कपास भारत की प्रमुख फसलों में से एक है जो देश के आर्थिक विकास महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कपास की उच्च उपज वाली किस्मों के विकास, प्रौद्योगिकी के उपयुक्त हस्तांतरण, बेहतर कृषि प्रबंधन प्रथाओं को अपनाने एवं संकर बीटी कपास की खेती के तहत बढ़े हुए क्षेत्र के माध्यम से भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक बन गया है। कपास को हानि पहुँचाने वाले कीटों की विभिन्न प्रजातियों में कुल 12 कीट आर्थिक क्षति की दृष्टि प्रमुख माने जाते हैं। कपास की फसल को सबसे अधिक क्षति रस चूसने एवं डोडी या टिंडे भेदने वाली कीटों से होती है। वर्ष 2002 में बी\टी कपास के आगमन के बाद कपास की फसल में पहले टिंडे बेधक कीटों से अधिक नुकसान होता था किन्तु बीटी कपास के आगमन के बाद इनके प्रकोप में कमी आयी है परंतु लगातर संवेदनशील बीटी शंकर कपास लगाने की वजह से चूसक कीटों के प्रकोप में दिनों दिन बढ़ोत्तरी देखने में आ रही है। वर्ष 2013 – 2014 में भारत में 119.60 लाख हेक्टेयर से कपास का उत्पादन 398 लाख गांठे हुआ। वर्ष 2015 – 16 में उत्तर भारत में सफेद मक्खी के प्रकोप व गुजरात में लाल सुंडी के प्रकोप की वजह से 2016 – 17 में कपास के क्षेत्रफल में भरी कमी दर्ज की गयी। पर्यावरण की रक्षा और बेहतर उपज प्राप्त करने के लिए सभी किसानों को एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन (आईपीएम) रणनीति को अपनाने करने की आवश्यकता है। कीट और बीमारी की सही पहचान आईपीएम का पहला कदम है।
सफेद मक्खी – इस कीट के शिशु व वयस्क कपास की वनस्पतिक वृद्धि के समय से टिंडे बनने तक पौधों से रस चूसकर फसल को हानि पहुँचाते है तथा पत्तों का मरोडिया रोग भी फैलाते है। कीटों के मधु स्राव करने पर काली फफूंदी आने से पत्तों की भोजन बनाने की क्षमता प्रभावित होती है। सफेद मक्खी का प्रकोप होने पर पत्तियां सुख कर काली होने लगती हैं। इस कीट का आर्थिक क्षति स्तर 8 -10 वयस्क/पत्ती है।
मिली बग – इस कीट के शिशु व वयस्क सफेद मोम की तरह होते हैं तथा पौधों के विभिन्न भागों से रस चूसकर उन्हें कमजोर बना देते हैं। ग्रसित पौधे झाड़ीनुमा बौने रह जाते हैं। गूलर (टिंडे) कम बनते है तथा इनका आकार छोटा एवं कुरूप हो जाता है। ये कीट मधुस्राव भी करते हैं जिन पर चींटियाँ आकर्षित होती हैं जो इन्हें एक पौधे से दूसरे पौधे तक ले जाती हैं। इस प्रकार यह कीट खेत में सम्पूर्ण फसल पर फ़ैल जाता है।
हरा फुदका – इस कीट का वयस्क हरे पीले का लगभग 3 मिली लंबा होता है तथा पंखों पर पीछे की ओर दो काले धब्बे हैं। शिशु तथा वयस्क पत्ती की निचली सतह से रस चूसकर उन्हें टेड़ी – मेढ़ी कर देते हैं। पत्तियां लाल पड़ कर अंतत: सूखकर गिर जाती है। इस कीट का आर्थिक क्षति स्तर – 2 वयस्क या निम्फ/पत्ती है।
माहू /चेंपा – चेंपा के शिशु व वयस्क पत्तियों की निचली सतह पर झुंड में प्रवास करते हैं तथा पत्तियों से रस चूसते रहते हैं। इसके कारण पत्तियां टेड़ी – मेढ़ी होकर मुरझा जाती हैं अतंत: बाद में झड़ जाती है। प्रभावित पौधे पर काली फफूंदी भी पनपने लगती है जो प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को प्रभावित करती है।
थ्रिप्स (काष्ठकीट) – थ्रिप्स के वयस्क छोटे, छरहरे एवं पीले – भूरे रंग के होते हैं, जिनके पंख धारीदार होते हैं। नर थ्रिप्स के पंख नहीं होते हैं। मादा कीट पत्ती के निचले सतह पर अंडे देते हैं। नवजात और वयस्क थ्रिप्स पट्टी के भीतरी भाग की कोशिकाओं से रस चूस लेते हैं। इसके प्रकोप से पत्तियां हल्की मुड़कर मुरझाने से लगती हैं तथा इनकी सतह बाद में चांदी जैसे रंग की हो जाती है, इसलिए इन्हें सिल्वर लीफ के नाम से जाना जाता है। इस कीट के अधिक प्रकोप से पत्तियों में रतुवा जैसा पदार्थ उत्पन्न होता है जिससे पत्तियों में भारीपन आ जाता है।
मिरिड बग – मिरिड बग की कुछ प्रजातियाँ हरे व कुछ भूरे रंग की होती हैं जो देश के विभीन्न भागों में पायी जाती है। इस कीट के वयस्क व निम्फ फसल में कपास के रस चूसकर काफी नुकसान पहुंचाती हैं। इसकी वजह से कली और टिंडे समय से पहले झड़ने लगते हैं हरे टिंडों में छोटे – छोटे छेद भी दिखाई देते हैं, उनका आकर छोटा तथा तोते की चोंच की तरह हो जाता है।
कपास का लाल बग कीट – इस कीट के शिशु व वयस्क दोनों ही पत्ती व हरे डोडियों से रस चूसते हैं। ग्रसित डोडियों पर पीले धब्बे तथा कपास पर लाल धब्बे आ जाते हैं। कपास से रूई
निकालते समय, बागों के मशीन में पिसने से कपास की गुणवत्ता कम हो जाती है।
कपास का धूसर/डस्की बग – इस कीट के वयस्क 4 – 5 मिली लंबे राख के रंग के या भूरे रंग के व मटमैले सफेद पंखों वाले होते है तथा निम्फ छोटे व पंख रहित होते है। शिशु व वयस्क दोनों ही कच्चे बीजों से रस चूसते हैं जिससे बीज पक नहीं पाते तथा वजन में हल्के रह जाते हैं। जिनिंग के समय कीटों के दबकर कर मरने से रूई की गुणवत्ता प्रभावित होती है जिससे बाजारू मूल्य कम हो जाता है।
इस कीट की मादा पौधे को कोमल भागों पर एक – एक करके अंडे देती है। अण्डों सर निकलने वाली सुंडी गुलाबी रंग की होती है जो डोडियों में छेद कर घूस जाती है तथा प्रभावित पुष्पों को इल्ली, लार से बने रेशमी धागे से कात देती हैं जिसके कारण पुष्प पूर्ण विकास नहीं कर पाते तथा प्रभावित पुष्प जल्दी ही झड़ जाते हैं। इस कीट की अंतिम पीढ़ी की इल्लियाँ टिंडों के अंदर दो बीजों को जोड़कर उसके अंदर शीत निष्क्रियता में चली जाती हैं। इस कीट का आर्थिक क्षति स्तर 8 वयस्क/ट्रैप लगातार तीन दिन तक या 10 प्रतिशत जीवित इल्ली से ग्रसित पुष्प कलिकाएँ एवं टिंडे।
इस कीट की सूंडिया आरंभ में पत्तियों को खाती हैं तथा बाद में डोडी/टिंडा में घूस जाती है। एक सुंडी कई डोडियों को नुकसान पहुँचाती है। इस कीट का आर्थिक क्षति स्तर – एक अंडा या एक इल्ली प्रति पौधा या 5 – 10 प्रतिशत प्रभावित, क्षतिग्रस्त टिंडे होता है।
इसके वयस्क शलभ हल्के रंग के होते हैं इसकी एक प्रजाति के आगे के पंख पर पंख पे एक सफेद धारी भी होती है। शुरू की इल्लियाँ शाखाओं के शीर्ष को भेदन करके खाती है। बाद में कलियों, फूलों और टिंडों को क्षतिग्रस्त करती है तथा क्षतिग्रस्त टिंडे में अंदर जाने के रास्ते को अपने त्यागित मॉल पदार्थ से बंद कर देती है। कीट से प्रभावित टिंडे से प्राप्त रूई भी अच्छी गुणवत्ता की न होने से बाजार भाव भी प्रभावित होता है। इस कीट का आर्थिक क्षति स्तर – एक इल्ली/पौधा अथवा 10 प्रतिशत प्रभावित शाखाएँ या सामान्यत: 3 प्रभावित टिंडे/पौधा होता है।
वयस्क पतंगे के अगले पंख गहरे भूरे रंग के सफेद लहरदार धारियों युक्त व पिछले पंख सफेद होते है। प्रारंभ में शिशु लार्वा तेजी से झुंड में पत्तियों के हरे भाग को खाती है बाद में अकेली सुंडी (लट) पुष्प गुच्छों, कलियों व कच्चे टिंडों को खाकर काफी नुकसान करती है। इस कीट का आर्थिक क्षति स्तर – एक अंडा समूह या पूर्ण क्षतिग्रस्त पत्ती प्रति 10 पौधे होता है।
उकठा रोग विल्ट की तरह दिखाई देता है तथा इसके प्रकोप से अचानक पूरा पौधा मुरझाकर सूख जाता है। एक ही स्थान पर कुछ पौधों में से एक या दो पौधों को सूखना इस रोग की मुख्य पहचान है। इस रोग का प्रमुख कारण वातावरणीय तापमान में अचानक परिवर्तन, मृदा में नमी का असंतुलन, जल भराव तथा पोषक तत्वों की असंतुलित मात्रा का प्रयोग होता है।
यह रोग पौधे की पुरानी पत्तियों में दिखाई देता है प्रारंभ में पत्तियों के किनारे पीले होने लगते हैं तथा बाद में लाल रंग के धब्बे पूरी पत्तियों पर फ़ैल जाते हैं जिसके कारण पत्तियां सूखने लगती हैं। इस रोग का प्रमुख कारण पत्तियों में नत्रजन व मेंग्निशियम की कमी का होना होता है। अचानक रात्रि के तापमान में कमी आने आने से पत्तियों में लाल पिगमेंट बनने लगता है एवं पूरी की पूरी पत्ती लाल रंग की दिखने लगती है।
रबी की फसल की कटाई के पश्चात मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की गहरी जुताई करें। इस प्रक्रिया से जमीन के अंदर सूशूप्तावस्थाओं में मौजूद कीट की सभी अवस्थाएँ नष्ट हो जाती है।
खेत के आस पास सभी खरपतवारों व पिछले वर्ष के फसल अवशेषों को नष्ट करें क्योंकि इन खरपतवारों पर सफेद मक्खी एवं अन्य कीट अपना जीवन चक्र पूरा कर अपनी जनसंख्या वृद्धि करते हैं।
क्षेत्र विशेष के लिए सिफारिश की गयी कीट रोग प्रतिरोधक/ सहनशील प्रजाति/शंकर बीज का चयन करें क्योंकि संवेदनशील प्रजातियों पर कीट का प्रकोप व उससे होने वाली छति अधिक होती है।
मृदा जाँच के परिणाम के आधार पर आवश्यकतानुसार मुख्य व सूक्ष्म पोषक तत्वों का खेत की तैयारी के समय प्रयोग करें। केवल नत्रजन के अधिक प्रयोग से फसल पर चूसक कीटों व रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है।
पंजाब, हरियाणा व राजस्थान में 15 मई तक कपास की बुवाई सुनिश्चित करें क्योंकि देर से बोई गयी फसल पर सफेद मक्खी का आक्रमण अधिक होता है तथा क्षति ज्यादा होती है।
सीमा पर रूकावट फसल की पंक्तियाँ – कपास के खेत के चारों तरफ ज्वार/बाजरा/मक्का की दो पंक्तियों में बुवाई करें। क्योंकि ये फसलें मक्खी तथा अन्य हानिकारक कीटों को एक खेत से दुसरे खेत में फैलने से रोकती हैं तथा ये फसलें मित्र कीटों के लिए भोजन व आश्रय भी प्रदान करती हैं।
आवश्यकतानुसार समय - समय पर सिंचाई करें क्योंकि नमी की कमी होने पर पौधे की पत्तियों में मौजूद प्रोटीन टूटकर एमिनो अम्ल में परिवर्तित हो जाती है जोकि चूसने वाले कीटों को अच्छा पोषण प्रदान कर उनकी संख्या में वृद्धि करती है जिसके कारण फसल में ज्यादा क्षति होती है।
कपास की फसल की लगातार साप्ताहिक अन्तराल पर कीट निगरानी जारी रखें।
फसल की प्रांरभिक वानस्पतिक वृद्धि की अवस्था में बुवाई के 45 दिन के आस – पास खेत में सफेद मक्खी की निगरानी व बड़े पैमाने पर फंसाने के लिए पीला चिपचिपा प्रपंच (ट्रैप) 100/हेक्टेयर का प्रयोग करें।
तम्बाकू सुंडी व लाल सुंडी, चितकबरी सुंडी व लाल सुंडी के फेरोमोन ट्रैप को खेत में अगस्त माह स्थापित करें तथा 20 – 25 दिन पर ल्यूर बदलते रहें, जिससे इनके वयस्क पतंगों की निगरानी हो सके और समय रहते हुए इनके वयस्क पतंगों की निगरानी हो सके और समय रहते हुए इनके प्रबंधन हेतु उचित निर्णय लिया जा सके।
प्रारंभिक अवस्था में जून अथवा जुलाई तक सफेद मक्खी दिखाई देने पर खेत में आवश्यकतानुसार 5 प्रतिशत नीम के सत या 1 प्रतिशत नीम के तेल के 7 दिन के अंतर पर 2 छिड़काव कर कर सकते हैं।
पेराविल्ट/नया उकठा की रोकथाम हेतु लक्षण दिखने के 24 – 48 घंटे के अंदर 10 पीपीएम कोबाल्ट क्लोराइड का छिड़काव तथा 25 ग्राम कापरअक्सिक्लोराइड + 200 ग्राम यूरिया प्रति 10 लीटर पानी के साथ पौधों के जड़ क्षेत्र को गिला करें।
सफेद मक्खी, हरा फुदका, थ्रिप्स आदि की संख्या बढ़ने पर (जुलाई के अंत से सितंबर प्रारंभ तक) आर्थिक क्षति स्तर पर सुरक्षित कीटनाशी (इन्सेक्ट ग्रोथ रेगुलेटर) स्पइरोमेसिफिन 22.9 SC 600/ हे. ब्यूप्रोफेजिन 50 SC 1000 मिली /हे. डायाफ़ेन्थिउरोन 50 WP 500ग्रा/हे. पयरीप्रोक्सिफेन 10 EC 1000 मिली/हे. फ्लोनिकामिड 50 WG 150 ग्रा./हे. का प्रयोग करें।
पुष्पन की अवस्था होने पोटेशियम नाइट्रेट के साप्ताहिक अन्तराल पर 4 छिडकाव करें जिससे फसल में कीटों के नुकसान के प्रति सहनशीलता आती है एवं उपज में वृद्धि होती है।
परभक्षी मित्र कीटों जैसे लेडी बीटल, मकड़ी, क्राइसोपरला आदि को पहचाने व उनका संरक्षण करें एवं उनकी उपस्थिति में कीटनाशियों का प्रयोग न करें।
सितंबर – अक्टूबर में मिली बग के परजीवी के प्यूपे दिखाई दने पर मिली बग के लिए किसी भी रसायन का प्रयोग न करें।
आवश्यकता पड़ने पर अक्टूबर माह में सफेद मक्खी का अधिक प्रकोप दिखाई देने पर ट्राईजोफोस या एथिओन का प्रयोग भी आकर सकते हैं।
तंबाकू की इल्ली के एंड समूहों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें।
तंबाकू सुंडी की संख्या आर्थिक क्षति स्तर से ऊपर होने पर अगस्त माह में एसएल – एनपीवी का छिड़काव करें।
देशी कपास (बीटी रहित) में 75 दिन की फसल में 1.5 लाख परजीवित अंडे/हे. की दर से ट्राईकोग्रामा किलोनिस सप्ताहिक अंतराल पर प्रयोग करें तथा उपलब्धता ओने पर 50000/हे. की दर से क्राईसोपरला लार्वा/अंडा का प्रयोग करें।
फसल कटाई उपरांत फसल अवशेष को कम्पोस्ट के साथ दबाकर नष्ट करें।
क्या न करें
स्त्रोत: राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन अनुसंधान केंद्र, नई दिल्ली
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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