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मीठा पानी सीपियों के बहुमुखी उपयोग

मीठा पानी सीपियों के बहुमुखी उपयोग

परिचय

मोलस्क या घोंघे पशु प्रजातियों में ऑर्थोपोडस के बाद की फाइलम है जिसे मोलस्का के रूप में जाना जाता है। शब्द मोलस्क का जन्म लैटिन शब्द मोलस्कस से हुआ, जिसे मोलिस’ शब्द से लिया गया है और जिसका अर्थ मुलायम होता है। यह जीव विविध निवास स्थल में रहते हैं अर्थात स्थलीय, समुद्री और मीठा पानी। यह निवास स्थल के साथ आकार, शारीरिक संरचना और व्यवहार में भी अत्यधिक विविध होते हैं। कुल मोलस्का की प्रजातियों में से लगभग 14 प्रतिशत मीठा पानी सीपी हैं तथा बाइवल्विया कक्षा के तहत आते हैं जो घोघे हैं। यह समुद्री क्लैम और सीप के चचेरे भाई के समान हैं। यह काज की तरह बंधन से जुड़े हुए दो शैल हैं। दुनिया भर में, सीपी मीठा पानी अर्थात परित्यक्त तालाब पानी से लेकर बहते हुए झरने और नदियों में भी रहते हैं ।

इन्हें आदिम पशु सीपी वैज्ञानिक अनुसंधान के अनेक पहलुओं में अपने बहुमुखी उपयोग करते दिखाया गया है। आर्थिक दृष्टिकोण से सदियों से सीपियों की सुंदरता,खोल सामग्री और प्राकृतिक मोती के लिए महत्वपूर्ण माना गया है। दुर्भाग्य से, यहाँ भी एक प्रकार से सीपी संसाधनों को बहुत ज्यादा निकालने के लिए प्रेरित किया गया। मोती उद्योग में इसके उपयोग के अलावा, मोती शैल का उपयोग दवा, चूना, डाई और अन्य बहुत सी चीजों में होता है। इस लेख में, सीपियों की बहुआयामी भूमिका पर चर्चा करने का प्रयास किया गया है जिससे उद्यमियों को न केवल इस प्रजाति का बहुसंख्यक आयाम में उपयोग करने में प्रेरणा मिलेगी, बल्कि विभिन्न तरीकों से इस प्रजाति के उपयोग से अतिरिक्त आय उत्पन्न करने में मदद होगी ।

खाद्य एवं चारा के रूप में सीपी का उपयोग

मानव भोजन में उपयोग

मीठा पानी सीपी, लैमिलीडेन्स मार्जिनेलिस भारत की ग्रामीण और आदिवासी आबादी में आहार के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका है। कुछ समुदायों में मीठा पानी सीपियों और अन्य मोलस्का की प्रजातियों को अन्य आहार के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं। लगभग 250-350 कि.ग्रा. मोलस्का की प्रजातियों को इम्फाल के बाजार में प्रतिदिन बेचा जाता है।

तालिका 1: मानव भोजन के रूप में इस्तेमाल होने वाली मीठा पानी सीपी प्रजातियाँ

प्रजाति

राज्य

लेमिलीडेन्स मार्जिनेलिस

झारखंड,ओडिशा,बिहार,पश्चिम बंगाल,मेघालय

लेमिलीडेन्स कोरिआनस

मणिपुर,झारखंड,ओडिशा,बिहार,पश्चिम बंगाल

लेमिलीडेन्स जेनीरोसस

मणिपुर

लेमिलीडेन्स फैन्कूगैन्जेसिस

मिजोरम

लेमिलीडेन्स बरमानस

मणिपुर

लेमिलीडेन्स फेलेवीडेंस

झारखंड,ओडिशा,पश्चिम बंगाल,मेघालय,मणिपुर

लेमिलीडेन्स सिक्कीमेंसिस

मणिपुर, मिजोरम

लेमिलीडेन्स कैयरुलिय

झारखंड,ओडिशा,पश्चिम बंगाल,मिजोरम

लेमिलीडेन्स ओकेटा

मणिपुर

है। कई मोलस्कन प्रजातियों को मेघालय में भोजन के रूप में इस्तेमाल करते हैं तथा शिलोंग के गारो बाजार में बेचते देखा है। मानव भोजन के रूप में मीठा पानी सीपियों का विवरण तालिका 1 में प्रस्तुत किया गया है। मीठे पानी सीपी लैमिलीडेन्स और पेरेशिया में क्रमश: 59-62 प्रतिशत और 57-61 प्रतिशत प्रोटीन होता है। यह भी ज्ञात है कि लैमिलीडेन्स प्रजाति में पूफा तथा पेरेशिया में इपीए आधिक होता है। इस प्रकार, ये प्रजातियाँ मानव स्वास्थ्य के लिए लाभकारी ओमेगा तेल की निकासी के लिए भी उपयोगी होती हैं। मीठा पानी सीपी इस प्रकार पौष्टिक भोजन का सबसे अच्छा और सस्ता स्रोत साबित हो सकती है। यह आलेख न केवल बाइवल्व खेती में रूचि रखने वाले किसानों के लिए उपयोगी साबित होगा परन्तु छोटे और मध्यम उद्यमियों के आर्थिक लाभ के लिए भी उपयोगी होगा।

छोटे जानवरों के लिए खाद्य

जलीय खाद्य श्रृंखला में मीठा पानी सीपी का एक उल्लेखनीय स्थान है। ऐतिहासिक रूप से अमेरिका के मूल निवासी मीठा पानी सीपी खाते रहे हैं, लेकिन इसके चीवी स्थिरता और अप्रिय स्वाद के कारण इन्हें वर्तमान खपत से दूर कर दिया है। सीपी का मांस पोषक तत्वों और प्रोटीन में समृद्ध है। इसलिए इसे मुर्गी पालन, झींगा और अन्य मांसाहारी मछली के लिए एक फीड सामग्री के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। स्पेन में सीपी खोल को एक पशु चारा एडेटिव के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। यहाँ तक कि बत्तख, गीज और फलैटवार्म भी इन अकशेरूकीय को खाने के लिए जाने जाते हैं।

मोती उत्पादन के लिए सीपी का उपयोग

दुनिया भर के सभी जीवों के बीच मोती सीपी सबसे खतरे में हैं। अठारहवीं सदी के मध्य में मीठा पानी सीपी को आमतौर पर लोगों द्वारा ताजे पानी के मोती प्राप्त करने के लिए एकत्रित किया जाने लगा। इस खोज के बाद, सीपियों को लगातार एकत्रित करने से पूरे सीपी बेड के थोक विनाश की दिशा में बढ़ते गए। सीपी द्वारा प्राकृतिक मोती गठन की नींव ऐरेगोनाइट क्रिस्टल के रूप में कैल्शियम कार्बोनेट से होता है, जिसका स्राव अनिवार्य रूप से इसकी मेंटल टिसू की उपकला कोशिकाओं द्वारा हुआ। मीठा पानी सीपी की कुछ प्रजातियाँ मोती उत्पादन के लिए कारगर है। स्वाभाविक रूप से जीवित सीपी में डाले गए नाभिक में नेकर का जमाव होता है तथा समय के साथ केल्शियम कार्बोनेट की परतों पर परतें जोड़ने से मोती का निर्माण होता है। भारत में केवल तीन प्रजातियों, एल.मार्जिनेलिस एल.कोरिआनस और पेरेशिया कोरुगाटा से सफलतापूर्वक मोती उत्पादन किया जाता है। केवल वही सीपी जो पर्ल मदर लेयर को धारण करती है एक प्रतिरक्षा फगोसाइटिक रक्षात्मक विधि में एक मोती को जन्म दे सकती है। वियतनाम और अन्य देशों जैसे जापान, चीन और भारत आदि में मोती उत्पादन के लिए सीपियों का संवर्धन कोर और ऊतक समाविष्ट के साथ प्राकृतिक परिस्थितियों के संयोजन द्वारा किया जाता है। इस विधि से अच्छा परिणाम, मोती उपज में वृद्धि, समय को कम करना होता है तथा इस प्रकार लाभ अधिक होता है।

देश में मीठा पानी मोती संवर्धन पर मानव संसाधन विकसित करने के लिए केन्द्रीय मीठाजल जीवपालन संस्थान (सीफा) की मोती संवर्धन इकाई प्रगतिशील मोती उत्पादकों और सरकारी अधिकारियों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मीठा पानी मोती संवर्धन पर प्रशिक्षण आयोजित करता है। सीफा की वेबसाइट पर प्रशिक्षण कार्यक्रम की अनुसूची हर साल विज्ञापित होती है। इच्छुक प्रतिभागी निदेशक, सीफा से भी इस पहलू पर संपर्क कर सकते हैं।

बायोकॉम्पेटिबल नाभिक की तैयारी में सीपी सेल का उपयोग

हाल के वर्षों में सीफा, भूवनेश्वर ने स्वदेशी कच्चे माल से नाभिक बनाने की तकनीक विकसित कर ली है जो आयातित न्यूक्लियर बीड के मानक के बराबर पाया गया है | विकसित स्वदेशी नाभिक स्टीलन सामग्री, अंडा-शैल पाउडर, या सीप और शैल पाउडर की तरह सस्ता और स्थानीय रूप से उपलब्ध घटक से बना है। इस नाभिक की तैयारी के लिए प्रक्रिया काफी सरल है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह सीपी द्वारा स्वीकार भी किया गया है। जिससे आयातित शैल बीड से बने मोती की तुलना में अच्छे मोती का उत्पादन शुरू हो सका है।

शैल बीडस न्यूक्लियस की तैयारी के लिए एल.मार्जिनेलिस निकालने के लिए पानी से धोया जाता है। यदि सूखा मांस इत्यादि लगा रहता है तो उसको खुरच कर निकाला जाता है। इसके बाद खोल को 5000 पीपीएम के क्लोरीन घोल (5 ग्राम ब्लीचिंग पाउडर व 10 प्रतिशत क्लोरीन युक्त 1 लीटर पानी) में 24 से 48 घंटे तक डुबोकर रखा जाता है। पूरी तरह से साफ खौल को अलग कर साफ पानी में धोया जाता है। इनको 60 डिग्री सेल्सियस तापमान में 2 घंटे से अधिक ओवन में रखा जाता है या लंबी अवधि के लिए सूरज की धूप में खौल से क्लोरीन को पूरी तरह से निकालने के लिए सुखाया जाता है। सूखी शैल को मोर्टर और पेसल की मदद से छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ा जाता है, फिर बिजली की चक्की से पीसा जाता है। खौल पाउडर को 0.01–0.05 मि.मी. जाल आकार की छलनी या महीन कपड़े से छानकर महीन पाउडर को एकत्र किया जाता है। वाणिज्यिक गोंद एरालडाइट हार्डनर और रेसीन (जो एक बंधक के रूप में कार्य करता है) को 1:1 अनुपात में मिलाकर पेस्ट तैयार करते हैं। इस पेस्ट में महीन पाउडर को सना आटा की तरह गाढ़ा करने के लिए धीरे-धीरे डाला जाता है।इस पाउडर और पेस्ट का अनुपात 5:1 होना चाहिए। इसके तत्काल बाद इच्छित आकृति और आकार की न्यूक्लियस बनाकर हवा में कठोर होने तक सुखाया जाता है। आरोपण के पहले न्यूक्लियस को उबालकर ठंडा किया जाता है।

बटन उद्योग में सीपी का इस्तेमाल

अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी में प्लास्टिक के आगमन से पहले, कपड़ों के लिए ज्यादातर बटन सीपी खौल से बनाए जाते थे । इस उद्योग में मीठा पानी सीपी के टिकाऊ कठोर और चमकीले शैल से बटन का निर्माण होता था। बटन उद्योग को बढ़ाने के लिए 18वीं सदी के अंत तथा 19वीं सदी के मध्य में पूर्वी उत्तर अमेरिका में हजारों टन शैल को इकट्ठा किया गया। अच्छी गुणवत्ता वाले बटन बनाने के लिए, नेकर या मदर ऑफ पर्ल को सफेद, अधिमानतः इंद्रधनुषी होना चाहिए, भंगुर या चूने का नहीं। शैल का कई बटन बनाने के लिए काफी बड़ा तथा मोटा होना चाहिए। सीपी को मुख्य रूप से नदियों जैसे इलिनोइस, मिसीसिपी और झरनों से निकाला जाता है और आगे की प्रक्रिया के लिए बटन उद्योगों को भेज दिया जाता है।है। बटन का कुछ पसंदीदा प्रकार पसंदीदा प्रकार मकेट, पॉकेटबुक, श्री-रिज, पिम्पबलबैक,हीलस्पलिटर और बकहॉर्न है।

औषधि एवं प्रसाधन कंपनियों में सीपी उपयोग

बाइवल्व से निकाले गए पदार्थ/अणुओं का उपयोग एंटीर्थोमबायोटिक, एक्सट्राभेसन एजेंट, गठिया, इस्कीमिक हदय रोग और हाइपरलिपिडीमिया के उपचार में किया जाता है। स्वाभाविक रूप से सीपी के शरीर में कोनड्रोटिन नामक पदार्थ उत्पन्न होता रहा है जो कम आणविक यौगिक तथा गठिया के लिए एक उत्तम दवा है। ग्लूकोसामाइन के साथ-साथ, कोनड्रोटिन सल्फेट पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस के उपचार के लिए व्यापक रूप से इस्तेमाल आहार अनुपूरक बन गया है। प्रसंस्कृत ओयस्टर शैल का इस्तेमाल मानव और जानवर दोनों के लिए कैल्शियम सप्लीमेंट के रूप में हो रहा है। वियतनाम में विभिन्न प्रकार के शैल को पारंपरिक दवा के रूप में थकान के इलाज के लिए और रक्तस्राव रोकने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसको खुले घावों तथा फोड़े पर भी छिड़का जाता हैं।

ओयस्टर से प्राप्त पाउडर पर्ल को एक ट्रापिकल ऑख दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है और यह वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हो चुका है कि ऑखों का रोग जिसे नेत्र शलेष्मला शोथ के नाम से जाना जाता है, जिसमें ऑख लाल होकर फूल जाती है, में पाउडर पर्ल का एंटी-इनफलामेटरी प्रभाव होता है। पाउडर पर्ल का चेहरे और शरीर पर पाउडर के रूप में उपयोग का लंबा इतिहास रहा है। यह एरेगोनाइट (कैल्शियम कार्बोनेट का एक रूप) से बना होता है तथा प्रोटीन कोनकीओलीन द्वारा मिलकर पकड़ा रहता है, जो पिसने पर एक चमक के साथ सफेद पाउडर के रूप में मुलायम और महीन रूप ले लेता है। मोदी पाउ़़डर का सौंदर्य प्रसाधनों में इस्तेमाल शायद चीन से शुरु हुआ और आज भी जारी है।

मोलस्क के पैर के भाग को उत्तर-बिहार में इथनोमेडिसिनल लाभ के लिए खाया जाता है। यह भी ज्ञात हुआ है कि सीपी पैर के विशेष फिनोल ग्रंथियों से स्रावित पॉलीफिनोलस, प्रदूषण बचाव में मुख्य एंटीऑक्सीडेंट के रूप में काम करते हैं। भारतीय मीठा जल सीपी, एल मार्जिनेलिस के खाद्य हिस्से में एंटीऑक्सीडेंट होता है, विशेष रूप से फिनोलिक प्रोटीन जो गठिया व अजीर्ण सूजन की बीमारी की रोकथाम में प्रभावी होता हैं। इसलिए यह सीपी समेकित पोषण के दृष्टिकोण के डिजाइन में एक उपयुक्त उम्मीदवार है।

उपकरण के रूप में शैल का उपयोग

प्रागेतिहासिक अमेरिकी भारतीय सीपी का उपयोग विभिन्न किस्मों के औजार बनाने में करते थे। वे फसल कटाई के दौरान भूटटों (कोब्स) से मक्का के दाने निकालने के लिए सीप के खोले का इस्तेमाल करते थे। इसका इस्तेमाल ओडिशा में भी पाया जाता है, आदिवासी लोग आम का छिलका उतारने के लिए धारदार सीपी शैल का उपयोग करते हैं। इसके अलावा, पुरातत्व खुदाई में पता चला है कि उत्तरी अमेरिका के लोग मिट्टी के बर्तन, उपकरण बनाने में भी सीपी शैल का इस्तेमाल करते थे तथा मिट्टी की टिलिंग करने के लिए जुताई ब्लेड और फावड़ा जैसे उपकरणों के निर्माण के लिए भी सीपी शैल का उपयोग करते थे।

चूना उद्योग में शैल का उपयोग

सीपी शैल एक समग्र बायोमेटेरियल है, जिसमें खनिज भाग, कैल्शियम कार्बोनेट 95 से 99 प्रतिशत तथा शेष 1 से 5 प्रतिशत कार्बनिक मैट्रिक्स है और अन्य तत्वों की छोटी और मैग्नीशियम होता है। इसलिए, इस कैल्शियम कार्बोनेट को सबसे अच्छे चूने में उपयोग किया जता है। गंजम जिला, ओडिशा के तटीय क्षेत्र में रहने वाले विभिन्न समुदाय पारंपरिक रूप से एक प्रकार के सीपी खौल के संग्रह में लगे। हैं। ये सीपी बहुत स्वदेशी तरीके में विभिन्न प्रयोजनों के लिए उपयोग किए जाते हैं। सजावटी सामान बनाने के अलावा, वे इसको चूना बनाने में इस्तेमाल करते हैं। इस चूने का घरों में सफेदी करने में और विभिन्न प्रकार के निर्माण तंबाकू उत्पादों,सीमेंट,ब्लीचिंग पाउडर,यूनानी दवाओं के निर्माण में, गुड उद्योग में तथा देसी शराब आसवन इकाइयों में भी इस्तेमाल हो रहा है।

सजावटी (हस्तशिल्प) के रूप में सीपी का उपयोग

सीपी शैल शिल्प सजावट के लिए भी एक विशिष्ट रूप में उपयोग होते हैं। आज की कला रूपों में कई अठारहवीं सदी में शुरू हुई। शैल का काम इतना लोकप्रिय और फैशनेबल बनाने के लिए प्रमुख श्रेय इंग्लैंड को जाता है, लेकिन फ्रांस और कई देशों की संस्कृति में भी शैल का सजावट में उपयोग करते हैं। सीप से बने तेल के लैंप पूरे मध्य पूर्व में पाए जाते हैं। इन दिनों भारत भी पीछे नहीं है। यह आसानी से व्यापार करने वाले क्षेत्र को दोनों ग्रामीण लिया जा सकता है। पेपर वेट, कलम, मोबाइल फोन स्टैंड, एश ट्रे, तेल दीपक, कुंजी स्टैंड आदि आइटम को भारतीय मोती सीपी के खौल से आसानी से तैयार किया जा सकता है। हाल ही में मछली के एक्वेरियम को सजाने के लिए पॉलिश में सीपी खौल का इस्तेमाल होने लगा है। मदर ऑफ पर्ल भी सीधे गहने में तैयार किए जाते हैं। कोई भी इन हस्तकला उत्पादों से अच्छा लाभ प्राप्त कर सकता है।

जैविक सूचक

बाइवल्व घोंघे सेडन्टरी फिल्टर-फीडिंग जलीय अकशेरूकीय है,जो प्रदूषण का जैविक संकलन (बायोएकुमूलेट) कर सकते हैं। इस प्रकार जलीय अकशेरूकीय जीवों को पर्यावरण संदूषित पदार्थ के प्रभावों की जाँच के लिए आदर्श प्रजातियाँ माना जाता है। बाइवल्व को अक्सर आकलन और विभिन्न विषाक्त पदार्थों और भारी धातुओं के जोखिम के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए मॉडल के रूप में अध्ययन किया जाता है। इन्हें आमतौर पर जैविक अखंडता और पानी की गुणवत्ता का अच्छा संकेतक माना जाता है। इनके क्षेत्र में गिरावट आने पर प्रदूषण का संकेत मिलता है और पानी की गुणवत्ता में गिरावट दर्ज की जाती है। हाल ही में आर्सेनिक संदूषण की बायोमॉनीटरिंग के लिए एल. मार्जिनेलिस को एक मॉडल जीव के रूप में पहचान मिली है। सीपी के गलफड़े, गुर्दे और पाचन ग्रंथियों के अलावा मेंटल धातु और जैविक प्रदूषणों के बायोएकुमुलेशन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आमतौर पर गलफड़े और मेंटल में गुर्दे विभिन्न चयापचयों को विशेष प्रोटीन, मेटेलोथायोनिनस में बदल कर भारी धातुओं और प्रदूषित पदार्थों को खत्म करने में मदद करता है।

जैनिक छन्नक (बायोफिल्टर या लिविंग फिल्टर)

जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों में मीठा पानी सीपी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। आसीन सस्पेंसन फीडर के रूप में, यह तलछट, कार्बनिक कण पदार्थ, जीवाणु और पादप प्लवक (फाइटोप्लैंकटन) सहित, पानी के अन्य प्रदूषकों को हटाते हैं जोकि पानी से अवांछित (सस्पेंडेड) पदार्थ को निकालने, अलगल ब्लूम को कम करने तथा पीने के पानी के उपचार में अनिवार्य माना जाता है। अनुमानित आंकलन के अनुसार प्रत्येक सीपी प्रति घंटे आधा लीटर पानी को छान सकती है। यह संकेत मिलता है कि सीपी निकालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जैव फिल्टर के रूप में, सीपी पानी से पादप प्लवक और सस्पेंडेड कणों को हटाने में पारिस्थितिकी तंत्र की महत्वपूर्ण सेवा करती हैं।

विश्व स्तर पर मीठा पानी सीपी की 840 से अधिक प्रजातियाँ हैं। ये प्रजातियाँ पारिस्थितिकी तंत्र, पोषण, औषधीय एवं मोती सवंर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। केन्द्रीय मीठा जल जीवपालन अनुसंधान संस्थान लेमिलीडेन्स मार्जिनेलिस,एल.कोरिआनस एवं पेरेशिया कोरुगाटा नामक मीठा पानी मोती सीपी पर काम कर रहा है तथा देश में मत्स्य एवं मोती पालकों, उद्यमियों, शोधकर्ताओं और छात्रों के बीच मीठा पानी मोती पालन प्रौद्योगिकी के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उपरोक्त लेख में मीठा पानी सीपी की कुछ प्रजातियाँ विशेष रूप से एल सार्जिनेलिस की बहुमुखी भूमिका जैसे बारे में जानकारी प्रदान की गई जो मत्स्य एवं मोती पालकों को अतिरिक्त आय सृजन के लिए एक अद्भूत अवसर प्रदान कर सकती है।

स्त्रोत: कृषि किरण, शैलेश सौरभ, यू.एल. मोहंती एवं पी. जयशंकर, भाकृअनुप–केन्द्रीय मीठाजल जीवपालन संस्थान, भुवनेश्वर (ओडिशा)।

अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020



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