कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 सामाजिक सुरक्षा को विकास प्रक्रिया के अभिन्न अंग के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि यह वैश्विकरण की चुनौतियों और इसके परिणामस्वरूप ढांचागत एवं प्रौद्योगिकीय परिवर्तनों के प्रति सकारात्मक रवैया सृजित करने में सहायता करती है। यह अभिकल्पित करती है कि कर्मचारियों को सभी प्रकार के सामाजिक जोखिमों से संरक्षण दिया जाए जा उनकी मूल आवश्यकताओं को पूरा करने में अनावश्यक बाधाएं उत्पन्न करते हैं। कर्मगारों के पास बीमारी, दुर्घटना, वृद्धावस्था, रोग, बेरोजगार आदि के कारण उत्पन्न जोखिमों का सामना करने के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन नहीं है और संकट के समय में उनकी सहायता करने के लिए जीविका का वैकल्पिक साधन भी उनके पास नहीं हैं। इसलिए कर्मगारों को सामाजिक सुरक्षा संबंधी बीमा देकर उनकी सहायता करना राज्य का दायित्व हो जाता है। यह तथ्य हमारे नीति निर्माताओं द्वारा पहचाना गया है और तदनुसार सामाजिक सुरक्षा से संबद्ध विषयों को राज्य के नीति निर्देशक तत्व और समवर्ती सूची में सूचीबद्ध किया गया है।
राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के तहत -
अनुच्छेद 41 में कार्य के अधिकार शिक्षा और कुछ मामलों में सार्वजनिक सहायता की व्यवस्था की गई है। इसका तात्पर्य है कि राज्य अपनी आर्थिक क्षमता और विकास की सीमा के भीतर कार्य के अधिकार, शिक्षा का अधिकार और बेरोजगारी, वृद्धावस्था, बीमारी एवं अक्षमता के मामले में और अन्य अभाव के मामले में सार्वजनिक सहायता प्राप्त करने की प्रभावी व्यवस्था करेगा।
अनुच्छेद 42 में कार्य की उचित और मानवीय परिस्थिति और मातृत्व राहत की व्यवस्था की गई है। इसका तात्पर्य है कि राज्य उचित और मानवीय कार्य परिस्थिति और मातृत्व राहत प्राप्त करने की व्यवस्था करेगा।
भारत के संविधान की समवर्ती सूची मे उल्लिखित सामाजिक सुरक्षा के मुद्दे निम्नलिखित हैं -
सामाजिक सुरक्षा और बीमा, रोजगार और बेरोजगार
कार्य परिस्थिति, भविष्य निधियां, नियोक्ताओं का दायित्व, कर्मगारों की क्षतिपूर्ति अवैधता, और वृद्धावस्था पेंशन और मातृत्व लाभ सहित श्रम कल्याण।
इस प्रकार से सामाजिक सुरक्षा का प्रावधान हमारी औद्योगिक ढांचा में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। राज्य की मुख्य जिम्मेदारी अपने कार्य बल की रक्षा और सहायता के लिए उपयुक्त प्रणाली का विकास करना है। इस प्रणाली में विभिन्न विधान, नीतियां और योजनाएं, जो कर्मगारों को विभिन्न प्रकार की सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराती हैं, शामिल हैं। यह रोजगार के दौरान चोटग्रस्त होने पर कर्मचारियों को नियोक्ता द्वारा क्षतिपूर्ति का भुगतान भी शामिल है। इसलिए श्रम और रोजगार मंत्रालय ने एक सामाजिक सुरक्षा प्रभाग की स्थापना की है जो कर्मगार सामाजिक सुरक्षा से संबंधित सभी कानूनों के प्रशासन के लिए सामाजिक सुरक्षा नीति एवं योजनाएं बनाने और क्रियान्वित करने का कार्य करता है।
उपदान से संबंधित अम्ब्रैला विधान उपदान का भुगतान अधिनियम, 1972 है। इस अधिनियम का अधिनियम फैक्टरियों, खानों, तेल क्षेत्रों, बागानों, पत्तनों, रेलवे कम्पनियों, दुकानों अथवा ऐसे अन्य प्रतिष्ठानों जिसमें दस अथवा इससे अधिक व्यक्ति नियोजित हों, में कार्यरत कर्मचारियों को उपदान का भुगतान करने अथवा उससे संबंधित अथवा प्रासंगिक मामलों के लिए एक योजना की व्यवस्था करने हेतु किया गया है। उपयुक्त सरकार, अधिसूचना द्वारा और अधिसूचना में विनिर्दिष्ट शर्तों के अधीन, किसी भी प्रतिष्ठान को, जिस पर यह अधिनियम लागू होता है, अथवा उसमें नियोजित किसी कर्मचारी अथवा कर्मचारी वर्ग को गए अधिनियम के उपबंधों के परिचालन से छूट दे सकती हैं, यदि उपयुक्त सरकार की राय में उस प्रतिष्ठान के कर्मचारियों को प्राप्त होने वाला उपदान अथवा पेंशन संबंधी लाभ इस अधिनियम के तहत प्रदत्त लाभों से किसी प्रकार से कम न हों।
केन्द्र सरकार द्वारा यह अधिनियम निम्नलिखित में प्रशासित किया जाता है-
(i)इसके नियंत्रणाधीन प्रतिष्ठानों;
(ii)ऐसे प्रतिष्ठानों, जिनकी एक से अधिक राज्यों में शाखाएं हो; और
(iii)प्रमुख पत्तनों, खानों, तेल-क्षेत्रों और रेलवे। जबकि अन्य सभी मामलों में यह राज्य सरकारों और संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों द्वारा प्रशासित किया जाता है। उपयुक्त सरकार अधिसूचना द्वारा किसी भी अधिकारी को एक नियंत्रण प्राधिकारी नियुक्त कर सकती है, जो इस अधिनियम के प्रशासन के लिए जिम्मेदार होगा और अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलग-अलग नियंत्रण अधिकारी भी नियुक्त किए जा सकते हैं।
इसके अतिरिक्त, श्रम मंत्रालय में केन्द्रीय औद्योगिक संबंध मशीनरी (सीआईआरएम) है जो इस अधिनियम को लागू करने के लिए जिम्मेदार है। उसे मुख्य श्रम आयुक्त (केन्द्रीय) [सीएलसी (सी)] संगठन के नाम से भी जाना जाता है। इसके प्रमुख मुख्य क्षेत्र आयुक्त (केन्द्रीय) है।
अधिनियम के मुख्य उपबंध निम्नलिखित हैं -
किसी कर्मचारी को उपदान लगातार पांच वर्ष सेवा में बने रहने के बाद उसकी नौकरी इस कारण से समाप्त होने पर देय होगा –
(i) उसकी अधिवर्षिता पर; और
(ii)उसकी सेवानिवृत्ति अथवा त्याग पत्र देने पर; अथवा
(iii)किसी दुर्घटना अथवा बीमारी के कारण उसकी मृत्यु होने अथवा उसके विकलांग हो जाने पर बशर्ते कि उस मामले में जहां किसी कर्मचारी की सेवा मृत्यु अथवा विकलांगता के कारण समाप्त होती है, लगातार पांच वर्ष की सेवा पूरी करना जरूरी नहीं होगा।
नियोजित किसी कर्मचारी को उस कर्मचारी द्वारा पूरी की गई सेवा के प्रत्येक वर्ष अथवा उसके किसी भाग के लिए जो छह माह से अधिक हो, आहरित अन्तिम वेतन दर के आधार पर पन्द्रह दिनों के वेतन की दर पर उपदान का भुगतान करेगा।
माह वार वेतन प्राप्त करने वाले कर्मचारी के मामले में पन्द्रह दिनों के वेतन का हिसाब उसके द्वारा आहरित अन्तिम वेतन की मासिक दर के छब्बीस (26) से भाग देकर और भागफल को पन्द्रह से गुणा करके लगाया जाएगा। जबकि, कार्यानुसार दर पर वेतन प्राप्त करने वाले कर्मचारी (उजरत कर्मचारी) के मामले में दैनिक वेतन का हिसाब उसे कर्मचारी की नौकरी समाप्त होने के ठीक तीन महीने पहले की अवधि के लिए उसके द्वारा प्राप्त किए गए कुल वेतन के औसत पर लगाया जाएगा और इस प्रयोजनार्थ उन्हें अदा किए गए किसी समयोपरि वेतन को इसमें शामिल नहीं किया जाएगा।
किसी कर्मचारी को देय उपदान की राशि तीन लाख और पचास हजार रु. से अधिक नहीं होगी।
किसी ऐसे कर्मचारी को जिसे उसके विकलांग होने के बाद कम वेतन पर नियुक्त किया गया है, देय उपदान का हिसाब लगाने के प्रयोजन से उसके विकलांग होने से पहले की अवधि के वेतन को उसके द्वारा उस अवधि के दौरान प्राप्त किए गए वेतन के रूप में शामिल किया जाएगा और उसकी विकलांगता के बाद की अवधि के लिए उसके वेतन को कम वेतन के रूप में शामिल लिया जाएगा।
किसी ऐसे कर्मचारी के उपदान की राशि को जिसके किसी कृत्य, जानबूझ कर की गई गलती अथवा लापरवाही की वजह से नियोजक की सम्पत्ति को कोई क्षति अथवा नुकसान पहुंचा है अथवा नुकसान की मात्रा में जब्त कर लिया जाएगा। किसी कर्मचारी को देश उपदान को पूर्णत: अथवा आंशिक रूप से जब्त कर लिया जाएगा –
(i)यदि उस कर्मचारी की सेवाएं उसके उपद्रवों अथवा अव्यवस्थित आवरण अथवा उसकी ओर से दुवर्यवहार के आचरण के कारण समाप्त की गई हैं; और
(ii)उस कर्मचारी की सेवाएं किसी ऐसे आचरण के कारण जिसे नैतिक भ्रष्टता का अपराध माना जाता है, समाप्त की गई है बशर्तें कि उसने यह अपराध अपनी नौकरी के दौरान किया है।
यदि नियोजक द्वारा, इस अधिनियम के तहत देय उपदान की राशि या उसके पात्र व्यक्ति को निर्धारित समय के अंदर भुगतान नहीं किया जाता है तो नियंत्रण प्राधिकारी व्यक्ति दु:खी व्यक्ति द्वारा इस संबंध में उन्हें किए गए आवेदन पर उस राशि के लिए कलेक्टर को एक प्रमाण पत्र जारी करेगा जो उस राशि को निर्धारित अवधि की समाप्ति की तारीख से केन्द्र सरकार द्वारा, अधिसूचना द्वारा, यथा विनिर्दिष्ट दर पर उस राशि पर चक्रवृद्धि ब्याज सहित भू-राजस्व की बकाया राशि के तौर पर वसूल करके उसे उसके पात्र व्यक्ति को दे देगा।
जो कोई व्यक्ति इस अधिनियम के तहत उसके द्वारा किए जाने वाले भुगतान से बचने के अथवा अन्य भुगतान से बचने के अथवा अन्य किसी व्यक्ति का इस तरह का भुगतान करने से बचाने में मदद करने के प्रयोजन से जान बूझकर झूठा बयान देता है अथवा झूठा अभ्यावेदन करता है अथवा ऐसा करने के लिए प्रेरित करता है तो उसे कारावास का दण्ड दिया जाएगा अथवा उस पर जुर्माना लगाया जाएगा अथवा दोनों प्रकार के दण्डित किया जाएगा। यदि नियोजक भी इस अधिनियम के किसी उपबंध अथवा उसके तहत बनाए गए किसी नियम अथवा आदेश का उल्लंघन करता है अथवा उसका अनुपालन करने में चूक करता है तो उसे कारावास का दण्ड दिया जाएगा अथवा उस पर जुर्माना लगाया जाएगा अथवा दोनों प्रकार के दण्डित किया जाएगा।
कामगार क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 में कामगारों और उनके आश्रितों को रोज़गार के दौरान और उसी के कारण लगी चोट और दुर्घटना (कुछ व्यावसायिक बीमारियों सहित) तथा जिसकी परिणति विकलांगता या मृत्यु में हुई हो, में क्षतिपूर्ति की अदायगी का प्रावधान है। यह अधिनियम रेल कर्मचारियों और अधिनियम की अनुसूची में यथानिर्दिष्ट ऐसे कार्यों में लगे लोगों पर लागू होता है। अनुसूची में कारखानों, खानों, बागानों, मशीन चालित वाहनों, निर्माण कार्यों और कुछ अन्य खतरनाक व्यवसायों में लगे लोग शामिल हैं।
अदा की जाने वाली क्षतिपूर्ति की राशि चोट के स्वरूप और कामगार की औसत मासिक मजदूरी और आयु पर निर्भर करती है। मृत्यु (ऐसे मामले में यह कामगार के आश्रितों को अदा किया जाता है) और विकलांगता के लिए क्षतिपूर्ति की न्यूनतम और अधिकतम दरें नियत की गई हैं और समय-समय पर संशोधन के अध्यधीन होती है।
श्रम और रोज़गार मंत्रालय के अधीन एक सामाजिक सुरक्षा प्रभाग स्थापित किया गया है जो कामगारों के लिए सामाजिक सुरक्षा नीति बनाने और विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के कार्यान्वयन के काम से जुड़ा है। यह इस अधिनियम के प्रवर्तन के लिए भी जिम्मेदार है। यह अधिनियम राज्य सरकारों द्वारा कामगार क्षतिपूर्ति आयुक्तों के ज़रिए प्रशासित किया जाता है।
इस अधिनियम के मुख्य प्रावधान इस प्रकार है-
नियोक्ता को क्षतिपूर्ति अदा करनी होगी-
(i) यदि कामगार को रोज़गार के कारण और उसके दौरान हुई दुर्घटना से व्यक्तिगत चोट लगी हो;
(ii) यदि किसी रोज़गार में लगे कामगार के अधिनियम में निर्दिष्ट उसी रोज़गार के लिए विशेष व्यावसायिक बीमारी के रूप में कोई बीमारी हो गई हो।
तथापि, नियोक्ता को निम्नलिखित मामलों में क्षतिपूर्ति की अदायगी नहीं करना होगी-
यदि चोट के परिणामस्वरूप कामगार को हुई सम्पूर्ण या आंशिक विकलांगता तीन दिन से अधिक की अवधि के लिए नहीं होती।
यदि चोट जिसके कारण मृत्यु या स्थायी सम्पूर्ण विकलांगता नहीं होती, का कारण ऐसी दुर्घटना हो जो इस वजह से हुई हो –
(i) कामगार पर दुर्घटना के समय शराब या नशीले पदार्थों का असर था; अथवा
(ii)कामगारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के प्रयोजनार्थ स्पष्ट रूप से दिए गए आदेश या स्पष्ट रूप से बनाए गए नियम का जानबूझ कर उल्लंघन; अथवा
(iii)कामगारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के प्रयोजनार्थ मुहैया कराए गए किसी सुरक्षा कवच या उपकरण को कामगार द्वारा जानबूझकर हटा दिया जाना या अनदेखी करना।
राज्य सरकार सरकारी राजपत्र में अधिसूचना प्रकाशित करके, अधिसूचना में यथानिर्दिष्ट ऐसे क्षेत्र के लिए कामगार क्षतिपूर्ति आयुक्त के रूप में किसी व्यक्ति को नियुक्त कर सकती है। कोई भी, आयुक्त इस अधिनियम के तहत उसे सौंपे गए किसी मामले पर निर्णय के प्रयोजनार्थ एक या अधिक व्यक्तियों का चयन कर सकता है जिन्हें जांच प्रक्रिया में उसकी मदद करने के लिए जांचा धीन मामलों से संबंधित किसी मामले की विशेष जानकारी हो।
क्षतिपूर्ति की अदायगी निर्धारित समय पर की जाएगी। ऐसे मामलों में जहां नियोक्ता दावा की गई सीमा तक प्रतिपूर्ति की देनदारी स्वीकार नहीं करता, वहां वह देनदारी की उस सीमा जो स्वीकारता है, पर आधारित अनन्तिम भुगतान करने के लिए बाध्य होगा और ऐसी अदायगी आयुक्त के पास जमा की जाएगी या कामगार को अदा की जाएगी, जैसा मामला हो,
यदि इस अधिनियम के अंतर्गत किन्हीं कार्यवाहियों के दौरान क्षतिपूर्ति की अदायगी करने के लिए किसी व्यक्ति की देनदारी के बारे में (इस प्रश्न सहित कि क्या चोट ग्रस्त व्यक्ति कामगार है या नहीं) अथवा क्षतिपूर्ति की राशि या अवधि के बारे में (विकलांगता के स्वरूप और सीमा के प्रश्न सहित) ऐसा प्रश्न उठता है तो ऐसे प्रश्न को किसी सहमति के अभाव, आयुक्त द्वारा तय किया जाएगा। ऐसे किसी प्रश्न को तय करने, निर्णय करने या उस पर कार्रवाई करने का न्यायाधिकार अथवा इस अधिनियम के तहत उपगत किसी देनदारी को प्रवर्तित करने के लिए किसी सिविल न्यायालय के पास नहीं है जिसके बारे में आयुक्त को ही तय करना, निर्णय या उस पर कार्रवाई की जानी होगी।
राज्य सरकार सरकारी राजपत्र में अधिसूचना प्रकाशित करके यह निदेश दे सकती है कि कामगारों को काम में लगाने वाला प्रत्येक व्यक्ति अथवा ऐसे व्यक्तियों को कोई विनिर्दिष्ट श्रेणी, अधिसूचना में निर्दिष्ट किए गए समय पर और ऐसे रूप में तथा ऐसे प्राधिकरण को एक वास्तविक विवरण प्रस्तुत करे जिसमें उन चोटों की संख्या का उल्लेख हो जिनके संबंध में गत वर्ष नियोक्ता द्वारा क्षतिपूर्ति की अदायगी की गई हो था ऐसी क्षतिपूर्ति की राशि के उल्लेख के साथ क्षतिपूर्ति संबंधी अन्य ब्यौरा भी हो जैसा कि राज्य सरकार निदेश करे।
यदि कोई, यथापेक्षित नोटिसबुक नहीं बनाकर रखता; अथवा आयुक्त को यथापेक्षित रिपोर्ट नहीं भेजा; अथवा यथापेक्षित विवरणी प्रस्तुत नहीं करता, उस व्यक्ति पर जुर्माना लगया जा सकता है।
कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 (ईएसआई अधिनियम) में बीमारी, प्रसव और रोजगार के दौरान लगी चोट के मामले में स्वास्थ्य देख रेख तथा नकद लाभ के भुगतान का प्रावधान किया गया है। यह अधिनियम ऐसे सभी गैर मौसमी फैक्टरियों पर, जो विद्युत से चलाई जाती है और जहां 10 या अधिक व्यक्तियों को काम में लगाया जाता है तथा ऐसी फैक्टरियों पर लागू होता है जो बिना बिजली के चलाई जाती हैं और जहां 20 या अधिक व्यक्ति काम करते हैं। उपयुक्त सरकार सरकारी राजपत्र में अधिसूचना प्रकाशित करके इस अधिनियम के प्रावधान किसी अन्य स्थापना या स्थापना की श्रेणी, औद्योगिक, वाणिज्यिक, कृषि या किसी अन्य श्रेणी पर भी लागू कर सकती है।
अधिनियम के अंतर्गत, नकद लाभ कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) के जरिए केन्द्र सरकार द्वारा प्रशासित किए जाते है; जबकि राज्य सरकारें और संघ राज्य क्षेत्र प्रशासन चिकित्सीय देख रेख का प्रशासन देखती हैं।
कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) देश की अग्रणी सामाजिक सुरक्षा संगठन हैं। यह ईएसआई अधिनियम के तहत सबसे बड़ा नीति-निर्माता और निर्णय लेने वाला प्राधिकरण है और इस अधिनियम के तहत ईएसआई योजना के कार्यकरण को देखता है। निगम में केन्द्र और राज्य सरकारों, नियोक्ताओं, कर्मचारियों, संसद और चिकित्सीय व्यवसाय का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्य शामिल हैं। केन्द्रीय श्रम मंत्री निगम के अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं। निगम के सदस्यों में से ही बनाई गई एक स्थायी समिति योजना के प्रशासन के लिए कार्यकारी निकाय के रूप में कार्य करती है।
अधिनियम के मूल प्रावधान इस प्रकार है -
प्रत्येक फैक्टरी या स्थापना जिस पर यह अधिनियम लागू होता है, पंजीकरण इस संबंध में बनाए गए विनियमों में विनिर्दिष्ट समय में और तरीके के अनुसार किया जाना चाहिए।
इसमें समेकित आवश्यकता आधारित सामाजिक बीमा योजना की व्यवस्था की गई जो बीमारी, प्रसव, अस्थायी या स्थायी शारीरिक अपगंता, रोजगार के दौरान लगी चोट के कारण मृत्यु जिससे मजदूरी या अर्जन क्षमता खत्म हो जाए, जैली स्थितियों में कामगारों के हितों की रक्षा हो सके।
इसमें छह सामाजिक सुरक्षा लाभ भी प्रदान किए गए हैं -
(i) चिकित्सीय लाभ
(ii) बीमारी लाभ (एस बी)
(iii) मातृत्व लाभ (एम बी)
(iv)अपंगता लाभ
(v)आश्रित का लाभ (डी बी)
(vi)अंत्येष्टि व्यय
केन्द्र सरकार सरकारी राजपत्र में अधिसूचना प्रकाशित करके इस अधिनियम के प्रवधानों के अनुसार कर्मचारी राज्य बीमा योजना के प्रशासन के लिए '' कर्मचारी राज्य बीमा निगम'' नामक निगम स्थापित कर सकती है।
इस अधिनियम में निर्दिष्ट लाभों के अतिरिक्त, निगम बीमित व्यक्तियों के स्वास्थ्य सुधार और कल्याण हेतु तथा ऐसे बीमित व्यक्तियों के पुनर्वास एवं पुन:रोजगार के उपायों को बढ़ावा दे सकता है, जो अपंग या घायल हो गए हों और इन उपायों के संबंध में निगम की निधियों से ऐसी सीमाओं में व्यय कर सकती है जैसी कि केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाए।
इस अधिनियम के तहत कर्मचारी के संबंध में अंशदान में नियोक्ता द्वारा देय अंशदान और कर्मचारी द्वारा देय अंशदान शामिल होगा और निगम को देय होगा। अंशदान ऐसी दरों पर अदा किए जाएंगे जो केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाएंगी।
इस अधिनियम के तहत किए गए समस्त अंशदान और निगम की ओर से प्राप्त अन्य सभी धनराशियां कर्मचारी राज्य बीमा निधि नामक निधि में जमा की जाएगी जिसे इस अधिनियम के प्रयोजनार्थ निगम द्वारा धारित और प्रशासित किया जाएगा।
ऐसा कोई भी व्यक्ति, जो इस अधिनियम के तहत भुगतान या लाभ में वृद्धि करवाने के प्रयोजन से, या इस अधिनियम के तहत जहां कोई भुगतान या लाभ प्राधिकृत नहीं है, वहां कोई भुगतान या लाभ प्राप्त करने के प्रयोजन से, या इस अधिनियम के तहत स्वयं उसके द्वारा किए जाने वाले भुगतान से बचने या किसी और व्यक्ति को भुगतान से बचाने के प्रयोजन से जानबूझ कर गलत बयान या गलत आवेदन करता है, उस कारावास या जुर्माने या दोनों की सज़ा दी जा सकती है।
यदि इस अधिनियम के तहत अपराध करने वाली कोई कम्पनी हैं, तो ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जो अपराध के समय कम्पनी का प्रभारी था और कम्पनी के कारोबार संचालन के लिए जिम्मेदार था, वह और कम्पनी भी अपराध की श्रेणी होगी और उसके विरुद्ध कार्यवाही की जा सकती है और तदनुसार दण्डित की जा सकती है।
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2023
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