कृषि उत्पादकता को सतत बनाना प्राकृतिक संसाधनों जैसे मृदा एवं जल की गुणवत्ता और उपलब्धता पर निर्भर करता है। कृषि विकास को समुचित स्थिति विशिष्ट उपायों के माध्यम से इन दुर्लभ प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और सतत प्रयोग को बढ़ावा देकर संधारणीय बनाया जा सकता है। भारतीय कृषि में मुख्य रूप से देश के विशुद्ध बुआई क्षेत्र का लगभग 60 प्रतिशत वर्षा सिंचित क्षेत्र शामिल है और यह कुल खाद्यान्न उत्पादन में लगभग 40 प्रतिशत का योगदान देती है। इस प्रकार वर्षा सिंचित कृषि जोतों के विकास के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण देश में खाद्यान्नों की बढ़ती हुई मांग को पूरा करने की कुंजी है। इस दिशा में राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (एनएमएसए) तैयार किया गया है जिससे कि एकीकृत खेती, जल प्रयोग कोशल, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन और संसाधन संरक्षण को बढ़ाने पर ध्यान केन्द्रित करते हुए विशेष रूप से वर्षा सिंचित क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता बढ़ाई जा सके I
एनएमएसए सतत कृषि मिशन से अपना अधिदेश प्राप्त करता है जो कि राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (एनएपीसीसी) के अंतर्गत रेखांकित 8 मिशनों में से एक है। मिशन दस्तावेज में रेखांकित कार्यनीतियां और कार्रवाई कार्यक्रम (पीओए) जिसे 2.9.2010 को जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री परिषद (पीएमसीसीसी) दवारा सिद्धांत रूप में अनुमोदन प्रदान किया गया था, का उद्देश्य भारतीय कृषि के 10 मुख्य आयाम नामत: उन्नत फसल बीज, पशुधन और मत्स्य पालन, जल प्रयोग दक्षता, नाशीजीव प्रबंधन, उन्नत फार्म आजीविका विविधीकरण शामिल हैं, पर फोकस करते हुए अनुकूलन उपायों के अंगीकरण की श्रृंखला के माध्यम से सतत कृषि को बढ़ावा देना है। 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान इन उपायों को पुनर्गठन और समरूपता की प्रक्रिया के माध्यम से कृषि एवं सहकारिता विभाग (डीएसी) की चालूप्रस्तावित मिशनों/ कार्यक्रमों/स्कीमों में अंतःस्थापित और तथा उन्हें सरल बनाया जा रहा है। मृदा और जल संरक्षण, जल प्रयोग कोशल, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, वर्षा सिंचित क्षेत्र विकास पर विशेष रूप से जोर देते हुए सतत कृषि से संबंधित सभी चालू और नए प्रस्तावित कार्यकलापों/कार्यक्रमों के समाभिरूपण/समेकन और समामेलन दवारा एनएमएसए का गठन किया गया है । एनएमएसए समुदाय आधारित दृष्टिकोण के माध्यम से जनसाधारण के संसाधनों के उचित उपयोग को प्रेरित करने पर ध्यान देगा ।
एनएमएसए जल प्रयोग दक्षता, पोषक तत्व प्रबंधन और आजीविका विविधीकरण के मुख्य आयामों की व्यवस्था करेगा जिसके लिए वह पर्यावरण हितैषी प्रौदयोगिकियों के गतिशील बदलाव, ऊर्जा कोशल उपकरणों के अंगीकरण, प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, एकीकृत खेती इत्यादि के सतत विकास का रास्ता अपनाएगा। इसके अलावा, एनएमएसए का उद्देश्य मृदा और स्वास्थ्य प्रबंधन, वर्द्धित जल प्रयोग कोशल, रसायनों का समुचित प्रयोग, फसल विविधीकरण, फसल-पशुधन कृषि प्रणालियों का प्रगामी अंगीकरण और एकीकृत दृष्टिकोणों जैसे फसल-रेशम कीट, कृषि-वानिकी, मत्स्यपालन इत्यादि स्थिति विशिष्ट उन्नत कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना है।
एनएमएसए के निम्नलिखित उद्देश्य होंगे-
मिशन के उद्देश्यों को हासिल करने के लिए, एनएमएसए निम्नलिखित बहु-कार्यक्रम कार्यनीति का अनुसरण करेगा –
एनएमएसए की निम्नलिखित चार मुख्य कार्यक्रम घटक या गतिविधियां हैं-
आरएडी कृषि प्रणालियों के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों के विकास और संरक्षण के लिए क्षेत्र आधारित दृष्टिकोण अपनाएगा। यह घटक 'वाटरशेड प्लस फ्रेमवर्क में तैयार किया गया है अर्थात मनरेगा, एनडब्ल्यूडीपीआरए, आरवीपी एंड एफपीआर, आरकेवीवाई, आईडब्ल्यूएमपी इत्यादि के अंतर्गत पन्नधारा विकास और मृदा संरक्षण गतिविधियां/कार्यों के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों के आधार/उपलब्ध/सृजित परिसम्पत्तियों की संभावित उपयोगिता तलाश करना। यह घटक कृषि के एकीकृत बहुघटकों जैसे कि फसल, बागवानी, पशुधन, मछली पालन, कृषि आधारित आय सृजित करने वाली गतिविधियों के साथ वानिकी और मूल्य संवर्धन दवारा समुचित कृषि प्रशिक्षण प्रारंभ करेगा। इसके अलावा इस घटक के अंतर्गत स्थानीय कृषि जलवायु स्थितियों के अनुकूल मृदा परीक्षण/मृदा स्वास्थ्य कार्ड आधारित पोषक तत्व प्रबंधन पद्धतियों, फार्म भूमि विकास, संसाधन संरक्षण और फसल चयन को भी बढ़ावा दिया जाएगा। 100 हैक्टेयर या उससे अधिक के कलस्टर आधारित दृष्टिकोण (गांव/समीपस्थ गांव में काफी निकटता वाले दुर्गम क्षेत्रों में समीप अथवा दूर) को बृहतर क्षेत्रों में समरूपता के दृश्य प्रभाव को देखने तथा स्थानीय सहभाविता को बढ़ावा देने तथा भावी प्रकृति के लिए अपनाया जाएगा जिससे कि अभिबिंदुता के ध्यानाकर्षण प्रभाव प्राप्त किए जा सके और स्थानीय भागीदारी को प्रोत्साहित किया जा सके और अधिक क्षेत्र में मॉडल को और अधिक प्रयोग में लाया जा सके। अभिसारी कार्यक्रमों के अंतर्गत संसाधन संरक्षण गतिविधियों के अंतराल को भरने के लिए इस घटक से अनुपूरक सहायता स्वीकार्य होगी। प्रस्तावित कार्यों को युक्तिसंगत बनाने के लिए आरएडी समूहों को मृदा विश्लेषण/मृदा स्वास्थ्य कार्ड/मृदा संवेक्षण मानचित्र रखने चाहिए और कृषि प्रणाली क्षेत्र के कम से कम 25 प्रतिशत क्षेत्र को आन फार्म जल प्रबंधन के अंतर्गत शामिल किया जाएगा। आईसीएआर की आकस्मिक योजनाओं दवारा सिफारिश की गई कृषि प्रणालियां और एनआईसीआरए परियोजनाओं के सफल निष्कर्षों को भी एकीकृत परियोजना योजना के विकास में विचार किया जाएगा। इसके अलावा अनाज बैंक, बायोमास श्रेडर्स, चारा बैंक, समूह विपणन इत्यादि जैसे साझा सम्पत्ति संसाधनों/ परिसंपत्तियों/सार्वजनिक सेवाओं के सूजन और विकास को इस घटक के अंतर्गत प्रोत्साहित किया जाएगा।
कुशल आन फार्म जल प्रबंधन प्रौद्योगिकियों और उपकरणों को बढ़ावा देकर ओएफडब्ल्यूएम प्राथमिक रूप से वर्धित जल प्रयोग कोशल पर फोकस करेगा। यह न केवल प्रयोग कौशल पर फोकस करेगा बल्कि, आरएडी घटक के साथ मिलकर, वर्षा जल के प्रभावी संचयन एवं प्रबंधन पर भी जोर देगा। जल संरक्षण प्रौदयोगिकियां, कुशल सुपुर्दगी और वितरण प्रणलियां अपनाने के लिए सहायता बढ़ाई जाएगी। जल प्रयोक्ता संघों इत्यादि को विकसित करके सांझे के संसाधनों के समान वितरण और व्यवस्था पर भी जोर दिया जाएगा। फार्म पर ही जल संरक्षण के लिए, मनरेगा निधियों का प्रयोग करते हुए फार्म तालाबों की खुदाई की जा सकती है और अर्थ रिमूविंग मशीनरी (मनरेगा के अंतर्गत खुदाई की सीमा तक साध्य नहीं है)।
एसएचएम का उद्देश्य अवशिष्ट प्रबंधन सहित स्थान और फसल विशिष्ट सतत मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, बृहत-सूक्ष्म पोषक तत्व प्रबंधन के साथ मृदा उर्वरता मानचित्रों के सूजन एवं जुड़ाव के तरीके से जैविक खेती पद्धतियों, भूमि क्षमता पर आधारित समुचित भूमि प्रयोग, उर्वरकों के समुचित प्रयोग और मृदा अपरदन/अवक्रमण को न्यूनतम करने को बढ़ावा देना होगा। व्यापक फील्ड स्तर वैज्ञानिक सर्वेक्षणों के माध्यम से भूमि और मृदा विशेषताओं से संबंधित मानचित्रों और डाटाबेस के आधार पर भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) के माध्यम से तैयार की गई भूमि प्रयोग और मृदा विशेषताओं पर आधारित पद्धतियों के विभिन्न उन्नत पैकेजों के लिए सहायता उपलब्ध कराई जाएगी। इसके अलावा, यह घटक समस्यागत मृदाओं (अम्लीय/क्षारीय/लवणीय) के सुधार के लिए सहायता भी उपलब्ध कराएगा। यह घटक राज्य सरकार, राष्ट्रीय जैविक कृषि केन्द्र (एनसीओएफ), केन्द्रीय उर्वरक गुणवत्ता नियंत्रण एवं प्रशिक्षण संस्थान (सीएफक्यूसी एंड आईटी) और भारतीय मृदा और भू उपयोग सर्वेक्षण (एसएल यूएसआई) दवारा कार्यान्वित किया जाएगा। फील्ड स्तर पर कृषि विभाग दवारा सामना की गई स्टाफ और अवसंरचना जैसी परिसीमाओं में निजी भागीदार को शक्ति पर निर्भर करते हुए राज्यों दवारा सार्वजनिक निजी साझेदारी मॉडल अपनाया जा सकता है जिससे कि यह सुनिश्चित हो सके कि मृदा परीक्षण समय पर और जरूरी संख्याओं में किए जा सकें। जिले के चुनिंदा क्षेत्रों में मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं स्थापित करने के लिए निजी पक्षकारों को प्रोत्साहित किया जाए।
सीसीएसएएमएमएन जलवायु स्मार्ट संधारणीय प्रबंधन पद्धतियों और स्थानीय कृषि जलवायु स्थितियों के उपयुक्त एकीकृत कृषि प्रणाली के क्षेत्र में प्रायोगिक जलवायु परिवर्तन अनुकूलन/अल्पीकरण अनुसंधान/मॉडल परियोजनाओं के रूप में जलवायु परिवर्तन संबंधित सूचना और ज्ञान का द्वविदिशात्मक (भूमि/किसानों के लिए अनुसंधान/वैज्ञानिक स्थापनाएं और विलोमत:) प्रचार-प्रसार और सूजन करेगा। तकनीकी कार्मिकों के समर्पित विशेषज्ञ दल को एनएमएसए के भीतर एक संस्था का रूप दिया जाएगा जो वर्ष में तीन बार मिशन के कार्यकलापों की कड़ाई से मानीटरिंग और मूल्यांकन करेगा जिसके और राष्ट्रीय समिति को सूचित करेगी। मनरेगा, आईडब्ल्यूएमपी, आरकेवीवाई, एनएफएसएम, एनएचएम, एनएमएडुटी इत्यादि जैसी अग्रणी स्कीमों/मिशनों के साथ वर्षा सिंचित प्रोदयोगिकियों, योजना, अभिसरण और समन्वय के लिए प्रचार-प्रसार हेतु कार्य प्रणाली तंत्र का निर्देशन करने के लिए व्यापक प्रायोगिक ब्लाकों की सहायता की जाएगी। कृषि, पशुधन और अन्य उत्पादन प्रणालियों के मध्य आदान और उत्पाद प्रवाह की ऐसी एक एकीकृत कार्रवाई वर्षा सिंचित उत्पादन प्रणालियों की वृद्धि संभावना को उपयोग में लाएगी और जलवायु परिवर्तन जोखिमों को कम करते समय स्थानीय उत्पादन प्रणालियों को सततता प्रदान करेगी। किसान समुदाय के लाभ के लिए एकल सुविधा पटल/ज्ञान प्रदाता प्रणाली उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकार दवारा राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (एसएयू), कृषि विज्ञान केन्द्रों (केवीके), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) संस्थानों इत्यादि जैसे ज्ञान भागीदारों सहित विभिन्न पणधारियों के साथ एक परिसंघ दृष्टिकोण विकसित किया जाएगा। अवधारणा को संस्था का रूप देने और अनुपूरक विकासशील कार्यकलापों को पूरा करने के लिए राज्यों के माध्यम से वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जा सकती है । राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, आईसीएआर के राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों, केवीके, सार्वजनिक/निजी आर एवं डी संगठनों इत्यादि के माध्यम से इस धटक के अंतर्गत जलवायु परिवर्तन संबंधित मानीटरिंग, प्रतिपुष्टि, ज्ञान नेटवर्किंग और कोशल विकास के लिए भी सहायता की जाएगी। इस घटक के अंतर्गत अध्ययन दस्तावेजीकरण एवं प्रकाशन, घरेलू और विदेशी प्रशिक्षण, कार्यशालाओं/सम्मेलनों इत्यादि की सहायता की जाएगी।
एनएमएसए विक्षिन्न घटकों की योजना, कार्यान्वयन और मानीटरिंग के लिए तीन स्तरीय ढांचे का अनुसरण करेगा।
राष्ट्र स्तरीय संरचना राष्ट्रीय सलाहकार समिति (एनएसी):
मिशन के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए दिशानिर्देश और योजना हेतु कार्यनीतिक निदेश उपलबध कराने के लिए निम्नलिखित सदस्यों के साथ सचिव (कृषि एवं सहकारिता) की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय सलाहकार समिति गठित की जाएगी।
सचिव, कृषि एवं सहकारिता विभाग-अध्यक्ष
अपर सचिव एवं वित्तीय सलाहकार, कृषि एवं सहकारिता सदस्य जल संसाधन मंत्रालय के प्रतिनिधि -सदस्य
पंचायती राज मंत्रालय के प्रतिनिधि- सदस्य
पर्यावरण एवं वन मंत्रात्प्रय के प्रतिनिधि- सदस्य
खाद्य प्रसंस्करण एवं उदयोग मंत्रालय के प्रतिनिधि-सदस्य
जनजातीय कार्य मंत्रालय के प्रतिनिधि -सदस्य
कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग मंत्रालय के प्रतिनिधि -सदस्य
पशुपालन डेयरी एवं मात्स्यिकी विभाग के प्रतिनिधि- सदस्य
भूमि संसाधन विभाग के प्रतिनिधि - सदस्य
राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण (एनआरएआई) का तकनीकी विशेषज्ञ -सदस्य
संयुक्त सचिव (आईएनएम); डीएसी -सदस्य
संयुक्त सचिव (एनएचएम); डीएसी -सदस्य
संयुक्त सचिव (फसल); डीएसी -सदस्य
संयुक्त सचिव (एनआरएम एवं आरएफएस) तथा मिशन निदेशक (एनएमएसए)- सदस्य सचिव नोट - मंत्रालयों/विभागों के प्रतिनिधि संयुक्त सचिव के पद से नीचे के नहीं होंगे
परियोजना मंजूरी समिति (पीएससी)
मिशन निदेशक, एनएमएसए की अध्यक्षता में एक परियोजना मंजूरी समिति (पीएससी) जिसमें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), भूमि संसाधन विभाग (डीओएलआर), जल संसाधन मंत्रालय (एमओडब्ल्यूआर), जनजातीय कार्य मंत्रालय (एमओटीए), पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (एमओईएफ), पशुपालन, डेयरी एवं मात्स्यिकी विभाग (डीएएचडी एंड एफ), डीएसी के आईएनएम व एनएचएम प्रभागों तथा अन्य पुनःसंरचित मिशनों के प्रतिनिधि हैं, एनएमएसए के तहत परियोजनाओं की प्राथमिकता तय करेगी और उनका अनुमोदन करेगी। पीएसी की सहायता डीएसी के प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन (एनआरएम) तथा वर्षा सिंचित खेती प्रणाली (आरएफएस) दवारा की जाएगी। समस्याग्रस्त भूमियों के सुधार के प्रस्ताव आरएडी घटकों के तहत किए जाएं। मांग आधारित होने के कारण एसएचएम घटकों के प्रस्तावों की जांच डीएसी के आईएनएम प्रभाग दवारा की जाएगी और उनका अनुमोदन किया जाएगा।
स्थायी तकनीकी समिति (एसटीसी)
कार्यक्रम के कार्यान्वयन की नियमित शुद्धियों हेतु तकनीकी बैक स्टोपिंग दवारा वैज्ञानिक संस्थाओं से सुसंरचित और संस्थागत फीडबैक के माध्यम से मजबूती से सहायता की जाएगी। जलवायु परिवर्तन अनुसंधान एवं प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के क्षेत्र में सीआरआईडीए जैसी विशेषज्ञ संस्थाओं को इस परियोजनार्थ मुख्य जानकारी भागीदार बनाया जाएगा और ये तकनीकी समितियों के कार्यकलापों का समन्वय करेंगी। वैज्ञानिक समिति में योग्यता होगी और इसे अपने आकलन करने के लिए एनएमएसए के भीतर पर्याप्त अवसर प्रदान किया जाएगा। परियोजना मंजूरी समिति तथा एनएमएसए की राष्ट्रीय परामशीं समिति को समय-समय पर जानकारी समर्थन तथा तकनीकी फीडबैक मुहैया कराने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर स्थायी तकनीकी समिति (एसटीसी) स्थापित की जाएगी ताकि यदि आवश्यक हो, किसी घटक में नीतिगत विषय का निर्णय करने या किसी घटक में परिवर्तन किया जा सके। एसटीसी में सीआरआईडीए, सीएजेडआरआई, एनईएच क्षेत्र के आईसीएआर अनुसंधान परिषद, आईआईएसएस (भोपाल), पूर्वी क्षेत्र का आईसीएआर अनुसंधान परिसर (पटना), आईएआरआई (दिल्ली), चयनित एसएयू तथा राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय ख्याति वाले पेशेवरों के प्रतिनिधि होंगे। एसटीसी की सहायता करने के लिए अतिरिक्त जिम्मेदारी के साथ आईसीएआर/एसएयूकोई अन्य स्रोत से आठ तकनीकी विशेषज्ञों या, पूर्णकालिक रुप से परामर्शदाताओं/मुख्य सलाहकारों के रुप में तकनीकी समर्थन समूह के रुप में रखा जाए। परामर्शदाताओं/मुख्य सलाहकारों को रखे जाने के लिए कार्यों/जिम्मेदारियों, शैक्षणिक योग्यता तथा मानदेय दिये गए विनिर्देशों के अनुसार तैयार किये जायेंगे। एसटीसी मिशन कार्यान्वयन योजना तैयार करने के लिए एनआईसीआरए आउटकम तथा आईसीएआर व एसएयू प्रणालियों के अनुसंधान एवं विकास अनुभवों पर आधारित सतत् कृषि पद्धतियों के लिए रूपात्मकताओं का सुझाव देगी। कम-से-कम तीन माह में एक बार एसटीसी की बैठक होगी और यह तकनीकी सुझावों के साथ-साथ एनएमएसए के कार्यान्वयन पर पीएससी को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। केन्द्रीय एसटीसी की शाखाओं के रुप में कार्य करने के लिए और राज्य मिशन को तकनीकी परामर्श मुहैया कराने के लिए राज्य स्तर पर भी इसी तरह का सैटअप स्थापित किया जायेगा। समिति के विशेषज्ञों के दौरों, प्रलेखन और संबंधित खचों को पूरा करने के लिए वैज्ञानिक संस्थाओं हेतु पर्याप्त प्रावधान किया जायेगा।
भारतीय मृदा एवं भू-उपयोग सर्वेक्षण (एसएल यूएसआई) के साथ-साथ कृषि एवं सहकारिता विभाग का जलवायु परिवर्तन कक्ष (सीसीसी) स्टेक होल्डरों के बीच सहयोगी और परस्पर प्रक्रियाओं को सरल बनाने के लिए जानकारी नेटवर्किंग केन्द्र के रुप में कार्य करेगा।
डीएसी की अधीनस्थ कार्यालय/संस्थाएं-
कृषि एवं सहकारिता विभाग के निम्नलिखित अधीनस्थ संस्थाओं/सम्बद्ध कार्यालयों को इस मिशन के कार्यान्वयन और मॉनिटरन में लगाया जायेगा ।
(क) भारतीय मृदा एवं भू-उपयोग सर्वेक्षण (एसएल यूएसआई)-
भूमि विकास कार्यक्रमों के नियोजन और कार्यान्वयन हेतु एसएल यूएसआई विभिन्न प्रकार के मृदा एवं भूमि संसाधन सवेक्षण आयोजित करता है और मृदा से संबंधित डाटाबेस का विकास करता है।
एसएल यूएसआई में टेक्निकल सपोर्ट यूनिट (टीएसयू) होगी, यह राज्य में मिशन के कार्यान्वयन का मॉनीटर व समन्वय करेगा, मृदा संसाधन मानचित्रण करेगा, जीआईएसआधारित वेब सर्वर विकसित करेगा और मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, जल प्रबंधन,समेकित खेती आदि के क्षेत्रों में प्रशिक्षण समर्थन तथा दक्षता विकास करेगा।
(ख) राष्ट्रीय जैविक खेती केन्द्र (एनसीओएस)-
एनसीओएफ स्टेक होल्डरों के तकनीकी क्षमता आदानों के संवर्द्धन और उत्पादन, जागरुकता एवं प्रचार सूजन, मानकों और टेस्टिंग प्रोटोकॉल्स के संशोधन, जेविक आदान संसाधन प्रबंधन और मण्डी विकास सहित जेव उर्वरकों और जैविक उर्वरकों की गुणवत्ता नियंत्रण आवश्यकताओं के माध्यम से जैविक खेती के संवर्द्धन में शामिल होगा।
(ग) केन्द्रीय उर्वरक गुणवत्ता नियंत्रण एवं प्रशिक्षण संस्थान (सीएफक्यूसीटीआई)- सीएफक्यूसीटीआई स्वदेशी और आयातित उर्वरकों का निरीक्षण, विश्लेषण की पद्धतियों का मानकीकरण और समेकित पोषक तत्व प्रबंधन पर राज्यck सरकार को तकनीकी मार्गदर्शन करेगा।
(घ) बागवानी में प्लास्टी कल्चर अनुप्रयोग पर राष्ट्रीय समिति (एनसीपीएएच) –
एनसीपीएएच का सुक्ष्म सिचाई तकनीक के कियान्वयन देखरेख तथा तकनीकी पर्यवेक्षण में सहयोग रहेगा ।
राज्य स्तरीय संरचना
कृषि उत्पादन आयुक्त (एपीसी)/प्रधान सचिव/सचिव (कृषि/बागवानी) की अध्यक्षता वाली राज्य स्तर पर राज्य स्तरीय समिति (एसएलसी) जिसमें राजस्व, पशुपालन, मात्स्यिकी, वन आदि जैसे संबंधी लाइन विभागों, एसएलएनए के सीईओ, एसएयू तथा आईसीएआर केन्द्रों के प्रतिनिधि शामिल हैं, मिशन के नियोजन और कार्यान्वयन का कार्य देखेगी। वर्तमान एनएमएमआई समिति को निम्नलिखित परिवर्तनों के साथ राज्य सरकार के दवारा एनएमएसए राज्य स्तरीय समिति के रुप में अधिसूचित कर सकती है। इस समिति को संबंधित लाइन विभागों के अतिरिक्त सदस्यों के साथ, एपीसी दवारा अध्यक्षता की जाने वाली और एपीसी के संस्थान विद्यमान नहीं हैं, या तो कृषि अथवा बागवानी के वरिष्ठतम वैयक्तिक सचिव/सचिव को राज्य के मुख्य सचिव द्वारा अध्यक्ष के पद पर नामित किया जा सकता है। निदेशक (कृषि) समिति के सदस्य सचिव होंगे तथा निदेशक (बागवानी) समिति के सह-सदस्य सचिव होंगे। एक बार एनएमएसए हेतु एसएलसी के अधिसूचित हो जाने पर, एनएमएमआई की राज्य स्तरीय समिति भंग हो जायेगी। इसके अलावा, राज्य इस प्रयोजनार्थ अन्य नोडल विभाग या एजेंसी को नामित करने या राज्य सतत् कृषि मिशन (एसएमएसए) का सूजन करने के लिए स्वतंत्र होंगे। राज्य मिशन को तकनीकी परामर्श मुहैया कराने तथा केन्द्रीय एसटीसी की शाखाओं के रुप में कार्य करने हेतु राज्य स्थायी तकनीकी समिति (एसएसटीसी) गठित कर सकते हैं। राज्य कृषि विश्वविद्यालय एसएसटीसी का मुख्य जानकारी भागीदार होगा। इस क्षेत्र में अतिरिक्त जिम्मेदारी के साथ आईसीएआर केन्द्रों/एसएयू(अन्य पेशेवर एजेंसियों से लिये गये -4 तकनीकी विशेषज्ञों अथवा, संविदा आधार पर राज्य सलाहकारों के पद पर पूर्णकालिक रुप से एसएसटीसी की सहायता करने से राज्य स्तर पर तकनीकी समर्थन समूहों के रुप में रखा जायेगा। राज्य सलाहकारों को लगाये जाने के लिए कार्यों/जिम्मेदारियों, शैक्षणिक योग्यता तथा मानदेय दिये गये विनिर्देशों के अनुसार बनाये जायेंगे। एसएसटीसी मिशन कार्यान्वयन योजना तैयार करने के लिए अनुसंधान एवं विकास अनुभवों तथा स्थानीय आवश्यकताओं पर आधारित सतत् कृषि पद्धतियों की रुपात्मकताएं सुझाएगी। कम-से-कम तीन माह में एक बार एसएसटीसी की बैठक होगी और यह तकनीकी आदानों के साथ-साथ एनएमएसए के कार्यान्वयन पर एसटीसी को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।
जिला स्तरीय संरचना
जिला मिशन समिति (डीएमसी) को परियोजना प्रतिपादन, एनएमएसए के कार्यान्वयन और मोनिटरिंग का कार्य दिया जायेगा । डीएमसी की अध्यक्षता क्लेक्टर या जिला परिषद जिला काउंसिल के सीईओ करेंगे जिसमें पशुपालन, बागवानी, मात्स्यिकी, ग्रामीण विकास, वन आदि तथा एटीएमए, केवीके, उत्पाठक संघों, विपणन बोडों, बैंकों, गैर सरकारी संगठनों आदि सहित संबंधित लाइन विभागों के प्रतिनिधि होंगे। उप निदेशक (कृषि) जिला मिशन समिति के सदस्य सचिव होंगे। परियोजनाओं का कार्य देखने, तकनीकी सलाह देने और मॉनिटरिंग में सहायता करने के लिए लिये गये समूहों की संख्या पर निर्भर होते हुए प्रत्येक 2- सन्निकट जिलों के लिए सतत् कृषि पर एक समर्पित विषयवस्तु विशेषज्ञ/सलाहकार नियुक्त किये जायेंगे। इन सलाहकारों को संविदा आधार पर नियुक्त किया जाएगा और इनका पारिश्रमिक मिशन से ग्राहय है। वे मिशन की कार्यान्वयन योजना, वार्षिक कार्य योजना और मिशन के लिए तकनीकी पर्यवेक्षण तैयार किए जाने में राज्य स्थायी समिति की सहायता भी करेंगे। इन सलाहकारों की नियुक्ति हेतु कार्य/जिम्मेदारियाँ/शैक्षणिक योग्यता तथा मानदेय निर्देश के अनुसार किए जायेंगे।
घटक विशिष्ट नियोजन (सीएसपी)
स्वास्थ्य प्रबंधन', 'खेत पर जल प्रबंधन और ‘जलवायु परिवर्तन तथा सतत् कृषि मॉडलिंग एवं नेटवर्किंग'। घटक विशिष्ट नियोजन हेतु एक निदर्शी दृष्टिकोण को नीचे रेखांकित किया गया है:
मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (एसएचएम)- दूसरे अध्याय में इस विषय में विस्तार से जानकारी दी गयी है ।
जलवायु परिवर्तन और सतत् कृषि: मॉनिटरिंग, मॉडलिंग तथा नेटवर्किंग(सीसीएसएएमएमएन)-
मिशन कार्यान्वयन योजना (एमआईपी)
राज्य 5-7 वर्षों के अंतर, जो जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण से जिला कृषि योजनाओं (डीएपी) तथा राज्य कृषि योजना के हस्तक्षेपों की प्राथमिकता से उत्पन्न होगा, के साथ सतत् कृषि विकास के लिए कार्य योजना तथा रणनीति को इंगित करते हुए मिशन कार्यान्वयन योजना (एमआईपी) तैयार करेंगे । भावी योजना में जलवायु परिवर्तन पर राज्य कार्य योजना (एसएपीसीसी)में की गई कृषि क्षेत्र की सिफारिशों पर भी विचार किया जाना चाहिए यदि ये जलवायु कारकों का पता लगाने के लिए एसएपी के साथ राज्यों दवारा तैयार की जाएं । कृषि पारिस्थितिक परिस्थितियां जैसे स्थलाकृति, मृदा विशेषताएं, जलवायु चरम मौसम घटनाओं की आवृति, फसल तथा फसलन प्रणाली, पोध तथा वृक्ष, भू तथा भू उपयोग, जल आदि सतत विकास की रणनीति की रुप रेखा के लिए मुख्य मापदण्ड है । इसका प्रारम्भिक फोकस कृषि प्रणाली जिसके पास स्थानीय लाभ तथा सुलभ अनुकूलन क्षमता है, के प्रोन्नयन के लिए प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर होना चाहिए ।
वित्तीय वर्ष (मार्च-अप्रैल) की शुरुआत में एएपी एसएचएम घटक के अलावा डीएसी दवारा संप्रेषित अनुसार राज्यों के अंतिम परिव्यय के विषय में एमआईपी का संचालन करेगा | एसएचएम घटक, जो मांग चालित होगा, के अलावा एएपी में घटक विशिष्ट कार्यक्रम तैयार करने में राज्यों को सुविधा देने के लिए प्रत्येक घटक के लिए अंतिम प्रावधान निर्दिष्ट किया जायेगा । एनएमएसए के लिए नामंकित नोडल विभाग एएपी तैयार करते समय संबंधित कार्यान्वयन विभागों /अभिकरणों के प्रस्तावों से समन्वय तथा मिलान करेगा । राज्य यह भी सुनिश्चित करेंगे कि एएपी आरकेवीवाई के तहत चलाई जा रही गतिविधियों सहित जिला कृषि योजनाओं (डीएपी) तथा राज्य कृषि योजना (एसएपी) एवं गतिविधियों की ओवरलॅंपिंग के बिना प्रत्येक घटक के साथ उचित समेकन हे। प्रत्येक घटक यथा आरएपी, एसएचएम, ओएफडब्ल्यूएम तथा सीसीएसएएमएमएन के लिए इन लक्ष्यों तथा संभावित परिणामों को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक हस्तक्षेप, कार्य योजना तथा कार्यान्वयन तंत्र के वास्तविक तथा वित्तीय लक्ष्यों को अलग से इंगित करेगा । एएपी को तैयार करने के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाळ्ना चाहिए । अभिकरण अपनी प्राथमिकताओं के मद्देनजर जिला स्तर पर वार्षिक योजना (एडब्ल्यूपी) तैयार करेंगे । एडब्ल्यूपी राज्य स्तरीय एएपी के अनुसार समेकित किए जाएंगे । एएपी के साथ साथ भावी/रणनीतिक योजना तैयार करने के लिए राज्य सलाहकारों की नियुक्ति कर सकते हैं अथवा टीएसयू की सहायता ले सकते हैं ।
एसएनसी दवारा विधिवत अनुमोदित प्रत्येक घटक के लिए पृथक प्रस्ताव के साथ एएपी को परीक्षण, विवेचना तथा अंतिम अनुमोदन के लिए मार्च तक कृषि एवं सहकारिता विभाग, कृषि मंत्रालय, भारत सरकार को प्रस्तुत किए जाने की आवश्यकता है । विचार करने, संस्तुति तथा राज्यों को निधि निर्मुक्ति अनुमोदन के लिए पीएससी के समक्ष रखे जाने से पूर्व एएपी की जांच डीएसी में संबंद्ध तकनीकी प्रभाग दवारा की जाएगी ।
राज्य स्तर पर राज्य कृषि विभाग मिशन मोड में एनएमएसए कार्यान्वयन के लिए पूरी तरह उत्तरदायी होंगे । राज्य सरकारें जिला स्तर पर एनएमएसए कार्यान्वयन के लिए नोडल के रुप में किसी अन्य विभाग/अभिकरण को लगा/नामित कर सकती हे । पंचायती राज संस्थाएं एनएमएए की योजना तथा कार्यान्वयन में सक्रिय रुप से शामिल होन्ने चाहिए । राष्ट्रीय, राज्य, जिला तथा पंचायती राज संस्थानों के विभिन्न स्तरों पर विभिन्न संस्थानों की भूमिका और कार्य पृथक रुप से संप्रेषित किए जाएंगे । स्थान विशिष्ट हस्तक्षेपों की पहचान करते समय जिला कृषि आकस्मिकता योजनाओं तथा आईसीएआर की एनआईसीआरए खोजों पर विचार किए जाने की आवश्यकता है । उचित प्रौदयोगिकी, फार्म प्रणालियों तथा तकनीकी बैकस्टापिंग की पहचान के लिए आईसीएआर संस्थानों, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (एसएयू), कृषि विज्ञान केन्द्रों (केवीके), एटीएमए तथा विख्यात एनजीओ से परामर्श किया जा सकता है । हस्तक्षेपों के चयनित पैकेज के लिए एक कलस्टर आधारित दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है । कलस्टर का चुनाव करते समय उन्हें प्राथमिकता दी जा सकती है जहां विभिन्न विकासात्मक तथा पन्नधारा विकास कार्यक्रमीं नामतः वर्षा सिंचित क्षेत्रों के लिए राष्ट्रीय पक्नधारा विकास परियोजना (एनडब्ल्यूडीपीआरए), नदी घाटी तथा बाढ़ संभावित नदी क्षेत्र में मृदा संरक्षण (आरयूपीएंडएफपीआर), राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना (एमएनआरईजीएस), समेकित पनधारा प्रबंधन कार्यक्रम (आईडब्ल्यूएमपी) आदि के तहत जल संसाधनों सहित प्राकृतिक संसाधन पहले ही विकसित किए जा चुके हैं । अगले पांच वर्षों में किसानों/लाभार्थियों को राजसहायता के प्रत्यक्ष हस्तान्तरण के लिए आधार संख्या तथा जहां यह प्रचालन में है उन जिलों में उपलब्ध अवसंरचना के आधार पर प्रयास किए जाएंगे। दिशानिर्देशों में निर्धारित प्रावधानों तथा शर्तों के अनुसार किसान दवारा उपकरणों/साधनों की खरीद के प्रमाण की सुनिश्चितता के पश्चात ही राशि हस्तांतरित की जाएगी । राज्य सरकारें सुनिश्चित करें कि कम से कम 50 प्रतिशत लाभान्वित लघु तथा सीमान्त कृषक वर्ग के हों।
एनएमएसए का प्रचालन पूरे देश में होगा । तथापि कुछ घटकों हस्तक्षेपों का विभिन्न कृषि पारिस्थितिक जोन के लिए डीएसी के अन्य कार्यक्रमों जैसे एनएफएसएम, एनएचएम, एनएमओओपी, एनएमएइटी आदि के साथ मिशन की गतिविधियों के अभिमुख होने के अलावा उपयुक्त स्थान विशिष्ट दृष्टकोण होगा ।
एनएमएसए से अपेक्षित है कि वह फसलों और पशुपालन दोनों के क्षेत्र में उपयुक्त अनुकूलन और शमन उपायों के जरिए भारतीय कृषि को अधिक जलवायु सहय उत्पादन प्रणाली में अंतरित करे । ये उपाय उन्नत प्रौद्योगिकी और बेहतर प्रयोगों को अपनाने तथा जलवायु और गैर जलवायु दबावों हेतु विभिन्न फसलन तंत्रों के प्रसार में मदद करेंगे ।
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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