उद्देश्य
निम्नलिखित व्यापक उद्देश्यों के साथ यह योजना लागू की जा रही है:
अंगभूत अवयव
योजना के अंगीभूत अवयवों में शामिल है
i. मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं को मजबूत करना
ii. एकीकृत पोषण प्रबंधन के प्रयोग को बढ़ावा
iii. ऊर्वरक गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशालाओं को सबल करना।
वित्त आवंटन
11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान विभिन्न अंगीभूत घटकों के लिए कुल 429.85 करोड़ रुपये का आवंटन, योजना के क्रियान्वयन हेतु स्वीकृत किया गया है।
क्रियान्वयन प्राधिकार
कृषि एवं सहकारिता विभाग (डीएसी), कृषि मंत्रालय
सूक्ष्म सिंचाई का राष्ट्रीय मिशन (एनएमएमआई) को एक मिशन के रूप में जून २०१० में आरम्भ किया गया था। NMMI पानी के इस्तेमाल में बेहतर दक्षता, फसल की उत्पादकता और किसानों की आय में वृद्धि करने के लिये राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफ़एसएम), तिलहनों, दालों एवं मक्का की एकीकृत योजना (आईएसओपीओएम), कपास पर प्रौद्योगिकी मिशन (टीएमसी) आदि जैसे बडे सरकारी कार्यक्रमों के अंतर्गत सूक्ष्म सिंचाई गतिविधियों के समावेश को बढावा देगा। नये दिशानिर्देश पानी के उपयोग की दक्षता में वृद्धि, फसलों की उत्पादकता में वृद्धि करेंगे तथा पानी के खारेपन व जलभराव जैसी मुद्दों का हल भी प्रदान करेंगे।
इस योजना की विशेषताएं हैं:
इस योजना में एक प्रभावी सुपुर्दगी प्रणाली भी है जो सकल खेती के अंतर्गत बढे क्षेत्र के लिये लाभार्थियों, पंचायतों, राज्य की लागूकरण एजेंसियों और अन्य पंजीकृत प्रणाली प्रदाताओं के बीच सघन समन्वय की मांग को पूरा करेगी।
नोडल समिति के रूप में बाग़वानी में प्लास्टिकल्चर के अनुप्रयोग पर राष्ट्रीय समिति (एनसीपीएएच) देश में एनएमएमआई के प्रभावी लागूकरण पर उचित नीतिगत उपाय प्रदान करती है। एनसीपीएएच २२ प्रिसिज़न फार्मिंग डेवलपमेंट सेंटर्स (पीएफ़डीसी) के प्रदर्शन और देश में आम तौर पर सूक्ष्म कृषि विधियों के समग्र विकास व उच्च-तकनीक के हस्तक्षेपों की प्रभावी निगरानी करती है।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना का लक्ष्य कृषि एवं समवर्गी क्षेत्रों का समग्र विकास सुनिश्चित करते हुए 11वीं योजना अवधि के दौरान कृषि क्षेत्र में 4 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि प्राप्त करना है।
योजना के प्रमुख लक्ष्य
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत प्रमुख क्षेत्र
बजट स्वीकृति
11वीं पंचवर्षीय योजनावधि के दौरान इस योजना के लिए 25 हजार करोड़ रुपये स्वीकृत किये गये हैं।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में रेशम उत्पादन और संबद्ध गतिविधियों का समावेश
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) के अंतर्गत वित्त पोषण की पात्रता के लिए सरकार ने रेशम उत्पादन और सम्बद्ध गतिविधियों का RKVY के तहत समावेश का फैसला किया है। इसमें रेशम कीट के उत्पादन के चरण तक रेशम उत्पादन शामिल रहेगा और साथ ही कृषि उद्यम में रेशम कीट के उत्पादन व रेशम धागे के उत्पादन से लेकर विपणन तक विस्तार प्रणाली भी।
अब RKVY का लाभ रेशम उत्पादन विस्तार प्रणाली में सुधार, मिट्टी के स्वास्थ्य को बेहतर करने, वर्षा से पोषित रेशम उद्योग को विकसित करने तथा एकीकृत कीट प्रबंधन के लिए में लिया जा सकता है। लाभ रेशम के कीड़ों के बीज बेहतर करने तथा क्षेत्र के मशीनीकरण के लिए होंगे। यह निर्णय बाजार के बुनियादी ढांचे के विकास तथा सेरी उद्यम को बढ़ावा देने में सहायता प्रदान करेगा। गैर कृषि गतिविधियों के लिए परियोजनाएं हाथ में ली जा सकती हैं और भूमि सुधार के लाभार्थियों जैसे सीमांत व छोटे किसानों आदि को विशेष योजनाएं स्वीकृत कर रेशम कीट पालन किसान को अधिकतम लाभ दिया जा सकता है।
यह नीति कृषि क्षेत्र को फिर से सशक्त करने और किसानों की आर्थिक दशा सुधारने के उद्देश्य से बनाई गई है।
पृष्ठभूमिः
सरकार ने 2004 में किसानों पर राष्ट्रीय आयोग का गठन प्रो. एम.एस.स्वामीनाथन की अध्यक्षता में किया था। आयोग के गठन के पीछे देश के विविध कृषि-उत्पाद क्षेत्रों में अलग कृषि व्यवस्था में उत्पादन, लाभ और दीर्घकालिकता को बढ़ावा देने की सोच थी। साथ ही, ऐसे उपाय भी सुझाना था ताकि शिक्षित और युवावर्ग को खेती की तरफ आकर्षित कर उसे अपनाये रखने के लिए मनाया जा सके। इसके अलावा एक वृहद् मध्यम अवधि का रणनीति अपनाई जाए, ताकि खाद्य और पोषण सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके। आयोग ने अपनी अंतिम प्रतिवेदन अक्तूबर 2006 में सरकार को सौंपी।
आयोग द्वारा पुनरीक्षित किसानों के लिए राष्ट्रीय नीति के प्रस्तावों और कई केन्द्रीय मंत्रालयों, विभागों और राज्य सरकारों की टिप्पणी/सुझाव के आधार पर भारत सरकार ने किसानों के लिए राष्ट्रीय नीति -2007 की संकल्पना और मंजूरी दी। दूसरी बातों के अलावा यह नीति किसानों की आर्थिक दशा में उत्पादन, लाभ, पानी, जमीन और दूसरी सहायक सुविधाओं में इजाफा कर अहम बदलाव लाने का लक्ष्य रखती है। साथ ही, यह उचित मूल्य नीति व आपदा प्रबंधन जैसे उपाय भी करता है।
नीति की मुख्य बातें
किसानों के लिए राष्ट्रीय नीति 2007 की बातें और प्रावधान इस प्रकार हैं-
नीति के क्रियान्वयन की व्यवस्थाः
नीति के क्रियान्वयन के लिए कृषि और सहकारिता विभाग एक अंतर्मंत्रालयीय समिति का गठन किया जाएगा, जो इस ध्येय के लिए आवश्यक योजना बनाएगी। कृषि समन्वयन समिति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में किसानों के लिए राष्ट्रीय नीति के एकीकृत क्रियान्वयन का समन्वय और समीक्षा करेगी।
किसानों के लिए राष्ट्रीय नीति 2007 को राज्यसभा में 23 नवंबर 2007 और लोकसभा में 26 नवंबर 2007 को केन्द्रीय कृषि मंत्री श्री शरद पवार ने रखा।
पीआईबी विज्ञप्ति, 26 नवंबर 2007
लक्ष्य
भारत सरकार ने, खाद्यान्न उत्पादन में आई स्थिरता एवं बढ़ती जनसंख्या की खाद्य उपभोग को ध्यान में रखते हुए, अगस्त 2007 में केन्द्र प्रायोजित राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन योजना का शुभारंभ किया।
इस योजना का मुख्य लक्ष्य सुस्थिर आधार पर गेहूँ, चावल व दलहन की उत्पादकता में वृद्धि लाना ताकि देश में खाद्य सुरक्षा की स्थिति को सुनिश्चित किया जा सके। इसका दृष्टिकोण समुन्नत प्रौद्योगिकी के प्रसार एवं कृषि प्रबंधन पहल के माध्यम से इन फसलों के उत्पादन में व्याप्त अंतर को दूर करना है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के मुख्य घटक
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तीन घटक होंगे-
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के अंतर्गत शामिल किये गये राज्य
भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय बागवानी मिशन की शुरुआत वर्ष 2005-06 (दसवीं योजना) के दौरान केन्द्र प्रायोजित योजना के रूप में की गई है। इस योजना का उद्देश्य भारत में बागवानी क्षेत्र का व्यापक वृद्घि करने के साथ-साथ बागवानी उत्पादन में वृद्घि करना है। 11 वीं योजना के दौरात भारत सरकार की सहायता का अंश 85 प्रतिशत तथा राज्य सरकारों का अंशदान 15 प्रतिशत होगा।
उत्तर पूर्व के आठ राज्यों को छोड़कर (सिक्किम, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड समेत) सभी राज्य तथा केंद्र शासित प्रदेशों को इस मिशन के अंतर्गत लाया गया है। उपरोक्त छूटे हुए सभी राज्यों को “उत्तर-पूर्व राज्यों में उद्यान विज्ञान के एकीकृत विकास हेतु तकनीकी मिशन” नामक अभियान के तहत लाया गया है।
राष्ट्रीय औषधीय पादप मिशन
बिहार सरकार द्वारा राष्ट्रीय औषधीय पादप मिशन के अंतर्गत औषधीय पौधों की खेती, आधारभूत संरचना के विकास, प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन, बाजार व्यवस्था आदि से संबंधित योजना शुरू की है। इसके अंतर्गत फसल के विविधीकरण (Crop Diversification) द्वारा राज्य के किसानों, ग्रामीण युवाओं एवं महिलाओं को आय के अधिक आय का स्रोत उपलब्ध कराना है। इस हेतु गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री के व्यवहार कर देशी चिकित्सा पद्धति में काम आने वाले, निर्यात योग्य अत्यधिक माँग वाले औषधीय पादपों का समूह में खेती करने, आधारभूत संरचना विकास करने, प्रसंस्करण/ मूल्य संवर्धन एवं उत्पादों की बाजार व्यवस्था के लिए सहायता प्रदान करना है। कृषिकरण की इस परियोजना में वैसे औषधीय पादपों को शामिल किया जाना है जिसकी बाजार व्यवस्था सुनिश्चित हों-
निम्नांकित के सर्वांगीण विकास हेतु सहायता अनुदान उपलब्ध है-
क्रम संख्या |
औषधीय पौधे |
उपलब्ध सहायता अनुदान |
1 |
घृतकुमारी, कालमंघ, तुलसी, आँवला, स्टीविया, शतावर, बाह्मी, सफेद मुसली, गुड़मार, पिप्पली, अश्वगंधा, पत्थरचूर, तेजपात |
20 प्रतिशत |
2 |
बेल, सर्पगंधा, चित्रक, कलिहारी |
50 प्रतिशत |
3 |
गुग्गुल |
75 प्रतिशत |
क्रम संख्या |
आधारभूत संरचना |
उपलब्ध सहायता अनुदान |
1 |
नर्सरी का विकास |
50 प्रतिशत |
2 |
सुखाने का शेड निर्माण |
50-100 प्रतिशत |
3 |
भंडारण हेतु गोदाम निर्माण |
50-100 प्रतिशत |
4 |
प्रसंस्करण इकाई |
25 प्रतिशत |
क्रम संख्या |
प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन |
उपलब्ध सहायता अनुदान |
1 |
प्रयोगशाला की स्थापना |
30 प्रतिशत |
2 |
बाजार प्रोत्साहन |
50 प्रतिशत |
3 |
बाजार आसूचना |
50 प्रतिशत |
4 |
पुनर्खरीद व्यवस्था |
परियोजना आधारित |
5 |
औषधीय जाँच पर होने वाले व्यय का भुगतान |
50 प्रतिशत या अधिकतम 5000 रुपये |
6 |
जैविक/जी.ए.पी प्रमाणीकरण |
50 प्रतिशत |
7 |
फसली बीमा |
50 प्रतिशत |
योजना का लाभ उठाने के लिए पात्रताः औषधीय उत्पादक, किसान संघ, स्वयं सहायता समूह, गैर सरकारी संगठन, कॉर्पोरेट कंपनी, निजी/लोक उपक्रम एवं औषधीय क्षेत्र के अन्य पणधारी इसका लाभ उठाने के पात्र हैं।
जिला स्तर पर कार्य करने वाले पणधारी या समूह, जिला बागवानी मिशन कमिटी के माध्यम से तथा अन्तर्जिलों या राज्य स्तर पर कार्य करने को इच्छुक पणधारी मिशन मुख्यालय में परियोजना का प्रस्ताव समर्पित कर सकते हैं।
परियोजना संबंधी और अधिक जानकारी के लिए निम्न पते पर सम्पर्क कर सकते हैं -
नोडल पदाधिकारी,
औषधीय एवं सुगंधित पौधा प्रकोष्ठ,
उद्यान निदेशालय, बिहार, बैरक संख्या- 13,
मुख्य सचिवालय परिसर, पटना- 800015,
मोबाइल नंबर- 094318 18941
राष्ट्रीय बागवानी मिशन पर नियमित से पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्नः क्या राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत सभी फसलें सहायता पाने के लिए पात्र हैं ?
उत्तरः जी हां, नारियल को छोड़कर इसके तहत सभी फसलें आती हैं। देश में नारियल के विकास के लिए नारियल विकास बोर्ड द्वारा योजनाओं को क्रियान्वित किया जाता है।
प्रश्नः क्लस्टर क्या है ?
उत्तरः इसकी दृष्टि से एक क्लस्टर में बागवानी फसल के तहत समग्र क्षेत्र 100 हेक्टेयर से ज्यादा नहीं होता।
प्रश्नः राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत सहायता प्राप्त करने के लिए किसानों को किससे सम्पर्क करना चाहिए ?
उत्तरः इसे राज्य के बागवानी मिशन द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है तथा इसके कार्यक्रम को समन्वित करने के लिए मिशन निदेशक जिम्मेदार होते हैं। जिला स्तर पर कार्यक्रम को कार्यान्वित करने की जिम्मेदारी जिला स्तरीय समिति की है। डी एल सी के सदस्य सचिव के रूप में जिला बागवानी अधिकारी काम कर रहे हैं जिनसे सहायता प्राप्त करने के लिए सम्पर्क
किया जा सकता है।
प्रश्नः क्या राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत सिंचाई के लिए सहायता उपलब्ध है?
उत्तरः राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत जल स्रोतों के सृजन के लिए सहायता उपलब्ध है। यह सहायता सिर्फ समुदाय आधारित परियोजनाओं/ पंजायती राज संस्थाओं / किसान वर्गे को दी जाती है।
प्रश्नः क्या किसानों को दो या अधिक फसलों के लिए सहायता दी जाती है ?
उत्तरः इस मिशन में विशिष्ट क्लस्टर में फसल के समग्र विकास के लिए व्यापक अवधारणा पर काम किया जाएगा। अतः किसानों को मुख्य फसल के लिए सहायता दी जाएगी।
प्रश्नः क्या लाभार्थी द्वारा शस्योत्तर प्रबंधन (पोस्ट हार्वेस्ट मैनेजमेंट) संबंधी कार्यों के लिए एन एच बी तथा एन.एच.एम से सहायता प्राप्त की जा सकती है ?
उत्तरः सामानरूपी घटकों जैसे भंडारण, पैक हाउस आदि के लिए सहायता सिर्फ एक स्रोत से प्राप्त की जा सकती है।
प्रश्नः ‘क्रेडिट लिंक बैक एंडेड सब्सिडी’ क्या है और यह कैसे दी जाती है ?
उत्तरः राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत अनेक घटकों के लिए सहायता दी जाती है। इसमें विशेष रूप से निजी क्षेत्र शामिल है। इसमें नर्सरियों, प्रयोगशाला और क्लीनिक की स्थापना, शस्योत्तर प्रबंधन तथा विपणन पर बुनियादी ढांचे का विकास शामिल है जो क्रेडिट लिंक बैक एंडेड सब्सिडी के रूप में दी जाती है। इसमें राष्ट्रीयकृत बैंकों / वित्तीय संगठनों से लाभार्थी को ऋण प्राप्त करना शामिल है। इन राष्ट्रीयकृत बैंकों / वित्तीय संगठनों में नाबार्ड, आई.डी.बी.आई, सीबी, आई सी आई सी आई, राज्य वित्त निगम, राज्य औद्योगिक विकास निगम, एन.बी.एफ.सी, एन.ई.जी.एफ.आई, राष्ट्रीय एस.सी / एसटी / अल्पसंख्यक / पिछड़े
वर्ग वित्तीय विकास निगम, राज्य / केन्द्र शासित प्रदेश के अन्य ऋण देने के लिए निर्धारित संस्थान, व्यावसायिक / कॉपरेटिव बैंक शामिल हैं।
प्रश्न: क्या एक किसान मशरूम उत्पादन या मधुमक्खी पालन जैसी गतिविधियों से संबंधित सहयोग का लाभ उठा सकता है?
उत्तर: हां, 2010-11 से ऐसा संभव है। (क) एकीकृत मशरूम इकाई के लिए अंडे, खाद उत्पादन और प्रशिक्षण, (ख) अंडे बनाने की इकाई, (ग) खाद बनाने की इकाई जैसे कार्यों के लिए सहयोग उपलब्ध है। मधुमक्खी पालन गतिविधियों जैसे बी ब्रीड्स द्वारा मधुमक्खी कालोनियों का उत्पादन, मधुमक्खी कालोनियों का वितरण, छत्ते में शहद एकत्र करना और मधुमक्खी को पालने के औजार के लिए भी सहयोग उपलब्ध है।
प्रश्न: क्या यह सहयोग एनएचएम के अंतर्गत खाद्य प्रसंस्करण इकाई लगाने के लिए उपलब्ध है?
उत्तर: एनएचएम योजना के अंतर्गत, 24 लाख रुपए तक की प्राथमिक/मोबाइल खाद्य प्रसंस्करण इकाई लगाने के लिए सहयोग दिया जाता है। इससे बड़ी इकाइयों के लिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा सहयोग किया जाता है।
प्रश्न: क्या सारे जिले एनएचएम योजना के अंतर्गत आते हैं?
उत्तर: यह योजना देश के 18 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों के 367 जिलों में चलाई जा रही है। फसलों और जिलों के समूह का विवरण वेब साइट के राज्य प्रोफाइल (स्टेट प्रोफाइल) के अंतर्गत उपलब्ध हैं।
राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत कार्यक्रमों की सहायता के लिए मापदण्ड
राष्ट्रीय बागवानी मिशन के लिए परिचालन दिशा-निर्देश
राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (रा.बा.बो.) पूरी योजना दिशा-निर्देश
राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम
'आर्टिफिशियल रीचार्ज ऑफ ग्राउंडवॉटर थ्रू डगवेल्स' योजना को वर्ष 2008 में लाया गया था।
योजना की लागत
इस योजना में कुल खर्चा 1798.71 करोड़ रुपए था और इसमें 1499.27 करोड़ रुपए की छूट भी शामिल थी।
कार्यान्यवयन कर क्षेत्र
इसका कार्यान्वयन सात राज्यों आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु, गुजरात और मध्य प्रदेश के 1180 ब्लॉक/तालुकाओं/मंडलों के अतिपिछड़े इलाकों में किया गया है।
योजना के उद्देश्य
इस योजना के उद्देश्यों में वर्तमान कुओं को फिर से भरना, भूमि जल स्तर को सुधारना, अभाव के समय में भूमि जल स्तर में स्थिरता बनाए रखने की कोशिश करना और संपूर्ण कृषि उत्पादन में सुधार लाना शामिल हैं।
विवरण
प्रस्तावित सिंचाई कुओं की कुल संख्या 4.45 मिलियन है। इनमें से 2.72 मिलियन छोटे और सीमांत किसानों के पास है व 1.73 मिलियन अन्य किसानों के पास। प्रति कुएं को भरने में आने वाली औसत लागत 4000 रुपए है। लाभाकर्ता वे किसान होंगे जिनके पास उनके खेतों में उनके कुएं होंगे। छोटे और सीमांत किसानों के लिए 100 प्रतिशत की छूट का प्रावधान है और अन्य किसानों को इस योजना के तहत 50 प्रतिशत की छूट दी जाएगी।
स्रोत: पत्र सूचना कार्यालय
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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