में अंगीकृत छंटाई की प्रणालियां नीचे दी गई हैं -
इस छंटाई का उद्देश्य फलों के उत्पादन के लिए स्थायी फल स्पर विकसित करना है। किनारों पर स्परों की बनावट सुनिश्चित करने के लिए केन्द्रीय लीडर के निकट कठोर सीधे किनारों के साथ प्रत्येक वर्ष कट बैक किया जाता है। इससे स्परों की बनावट के लिए बृहत् कोण वाले मजबूत किनारे बनते हैं।
विनियमित ऊँटाई का अभ्यास सामान्य तौर पर सेमी-ड्राफिंग तथा मजबूत जड़ों पर उगने वाले सेब कलटिवरों पर किया जाता है। पौधरोपण से पहले, पेड़ का केन्द्रीय लीडर 75 से.मी. पर कट बैक किया जाता है जिसपर तीन पर्याप्त दूरी पर प्राथमिक शाखाएं उगने दी जाती हैं। बियरिंग पेड़ों में, लीडर और मजबूत किनारों की वृद्धि कमजोर तथा गुच्छेदार शाखाओं की छंटाई करते हुए प्रोत्साहित की जाती है।
स्थायी स्परों को विकसित करने की बजाय मजबूत किनारों में, इसका उद्देश्य नई स्वस्थ टहनियों, स्परों और शाखाओं की प्रत्येक वर्ष लगातार वृद्धि को प्रोत्साहित करना है। नई टहनी वृद्धि पर आगामी वर्ष में फलों का उत्पादन करने के लिए पेड़ के एक हिस्से की प्रतिवर्ष इँटाई की जाती है, जबकि बिना ऊँटाई किए गए हिस्से फल अंकुरों का उत्पादन करते हैं।
फल गुणवत्ता विनियमित करने के लिए थिनिंग एक प्रमुख तकनीक है। सेबों में, भारी बियरिंग से न केवल छोटे आकार के कम गुणवत्ता वाले फल होते हैं अपितु वैकल्पिक बियरिंग चक्र में भी सैट होते हैं। फल विकास की उचित अवस्था पर की गई विवेकशील थिनिंग फसल को विनियमित कर सकती है और फल आकार तथा गुणवत्ता में सुधार कर सकती है। चूंकि मैनुअल थिनिंग जटिल और खर्चीली होती है, इसलिए रसायन थिनिंग की जाती है। थिनिंग में प्रयुक्त रसायन एवं उनके सान्द्रण तथा अनुप्रयोग की अवस्था निम्नवत् हैं –
रसायन
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मात्रा (पीपीएम)
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अवस्था
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एनएए
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10-15
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पत्ती गिरने के बाद 4 सप्ताह में पूर्ण पुष्पण
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एनएएएम
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20-100
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पत्ती गिरना
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2, 4, 5-टी
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2-10 |
पूर्ण पुष्पण से पत्ती गिरने तक
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केबराइल/सेविन |
1,000-2,000 |
पत्ती गिरने के बाद चार सप्ताह पत्ती गिरना |
डीएनओसी
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1,000-2,000
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पूर्ण पुष्पण
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(आईसीएआर - भारत में फसल विज्ञान अनुसंधान के 50 वर्ष, 1996)
बहुत ही गरम तथा शुष्क परिस्थितियों में रसायन थिनरों का अनुप्रयोग नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि यह आमेलन को प्रतिकूलत - प्रभावित करती है। कई बार रसायन थिनिंग से कैल्शियम की कमी हो जाती है इसलिए थिनिंग के बाद पर्याप्त कैल्शियम पोषण भी इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
स्रोत: भारत सरकार का राष्ट्रीय बागवानी बोर्डअंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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