অসমীয়া   বাংলা   बोड़ो   डोगरी   ગુજરાતી   ಕನ್ನಡ   كأشُر   कोंकणी   संथाली   মনিপুরি   नेपाली   ଓରିୟା   ਪੰਜਾਬੀ   संस्कृत   தமிழ்  తెలుగు   ردو

एरल्स्ट्रोमेरिया

एल्स्ट्रोमेरिया के फूल अति सुंदर एवं लुभावने होने के कारण बगीचे तथा घरों में सुन्दरता के लिए बहुत ही पसंद किए जाते हैं। इसे आमतौर पर पेरू लिली, इंका लिली या ब्राजील तोता लिली के नाम से जाना जाता है। एल्स्ट्रोमेरिया के फूल लम्बी शाखा पर गुच्छों में हरी चमकीली पत्तियों के साथ अत्यंत सुंदर और मनमोहक लगते हैं तथा विभिन्न रंगों जैसे लाल, गुलाबी, पीला, नारंगी, ताम्र से युक्त चित्तीदार खिलते हैं। एल्स्ट्रोमेरिया को ज्यादातर कट-फ्लावर के लिए उगाया जाता हैं। भारत में इसकी खेती बंगलोर, नीलगिरी, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, इत्यादि जगहों में सफलता पूर्वक की जा सकती है। इसके पौधों को क्यारियों, गमले, ग्रीन हाउस में उगा कर अच्छे फूल प्राप्त किये जा सकते हैं।

एल्स्ट्रोमेरिया कुल में लगभग 60 जातियाँ पाई जाती है, जिनका उत्पति स्थान दक्षिण अमेरिका माना जाता है। एल्स्ट्रोमेरिया अरुणटिका, एल्स्ट्रोमेरिया ब्रेसिलेन्सिस, एल्स्ट्रोमेरिया कोम्पेनिफ्लोरा, एल्स्ट्रोमेरिया क्रायोफाइला, एल्स्ट्रोमेरिया हुकेरी, एल्स्ट्रोमेरिया लिगटू, ए. पेलीग्रीना, ए. पुलचेला, ए. स्पेथुलाटा, ए. वरसीक्लर, ए. वायालेसिया इत्यादि जातियों को फूल उत्पादन के लिए लगाया जाता है।

जलवायु

एल्स्ट्रोमेरिया के पौधे हल्की-ठंडी, और आंशिक छायादार जगह में अच्छे बढ़ते हैं तथा फूल उत्पादन भी अच्छा होता है। शीतोष्ण और नम समशीतोष्ण जलवायु में इसकी अच्छी खेती होती है। पौधे की वृद्धि और पुष्पण तापमान एवं प्रकाश के दीप्तिकाल  दोनों से प्रभावित होते हैं। इसके पौधे के लिए जाड़े में 10-120 सेंटीग्रेट तापमान तथा पुष्पण के समय 14-160 C तापमान रहने पर अच्छी संख्या में एवं गुणवत्ता के फूल प्राप्त होते हैं। ग्रीन हाउस में रात एवं दिन का तापमान 150 से 180 सेंटीग्रेट फूल उत्पादन के लिए अच्छा होता है। गर्मियों में जब हवा का तापमान 300 सें. तथा मिट्टी का तापमान 180 सें. से बढ़ जाता है तो एल्स्ट्रोमेरिया के पौधे प्रसुप्त अवस्था में प्रवेश कर जाते है।

उन्नत किस्म

एल्स्ट्रोमेरिया के फूल विभिन्न रंगों में पाये जाने के कारण अत्यंत ही सुंदर तथा मनमोहक लगते हैं। कुछ महत्वपूर्ण किस्म का विवरण इस प्रकार हैं:

रंग

किस्म

लाल

:

रेड सनसेट, वेलेन्ट, चारमेन, किंग कारडिनल इत्यादि।

गुलाबी

:

ट्राइडेंट, रीटो, ओलम्पिक, फिओना, कैपीटॉल, वेरोनिका, पिंक ट्रिम्फ।

सफेद

:

मोनालीसा, अमान्डा, वाइट विनास।

पीला

:

फ्रेंडशिप, इलेनर, आर्किड, जेब्रा केनेरिया, येल्लो किंग।

नारंगी

:

सनराइज, हेलींक्वीन।

लाल बैंगनी

:

सनस्टार, पर्पल ज्वाय, मारीना।

ताम्ब्र

:

बटर स्काचा

सेल्मोन

:

एटलस

लेवेंडर

:

जुबली, जुपीटर, बटर फ्लाई, बारबेरा।

मिट्टी

फूल उत्पादन के लिए मिट्टी जैविक पद्धार्थ से भरपूर, उपजाऊ, दोमट, नमीधारक वाली होनी चाहिए। मिट्टी का पी.एच. मान 6-7 होना चाहिए। खेती के लिए मिट्टी के मिश्रण में दोमट मिट्टी, पत्ती खाद एवं बालू प्रयोग में लाना चाहिए जिससे पौधे में वायु संचार, नमी, पोषक तत्व समुचित मात्रा में मिले तथा पौधे का विकास अच्छा हो।

प्रसारण

एल्स्ट्रोमेरिया का प्रसारण साधारणत: राइजोम (कंद) द्वारा किया जाता है, लेकिन बीज द्वारा प्रसारण विभिन्न किस्मों तथा पौध की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसका प्रसारण पौधे के गुच्छों के बिभाजन, राइजोम के विभाजन और उत्तक संवर्धन द्वारा किया जता है।

(1) बीज: इसके बीज को पूर्ण रूप से फूल में पकने के तुरन्त बाद क्यारियों में अंकुरण के लिए डाल देना चाहिए। जब पौधे बढ़ जाते हैं तो उनके कंद को बिना नुकसान पहुंचाए खेतों में या ग्रीन हाउस में लगा दिया जाता है।

(2) राइजोम: दो साल से ज्यादा पुराने राइजोम (कंद) को काट कर छोटे-छोटे टुकड़े कर लिए जाते हैं जिसमें 2-3 आँखें होनी चाहिए। इन टुकड़ों को रुटेक्स पाउडर से उपचारित कर लगा दिया जता है। यह कार्य मई-अगस्त और फरवरी माह में किया जाता है। नए पौधे तैयार हो जाने पर उसे खेत में या ग्रीन हाउस में खेती के लिए उपयोग में लाया जाता है।

(3) उत्तक संवर्धन: प्रयोगशाला में राइजोम के अग्र भाग से उत्तक निकाल कर पौधे तैयार करते हैं, जो रोग मुक्त होने के साथ-साथ मातृ गुणों से भरपूर होते हैं। उत्तक संवर्धन द्वारा ज्यादा संख्या में पौधे बनते है।

पौधा लगाने का समय

अच्छी किस्म के कंद को प्रति लीटर पानी में विटावैक्स दवा 1 ग्राम के बने घोल से उपचारित कर सितम्बर से दिसम्बर महीने में लगाने से फूल अच्छे खिलते हैं।

पौधे की दूरी

भारत में पौधे को 50 X 50 सें.मी. या 40 X 40 सें.मी. दूरी पर लगाने से पुष्प उत्पादन अच्छा होता है तथा अन्य कृषि क्रियाएँ करने में सुविधा होती है।

खाद एवं उर्वरक

खाद एवं उर्वरक का प्रयोग मिट्टी जाँच के आधार पर करना चाहिए जिससे कि पौधे का विकास अच्छा हो तथा फूल अच्छी गुणवत्ता के खिलें। प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र में 2-3 किलो गोबर की सड़ी खाद, 10 ग्राम नाइट्रेजन, 10 ग्राम फास्फोरस, 15-25 ग्राम पोटाश का व्यवहार करना चाहिए। सूक्ष्म पोषक तत्व कैल्सियम, मैग्निशियम, लोहा, मैंगनीज, जस्ता, बोरन और ताम्बा के मिश्रण का प्रयोग 5-10 ग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से खेत में करना चाहिए।

बीमारियाँ एवं रोकथाम

(1) मुर्झा रोग: यह रोग के लगने से पौधा मुर्झाने लगता है। इसकी रोकथाम के लिए कंद को वेवस्टीन दवा 2 ग्राम/ली. पानी में घोलकर उपचारित कर लगाना चाहिए।

(2) वायरस: यह रोग लाही/माहु कीट द्वारा फैलता है। रोग ग्रस्त पौधों को उखाड़ कर जला देना चाहिए तथा लाही की रोकथाम के लिए मैलाथियान दवा को 1.5 मि.ली./ली. पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।

(3) कंद सड़न: इस रोग के लगने से कंद सड़ जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए ब्लाइटाक्स-50 दवा 4 ग्राम/ली. पानी में घोल कर घोल से जमीन को तरबतर करना चाहिए तथा छिड़काव करना चाहिए।

कीट एवं रोकथाम

(1) लाही: यह नन्हा कीट पौधे का रस चूस कर वायरस को फैलाता है। इसकी रोकथाम के लिए मैलाथियान दवा को 1.5 मि.ली./ली. पानी में घोल कर छिड़काव 10 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए।

(2) लीफ माइनर: यह पत्तियों में सुरंग बनाकर पत्तियों को अंदर से खाता है, जिससे पत्तियों पर सफेद रंग की धारियाँ दिखाई देती हैं। इसकी रोक थाम के लिए मिथाइल पाराथियान दवा को 1 मि.ली./ली. पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।

(3) निमेटोड: यह कीट कंदों को खाकर उसे सड़ा देता है। इसकी रोकथाम के लिए प्रति वर्ग मीटर में 2-3 ग्राम थाइमेट या एल्डिकार्व दवा के दानों का प्रयोग मिट्टी में करना चाहिए।

उपज

प्रति वर्ग मीटर में औसतन 240-250 फूल की डंडियाँ प्राप्त होती हैं। फूलों की बिक्री 10 या 20 के गुच्छे में बाँध कर करनी चाहिए।

फूलदान जीवन

फूलों को काटने के बाद उसे फूलदान में सजावट के लिए रखा जाता है। फूलदान में 2% सुक्रोज तथा 100-500 पीपीम सिल्वर थायोसल्फेट के घोल में रखने से फूल ज्यादा दिनों तक तरो-ताजा बने रहते हैं।

 

स्त्रोत: रामकृष्ण मिशन आश्रम, दिव्यायन कृषि विज्ञान केंद्र, राँची।

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



© C–DAC.All content appearing on the vikaspedia portal is through collaborative effort of vikaspedia and its partners.We encourage you to use and share the content in a respectful and fair manner. Please leave all source links intact and adhere to applicable copyright and intellectual property guidelines and laws.
English to Hindi Transliterate