भारतवर्ष में पान की खेती अलग.-2 क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकार से की जाती है जैसे-दक्षिण भारत में जहां वर्षा अधिक होती है तथा आर्द्रता अधिक होती है, में पान प्राकृतिक परिस्थितियों में किया जाता है। इसी प्रकार आसाम तथा पूर्वोत्तर भारत में जहां वर्षा अधिक होती है व तापमान सामान्य रहता है, में भी पान की खेती प्राकृतिक रूप में की जाती है। जबकि उत्तर भारत में जहां कडाके की गर्मी तथा सर्दी पडती है, में पान की खेती संरक्षित खेती के रूप में की जाती है। इन क्षेत्रों में पान का प्राकृतिक साधनों (बांस,घास आदि) का प्रयोग कर बरेजों का निर्माण किया जाता है तथा उनमें पान की आवश्यकतानुसार नमी की व्यवस्था कर बरेजों में कृत्रिम आर्द्रता की जाती है, जिससे कि पान के बेलों का उचित विकास हो सके।
अच्छे पान की खेती के लिये जलवायु की परिस्थितियां एक महत्वपूर्ण कारक हैं। इसमें पान की खेती के लिये उचित तापमान,आर्द्रता,प्रकाश व छाया,वायु की स्थिति,मृदा आदि महत्तवपूर्ण कारक हैं। ऐसे भारतवर्ष में पान की खेती देश के पश्चिमी तट,मुम्बई का बसीन क्षेत्र, आसाम,मेघालय, त्रिपुरा के पहाडी क्षत्रों, केरल के तटवर्तीय क्षेत्रों के साथ-साथ उत्तर भारत के गर्म व शुष्क क्षेत्रों, कम वर्षा वाले कडप्पा, चित्तुर, अनन्तपुर (आ0प्र0) पूना, सतारा, अहमदनगर (महाराष्ट्र),बांदा, ललितपुर, महोबा (उ0प्र0) छतरपुर (म0प्र0) आदि क्षेत्रों में भी सफलतापूर्वक की जाती है। पान की उत्तम खेती के लिये जलवायु के विभिन्न घटकों की आवश्यकता होती है। जिनका विवरण निम्न है-
पान का बेल तापमान के प्रति अति संवेदनशील रहता है। पान के बेल का उत्तम विकास उन क्षेत्रों में होता है, जहां तापमान में परिवर्तन मध्यम और न्यूनतम होता है। पान की खेती के लिये उत्तम तापमान 28-35 डिग्री सेल्सियस तक रहता है।
पान की खेती के लिये अच्छे प्रकाश व उत्तम छाया की आवश्यकता पडती है। सामान्यतः 40-50 प्रतिशत छाया तथा लम्बे प्रकाश की अवधि की आवश्यकता पान की खेती को होती है। इसका मुख्य कारण पान की पत्तियों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया कर नियमित होना होता है।अच्छे प्रकाश में पान के पत्तों के क्लोरोफिल का निर्माण अच्छा होता है। फलतः पान के पत्ते अच्छे होते हैं व उत्पादन अच्छा होता है।
अच्छे पान की खेती के लिये अच्छे आर्द्रता की आवश्यकता होती है। उल्लेखनीय है कि पान बेल की बृद्वि सर्वाधिक वर्षाकाल में होती है, जिसका मुख्य कारण उत्तम आर्द्रता का होना है। अच्छे आर्द्रता की स्थिति में पत्तियों में पोषक तत्वों का संचार अच्छा होता है। तना, पत्तियों में बृद्वि अच्छी होती है, जिससे उत्पादन अच्छा होता है।
उल्लेखनीय है कि वायु की गति वाष्पन के दर को प्रभावित करने वाली मुख्य घटक है। पान के खेती के लिये जहां शुष्क हवायें नुकसान पहुंचाती है, वहीं वर्षाकाल में नम और आर्द्र हवायें पान की खेती के लिये अत्यन्त लाभदायक होती है।
पान की अच्छी खेती के लिये महीन हयूमस युक्त उपजाऊ मृदा अत्यन्त लाभदायक होती है। वैसे पान की खेती देश के विभिन्न क्षेत्रों में बलुई, दोमट, लाल व एल्युबियल मृदा व लेटैराईट मृदा में भी सफलतापूर्वक की जाती है। पान की खेती के लिये उचित जल निकास वाले प्रक्षेत्रों की आवश्यकता होती है। प्रदेश में पान की खेती प्रायः ढालू व टीलेनुमा प्रक्षेत्रों पर जहां जल निकास की उत्तम व्यवस्था हो, में की जाती है। पान की खेती के लिये 7-7.5 पी0एच0 मान वाली मृदा सर्वोत्तम है।
देश में पान की खेती अलग-2 क्षेत्रों में कई विधियों से की जाती है। जेसे- तटवर्तीय क्षेत्रों में नारियल व सुपारी के बागानों में, जबकि दक्षित भारत में पान की खेती खुली संरक्षण शालाओं में की जाती है। जबकि उत्तर भारत में पान की खेती बंद संरक्षण शालाओं में की जाती है, जिसे ”बरेजा या भीट“ के नाम से जाना जाता है।
नोट:- उत्तर भारत में जलवायु गर्म व शुष्क होती है, जहां पान की खेती बंद संरक्षणशालाओं ”बरेजों में“ की जाती है। इन क्षेत्रों में बरेजों का निर्माण एक विशेष प्रकार से बनाया जाता है। बरेजा निर्माण में मुख्य रूप से बांस के लटठे,बांस, सूखी पत्तियों, सन व घास, तार आदि के माध्यम से किया जाता है।
स्त्रोत- अनिल कुमार श्रीवास्तव जिला उद्यान अधिकारी, महोबा,पत्र सूचना कार्यालय,नई दिल्ली
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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