चीनी उद्योग कृषि आधारित एक महत्व पूर्ण उद्योग है जो लगभग 50 मिलियन गन्ना किसानों की ग्रामीण जीविका प्रभावित करता है और चीनी मिलों में लगभग 5 लाख कामगार परोक्ष रूप से नियोजित हैं। परिवहन, मशीनों के व्यापार और कृषि आदानों की आपूर्ति से संबंधित विभिन्न आनुषांगिक गतिविधियों में भी रोजगार सृजित होता है। ब्राजील के बाद विश्व में भारत दूसरे नंबर का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश है और सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है। आज भारतीय चीनी उद्योग का वार्षिक उत्पादन लगभग 80,000 करोड़ रूपए कीमत का है।
देश में 31.01.2018 की स्थिति के अनुसार 735 स्थापित चीनी कारखाने हैं जिनकी लगभग 340 लाख टन चीनी का उत्पादन करने के लिए पर्याप्त पेराई क्षमता है। यह क्षमता मोटे तौर पर प्राइवेट क्षेत्र की यूनिटों और सहकारी क्षेत्र की यूनिटों के बीच समान रूप से विभाजित है। चीनी मिलों की क्षमता कुल मिलाकर 2500 टीसीडी-5000 टीसीडी की रेंज में है, लेकिन यह लगातार बढ़ रही है और 10,000 टीसीडी से अधिक भी हो रही है। गुजरात और पश्चिम बंगाल के तटीय क्षेत्र में देश में 2 मात्र रिफाइनरियां भी स्थापित की गई हैं जो मुख्य रूप से आयातित रॉ चीनी और स्वंदेशी रूप से उत्पादित रॉ चीनी से परिष्कृत चीनी का उत्पादन करती हैं।
देश में चीनी मिलों का क्षेत्र-वार ब्यौरा नीचे दिया गया है-
क्र.सं.
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क्षेत्र
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कारखानों की संख्या
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1.
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सहकारी |
327 |
2.
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प्राइवेट
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365
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3. |
सरकारी
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43
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योग
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735 (इनमें पश्चिम बंगाल और गुजरात में प्रत्येक रिफाइनरी शामिल हैं।) |
गन्ना (नियंत्रण) आदेश, 1966 में 22.10.2009 को संशोधन करने से गन्ने के सांविधिक न्यूानतम मूल्य की अवधारणा को चीनी मौसम 2009-10 और बाद के चीनी मौसम के लिए गन्नेन के उचित और लाभकारी मूल्य से प्रतिस्थापित किया गया था। केंद्रीय सरकार द्वारा घोषित गन्ने का मूल्य राज्य सरकारों और चीनी उद्योग की एसोसिएशनों के साथ परामर्श करने के बाद कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की सिफारिशों के आधार पर तय किया जाता है। गन्ना (नियंत्रण) आदेश, 1966 के संशोधित प्रावधानों में निम्न्लिखित घटकों को ध्यांन में रखकर गन्ने के उचित और लाभकारी मूल्या का निर्धारण करने का प्रावधान है -
क) गन्ने की उत्पादन लागत;
ख) वैकल्पिक फसलों से किसानों को लाभ और कृषि जिन्सों के मूल्यों का आम रुझान;
ग) उचित मूल्य पर उपभोक्ताओं के लिए चीनी की उपलब्धता;
घ) वह मूल्य जिस पर चीनी उत्पादकों द्वारा गन्ने से उत्पादित चीनी बेची जाती है;
ड.) गन्ने से चीनी की रिकवरी;
च) सह-उत्पादों अर्थात् शीरा, खोई और प्रेस-मड की बिक्री से प्राप्त राशि अथवा उनकी परिकलित कीमत (दिनांक 29.12.2008 की अधिसूचना द्वारा शामिल किया गया);
छ) जोखिम और लाभ के खाते पर गन्ना उत्पादकों के लिए उचित मार्जिन (दिनांक 22.10.2009 की अधिसूचना द्वारा शामिल किया गया)।
उचित और लाभकारी मूल्य प्रणाली के अधीन किसानों के लिए मौसम के अंत तक अथवा चीनी मिल या सरकार द्वारा लाभ की किसी घोषणा का इंतजार किया जाना अपेक्षित नहीं है। नई प्रणाली किसानों के लिए इस तथ्य के बावजूद लाभ और जोखिम के खाते पर मार्जिन भी सुनिश्चित करती है कि चाहे चीनी मिल लाभ कमाए अथवा नहीं कमाए और यह किसी एक चीनी मिल के कार्य-निष्पादन पर निर्भर नहीं है।
यह सुनिश्चिचत करने के लिए कि चीनी की अधिक रिकवरी पर्याप्तन रूप से पुरस्कृत की जाए और चीनी मिलों के बीच अंतर पर विचार करते हुए उचित और लाभकारी मूल्य को मूल रिकवरी से संबद्ध किया जाता है, जिसमें गन्ने से चीनी की अधिक रिकवरी के लिए किसानों को प्रीमियम देय होता है।
तदनुसार, चीनी मौसम 2017-18 के लिए 9.5 प्रतिशत की मूल रिकवरी से संबद्ध करके उचित और लाभकारी मूल्यी 255 रूपये प्रति क्विंटल पर निर्धारित किया गया है जो इस स्तर से प्रत्येक 0.1 प्रतिशत प्वांइंट वृद्धि के लिए 2.68 रूपये प्रति क्विंटल के प्रीमियम की शर्त के अध्यधीन है।
2009-10 से 2017-18 तक प्रत्येक चीनी मौसम के लिए चीनी कारखानों द्वारा देय गन्ने का उचित और लाभकारी मूल्य नीचे सारणी में दिया गया है-
चीनी मौसम
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उचित और लाभकारी मूल्य (रूपये प्रति क्विंटल) |
मूल रिकवरी स्तर |
2009-10 |
129.84 |
9.5% |
2010-11 |
139.12 |
9.5% |
2011-12 |
145.00 |
9.5% |
2012-13 |
170.00 |
9.5% |
2013-14 |
210.00 |
9.5% |
2014-15 |
220.00 |
9.5% |
2015-16 |
230.00 |
9.5% |
2016-17 |
230.00 |
9.5% |
2017-18
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255.00 |
9.5% |
पिछले 6 चीनी मौसमों में घरेलू खपत की तुलना में लगातार अधिक उत्पादन होने से चीनी के मूल्यों में गिरावट आई है, जिससे देश भर में उद्योग की वित्तीय स्थिति पर दबाव पड़ा है और गन्ना मूल्य बकाया जमा हो गया है। अखिल भारत स्तर पर चीनी मौसम 2014-15 के लिए अधिकतम गन्ना मूल्य बकाया 15.04.2015 की स्थिति के अनुसार 21837 करोड़ रूपए पर पहुंच गया था। इस स्थिति का समाधान करने के लिए सरकार ने निम्नलिखित उपाय किए हैं -
इन उपायों के परिणामस्वरूप चीनी मौसम 2014-15 के लिए किसानों के 99.82 प्रतिशत गन्ना मूल्य बकाया और चीनी मौसम 2015-16 के लिए 99.79 प्रतिशत गन्ना मूल्य बकाया (उचित और लाभकारी मूल्य के आधार पर) का भुगतान कर दिया गया है। इसके अलावा, 04.05.2018 की स्थिति के अनुसार चीनी मौसम 2016-17 का 99.90 प्रतिशत (उचित और लाभकारी मूल्य के आधार पर) गन्ना मूल्य देयता का भुगतान कर दिया गया है और वर्तमान चीनी मौसम 2017-18 (उचित और लाभकारी मूल्य के आधार पर) के लगभग 81 प्रतिशत गन्ना मूल्य देयता का भी भुगतान कर दिया गया है।
उचित और लाभकारी मूल्य के आधार पर 04.05.2018 की स्थिति के अनुसार चीनी मौसम 2017-18 के लिए गन्ना मूल्य भुगतान और बकाया की स्थिति निम्नानुसार है –
शीर्षक
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(करोड़ रूपए में)
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देय गन्ना मूल्य
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64,391
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अदा किया गया गन्ना मूल्य
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52,018
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गन्ना मूल्य बकाया
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12,373
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देय गन्ना मूल्य के संबंध में गन्ना मूल्य बकाया का प्रतिशत
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81 प्रतिशत
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डा. सी. रंगाराजन समिति की सिफारिशों के आधार पर चीनी क्षेत्र को नियंत्रण मुक्त करना
वर्ष 2013-14 चीनी क्षेत्र के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण वर्ष था। सरकार ने चीनी क्षेत्र के विनियंत्रण से संबंधित डॉ. सी रंगराजन की अध्यक्षता में गठित समिति की सिफ़ारिशों पर विचार किया था और सितम्बर, 2012 के बाद उत्पादित चीनी पर मिलों की लेवी बाध्यता की प्रणाली को समाप्त करने और चीनी की खुले बाजार में बिक्री संबंधी विनियमित निर्गम तंत्र को समाप्त करने का निर्णय लिया था। चीनी क्षेत्र का विनियंत्रण चीनी मिलों की वित्तीय स्थिति में सुधार करने, नकद प्रवाह में वृद्धि करने, इनवेंटरी लागत को कम करने और गन्ना किसानों को उनके गन्ना मूल्य के यथासमय भुगतान के लिए किया गया था। गन्ना क्षेत्र आरक्षण, न्यूनतम दूरी संबंधी मानदंड और गन्ना मूल्य फार्मूला को अपनाने के बारे में समिति द्वारा की गई सिफ़ारिशें निर्णय एवं कार्यान्वयन हेतु राज्य सरकारों को भिजवा दी गई हैं, जैसा वे उचित समझें। समिति की सिफ़ारिशों के सारांश एवं सरकार द्वारा उन पर की गई कार्रवाई का ब्यौरा इस अध्या य के अनुबंध-1 में दिया गया है।
अनुबंध-1
मुद्दे
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सिफारिशों का सार
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स्थिति
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गन्ना क्षेत्र का आरक्षण
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कुछ समय बाद राज्यों को बाजार आधारित दीर्घावधिक संविदात्मवक व्ययवस्थाओं के विकास को प्रोत्साहित करना चाहिए और गन्ना आरक्षण क्षेत्र तथा बॉंडिंग को समाप्त करना चाहिए। इस बीच वर्तमान प्रणाली जारी रखी जा सकती हे।
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राज्यों से इन सिफारिशों, जिन्हे वे उचित समझें, को कार्यान्वित करने पर विचार करने का अनुरोध किया गया है। अब तक, किसी राज्य ने कोई कार्रवाई नहीं की है, अतः मौजूदा व्यवस्था जारी है। महाराष्ट्र में क्षेत्रों का कोई आरक्षण नहीं है। |
न्यूनतम दूरी मानदण्ड
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यह गन्ना किसानों अथवा चीनी क्षेत्र के विकास के हित में नहीं है तथा गन्ना आरक्षण क्षेत्र एवं बॉंडिंग को समापत किए जाने के साथ-साथ इसे भी समाप्त कर दिया जाए।
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राज्यों से इन सिफारिशों, जिन्हे वे उचित समझें, को कार्यान्वित करने पर विचार करने का अनुरोध किया गया है। अब तक, किसी राज्य ने कोई कार्रवाई नहीं की है, अतः मौजूदा व्यवस्था जारी है।
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गन्ना मूल्य राजस्व साझेदारी
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उप उत्पादों (शीरा तथा खोई/सह-उत्पादन) के लिए उपलब्धि आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर राजस्व साझेदारी अनुपात एक्स-मिल चीनी मूल्य् का लगभग 75 प्रतिशत आंकलित किया गया है।
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राज्यों से इन सिफारिशों, जिन्हे वे उचित समझें, को कार्यान्वित करने पर विचार करने का अनुरोध किया गया है। अब तक केवल कर्नाटक और महाराष्ट्र ने इस सिफारिश को लागू करने के लिए राज्य अधिनियम पारित किया है। |
लेवी चीनी
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लेवी चीनी को समाप्त किया जाए। जो राज्य पीडीएस के अंतर्गत चीनी उपलब्ध कराना चाहते हैं वे अब से अपनी आवश्यकतानुसार चीनी सीधे बाजार से खरीदें और निर्गम मूल्य भी स्वयं तय करें। तथापि, चूंकि वर्तमान में लेवी के कारण एक अंतर्निहित क्रास-सब्सिडी है, इस संबंध में व्यय की गई लागत को पूरा करने के लिए संक्रमण अवधि हेतु राज्यों को कुछ हद तक केंद्रीय सहायता दी जा सकती है।
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केंद्रीय सरकार ने 1 अक्टूकबर 2012 से उत्पादित चीनी से लेवी समाप्त कर दी है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के प्रचालनों के लिए राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा खरीद खुले बाजार से की जा रही है और सरकार केवल ए.ए.वाई परिवारों के सीमित कवरेज के लिए 18.50 रूपये प्रति कि.ग्रा. की निश्चिरत सब्सिडी दे रही है। इन परिवारों को एक किलोग्राम चीनी प्रति परिवार प्रति माह उपलब्ध कराई जाएगी।
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विनियमित रिलीज व्यवस्था
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यह व्यवस्था किसी भी उपयोगी उद्देश्यों की पूर्ति नहीं कर रही है, तथा इसे समाप्त किया जा सकता है । |
रिलीज तंत्र समाप्त कर दिया गया है। |
व्यापार नीति
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समिति के अनुसार, चीनी संबंधी व्यापार नीतियां स्थिर होनी चाहिए। उचित टैरिफ साधनों जैसे एक मध्यम निर्यात शुल्क, जो सामान्यत: मात्रात्मक प्रतिबंधों के विपरीत 5 फीसदी से अधिक नई दिल्ली हो, का प्रयोग चीनी की घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आर्थिक रूप से कुशल पद्धति में किया जाना चाहिए।
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चीनी का आयात और निर्यात मुक्त है इसमें कोई मात्रात्मक प्रतिबंध नहीं है, लेकिन यह सीमा शुल्क की प्रचलित दर के अध्यधीन है। आयात शुल्क् को दिनांक 29.04.2015 से 25 प्रतिशत से बढ़ाकर 40 प्रतिशत और दिनांक 10.07.2017 से 50 प्रतिशत कर दिया गया है, जिसे अब दिनांक 06.02.2018 से और बढ़ाकर 100 प्रतिशत कर दिया गया है। राजस्व विभाग की दिनांक 16.06.2016 की अधिसूचना द्वारा चीनी के निर्यात पर 20 प्रतिशत की दर से सीमा शुल्क लगा दिया गया है। चीनी के उत्पादन, स्टाक स्थिति और बाजार में मूल्य रुझान को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने दिनांक 20.03.2018 की अधिसूचना द्वारा चीनी के निर्यात पर से सीमा शुल्क वापस ले लिया है।
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सह-उत्पाद
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शीरा और इथेनॉल जैसे सह-उत्पादों पर कोई मात्रात्मक या संचलनात्मक प्रतिबंध नहीं है। उप-उत्पादों की कीमतें बाजार द्वारा तय हों जिसमें कोई निर्धारित अंतिम-उपयोग आवंटन न हो। चीनी मिलों द्वारा किसी भी उपभोक्ता को अपने अधिशेष बेचने से रोकने वाली कोई विनियामक बाधा न हो।
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पेय अल्कोहल/शराब पर उत्पाद शुल्क राज्य सरकारों के लिए राजस्व का एक प्रमुख स्रोत है। एथेनोल के संचलन पर राज्य सरकारों द्वारा प्रतिबंध और इस पर कर एवं शुल्क लगाना एथेनोल ब्लेंडिंग कार्यक्रम के सफल कार्यान्वयन में एक बाधा बनी हुई है। औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग ने वर्ष 2006 की अधिसूचना सं. 27 दिनांक 14.05.2016 द्वारा आई (डी एंड आर) अधिनियम, 1951 में अब संशोधन कर दिया है। इस संशोधन से राज्य केवल मानवीय उपभोग के लिए आशयित शराब के बारे में कानून बना सकते हैं, नियंत्रण कर सकते है और/अथवा कर एवं शुल्क लगा सकते हैं। इसे छोड़कर अर्थात डि-नेचर्ड एथेनोल, जो मानवीय उपभोग के लिए नहीं होता है, पर नियंत्रण केवल केन्द्र सरकार द्वारा किया जाएगा। आई (डी एंड आर) अधिनियम, 1951 में संशोधन से ईंधन ग्रेड के एथेनोल का संचलन न केवल सुचारू होगा, बल्कि यह उद्योग एथेनोल के अधिक उत्पादन हेतु प्रोत्साहित होगा, जिससे पेट्रोल के साथ ब्लेंडिंग के प्रतिशत में वृद्धि होगी। |
अनिवार्य जूट पैकेजिंग
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समाप्त किया जाए।
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जूट की बोरियों में चीनी की अनिवार्य पैकेजिंग में और छूट दी गई है और उत्पादन के केवल 20 प्रतिशत की पैकेजिंग अनिवार्यत: जूट की बोरियों में की जानी है। |
इथेनोल एक कृषि आधारित उत्पाद है, जो मुख्य रूप से चीनी उद्योग के सह-उत्पाक नामत: शीरे से बनाया जाता है। गन्ने के अधिशेष उत्पादन के वर्षों में जब मूल्य कम होते हैं, तब चीनी उद्योग किसानों को गन्ना मूल्य का समय से भुगतान नहीं कर पाता है। इथेनोल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम में प्रदूषण कम करने, विदेशी मुद्रा बचाने और चीनी उद्योग को किसानों के गन्ना मूल्य बकाया का भुगतान करने में सक्षम बनाने के लिए उनका मूल्योवर्धन बढ़ाने की दृष्टि से मोटर स्प्रिट में इथेनोल का मिश्रण किया जाता है।
इथेनोल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम वर्ष 2007 से शुरू किया गया है। आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने दिनांक 22.11.2012 को हुई अपनी बैठक में इथेनोल का मूल्य निर्धारण संबंधी विशेषज्ञ समिति और प्रधानमंत्री की आर्थिक परामर्शदात्री परिषद की रिपोर्टों पर मंत्रियों के समूह की सिफारिशों पर विचार किया था और यह अनुमोदन दिया था कि इथेनोल के खरीद मूल्य सरकार द्वारा निर्धारित नहीं किए जाएंगे और अब से ये मूल्य तेल विपणन कंपनियों और इथेनोल के आपूर्तिकर्ताओं के बीच तय किए जाएंगे। मंत्रिमंडल के उपर्युक्त निर्णय के अनुसरण में पैट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने देश भर में पेट्रोल के साथ 5 प्रतिशत इथेनोल का अनिवार्य मिश्रण क्रियान्वित करने के लिए दिनांक 02.01.2013 की राजपत्र अधिसूचना जारी की है। केंद्रीय सरकार ने इथेनोल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम के अधीन मिश्रण के लक्ष्य को 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 10 प्रतिशत कर दिया है। इथेनोल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम के अधीन इथेनोल खरीदने की प्रक्रिया सरल बना दी गई है ताकि सम्पू्र्ण इथेनोल आपूर्ति श्रृंखला को सुप्रवाही बनाया जा सके तथा इथेनोल के डिपु द्वारा लाभकारी मूल्य् निर्धारित किए गए हैं। नए मिश्रण लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक ‘ग्रिड’ तैयार किया गया है जो डिस्टिमलिरयों को तेल विपणन कंपनियों के डिपुओं के नेटवर्क से जोड़ता है और आपूर्ति की जाने वाली मात्राओं का विवरण तैयार किया गया है। दूरी, क्षमता और अन्य क्षेत्रीय मांग को ध्यान में रखकर राज्य-वार मांग प्रोफाइल का अनुमान लगाया गया है। वर्ष 2015-16 (10 अगस्त, 2016 तक) के दौरान चीनी मिलों द्वारा इथेनोल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम हेतु तेल विपणन कंपनियों को आपूर्तित इथेनोल पर उत्पाद शुल्क भी माफ कर दिया गया है। इसके परिणाम उत्साहवर्धक रहे हैं और प्रत्येक वर्ष आपूर्तियां दोगुनी हो रही हैं। वर्ष 2013-14 में मिश्रण के लिए आपूर्तित इथेनोल केवल 38 करोड़ लिटर था जबकि 2014-15 में संशोधित इथेनोल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम के अधीन आपूर्तियां बढ़कर 67 करोड लिटर हो गई हैं। इथेनोल मौसम 2015-16 में इथेनोल की आपूर्ति ऐतिहासिक रूप से अधिक रही है और यह 111 करोड़ लिटर पहुंच गई है जो 4.2 प्रतिशत मिश्रण है। इथेनोल मौसम 2016-17 में 80 करोड़ लिटर की संविदा में से लगभग 66.51 करोड़ लिटर की आपूर्ति हो गई है। इसके अलावा, इथेनोल मौसम 2017-18 में 139.51 करोड़ लिटर इथेनोल की आपूर्ति के लिए आशय पत्र जारी किए गए हैं जिनमे से 136 करोड़ लिटर के करार पर हस्ताक्षर हो गए हैं और अब तक लगभग 46.25 करोड़ लिटर की आपूर्ति कर दी गई है। इसके अलावा, इथेनोल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम के अधीन 117 करोड़ लिटर इथेनोल की खरीद के लिए बोलियां लगाने हेतु तेल विपणन कंपनियों द्वारा दूसरे दौर की निविदा खोली गई है।
गन्ना किसानों के हितों को ध्यान में रखते आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने 2018-19 के चीनी सीजन के लिए चीनी मिलों द्वारा देय उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) के निर्धारण को मंजूरी दे दी। इसके तहत दस प्रतिशत बुनियादी रिकवरी दर के आधार पर 275 रुपये प्रति क्विंटल का मूल्य तय किया गया है। इस तरह दस प्रतिशत तक और उससे अधिक की रिकवरी में प्रत्येक 0.1 प्रतिशत बढ़ोतरी के संबंध में 2.75 रुपये प्रति क्विंटल का प्रीमियम प्रदान किया जाएगा। चीनी सीजन 2018-19 के लिए उत्पादन लागत 155 रुपये प्रति क्विंटल है।
दस प्रतिशत रिकवरी दर पर 275 रुपये प्रति क्विंटल का एफआरपी उत्पादन लागत के मद्देनजर 77.42 प्रतिशत अधिक है। इस तरह किसानों को उनके द्वारा किए गए खर्च से 50 प्रतिशत अधिक भुगतान करने का वायदा पूरा हो जाएगा। 2018-19 के चीनी सीजन में गन्ने के संभावित उत्पादन को ध्यान में रखते हुए गन्ना किसानों को होने वाला कुल भुगतान 83,000 करोड़ रुपये से अधिक होगा। सरकार अपने किसान अनुकूल उपायों के तहत यह सुनिश्चित कर रही है कि गन्ना किसानों को समय पर भुगतान कर दिया जाए।
किसानों के हितों की सुरक्षा के मद्देनजर सरकार ने यह भी फैसला किया है कि जिन चीनी मिलों में रिकवरी 9.5 प्रतिशत से कम है, वहां किसी प्रकार की कटौती न की जाए। इन किसानों को मौजूदा मौसम के दौरान 255 रुपये प्रति क्विंटल के स्थान पर गन्ने के लिए 261.25 रुपये प्रति क्विंटल दिया जाएगा।
स्वीकृत एफआरपी चीनी सीजन 2018-19 में किसानों से चीनी मिलों द्वारा खरीदे जाने वाले गन्ने पर लागू होगी, जो 01 अक्टूबर, 2018 से प्रभावी होगी।
चीनी क्षेत्र एक महत्वपूर्ण कृषि-आधारित क्षेत्र है, जहां लगभग पांच करोड़ गन्ना किसानों और उनके आश्रितों को रोजगार मिलता है। इसके अलावा लगभग पांच लाख मजदूर चीनी मिलों में सीधे रोजगार पाते हैं। इसके साथ खेत मजदूरी और यातायात जैसी विभिन्न सहयोगी गतिविधियों में भी लोगों को रोजगार मिलता है।
कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों के आधार पर तथा राज्य सरकारों और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श करने के बाद एफआरपी को निर्धारित किया गया है।
किसानों को गन्ने का बकाया मूल्य देने के संबंध में उद्योगों की तरलता में सुधार के लिए सरकार ने पिछले कुछ महीनों के दौरान कई कदमों को लागू किया है। इनमें 20 एलएमटी के लिए चीनी मिलों के संबंध में न्यूनतम सांकेतिक निर्यात कोटा (एमआईईक्यू) का प्रावधान और लगभग 1500 करोड़ रुपये के आधार पर गन्ने की पेराई के संबंध में 5.50 रुपये प्रति क्विंटल की दर से वित्तीय सहायता शामिल है।
किसानों के बकाये का भुगतान सुनिश्चित करने के लिए सरकार अतिरिक्त कदम उठा रही है। इसके तहत सरकार 7,000 करोड़ रुपये का एक समग्र पैकेज लाई है। इसमें 1200 करोड़ रुपये की लागत से 30 एलएमटी का बफर स्टॉक बनाने और देश में इथेनॉल क्षमता बढ़ाने के लिए 4400 करोड़ रुपये से अधिक की एक प्रमुख योजना शामिल है। इसके तहत अतिरिक्त चीनी सीजन में इथेनॉल उत्पादन के लिए गन्ने का इस्तेमाल किया जाएगा। इस तरह गन्ना किसानों को उनके बकाये का भुगतान समय पर किए जाने की सुविधा हो जाएगी। इस योजना के लिए सरकार लगभग 1332 करोड़ रुपये की सबवेन्शन ब्याज लागत वहन करेगी।
सरकार ने चीनी बिक्री का न्यूनतम मूल्य 29 रुपये प्रति किलोग्राम निर्धारित करने का निर्णय लिया है। इससे भी गन्ना किसानों के बकाये का भुगतान करने में सहायता होगी।
उपरोक्त उपायों के जरिए चीनी मिलों की तरलता में सुधार हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप किसानों की जो बकाया धनराशि 21.05.2018 को 23,232 करोड़ रुपये की ऊंचाई पर थी वह 17,824 करोड़ रुपये हो गई है। आशा की जाती है कि आने वाले महीनों में इसमें और कमी आएगी।
(अद्यतन स्रोत: पत्र सूचना कार्यालय)
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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