অসমীয়া   বাংলা   बोड़ो   डोगरी   ગુજરાતી   ಕನ್ನಡ   كأشُر   कोंकणी   संथाली   মনিপুরি   नेपाली   ଓରିୟା   ਪੰਜਾਬੀ   संस्कृत   தமிழ்  తెలుగు   ردو

कम्‍पनी अधिनियम

भूमिका

कम्‍पनी को व्‍यक्तियों के एक ऐसे स्‍वैच्छिक संघ के रूप में परिभाषित किया गया है जो कारोबार करने के प्रयोजनार्थ गठित किया गया हो, जिसका एक विशिष्‍ट नाम और सीमित देनदार हो। कम्‍पनियां भले ही वे सरकारी हों या निजी, अर्थव्‍यवस्‍था का अभिन्‍न हिस्‍सा होती हैं। कम्‍पनियां ही वह माध्‍यम हैं जिसके ज़रिए देश का विकास होता है और वह विश्‍व भर में प्रगति करता है। उनका निष्‍पादन देश की आर्थिक स्थिति का महत्‍वपूर्ण पैमाना होता है।

कम्‍पनी अधिनियम, 1956

भारत में, कम्‍पनी अधिनियम, 1956, सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण कानून है जो केन्‍द्र सरकार को कम्‍पनियों के निर्माण, वित्तपोषण, कार्यकरण और समापन को विनियमित करने की शक्तियां प्रदान करता है। इस अधिनियम में कंपनी के संगठनात्‍मक, वित्तीय, प्रबंधकीय और सभी संगत पहलुओं से संबंधित क्रियाविधियां हैं। इसमें निदेशकों एवं प्रबंधकों की शक्तियों और जिम्‍मेदारियों, पूंजी जुटाने कम्‍पनी की बैठकों के आयोजन, कम्‍पनी के खातों को रखने एवं उनकी लेखा परीक्षा, निरीक्षण की शक्तियां इत्‍यादि का प्रावधान किया गया है। यह अधिनियम संपूर्ण भारत में और सभी कम्‍पनियों पर लागू है, भले ही वे अधिनियम या पूर्ववर्ती अधिनियम के तहत पंजीकृत हुई हों न हुई हों। लेकिन यह विश्‍वविद्यालयों, सहकारी समितियों, अनिगमित व्‍यावसायिक, वैज्ञानिक और अन्‍य संस्‍थाओं पर लागू नहीं होता।

यह अधिनियम केन्‍द्र सरकार को कम्‍पनी की लेखाबहियों की जांच करने, विशेष लेखा परीक्षा का निदेश देने कम्‍पनी के कामकाज की जांच का आदेश देने और अधिनियम का उल्‍लंघन करने पर अदालती कार्रवाई करने की शक्तियां प्रदान करता हैं। इन निरीक्षणों का उद्देश्‍य यह जाननता है कि कम्‍पनियां अपना कामकाज अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार चला रही हैं, क्‍या किसी कम्‍पनी या कम्‍पनी समूह द्वारा ऐसी अनुचित पद्धतियां तो नहीं अपनाई जा रही जो जनहित में न हो और क्‍या कही कुछ कुप्रबंध तो नहीं जिससे शेयरधारकों, ऋणदाताओं, कर्मचारियों और अन्‍यों के हितों पर प्रतिकूल असर पड़ता हो। यदि किसी निरीक्षण से धोखाधड़ी या घपले का प्रथम दृष्‍टया मामला बनता है तो कम्‍पनी अधिनियम के उपबंधों के तहत कार्रवाई शुरू की जाती है या उसे केन्‍द्रीय अन्‍वेषण ब्‍यूरो को सौंप दिया जाता है।

कम्‍पनी अधिनियम कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय और कम्‍पनियों के पंजीयक का कार्यालय, सरकारी परिसमापक, पब्लिक ट्रस्‍टी, कम्‍पनी विधि बोर्ड, निरीक्षण निदेशक इत्‍यादि के जरिए केन्‍द्र सरकार द्वारा प्रशासित किया जाता है। कम्‍पनियों के पंजीयक (आरओसी) नई कम्‍पनियों के निगमन और चल रही कम्‍पनियों के प्रशासन के कार्य को नियंत्रित करता है।

कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय, जिसे पहले वित्त मंत्रालय के तहत कम्‍पनी कार्य विभाग के नाम से जाना जाता था मुख्‍यालय कम्‍पनी अधिनियम, 1956 अन्‍य सम्‍बद्ध अधिनियमों एवं उनके तहत बनाए गए नियमों तथा विनियमों के प्रशासन से जुड़ा है ताकि कानून के अनुसार कॉर्पोरेट क्षेत्र के कार्यकरण को विनियमित किया जा सके।

मंत्रालय का त्रि-स्‍तरीय संगठनात्‍मक ढांचा

मंत्रालय का त्रि-स्‍तरीय संगठनात्‍मक ढांचा इस प्रकार है:-

  1. नई दिल्‍ली में मुख्‍यालय
  2. मुम्‍बई, कोलकात्ता, चेन्‍नई और नोएडा में क्षेत्रीय निदेशालय और
  3. राज्‍यों एवं संघ राज्‍य क्षेत्रों में कम्‍पनियों के पंजीयक (आरओसी)

सरकारी परिसमापक जो देश में विभिन्‍न उच्‍च न्‍यायालयों के साथ सहबद्ध हैं, भी इस मंत्रालय के समग्र प्रशासनिक नियंत्रण के अंतर्गत है। मुख्‍यालय स्थित संरचना में कम्‍पनी विधि बोर्ड, शामिल हैं जो एक अर्थ-न्‍यायिक निकाय है जिसकी मुख्‍य न्‍यायपीठ नई दिल्‍ली में है, दक्षिणी क्षेत्र के लिए एक अतिरिक्‍त मुख्‍य न्‍यायपीठ चेन्‍नै में और नई दिल्‍ली, मुम्‍बई, कोलकाता एवं चेन्‍नै में चार क्षेत्रीय न्‍यायपीठ हैं। मुख्‍यालय के संगठन में दो निरीक्षण एवं जांच निदेशक तथा पूरक स्‍टाफ, अनुसंधान एवं सांख्यिकी के एक आर्थिक सलाहकार और अन्‍य कर्मचारी है जो कानूनी, लेखांकन, आर्थिक एवं सांख्यिकीय मामलों पर विशेषज्ञता प्रदान करते हैं।

चार क्षेत्रीय निदेशक, जिन पर संबंधित क्षेत्रों जिनमें अनेक राज्‍य और संघ राज्‍य क्षेत्र शामिल है, का प्रभार है अन्‍य बातों के अलावा, अपने क्षेत्रों में कम्‍पनियों के पंजीयक के कार्यालयों के कार्यकरण के और सरकारी परिसमापकों के कार्य भी देख-रेख भी करते हैं। वे कम्‍पनी अधिनियम, 1956 के प्रशासन से संबंधित मामलों में संबंधित राज्‍य सरकारों और केन्‍द्र सरकार के साथ सम्‍पर्क भी बनाए रखते हैं।

कंपनी अधिनियम की धारा 609 के तहत नियुक्‍त कम्‍पनियों के पंजीयक (आरओसी), जिनके अन्‍तर्गत अनेक राज्‍य और संघ राज्‍य क्षेत्र आते हैं, का मुख्‍य कर्त्तव्‍य संबंधित राज्‍यों और संघ राज्‍य क्षेत्रों में शुरू की गई कम्‍पनियों को पंजीकृत करना तथा यह सुनिश्चित करना है कि ऐसी कम्‍पनियां अधिनियम के तहत सांविधिक अपेक्षाएं पूरी करें। उनके कार्यालय उनके पास पंजीकृत कम्‍पनियों से संबंधित रिकॉर्डों की रजिस्‍ट्री के रूप में कार्य करते हैं।

आरओसी में निहित शक्तियां

आरओसी में निहित शक्तियां निम्‍नानुसार है:-

  1. अंतर्नियमों एवं बहिर्नियमों का पंजीकरण
  2. विवरणिका का पंजीकरण
  3. पूंजी की छूट का पंजीकरण
  4. सूचना या स्‍पष्‍टीकरण मांगना
  5. दस्‍तावेज ज़ब्‍त करना
  6. कम्‍पनी के कामकाज की जांच करना
  7. कंपनी की लेखा बहियों इत्‍यादि की जांच करना
  8. रजिस्‍टर से अक्रिय कम्‍पनियों को हटाना
  9. पंजीयक के समक्ष विवरणिका इत्‍यादि प्रस्‍तुत करने की कम्‍पनी का कर्त्तव्‍य प्रवर्तित करना।
  10. कुछ विशिष्‍ट मामलों में सूचना को घोषित नहीं करना
  11. पंजीयक द्वारा समापन की याचिका दाखिल करना।

सरकारी परिसमापक कम्‍पनी अधिनियम की धारा 448 के तहत केन्‍द्र सरकार द्वारा नियुक्‍त अधिकारी होते हैं और विभिन्‍न उच्‍च न्‍यायालयों से सम्‍बद्ध होते है। वे संबंधित क्षेत्रीय निर्देशकों के प्रशासनिक प्रभार के अन्‍तर्गत होते हैं जो केन्‍द्र सरकार की ओर से उनके कार्यकरण की देख रेख करते हैं।

अधिनियम के अनुसार, कम्‍पनी से तात्‍पर्य है ''अधिनियम के अंतर्गत बनाई गई और पंजीकृत कम्‍पनी अथवा मौजूदा कम्‍पनी अर्थात ऐसी कम्‍पनी जो किन्‍हीं पूर्ववर्ती कंपनी कानूनों के अंतर्गत बनाई या पंजीकृत की गई हो।''

कम्‍पनी की मुख्‍य विशेषताएं

कम्‍पनी की मुख्‍य विशेषताएं इस प्रकार है:-

  1. कृत्रिम विधिक व्‍यक्ति

कम्‍पनी इस अर्थ में कृत्रिम व्‍यक्ति होती है कि यह कानून द्वारा निर्मित की जाती है और इसमें वास्‍तविक व्‍यक्ति के गुण नहीं होते। यह अदृश्‍य, अमूर्त, अनश्‍वर होती है और केवल कानून की दृष्टि में ही विद्यमान होती है। इसलिए इसे व्‍यक्तियों से बने निदेशक मण्‍डल के ज़रिए काम करना होता है।

२.पृथक विधिक निकाय :- कम्‍पनी अपने सदस्‍यों या शेयरधारकों से भिन्‍न एक स्‍पष्‍ट विधिक निकाय होती है। इसका अर्थ यह है कि :- कंपनी सम्‍पत्ति उसी की होती है न कि सदस्‍यों या शेयरधारकों की; कोई सदस्‍य व्‍यक्तिश: या संयुक्‍त रूप से कम्‍पनी की परिसम्‍पत्तियों पर स्‍वामित्‍व का दावा नहीं कर सकता, कोई एक सदस्‍य कंपनी के गलत कार्यों के लिए जिम्‍मेदार नहीं ठहराया जा सकता भले ही उसके पास समस्‍त शेयर पूंजी हो; कंपनी के सदस्‍य कंपनी के साथ संविदा निष्‍पादित कर सकते हैं।

3. अविरत उत्तराधिकार:- कंपनी अविरत जारी रहती है और इसके जारी रहने पर इसके सदस्‍यों की मृत्‍यु, दीवालियापन, इसके मानसिक या शारीरिक अक्षमता का असर नहीं पड़ता। इसका निर्माण कानून द्वारा किया जाता है और कानून ही इसे भंग कर सकता है।

4.  सदस्‍यों की सीमित देनदारी :- इसके सदस्‍यों की देनदारी उनके द्वारा अभिदत्त शेयरों पर अदा न की गई धनराशि तक ही सीमित है। इस तरह, यदि कंपनी का परिसमापन किया जा रहा हो तो पूर्णत: प्रदत्त शेयरों के मामले में सदस्‍यों से आगे और अंशदान करने के लिए नहीं कहा जा सकता।

5.  साक्षी मोहर :- कम्‍पनी की एक साझी मोहर होती है जो उस कम्‍पनी का हस्‍ताक्षर होती है तथा सभी सदस्‍यों की आम सहमति व्‍यक्‍त करती है। कम्‍पनी की मोहर उसके लिए और उसकी ओर से निष्‍पादित सभी दस्‍तावेज़ों पर लगाई जाती है।

6.  शेयरों की अन्‍तरणीयता :- सार्वजनिक कंपनी के शेयर कम्‍पनी की अनुमति के बिना लेकिन अंतर्नियमों में निर्धारित तरीके के अनुसार मुक्‍त रूप से अंतरित किए जा सकते हैं। शेयरधारक अपने शेयर किसी अन्‍य व्‍यक्ति को अन्‍तरित कर सकते हैं और इससे कंपनी की निधियों पर प्रभाव नहीं पड़ता। लेकिन, एक नि‍जी कम्‍पनी अपने शेयरों के अन्‍तरण पर प्रतिबंध लगानी है।

7.  अलग संपत्ति :- कम्‍पनी की समस्‍त सम्‍पत्ति उसी में निहित होती है। कम्‍पनी उसका नियंत्रण, प्रबंधन, धारण अपने ही नाम में कर सकती है। सदस्‍यों का कम्‍पनी की सम्‍पत्ति में व्‍यक्तिश: या सामूहिक रूप से कोई स्‍वामित्‍वाधिकार नहीं होता। शेयरधारक का कम्‍पनी की सम्‍पत्ति में बीमा योग्‍य अधिकार भी नहीं होता। कम्‍पनी के ऋणदाताओं का दावा केवल कपनी की सम्‍पत्ति पर हो सकता है न कि अलग-अलग सदस्‍यों की सम्‍पत्ति पर।

8.  मुकदमा दायर करने या करवाने की क्षमता :- कम्‍पनी मुकदमा दायर करके अपने अधिकार प्रवर्तित करवा सकती है और इसके द्वारा सांविधिक अधिकारों के उल्‍लंघन करने पर इस पर मुकदमा दायर किया जा सकता है।

अधिनियम के बुनियादी उद्देश्य

इस अधिनियम के बुनियादी उद्देश्य इस प्रकार है:-

  • कम्‍पनी के संवर्धन और प्रबंधन में अच्‍छे व्‍यवहार और कारोबारी ईमानदारी का एक न्‍यूनतम स्‍तर;
  • उत्‍कृष्‍ट बुनियाद पर कम्‍पनी के विकास में मदद करना;
  • शेयरधारकों के हितों की रक्षा करना;
  • ऋणदाताओं के हितों की रक्षा करना;
  • सरकार को पर्याप्‍त शक्तियां प्रदान करने के लिए, ताकि वह जनहित में और कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार कम्‍पनी के कामकाज़ में हस्‍तक्षेप कर सके;
  • अपने वार्षिक तुलनपत्र तथा लाभ हानि खाते में कम्‍पनी के कामकाज का उचित एवं वास्‍तविक प्रकटन;
  • लेखांकन एवं लेखापरीक्षा के उचित मानदण्‍ड;
  • प्रदत्त सेवाओं के पारिश्रमिक के रूप में प्रबंधन तंत्र को देय लाभ के हिस्‍से पर उच्‍चतम सीमा लगाना;
  • जहां कर्त्तव्‍य और हित के टकराव की संभावना हो, वहां लेन देनों पर नियंत्रण रखना;
  • ऐसे किसी भी कम्‍पनी के कामाकज की जांच पड़ताल के लिए प्रावधान, जिसका प्रबंधन इस तरह से किया गया कि शेयरधारकों की छोटी संख्‍या के प्रति नकारात्‍मक हो या कुल मिलाकर कम्‍पनी के हितों के प्रतिकूल हों;

सार्वजनिक कम्‍पनियों या सार्वजनिक कम्‍पनियों की अनुषंगी निजी कम्‍पनियों के प्रबंधन में लगे लोगों द्वारा उल्‍लंघन के मामले में प्रतिबंध लगाकर उनके कर्त्तव्‍य पालन को प्रवर्तित करना और निजी कम्‍पनियों को सार्वजनिक कम्‍पनियों पर लागू कानूनों के अधिक प्रतिबंधी प्रावधानों के अधीन लाना।

सरकार की सामाजिक और आर्थिक नीति के अंतिम उद्देश्‍यों को हासिल करने में मदद करना।

बदलते कारोबारी माहौल की प्रतिक्रिया स्‍वास्‍थ्‍य, कंपनी अधिनियम, 1956 में समय-समय पर संशोधन किए गए हैं ताकि कॉर्पोरेट अभिशासन में अधिक पारदर्शिता लाई जा सके और छोटे निवेशकों, जमाकर्ताओं और डिबेंचर धारकों इत्‍यादि के हितों की रक्षा की जा सके। उदाहरणार्थ, कम्‍पनी (संशोधन) अधिनियम, 2006 में निदेशक पहचान संख्‍या (डायरेक्‍टर आईडेन्टिफिकेशन नंबर या डीआईएन) का महत्‍वपूर्ण प्रावधान शुरू किया गया है जो कंपनी अधिनियम 1956 (2006 के अधिनियम संख्‍या 23 द्वारा यथासंशोधित) की धारा 266 क और 266 ख के अनुसरण में एक ऐसे व्‍यक्ति के आबंटित अनन्‍य पहचान संख्‍या है जो किसी कम्‍पनी का निदेशक है अथवा कम्‍पनी के निदेशक के रूप में नियुक्‍त किए जाने वाला हो।:-

विभिन्‍न संशोधन इस प्रकार हैं:-

  • कंपनी (संशोधन) अधिनियम, 2000
  • कंपनी (संशोधन) अधिनियम, 2001
  • कंपनी (संशोधन) अधिनियम, 2002
  • कंपनी (दूसरा संशोधन) अधिनियम, 2002

स्रोत: फेमा, भारत का कंपनी अधिनियम, श्रम व कल्याण विभाग, व्यापार पोर्टल, भारत सरकार

अंतिम बार संशोधित : 3/14/2023



© C–DAC.All content appearing on the vikaspedia portal is through collaborative effort of vikaspedia and its partners.We encourage you to use and share the content in a respectful and fair manner. Please leave all source links intact and adhere to applicable copyright and intellectual property guidelines and laws.
English to Hindi Transliterate