बचपन के पहले आठ साल बेहद महत्वपूर्ण होते हैं, खासकर पहले तीन साल। यह समय भविष्य के स्वास्थ्य, बढ़त और विकास की बुनियाद होती है। दूसरे किसी भी समय के मुकाबले इस दौरान बच्चे तेजी से सीखते हैं। शिशु और बच्चे तब और जल्दी विकसित और कहीं ज्यादा तेजी से सीखते हैं, जब उन्हें प्यार और लगाव, ध्यान, बढ़ावा और मानसिक उत्तेजना के साथ ही पोषक भोजन और स्वास्थ्य की अच्छी देखभाल मिलती है। सभी बच्चों को जन्म के समय कानूनी पंजीकरण, स्वास्थ्य की देखभाल, अच्छा पोषण, शिक्षा और नुकसान की भरपाई, बदसलूकी व भेदभाव से सुरक्षा पाने का अधिकार है। यह सुनिश्चित करना माता-पिता और सरकारों का फर्ज है कि इन अधिकारों को सम्मानित, सुरक्षित और पूरा किया जा रहा है या नहीं।
पहले आठ साल में, और खास कर पहले तीन साल के दौरान, बच्चे की देखभाल और ध्यान बहुत जरूरी है और इसका असर बच्चे के पूरे जीवन पर पड़ता है।
शुरुआती सालों में देखभाल और ध्यान बच्चों के फलने-फूलने में मदद देता है। बच्चों को थामना, गोद लेना और बातें करना उनकी बढ़त को उकसाता है। मां के करीब और भूखा होते ही उसे मां का दूध मिलना, बच्चे में सुरक्षा की भावना भरने का काम करता है। बच्चों को मां के दूध की जरूरत पोषण और सुख-चैन दोनों के लिए होती है।
लड़का हो या लड़की, दोनों की एक जैसी शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक और सामाजिक जरूरतें होती हैं। सीखने की क्षमता दोनों में बराबर होती है। दुलार, ध्यान और बढ़ावे की जरूरत दोनों को होती है।
छोटे बच्चे रो कर अपनी जरूरतें बताते हैं। बच्चे के रोने पर तुरंत हरकत में आना, उसे उठाना और मजे से बातें करना उसमें विश्वास और सुरक्षा की समझ पैदा करेगा।
जिन बच्चों में खून की कमी हो, कुपोषित हों या बार-बार बीमार पड़ जाते हों, वे स्वस्थ बच्चों के मुकाबले डर और परेशानी का शिकार आसानी से हो सकते हैं और जो उनमें खेलने-कूदने, खोजबीन करने या दूसरों से मिलने-जुलने की चाहत का अभाव उत्पन्न करेगा।
ऐसे बच्चों को खाने-पीने के लिए विशेष ध्यान और बढ़ावे की जरूरत होती है।
बच्चों की भावनाएं सच्ची और ताकतवर होती हैं। अगर बच्चे कुछ कर पाने या जो अपनी पसंद की चीज पाने में असमर्थ हैं, तो वे कुंठित हो सकते हैं। बच्चे अक्सर अजनबी लोगों से या अंधेरे से डरते हैं। जिन बच्चों की हरकतों पर हंसा जाता है, उन्हें सजा दी जाती है, वे बड़े होकर शर्मीले और अपनी भावनाएं सामान्य रूप से रखने में असमर्थ हो सकते हैं। देखभाल करने वाले अगर बच्चों के मन की भावनाओं के प्रति धीरज और हमदर्दी रखा जाता है तो उसके प्रसन्नचित्त, सुरक्षित और संतुलित तरीके से बढ़ने की संभावना अधिक होती है।
शारीरिक सजा या हिंसा का प्रदर्शन बच्चे के विकास को नुकसान पहुंचा सकता है। गुस्से में जिन बच्चों को सजा दी जाती है, खुद उनके हिंसक होने की संभावना और बढ़ जाती है। स्पष्ट बात कि बच्चों को क्या करनी चाहिए, ठोस नियम कि क्या नहीं करनी चाहिए तथा अच्छे व्यवहार की शाबाशी, बच्चों को समुदाय और परिवार का खरा और उत्पादक हिस्सा बनाये जाने के कहीं अधिक कारगर तरीके हैं।
दोनों माता-पिता के साथ ही परिवार के दूसरे सदस्यों को भी बच्चों की देखभाल में शामिल किये जाने की जरूरत है। पिता की भूमिका खास तौर पर महत्वपूर्ण होती है। पिता प्यार, लगाव और उत्तेजना पाने की बच्चे की जरूरतें पूरी करने के प्रयास को सुनिश्चित कर सकता है कि बच्चे को अच्छी शिक्षा, अच्छा पोषण मिले और उसकी सेहत की सही देखभाल हो। पिता सुरक्षित और हिंसा से मुक्त वातावरण को भी सुनिश्चित कर सकता है। पिता घरेलू काम में भी हाथ बंटा सकता है, खास कर तब जब मां बच्चे को दूध पिला रही हो।
पैदा होने के साथ ही बच्चे तेजी से सीखने लगते हैं। अगर उन्हें पौष्टिक भोजन और सेहत की सही देखभाल के साथ दुलार, ध्यान और शाबासी मिले तो वे तेजी से बढ़ते हैं और जल्दी सीखते हैं।
अपने से चिपका कर रखना और पैदा होने के एक घंटे के भीतर बच्चे को मां का दूध पिलाना, शिशुओं की बेहतर वृद्धि और विकास में मदद करता है तथा मां के साथ बच्चे का खास रिश्ता कायम करता है।
छूना, सुनना, सूंघना, देखना तथा चखना, सीखने के वह औजार हैं, जिनसे बच्चा अपने आसपास की दुनिया को परखने की कोशिश करता है।
जब बच्चों से बात की जाती है, उन्हें छुआ जाता है और गले लगाया जाता है, और जब वे जाने-पहचाने चेहरे देखते हैं, परिचित आवाजें सुनते हैं और तरह-तरह की चीजें थामते हैं तो उनका दिमाग तेजी से बढ़ता है। जन्म से ही जब वे प्यार और सुरक्षा का अनुभव करते हैं और जब लगातार खेलते हैं और परिवार के लोगों से घुलते-मिलते हैं, तो तेजी से सीखते हैं। सुरक्षा का अनुभव करने वाले बच्चे आमतौर पर स्कूल में अव्वल होते हैं और जीवन की कठिनाइयों का सामना आसानी से करते हैं।
मांगे जाने पर पहले छह माह तक केवल मां का दूध, छह माह की उम्र पर सुरक्षित और पौष्टिक भोजन मिलने की सही समय पर शुरुआत, और दो साल या उससे ज्यादा समय तक मां के दूध का सेवन बच्चे को पोषण और स्वास्थ्य लाभ उपलब्ध कराता है, साथ ही साथ देखभाल करने वालों से लगाव और संबंध बनाता है।
बच्चों के लिए विकास और सीख का सबसे जरूरी रास्ता दूसरों से उनका मेलजोल होता है। माता-पिता और देखभाल करने वाले बच्चे के साथ जितनी बातें करेंगे और उस पर ध्यान देंगे, बच्चा उतनी ही तेजी से सीखेगा। नवजात और छोटे बच्चों के सामने माता-पिता और देखभाल करने वालों को बात करना, पढ़ना और गाना चाहिए। बच्चे अगर शब्द समझने लायक न हों तो भी यह ‘बातचीत’ उनकी भाषा और सीखने की क्षमता का विकास करती है।
देखभाल करने वाले बच्चों को देखने, सुनने, पकड़ने और खेलने के लिए नयी और दिलचस्प चीजें देकर उनके सीखने और बढ़ने में मदद कर सकते हैं।
शिशुओं और छोटे बच्चों को लंबे समय के लिए अकेले नहीं छोड़ा जाना चाहिए। यह उनके शारीरिक और मानसिक विकास की गति को धीमा कर देता है।
लड़कियों को भी भोजन, ध्यान, लगाव और देखभाल की उतनी ही जरूरत होती है, जितनी लड़कों को। सीखने या कुछ नया कहने पर सभी बच्चों को बढ़ावा और उनकी तारीफ किये जाने की जरूरत है।
अगर बच्चे की शारीरिक या मानसिक बढ़त ठीक से नहीं हो रही है तो माता-पिता को स्वास्थ्य कार्यकर्ता से सलाह लेने की जरूरत है।
मातृभाषा में बच्चों का शिक्षण सबसे पहले उन्हें सोचने और खुद को व्यक्त करने की क्षमता के विकास में मदद करता है। गानों, नानी-दादी की कहानियों, कविताओं और खेलों के जरिये बच्चे भाषा को जल्दी और आसानी से सीखते हैं।
जिन बच्चों का समय से टीकाकरण पूरा हुआ हो और जिन्हें पर्याप्त पोषण मिल रहा हो, उनके जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती है तथा उनमें घुलने-मिलने, खेलने-कूदने और सीखने का रूझान अधिक होता है। यह स्वास्थ्य पर परिवार के खर्च, बीमारी के कारण स्कूल से बच्चे की गैर हाजिरी और बीमार बच्चे की देखभाल में माता-पिता की आमदनी के नुकसान को कम करेगा।
खेलने और खोजबीन के लिए मिलने वाला बढ़ावा बच्चों को सीखने और उनमें सामाजिक, भावनात्मक, शारीरिक और दिमागी विकास में मदद करता है।
बच्चे आनंद के लिए खेलते हैं, लेकिन खेल उनके सीखने और विकास करने की कुंजी भी है। खेलने से बच्चों के ज्ञान और अनुभव को आकार लेने और उनकी उत्सुकता और विश्वास के विकास में मदद मिलती है।
बच्चे चीजों को आजमाते हुए, नतीजों की तुलना करते हुए, सवाल पूछते हुए और चुनौतियों का सामना करते हुए सीखते हैं। खेलना, भाषा सीखने, सोचने, योजना बनाने, संगठित होने और फैसला लेने के कौशल का विकास करता है।
अगर बच्चा विकलांग है, तो उत्तेजना और खेल की जरुरत खास तौर पर बढ़ जाती है।
लड़कियों और लड़कों के खेलने और परिवार के सभी सदस्यों से घुलने-मिलने के समान मौकों की जरूरत होती है। पिता के साथ खेल और मेलजोल दोनों के बीच मजबूत रिश्ता बनाने में मददगार होता है।
परिवार के लोग और बच्चों की देखभाल करने वाले बच्चों को साफ-साफ हिदायतों के साथ मामूली काम सौंप कर, खेलने की चीजें दे कर और खेल पर दबदबा बनाये बगैर नयी गतिविधियां सुझा कर सीखने में बच्चों की मदद कर सकते हैं। बच्चे पर करीबी निगाह रखें और उनके विचारों पर गौर करें।
बिना किसी की मदद के छोटा बच्चा अगर कोई काम करने की जिद करें तो उनकी देखभाल करने वालों को धीरज से काम लेने की जरूरत है। बच्चे सफलता मिलने तक कोशिश करके सीखते हैं। जब तक बच्चा किसी खतरे से दूर है, नया और मुश्किल काम करने की जद्दोजहद बच्चे के विकास के लिए अच्छा कदम है।
सभी बच्चों को अपने विकास की अवस्था के मुताबिक तरह-तरह की सरल चीजों से खेलने की जरूरत है। पानी, बालू, गत्ते के बक्से, लकड़ी के गुटके, बर्तन और ढक्कन खेलने का उतना ही अच्छा सामान हैं, जितने कि दुकान से खरीदे गये खिलौने।
बच्चे लगातार योग्यताओं को बदलते और विकसित करते हैं।
बच्चों के साथ व्यवहार कैसे किया जाये ? बच्चे अपने करीबी लोगों के व्यवहार की नकल उतार कर सीखते हैं।
दूसरों को देखते और उनके जैसा बनते हुए छोटे बच्चे सामाजिक व्यवहार का तौर-तरीका सीखते हैं। वे सीखते हैं कि कौन सा व्यवहार ठीक है और कौन सा नहीं।
बड़े-बुजुर्गों और अपने से बड़े बच्चों का उदाहरण बच्चे के व्यवहार और व्यक्तित्व के निर्माण में बड़ा असर डालता है। बच्चे दूसरों की नकल करके सीखते हैं, न कि दूसरों के बताने से कि यह करो। अगर बड़े चीखते-चिल्लाते और हिंसक व्यवहार करते हैं, तो बच्चे भी वही सीखेंगे। बड़े अगर दूसरों के साथ भलाई, इज्जत और धीरज के साथ पेश आते हैं, तो बच्चा भी इसे दोहरायेगा।
बच्चे बहाने बनाते हैं। इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए, इसलिए कि बहाना बनाना बच्चों की कल्पनाशीलता का विकास करता है। यह बच्चों को दूसरे लोगों के व्यवहार के तरीकों को समझने और उसे स्वीकार करने में भी मदद करता है।
माता-पिता और बच्चों की देखभाल करने वालों को खतरे के उन निशानों को जानना चाहिए जो दर्शाते हैं कि बच्चों की बढ़त और विकास डगमग है।
माता-पिता और देखभाल करने वालों को उन अहम पड़ावों को जानने की जरूरत है, जो दर्शाते हैं कि बच्चे का विकास सामान्य रूप से हो रहा है। उन्हें यह भी जानने की जरूरत है कि शारीरिक या मानसिक रूप से कमजोर बच्चों को कब मदद की जानी है और उन्हें देखभाल और प्यार का माहौल किस तरह दिया जाना है।
सभी बच्चे एक जैसे तरीकों से बढ़ते और विकसित होते हैं, लेकिन हरेक बच्चे के विकास की अपनी गति होती है।
यह गौर करें कि बच्चा स्पर्श, घ्वनि और दृश्यों पर क्या प्रतिक्रिया करता है। माता-पिता विकास से जुड़ी दिक्कतों या अक्षमता की पहचान कर सकते हैं। अगर बच्चा धीमी गति से विकसित हो रहा है तो माता-पिता और देखभाल करने वाले बच्चों के साथ अतिरिक्त समय गुजार कर, खेल कर और उससे बातें कर, और बच्चे की मालिश कर मदद कर सकते हैं।
उत्तेजित करने और ध्यान खींचे जाने के बावजूद अगर बच्चा बेअसर रहता है तो माता-पिता और देखभाल करने वालों को किसी प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी से मदद लेने की जरूरत है। अपंग बच्चों की क्षमताओं के पूर्ण विकास में मदद के लिए शुरुआती पहल बहुत जरूरी है। बच्चे की क्षमता अधिक से अधिक विकसित करने के लिए माता-पिता और देखभाल करने वालों को बढ़ावा दिये जाने की जरूरत है।
अपंगता का शिकार लड़का या लड़की को कुछ ज्यादा दुलार दिये जाने और एहतियात बरते जाने की जरूरत होती है। सभी बच्चों की तरह विकलांग बच्चों के लिए भी जन्म के समय या उसके तुरंत बाद जन्म पंजीकरण, मां के दूध, टीकाकरण, पौष्टिक भोजन तथा बदसलूकी और हिंसा से बचाव की जरूरत है। अपंग बच्चों को खेलने और दूसरे बच्चों से घुलने-मिलने के लिए बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
जो बच्चा खुश नहीं हैं या जज्बाती व परेशानियों से घिरा हुआ है, उसका बर्ताव गैर मामूली हो सकता है। मिसाल के तौर पर अचानक गैर दोस्ताना, दुखी, आलसी, असहयोगी और शरारती हो जाना, अक्सर रोना, दूसरे बच्चों के प्रति हिंसक हो जाना, दोस्तों के साथ खेलने के बजाय अकेले रहना या अचानक रोजमर्रा के कामों या पढ़ाई-लिखाई में दिलचस्पी न लेना, भूख और नींद में कमी आ जाना।
अभिभावकों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि वे बच्चों से बात करें और उन्हें सुनें। समस्या अगर दूर नहीं होती हो, तो शिक्षक या स्वास्थ्य कार्यकर्ता की मदद लें।
अगर बच्चे को दिमागी या जज्बाती परेशानी है या उसके साथ बदसलूकी हुई हो तो अगली मुश्किलों से बचाने के लिए उसे सलाह दी जानी चाहिए।
आगे दी गई दिशा-निर्देश माता-पिता को यह जानकारी देती है कि बच्चे कैसे विकसित होते हैं। सभी बच्चों की बढ़त और उनके विकास में अंतर होता है। धीमी प्रगति सामान्य हो सकती है या जरूरत से कम पोषण, खराब स्वास्थ्य, उत्तेजना का अभाव या कहीं ज्यादा गम्भीर दिक्कतों के कारण हो सकती है। बच्चे की प्रगति के बारे में माता-पिता प्रशिक्षित स्वास्थ्य कार्यकर्ता या शिक्षक से बात करने की इच्छा कर सकते हैं।
बच्चा करने में सक्षम हों:
माता-पिता और देखभाल करनेवालों को सलाह
निम्न खतरनाक संकेत, जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए-
बच्चा करने में सक्षम हों
माता-पिता और देखभाल करनेवालों को सलाह
निम्न खतरनाक संकेत, जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए
बच्चा करने में सक्षम हो
माता-पिता और देखभाल करनेवालों को सलाह
निम्न खतरनाक संकेत, जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए
बच्चा करने में सक्षम हो
माता-पिता और देखभाल करनेवालों को सलाह
निम्न खतरनाक संकेत, जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए
बच्चा करने में सक्षम हो
माता-पिता और देखभाल करनेवालों को सलाह
निम्न खतरनाक संकेत, जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए
बच्चा करने में सक्षम हो
माता-पिता और पालनेवालों को सलाह
निम्न खतरनाक संकेत, जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए
स्त्रोत: यूनीसेफ
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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