मूंग एवं उड़द भारत की प्राचीनतम तथा कम समय के पकने वाली महत्वपूर्ण दलहनी फसलें दलहनी फसलें है। इन फसलों में वातावरणीय नाइट्रोजन को पौधों द्वारा ग्रहण करने योग्य बनाने की अद्भूत क्षमता होती हैं। एक अनुमान के अनुसार के अनुसार लगभग 50 – 55 कि. ग्रा./ है नाइट्रोजन मृदा में उत्पादन करती है जिससे उत्पादन लागत कम हो जाती है। इनकी खेती लगभग सभी राज्यों में की जाती है परंतु महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु तथा उड़ीसा, मूगं तथा हानिकारक कीटों का प्रकोप होता है। इन फसलों पर लगभग 19 पादप रोगों तथा 64 हानिकारक कीटों का प्रकोप होता है। जिसमें चेपा, फली छेदक कीट, तना छेदक तथा मारूका तथा पीला मोजेक वायरस, बुंदकी, रूक्ष तथा चूर्णी कवक रोग प्रमूख्हाई। रोगों तथा हानिकारक कीटों की उचित समय पर पहचान का समुचित प्रबंधन कर लिया जाए तो उपज का काफी भाग नष्ट होने से बचाया जा सकता है।
भूमि में छुपे कोषकों को नष्ट करने के लिए गर्मी के महीनों में मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करनी चाहिए। जिससे भूमि के अंदर छिपे हुए कीट व कीट कोषक ऊपर आ जाते हैं और कीट भक्षी उन्हें खाकर नष्ट कर देते हैं। इसके अलावा भूमि में रहने वाले रोगों (उकठा, जड़ सड़न/गलन) से बचाव के लिए बुवाई से पहले 5 – 10 ग्राम ट्राईकोडर्मा ग्रा) प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करना चाहिए या 2.5 ग्राम थीरम + 2.0 ग्रा कार्बेन्डाजिम को प्रति किलो ग्राम बीज में मिलकर शोधित करना चाहिए। उपरोक्त विधियों में से किसी एक विधि के अनुसार बीज उपचार करने के बाद राइजोबियम कल्चर के साथ उपचारित करना चाहिए।
फसलों की समय पर बुवाई करनी चाहिए। इससे फली भेदक से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। स्वीकृत प्रजतियां उगाने से क्षेत्रीय मृदा रोग एवं कीटों का काफी हद तक रोकथाम की जा सकती है एवं संतुलित व संस्तुत मात्रा में खाद व पानी क उपयोग करना चाहिए।
फसल |
ऋतु |
फसल प्रकार |
बुवाई का उपयुक्त समय |
मूंग |
बंसत |
सिंचित |
मार्च का प्रथम पखवाड़ा। |
ग्रीष्म |
सिंचित |
मार्च के अंतिम सप्ताह से अप्रैल का प्रथम पखवाड़ा |
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खरीफ |
बारानी |
मॉनसून के आने पर, विशेषकर जून के अंत से मध्य जूलाई तक। |
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यदि मॉनसून देर से आये तो बुवाई जूलाई के अंत तक या अगस्त के प्रथम पखवाड़ा तक की जा सकती है। |
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रबी |
बारानी |
दक्षिण पूर्वी भागों में सितम्बर से दिसम्बर के मध्य खेतों में उपलब्ध नमी के अनुसार। |
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उड़द |
बसंत |
सिंचित |
मार्च का प्रथम पखवाड़ा। |
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खरीफ |
सिंचित |
मॉनसून के आने पर, दक्षिण एवं दक्षिण पूर्वी क्षेत्रों में सितम्बर से दिसम्बर तक की जा सकती है। |
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रबी |
बारानी |
बुवाई धान की कटाई के बाद मृद में उपलब्ध नमी के अनुसार करनी चाहिए। |
स्त्रोत: राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन अनुसंधान केंद्र, नई दिल्ली
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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