অসমীয়া   বাংলা   बोड़ो   डोगरी   ગુજરાતી   ಕನ್ನಡ   كأشُر   कोंकणी   संथाली   মনিপুরি   नेपाली   ଓରିୟା   ਪੰਜਾਬੀ   संस्कृत   தமிழ்  తెలుగు   ردو

झारखण्ड में तेजी से बढ़ने वाली पेड़ों की किस्में

झारखण्ड में तेजी से बढ़ने वाली पेड़ों की किस्में

  1. पेड़ों की किस्में
    1. एकेशिया औरीक्यूलीफोरमिस (बंगाली बबूल)
    2. एकेशिया मैंगियम
    3. एकेशिया मियरनसाइ
    4. एकेशिया निलोटिका (बबूल)
    5. एकेशिया सेनेगल (खैर)
    6. एकेशिया टोर्टिलिस (इजराइली बबूल)
    7. एलेन्थस एल्टीसीमा
    8. एलैन्थस ऐक्सेलसा (चोरा नीम)
    9. एल्बीजिया फैल्काटारिया
    10. एल्बीजिया लेबेक (सिरस)
    11. एल्बीजिया प्रोसेरा
    12. एलनस नेपालेन्सिस
    13. एजाडिराक्टा इंडिका (नीम)
    14. कैलियांड्रा कैलोथाइरसस
    15. कैसिया सियामी (काशिद)
    16. कैजुआरीना इक्वीसैटिफोलिया (सुरु)
    17. कोलोफोस्परमम मोपेन
    18. डलवर्जिया सिस्सू (शीशम)
    19. डेरिस इंडिका
    20. ऐन्टेरोलोबियम साइक्लोकारपम
    21. एरीथ्रिना सुबरोजा (पांगरा)
    22. यूकेलिप्टस कैमल्डुलेन्सिस
    23. यूकेलिप्ट्स टेरेटिसकोर्निस
    24. ग्लिरिसीडिया सेपियम
    25. मेलाइना आर्बोरिया (गंभारी)
    26. ग्रेवीलिया रोबस्टा
    27. ल्यूसीना ल्यूसोसीफाला (सुबबूल)
    28. मेलिया एजेडरैक (बकायन)
    29. पार्किनसोनिया एक्यूलियाटा
    30. पाइनस कैरीबे
    31. पिथिकैलोबियम डलसे
    32. पोपुलस युफ्रेटिका
    33. प्रोसोपिस सिनेरेरिया (खेजड़ी)
    34. प्रोसीपिस जुलीफ्लोरा (विलायती बबूल)
    35. टेरोकारपस इंडिक्स (नारा या पादौका)
    36. रोबीनिया या स्यूडोआकेशिया
    37. समेनी समन
    38. सेस्बेनिया ग्रैंडीफ्लोरा (अगस्त)
    39. सेस्बेनिया सेस्बान (शेवरी)
    40. थेसपीसिया पोपलनी (मेंडी)

पेड़ों की किस्में

तेजी से बढ़ने वाली किस्में

एकेशिया औरीक्यूलीफोरमिस (बंगाली बबूल)

कुल: लेग्यूमिनोसी (उपकुल: पिमोसाइडी)

सामान्य नाम: आस्ट्रेलियन बबूल, बंगाली बबूल

मूल स्थान: पैपुआ न्यूगिनी और उत्तरी आस्ट्रेलिया

प्राप्ति स्थान: पी.एन.जी, आस्ट्रेलिया, दक्षिणी एशिया, इंडोनेशिया, अफ्रीका

भारत में: बिहार, पश्चिम बंगाल, तटवर्ती क्षेत्र ।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

आर्द्र (नम), उष्ण कटिबन्धीय, 1000-1800 मि. मी. वार्षिक वर्षा जिसमें छ: महीने शुष्क हों, अधिक तापमान, ऊँचाई समुद्र तल से 600 मीटर, तरह-तरह की मिट्टियाँ जिनमें रेतीले टीबे, चूने वाली मिट्टी, लेटराइट और चिकनी मिट्टी शामिल हैं – मिट्टी का पी.एच.मान 9.0 से 3.0 हो ।

संवर्धन की विधि और बीज का उपचार

सीधे बीज बोकर या नर्सरी में पौध उगाकर पौधों की रोपाई । उबलता हुआ पानी लेकर उस में बीजों को डुबोकर उपचारित किया जाये और उन्हें तब तक रहने दिया जाये जब तक कि पानी ठंडा न हो जाये । यदि आप चाहते हैं कि अंकुरण जल्दी हो तो बीजों को पूरी रात पानी में भिगोये रहने दें । यह पेड़ वातावरण से नाइट्रोजन लेकर उसके स्थिरीकरण में बहुत मदद करता है । बोने से पहले राजेबियम का टीका लाभदायक होता है । कटाई के बाद पुनर्विकास अच्छा होता है ।

बढ़वार और उपज

तेजी से बढ़ने वाला है पर्णपाती या सदाबहार। 8-30 मी. की ऊँचाई, एक या अधिक तिरछे तने, 60 सें. मी. व्यास और आधी सीधी प्रकृति। सीधा बढ़ता है और नम क्षेत्रों में जहाँ नीचे तक पानी पहुंचा हो, खूब पनपता है और इसका 17-20 मी. बायोमास प्रति हैक्टर सालाना होता है और 10-12 साल का समय चक्र होता है। अर्ध शुष्क उथली मिट्टियों में उपज प्रति वर्ष प्रति हैक्टर 3-5 मी. तक गिर जाती है और चक्र भी लम्बा होता है।

इसकी लकड़ी सख्त होती है और इसका विशिष्ट घनत्व 0.60-0.75 होता है, इसका कैलोरी मान अधिक होता है और ईंधन कोयले, निर्माण तथा अच्छी क्वालिटी की लुगदी के लिए अच्छी होती है। इसके पेड़ों को छाया, ढलानों पर मिट्टी के कटाव की रोकथाम के लिए और खनिज क्षेत्रों के सुधार के लिए लगाया जता है। पेड़ों की पत्तियों को पशु नहीं चरते।

कीट-व्याधियां

कीट और सूत्रकृमियाँ पौधों पर आक्रमण करती हैं, यह जंजीबार से मिलने वाली रिपोर्टो में कहा गया है। भारत में ऐसी कोई समस्या नजर नहीं आई।

एकेशिया मैंगियम

कुल: लेग्यूमिनासी (उपकुल: मिसोसाइडी)

सामान्य नाम: मैंगियम, ब्राउन सैलउड

मूल स्थान: उत्तरी आस्ट्रेलिया, पी एन जी, पूर्वी इंडोनेशिया

प्राप्ति स्थान: इंडोनेशिया, पी एन जी, मलेशिया

भारत में: आरंभिक परीक्षण के अंतर्गत

जलवायु तथा मिट्टी की आवश्यकताएँ

नम, उष्ण कटिबन्धीय, 1000-4500 मि.मी. वार्षिक वर्षा, थोड़ी शुष्क अवधि, 34 डिग्री सें. और 12 डिग्री सें. के बीच तापमान। तटवर्ती क्षेत्रों में खूब पनपता है लेकिन 720 मी. की ऊँचाई तक पैदा होता है। तरह-तरह की मिट्टियों में यहाँ तक कि कटाव वाली और चट्टानी, उथली, अम्लीय और 4.5 पी एच मान वाली मिट्टियों व समुद्र तट तक बलुई मिट्टी में पैदा होता है।

संवर्धन की विधि और बीज उपचार

आमतौर पर इन पेड़ों को नर्सरी के पौधों से उगाया जाता है। अनुकूल स्थितियों में सीधी बुआई की जा सकती है। वानस्पतिक संवर्धन के लिए दाबडाली, कलम या सांकुर कलम (ग्राफ्टेड स्टाक) का भी इस्तेमाल किया जाता है। बीजों के उपचार के लिए किसी बर्तन में बीज रखकर उन पर खौलता पानी डाला जाये। पन्द्रह मिनट तक पानी में रखने पर बीज बाहर निकाल लेने चाहिए और उसके बाद उन्हें ठंडे पानी में पूरी रात भिगोये रहने दें और उसके बाद उन पर राइजोबियम कल्चर का लेप कर दिया जाये। बताया जाता है कि माइकोरहिजल फफूंदी थेलेफोरा रैमारियोडोस से इसका सहजीवी सम्बंध है। केवल छोटे पेड़ों के ठूंठ के कल्ले फूटते है।

बढ़वार और उपज

जोरदार बढ़वार, सदाबहार पेड़, 15-30 मी. ऊँचा, सीधा तना, व्यास 90 सें.मी. तक और सीधे बढ़ने की प्रकृति। मिट्टी की अलग-अलग उपजाऊ हालतों में इस से 15 से 30 मी. लकड़ी की सालाना उपज मिलती है, इसका समय चक्र 10-15 साल का होता है।

इसकी लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.4-0.6 होता है और कैलोरी मान प्रति कि.ग्रा. 4800 किलो कैलोरी, हल्के रंग की रंग रसदारु होती है और मध्यम भूरे रंग की अंदर की लकड़ी सख्त होती है और उसे ईंधन, फर्नीचर इमारती हल्की लकड़ी के रूप में, पार्टिकल बोर्ड और लुगदी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। मवेशी इस पेड़ के पत्तों को खाते हैं।

कीट-व्याधियां

मलेशिया से मिली रिपोर्टों से पता चलता है कि छोटे-छोटे पेड़ों के मुख्य तनों के अंदरूनी भाग सड़ जाते है। अभी तक इस बीमारी के कारण का पता नहीं चल सका है।

कोर्टीसियम सैलमोनीकलर के हमले से गुलाबी रोग (पिंक डिजीज) पैदा होता है। यह कीट तने पर हमला करना है और पेड़ को खत्म कर देता है। ये दोनों बीमारियाँ आम नहीं हैं। हवाई से रिपोर्टे मिली है कि नर्सरी में चूर्णी फफूंद (पाउडरी मिल्ड्यू) का भारी हमला होता है। इनमें से कुछ ऐसे भी कीड़े होते हैं जो इस पेड़ पर हमला करके छोटे-छोटे सुराख करते हैं जिन्हें पिनहोल बोरर कहा जाता है। (ये कीट प्लेटिपोडीडी और स्कोलीटाइडी कुल के होते हैं) और कुछ कारपेंटर एन्ट (चीटियाँ) होती है (कैम्पोनोट्स स्पी.) भूमिगत दीमक (कोप्टोटर्मीस स्पी.), सिराम्बीसिड लकड़ी छेदक (जिस्टोकेरा स्पी.) भी कीट होते हैं। शल्क कीट और मीलीबग पौध पर हमला कर सकते है। मलेशिया में कारपेंटर एन्ट ही भारी नाशी कीट है।

एकेशिया मियरनसाइ

कुल: लेग्यूमिनोसी (उपकुल: मिमोसोइडी)

सामान्य नाम: ब्लैक वेटल

मूल स्थान: दक्षिणी आस्ट्रेलिया

प्राप्ति स्थान: केनिया के उष्ण कटिबन्धीय पहाड़, दक्षिणी अफ्रीका, हवाई, भारत

भारत में: नीलगिरी पहाड़

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकता

अर्ध शुष्क, उपोष्ण क्षेत्र जहाँ सदीं का मौसम ठंडा हो, 500-700 मि.मी. सालाना वर्षा, 1500 मी. तक की ऊँचाई, बलुई दुमट मिट्टियों पर पैदा होता है, घटिया मिट्टी में भी उगता है। चूनेदार (कैल्केरियस) मिट्टी को बर्दाश्त नहीं करता।

संवर्धन की विधि और बीज उपचार

सीधी बुवाई अथवा पौध रोप कर बुआई, बीज उपचार की विशेष आवश्यकता नहीं, फिर भी लगभग 10 मिनट तक गर्म पानी में (75/800 सें.) में डुबोकर रखने से अंकुरण अच्छा होता है। राइजोबियम कल्चर मिलने के बारे में विशेष जानकारी नहीं है। काटने पर अच्छा पुनर्विकास नहीं होगा।

बढ़वार और उपज

सदाबहार पेड़, 6-25 मी. ऊँचा, तना एकदम सीधा और व्यास 50 सें. मी., सीधे बढ़ने की प्रवृति। सालाना बायोमास (लकड़ी, पत्ती आदि कुल सामग्री) प्रति हैक्टर 8-25 मी. तक, 10-12 साल का आयु चक्र।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.70-0.85, सामान्यतया कठोर, ईंधन, हार्डबोर्ड और रैपिंग पेपर के लिए अच्छी। मिट्टी के कटाव को रोकने और कृषि वानिकी के लिए अच्छी। मवेशियों से बचाने की आवश्यकता।

कीट-व्याधियां

अब तक कोई गंभीर कीट व्याधियों के बारे में रिपोर्ट नहीं मिली है।

एकेशिया निलोटिका (बबूल)

कुल: लेग्यूमिनोसी (उपकुल: मिमोसोइडी)

सामान्य नाम: ईजिप्शियन थोर्न, बबूल, गोडी बबूल

मूल स्थान: भारत

प्राप्ति स्थान: उष्ण कटिबन्धीय अफ्रीका और एशिया, मिस्र, अरब, पाकिस्तान

भारत में: पूरे देश में

जलवायु तथा मिट्टी की आवश्यकताएँ

शुष्क, उष्ण, कम वर्षा यानी 200 मि.मी. तक, लम्बा शुष्क मौसम, उच्च तापमान और समुद्र तल से ऊँचाई 600 मी. । विभिन्न मिट्टियों में यानी भारी चिकनी मिट्टी से अनुपजाऊ चट्टानी मिट्टी तक उगता है। मौसमी बाड़ों को सह सकता है।

संवर्धन की विधि और बीज उपचार

आमतौर पर सीधे बीज बोकर उगाया जाता है। पौध तैयार करने के लिए ऊँची क्यारी की जरूरत होती है। जहाँ मुश्किल से पौधे उगते हों वहाँ पौध रोपण विधि अपनानी चाहिए। बीजों को 30 सेकिंड तक खौलते पानी में डुबोये रखना चाहिए और तब बोने से पहले ठंडे पानी में पूरी रात भिगोये रहने दें। छोटे पेड़ों के ठूंठ काटने पर अच्छे पनपते हैं।

बढ़वार और उपज

मध्यम आकार। पर्णपाती या सदाबहार, काँटों वाला, मध्यम बढ़वार की गति वाला, 10 मी. की ऊँचाई तक पहुँचता है, तना टेढा, व्यास 30 सें.मी. और प्राकृतिक दशाओं में झाड़ीनुमा हो जाता है। वार्षिक बायोमास उपज 4 से 10 मी. प्रति हैक्टर होती है, आयु चक्र 15-20 साल।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.6-0.8 कैलोरी मान 4800-4950 कि. कैलोरी प्रति कि. ग्रा. । लकड़ी भारी, टिकाऊ, दीमकों के प्रति रोधी, ईंधन, कोयले, खेती के उपकरण, नौका निर्माण, इमारती सामान, नक्काशी, टर्नरी और लुगदी के काम आती है। चमड़ा उद्योग में इसकी छाल और फलियों से रंग तैयार किया जाता है। पेड़ में चीरे लगाकर खाने वाला गोंद निकाला जाता है जिससे अच्छी आमदनी हो सकती है। मवेशी इसकी पत्तियों और फलियों को चाव से खाते हैं। इसके फूलों से मधुमक्खियाँ खूब शहद तैयार करती है।

कीट-व्याधियां

काष्ठ छेदक कीट और फली खाने वाले ब्रूचिड बीटल्स (भृंग) इस पर हमला करते हैं, ऐसी रिपोर्ट मिली है। ऐसा भी पता चला है कि इसके तनों पर फफूंदी का भी आक्रमण होता है लेकिन अब तक कोई गंभीर समस्याएं नहीं हैं।

उपजातियाँ

एकेशिया निलोटिका: वैर. क्यूप्रेसीफौर्मिस, जिसे प्राय: रामकाटी कहा जाता है, सीधा बढ़ने वाला पेड़ है और मुख्य किस्म की अपेक्षा यह प्रजाति तेजी से उगती है। यह कृषि वानिकी तथा खंभों की लकड़ी के लिए उपयोगी है। इसकी उपज अधिक होती है। अन्य गुण वैसे ही हैं जैसे मुख्य किस्म में पाये जाते हैं।

एकेशिया सेनेगल (खैर)

कुल: लेग्यूमिनोसी (उपकुल: मिमोसोइडी)

सामान्य नाम: गम एकेशिया, गम एरेबिक ट्री, खैर

मूल स्थान: अफ्रीका

प्राप्ति स्थान: सेनेगल से सोमालिया तक सहालियन क्षेत्र, सूडान, नाइजीरिया, भारत और पाकिस्तान

भारत में: राजस्थान, मध्य और उत्तर भारत।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

शुष्क या अर्ध शुष्क, उष्ण से उणेष्ण जलवायु तक जहाँ तापमान जमाव बिंदु तक पहुंचा हो, सालाना वर्षा 200-500 मि.मी., 8-11 महीने सूखे हों। 800 मि.मी. से अधिक ऐसी वर्षा को नहीं झेल सकता, जिससे जललग्नता होती है। 100 से 1700 मी. की उंचाईयों पर पैदा होता है। तरह-तरह की मिट्टियों में, जिनमें घटिया, चट्टानी, रेतीले टीबे, चिकनी और उच्च पी एच मान वाली मिट्टियाँ भी शामिल हैं, उग सकता है।

संवर्धन की विधि तथा बीज उपचार

बीज से आसानी से उग जाता है। रात भर पानी में डुबोये रखने से अंकुरण जल्दी होता है। राइजोबियम का टीका लाभदायक है।

बढ़वार और उपज

छोटा, पर्णपाती, कंटीला, 13 मी. तक ऊँचा, छोटे तने वाला जिसमें शाखों होती हैं, 50 सें.मी. व्यास और आधी सीधी प्रकृति वाला। ल सालाना बायोमास उपज 5 मी. बशर्ते की स्थिति उत्तम हो, आयु चक्र 12-15 साल। गोद का प्रमुख स्रोत, 80 प्रतिशत गोंद सूडान से आता है। लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.6-0.7, कठोर और भारी, खंभों और खेती के उपकरणों, ईंधन तथा कोयले के लिए उपयोगी। इसकी पत्तियों और फलियों में बहुत प्रोटीन होता है जोकि अच्छा चारा होता है।

कीट-व्याधियां

इसकी जड़ों पर दीमक, विशेष रूप से सूखे के दौरान, हमला करती हैं। कीड़े फलियों पर हमला करते हैं।

एकेशिया टोर्टिलिस (इजराइली बबूल)

कुल: लेग्यूमिनोसी (उपकुल: मिमोसोइडी)

सामान्य नाम: इजराइली बबूल

मूल स्थान: अफ्रीका

प्राप्ति स्थान: मध्य पूर्व, उत्तरी और पूर्वी अफ्रीका, इजराइल, भारत और पाकिस्तान।

भारत में: राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु।

जलवायु तथा मिट्टी की आवश्यकताएँ

शुष्क या अर्ध शुष्क, उष्ण, गर्म और लम्बी अवधि का मौसम। सालाना वर्षा 100-1000 मि.मी. तापमान डिग्री सें. से 50 डिग्री सें. । तरह-तरह की मिट्टियों में उगाया जा सकता है जिसमें रेतीले टीबे, दुमट, चट्टानी और क्षारीय मिट्टियाँ भी शामिल है। कम उंचाईयों के लिए सबसे अधिक उपयुक्त।

संवर्धन की विधि और बीज उपचार

बीज और पौध दोनों से ही उगाया जाता है। बीजों को गर्म पानी (80 डिग्री सें.) में डुबोया जाता है और फिर उन्हें ठंडा होने दिया जाता है। बोने से पहले बीजों को पूरी रात भिगोये रहने दिया जाता है। राइजोबियम का टीका लाभदायक है। काटने पर अच्छा विकास होता है।

बढ़वार और उपज

मध्यम आकार का कंटीली, पर्णपाती, 20 मी. तक ऊँचा, शाखाओं वाला तना, व्यास 20 सें.मी. तक, फैलाव की प्रवृति, सालाना बायोमास उपज 5-20 मी., 10-12 साल का समय चक्र।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.7-0.8 कैलोरी मान 4400 किलो कैलोरी प्रति कि. ग्रा. । भारी, ईंधन, कोयला, खेती के औजारों के लिए अच्छा। मवेशियों के लिए पत्तियों व फलियों का अच्छा चारा। रेगिस्तानी इलाकों में उगाने पर रेत बिठाने के लिए उम्दा किस्म। बाड़ के लिए इसकी कंटीली शाखाएं उपयुक्त हैं।

कीट-व्याधियां

इल्ली (केटर पिलर) और भृंग (बीटल) पेड़ों पर हमला करते है और ब्रूचिड बीजों पर हमला करते है। अंगमारी का प्रकोप भी पाया गया है।

एलेन्थस एल्टीसीमा

कुल: सीमारौबेसी

सामान्य नाम: चाइना सुमक, ट्री ऑफ़ हैवन

मूल स्थान: चीन

प्राप्ति स्थान: यूरोप, एशिया और अमेरिका के शीतोष्ण क्षेत्र

भारत में: उत्तर भारत

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

आर्द्र, शीतोष्ण और उपोष्ण, 300 सें. और 380 सें. के बीच का तापमान सह सकता है। आर्द्र क्षेत्रों में खूब पनपता है, कम वर्षा वाले इलाकों में यानी 400 मि.मी. तक वर्षा में भी उगता है, 6-8 महीने का सूखा मौसम होना चाहिए, समुद्र तल से 2000 मी. की ऊँचाई तक, तरह-तरह की मिट्टियों में जैसे सूखी, चट्टानी, बलुई, गीली, दलदली, सूखी अम्लीय व क्षारीय मिट्टियों में उग सकता है।

संवर्धन की विधि और बीज उपचार

बीज से या कलम से आसानी से उग सकता है। बीज उपचार की आवश्यकता नहीं। काटने पर ठूंठों का सामान्य पुनर्विकास होता है। पेड़ के इर्द-गिर्द अनेक सकर (रूट सकर्स) पैदा होते है।

बढ़वार और उपज

मध्यम आकार का, पर्णपाती पेड़, 20 मी. तक ऊँचा, सीधा या तिरछा तना, 30-40 सें.मी. व्यास और फैलाव की प्रवृति। तेजी से बढ़ता है और मिट्टी तथा नमी की उत्तम स्थितियों में 10-12 साल में कटाई के लिए तैयार। ठीक-ठीक बायोमास की उपज का अनुमान नहीं है।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.6, नरम, कमजोर और भंगुर (नाजुक) लकड़ी ईंधन, कोयला, लुगदी और फर्नीचर के लिए अच्छी। पर्यावरण के दूषण व धुएं का प्रभाव नहीं पड़ता और पहाड़ी ढालों पर मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए उपयोगी।

कीट-व्याधियां: कीट व्याधियों की समस्याओं से मुक्त।

एलैन्थस ऐक्सेलसा (चोरा नीम)

कुल: सिमारोबेसी

सामान्य नाम: ट्री ऑफ़ हैवन्स, महारूख, चोरा नीम

मूल स्थान: मध्य तथा दक्षिण भारत

प्राप्ति स्थान: पूरे भारत में।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएं

अर्ध शुष्क से लेकर नम, वर्षा 600 मि.मी. से अधिक, कम ऊँची जगहों में पैदा होता है। परन्तु तापमान -4 डिग्री सें. से 40 डिग्री सें. तक सह सकता है, पाला सह सकता है, बलुई दुमट मिट्टियाँ सबसे उपयुक्त। जललग्न स्थितियों में नहीं उग सकता।

संवर्धन की विधि और बीज उपचार

आमतौर पर बीज से और नर्सरी में उगायी गयी पौध से और कलम से भी उगाया जाता है। हल्के पंखनुमा फलों में एक या दो बीज होते हैं जिन्हें आसानी से अलग नहीं किया जा सकता, इसलिए पूरी फली को ही बो देना चाहिए। इन फलियों को बोने से पहले तीन दिन तक भिगोना चाहिए ताकि अंकुरण आसानी  से हो जाये। काटने पर अच्छा पुनर्विकास होता है।

बढ़वार और उपज

बड़ा पर्णपाती पेड़, 18-25 मी. ऊँचा, सीधा तना, 60-80 सें.मी. व्यास, अधिक फैलाव की प्रवृति। बढ़वार की दर सामान्य। बायोमास की ठीक मात्रा के आंकड़े सुलभ नहीं हैं। तैयार होने में 12-15 साल चाहिए। लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.45। ईंधन के लिए ठीक पर बहुत अच्छी नहीं। लकड़ी हल्की होने के कारण, नाव, औजारों के हत्थे, खिलौने और पैक करने वाली पेटियां बनाने के काम आती हैं।

कीट-व्याधियां: इल्ली या सुंडी का बरसात में प्रकोप हो सकता है।

एल्बीजिया फैल्काटारिया

कुल: लेग्यूमिनोसी (उपकुल: मियोसोइडी)

सामान्य नाम: सफेद एल्बीजिया

मूल स्थान: पापुआ न्यू गिनी सोलोमन द्वीप समूह और मोल्यूक्स

प्राप्ति स्थान: पी. एन. जी, इंडोनेशिया, फिलिपीन, फीजी, मलेशिया

जलवायु तथा मिट्टी की आवश्यकताएँ

नम, उष्ण, सालाना वर्षा 2000-4000 मि.मी., दो महीने से अधिक सूखा नहीं। समुद्र तल से 1000 मी. तक ऊँचाई। पाला नहीं सह सकता। अच्छी उपजाऊ जल निकासी वाली मिट्टियाँ सबसे उपयुक्त। अम्लीय मिट्टी की अपेक्षा थोड़ी क्षारीय मिट्टी में अच्छी बढ़वार।

संवर्धन की विधि और बीज उपचार

नर्सरी में उगायी गयी पौध से संवर्धन। अच्छे अंकुरण के लिए बीजों को गाढ़े के तेज़ाब में 12 मिनट तक डुबायें और उसके बाद 15 मिनट तक साफ़ पानी में धोएं। दूसरा तरीका या भी है कि खौलते पानी में 15 सैकिंड या गरम पानी में (75-80 डिग्री सें.) 15 मिनट तक बीज उपचार करें। उपचारित बीजों को गीले कपड़े में 24 घंटे तक लपेट कर रखें या जल्दी अंकुरण के लिए पूरी रात पानी में भिगोयें। नौड्यूलेशन (गाँठ बनने) के लिए राइजोबियम का टीका लाभकारी है।

बढ़वार और उपज

यह सबसे तेजी से बढ़ने वाले पेड़ों में एक है। तीन साल में 15 मी. और सात साल में 44 मी. तक ऊँचा हो जाता है। सालाना बढ़वार 5-7 सें.मी. होती है। तने का व्यास 10-12 साल में 90-100 सें.मी. हो जाता है। इस बड़े पर्णपाती पेड़ का तना सीधा होता है और सीधे बढ़ने की प्रवृति वाला है। समुचित स्थितियों में सालाना बायोमास की उपज प्रति हैक्टर 50 मी. हो सकती है। जबकि औसत उपज लगभग 25-30 मी. प्रति हैक्टर होती है। आयु चक्र 8 से 10 साल।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.24-0.49 और कैलोरी मान 2865-3357 कि. कैलोरी प्रति कि. ग्राम होता है। फाइबर बोर्ड, पार्टिकल बोर्ड, लुगदी, माचिस और पेटियां बनाने के लिए उत्तम है। ईंधन के लिए अच्छा नहीं पर इससे कोयला अच्छा बनता है। मवेशी इसकी पत्तियाँ बुरी तरह चट कर जाते हैं। कृषि वानिकी के लिए उत्तम किस्म पर हवा से हानि का भय रहता है।

कीट-व्याधियां

बताया जाता है कि इसे यूरेमा ब्लंडे, यूरेमा हेकाबे, सेमियोथाइस, जिस्टोसेरा (काष्ठ छेदक) और पेन्थलडकोड्स जैरीनोसा हानि पहुँचाते हैं। बीमारियों में सफेद और भूरा गलन सबसे भयंकर है। कोयटीकम सालमोनीकलर से एल्बीजिया कैंकर पैदा होता है। यदि फिलीपीन में बोर्डो मिक्सचर से इसकी रोकथाम न की गई होती तो यह भारी हानि पहुंचाता।

एल्बीजिया लेबेक (सिरस)

कुल: लेग्यूमिनोसी (उपकुल: मिसोसाइडी)

सामान्य नाम: लेबेक, ईस्ट इंडियन बालनट, सिरिस, कक्कू

मूल स्थान: बांग्ला देश, बर्मा

प्राप्ति स्थान: भारत, पाकिस्तान, उत्तरी अफ्रीका के उष्ण और उपोष्ण प्रदेश, वैस्ट इंडीज, दक्षिण अमेरिका, दक्षिण पूर्वी एशिया, नेपाल।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

उष्ण और उपोष्ण, नम जलवायु, सूखे और हल्के पाले को सहने की क्षमता, सालाना वर्षा 500-2000 मि.मी., यदि गर्मियों में वर्षा हो तो बेहतर। समुद्र तल से 1600 मी. ऊँचाई तक उगता है। सबसे उपयुक्त अच्छी जलनिकासी वाली दुमट मिट्टी। नमक का छिड़काव सहते हैं। समुद्र के किनारे और सूखी क्षारीय मिट्टी में बेहतर बढ़वार होती है।

संवर्धन की विधि और बीज-उपचार

सीधे ही या पौध से बुवाई। तने की कलम या जड़ की कलम भी संवर्धन के लिए प्रयुक्त होती है लेकिन आमतौर पर ऐसा होता नहीं। गरम पानी (75 डिग्री सें. – 80 डिग्री सें.) में बीज भिगोयें और ठंडा होने दें, बुवाई से पहले 24 घंटे तक भीगा रहने दें। राइजोबियम का टीका लाभदायक है। मजबूत जड़ों के सकरों से पेड़ गिराने के बाद, फिर उग सकते हैं।

बढ़वार और उपज

बड़ा, पर्णपाती पेड़, 30 मी. ऊँचा, तने का व्यास 1 मी. तक और अधिक फैलाव की प्रवृति वाला। सामान्य तेजी से बढ़ता है। सालाना बायोमास की उपज 2-8 मी. प्रति हैक्टर 12-15 वर्ष पर कटाई।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व

0.55-0.60 और कैलोरी मान 5200 किलो. कैलोरी प्रति कि.ग्रा., लकड़ी सामान्यतया सख्त, टिकाऊ, ईंधन, कोयले, फर्नीचर और इमारती काम, बैलगाड़ी और नक्काशी के लिए अच्छी। रंगाई के लिए छाल का प्रयोग। शहद का अच्छा स्रोत इसके फूल हैं और पत्तियों का चारा अच्छा होता है।

कीट-व्याधियां

भारत में फफूंद के हमले की रिपोर्टे मिली हैं। हाल ही में महाराष्ट्र में इसके पौधों को कोमल पत्तियों और छोटे वृक्षों को साइलिड द्वारा हानि पहुँचाने की खबर मिली है।

एल्बीजिया प्रोसेरा

कुल: लेग्यमिनोसी (उपकुल: मिमोसोइडी)

सामान्य नाम: सफेद सिरस

यह एल्बीजिया लेबेक की तुलना में अधिक मजबूत होता है। यह नम और अर्धशुष्क स्थितियों में पनपता है। सालाना वर्षा 1000 मि.मी. से अधिक। तरह-तरह की मिट्टियों से जैसे दुमट, बलुई, अम्लीय मिट्टियों में उग सकता है। आधे सीधे से लेकर फैलाव की प्रवृति वाला पेड़ का तना सीधा होता है, ऊँचा जाता है। अधिक उपज देता है, लेबेक की तुलना में अधिक काटने पर अच्छा पुनर्विकास होता है।

इसकी लकड़ी के गुण और प्रयोग लेबेक जैसे ही हैं।

एलनस नेपालेन्सिस

कुल: बेटुलासी

सामान्य नाम: आल्डर, भिदुर

मूल स्थान: हिमालय, बर्मा की पहाड़ियां

प्राप्ति स्थान: नेपाल, चीन, भारत, हवाई

भारत में: कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उ.प्र. के पहाड़ और पश्चिम बंगाल।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

नम, ठंडी, उपोष्ण या नम उष्ण पहाड़ियां जहाँ कम से कम सालाना वर्षा 800 मि.मी. से 3000 मि.मी. तक हो। इसे 1000-3000 मी. की ऊँचाई अधिक सुहाती है। नम, अच्छी जल निकासी वाली भूमि से कंकरीली व चिकनी मिट्टी तक में उग सकता है। खराब जल निकासी को और बाढ़ को भी सह सकता है।

संवर्धन की विधि और बीज-उपचार

नर्सरी में पौध तैयार की जाती है पर अच्छी जगहों में सीधे बीज से भी बुआई होती है। बीज को खुरचने की आवश्यकता नहीं है। वातावरण से नाइट्रोजन को खींच कर स्थिर रखता है, लेकिन राइजोबियम से नहीं। इस समय टीके नहीं मिलते। जाड़ों के अलावा और मौसमों में काटने से अच्छा पुनर्विकास होता है।

बढ़वार और उपज

बड़ा, पर्णपाती, 30 मी. तक लम्बा, सीधा तना, तने का व्यास 1 मी. और फैलाव की प्रवृति, अच्छी नमी होने से तेजी से बढ़ता है और तने में सालाना 2 सें.मी. की बढ़ोत्तरी होती है। उपज का अनुमान उपलब्ध नहीं। 12-15 साल के बाद पेड़ काटे जा सकते हैं।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.32-0.37 है, जल्दी जलती है। लकड़ी टिकाऊ नहीं है लेकिन पैक करने की पोटोयों के लिए उपयोगी है। पेड़ों को हवा से बहुत हानि होती है। मवेशी इसकी पत्तियां चाव से खाते हैं।

कीट-व्याधियां

कभी-कभी भृंग (बीटल्स) पत्तियों को हानि पहुंचाती है और छेदक कीट तने पर हमला करते हैं।

एजाडिराक्टा इंडिका (नीम)

कुल: मेलियासी

सामान्य नाम: नीम, मार्गोसा ट्री

मूल स्थान: भारत, बर्मा

प्राप्ति स्थान: भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनिशिया, सूडान

भारत में: पूरे देश में

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

अर्ध शुष्क, उष्ण, उपोष्ण, सालाना वर्षा 450-1150 मि.मी., लम्बा सूखा मौसम। 00 सें. से 450 सें. तक एक अलग-अलग तापमानों और 1500 मी. की ऊँचाई तक उग सकता है। तरह-तरह की मिट्टियों जैसे सूखी, चिकनी, उथली, चट्टानी, रेत में उग सकता है पर जललग्न, लवणीय या गहरी सूखी रेत में नहीं ठहर सकता।

संवर्धन की विधि और बीज-उपचार

नर्सरी में तैयार पौधों से उगाया जाता है। कई जगहों में सीधी बुआई संभव नहीं है, विशेषत: वहाँ जहाँ कि मानसून होने के बाद बीज पकता है और अगली बुआई के मौसम के आने तक अपनी जीवन क्षमता खो बैठता है। 600 सें. के गरम पानी में बीजों को बुआई से पहले 30 मिनट तक भिगोयें। नये ठूंठ अच्छे पनपते हैं।

बढ़वार और उपज

बड़ा, सदाबहार, 15-20 मी. ऊँचा, सीधा छोटा तना, व्यास 30-80 सें. मी. और फैली हुई शाखाओं वाला। अनुकूल नमी की स्थितियों में भरपूर पनपता है। कठोर होने के कारण अन्य लोकप्रिय किस्मों से बेहतर रहता है, भले ही मिट्टी अच्छी न हो और सूखे की स्थिति हो। सालाना बायोमास उपज 3-10 मी. प्रति हैक्टर होती है। 6-8 साल में फल लगने शुरू हो जाते हैं। 12-15 साल के बाद लकड़ी के लिए काटे जा सकते हैं।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.56-0.85 होता है। लकड़ी कठोर, कीटों के प्रति रोधी, ईंधन, कोयले, जहाज और फर्नीचर बनाने के लिए अच्छी होती है।

बीजों म बहुत तेल होता है जिनमें कीटनाशी और जीवाणुनाशी गुण होते हैं। साबुन, दवा, पौध-रक्षा के लिए और यूरिया में नाइट्रोजन की हानि को कम करने के लिए मिलाने के उद्देश्य से उपयोगी है। इसकी खली खाद के लिए और सतह के कीड़ों की रोकथाम के लिए उपयोगी है। पत्तियाँ खूब लगती हैं लेकिन चारे की कमी होने पर ही बकरियां और भेड़ें इन्हें खाती हैं।

कीट-व्याधियां: कोई समस्या नहीं।

कैलियांड्रा कैलोथाइरसस

कुल: लेग्यूमिनोसी (उपकुल: मिसोसोइडी)

सामान्य नाम: कैलियांड्रा

मूल स्थान: मध्य अमेरिका

प्राप्ति स्थान: दक्षिण मेक्सिको, मध्य अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, इंडोनेशिया

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

नम, उष्ण और उपोष्ण, सालाना वर्षा 1000 मि.मी. से अधिक, सूखा मौसम कम, तरह-तरह की मिट्टियों में जैसे सूखी से गीली तक भारी चिकनी, ढालू 1800 मी. तक ऊँची जगहों में पैदा हो सकता है।

संवर्धन की विधि और बीज-उपचार

सीधी बुआई अथवा पौध रोपण से बोया जाता है। बीजों को गरम पानी से कुछ मिनट तक भिगोया जाता है बाद में बुआई से पहले 24 घंटे तक पानी में भिगोया जाता है। राइजोबियम टीका लाभदायक है। नये ठूंठों का अच्छा विकास होता है।

बढ़वार और उपज

बड़ा झाड़ीनुमा, 10 मी. ऊँचा और तने का व्यास 20 सें.मी. तक, टेढ़ी शाखाएं और बढ़वार की प्रवृति – सीधी से लेकर आधी सीधी तक। समुचित स्थिति में पेड़ सीधे बढ़ते है। सालाना बायोमास उपज 5-30 मी. । थोड़े-थोड़े समय बाद कटाई की जा सकती है। पहली कटाई 4-5 साल बाद और बाद में ईंधन के लिए हर साल की जा सकती है।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.51 से 0.78 और कैलोरी मान 4500-4750 ईंधन के लिए उत्तम। पत्तियों का चारा उम्दा होता है। इसके फूल शहद के सर्वोत्तम स्रोत हैं। मिट्टी के कटाव की रोकथाम और कृषि वानिकी के लिए अति श्रेष्ठ।

कीट-व्याधियां: अब तक कोई सूचना नहीं।

कैसिया सियामी (काशिद)

कुल: लेग्यूमिनोसी (उपकुल: कैसलपिनोइडी)

सामान्य नाम: पीला केसिया, कसोड, बाम्बे ब्लैक उड, काशिद

मूल स्थान: दक्षिण पूर्वी एशिया

प्राप्ति स्थान: इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड श्रीलंका, भारत और बर्मा

भारत में: दक्षिण और मध्य भारत

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

उष्ण, नम से लेकर अर्ध शुष्क, सालाना वर्षा 600 मि.मी. और अधिक, 4-5 माह का सूखा मौसम। कम ऊँचाई तक ही उग सकता है और ठंड नहीं सह सकता। लैटराइट, चूनेदार या चिकनी मिट्टी सह सकता है, बशर्ते कि जलनिकासी न रुके।

संवर्धन की विधि और बीज-उपचार

सीधे बीज से या पौध से उगाया जाता है। गर्म पानी से या गंधक के तेज़ाब से बीजों को बुआई से पहले उपचारित करने की आवश्यकता है। वातावरण के नाइट्रोजन का स्थिरीकरण नहीं करता। जड़ों के सकर से या काटने से फिर पैदा हो जाता है।

बढ़वार और उपज

मध्यम आकार का, सदाबहार, 18 मी. तक ऊँचा, सीधा या थोड़ा तिरछा तना, व्यास 30 सें.मी. तक और आधा-सीधा बढ़ने की प्रवृति वाला। उत्तम परिस्थितियों में कुल बायोमास की उपज 15 मी. तक संभव है, 8-10 साल का कटाई चक्र।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.6-0.8, कठोर, ईंधन जलने में अच्छा पर धुवां देने वाला। फर्नीचर के लिए उत्तम। पशु इसका चारा नहीं खाते।

कीट-व्याधियां: शल्क कीट हमला कर सकते हैं।

कैजुआरीना इक्वीसैटिफोलिया (सुरु)

कुल: कैजुआरीनासी

सामान्य नाम: बांग्ला देश, बर्मा और अंदमान

प्राप्ति स्थान: दक्षिणी एशिया से इंडोनेशिया, फिलिपीन, प्रशांत महासागरीय द्वीप, पूर्वी आस्ट्रेलिया, अफ्रीका, वेस्टइंडीज, हवाई, मेक्सिको, ब्राजील, दक्षिणी संयुक्तराज्य अमेरिका।

भारत में: तटवर्ती क्षेत्र।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

उपोष्ण और उष्ण, नम या अर्ध शुष्क, सालाना वर्षा 700-2000 मि.मी., 6-8 महीने सूखा मौसम। समुद्र तल से 1500 मी. की ऊँचाई तक उगता है पर पाला नहीं सह सकता। तरह-तरह की मिट्टियों में जैसे चूनाधारी (कैल्केरियल), लवणीय, समुद्रतटीय रेत में उग सकता है। चिकनी मिट्टियों में नहीं पनपता। थोड़े समय तक जललग्नता सह सकता है।

संवर्धन की विधि और बीज उपचार

नर्सरी में उगायी पौध से उगता है। बीज उपचार आवश्यक नहीं। बीजों को क्यारी में छिटक दें और मिट्टी की सतह को धीमे-धीमे हाथ से दबाकर ठोस बना दें। बेहतर है की आप क्यारी को घास से या सूखी भूसी से ढक दें जबतक कि अंकुरण न हो। पलबार की धीरे-धीरे छंटाई करें जैसे-जैसे पौध नजर आए। इन पौधों को बाद में (3-4 सप्ताह बाद) पोलीथीन की थैलियों में रख कर रोप दें या फिर क्यारी में ही बढ़ने दें।

कैजुआरीना अपनी जड़ की गांठों के द्वारा वातावरण से नाइट्रोजन खींचता है। इन गांठों में नाइट्रोजन स्थिर करने वाले ऐक्टिनोमीसीटीस होते हैं। इस तत्व का मिट्टी में टीका अनिवार्य है, बशर्ते कि इसे आप नए क्षेत्रों में लगा रहे हों। उपयुक्त कल्चर यदि न मिल सके, पुराने कैजु आरीना बाग़ की मिट्टी को कुछ जड़ की गांठों सहित नर्सरी की मिट्टी में मिला दें। काटने पर इस सभी क्षेत्रों का अच्छा पुनर्विकास नहीं होता।

बढ़वार और उपज

बड़ा, सदाबहार पेड़, 15-35 मी. ऊँचा, सीधा लम्बा तना, नमी के होने पर, वार्षिक बायोमास की उपज 20 मी. प्रति हैक्टर हो सकती है। 8-10 वर्ष का आयु चक्र।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.8-1.2 और कैलोरी मान 4950 किलो. कैलोरी प्रति कि.ग्रा. है। ईंधन, खंभे की लकड़ी और लुगदी के लिए कच्चे माल के रूप में बहुत बढ़िया। जबतक कि चारे की कमी न हो तब तक पशु इसे नहीं खाते। मिट्टी का कटाव रोकने के लिए हवा रोकने और वानिकी के लिए अति उत्तम। रासायनिक कारखानों के आस-पास उगाने पर यह दूषित वायु सह सकता है।

कीट-व्याधियां

इसकी पौधों पर चीटियों और झींगुरों का प्रकोप होता है। जड़ गलन रोग भी हमला करता है।

कोलोफोस्परमम मोपेन

कुल: लेग्यूमिनोसी (उपकुल: केसलपिनोइडी)

सामान्य नाम: मोपाने, मोखा

मूल स्थान: दक्षिणी उष्णकटिबन्धीय और उपोष्ण अफ्रीका

प्राप्ति स्थान: मोजम्बीक, जाम्बिया, बोट्सवोना, अंगोला, जिम्बाबवे, दक्षिण पश्चिम अफ्रीका, दक्षिण अफ्रीका

भारत में: राजस्थान

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

उष्ण, शुष्क, सालाना वर्षा 500-2000 मि.मी., लम्बा सूखा मौसम, तापमान जमाव बिंदु के नीचे से लेकर 500 सें. तक, 1300 मी. तक ऊँचाई। तरह-तरह की मिट्टियों जैसे बिल्कुल रेतीली, कंकरीली और खनिज वाले क्षेत्र में उग सकता है।

संवर्धन की विधि और बीज उपचार

बीज से, पौधों और सकर्स से भी उग सकता है। अच्छे अंकुरण के लिए, कुछ मिनटों के लिए बीजों को 800 सें. गरम पानी में डुबाया जाय।

बढ़वार और उपज

बड़ा, पर्णपाती, 30 मी. ऊँचाई तक जाता है, प्रात: तिरछा तना, 80 सें. मी. तक तना, फैलाव की प्रवृति। सालाना बायोमास उपज 3-5 मी. प्रति हैक्टर। 12-15 साल का चक्र।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.89, भारी। ईंधन, कोयले और इमारती लकड़ी के लिए उम्दा। मवेशी इसका चारा चाव से खाते हैं।

कीट-व्याधियां: अफ्रीका में पत्तियों पर ऐम्परर मोथ की सुंडी हमला करती है।

डलवर्जिया सिस्सू (शीशम)

कुल: लेग्यूमिनोसी (उपकुल: पेपीलियोनाइडी)

सामान्य नाम: शीश, इंडियन रोजउड

मूल स्थान: भारत

प्राप्ति स्थान: भारत, घाना, नाइजीरिया, केमरून, पश्चिम अफ्रीका, शेल, मिडिल ईस्ट, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका, प्युर्टो रिसो।

भारत में: पूरे दक्षिण में, पश्चिम, मध्य और पूर्वी भारत में असम तक।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

उष्ण, अर्धशुष्क से आर्द्र, सालाना वर्षा 500-2000 मि.मी., 4-6 सूखे महीने, जमाव बिंदु से 50 डिग्री सें. तक तापमान, समुद्र तल से 1500 मी. ऊँचाई तक। जलोढ़ मिट्टी में खूब पनपता है लेकिन उन चिकनी मिट्टियों को छोड़कर जहाँ पानी निकासी की समस्या हो, तरह-तरह की दूसरी घटिया मिट्टियों में उग सकता है। यह नमक, सूखे, पाले और छाया को सह सकता है।

संवर्धन की विधि और बीज-उपचार

सीधे बीज से या पौध से उगाया जा सकता है। बेहतर अंकुरण के लिए और पौध की अच्छी बढ़वार के लिए नर्सरी में थोड़ी छाया की व्यवस्था की जानी चाहिए। फलियों से बीजों को अलग करना कठिन है। इसलिए फलियों को तोड़ा जाता है और 1-2 बीजों वाले टुकड़ों को बोया जाता है। बुआई से पहले बीजों को 24 घंटे तक भिगोया जाता है। राइबोजियम का टीका लाभदायक है। संवर्धन के लिए प्ररोह की कलम इस्तेमाल की जा सकती है। पेड़ों से मूल सकर्स पैदा होते हैं और अच्छे कल्ले फूटते हैं।

बढ़वार और उपज

बड़ा, पर्णपाती या सदाबहार, तेजी से बढ़ने वाला, 30 मी. की ऊँचाई तक जाता है, तने का व्यास 80 सें. मी. और आधा-सीधा व फैलाव वाली प्रक्रति। सालाना बायोमास उत्पादन 9-15 मी. प्रति हैक्टर। 12-15 वर्ष की आयु तक यह उपज हर साल मिलती है।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.64-0.70 और कैलोरी मान 4900-5200 किलो. कैलोरी प्रति कि.ग्रा., बहुत अच्छी ईंधन। फर्नीचर, नक्काशी, निर्माण, नौका-निर्माण और संगीत के वाद्य यंत्र और खेल के सामान के लिए उत्तम। पत्तियाँ मवेशियों के लिए अच्छा चारा।

कीट-व्याधियां

पिनहोल छेदक कीट तने पर हमला कर सकते है। जड़ प्रणालियों को हानि पहुँचाने वाले कीटों का पता चला है। सिंचित पौधों की जड़ों पर फफूंदी हमला करती है। भारत और पाकिस्तान में पत्ती की फफूंदी और पत्ती मुर्झान फफूंदी से हानि होने की सूचना मिली है।

डेरिस इंडिका

कुल: लेग्यूमिनोसी (उपकुल: पैपीलीयोनोइडी)

सामान्य नाम: पोंगा, करांजा, इंडियन बीच ट्री, पोंगेमिया

मूल स्थान: भारत

प्राप्ति स्थान: भारत, फिलिपीन, मलेशिया, आस्ट्रेलिया, सेशीलीस, संयुक्त राज्य अमेरिका (फ्लोरीड, हवाई)

भारत में: परे भारत में।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

आर्द्र से अर्धशुष्क, उष्ण और उपोष्ण, सालाना वर्षा 500-2000 मि.मी. 0 डिग्री सें. से 50 डिग्री सें. तापमान, समुद्र तल से 1200 मी. की ऊँचाई और जहाँ हल्की पाले को सहने की क्षमता हो। तरह-तरह की मिट्टियों में, जिनमें लवणीय मिट्टी, भले ही जड़ें भी लवणीय पानी में हो, शामिल है, पैदा हो सकता है। छाया को सह सकता है।

संवर्धन की विधि और बीज-उपचार

बीज से या कलम से पैदा किया जा सकता है। अनुपजाऊ भूमियों को छोड़ कर बाकी जगहों में नर्सरी में पौध उगाने की आवश्यकता नहीं है। बीज को उपचारित करने की आवश्यकता नही है। राइजोबियम का टीका लाभदायक है। कल्ले अच्छे फूटते हैं।

बढ़वार और उपज

मध्यम आकार, पर्णपाती या सदाबहार, तेजी से बढ़ने वाला, 8-12 मी. तक ऊँचा बढ़ता है। सीधा या टेढ़ा तना, व्यास 50-70 सें.मी. और आधा सीधा बढ़ने की प्रकृति। अच्छी नमी मिलने पर, वार्षिक लकड़ी पत्ते आदि कल बायोमास उपज 10-15 मी. प्रति हैक्टर तक, 8-10 साल का चक्र।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.55-0.75 और कैलोरी प्रति हैक्टर, अच्छी ईंधन, फर्नीचर बैलगाड़ी के पहिए और खंभे बनते हैं। बीजों में तेल होता है जिसे चिकनाई के लिए इस्तेमाल किया जा सकता हैं, इसके तेल को चमड़ा चिक्नाने, साबुन बनाने, वार्निश तैयार करने और कीटनाशी रसायनों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। तेल की खली को खाद, कीटनाशी दवा और मवेशियों के आहार के लिए इस्तेमाल किया जाता है। मिट्टी के कटाव की रोकथाम के लिए उपयोगी और रेतीले टीबों को बांधता है।

कीट-व्याधियां: किसी गंभीर समस्या की सूचना नहीं है।

ऐन्टेरोलोबियम साइक्लोकारपम

कुल: लेग्यूमिनोसी (उपकुल: मिमोसोइडी)

सामान्य नाम: ऐन्टेरोलोबियम, इयरपौड ट्री

मूल स्थान: मध्य अमेरिका

प्राप्ति स्थान: मध्य अमेरिका-दक्षिणी मैक्सिको से दक्षिणी अमेरिका,कैरेबियन द्वीप समूह, कोस्टा रीका

भारत में: नहीं पैदा होता।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

अर्धशुष्क और नम, सालाना बरसात 800-1200 मि.मी. और लम्बी सूखी अवधि। केवल कम उंचाईयों पर उगता है। तरह-तरह की मिट्टियों में उगता है पर अच्छी जल निकासी परिस्थितियाँ चाहिए।

संवर्धन की विधि और बीज उपचार

बीज से उगता है। बीजों को 80 डिग्री गरम पानी में कुछ मिनटों तक उपचारित किया जा सकता है जिन्हें बुआई से पहले पूरी रात भिगोना चाहिए। राइजोबियम का टीका लाभदायक है। अच्छे नये कल्ले फूटते है।

बढ़वार और उपज

बड़ा, सदाबहार, 30 मी. तक ऊँचा, मजबूत तना, व्यास 2 मी. और अच्छे फैलाव की प्रकृति। अगर पास-पास लगाए जायें तो तंग शीर्ष वाले पेड़ों के तने ऊँचे जाते हैं। उत्तम नमी की स्थितियों में, तने का व्यास 10 सें.मी. प्रति वर्ष बढ़ता है। बायोमास की ठीक-ठीक उपज का अनुमान उपलब्ध नहीं।

इसकी लकड़ी ईंधन, फर्नीचर, खराद, निर्माण तथा नौका निर्माण के ली अच्छी है। मवेशी इसका हरा चारा खाते है।

कीट-व्याधियां: किसी गंभीर समस्या की सूचना नहीं है।

एरीथ्रिना सुबरोजा (पांगरा)

पुराना नाम: एरीथ्रीना इंडिका

कुल: लेग्यूमिनोसी (उपकुल: पैपीलियोनोइडी)

सामान्य नाम: कोरल ट्री, पांगरा

मूल स्थान: एशिया

प्राप्ति स्थान: एशिया, मध्य अमेरिका

भारत में: तटवर्ती क्षेत्र, दक्षिण भारत के बाग़।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

नम, उष्ण से उपोष्ण, सालाना वर्षा 800-2000 मि.मी., समुद्र तल से 1500 मी. की ऊँचाई तक। तरह-तरह की यानी जैसे अम्लीय, क्षारीय, बलुई और चट्टानी मिट्टियों में उगता है। लम्बे समय तक जललग्नता की स्थिति सहन नहीं करता।

संवर्धन की विधि और बीज-उपचार

कलम से आसानी से उग सकता है। सामान्य तरीका 3 मी. लंबी कलम लगाने का है। सीधी बुआई के लिए बीज या नर्सरी में तैयार की गई पौध इस्तेमाल की जाती है। अच्छे अंकुरण के लिए बीजों को पूरी रात भिगोया जा सकता है। राइजोबियम का टीका लाभदायक है। काटने पर अच्छा पुनर्विकास होता है।

बढ़वार और उपज

मध्यम से बड़ा। पर्णपाती, 25 मी. तक ऊँचा, सीधा तना, 50-60 सें. मी. व्यास, फैलाव की प्रकृति। बायोमास के ठीक आंकड़े उपलब्ध नहीं।

लकड़ी हल्की होती है, कैलोरी मान कम। जल्दी जलती है। बाड़ के खंभों के लिए, टैंक के लिए और पेटियां बनाने के लिए उपयुक्त। पत्तियों का चारा बहुत बढ़िया होता है। बाड़ के लिए उत्तम किस्म।

कीट-व्याधियां: किसी गंभीर समस्या की सूचना नहीं।

यूकेलिप्टस कैमल्डुलेन्सिस

कुल: मिरटेसी

सामान्य: रेड गम, रिवर गम

मूल स्थान: आस्ट्रेलिया

प्राप्ति स्थान: स्पेन, मोरक्को, पाकिस्तान, अर्जेंटीना, केन्या, नाइजीरिया और तनजानिया।

भारत में: ज्यादा नहीं उगाया जाता।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

उष्ण और उपोष्ण, शुष्क से अर्धशुष्क -5 डिग्री सें.से 50 डिग्री सें. तक का तापमान, सालाना वर्षा 200-1250 मि.मी., 1200 मी. की ऊँचाई, पाले को सहने की क्षमता। अनुपजाऊ से लेकर जललग्नता वाली मिट्टियों में, कैल्शियम और ऊँचे पी.एच. मान वाली मिट्टी में उग सकता है, बीज के मूल पर लवण सहन करने की क्षमता निर्भर है।

संवर्धन की विधि और बीज-उपचार

नर्सरी में तैयार की गई पौध से उगाया जाता है। बीज-उपचार की आवश्यकता नहीं है। बीज बहुत छोटे होते है, इसलिए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उन्हें एकसार मिट्टी में डाला जाए, मिट्टी में गहराई पर नहीं चोबना (डिबिल) चाहिए। सतह पर बीजों को छिटका जाये और क्यारी की मिट्टी को धीमे से दबा दिया जाये। क्यारी को घास या सूखी घास से अंकुरण होने तक ढक दिया जाये। कटाई के बाद कल्ले व पत्तियाँ अच्छी उगती है।

बढ़वार और उपज

बड़ा, सदाबहार, 24-40 मी., ऊँचा, मजबूत, सीधा तना, 1 मी. तक व्यास और सीधे बढ़ने की प्रवृति। आठ दस साल की आयु तक सालाना बायोमास उपज 25-30 मी. प्रति हैक्टर बशर्ते कि मिट्टी और नमी उपयुक्त हो।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.65 और कैलोरी मान 4800 किलो. कैलोरी प्रति कि.ग्रा. । ईंधन, सामान्य निर्माण कार्य और लुगदी के लिए उत्तम। फूल शहद के स्रोत। मवेशी इसका चारा नहीं खाते। पेड़ आगरोधी होते है।

कीट-व्याधियां: पतंगों के लावां, यूकेलिप्ट्स स्नाउट बीटल, दीमक और छेदक कीट इस पर हमला करते है।

यूकेलिप्ट्स टेरेटिसकोर्निस

कुल: मिरटेसी

सामान्य नाम: ब्ल्यू गम, मैसूर गम

मूल स्थान: पूर्वी आस्ट्रेलियाई तट

प्राप्ति स्थान: आस्ट्रेलिया, पी.एन.जी. और अफ्रीका, एशिया और दक्षिण अमेरिका के उपोष्ण और उष्ण क्षेत्र।

भारत में: पूरे देश में।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

उष्ण से उपोष्ण, अर्ध शुष्क से शुष्क, सालाना वर्षा यदि कम यानी 400 मि.मी. तक भी हो परन्तु सर्वोत्तम स्थिति 800 और 1500 मि.मी. के बीच। 40 डिग्री सें. से 00 सें. तक के बीच विभिन्न तापमानों में उगने योग्य। गहरी, अच्छी जल निकासी वाली, हल्की उदासीन या थोड़ी सी अम्लीय मिट्टी उपयुक्त है, परन्तु खराब मिट्टियों में भी उग सकता है।

संवर्धन की विधि और बीज-उपचार

बीज से उगाया जाता है। अच्छे संवर्धन के लिए कोमल प्ररोह की कलियाँ उगायी जा सकती है। बीज के उपचार की आवश्यकता नहीं है। काटने पर कल्ले बहुत अच्छे फूटते हैं।

बढ़वार और उपज

बड़ा और सदाबहार, 45 मी. तक ऊँचा जाता है, तना सीधा और व्यास 1-2 मी. और सीधे बढ़वार की प्रवृति। सालाना बायोमास उपज 25 मी. प्रति हैक्टर आठ से दस समय का चक्र 8-10 वर्ष। लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.75 या अधिक, उच्च कैलोरी मान, ईंधन, कोयले, खंभे, फट्टे (फाइबर बोर्ड) पार्टिकल बोर्ड और लुगदी के लिए अच्छी। मवेशी इसका चारा नहीं खाते। पत्तियों से तेल निकाला जा सकता है। फूल शहद के पराग के अच्छे स्रोत हैं। घटिया मिट्टियों जैसे बलुई और कंकरीली मिट्टियों के सुधार के लिए अच्छा है।

कीट-व्याधियां

छोटी पौधों पर दीमक हमला करते हैं। स्नाउट बीटल और मोल क्रिकेट भी हानि पहुँचाते हैं। फफूंदी के हमले की भी सूचनाएँ मिली हैं।

मैसूर संकर किस्म भी यूकेलिप्ट्स टेरेटीकोर्निस से गहरे रूप से संबंधित है। गुलाबी बीमारी, जा कि मूल किस्म पर लगने वाली बीमारी है, के प्रति यह किस्म रोधी है। जिन शुष्क क्षेत्रों में सालाना वर्षा 800-1000 मि.मी. से कम होती है, वहाँ के लिए इस संकर किस्म का लगान की सिफारिश की गई है क्योंकि फफूंदी नम स्थिति में पेड़ पर हमला करती है। यह पूरे भारत में उगाया जाता है।

ग्लिरिसीडिया सेपियम

कुल: लेग्यूमिनोसी (उपकुल: पैपीलियोनोइडी)

सामान्य नाम: मेक्सिकन लिलाक, मदर ऑफ़ कोका

मूल स्थान: मध्य अमेरिका

प्राप्ति स्थान: मध्य अमेरिका, वेस्ट इंडीज, मेक्सिको, ब्राजील, उष्ण-कटिबन्धीय अफ्रीका, एशिया

भारत में: तटवर्ती क्षेत्र

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएं

नम, उष्ण, सालाना वर्षा 1500-2300 मि.मी., तापमान 22 डिग्री सें. से 35 डिग्री सें. तक, समुद्र तल से 1600 मी. तक ऊँचाई, पाला न पड़ता हो। तरह-तरह की मिट्टियों जैसे सूखी, नम, कटाव वाली कंकरीली, रेतीले टीवे और चूने वाली मिट्टियों में उगने योग्य।

संवर्धन की विधि और बीज-उपचार

बीज से आसानी से उगने योग्य। उगाने के लिए कलम लगा सकते हैं पर वहाँ जहाँ आर्द्रता अधिक हो और बरसात के दौरान ही। बीजों को 80 डिग्री सें. गरम पानी में भिगोना चाहिए और बाद में पूरी रात ठंडे पानी में बोने से पहले तक भिगोये रहने दें। राइबोजियम टीका लाभकारी है। काटने पर अच्छा पुनर्विकास होता है।

बढ़वार और उपज

छोटा, पर्णपाती पेड़, 10 मी. तक ऊँचा, छोटे मुड़े हुए तने वाला, 20-30 सें.मी. व्यास, शाखाओं की अर्ध सीधी बढ़ने की प्रकृति। उच्च नमी की स्थितियों में, बायोमास की उपज 5-8 मी. प्रति हैक्टर और 3-6 साल के अंतराल पर उपज हर साल मिलती रहती है। लकड़ी की विशिष्ट घनत्व 0.75 और कैलोरी मान 4900 किलो.  कैलोरी प्रति कि.ग्रा., ईंधन, फर्नीचर, औजार बनाने के लिए अच्छी। पत्तियों का चारा अच्छा होता है। बाड़ के लिए बढ़िया, मिट्टी के कटाव की रोकथाम करने वाला और कृषि वानिकी के लिए, विशेषरूप से बंजर भूमियों में, बहुत उत्तम।

कीट-व्याधियां: चैंपा (एफिड) का हमला होता है।

मेलाइना आर्बोरिया (गंभारी)

कुल: वर्बेनसी

सामान्य नाम: मेलाइना, गंभारी

मूल स्थान: भारत, नेपाल

प्राप्ति स्थान: भारत, नेपाल, पाकिस्तान, बंगलादेश, बर्मा, श्रीलंका, दक्षिण पूर्वी एशिया, दक्षिणी चीन, मलेशिया, फिलिपीन्स और ब्राजील।

भारत में: मध्य और पूर्वी भागों में।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

नम, उष्ण, सालाना वर्षा 750 से 4500 मि.मी. तक, 6-7 महीने का लंबा सूखा मौसम। ऊँचा तापमान। 1000 मी. तक की ऊँचाई लेकिन पाले से हानि। तरह-तरह की मिट्टियों में जैसे अम्लीय, कैल्केरियस, दुमट और लेटराइट में उगाने योग्य। जललग्नता नहीं सह सकता। इसके लिए सबसे उपयुक्त अच्छी जल निकासी वाली जलोढ़ मिट्टी है।

संवर्धन की विधि और बीज-उपचार

बीज, कलम या सांकुर कलम से उग सकता है। अच्छी भूमियों में बीज से सीधी बुआई हो सकती है। जल्दी अंकुरण के लिए बीज को ठंडे पानी में बुआई से पहले 24 घंटे तक भिगोये रखें। काटने पर अच्छा पुनर्विकास होता है।

बढ़वार और उपज

बड़ा, पर्णपाती, 20-30 मी. ऊँचा, तने का व्यास 60-100 सें.मी. 6-9 मी. तक साफ़ सीधा तना और आधा सीधा बढ़ने की प्रकृति, लेकिन खुली जगह में बोने पर फैलता है। अच्छी जल निकासी वाली, नम स्थितियों में वार्षिक बायोमास की उपज 30 मी. प्रति हैक्टर तक हो सकती है। 8-1-0 साल का चक्र।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.42-0.64 और कैलोरी मान 4800 कि. कैलोरी प्रति कि. ग्राम। मध्यम दर्जे का ईंधन और कोयला और निर्माण व बढ़ाई के काम के लिए, लुगदी, प्लाई और पार्टिकल बोर्ड के लिए अच्छी लकड़ी। फूल शहद के अच्छे स्रोत। चारा मवेशी खाते है। अग्नि रोधी है।

कीट-व्याधियां

पत्ती काटने वाला कीट, छाल का कीड़ा और मेशेट बीमारियाँ इस पर आक्रमण करती है। आग से हानि पहुँचने पर कीट-व्याधियां अधिक हमला करती है।

ग्रेवीलिया रोबस्टा

कुल: प्रोटीसी

सामान्य नाम: सिल्वर ओक, सिल्क ओक

मूल स्थान: आस्ट्रेलिया

प्राप्ति स्थान: आस्ट्रेलिया, भारत, श्रीलंका, केन्या, मौरीशस, जांबिया, मलावी, जिम्बाम्वे, तन्जानिया, उगांडा, दक्षिण अफ्रीका, हवाई, जमैका।

भारत में: पूरे देश में, विशेष रूप से ऊँची जगहों में, बागानी फसलों में छाया के लिए।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

उष्ण, नम, अर्धशुष्क क्षेत्र, वार्षिक वर्षा 700-2500 मि.मी., 4-6 महीने सूखा मौसम। तरह-तरह के तापमानों में उग सकता है। पाले के प्रति केवल आरंभिक चरण में संवेदनशील। समुद्र तल से 2300 मी. तक की उंचाईयों तक। तरह-तरह की मिट्टियों में जैसे अम्लीय मिट्टियों में उगता है, लेकिन गहरी, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में पनपता है। जललग्नता के प्रति संवेदनशील।

संवर्धन की विधि और बीज-उपचार

नर्सरी में उगाये गये पौधों से उगाया जाता है। परिपक्व होने के कुछ ही महीनों तक बीज जीवनक्षम रहते है। बीज उपचार की आवश्यकता नहीं।

काटने पर अच्छे कल्ले नहीं फूटते। लेकिन पेड़ों को बराबर ऊपर से काटा जा सकता है। इस तकनीक में, तने को सबसे पहले जमीन से 3-4 मी. ऊपर काटा जाता है जब तने का कम से कम व्यास 10 सें.मी. होता है। कटे हुए भाग के इर्द-गिर्द नये प्ररोह निकलते हैं जो मजबूत और बहुत से होते हैं। इन शाखाओं को हर छ: महीने बाद भी आवश्यकता के अनुसार काटा जा सकता है। इसीलिए यह पेड़ चाय और कॉफ़ी के बागानों में छाया देने के लिए बहुत पसंद किया जाता है।

बढ़वार और उपज

पर्णपाती, बड़ा पेड़, 12-30 मी. ऊँचा, सीधा तना, 30-90 सें.मी. व्यास, सीधे बढ़ने की प्रवृति।सालाना बायोमास उपज 12-15 मी. तक और 12-15 साल का चक्र।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.57, कठोर, ईंधन, फर्नीचर के लिए अच्छी लकड़ी, सामान्य निर्माण व खराद के लिए अच्छी। फूल शहद के उत्तम स्रोत। मवेशी आमतौर पर नहीं खाते।

कीट-व्याधियां

बीस साल बाद पेड़ विशेषरूप से सूखे स्थानों में, प्राय: अपक्षय (डाइ बैंक) के शिकार हो जाते हैं। मध्य अमेरिका से शल्क (स्केल) कीट के हमले के समाचार मिले है।

ल्यूसीना ल्यूसोसीफाला (सुबबूल)

कुल: लेग्यूमिनोसी (उपकुल: मिमोसोइडी)

सामान्य नाम: ल्यूसीना, सुबबूल, इपिल इपिल, हौर्स टेमेर्रिड

मूल स्थान: मेक्सिको

प्राप्ति स्थान: पूरे उष्ण कटिबन्धीय विश्व में पाया जाता है, फ्लोरीडा से लेकर ब्राजील तक मध्य और दक्षिण अमेरिका में, अफ्रीका से दक्षिण पूर्वी एशिया, आस्ट्रेलिया, फिलीपीन, प्रशांत द्वीप समूह, हवाई, ताइवान और भारत।

भारत में: पूरे दक्षिण, मध्य व पूर्वी भारत में।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

अर्ध शुष्क, उष्ण और उपोष्ण, सालाना वर्षा 600-1700 मि.मी., 4-5 महीने सूखे। कम ऊँची जगहों में उगता है, लेकिन 1000 मी. तक भी उगाने योग्य। पाले से हानि। तरह-तरह की मिट्टियों में उगने योग्य जैसे उच्च पी.एच. मान वाली, चूने के पत्थर वाली, चट्टानी व भारी लेकिन अत्यधिक अम्लीय, अल्युमिनियम बहुल और जललग्न मिट्टियों को नहीं सहता। अच्छी बढ़वार के लिए फास्फोरस मिलना चाहिए।

संवर्धन की विधि और बीज-उपचार

सीधे बीज से या नर्सरी में उगायी गयी पौधों से, नम क्षेत्रों में टहनियों की कलम से भी उगाया जा सकता है परन्तु केवल 25 प्रतिशत सफलता मिलती है। बीजों को बोने से पहले खुरचकर साफ़ करना चाहिए। उपचार के तीन तरीके हैं: पहला गाढ़े गंधक के तेज़ाब में 15 मिनट तक उपचारित करें। यह बड़ा कारगर ढंग है और इससे एक जैसा और जल्दी अंकुरण होता है लेकिन यह असुरक्षित है और खर्चीला है और खेतों में व्यावहारिक भी नहीं है। दूसरा तरीका यह है कि उबलते पानी में बीजों को 5 सेकिंड तक डुबोये और तीसरा यह है कि 80 डिग्री सें. गरम पानी में 15 मिनट तक डुबोये। दोनों ही तरीके हैं तो साधारण पर खेतों में पाँच सेकिंड तक आदमी गिन कर भी बता सकता है लेकिन गरम पानी का तापमान जानना मुश्किल है।

खुरचे हुए बीजों को फौरन ही बोया जा सकता है या उन्हें भली भांति सुखा कर भंडारित किया जा सकता है। बुआई से पहले बीजों को रात भर पानी में भिगो कर रखना चाहिए। राइजोबियम का टीका लाभदायक है। अम्लीय और क्षारीय मिट्टियों के लिए कल्चर मिल जाते हैं। कल्ले अच्छे निकलते हैं।

बढ़वार और उपज

इसकी तीन किस्में हैं। सैल्वेडोर किस्म तेजी से बढ़ती है और विशाल होती है, संवर्धन के लिए बड़े पौमाने पर इस्तेमाल की जाती है। मध्यम दर्जे का पतला पेड़ 8-20 मी. ऊँचा सीधा या थोड़ा टेढ़े तने वाला, व्यास 15-20 सें.मी. और सीधे बढ़ने की प्रवृति। सालाना बायोमास की उपज 100 मी. प्रति हैक्टर, उपज भूमि की उर्वता और नमी पर निर्भर करती है। फिर भी, औसत बायोमास की सालाना उपज 30-40 मी. प्रति हैक्टर प्रति वर्ष होती है। चक्र 3-6 साल।

मिट्टी का विशिष्ट घनत्व 0.45-0.60 और कैलोरी मान 4200-4600 किलो कैलोरी प्रति कि.ग्राम। ईंधन, कोयले, खम्भे, इमारती लकड़ी, फर्नीचर और लुगदी के लिए अच्छी। जुगाली करने वाले पशुओं के लिए उम्दा चारा। फूल शहद के अच्छे स्रोत। मिट्टी के कटाव की रोकथाम, कृषि वानिकी और बर्बाद हुए चरागाहों में लगाने के लिए उपयुक्त।

कीट-व्याधियां

बीज घुन के हमले बताये गए है। नये रोपे गए पौधों को दीमक चट कर सकते हैं। फिलिपीन और हवाई में हाल ही में साइलिड्स से भयंकर हमले हुए बताए जाते हैं। जललग्न क्षेत्रों में फफूंदी जड़ों व शीर्ष को हानि पहुंचा सकते हैं।

मेलिया एजेडरैक (बकायन)

कुल: मेलियासी

सामान्य: चाइनाबेरी, पर्शियन लिलाक, बीड ट्री, बकायन

मूल स्थान: पाकिस्तान, कश्मीर

प्राप्ति स्थान: भारत, चीन और ईरान

भारत में: पूरा भारत

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

उष्ण से थोड़ा गरम तापमान, नम से अर्धशुष्क, सालाना वर्षा 600-1000 मि.मी. और लम्बी सूखी अवधि, 80 सें. से 400 सें. तक तापमान। हिमालय में समुद्रतल से 2000 मी. तक ऊँचाई, लेकिन पौध को पाले से हानि। लवणीय, क्षारीय, थोड़ी अम्लीय मिट्टियों में अच्छा पनपता है लेकिन अच्छी जल निकासी वाली गहरी बलुई मिट्टी सर्वाधिक उपयुक्त।

संवर्धन की विधि और बीज उपचार

बीजों, कलमों और जड़ सकर्स (अंतर्भूस्तरी) से आसानी से उगने योग्य। प्रत्येक फल में 1-5 बीज, अगर न निकाले गए तो उनसे कई पौध पौदा हो जाती है। बीजों को छिला जाता है या सीधे ही उन्हें बोया जाता है अच्छे अंकुरण के लिए बीजों को 2-3 दिन तक पानी में भिगोया जाता है। काटने पर अच्छे कल्ले निकलते हैं।

बढ़वार और उपज

मध्यम आकार। पर्णपाती 6-15 मी. ऊँचा, सीधा तना, 30-60 सें. मी. व्यास और सीधे बढ़वार की प्रवृति। सालाना बायोमास 10-15 मी. प्रति हैक्टर। 5-8 साल का चक्र।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.66 और कैलोरी मान 5043-5176 किलो कैलोरी प्रति कि. ग्रा., ईंधन, कोयले, खंभे, निर्माण, इमारती लकड़ी, औजार, प्लाइउड, सिगार के बक्से और कागज बनाने के लिए अच्छी। भेड़-बकरियां पत्तियाँ खाती हैं। कृषि वानिकी के लिए अच्छी किस्म है।

कीट-व्याधियां

जमैका से कोंपल छेदकों के हमले के समाचार मिले है। माहू (एफिड) कोमल पत्तियों पर हमला करते हैं।

पार्किनसोनिया एक्यूलियाटा

कुल: लेग्यूमिनोसी (उपकुल: केसालपिन आयोडी)

सामान्य नाम: जेरुसलम थौर्न, हौर्सबीन

मूल स्थान: उष्ण और उपोष्ण अमेरिका

प्राप्ति स्थान: संयुक्त राज्य अमेरिका (दक्षिणी राज्य), मेक्सिको, अर्जेंटीना, वेस्ट इंडीज, अफ्रीका, भारत।

भारत में: मध्य भारत, महाराष्ट्र गुजरात।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

शुष्क और अर्ध शुष्क, उष्ण और उपोष्ण, विभिन्न तापमान – 0 डिग्री सें. से 45 डिग्री सें. तक, समुद्र तल से 1300 मी. ऊँचाई तक। सालाना वर्षा 200-1000 मि.मी. तक। 6 महीने की शुष्क अवधि। खराब, पथरीली, बलुई, रेगिस्तानी चरागाह और चिकनी मिट्टी में उगने योग्य। क्षारीय व लवणीय मिट्टी को सह सकता है पर जललग्नता को नही।

संवर्धन की विधि और बीज-उपचार

बीज से सीधे, नर्सरी में उगायी गयी पौध से या कलमों से या वायवीय दाब डाली से उगाने योग्य। बुवाई से पहले बीजों को 2-3 दिन तक पानी में भिगोया जाये। अच्छे कल्ले फूटते हैं।

बढ़वार और उपज

छोटा पेड़, 10 मी. ऊँचा, टेढ़ा तना, 40 सें.मी. व्यास, कंटीला, झुकी शाखाएं और फैलाव वाला। सालाना बायोमास उपज 10-20 मी. प्रति हैक्टर, 8-10 साल का चक्र।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.6 ईंधन व कोयले के लिए अच्छी। भेड़-बकरियां पत्तियों और फलियों को चाव से खाती हैं।

कीट-व्याधियां

कोंपल छेदक और स्नो स्केल के हमले की सूचनाएँ मिली है। दीमक पौधों को हानि पहुँचाते हैं। नम जलवायु में फफूंदी अपक्षय से हानि पहुंचाती है।

पाइनस कैरीबे

कुल: पिनासी

सामान्य नाम: कैरीबियन पाइन, यलोपाइन

मूल स्थान: मध्य अमेरिका

प्राप्ति स्थान: क्यूबा, मध्य और दक्षिण अमेरिका, उष्ण ब्राजील।

भारत में: पूर्वी भारत।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

नम, उष्ण, सालाना वर्षा 1000-1800 मि.मी., 100 मी. तक की ऊँचाई तक लेकिन इससे भी कम ऊँचाई पसंद है। 5 सें. से36 डिग्री सें. तक के तापमान पर पाला नहीं सहता। अच्छी जल निकासी, बलुई, दुमट, कंकरीली मिट्टी उपयुक्त, पी. एच. मान 5.0 से 8.7 तक।

संवर्धन की विधि और बीज-उपचार

नर्सरी में उगायी गयी पौध से उगाया जा सकता है। बीजों को पानी में 24 घंटे तक भिगोयें। उसके बाद 4-5 डिग्री सें. तापमान में शीतगृह में 10-12 घंटे तक बोने से पहले रखें। अच्छी बढ़वार के लिए माइकोरहिज फंगल (फफूंदी) का पौध से सम्पर्क होना अच्छा है। इस काम के लिए, नर्सरी की मिट्टी में पहले की नर्सरी से मिट्टी लाकर मिलानी चाहिए। काटने पर कल्ले अच्छे नहीं फूटते।

बढ़वार और उपज

बड़ा पेड़, 45 मी. ऊँचा जाता है, सीधा तना, व्यास 135 सें.मी., सीधी बढ़वार की प्रवृति। बायोमास प्रति वर्ष 15-35 एम. प्रति हैक्टर बढ़ता है जोकि स्थान और नमी की उपलब्धता पर निर्भर है। 8-10 साल का चक्र।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.40 – 0.66। नरम ईंधन, लुगदी, पार्टिकल बोर्ड, फायरबोर्ड, नौका निर्माण, भारी निर्माण और फर्नीचर के लिए उपयुक्त। मवेशी इसका चारा नहीं खाते।

कीट-व्याधियां

इन कीटों से हानि पहुंचती है: डेंड्रो, इप्स बीटल्स (भृंग), पाइन एफिड (चैंपा), पत्ते काटने वाली चीटिंयां, दीमक। आर्द्रगलन, अंगमारी और अपक्षय पेड़ पर हमला करते हैं।

पिथिकैलोबियम डलसे

कुल: लेग्यूमिनोसी (उपकुल: मिसोसोइडी)

सामान्य नाम: मद्रास थौर्न, मनीला तेमेरिंड

मूल स्थान: मेक्सिको

प्राप्ति स्थान: मेक्सिको, मध्य अमेरिका, फिलिपीन, भारत, सूडान, तन्जानिया और उष्ण कटिबन्धीय अफ्रीका के सूखे भाग।

भारत में: दक्षिण और मध्य भारत।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

शुष्क या अर्धशुष्क, उष्ण, सालाना वर्षा 450-1650 मि.मी. । उच्च तापमान और छाया सहता है पर पाला नहीं। समुद्रतल से 1800 मी. तक। तरह-तरह की मिट्टियों जैसे चिकनी मिट्टी, चूने पत्थर वाली, रेतीली और कंकरीली मिट्टी में उग सकता है।

संवर्धन की विधि और बीज-उपचार

बीज से आसानी से उग सकता है। अच्छी जगहों पर बीज से सीधी बुवाई की जा सकती है। नम परिस्थितियों में कलम से भी उगाया जा सकता है। बीज-उपचार आवश्यक नहीं। काटने पर अच्छे कल्ले फूटते हैं।

बढ़वार और उपज

बड़ा, सदाबहार, 20 मी. ऊँचा, तना छोटा और प्राय: टेढ़ा, व्यास 30-60 सें.मी. । फैलाव वाली प्रवृति। सालाना बायोमास की वृद्धि 6-12 मी. प्रति हैक्टर की दर से 1-15 साल का चक्र बशर्ते कि नमी की उपयुक्त स्थिति हो।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.64  और कैलोरी मान 5200-5600 किलो कैलोरी प्रति कि.ग्रा. ईंधन के लिए अच्छी, हालांकि धुएँ वाली। कोयले, इमारती लकड़ी और सामान्य लकड़ी के लिए उपयुक्त। पत्तियाँ पशुओं के लिए अच्छा चारा। फलियों में गाढ़ा मीठा गुदा होता है। मिट्टी के कटाव की रोकथाम, बाड़ और कृषि वानिकी के लिए उपयुक्त।

कीट-व्याधियां

छोटे कीट पत्तियां चट कर जाते हैं। छेदक कीट भी हानि पहुँचाते हैं। पत्ती के दाग की बीमारी का पता चला है।

पोपुलस युफ्रेटिका

कुल: सैलीकेसी

सामान्य नाम: पोपुलर, इंडियन पोपुलर

मूल स्थान: मिडिल ईस्ट (ईरान, ईराक, सीरिया)

प्राप्ति स्थान: चीन, स्पेन, मोरक्को, केन्या, ईरान, ईराक, सीरिया, तुर्की, पाकिस्तान, इजराइल, मिस्र, लीबिया, अल्जीरिया, भारत।

भारत में: उत्तरी भारत।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

आधी शुष्क, उपोष्ण और शीतोष्ण, तापमान – 5 डिग्री सें. और 52 डिग्री सें. के बीच, सालाना वर्षा 600 मि.मी. से अधिक और निश्चित सिंचाई। समुद्र तल से 4000 मी. ऊँचाई तक उग और पाले को सह सकता है। जलोढ़, गहरी मिट्टी में पनपता है और उच्च पी.एच.मान सह सकता है।

संवर्धन की विधि और बीज-उपचार

बीज से या मूल सकर्स (भूस्तारी) से उगाया जा सकता है। भारत में नर्सरी में उगाने के लिए मूल की कलमें इस्तेमाल की जाती है। बीज उपचार आवश्यक नहीं। काटने पर अच्छा विकास होता है।

बढ़वार और उपज

मध्यम आकार, पर्णपाती, 15 मी. तक ऊँचा, काफी सीधा तना, व्यास 30-70 सें.मी. और सीधी बढ़वार की प्रवृति। तेजी से बढ़ता है। सालाना व्यास बढ़ने की दर से 4.0-5.3 सें.मी. लेकिन ठीक-ठीक उपज के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। 8-10 साल बाद पेड़ काटे जा सकते हैं।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.48 और कैलोरी मान 5019 किलो कैलोरी प्रति कि.ग्रा. । ईंधन, माचिस, प्लाइउड और खेल के सामान बनाने के लिए उपयुक्त। पत्तियों का अच्छा चारा बनता है।

कीट-व्याधियां: भृंग, छेदक कीट, गाल बनाने वाले कीट और पत्ती चाटने वाले कीट हानि पहुँचाते हैं।

प्रोसोपिस सिनेरेरिया (खेजड़ी)

कुल: लेग्यूमिनोसी (उपकुल: मिमोसोइडी)

सामान्य नाम: खेजड़ी, जंद

मूल स्थान: भारत

प्राप्ति स्थान: भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान और सउदी अरब।

भारत में: पंजाब, पश्चिम राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, मध्य और दक्षिण भारत।

जलवायु तथा मिट्टी की आवश्यकताएँ

शुष्क, उष्ण, लम्बा सूखा मौसम, गरम हवाएं, पाल के प्रति थोड़ी सहिष्णुता। सालाना वर्षा 75-850 मि.मी., तापमान – 6 डिग्री सें. से. 50 डिग्री सें. लेकिन कम उंचाईयों तक सीमित। जलोढ़, मोटी बलुई, चट्टानी, काली कपासी, साधारण लवणीय और क्षारीय मिट्टियों पर उगता है। मिट्टी की पी.एच.मान 9.8 तक।

संवर्धन की विधि और बीज-उपचार

मूल सकर (भूस्तरी) से उग सकता है और बीजों से जो कि 10 साल तक जीवन क्षम रहते हैं। बोने से पहले बीजों को 24 घंटे तक भिगोना चाहिए। राइजोबियम का टीका लाभकारी होता है। काटने पर अच्छा पुनर्विकास होता है।

बढ़वार और उपज

मध्यम आकार, पर्णपाती, कंटीला, 5-9 मी. ऊँचा, टेढ़ा तना, व्यास 30 सें.मी. और आधी तिरछी बढ़वार की प्रवृति। सालाना बायोमास वृद्धि 3-45 मी., 12-15 साल का चक्र।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 1.15 और कैलोरी मान 5000 किलो कैलोरी प्रति कि.ग्रा., ईधन कोयले, नाव की लकड़ी, गृह-निर्माण और खेती के औजारों के लिए अति उत्तम। पत्तियों का चारा उम्दा होता है। मिट्टी के कटाव की रोकथाम और कृषि वानिकी के लिए उत्तम।

कीट-व्याधियां: कुछ छोटे कीड़ों के हमले की सूचनाएँ मिली हैं।

प्रोसीपिस जुलीफ्लोरा (विलायती बबूल)

कुल: लेग्यूमिनोसी (उपकुल:मिमोसोइडी)

सामान्य नाम: मैसक्वाइट, विलायती बबूल

मूल स्थान: मध्य और दक्षिणी अमेरिका

प्राप्ति स्थान: दुनिया भर के शुष्क क्षेत्रों में।

भारत में: पूरे देश में।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

शुष्क, उष्ण, उपोष्ण, सालाना वर्षा 150-750 मि.मी., अधिक गरम, सूखे जलवायु और समुद्र तल से 1500 मी. की ऊँचाई तक उगता है। कुछ किस्में पाला सह सकती है। तरह-तरह की मिट्टियों जैसे सूखी, बलुई, चट्टानी और क्षारीय ऊसर और लवणीय भूमि में उग सकता है।

संवर्धन की विधि और बीज-उपचार

सीधे बीज से या नर्सरी में उगायी गई पौध से या मूल के सकर (भूस्तरी) से भी उगाया जा सकता है। बीजों के उपचार करने के लिए या तो उन्हें 20 प्रतिशत के गंधक के तेज़ाब के घोल में एक घंटे तक डुबोकर रखें या पानी को उबाल लें और फिर बीजों को पानी के ठंडा होने तक डुबोये रखें। इसके बाद ठंडे पानी में बोने से पहले 24 घंटे तक डुबोने से अंकुरण अच्छा होता है। राइजोबियम का टीका लाभदायक होता है। काटने पर अच्छा पुनर्विकास होता है।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0-70 और कैलोरी मान 5000 किलो कैलोरी प्रति कि.ग्रा. । ईंधन, कोयले, बाड़ के खंभे और हल्की इमारती लकड़ी के रूप में अच्छी। फूल शहद के उत्तम स्रोत। इसकी फलियाँ मवेशियों के लिए पौष्टिक चारा हैं। इसकी पत्तियों को पशु नहीं खाते। यह किस्म आमतौर पर खरपतवार बनकर आस-पास के क्षेत्रों में फ़ैल जाती है।

कीट-व्याधियां: ब्रूचिड भृंग (बीटल्स) फलियों को हानि पहुंचा सकते है।

टेरोकारपस इंडिक्स (नारा या पादौका)

कुल: लेग्यूमिनोसी (उपकुल: पेपीलीयोनोइडी)

सामान्य नाम: नारा, पादौका

मूल स्थान: दक्षिण पूर्वी एशिया

प्राप्ति स्थान: फिलिपीन, मलेशिया, इंडोनेशिया, पी.एन.जी.

भारत में: संभवत: पूर्वी क्षेत्र में।

जलवायु तथा मिट्टी की आवश्यकताएँ

नम, उष्ण, सालाना वर्षा 1500 मि.मी. से अधिक।600 मी. से कम ऊँचाई तक। ठंडे जलवायु और पाले को नहीं सह सकता। गहरी, उपजाऊ और अच्छी जलनिकासी वाली मिट्टियों में उगता है।

संवर्धन की विधि और बीज-उपचार

बीज, सकर (अंतर्भूस्तरी) और कलमों से आसानी से उगाया जा सकता है। पंखदार (फैलावदार) फलों को तोड़ कर बीज निकाले जाते हैं और बोने से पहले पूरी रात भिगोये जाने चाहिए। राइजोबियम टीका लाभदायक होता है। नम क्षेत्रों में इसकी पौध लगाना बहुत लोकप्रिय है। काटने पर अच्छा पुनर्विकास होता है।

बढ़वार और उपज

बड़ा, सदाबहार, भूरे गोल सिर वाला पेड़, 40 मी. ऊँचा, सीधा तना, 15-20 मी. का साफ़ तना जिसका व्यास 1-2 मी.होता है। फिलिपीन में 7 साल के पेड़ का तना 30 सें. मी. और ऊँचाई 12-15 मी. होती हैं। बीच की दूरी अधिक होनी चाहिए। बायोमास की ठीक-ठीक उपज के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। 15-20 साल बाद पेड़ काटे जा सकते है। लकड़ी पीली या चमकीली लाल होती है जिसमें काली धारियाँ होती है। बढ़िया फर्नीचर के लिए उत्तम। फिलिपीन का या राष्ट्रीय पेड़ है और विदेशी मुद्रा कमाने का महत्वपूर्ण साधन। पत्तियाँ मवेशी खाते हैं।

कीट-व्याधियां: गंभीर समस्या नहीं।

रोबीनिया या स्यूडोआकेशिया

कुल: लेग्यूमिनोसी (उपकुल: पेपीलियोनोइडी)

सामान्य नाम: ब्लैक लोकस्ट, फाल्सएकेशिया, यलो लोकस्ट

मूल स्थान: पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका

प्राप्ति स्थान: विश्व के शीतोष्ण व भूमध्यसागरीय क्षेत्र, जिनमें हंगरी, कनाडा, इजराएल और साएप्रस हैं।

भारत में: हिमालय के गिरिपीठ, उत्तरी भारत।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

नम, उपोष्ण और शीतोष्ण, गर्मियों का मौसम ज्यादा गरम और सर्दियों का ज्यादा सर्द। ताप्मान – 40 डिग्री सें. से 35 डिग्री सें. तक, समुद्रतल से 2500 मी. ऊँचाई तक और सालाना वर्षा 1000 मि.मी. से अधिक। 300 -400 मि.मी. वर्षा वाले क्षेत्रों में भी प्राय: जड़ों में पेड़ लगाए गए हैं, जहाँ 2-6 महीने सूखे हों। तरह-तरह की मिट्टियों में, हल्की बलुई और उच्च अम्लीय, चूने वाली, खान वाली मिट्टियों में उग सकता है लेकिन जललग्नता नहीं सह सकता। पेड़ औद्योगिक वायु प्रदूषण सह सकते है।

संवर्धन की विधि और बीज-उपचार

सीधे बीज से या नर्सरी में उगायी गयी पौध से बुवाई। बीज का छिलका कठोर होने के कारण, इसकी सप्तावस्था को तोड़ने के लिए इसे यंत्र द्वारा खुरचने की आवश्यकता है या इसे गंधक के तेज़ाब में 20-30 मिनट तक डुबोयें या बीजों पर उबलता हुआ पानी डाला जाये। काटने पर अच्छा पुनर्विकास होता है।

बढ़वार और उपज

मध्यम आकार का, कंटीला, पर्णपाती 18-25 मी. ऊँचा, थोड़ा टेढ़ा तना, 30 सें.मी. व्यास तना, और बढ़ने की प्रवृति आधी तिरछी। सालाना बायोमास उपज 5-10 मी. । 10-12 साल का चक्र।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.7-0.8, भारी, टिकाऊ, उच्च कैलोरी मान, ईंधन, कोयले, इमारती लकड़ी व खंभों के लिए अच्छी। पत्तियों का अच्छा चारा बनता है। मिट्टी के कटाव की रोकथाम और रक्षात्मक बाड़ के लिए उत्तम।

कीट-व्याधियां: टिड्डी, बोरर (छेदक) और काष्ठ छेदक कीटों के हमले की सूचनाएँ मिली हैं।

समेनी समन

कुल: लेग्यूमिनोसी (उपकुल: मिमोसोइडी)

सामान्य नाम: रेनट्री, मंकी पौड ट्री

मूल स्थान: दक्षिण अमेरिका (वेनजुएला)

प्राप्ति स्थान: दक्षिण अमेरिका, एशिया

भारत में: पूरे देश में।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

अर्ध शुष्क और नम, उष्ण, सालाना वर्षा 600-2500 मि.मी., 2-4 सूखे महीने। उच्च तापमान में खूब पनपता है और 2 डिग्री सें. तक ठंडा जलवायु सह सकता है लेकिन पाला नहीं सह सकता। समुद्र दल से 1000 मी. तक की ऊँचाई तक उगता है। घटिया मिट्टियों, क्षारीय स्थितियों में भी पनपता है पर लम्बे समय तक जललग्नता नहीं सह सकता।

संवर्धन की विधि और बीज-उपचार

सीधे बीज से या नर्सरी में उगायी गयी पौध से आसानी से उगता है। नम स्थितियों में कलम भी लगाई जा सकती है। बोने से पहले बीज पूरी रात भिगोये जाने चाहिए। राइजोबियम का टीका लाभदायक है। काटने पर अच्छा पुनर्विकास होता है।

बढ़वार तथा उपज

बड़ा, सदाबहार, 45 मी. ऊँचा, छतरीनुमा फैलाव 55 मी. तक और सीधा छोटा तना, व्यास 2.5 मी. । सभी उष्ण प्रदेशों में लोकप्रिय वृक्ष है। उपयुक्त स्थितियों में तने का व्यास 5 साल में 18 सें. मी.तक हो जाता है। बायोमास की उपज के ठीक आंकडें उपलब्ध नहीं हैं। पास-पास लगाने से पेड़ सीधा बढ़ता है और 10-12 साल में काटा जा सकता है। लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.52 मजबूत और कठौर। लकड़ी ईंधन, कोयले, फर्नीचर, खराद के काम के लिए और नौका निर्माण के लिए अच्छी। पत्तियां पशु खाते हैं। पशुओं के लिए इसकी फलियाँ पौष्टिक होती है।

कीट-व्याधियां: कोई गंभीर समस्याएं नहीं।

सेस्बेनिया ग्रैंडीफ्लोरा (अगस्त)

कुल: लेग्यूमिनोसी (उपकुल: पैपीलियोनोइडी)

सामान्य नाम: बैक्यूल, अगस्त, अगाती

मूल स्थान: उत्तर-पश्चिमी आस्ट्रेलिया

प्राप्ति स्थान: दक्षिण एशिया, फिलिपीन, हवाई, भारत ।

भारत में: पूरे देश में।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

नम, उष्ण, सालाना वर्षा 1000 मि.मी. से अधिक, संक्षिप्त सूखा मौसम। 800 मी. तक उग सकता है, पाला नि सहता। तरह-तरह की मिट्टियों में जिनमें घटिया, बलुई, काली चिकनी, अम्लीय, क्षारीय शामिल हैं, उगता है। गंदला पानी भी इस्तेमाल हो सकता है।

संवर्धन की विधि और बीज-उपचार

सीधे बीज से या नर्सरी में उगायी गयी पौध से उगाया जा सकता है। नम स्थितियों में उगाने के लिए कलमें भी इस्तेमाल की जा सकती हैं। बीज-उपचार आवश्यक नहीं। राइजोबियम का टीका लाभदायक है। काटने के बाद कल्ले फूटते हैं लेकिन ज्यादा नहीं पनपते। इन ठूंठों से तीन-चार बार चारा लिया जा सकता है।

बढ़वार तथा उपज

छोटा, पर्णपाती या सदाबहार। सीधे तने वाला 10 मी. तक ऊँचा, तना 30 सें.मी. और बढ़वार की प्रकृति सीधी। उपयुक्त दशाओं में सालाना बायोमास की वृद्धि 20-25 मी. तक, 3-5 साल का चक्र।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.42 ईंधन अच्छा नहीं लेकिन लुगदी के लिए अच्छा। पत्तियों का अच्छा चारा बनता है। एशिया में इसकी कोमल पत्तियों, फूलों व कोमल फलियों की सब्जी चाव से खाई जाती है। मिट्टी के कटाव की रोकथाम के लिए और रक्षात्मक बाड़ के रूप में और कृषि वानिकी के लिए उत्तम।

कीट-व्याधियां: सूत्रकृमियों व फुदका कीटों से हानि।

सेस्बेनिया सेस्बान (शेवरी)

कुल: लेग्यूमिनोसी (उपकुल: पैपीलियोनोइडी)

सामान्य नाम: सेस्बान, इंजिप्शिन रैटल पौड, शेवरी

मूल स्थान: मिश्र

प्राप्ति स्थान: उष्णकटिबन्धीय अफ्रीका, एशिया, यू.एस.ए. (हवाई) ।

भारत में: दक्षिण और मध्य भारत।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

अर्ध शुष्क से नम, उष्ण, सालाना वर्षा 350-1000 मि.मी., 10 डिग्री सें. से 45 डिग्री सें. तक तापमान, 1200 मी. की ऊँचाई तक। क्षारीय और अम्लीय मिट्टियों, यदा-कदा बाढ़ और जललग्नता को सह सकता है।

संवर्धन की विधि और बीज-उपचार

सीधे बीज से बुआई। बीज-उपचार की आवश्यकता नहीं। राइजोबियम का टीका लाभदायक। काटने पर अच्छा पुनर्विकास होता है, पर 2-3 कटाई के बाद कमजोर पड़ जाता है।

बढ़वार और उपज

छोटी, सदाबहार झड़ी, 6 मी. तक ऊँची, सीधा तना और कई शाखाएं और सीधी बढ़वार की प्रवृति। सालाना बायोमास उपज 10-25 मी. प्रति हैक्टर तक, 3-4 साल का चक्र।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.4-0.5 मध्यम दर्जे की ईंधन। देहाती घरों के लिए व खिलौने बनाने के लिए लकड़ी प्रयुक्त हो सकती है। कोमल पत्तियों, फूलों और हरे बीजों की सब्जी भी बनाई जाती है।

मिट्टी का कटाव रोकने, हवा रोकने और कृषि वानिकी के लिए अच्छी।

कीट-व्याधियां: तम्बाकू की सुंडी पत्ते चट कर जाती है।

एजाइगोफलेप्स के लार्वा तने में छेद करते हैं। कुछ कीड़े बीजों को हानि पहुँचाते हैं। कई फफूंद व जीवाणु पौधों को हानि पहुँचाते है।

थेसपीसिया पोपलनी (मेंडी)

कुल: मालवेसी

सामान्य नाम: पोर्शिया, भेंडी

प्राप्ति स्थान: उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र स्थान

भारत में: पूरे देश के तटवर्ती क्षेत्र, नम क्षेत्र।

जलवायु तथा मिट्टी की आवश्यकताएँ

नम, उष्ण, वर्षा 1000 मि.मी. से अधिक या अनिवार्य सिंचाई, 5 डिग्री सें. से 45 डिग्री सें. तक तापमान। समुद्र तल से 1000 मी. तक ऊँचाई, पाला शन नहीं करता। तरह-तरह की मिट्टियों में उगता है जिनमें बलुई, लेटराइट, जलोढ़ काली चिकनी, दलदली, अम्लीय भी शामिल हैं और ऐसी मिट्टियाँ भी जो नमकीन पानी से लबालब भरी हों। चट्टानी मिट्टियों और सूखी स्थितियों में बढ़वार रुक जाती है।

संवर्धन की विधि और बीज उपचार

सीधे बीज से या नर्सरी में उगायी गयी पौध से उगाया जा सकता है। नम स्थितियों में कलम भी लगायी जा सकती है बीज उपचार की आवश्यकता नही। आमतौर पर ऊपर से कटाई की जाती है। आमतौर पर नई कोंपलों को काट दिया जाता है।

बढ़वार और उपज

मध्यम आकार, सदाबहार, 15-20 मी. तक ऊँचा, सीधा, छोटा तना और अनेक फैली हुई टहनियां। तेजी से बढ़ता है। बायोमास की उपज के अनुमानित आंकड़े उपलब्ध नही है। 8-10 साल के बाद पेड़ काटे जा सकते हैं।

लकड़ी का विशिष्ट घनत्व 0.5-0.8 मध्यम दर्जे की ईंधन। बैलगाड़ी में बीच वाली सहतीर बनाने के लिए विशेष रूप से उपयुक्त, माचिस व खंभे बनाने के लिए भी उपयुक्त। पत्तियाँ पशुओं के लिए अच्छा चारा।

कीट-व्याधियां: कोई गंभीर समस्या नहीं।

स्रोत: भारतीय कृषि उद्योग संस्थान

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



© C–DAC.All content appearing on the vikaspedia portal is through collaborative effort of vikaspedia and its partners.We encourage you to use and share the content in a respectful and fair manner. Please leave all source links intact and adhere to applicable copyright and intellectual property guidelines and laws.
English to Hindi Transliterate