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शक के बिनह पर गिरफ्तारी

शक के बिनह पर गिरफ्तारी

भूमिका

किशोर कानून में “गिरफ़्तारी” की जगह “शक की बिनह पर गिरफ़्तारी” ने ले ली है। भारत के संविधान व सर्वोच न्यायालय के फैसलों में किसी आरोपी जिसे गिरफ्तार किया गया हो, के अधिकारों से जुड़ी सावधानियों व सुरक्षा, कानून का उल्लंघन करने वाले किशोरों पर भी लागू होते है। इस संबन्ध में संवैधानिक प्रावधान यह दिए गए है।

“अनूच्छेद 22 (1) कोई भी गिरफ्तारी किया गया व्यक्ति हिरासत में इस जानकारी के बिना नहीं रखा जाएगा, कि उसे किस आधार पर गिरफ्तार किया गया है, और न ही उसे अपनी पसंद के वकील से बात करने या उसके द्वारा बचाए जाने से रोका जाएगा।

हर गिरफ्तार व्यक्ति जिसे हिरासत में रखा गया हो, यातायात के लिए जरूरी समय को छोड़कर 24 घंटे के भीतर नजदीकी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा और कोई भी ऐसा व्यक्ति मजिस्ट्रेट की आज्ञा के बिना तय समय से अधिक अवधि के लिए हिरासत में नहीं रखा जाएगा।”

परिचय

सर्वोच्च नयायालय ने दिलीप के बासु, बनाम पश्चिम बंगाल सरकार एवं अन्य के मामले में, निर्देश दिए हैं जिन्हें सभी गिरफ्तारियों व हिरासत के मामलों में माना जाता है जब तक उस पर कानूनी प्रावधान न दिए गए हों, ताकि हिरासत में हिंसा को रोकी जा सके। पुलिस कर्मचारियों को सही, साफ व दृश्य पहचान व पद सहित नाम की पट्टी पहननी है जब वह गिरफ़्तारी के वक्त एक पर्चा तैयार करेगी जिस पर कम से कम एक गवाह कौर गिरफ्तार करने वाले के हस्ताक्षर हों। गिरफ्तार व्यक्ति के कम से कम एक मित्र, रिश्तेदार या जान पहचान वाला व्यक्ति जो उसका भला चाहता है, को जितनी जल्दी हो सके उसके गिरफ्तारी व रखे जाने की जगह की सूचना दी जा सके।

किशोर न्याय अधिनियम की धारा 10 (1) में यह प्रावधान है कि किशोर को उसके गिरफ़्तारी के 24 घंटे के भीतर किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष पेश किया  जाता है। किसी व्यक्ति को इस अवधि से अधिक हिरासत में रखना गैर कानूनी हिरासत होगी। मुंबई उच्च न्यायालय ने बबन खंडू बनाम महाराष्ट्र राज्य सरकार के मामले में राज्य पर 10,000/- रूपयों का मुआवजा, आवेदक को देने का आदेश दिया क्योंकि उसे सही प्राधिकरण के समक्ष पेश किए बिना ढाई दिनों तक गलत इच्छाओं सहित रखा गया, बिना ऐसी हिरासत के लिए कोई उपयुक्त कारण दिए।

किशोर न्याय अधिनियम 2000 की धारा 13 के के अंतर्गत पुलिस को गिरफ़्तारी के बाद “जितनी जल्दी हों सके निम्नलिखित को सूचित करना है।

(अ) किशोर के माता-पिता या अभिभावक, यदि वे मिल सकें और उन्हें उस बोर्ड के समक्ष पेश होने का निर्देश देंगे जिसके समक्ष पेश होने का निर्देश देंगे जिसके समक्ष किशोर को पेश किया जाता है, और

(ब) ऐसी गिरफ़्तारी के बारे में निगरानी अधिकारी को ताकि वह किशोर की सामाजिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि व आय भौतिक परिवेश के बारे में पता कर सके जिसे बोर्ड को जाँच चलाने में सहायता मिले।”

बी सी ए 1984 व किशोर न्याय अधिनियम 2000 में सामान प्रावधान हैं। यदि किशोर के माता पिता या अभिभावक को तुरंत सूचित नहीं किया जा सकता तो किसर की पसंद के किसी व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी की सूचना दी जाएगी।

पहले बार पेश किए जाने पर बोर्ड पुलिस रिपोर्ट की मांग करेगा जिसमें किशोर की गिरफ़्तारी व निगरानी गृह में उसकी पेशी की तिथि व समय, और उसकी गिरफ़्तारी के बाए में माता-पिता या अभिभावक या किशोर की पसंद के व्यक्ति को सूचित किया गया है या नहीं, के बारे में विस्तार होगा। इसके अतिरिक्त, पुलिस द्वारा पेश की गई ऐसी सूचनाओं के बारे में किशोर से पुष्टि करवाई जाएगी।

स्रोत: चाइल्ड लाइन इंडिया फाउन्डेशन

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



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