सेब पपड़ी पत्तों और फलों दोनों को प्रभावित करती है। फल-स्परों पर उगने वाले पत्तों की निचली सतह पर बिखरे हुए, गोलाकार भूरे या जैतूनी-हरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। प्रारंभ में लीशन पत्ते के बड़े हिस्से को कवर करता है जोकि समय से पहले पत्तों के पीला होने, पतझड़ और फल गिरने का प्रमुख कारण है। मौसम के शुरूआत में, ये धब्बे प्राय - ब्लासम एंड (केलिक्स एंड) के चारों ओर विकसित होते हैं और बाद में फल की सतह पर कहीं भी पाए जाते हैं। दरारें प्रायः खरंडदार क्षेत्रों में विकसित होते हैं, जोकि अन्य रोगजनकों, फल की सड़ांध को प्रवेश करने देते हैं।
रोग का नियंत्रण
पपड़ी रोग के प्रभावी नियंत्रण के लिए अनुशंसित छिड़काव समयसारिणी निम्न प्रकार है –
अवस्था
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फफूदनाशी/100 लिटर पानी |
सिल्वर टिप-ग्रीन टिप |
मेनकोजेब (400 ग्रा.)/कपटन (300 ग्रा.) |
पिंक बड |
कोन्टाफ (30 मि.ली.)/बेकोर (50 ग्रा.) |
पेटल फाल |
बेविस्टिन (50 ग्रा.)/टोपसिन एम (50 ग्रा.) |
पी स्टेज़ |
मैनकोजेब (300 ग्रा.)/कपटन (300 ग्रा.) |
फल विकास |
बेविस्टिन + मैनकोज़ेब (25+250 ग्रा.) |
कटाई से 15-20 दिन पहले |
मैनकोजेब (300 ग्रा.) |
पत्ते गिरने से पहले |
यूरिया (5 कि.ग्रा.) |
(आईसीएआर - 50 इयर्स ऑफ क्रॉप साइंस रिसर्च इन इंडिया, 1996)
यह रोग बैक्टीरिया की वजह से होता है। इसके लक्षण संक्रमित पौध भागों पर भिन्न-भिन्न प्रकार के अग्नि जैसे निशान दिखाई देते हैं। नई टहनियां संक्रमण के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होती हैं। भूरा हुए बिना टहनी के सिरों का शिथिलन और मुरझाना। सुनहरे रंग के जिवाणुकीय गाद का स्राव स्टेम पर देखा जाता है। फलों में परिगलित धब्बे और रिसने वाले जरब फलों की सतह की बाहरी परत पर देखे जा सकते हैं।
रोग का नियंत्रण
दुष्प्रभावित पेड़ और पोषक (होस्ट) पौधे एकत्र किए जाने चाहिएं और आग-क्षति की घटना को ध्यान में रखते हुए तत्काल जला दिया जाना चाहिए। सेब के वसंत पुष्पन में संक्रमण को स्ट्रेपटोमाइसिन के छिड़काव से नियंत्रित किया जा सकता है।
पाउडरी माइल्डयू एक गंभीर रोग है जो कलियों, नई टहनियों और पत्तों को प्रभावित करता है। यह रोग शुष्क जलवायु में दिखाई देता है। नर्सरी पौधों को यह रोग अधिक होता है। इस रोग को पत्तों के दोनों सिरों पर धब्बों में सफेद पाउडरी (राख जैसा) परत की मौजूदगी और तरूण टहनियों द्वारा वर्णन किया जा सकता है। प्रभावित पत्ते पीले और मुड़ जाते हैं। प्रभावित टहनियां कमजोर और अपरिपक्व रह जाती हैं। गंभीर संक्रमण के मामले में, पतझड़ और समय से पहले फल गिर सकते हैं। तरूण संक्रमित फल गेरूआपन का संकेत दर्शाता है।
रोग का नियंत्रण
रोग होने की घटनाओं को छंटाई करके और प्रभावित पौध हिस्सों को नष्ट करके कम किया जा सकता है। नर्सरियों में, 7 दिनों के अंतराल पर बेलिटन (500 पीपीएम) का तरूण अंकुरों पर छिड़काव इस रोग को नियंत्रित करता है। क्षेत्र में, कवकनाशी छिड़काव प्रभावित पौध हिस्सों की छंटाई के बाद किया जाना चाहिए। फसल पर सल्फर (0.3 प्रतिशत) अथवा कारबेनदाजिम (0.05 प्रतिशत) अथवा काराथेन (0.05 प्रतिशत) का छिड़काव रोग को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करता है।
यह एक शारीरिक विकार है जो फल की ताज़ा बाज़ार गुणवत्ता कम कर देता है। तरूण पेड़ जो अभी आए ही होते हैं वे अधिक अतिसंवेदनशील होते हैं। अपरिपक्व फल सही परिपक्वता अवस्था में कटाई किए गए फलों की अपेक्षा अधिक अतिसंवेदनशील होते हैं ।
व्यास में 2-10 मि.मी. के छोटे भूरे घाव (कटाई करने वाले पर निर्भर करता है) फल के फ्लेश में विकसित होते हैं। त्वचा के नीचे के टिश्यू गहरे और कॉर्की हो जाते हैं। फसल-कटाई पर अथवा भंडारण में एक अवधि के बाद, त्वचा सतह पर डिप्रेस्ड धब्बे विकसित करती है। ये धब्बे ऐसे होते हैं जैसे कालेक्स के निकट त्वचा पर पानी से भीगे धब्बे दिखाई देते हैं। ये धब्बे सामान्यत - गहरे हो जाते हैं, आसपास की त्वचा की अपेक्षा अधिक धंस जाते हैं और भंडारण में एक अथवा दो माह के बाद पूरी तरह विकसित होते हैं।
नियंत्रण - फसल-कटाई से पहले कैल्शियम का छिड़काव करने और भंडारण से पहले कैल्शियम में डुबोने से बिटर पिल की घटना नियंत्रित होती है। 15 दिनों के बाद छिड़काव दोहराते हुए फसल-कटाई से 45 दिन पहले पौधों पर छिड़काव किया जाना चाहिए। मिनट के लिए 2-1 कटाई उपरांत डुबकी भंडारण से पहले दी जानी चाहिए।
यह शारीरिक विकार बड़े और अधिक परिपक्व फलों के साथ जुड़ा हुआ है। यह तब भी हो सकता है जब भंडारण में सीओ2 सान्द्रता से अधिक %1बढ़ जाती है। लक्षण फ्लैश में, सामान्यत: मूल में अथवा केन्द्र के निकट, भूरे डिस्क्लरेशन रूप में दिखाई देते हैं। ब्राउन क्षेत्र सुपरिभाषित मार्जिन हैं और शुष्कन की वजह से विकसित शुष्क कैविटी हो सकती हैं। त्वचा के बिल्कुल नीचे छोड़ते हुए स्वस्थ सफेद फ्लेश के मार्जिन के साथ भूरे फ्लेश के छोटे धब्बे से फ्लेश के सम्पूर्ण भूरेपन तक लक्षण सीमा है। लक्षण भंडारण में जल्द ही विकसित हो जाते हैं और विस्तारित भंडारण समय के साथ तीव्रता में वृद्धि भी हो सकती है।
नियंत्रण - अति-परिपक्व फलों की फसल काटने से बचा जाना चाहिए। नियंत्रित वातावरण (सीए) में भंडारण के मामले में, फलों की फसल-कटाई सर्वोत्तम रूप से परिपक्व होने पर ही करनी चाहिए। सीए में सीओ 2 सांद्रता ब्राउन हार्ट घटना के विकास को कम करने के लिए 1 प्रतिशत से कम होनी चाहिए।
इस शारीरिक विकार के प्रारंभिक लक्षण प्रभावित भूरे धब्बे के ऊपर फल की त्वचा पर छोटे ब्लशड क्षेत्र रूप में दिखाई देते हैं। प्रभावित ऊतक सामान्य तौर पर स्वस्थ्य ऊतक से अधिक सख्त होते हैं। कॉर्क स्पॉट के विकास के लिए बोरान और कैल्शियम की कमी समय-समय पर पाई जाती है।
नियंत्रण - उचित पोषक तत्व प्रबंधन, विशेष रूप से बोरान और कैल्शियम इस विकार को रोकने में मदद करता है।
यह शारीरिक विकार सेब उत्पादकों के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। इस भंडारण विकार की अतिसंवेदनशीलता सेब की किस्म, वातावरण और सांस्कृतिक पद्धतियों के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है। घटना और स्काल्ड की गंभीरता में गर्मी, फसल-कटाई से पहले शुष्क मौसम, फसल-कटाई पर अपरिपक्व फल, फल में अधिक नाइट्रोजन और कम कैल्शियम सांद्रता का योगदान होता है। भंडारण कक्षों अथवा पैकेजिंग बॉक्सों में अपर्याप्त वेंटिलेशन से भी यह विकार होता है। कोल्ड स्टोरेज से हटाने के बाद फल के गरम होने की वजह से 3 से 7 दिनों के भीतर मृत त्वचा के अनियमित भूरे रंग के धब्बे विकसित हो जाते हैं। गरम तापमान स्काल्ड का कारण नहीं होता है परन्तु लक्षणों को पूर्व चोट, जो कोल्ड स्टोरेज के दौरान लगी हो, से विकसित होने की अनुमति देते हैं। लक्षण कोल्ड स्टोरेज में दृश्य हो सकते हैं जब चोट गंभीर हो।
नियंत्रण - उचित परिपक्वता पर फसल-कटाई और कोल्ड स्टोरेज में वेंटिलेशन से स्काल्ड घटना को कम करने में मदद मिलती है।
स्काल्ड को नियंत्रित करने की सर्वाधिक सामान्य पद्धति फसल-कटाई के तत्काल बाद एंटीऑक्सीडेंट का प्रयोग है। डिफेनिलमाइन (डीपीए) का आमतौर पर प्रयोग किया जाता है। इथोक्सिक्विन भी कुछ किस्मों के लिए प्रभावशाली है, परन्तु अन्य सेब की किस्मों के लिए नुकसान का कारण बन सकता है। अधिकतम नियंत्रण के लिए फसल-कटाई के एक सप्ताह के भीतर एंटीऑक्सीडेंट का अनुप्रयोग किया जाना चाहिए।
यह शारीरिक विकार फल के अनुपात में अधिक पत्तों, फलों में नाइट्रोजन तथा बोरान के अधिक स्तरों, फल कैल्शियम के कम स्तर, अधिक विरलन, और अधिक तापमान पर फलों की अनाश्रयता से अधिक होते हैं। बड़े आकार के फल इस प्रकार के विकार के प्रति अधिक अतिसंवेदनशील होते हैं। फसल-कटाई से पहले की अवस्था में विकार से फ्लेश में पानी से भीगे हुए क्षेत्रों का विकास होता है। ये क्षेत्र सख्त होते हैं, दिखने में उलासी होते हैं और बाह्य रूप में ही दृश्य होते हैं। जब संक्रमण बहुत गंभीर होता है। अधिकतर प्रभावित फलों से बदबू आती है और किण्वित स्वाद होता है। पानी से गीले क्षेत्र केन्द्र के निकट अथवा सम्पूर्ण सेब पर पाए जाते हैं। यदि लक्षण परिवर्तन में मन्द हों तो वे भंडारण पूरी तरह समाप्त हो सकते हैं।
नियंत्रण - इस घटना को कम करने के लिए सबसे प्रभावी तरीका विलंबित फसल-कटाई से बचना है। जैसे फल परिपक्वता अवस्था में पहुंच जाते हैं, जल कोर विकास के लिए फल के नमूनों की जांच की जानी चाहिए। बड़े पैमाने पर जल कोर का विकास होने से पहले फल की फसल-कटाई कर लेनी चाहिए। गंभीर जल कोर लक्षणों को मॉडरेट करने के साथ फल ढेरों को नियंत्रित वातावरण (सीए) स्टोरेज़ में नहीं रखा जाना चाहिए परन्तु शीघ्रता से विपणन किया जाना चाहिए।
यह शारीरिक विकार सूर्य की तीव्र गर्मी के कारण होता है। आमतौर पर पेड़ के दक्षिण-पश्चिम दिशा में फल प्रभावित होते हैं। पानी स्ट्रेस भी सन बर्न की घटना में वृद्धि करता है। सूर्य की गर्मी के कारण फलों पर सफेद, भूरे अथवा पीले धब्बे पड़ना प्रारंभिक लक्षण हैं। ये क्षेत्र स्पंजी और पैंसे हुए हो सकते हैं। फसल-कटाई के बाद सूर्य की गर्मी के कारण फल अधिक सनबर्न हो सकते हैं।
नियंत्रण - नियंत्रण की उत्तम पद्धति तीव्र गर्मी और सौर-विकिरण से फल को अचानक धूप में पड़ने से बचाना है। उचित पेड़ प्रशिक्षण और छंटाई महत्वपूर्ण होती हैं। अत्यधिक सनबर्न से बचने के लिए गर्मी में छंटाई अवश्य ध्यानपूर्वक की जानी चाहिए। छंटाई किए गए बगीचों में गर्मी के दबाव को कम करने के लिए नियमित रूप से सिंचाई की जानी चाहिए। एक बार घाव हो जाने पर प्रभावित फल को पैकेजिंग किए जाने के समय हटाने के लिए ध्यानपूर्वक अलग-अलग करना ही एकमात्र समाधान है।
आद्र वातावरण में सेबों का गेरूआपन फल उत्पादकों की एक प्रमुख चिंता है। पत्ते गिरने के शीघ्र बाद ही गेरूआपन हो जाता है। सेब केल्टिवर्स, जिनकी बारीक उपत्वचा होती है, गेरूआपन के प्रति अधिक अतिसंवेदनशील होते हैं। यह आमतौर पर छाया में रखे फलों की अपेक्षा अनावृत में रखे फलों पर देखा जाता है। पुष्प पुंज के दौरान अथवा प्रारंभिक फल रचना अवस्था में पाला पड़ना भी गेरूआपन का कारण हो सकता है। गेरूआपन से फल की त्वचा फटने और दरारें विकसित होने लग जाती हैं।
नियंत्रण - कम अतिसंवेदनशील क्लोनों का चयन करके तथा पर्याप्त सिंचाई, खाद डालने और प्रभावी कीट प्रबंधन से गेरूआपन कम किया जा सकता है।
सेब की अधिकांश वाणिज्यिक किस्में फल गिराव के 3 चक्र अर्थात् प्रारंभिक गिराव, जून गिराव और फसल-कटाई पूर्व गिराव प्रदर्शित करती हैं। प्रारंभिक गिराव प्राकृतिक माना जाता है और परागण की कमी तथा फल होड़ के कारण होता है। नमी दबाव और पर्यावरणीय परिस्थितियां जून गिराव के कारण हैं। इन दो गिरावों से न तो अधिक आर्थिक नुकसान होते हैं और न ही कृत्रिम साधनों द्वारा प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है। फसल-कटाई पूर्व गिराव से गंभीर आर्थिक हानि होती है क्योंकि पूर्णत - विकसित विपणन-योग्य फल ऑक्सिन्स के स्तरों में कटौती के कारण फसल-कटाई से पहले एब्सिाइस हो जाते हैं।
नियंत्रण - फसल-कटाई पूर्व गिराव संभावित फल गिराव से 20 दिन पहले अथवा फसल-कटाई के 20-25 दिन पहले एनएए (15 पीपीएम) का छिड़काव करके नियंत्रित किया जा सकता है।
स्रोत: भारत सरकार का राष्ट्रीय बागवानी बोर्डअंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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