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राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (एनएमएसए)

राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (एनएमएसए)

भूमिका

कृषि उत्पादकता को सतत बनाना प्राकृतिक संसाधनों जैसे मृदा एवं जल की गुणवत्ता और उपलब्धता पर निर्भर करता है। कृषि विकास को समुचित स्थिति विशिष्ट उपायों के माध्यम से इन दुर्लभ प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और सतत प्रयोग को बढ़ावा देकर संधारणीय बनाया जा सकता है। भारतीय कृषि में मुख्य रूप से देश के विशुद्ध बुआई क्षेत्र का लगभग 60 प्रतिशत वर्षा सिंचित क्षेत्र शामिल है और यह कुल खाद्यान्न उत्पादन में लगभग 40 प्रतिशत का योगदान देती है। इस प्रकार वर्षा सिंचित कृषि जोतों के विकास के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण देश में खाद्यान्नों की बढ़ती हुई मांग को पूरा करने की कुंजी है। इस दिशा में राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (एनएमएसए) तैयार किया गया है जिससे कि एकीकृत खेती, जल प्रयोग कोशल, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन और संसाधन संरक्षण को बढ़ाने पर ध्यान केन्द्रित करते हुए विशेष रूप से वर्षा सिंचित क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता बढ़ाई जा सके I

एनएमएसए सतत कृषि मिशन से अपना अधिदेश प्राप्त करता है जो कि राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (एनएपीसीसी) के अंतर्गत रेखांकित 8 मिशनों में से एक है। मिशन दस्तावेज में रेखांकित कार्यनीतियां और कार्रवाई कार्यक्रम (पीओए) जिसे 2.9.2010 को जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री परिषद (पीएमसीसीसी) दवारा सिद्धांत रूप में अनुमोदन प्रदान किया गया था, का उद्देश्य भारतीय कृषि के 10 मुख्य आयाम नामत: उन्नत फसल बीज, पशुधन और मत्स्य पालन, जल प्रयोग दक्षता, नाशीजीव प्रबंधन, उन्नत फार्म आजीविका विविधीकरण शामिल हैं, पर फोकस करते हुए अनुकूलन उपायों के अंगीकरण की श्रृंखला के माध्यम से सतत कृषि को बढ़ावा देना है। 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान इन उपायों को पुनर्गठन और समरूपता की प्रक्रिया के माध्यम से कृषि एवं सहकारिता विभाग (डीएसी) की चालूप्रस्तावित मिशनों/ कार्यक्रमों/स्कीमों में अंतःस्थापित और तथा उन्हें सरल बनाया जा रहा है। मृदा और जल संरक्षण, जल प्रयोग कोशल, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, वर्षा सिंचित क्षेत्र विकास पर विशेष रूप से जोर देते हुए सतत कृषि से संबंधित सभी चालू और नए प्रस्तावित कार्यकलापों/कार्यक्रमों के समाभिरूपण/समेकन और समामेलन दवारा एनएमएसए का गठन किया गया है । एनएमएसए समुदाय आधारित दृष्टिकोण के माध्यम से जनसाधारण के संसाधनों के उचित उपयोग को प्रेरित करने पर ध्यान देगा ।

एनएमएसए जल प्रयोग दक्षता, पोषक तत्व प्रबंधन और आजीविका विविधीकरण के मुख्य आयामों की व्यवस्था करेगा जिसके लिए वह पर्यावरण हितैषी प्रौदयोगिकियों के गतिशील बदलाव, ऊर्जा कोशल उपकरणों के अंगीकरण, प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, एकीकृत खेती इत्यादि के सतत विकास का रास्ता अपनाएगा। इसके अलावा, एनएमएसए का उद्देश्य मृदा और स्वास्थ्य प्रबंधन, वर्द्धित जल प्रयोग कोशल, रसायनों का समुचित प्रयोग, फसल विविधीकरण, फसल-पशुधन कृषि प्रणालियों का प्रगामी अंगीकरण और एकीकृत दृष्टिकोणों जैसे फसल-रेशम कीट, कृषि-वानिकी, मत्स्यपालन इत्यादि स्थिति विशिष्ट उन्नत कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना है।

मिशन के उद्देश्य

एनएमएसए के निम्नलिखित उद्देश्य होंगे-

  1. कृषि को स्थान विशिष्ट एकीकृत/संयुक्त कृषि प्रणालियों को बढ़ावा दे कर और अधिक उत्पादक, सतत, लाभकारी और जलवायु प्रत्यास्थ बनाना।
  2. समुचित मृदा और नमी संरक्षण उपायों के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना।
  3. मृदा उर्वरता मानचित्रों, बृहत एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों के मृदा परीक्षण आधारित अनुप्रयोक्ता समुचित उर्वरकों के प्रयोग इत्यादि के आधार पर व्यापक मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन पद्धतियां अपनाना ।
  4. 'प्रति बूंद अधिक फसल हासिल करने के लिए व्याप्ति बढ़ाने हेतु कुशल जल प्रबंधन के माध्यम से जल संसाधनों का इष्टतम उपयोग।
  5. जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और अल्पीकरण के क्षेत्र में अन्य चालू मिशनों अर्थात राष्ट्रीय कृषि विस्तार एवं प्रौद्योगिकी मिशन, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, राष्ट्रीय कृषि जलवायु प्रत्यास्थता पहल (एनआईसीआरए) इत्यादि के सहयोग से किसानों एवं पणधारियों की क्षमता बढ़ाना ।
  6. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी स्कीम (मनरेगा), एकीकृत पनधारा कार्यक्रम (आईडब्ल्यूएमपी), आरकेवीवाई इत्यादि जैसी अन्य स्कीमों/मिशनों से संसाधनों को लेकर और एनआईसीआरए के माध्यम से वर्षा सिंचित प्रौद्योगिकियों को मुख्य धारा में लाते हुए वर्षा सिंचित कृषि की उत्पादकता सुधारने हेतु चयनित ब्लाकों में प्रायोगिक मॉडल, और एनएपीसीसी के तत्वाधान में राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन के मुख्य प्रदेयों को पूरा करने हेतु प्रभावी  अंतर और आांतरिक विभागीय/मंत्रालय समन्वय स्थापित करना।

मिशन की कार्यनीति

मिशन के उद्देश्यों को हासिल करने के लिए, एनएमएसए निम्नलिखित बहु-कार्यक्रम कार्यनीति का अनुसरण करेगा –

  1. अनुपूरक/अवशिष्ट उत्पादन प्रणालियों के माध्यम से खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, आजीविका अवसर बढ़ाने फसल विफलता को न्यूनतम करने के लिए फसल, पशुधन एवं मत्स्य पालन, बागवानी और चारागाह आधारित संयुक्त कृषि को शामिल करते हुए एकीकृत कृषि प्रणाली को बढ़ावा देना।
  2. संसाधन संरक्षण प्रौदयोगिकियों (आन फार्म और आफ फार्म दोनों) को लोकप्रिय बनाना और ऐसी पद्धतियां प्रारंभ करना जो चरम जलवायु घटनाओं या आपदाओं जैसे लम्बे सूखा दौर, बाढ़ इत्यादि के समय पर अल्पीकरण प्रयासों में सहायता करेंगे ।
  3. उपलब्ध जल संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन को बढ़ावा देना और मांग एवं आपूर्ति पक्ष प्रबंधन समाधानों से जुड़ी हुई प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोग के माध्यम से जल प्रयोग कौशल बढ़ाना।
  4. उच्चतर फार्म उत्पादकता, उन्नत मृदा उपचार, वर्धित जल धारण क्षमता, रसायनों /ऊर्जा का समुचित प्रयोग और वर्धित मृदा कार्बन भंडारण के लिए उन्नत कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित करना।
  5. स्थान और मृदा विशिष्ट फसल प्रबंधन पद्धतियों के अपनाने एवं इष्टतम उर्वरक प्रयोग को सुकर बनाने के लिए जीआईएस प्लेटफार्म पर भूमि प्रयोग सर्वेक्षण, मृदा रूपरेखा अध्ययन और मृदा विश्लेषण के माध्यम से मृदा संसाधनों पर डाटाबेस सृजित करना।
  6. मृदा स्वास्थ्य सुधारने, वर्धित फसल उत्पादकता और भूमि एवं जल संसाधनों की गुणवत्ता कायम रखने के लिए स्थान और फसल विशिष्ट एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन पद्धतियों को बढावा ठेना।
  7. विशिष्ट कृषि जलवायु स्थितियों के लिए जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और अल्पीकरण कार्यनीतियों में जानकार संस्थानों और व्यवसायिकों को सम्मिलित करना। मनरेगा, आईडब्ल्यूएमपी, आरकेवीवाई, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) एकीकृत बागवानी विकास मिशन (एमआईडीएच), राष्ट्रीय कृषि विस्तार एवं प्रौदयोगिकी मिशन  (एनएमएई एंड टी) इत्यादि जैसी अन्य स्कीमों/मिशनों से समन्वय, परिवर्तन और निवेश उठा करके अलाभ के क्षेत्रों में एवं स्थिति विशिष्ट नियोजन से और अधिक पहुंच के साथ वर्षा सिंचित प्रौदयोगिकियों के प्रचार-प्रसार और अंगीकरण के माध्यम से एकीकृत विकास सुनिश्चित करने के लिए प्रायोगिक के रूप में चुनिंदा ब्लाकों में जलवायु पैरामीटरों के प्रेरक क्षमता के अनुसार कार्यक्रम मूलक अंतःक्षेप। किसान समुदाय के लाभ के लिए एकल सुविधा पटल/प्रदाता उपलब्धकर्ता प्रणाली उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकार द्वारा राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (एसएयू), कृषि विज्ञान केन्द्रों (केवीके), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) केन्द्रों, व्यवसायिक संगठनों इत्यादि जैसे जानकार भागीदारों सहित विभिन्न पणधारियों के साथ एक संघीय दृष्टिकोण विकसित किया जा सकता है ।
  8. राज्य सरकार चयन की पारदर्शी प्रणाली और पर्यवेक्षण की परिभाषित प्रक्रिया के माध्यम से उन क्षेत्रों में जहां सीमित सरकारी अवसंरचना उपलब्ध है, एक लाईन विभाग के माध्यम से मानिटरिंग के मामले में समूह/ग्राम विकासयोजना के कार्यान्वयन के लिए ख्याति प्राप्त एजेंसियों को लगा सकती है।
  9. विभिन्न घटकों की तकनीकी व्यवहार्यता और जलवायु प्रत्यास्था लाने के बारे में उनकी प्रभावशीलता पर नियमित अदयतन सूचनाओं के लिए राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के लिए अनूकूलन मुद्दे और जलवायु परिवर्तन अल्पीकरण पर मजबूत तकनीकी मानिटरिंग एवं प्रतिपुष्टि प्रणालियों केन्द्रीय संस्थानों और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के विशेषज्ञ ऐसी तकनीकी मानिटरिंग/प्रति पुष्टि के भाग होंगे। कार्यान्वयन एजेंसियों के क्षमता निर्माण को मैनेज दवारा संभाला जाएगा।
  10. राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना के तत्वाधान में एनएमएसए के मिशन दस्तावेज में रेखांकित अंत:क्षेपों के कार्यान्वयन संपर्क, समीक्षा और समन्वयन के लिए प्लेटफार्म स्थापित करना।

मिशन के कार्य अथवा घटक

एनएमएसए की निम्नलिखित चार मुख्य कार्यक्रम घटक या गतिविधियां हैं-

वर्षा सिंचित क्षेत्र विकास (आरएडी)

आरएडी कृषि प्रणालियों के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों के विकास और संरक्षण के लिए क्षेत्र आधारित दृष्टिकोण अपनाएगा। यह घटक 'वाटरशेड प्लस फ्रेमवर्क में तैयार किया गया है अर्थात मनरेगा, एनडब्ल्यूडीपीआरए, आरवीपी एंड एफपीआर, आरकेवीवाई, आईडब्ल्यूएमपी इत्यादि के अंतर्गत पन्नधारा विकास और मृदा संरक्षण गतिविधियां/कार्यों के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों के आधार/उपलब्ध/सृजित परिसम्पत्तियों की संभावित उपयोगिता तलाश करना। यह घटक कृषि के एकीकृत बहुघटकों जैसे कि फसल, बागवानी, पशुधन, मछली पालन, कृषि आधारित आय सृजित करने वाली गतिविधियों के साथ वानिकी और मूल्य संवर्धन दवारा समुचित कृषि प्रशिक्षण प्रारंभ करेगा। इसके अलावा इस घटक के अंतर्गत स्थानीय कृषि जलवायु स्थितियों के अनुकूल मृदा परीक्षण/मृदा स्वास्थ्य कार्ड आधारित पोषक तत्व प्रबंधन पद्धतियों, फार्म भूमि विकास, संसाधन संरक्षण और फसल चयन को भी बढ़ावा दिया जाएगा। 100 हैक्टेयर या उससे अधिक के कलस्टर आधारित दृष्टिकोण (गांव/समीपस्थ गांव में काफी निकटता वाले दुर्गम क्षेत्रों में समीप अथवा दूर) को बृहतर क्षेत्रों में समरूपता के दृश्य प्रभाव को देखने तथा स्थानीय सहभाविता को बढ़ावा देने तथा भावी प्रकृति के लिए अपनाया जाएगा जिससे कि अभिबिंदुता के ध्यानाकर्षण प्रभाव प्राप्त किए जा सके और स्थानीय भागीदारी को प्रोत्साहित किया जा सके और अधिक क्षेत्र में मॉडल  को और अधिक प्रयोग में लाया जा सके। अभिसारी कार्यक्रमों के अंतर्गत संसाधन संरक्षण गतिविधियों के अंतराल को भरने के लिए इस घटक से अनुपूरक सहायता स्वीकार्य होगी। प्रस्तावित कार्यों को युक्तिसंगत बनाने के लिए आरएडी समूहों को मृदा विश्लेषण/मृदा स्वास्थ्य कार्ड/मृदा संवेक्षण मानचित्र रखने चाहिए और कृषि प्रणाली क्षेत्र के कम से कम 25 प्रतिशत क्षेत्र को आन फार्म जल प्रबंधन के अंतर्गत शामिल किया जाएगा। आईसीएआर की आकस्मिक योजनाओं दवारा सिफारिश की गई कृषि प्रणालियां और एनआईसीआरए परियोजनाओं के सफल निष्कर्षों को भी एकीकृत परियोजना योजना के विकास में विचार किया जाएगा। इसके अलावा अनाज बैंक, बायोमास श्रेडर्स, चारा बैंक, समूह विपणन इत्यादि जैसे साझा सम्पत्ति संसाधनों/ परिसंपत्तियों/सार्वजनिक सेवाओं के सूजन और विकास को इस घटक के अंतर्गत प्रोत्साहित किया जाएगा।

फार्म पर जल प्रबंधन (ओएफडब्ल्यूएम)

कुशल आन फार्म जल प्रबंधन प्रौद्योगिकियों और उपकरणों को बढ़ावा देकर ओएफडब्ल्यूएम प्राथमिक रूप से वर्धित जल प्रयोग कोशल पर फोकस करेगा। यह न केवल प्रयोग कौशल पर फोकस करेगा बल्कि, आरएडी घटक के साथ मिलकर, वर्षा जल के प्रभावी संचयन एवं प्रबंधन पर भी जोर देगा। जल संरक्षण प्रौदयोगिकियां, कुशल सुपुर्दगी और वितरण प्रणलियां अपनाने के लिए सहायता बढ़ाई जाएगी। जल प्रयोक्ता संघों इत्यादि को विकसित करके सांझे के संसाधनों के समान वितरण और व्यवस्था पर भी जोर दिया जाएगा। फार्म पर ही जल संरक्षण के लिए, मनरेगा निधियों का प्रयोग करते हुए फार्म तालाबों की खुदाई की जा सकती है और अर्थ रिमूविंग मशीनरी (मनरेगा के अंतर्गत खुदाई की सीमा तक साध्य नहीं है)।

मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (एसएचएम)

एसएचएम का उद्देश्य अवशिष्ट प्रबंधन सहित स्थान और फसल विशिष्ट सतत मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, बृहत-सूक्ष्म पोषक तत्व प्रबंधन के साथ मृदा उर्वरता मानचित्रों के सूजन एवं जुड़ाव के तरीके से जैविक खेती पद्धतियों, भूमि क्षमता पर आधारित समुचित भूमि प्रयोग, उर्वरकों के समुचित प्रयोग और मृदा अपरदन/अवक्रमण को न्यूनतम करने को बढ़ावा देना होगा। व्यापक फील्ड स्तर वैज्ञानिक सर्वेक्षणों के माध्यम से भूमि और मृदा विशेषताओं से संबंधित मानचित्रों और डाटाबेस के आधार पर भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) के माध्यम से तैयार की गई भूमि प्रयोग और मृदा विशेषताओं पर आधारित पद्धतियों के विभिन्न उन्नत पैकेजों के लिए सहायता उपलब्ध कराई जाएगी। इसके अलावा, यह घटक समस्यागत मृदाओं (अम्लीय/क्षारीय/लवणीय) के सुधार के लिए सहायता भी उपलब्ध कराएगा। यह घटक राज्य सरकार, राष्ट्रीय जैविक कृषि केन्द्र (एनसीओएफ), केन्द्रीय उर्वरक गुणवत्ता नियंत्रण एवं प्रशिक्षण संस्थान (सीएफक्यूसी एंड आईटी) और भारतीय मृदा और भू उपयोग सर्वेक्षण (एसएल यूएसआई) दवारा कार्यान्वित किया जाएगा। फील्ड स्तर पर कृषि विभाग दवारा सामना की गई स्टाफ और अवसंरचना जैसी परिसीमाओं में निजी भागीदार को शक्ति पर निर्भर करते हुए राज्यों दवारा सार्वजनिक निजी साझेदारी मॉडल  अपनाया जा सकता है जिससे कि यह सुनिश्चित हो सके कि मृदा परीक्षण समय पर और जरूरी संख्याओं में किए जा सकें। जिले के चुनिंदा क्षेत्रों में मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं स्थापित करने के लिए निजी पक्षकारों को प्रोत्साहित किया जाए।

जलवायु परिवर्तन एवं सतत कृषि- मोनिटरिंग, मोडलिंग और नेटवर्किंग (सीसीएसएएमएमएन)

सीसीएसएएमएमएन जलवायु स्मार्ट संधारणीय प्रबंधन पद्धतियों और स्थानीय कृषि जलवायु स्थितियों के उपयुक्त एकीकृत कृषि प्रणाली के क्षेत्र में प्रायोगिक जलवायु परिवर्तन अनुकूलन/अल्पीकरण अनुसंधान/मॉडल  परियोजनाओं के रूप में जलवायु परिवर्तन संबंधित सूचना और ज्ञान का द्वविदिशात्मक (भूमि/किसानों के लिए अनुसंधान/वैज्ञानिक स्थापनाएं और विलोमत:) प्रचार-प्रसार और सूजन करेगा। तकनीकी कार्मिकों के समर्पित विशेषज्ञ दल को एनएमएसए के भीतर एक संस्था का रूप दिया जाएगा जो वर्ष में तीन बार मिशन के कार्यकलापों की कड़ाई से मानीटरिंग और मूल्यांकन करेगा जिसके और राष्ट्रीय समिति को सूचित करेगी। मनरेगा, आईडब्ल्यूएमपी, आरकेवीवाई, एनएफएसएम, एनएचएम, एनएमएडुटी इत्यादि जैसी अग्रणी स्कीमों/मिशनों के साथ वर्षा सिंचित प्रोदयोगिकियों, योजना, अभिसरण और समन्वय के लिए प्रचार-प्रसार हेतु कार्य प्रणाली तंत्र का निर्देशन करने के लिए व्यापक प्रायोगिक ब्लाकों की सहायता की जाएगी। कृषि, पशुधन और अन्य उत्पादन प्रणालियों के मध्य आदान और उत्पाद प्रवाह की ऐसी एक एकीकृत कार्रवाई वर्षा सिंचित उत्पादन प्रणालियों की वृद्धि संभावना को उपयोग में लाएगी और जलवायु परिवर्तन जोखिमों को कम करते समय स्थानीय उत्पादन प्रणालियों को सततता प्रदान करेगी। किसान समुदाय के लाभ के लिए एकल सुविधा पटल/ज्ञान प्रदाता प्रणाली उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकार दवारा राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (एसएयू), कृषि विज्ञान केन्द्रों (केवीके), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) संस्थानों इत्यादि जैसे ज्ञान भागीदारों सहित विभिन्न पणधारियों के साथ एक परिसंघ दृष्टिकोण विकसित किया जाएगा। अवधारणा को संस्था का रूप देने और अनुपूरक विकासशील कार्यकलापों को पूरा करने के लिए राज्यों के माध्यम से वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जा सकती है । राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, आईसीएआर के राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों, केवीके, सार्वजनिक/निजी आर एवं डी संगठनों इत्यादि के माध्यम से इस धटक के अंतर्गत जलवायु परिवर्तन संबंधित मानीटरिंग, प्रतिपुष्टि, ज्ञान नेटवर्किंग और कोशल विकास के लिए भी सहायता की जाएगी। इस घटक के अंतर्गत अध्ययन दस्तावेजीकरण एवं प्रकाशन, घरेलू और विदेशी प्रशिक्षण, कार्यशालाओं/सम्मेलनों इत्यादि की सहायता की जाएगी।

मिशन ढांचा की संरचना

एनएमएसए विक्षिन्न घटकों की योजना, कार्यान्वयन और मानीटरिंग के लिए तीन स्तरीय ढांचे का अनुसरण करेगा।

राष्ट्र स्तरीय संरचना राष्ट्रीय सलाहकार समिति (एनएसी):

मिशन के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए दिशानिर्देश और योजना हेतु कार्यनीतिक निदेश उपलबध कराने के लिए निम्नलिखित सदस्यों के साथ सचिव (कृषि एवं सहकारिता) की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय सलाहकार समिति गठित की जाएगी।

सचिव, कृषि एवं सहकारिता विभाग-अध्यक्ष

अपर सचिव एवं वित्तीय सलाहकार, कृषि एवं सहकारिता सदस्य  जल संसाधन मंत्रालय के प्रतिनिधि -सदस्य

पंचायती राज मंत्रालय के प्रतिनिधि- सदस्य

पर्यावरण एवं वन मंत्रात्प्रय के प्रतिनिधि- सदस्य

खाद्य प्रसंस्करण एवं उदयोग मंत्रालय के प्रतिनिधि-सदस्य

जनजातीय कार्य मंत्रालय के प्रतिनिधि -सदस्य

कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग मंत्रालय के प्रतिनिधि -सदस्य

पशुपालन डेयरी एवं मात्स्यिकी विभाग के प्रतिनिधि- सदस्य

भूमि संसाधन विभाग के प्रतिनिधि - सदस्य

राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण (एनआरएआई) का तकनीकी विशेषज्ञ -सदस्य

संयुक्त सचिव (आईएनएम); डीएसी -सदस्य

संयुक्त सचिव (एनएचएम); डीएसी -सदस्य

संयुक्त सचिव (फसल); डीएसी -सदस्य

संयुक्त सचिव (एनआरएम एवं आरएफएस) तथा मिशन निदेशक (एनएमएसए)- सदस्य सचिव नोट - मंत्रालयों/विभागों के प्रतिनिधि संयुक्त सचिव के पद से नीचे के नहीं होंगे

परियोजना मंजूरी समिति (पीएससी)

मिशन निदेशक, एनएमएसए की अध्यक्षता में एक परियोजना मंजूरी समिति (पीएससी) जिसमें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), भूमि संसाधन विभाग (डीओएलआर), जल संसाधन मंत्रालय (एमओडब्ल्यूआर), जनजातीय कार्य मंत्रालय (एमओटीए), पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (एमओईएफ), पशुपालन, डेयरी एवं मात्स्यिकी विभाग (डीएएचडी एंड एफ), डीएसी के आईएनएम व एनएचएम प्रभागों तथा अन्य पुनःसंरचित मिशनों के प्रतिनिधि हैं, एनएमएसए के तहत परियोजनाओं की प्राथमिकता तय करेगी और उनका अनुमोदन करेगी। पीएसी की सहायता डीएसी के प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन (एनआरएम) तथा वर्षा सिंचित खेती प्रणाली (आरएफएस) दवारा की जाएगी। समस्याग्रस्त भूमियों के सुधार के प्रस्ताव आरएडी घटकों के तहत किए जाएं। मांग आधारित होने के कारण एसएचएम घटकों के प्रस्तावों की जांच डीएसी के आईएनएम प्रभाग दवारा की जाएगी और उनका अनुमोदन किया जाएगा।

स्थायी तकनीकी समिति (एसटीसी)

कार्यक्रम के कार्यान्वयन की नियमित शुद्धियों हेतु तकनीकी बैक स्टोपिंग दवारा वैज्ञानिक संस्थाओं से सुसंरचित और संस्थागत फीडबैक के माध्यम से मजबूती से सहायता की जाएगी। जलवायु परिवर्तन अनुसंधान एवं प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के क्षेत्र में सीआरआईडीए जैसी विशेषज्ञ संस्थाओं को इस परियोजनार्थ मुख्य जानकारी भागीदार बनाया जाएगा और ये तकनीकी समितियों के कार्यकलापों का समन्वय करेंगी। वैज्ञानिक समिति में योग्यता होगी और इसे अपने आकलन करने के लिए एनएमएसए के भीतर पर्याप्त अवसर प्रदान किया जाएगा। परियोजना मंजूरी समिति तथा एनएमएसए की राष्ट्रीय परामशीं समिति को समय-समय पर जानकारी समर्थन तथा तकनीकी फीडबैक मुहैया कराने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर स्थायी तकनीकी समिति (एसटीसी) स्थापित की जाएगी ताकि यदि आवश्यक हो, किसी घटक में नीतिगत विषय का निर्णय करने या किसी घटक में परिवर्तन किया जा सके। एसटीसी में सीआरआईडीए, सीएजेडआरआई, एनईएच क्षेत्र के आईसीएआर अनुसंधान परिषद, आईआईएसएस (भोपाल), पूर्वी क्षेत्र का आईसीएआर अनुसंधान परिसर (पटना), आईएआरआई (दिल्ली), चयनित एसएयू तथा राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय ख्याति वाले पेशेवरों के प्रतिनिधि होंगे। एसटीसी की सहायता करने के लिए अतिरिक्त जिम्मेदारी के साथ आईसीएआर/एसएयूकोई अन्य स्रोत से आठ तकनीकी विशेषज्ञों या, पूर्णकालिक रुप से परामर्शदाताओं/मुख्य सलाहकारों के रुप में तकनीकी समर्थन समूह के रुप में रखा जाए। परामर्शदाताओं/मुख्य सलाहकारों को रखे जाने के लिए कार्यों/जिम्मेदारियों, शैक्षणिक योग्यता तथा मानदेय दिये गए विनिर्देशों के अनुसार तैयार किये जायेंगे। एसटीसी मिशन कार्यान्वयन योजना तैयार करने के लिए एनआईसीआरए आउटकम तथा आईसीएआर व एसएयू प्रणालियों के अनुसंधान एवं विकास अनुभवों पर आधारित सतत् कृषि पद्धतियों के लिए रूपात्मकताओं का सुझाव देगी। कम-से-कम तीन माह में एक बार एसटीसी की बैठक होगी और यह तकनीकी सुझावों के साथ-साथ एनएमएसए के कार्यान्वयन पर पीएससी को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। केन्द्रीय एसटीसी की शाखाओं के रुप में कार्य करने के लिए और राज्य  मिशन को तकनीकी परामर्श मुहैया कराने के लिए राज्य स्तर पर भी इसी तरह का सैटअप स्थापित किया जायेगा। समिति के विशेषज्ञों के दौरों, प्रलेखन और संबंधित खचों को पूरा करने के लिए वैज्ञानिक संस्थाओं हेतु पर्याप्त प्रावधान किया जायेगा।

भारतीय मृदा एवं भू-उपयोग सर्वेक्षण (एसएल यूएसआई) के साथ-साथ कृषि एवं सहकारिता विभाग का जलवायु परिवर्तन कक्ष (सीसीसी) स्टेक होल्डरों के बीच सहयोगी और परस्पर प्रक्रियाओं को सरल  बनाने के लिए जानकारी नेटवर्किंग केन्द्र के रुप में कार्य करेगा।

डीएसी की अधीनस्थ कार्यालय/संस्थाएं-

कृषि एवं सहकारिता विभाग के निम्नलिखित अधीनस्थ संस्थाओं/सम्बद्ध कार्यालयों को इस मिशन के कार्यान्वयन और मॉनिटरन में लगाया जायेगा ।

(क) भारतीय मृदा एवं भू-उपयोग सर्वेक्षण (एसएल यूएसआई)-

भूमि विकास कार्यक्रमों के नियोजन और कार्यान्वयन हेतु एसएल यूएसआई विभिन्न प्रकार के मृदा एवं भूमि संसाधन सवेक्षण आयोजित करता है और मृदा से संबंधित डाटाबेस का विकास करता है।

एसएल यूएसआई में टेक्निकल सपोर्ट यूनिट (टीएसयू) होगी, यह राज्य में मिशन के कार्यान्वयन का मॉनीटर व समन्वय करेगा, मृदा संसाधन मानचित्रण करेगा, जीआईएसआधारित वेब सर्वर विकसित करेगा और मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, जल प्रबंधन,समेकित खेती आदि के क्षेत्रों में प्रशिक्षण समर्थन तथा दक्षता विकास करेगा।

(ख) राष्ट्रीय जैविक खेती केन्द्र (एनसीओएस)-

एनसीओएफ स्टेक होल्डरों के तकनीकी क्षमता आदानों के संवर्द्धन और उत्पादन, जागरुकता एवं प्रचार सूजन, मानकों और टेस्टिंग प्रोटोकॉल्स के संशोधन, जेविक आदान संसाधन प्रबंधन और मण्डी विकास सहित जेव उर्वरकों और जैविक उर्वरकों की गुणवत्ता नियंत्रण आवश्यकताओं के माध्यम से जैविक खेती के संवर्द्धन में शामिल होगा।

(ग) केन्द्रीय उर्वरक गुणवत्ता नियंत्रण एवं प्रशिक्षण संस्थान (सीएफक्यूसीटीआई)- सीएफक्यूसीटीआई स्वदेशी और आयातित उर्वरकों का निरीक्षण, विश्लेषण की पद्धतियों का मानकीकरण और समेकित पोषक तत्व प्रबंधन पर राज्यck सरकार को तकनीकी मार्गदर्शन करेगा।

(घ) बागवानी में प्लास्टी कल्चर अनुप्रयोग पर राष्ट्रीय समिति (एनसीपीएएच) –

एनसीपीएएच का सुक्ष्म सिचाई तकनीक के कियान्वयन देखरेख तथा तकनीकी पर्यवेक्षण में सहयोग रहेगा ।

राज्य स्तरीय संरचना

कृषि उत्पादन आयुक्त (एपीसी)/प्रधान सचिव/सचिव (कृषि/बागवानी) की अध्यक्षता वाली राज्य स्तर पर राज्य स्तरीय समिति (एसएलसी) जिसमें राजस्व, पशुपालन, मात्स्यिकी, वन आदि जैसे संबंधी लाइन विभागों, एसएलएनए के सीईओ, एसएयू तथा आईसीएआर केन्द्रों के प्रतिनिधि शामिल हैं, मिशन के नियोजन और कार्यान्वयन का कार्य देखेगी। वर्तमान एनएमएमआई समिति को निम्नलिखित परिवर्तनों के साथ राज्य सरकार के दवारा एनएमएसए राज्य स्तरीय समिति के रुप में अधिसूचित कर सकती है। इस समिति को संबंधित लाइन विभागों के अतिरिक्त सदस्यों के साथ, एपीसी दवारा अध्यक्षता की जाने वाली और एपीसी के संस्थान विद्यमान नहीं हैं, या तो कृषि अथवा बागवानी के वरिष्ठतम वैयक्तिक सचिव/सचिव को राज्य के मुख्य सचिव द्वारा अध्यक्ष के पद पर नामित किया जा सकता है। निदेशक (कृषि) समिति के सदस्य सचिव होंगे तथा निदेशक (बागवानी) समिति के सह-सदस्य सचिव होंगे। एक बार एनएमएसए हेतु एसएलसी के अधिसूचित हो जाने पर, एनएमएमआई की राज्य स्तरीय समिति भंग हो जायेगी। इसके अलावा, राज्य इस प्रयोजनार्थ अन्य नोडल  विभाग या एजेंसी को नामित करने या राज्य सतत् कृषि मिशन (एसएमएसए) का सूजन करने के लिए स्वतंत्र होंगे। राज्य मिशन को तकनीकी परामर्श मुहैया कराने तथा केन्द्रीय एसटीसी की शाखाओं के रुप में कार्य करने हेतु राज्य  स्थायी तकनीकी समिति (एसएसटीसी) गठित कर सकते हैं। राज्य कृषि विश्वविद्यालय एसएसटीसी का मुख्य जानकारी भागीदार होगा। इस क्षेत्र में अतिरिक्त जिम्मेदारी के साथ आईसीएआर केन्द्रों/एसएयू(अन्य पेशेवर एजेंसियों से लिये गये -4 तकनीकी विशेषज्ञों अथवा, संविदा आधार पर राज्य सलाहकारों के पद पर पूर्णकालिक रुप से एसएसटीसी की सहायता करने से राज्य स्तर पर तकनीकी समर्थन समूहों के रुप में रखा जायेगा। राज्य सलाहकारों को लगाये जाने के लिए कार्यों/जिम्मेदारियों, शैक्षणिक योग्यता तथा मानदेय दिये गये विनिर्देशों के अनुसार बनाये जायेंगे। एसएसटीसी मिशन कार्यान्वयन योजना तैयार करने के लिए अनुसंधान एवं विकास अनुभवों तथा स्थानीय आवश्यकताओं पर आधारित सतत् कृषि पद्धतियों की रुपात्मकताएं सुझाएगी। कम-से-कम तीन माह में एक बार एसएसटीसी की बैठक होगी और यह तकनीकी आदानों के साथ-साथ एनएमएसए के कार्यान्वयन पर एसटीसी को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।

जिला स्तरीय संरचना

जिला मिशन समिति (डीएमसी) को परियोजना प्रतिपादन, एनएमएसए के कार्यान्वयन और मोनिटरिंग का कार्य दिया जायेगा । डीएमसी की अध्यक्षता क्लेक्टर या जिला परिषद जिला काउंसिल के सीईओ करेंगे जिसमें पशुपालन, बागवानी, मात्स्यिकी, ग्रामीण विकास, वन आदि तथा एटीएमए, केवीके, उत्पाठक संघों, विपणन बोडों, बैंकों, गैर सरकारी संगठनों आदि सहित संबंधित लाइन विभागों के प्रतिनिधि होंगे। उप निदेशक (कृषि) जिला मिशन समिति के सदस्य सचिव होंगे। परियोजनाओं का कार्य देखने, तकनीकी सलाह देने और मॉनिटरिंग में सहायता करने के लिए लिये गये समूहों की संख्या पर निर्भर होते हुए प्रत्येक 2- सन्निकट जिलों के लिए सतत् कृषि पर एक समर्पित विषयवस्तु विशेषज्ञ/सलाहकार नियुक्त किये जायेंगे। इन सलाहकारों को संविदा आधार पर नियुक्त किया जाएगा और इनका पारिश्रमिक मिशन से ग्राहय है। वे मिशन की कार्यान्वयन योजना, वार्षिक कार्य योजना और मिशन के लिए तकनीकी पर्यवेक्षण तैयार किए जाने में राज्य  स्थायी समिति की सहायता भी करेंगे। इन सलाहकारों की नियुक्ति हेतु कार्य/जिम्मेदारियाँ/शैक्षणिक योग्यता तथा मानदेय निर्देश के अनुसार किए जायेंगे।

नियोजन एवं कार्यान्वयन

घटक विशिष्ट नियोजन (सीएसपी)

स्वास्थ्य प्रबंधन', 'खेत पर जल प्रबंधन और ‘जलवायु परिवर्तन तथा सतत् कृषि मॉडलिंग एवं नेटवर्किंग'। घटक विशिष्ट नियोजन हेतु एक निदर्शी दृष्टिकोण को नीचे रेखांकित किया गया है:

वर्षा सिचित क्षेत्र विकास (आरएडी)

  1. आरएडी का उद्देश्य बागवानी, पशुधन, मात्स्यिकी, कृषि वानिकी, मधुमक्खी पालन, एनटीएफपी के संरक्षण/संवर्दन जैसे समवर्गी कार्यकलापों के साथ बहुफसलन, चक्रण फसलन, अन्तर्फसलन, मिश्रित-फसल पद्धतियों पर जोर दिये जाने के साथ-साथ एकीकृत खेती प्रणाली (आईएफएस) को बढ़ावा दिये जाना है ताकि न केवल किसानों को आजीविका को बनाये रखने हेतु कृषि आय को अधिकतम करने में अपितु सूखा, बाढ़ अथवा मोसम संबंधी अन्य चरम घटनाओं के प्रभावों को कम करने के लिए किसानों को सक्षम बनाया जा सके;
  2. प्राकृतिक संसाधनों/परिसंपत्तियों/पहले ही विकसित या समर्थित जिन्सों, स्थान विशिष्ट पालन, खुम्भी, औषधीय और सजावटी पौध-रोपण तथा संबंधित आय सृजनकारी कार्यकलापों के प्रकार और मात्रा के आधार पर समर्थन किया जायेगा। एक सतत् खेती प्रणाली के माध्यम से तालाबों के निर्माण, भूमि उपचार, कुओं, पम्पों की आपूर्ति, लघु सिंचाई/अन्य जल बचत पद्धतियों, बीज और पौधा समर्थन आदि जैसे कार्यकलापों को शामिल/अनुपूरित किया जायेगा;
  3. किसी गांव का 100 हैक्टेयर से अनधिक क्षेत्र (एक गांव/नजदीकी गांवों में करीबी निकटता से दुर्गम क्षेत्र सन्निकट और असन्निकट) में सामुहिक दृष्टिकोण अपनाये जाने को प्रधानता दी जाएगी ताकि उपलब्ध/सृजित सामान्य संसाधनों की संभावना का उपयोग किये जाने के लिए निवेशों को प्रोत्साहित किया जा सके।
  4. चयनित समूहों में मृदा विश्लेषण/मृदा स्वास्थ्य कार्ड अनिवार्य रुप से होंगे तथा कृषि प्रणाली क्षेत्र के कम से कम 25 प्रतिशत भाग को खेत पर जल प्रबंधन के अधीन कवर किया जाएगा।
  5. सहायता उन्हें दी जाएगी जो अपनी विदयमान फसलों/प्रणाली में अन्य प्रतिस्पर्धी खेती संकटों को जोड़े जाने के इच्छुक हैं। इसमें सहायता के लिए अर्हता प्राप्त किए जाने हेतु खेती प्रणालियों की फसलन पद्धति तथा जल संचयन के अलावा कम से कम एक या अधिक मूल घटकों/कार्यकलापों को शुरु किए जाने/शामिल किए जाने की संभावना होनी चाहिए। केवल फसलन प्रणाली के लिए सहायता को इस घटक के अंतर्गत अनुमति नहीं दी जाएगी जब तक कि इसे खेत पर प्रभावी जल प्रबंधन तथा मृदा स्वास्थ्य देख-भाल के माध्यम से उन विशेष परिस्थितिकीय स्थितियों के लिए अनुकूल खेती प्रणाली से विविध न किया जाए। किसानों के पास विद्यमान प्राकृतिक संसाधन परिसम्पत्तियों से कृषि उत्पादकता को अधिकतम करने के लिए स्थानीय केवीके, एसएयू, आईसीएआर केन्द्र, आईसीआरआईएसएटी, एटीएमए आदि के माध्यम से समर्थित विशिष्ट पारिस्थितिकीय प्रणाली के लिए अनुकूल खेती प्रणालियों का एक या अधिक सम्मिश्रण चुनने का विकल्प होगा;
  6. आरएडी घटक के तहत प्रत्येक फार्म परिवार को सहायता 2 है. के फार्म आकार तक प्रतिबंधित होगी तथा वित्तीय सहायता एक लाख रुपये तक सीमित होगी। तथापि, तालाबों, भण्डारण/प्रसंस्करण यूनिट के निर्माण/नवीकरण तथा/या पोली हाउस आदि के निर्माण को इन सीमाओं से बाहर रखा गया है। यदि आवश्यक हो तो ऋण समर्थन की व्यवस्था शेष को पूरा करने के लिए की जाए;
  7. स्थान विशिष्ट हस्तक्षेपों अर्थात संसाधन संरक्षण, वर्षां जल संचयन, नदी  घाटी परियोजना तथा बाढ़ प्रवण नदी क्षेत्रों में भूमि विकास, अंतिम छोर तक कनेक्टीविटी आदि के माध्यम से कृषि भूमि विकास। एक समूह का विकास किए जाने के लिए कृषक कम्पनियाँ, कृषक उत्पादक कम्पनियाँ/संगठन, पंजीकृत कृषक समितियां, कृषक सहकारी समितियां भी पात्र होंगी। इन कार्यकलापों के लिए सहायता को सदस्यों के लिए पात्र सीमाओं तक प्रतिबंधित किया जाएगा। एनएमएसए से सहायता प्राप्त करने के लिए एफपीओ भी पात्र हैं; किन्तु कृषि एवं सहकारिता विभाग, कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी किए गए कृषक उत्पादक संगठनों के लिए नीतिगत व प्रक्रिया दिशा-निर्देशों के अनुसार। यह सुनिश्चित किए जाने के लिए यथोचित विचार किया जाएगा कि किसानों के अधिकारों और स्वामित्व संबंधी मुद्दों का उल्लंघन न हो;
  8. खेती प्रणालियों की सम्भावना को बढ़ाने के लिए उन्नत यात्रा साधन, फील्ड चैनलों, दबाव सिंचाई, जल उठाव यंत्रों आदि जैसी प्रभावी अनुप्रयोग वितरण प्रणाली के माध्यम से जल संचयन और लघु जल भंडारण के संबंध में पनधारा विकास कार्यक्रमों/नरेगा के माध्यम से विकसित उन्नत उपयोजन्यताओं को शामिल किया जाना।
  9. जैविक उत्पादों को उगाने के लिए कृषक उत्पादक कम्पनियाँ स्थापित की जाएँ। ये किसान गाँवों के समूह, संभवत: समीपवर्ती गाँवों से जो समूह में खेती करते हों, से आ सकते हैं और इन्हें तीन वर्षों की अवधि में जैविक प्रमाणीकरण प्राप्त करने के लिए सहायता दी जानी चाहिए। इन उत्पादक कम्पनियों को एफपीओ के प्रावधानों के अनुसार वित्तीय सहायता और एनएमएसए के तहत जैविक उत्पाद के विपणन हेतु पात्र घटकों के लिए राजसहायता दी जानी चाहिए ताकि इन्हें बेहतर मूल्य मिले और अन्यों को भी जैविक खेती अपनाने को प्रोत्साहित किया जा सके। राज्य स्तर पर विद्यमान  विपणन संघों को बड़ी मण्डियों में अपने जैविक उत्पाद का विपणन करने के लिए उत्पादक कम्पनियों के साथ करार करना चाहिए।
  10. संसाधन संरक्षण प्रौदयोगिकियों (आरसीटी) तथा वर्षा जल संचयन को किसानों/स्थानों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा किया जाने के लिए आरएडी के पात्र कार्यकलापों की बास्केट के तहत रखा गया है ताकि वर्षा सिंचित क्षेत्रों हेतु राष्ट्रीय पनधारा विकास कार्यक्रम (एनडब्ल्यूडीपीआरए) तथा नदी घाटी परियोजनाओं और बाढ़ प्रवण नदियों (आरवीपी एंड एफपीआर) के आवाह क्षेत्रों में मृदा संरक्षण के कार्यों में सहायता की जा सके जिनका संसाधनों की सीमाओं के कारण उनकी पूरी क्षमता का विकास नहीं किया गया है और कुछ मामलों में वित्त पोषण को समाप्त किए जाने के कारण पूरा नहीं किया गया है। आरसीटी कार्यकलापों को किसी विकसित/चल रहे/प्रस्तावित आईडब्ल्यूएमपी पनधारा परियोजना क्षेत्रों में शुरु नहीं किया जाएगा जब तक कि आईडब्ल्यूएमपी की राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी द्वारा संस्तुति न कर दी गयी हो।
  11. एसएचएम/ओएफडब्ल्यूएम घटकों के तहत दिए गए मानदण्डों और विनिर्देशनों को अपनाकर जैव-निकासी, जैसा कलस्टर में अपेक्षित हो गौण भंडारण सहित खेत पर जल प्रबंधन सहित समुचित मृदा सुधारों, भूमि विकास के माध्यम से समस्याग्रस्त भूमियों (अम्लीय/क्षारीय/लवणीय) के सुधार को आरएडी घटक के अधीन प्रस्तावित किया जाएगा।
  12. विभिन्न क्षेत्रों और संस्थाओं को शामिल करके एक एकीकृत और समन्वित प्रणाली स्थापित करके संसाधनों के इष्टतम उपयोग हेतु परियोजना क्षेत्रों में प्रासंगिक विकास कार्यक्रमों का अभिसरण किया जाळ्ना निश्चित किया जाएगा। उन्नत यात्रा साधन, फोल्ड चैनलों, दाबानुकूलित सिंचाई, जल उठाव यंत्रों आदि जैसी प्रभावी अनुप्रयोग और वितरण प्रणालियों के माध्यम से जल संचयन और लघु जल भंडारण के संबंध में पनधारा विकास कार्यक्रम/एमजीएनआरईजीए के जरिए विकसित उन्नत प्रयोज्यताओं का उपयोग किया जा सकता है ताकि खेती प्रणालियों की क्षमता को बढ़ाया जा सके। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम), राष्ट्रीय तिलहान एवं आयलपाम मिशन (एनएमओओपी), राष्ट्रीय बागवानी मिशन (एनएचएम), राष्ट्रीय पशुधन मिशन(एनएलएम) के तहत विकसित/विकसित किए जा रहे क्षेत्रों/जिन्सों की सहायता एनएमएसए से अन्य उत्पादन प्रणालियों से की जा सकती है ताकि इसे किसानों को अतिरिक्त आजीविका अवसरों को सरल बनाकर एक समेकित खेती प्रणाली बनाया जा सके। इसी तरह से क्षमता निर्माण, जागरुकता सूजन, सूचना समर्थन, फार्म यंत्रीकरण, बीजों/पौधरोपण सामग्री आदि की उपलब्धता के लिए समुचित रूप से राष्ट्रीय कृषि विस्तार एवं प्रौदयोगिकी मिशन (एनएएमटी) के हस्तक्षेपों का समुचित उपयोग किया जा सकता है।
  13. समूह के लिए कृषि-प्रसंस्करण और विपणन का समुचित संपर्क स्थापित किया जाए। पीपीपी मॉडल के तहत फसला कटाई पश्चात और मण्डी सम्पर्क बनाये जाने की सम्भावनाओं का दोहन किया जाए। इस प्रयोजनार्थ एनएडीपी, राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण मिशन जैसी स्कीमों से निधियों को अनुरुप बनाया जाये।

मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (एसएचएम)- दूसरे अध्याय में इस विषय में विस्तार से जानकारी दी गयी है ।

खेत पर जल प्रबंधन(ओएफडब्ल्यूएम)

  1. ओएफडब्ल्यूएम में ड्रिप और स्प्रिंकलर प्रोदयोगिकियों, कुशल जल उपयोग एवं वितरण      देकर जल उपयोग दक्षता में वृद्धि करने पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा।
  2. टपक सिचाई प्रणाली की ईकाई लागत पौध अंतराल तथा जल स्त्रोत की जगह पर निर्भर करती है।वित्तिय सहायता की गणना के उद्देश्य से विभिन्न सूक्ष्म सिचाई प्रणालियों की नियामक लागत रखी गई है। पूर्वात्तर एवं हिमालयी राज्यों के लिए वित्तिय सहायता की गणना हेतु सभी प्रणालियों के लिए लागत नियामक लागत से 25 प्रतिशत अधिक निश्चित की गई है।
  3. किसानों/लाभार्थियों को कम लागत का बोझ सुनिश्चित करते हुए स्थान और फसल विशिष्ट प्रौदयोगिकीय समुचित सिंचाई प्रणालियों को बढ़ावा दिया जाना;
  4. यह सुनिश्चित किया जाए कि राज्य को आवंटित लघु सिंचाई निधि का कम-से-कम 25 प्रतिशत फसल क्षेत्र के लिए उपयोग किया जाए।
  5. ओएफडब्ल्यूएम घटक के तहत प्रत्येक कृषि परिवार को सहायता 5 हैक्टेयर के फार्म आकार तक प्रतिबंधित होगी। तथापि, ऐसे लाभार्थी जिन्होंने पहले ही लघु सिंचाई हेतु केन्द्रीय सहायता का लाभ ले लिया है, उसी भूमि के लिए 10 वर्षों के लिए आगे सहायता का लाभ नहीं ले सकते;
  6. जब प्रचुरता में उपलब्ध हो (वर्षा मौसम) जल को एकत्रित करने के लिए या प्रभावी खेत पर जल प्रबंधन के माध्यम से शुष्क अवधियों के दौरान उपयोग हेतु धाराओं जैसे बारहमासी स्रोतों से नहर प्रणाली के अंत में गौण भंडारण सूजन हेतु समर्थन; सतही/उप-सतही/जैवनिकासी प्रणाली के माध्यम से निकासी विकास हेतु समर्थन;
  7. प्रभावी जल प्रबंधन के लिए समुचित जल प्रबंधन प्रौद्योगिकियों, जल के विवेकपूर्ण उपयोग तथा कृषि एवं भूमि विकास उपायों पर प्रशिक्षण; और
  8. जिला स्तर पर कार्यान्वयक एजेंसी को लाभार्थियों के चयन करने तथा शीघ्र सहायता निर्मुक्त करने में पारदर्शिता सुनिश्चित करने में एक समान प्रक्रिया का अनुसरण करना चाहिए। लाभार्थियों का चयन करने में पीआरआई के परामर्श लिए जाने की जरुरत है।
  9. प्रदर्शन क्षेत्र में पनधारा विकास कार्यक्रमों/एनजीएनआरईजीए के माध्यम से विकसित जल संसाधनों को इसकी क्षमता उपयोग हेतु निरपवाद रुप से ओएफडब्ल्यूएम घटक के कार्यकलापों के साथ जोड़ा जाना चाहिए। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम), राष्ट्रीय तिलहन एवं आयल पाम मिशन (एनएमओओपी), राष्ट्रीय बागवानी मिशन (एनएचएम), राष्ट्रीय पशुधन मिशन (एनएलएम) के तहत परियोजना क्षेत्रों, यदि इस घटक का उपयोग मूल स्कीम से नहीं किया गया है, को भी इस घटक का लाभ लेना चाहिए ताकि जल उपयोग क्षमता में सुधार किया जा सके।
  10. सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली निर्माताओं के पंजीकरण, गुणवत्ता नियंत्रण तथा विकय पश्चात् सेवाओं हेतु प्रावधान दिये गये है।

जलवायु परिवर्तन और सतत् कृषि: मॉनिटरिंग, मॉडलिंग तथा नेटवर्किंग(सीसीएसएएमएमएन)-

  1. समुचित सतत् पद्धतियों तथा विशिष्ट कृषि-जलवायु स्थितियों के लिए उपयुक्त समेकित खेती प्रणाली मॉडलों को विकसित करने के लिए सीसीएसएएमएमएन जलवायु परिवर्तन अनुकूलन/न्यूनीकरण अनुसंधान/पायलेट/मॉडल परियोजनाओं की सहायता करेगा;
  2. वर्षा सिंचित प्रौदयोगिकियों, नियोजन, समाभिरुपता और फ्लैगशिप स्कीमों/मिशनों जैसे एमजीएनआरईजीएस, आईडब्ल्यूएमपी, त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (एआईबीपी), आरकेवीवाई, एनएफएसएम, एनएचएम, एनएमएएंडईटी आदि के साथ समन्वय के प्रसार हेतु स्पष्ट कार्यात्मक तंत्र की व्याख्या करने के लिए व्यापक पायलेट ब्लॉकों की सहायता की जायेगी। इस तरह से आदान और परिणाम की एकीकृत कार्रवाई जलवायु परिवर्तन संबंधी जोखिमों पर विचार किए जाते समय पूरी कृषि, पशुधन और अन्य उत्पादन प्रणालियों में प्रवाह से वर्षा सिंचित वर्षा प्रणालियों, स्थानीय उत्पादन प्रणालियों, सततता प्रदान किये जाने की वृद्धि क्षमता का उपयोग करेगी। राज्य सरकार दवारा कृषि समुदाय के लाभार्थ एकल खिड़की सेवा/ज्ञान प्रदाता प्रणाली मुहैया कराये जाने के लिए राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (एसएयू), कृषि विज्ञान केन्द्रों (केवीके), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) सहित विभिन्न पणधारियों के साथ एक सामूहिक दृष्टिकोण विकसित किया जाए। यह समूह सभी  पात्र कार्यकलापों जिनको केन्द्रीय और राज्य सरकारों  के विभिन्न स्कीमों/कार्यक्रमों के माध्यम से सतत् और जलवायु अनुकूल कृषि पद्धतियों को मुख्य धारा में लाने के लिए सहायता की जा सकती है, को शामिल करते हुए पायलेट ब्लॉक हेतु एक व्यापक और समग्र विकास योजना तैयार करेगा । संघ के निर्माण और संघ अग्रणी संगठन के चयन के लिए राज्य  सरकार एक पारदर्शी प्रक्रिया अपनायेगी।
  3. राज्य अग्रिम रुप से पायलेट ब्लॉकों को अधिसूचित करेगा। पायलेट ब्लॉक का चयन निम्नलिखित मानदण्डों के आधार पर होगा:
  • कम सिंचित क्षेत्र वाले ब्लॉकों अर्थात् प्राथमिक रुप से वर्षा सिंचित कृषि को ब्लॉक में व्यवसाय बनाया जा रहा है
  • ब्लॉक में आ.जी. एवं अ.ज.जा. के किसानों की प्रधानता
  • राज्य के औसत की तुलना में कम फसल उत्पादकता
  • राज्य विशिष्ट मुद्दों पर आधारित किसी अन्य पैरामीटरों को अपनाने की प्राथमिकता देना

 

  1. राज्य सरकार उपर्युक्त पैरा-II में यथा उल्लेखित संघ द्वारा विकसित समन्वित और समग्र विकास योजना के तहत कार्यकलापों हेतु संघ के माध्यम से निधियों को सरणीबद्ध करने के लिए एमजीएनआरईजीएस, आईडब्ल्यूएमपी, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, आरकेवीवाई, एनएचएम, एनएफएसएम, राष्ट्रीय पशुधन मिशन, बीजीआरएफ आदि जैसे विकासात्मक कार्यक्रमों का कार्यान्वयन कर रहे सभी विभागों/एजेंसियों को सीधे सरकारी आदेश जारी करेगी। इससे न केवल प्रयासों के दोहरीकरण से बचा जा सकेगा अपितु अनुपूरक ढंग से विभिन्न कार्यक्रमों के तहत शुरु किए गए हस्तक्षेपों के संभावित लाभ प्राप्त करने में भी मदद मिलेगी। इस घटक के तहत निधियाँ तब तक निर्मुक्त नहीं की जाएंगी जब तक कि राज्य सरकार ब्लॉक को अधिसूचित नहीं करती और यथा ऊपर उल्लेखित आदेश जारी नहीं करती।
  2. अनुसंधान वित्त पोषण/अनुभवों पर आधारित कृषि में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के विभिन्न पहलूओं पर प्रशिक्षण और प्रदर्शन (अर्थात् एनआईसीआरए, सीआरआईडीए आदि)।
  3. जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में वैबपोर्टल/सूचना प्रणाली, अध्ययनों, प्रलेखन, सम्मेलनों, कार्यशालाओों आदि के माध्यम से ज्ञान  नेटवर्किंग  और उन्नयन को भी सहायता ठी जाएगी;
  4. कृषि विश्वविद्यालय, आईसीएआर संस्थान/केन्द्र, राष्ट्रीय/अन्तर्राष्ट्रीय संस्थान, केवीके, निजी/सार्वजनिक क्षेत्र के अनुसंधान एवं विकास संगठन सीसीएसएएमएमएन हेतु प्रस्ताव देने के पात्र हैं। इन परियोजनाओं को एसटीसी दवारा अंतिम रुप दिया जायेगा।
  5. इन परियोजनाओं के कार्यान्वयन में आईसीएआर के एनआईसीआरए कार्यक्रम पर राष्ट्रीय पहलों के साथ समुचित समन्वय और तालमेल करना होगा; तथा सीसीएसएएमएमएन का कार्यान्वयन राष्ट्रीय तथा राज्य दोनों स्तरों पर होगा ।

मिशन कार्यान्वयन योजना (एमआईपी)

राज्य 5-7 वर्षों के अंतर, जो जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण से जिला कृषि योजनाओं (डीएपी) तथा राज्य कृषि योजना के हस्तक्षेपों की प्राथमिकता से उत्पन्न होगा, के साथ सतत् कृषि विकास के लिए कार्य योजना तथा रणनीति को इंगित करते हुए मिशन कार्यान्वयन योजना (एमआईपी) तैयार करेंगे । भावी योजना में जलवायु परिवर्तन पर राज्य कार्य योजना (एसएपीसीसी)में की गई कृषि क्षेत्र की सिफारिशों पर भी विचार किया जाना चाहिए यदि ये जलवायु कारकों का पता लगाने के लिए एसएपी के साथ राज्यों दवारा तैयार की जाएं । कृषि पारिस्थितिक परिस्थितियां जैसे स्थलाकृति, मृदा विशेषताएं, जलवायु चरम मौसम घटनाओं की आवृति, फसल तथा फसलन प्रणाली, पोध तथा वृक्ष, भू तथा भू उपयोग, जल आदि सतत विकास की रणनीति की रुप रेखा के लिए मुख्य मापदण्ड है । इसका प्रारम्भिक फोकस कृषि प्रणाली जिसके पास स्थानीय लाभ तथा सुलभ अनुकूलन क्षमता है, के प्रोन्नयन के लिए प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर होना चाहिए ।

वार्षिक कार्य योजना (एएपी)

वित्तीय वर्ष (मार्च-अप्रैल) की शुरुआत में एएपी एसएचएम घटक के अलावा डीएसी दवारा संप्रेषित अनुसार राज्यों के अंतिम परिव्यय के विषय में एमआईपी का संचालन करेगा | एसएचएम घटक, जो मांग चालित होगा, के अलावा एएपी में घटक विशिष्ट कार्यक्रम तैयार करने में राज्यों को सुविधा देने के लिए प्रत्येक घटक के लिए अंतिम प्रावधान निर्दिष्ट किया जायेगा ।  एनएमएसए के लिए नामंकित नोडल विभाग एएपी तैयार करते समय संबंधित कार्यान्वयन विभागों /अभिकरणों के प्रस्तावों से समन्वय तथा मिलान करेगा । राज्य यह भी सुनिश्चित करेंगे कि एएपी आरकेवीवाई के तहत चलाई जा रही गतिविधियों सहित जिला कृषि योजनाओं (डीएपी) तथा राज्य कृषि योजना (एसएपी) एवं गतिविधियों की ओवरलॅंपिंग के बिना प्रत्येक घटक के साथ उचित समेकन हे। प्रत्येक घटक यथा आरएपी, एसएचएम, ओएफडब्ल्यूएम तथा सीसीएसएएमएमएन के लिए इन लक्ष्यों तथा संभावित परिणामों को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक हस्तक्षेप, कार्य योजना तथा कार्यान्वयन तंत्र के वास्तविक तथा वित्तीय लक्ष्यों को अलग से इंगित करेगा । एएपी को तैयार करने के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाळ्ना चाहिए । अभिकरण अपनी प्राथमिकताओं के मद्देनजर जिला स्तर पर वार्षिक योजना (एडब्ल्यूपी) तैयार करेंगे । एडब्ल्यूपी राज्य स्तरीय एएपी के अनुसार समेकित किए जाएंगे । एएपी के साथ साथ भावी/रणनीतिक योजना तैयार करने के लिए राज्य सलाहकारों की नियुक्ति कर सकते हैं अथवा टीएसयू की सहायता ले सकते हैं ।

परियोजना प्रस्तुतिकरण तथा अनुमोदन

एसएनसी दवारा विधिवत अनुमोदित प्रत्येक घटक के लिए पृथक प्रस्ताव के साथ एएपी को परीक्षण, विवेचना तथा अंतिम अनुमोदन के लिए मार्च तक कृषि एवं सहकारिता विभाग, कृषि मंत्रालय, भारत सरकार को प्रस्तुत किए जाने की आवश्यकता है । विचार करने, संस्तुति तथा राज्यों को निधि निर्मुक्ति अनुमोदन के लिए पीएससी के समक्ष रखे जाने से पूर्व एएपी की जांच डीएसी में संबंद्ध तकनीकी प्रभाग दवारा की जाएगी ।

कार्यक्रम कार्यान्वयन

राज्य स्तर पर राज्य कृषि विभाग मिशन मोड में एनएमएसए कार्यान्वयन के लिए पूरी तरह उत्तरदायी होंगे । राज्य सरकारें जिला स्तर पर एनएमएसए कार्यान्वयन के लिए नोडल के रुप में किसी अन्य विभाग/अभिकरण को लगा/नामित कर सकती हे । पंचायती राज संस्थाएं एनएमएए की योजना तथा कार्यान्वयन में सक्रिय रुप से शामिल होन्ने चाहिए । राष्ट्रीय, राज्य, जिला तथा पंचायती राज संस्थानों के विभिन्न स्तरों पर विभिन्न संस्थानों की भूमिका और कार्य पृथक रुप से संप्रेषित किए जाएंगे । स्थान विशिष्ट हस्तक्षेपों की पहचान करते समय जिला कृषि आकस्मिकता योजनाओं तथा आईसीएआर की एनआईसीआरए खोजों पर विचार किए जाने की आवश्यकता है । उचित प्रौदयोगिकी, फार्म प्रणालियों तथा तकनीकी बैकस्टापिंग की पहचान के लिए आईसीएआर संस्थानों, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (एसएयू), कृषि विज्ञान केन्द्रों (केवीके), एटीएमए तथा विख्यात एनजीओ से परामर्श किया जा सकता है । हस्तक्षेपों के चयनित पैकेज के लिए एक कलस्टर आधारित दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है । कलस्टर का चुनाव करते समय उन्हें प्राथमिकता दी जा सकती है जहां विभिन्न विकासात्मक तथा पन्नधारा विकास कार्यक्रमीं नामतः वर्षा सिंचित क्षेत्रों के लिए राष्ट्रीय पक्नधारा विकास परियोजना (एनडब्ल्यूडीपीआरए), नदी घाटी तथा बाढ़ संभावित नदी क्षेत्र में मृदा संरक्षण (आरयूपीएंडएफपीआर), राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना (एमएनआरईजीएस), समेकित पनधारा प्रबंधन कार्यक्रम (आईडब्ल्यूएमपी) आदि के तहत जल संसाधनों सहित प्राकृतिक संसाधन पहले ही विकसित किए जा चुके हैं । अगले पांच वर्षों में किसानों/लाभार्थियों को राजसहायता के प्रत्यक्ष हस्तान्तरण के लिए आधार संख्या तथा जहां यह प्रचालन में है उन जिलों में उपलब्ध अवसंरचना के आधार पर प्रयास किए जाएंगे। दिशानिर्देशों में निर्धारित प्रावधानों तथा शर्तों के अनुसार किसान दवारा उपकरणों/साधनों की खरीद के प्रमाण की सुनिश्चितता के पश्चात ही राशि हस्तांतरित की जाएगी । राज्य सरकारें सुनिश्चित करें कि कम से कम 50 प्रतिशत लाभान्वित लघु तथा सीमान्त कृषक वर्ग के हों।

  • कलस्टर दृष्टिकोण में एक विशिष्ट क्षेत्र लिया जाना है तथा उस क्षेत्र के सभी/अधिकतम किसान लाभान्वित के रुप में चुने जाते हैं तथा वैयक्तिक किसान जो एनएमएसए से लाभ प्राप्त करना चाहते हैं, के मामले में लाभार्थी चयन प्रक्रिया पारदर्शों तथा समयबद्ध होनी चाहिए । लाभार्थियों के आवेदन/चयन की पूरी प्रकिया आनलाईन तथा समयबद्ध होनी चाहिए । ऐसे मामले में जहां किसानों दवारा इंटरनेट का प्रयोग नहीं होता किसान आनलाईन कियोस्क, सामान्य सेवा केन्द्रों आदि का प्रयोग किया जा सकता है जो अब ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध हैं तथा जिनका किसानों दवारा विभिन्न अन्य गतिविधियों के लिए प्रयोग किया जा रहा है, ऐसे इंटरनेट तथा आनलाईन सेवा प्रदाताओं को किसानों से अपने आवेदन प्रस्तुत करने तथा आगे फोलोअप के लिए कुछ निश्चित शुल्क लिए जाने के लिए अनुमति दी जानी चाहिए । इसके अलावा लाभार्थियों के नाम तथा उन्हें टी जाने वाली सहायता पब्लिक डोमेन में विभागीय बेवसाइट पर भी डाली जाए । चयन तथा लाभ का हस्तांतरण समयबद्ध होना चाहिए तथा ऑनलाईन हो ताकि ऐसी बातों के लिए किसानों को बार-बार विभागीय कार्यालय के चक्कर काटने की आवश्यकता ना पड़े ।

जांच तथा मूल्यांकन

  1. एनएमएसए में लाईन विभागों सहित सभी कार्यान्वयन अभिकरणों की भागीदारी के साथ जांच तथा मूल्यांकन के लिए सम्मिलित तंत्र की परिकल्पना है ।
  2. मौसम परिवर्तन की शतों में घटकों की तकनीकी व्यवहार्यता पर राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) की सेवाओं के स्थान पर मजबूत तकनीकी जांच तथा फीड बैक प्रणाली लायी जाएगी । सीआरआईडीए/सीएजैडआरआई तथा राज्य कृषि विश्विद्यालयों के विशेषज्ञ वर्ष में तीन बार मिशन गतिविधियों की कड़ाई से जांच करने के लिए तथा मूल्यांकन करने के लिए तथा एनएसी को रिपोर्ट करने के लिए एनएमएसए में संस्थागत होंगे । ये वैज्ञानिक समितियां, यदि आवश्यकता हुई, नीति तत्व आकलन तथा निर्धारण अथवा कार्य योजना में परिवर्तन के लिए राष्ट्रीय समिति/मिशन निदेशक की मदद करेंगी ।
  3. राज्य स्तर पर कार्यान्वयन की प्रक्रिया पर एसएसटीसी तथा एसएमएसए/एसएलसी दवारा निगरानी की जाएगी । राष्ट्रीय सतर पर एनएमएसए की पीएससी तथा एसटीएल दवारा निगरानी की जाएगी । मिशन पहलों की प्रभावी मॉनिटरिंग के लिए कार्यक्रम कार्यान्वयन की वेब आधारित मॉनिटरिंग, विडियो कांफ्रेंसिंग, डेस्क रिव्यू क्षेत्र दौरे तथा मूल्यांकन का अनुसरण किया जाएगी । राज्य सरकार मध्य अवधि शुद्धि, यदि कोई है, की सुविधा प्रदान करने के लिए कार्यान्वयन अवधि के दौरान समवर्ती मूल्यांकन भी कर सकती है ।
  4. राज्य अगली तिमाही के प्रथम माह की 10 तारीख तक विस्तृत तिमाही प्रगति रिपोर्ट (क्यूपीआर) प्रस्तुत करना सुनिश्चित करेंगे । इसी प्रकार वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर तीन माह के भीतर विस्तृत वार्षिक प्रगति रिपोर्ट (एपीआर) कृषि एवं सहकारिता विभाग, कृषि मंत्रालय को भेजी जानी चाहिए ।
  5. राज्य सरकारें सुनिश्चित करें कि सृजित सभी परियोजना क्षेत्रों/वास्तविक संपतियों की डिजिटल लोकेशन, लाभार्थियों के नाम, एनएमएसए के तहत प्रदान की गई सहायता आदि तैयार हो तथा जिला/राज्य के डिजिटल नकशे पर अपलोड हों तथा कार्यक्रम को कार्यान्वयन में बेहतर पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए पब्लिक डोमेन में रखा जाए ।
  6. क्षेत्र तथा ग्राम स्तर पर पंचायतें कार्यान्वयन की प्रतिदिन की प्रक्रिया की देखरेख  में शामिल होंगी। जिला स्तर पर, संबंधित जिला पंचायती राज संस्थानों के सहयोग से संयुक्त निदेशक/उपनिदेशक कृषि दवारा निगरानी की जाएगी ।
  7. कलस्टर/ग्राम स्तर पर, अनुमोदित कार्यक्रम का विवरण, शुरु की गई सभी गतिविधियां लाभार्थियों का नाम, किया गया व्यय आदि स्थानीय पंचायत भवन/प्रसिद्ध सार्वजनिक स्थान पर प्रदर्शित किया जाए तथा इसे सामाजिक लेखा परीक्षा के लिए वार्षिक रूप से संबंद्ध ग्राम सभा के समक्ष  रखा जाए ।

कवरेज

एनएमएसए का प्रचालन पूरे देश में होगा । तथापि कुछ घटकों हस्तक्षेपों का विभिन्न कृषि पारिस्थितिक जोन के लिए डीएसी के अन्य कार्यक्रमों जैसे एनएफएसएम, एनएचएम, एनएमओओपी, एनएमएइटी आदि के साथ मिशन की गतिविधियों के अभिमुख होने के अलावा उपयुक्त स्थान विशिष्ट दृष्टकोण होगा ।

निधि प्रवाह तंत्र

  1. कृषि एवं सहकारिता विभाग, भारत सरकार प्रत्येक राज्य/कार्यान्वयन अभिकरण, जो बदले में एएपी के लिए संबंधित घटक वार आवंटन तैयार करेगा को संभावित वार्षिक परिव्यय संप्रेषित किया जाएगा ।
  2. एएपी के अनुमोदन के फलस्वरुप राज्य नोडल विभागों अथवा राज्य दवारा अधिनियमित नामित कार्यान्वयन भभिकरणों को निधि निर्गत को जाएगी ।
  3. राज्य स्तरीय कार्यान्वयन अभिकरण अपने अनुमोदित एएपी के अनुसरण में समयबद्ध रीति में कार्यान्वयन सुनिश्चित करेंगे । निधियों की निर्मुक्ति सामान्य वित्तीय नियमों, विशिष्ट आकस्मिक आवश्यकताओं आदि के प्रावधानों के अनुसार वास्तविक तथा वित्तीय प्रगति रिपोर्ट, उपयोग प्रमाण पत्र तथा अन्य आवश्यक कागजात प्रस्तुत करने पर किस्तों में की जाएगी । तथापि मृदा/उर्वरक परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना/सुदृढीकरण के लिए निधियों की निर्मुक्ति एएपी के अनुमोदन के पश्चात एक किस्त में दी जाएगी ।
  4. एनएमएसए राष्ट्रीय स्तर पर अर्थात डीएसी तथा इसके अधीनस्थ कार्यालयों/संस्थानों , तकनीकी सहायता इकाइयों (टीएसयू) के स्थापना खर्च जांच तथा मूल्यांकन, क्षमता निर्माण तथा अन्य आकस्मिक खर्च आदि पर प्रशासनिक खचौं के लिए वार्षिक परिव्यय का लगभग  प्रतिशत विनिर्धारित करेगा । इसी प्रकार मिशन के कार्यान्वयन के लिए प्रशासनिक तथा अन्य आकस्मिक खर्चों को पूरा करने के लिए राज्यों के कुल आवंटन के 5 प्रतिशत को भी विनिर्धारित करना होगा ।
  5. कुल आवंटन का कम से कम 50 प्रतिशत लघु सीमान्त किसानों के लिए उपयोग होना है जिसमें से कम से कम 30 प्रतिशत महिला लाभार्थी,किसान हो । आगे कुल आवंटन का 16 प्रतिशत तथा 8 प्रतिशत अथवा जिले में एससी/एसटी जनसंख्या के समानुपात में क्रमश: विशेष घटक योजना (एससीपी) तथा जनजातीय उप योजना (टीएसपी) के लिए प्रयोग किया जाएगा ।

प्रभाव आकलन, आवधिक मूल्यांकन तथा रिपोर्टिग

  1. मिशन कार्यक्रम की कार्यान्वयन प्रक्रिया तथा प्रभावी जांच में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सूचना तथा संचार प्रौदयोगिकी का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाएगा ।
  2. राज्य अनुमोदित एएपी को एनएमएसए की वेबसाइट पर अपलोड करेंगे जो केवल इसी उद्देश्य के लिए बनी है । एनएमएसए के प्रत्येक उप घटक के तहत वास्तविक तथा वित्तीय प्रगति प्रत्येक माह अद्यतन भी होनी चाहिए तथा निर्देशित प्रपत्र के अनुसार वेबसाइट पर अपलोड होनी चाहिए ।
  3. टीएसपी तथा एससीएसपी के घटक के तहत वास्तविक तथा वित्तीय उपलब्धियों पर सूचना वार्षिक रुप से दिए गए प्रपत्रानुसार प्रेषित की जानी चाहिए ।
  4. मध्यावधि शुद्धियों की सुविधा प्रदान करने के लिए सक्षमता, कार्य निष्पादन, परिणाम और कमियों के आकलन हेतु तृतीय पक्ष एजेन्सी के माध्यम से अधिमानतः दविवार्षिक आधार पर एनएमएसए का मूल्यांकन किया जाएगा । तथापि राज्य सरकार तथा अभिनामित कार्यान्वयन एजेंसियां एनएमएसए का इसके उद्देश्यों की शताँ पर कार्य निष्पादन के आकलन के लिए स्वतंत्र मूल्यांकन करा सकती है ।
  5. एनएमएसए के तहत कलस्टर/परियोजना शुरु करने से पहले बैंचमार्किंग प्रयोग जरुर किए जाएं ।

संभावित परिणाम

एनएमएसए से अपेक्षित है कि वह फसलों और पशुपालन दोनों के क्षेत्र में उपयुक्त अनुकूलन और शमन उपायों के जरिए भारतीय कृषि को अधिक जलवायु सहय उत्पादन प्रणाली में अंतरित करे । ये उपाय उन्नत प्रौद्योगिकी और बेहतर प्रयोगों को अपनाने तथा जलवायु और गैर जलवायु दबावों हेतु विभिन्न फसलन तंत्रों के प्रसार में मदद करेंगे ।

स्रोत: नेशनल मिशन फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर(एनएमएसए)

अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020



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