बच्चों की सभी बीमारियों और मौतों में से आधी घटनाएँ गंदे हाथों से, या गंदे खाने और पानी से उनके मुँह में जानेवाले रोगाणुओं के कारण होती है। इनमें से कई रोगाणु मानव और पशुओं के मल से भी आते हैं।
अच्छी स्वास्थ्य आदतों के कारण बहुत-सी बीमारियों से, विशेषत: डायरिया से, बचाव हो सकता है।
सभी प्रकार का मल शौचकूप या शौचालय में फेंकना; बच्चों के मल से संपर्क करने के बाद या बच्चों को खाना खिलाने से पहले या खाने को छूने से पहले हाथ साबुन और पानी के साथ या राख और पानी के साथ अच्छी तरह साफ करना; और इसकी पुष्टि कर लेना कि पशुओं का मल घर, रास्ता, कुँआ और बच्चों के खेलने के स्थान से दूर रखा जाना चाहिये।
एकत्रित होकर शौचकूप और शौचालय बनाना और उनका प्रयोग करना, जल स्रोतों की सुरक्षा करना और कूड़ा तथा अन्य गंदगी, पानी जैसी चीजों का सुरक्षित निपटारा किये जाने की समाज में सभी को आवश्यकता है। सरकारों द्वारा समाज को कम खर्चीले शौचकूप और शौचालय बनाने के लिये आवश्यक सूचना देना बहुत आवश्यक है क्योंकि यह सभी परिवारों के द्वारा वहनीय है। नगरीय क्षेत्रों में, अल्प-व्ययीन (कम खर्चीले) ड्रेनेज सिस्टम और सफाई व्यवस्था, परिष्कृत पेय-जलापूर्ति और कूड़ा इकट्ठा करने जैसे कामों के लिये सरकारी मदद की आवश्यकता होती है।
सारा मल सुरक्षित रूप से दूर स्थान पर फेंक दिया जाना चाहिये। शौचकूप या शौचालय सर्वोत्तम मार्ग है।
बहुत सी बीमारियाँ, विशेषत: अतिसार (डायरिया), मानव मल में पाये जानेवाले रोगाणुओं के कारण होती हैं। यदि रोगाणु खाना, या पानी, हाथ, बर्तन, या खाना पकाने के स्थान और खाना खाने के स्थान पर पहुँच गये, तो वे मुँह के द्वारा निगले भी जा सकते हैं और इस प्रकार बीमारी फैला सकते हैं।
रोगाणुओं को फैलने से रोकने के लिये सबसे उत्तम उपाय है- सारे मल चाहे वह मानव का हो या पशुओं का सुरक्षित तरीके से फेंका जाये। मानव मल को शौचकूप या शौचालय फेंका जाना चाहिये। शौचालयों को साफ रखा जाना चाहिये। पशुओं का मल घर, रास्ते और बच्चों के खेलने के स्थान से दूर रखनी चाहिये।
यदि शौचकूप या शौचालय का प्रयोग करना संभव न हो तो, सभी को घर, रास्ते, जल के स्रोत और बच्चों के खेलने के स्थान से काफी दूर जाकर मलत्याग करनी चाहिये और मल को तुरंत मिट्टी में दबा देना चाहिये।
सभी प्रकार का मल, बिल्कुल नन्हें बच्चों का भी, रोगाणुओं का स्थानांतरण करता है और इसीलिये खतरनाक है। यदि बच्चे बिना शौचकूप या शौचालय के, लैट्रिन या पॉटी के बिना मलत्याग करें तो उनका मल तुरंत शौचकूप या शौचालय में डाल देना चाहिये या गाड़ देनी चाहिये।
लैट्रिन और शौचालय अक्सर साफ रखने चाहिये। लैट्रिन को ढ़क कर रखना चाहिये और शौचकूपों में फ्लश चला देना चाहिये। स्थानीय सरकारें और एनजीओ कम खर्च में सैनिटरी लैट्रिन बनाने के लिये सलाह देकर समुदायों की मदद कर सकती हैं।
बच्चों सहित, परिवार के सभी सदस्यों के लिये, मल से संपर्क के बाद, भोजन को छूने से पहले और बच्चों को खिलाने से पहले, हाथ साबुन और पानी या राख और पानी के साथ अच्छी तरह धोना आवश्यक है।
हाथ साबुन और पानी या राख और पानी के साथ अच्छी तरह धोने से रोगाणु निकल जाते हैं। केवल अंगुलियों को खंगालना ही काफी नहीं है-दोनों हाथों को साबुन या राख से धोना चाहिये। इसके कारण रोगाणुओं और गंदगी का मुँह में जाने से बचाव होता है। हाथों को धोने से कृमि का संक्रमण भी दूर रहता है। साबुन और पानी या राख और पानी को शौचालयों के बाहर सुविधापूर्वक रखा जाना चाहिये।
बच्चे प्राय: मुँह में हाथ डालते रहते हैं, इसीलिये बच्चों के हाथ अक्सर धोना महत्वपूर्ण है, विशेषत: जब वे गंदगी या पशुओं के साथ खेल रहे हों।
बच्चे आसानी से कृमि से संक्रमित हो जाते हैं, जिससे शरीर के पोषक तत्व कम जाते हैं। कृमि और उनके अंडे मानव मल और मूत्र में, सतही पानी और ज़मीन में, और गंदी तरह से पकाये हुए मांस में पाये जाते हैं। बच्चों को शौचकूपों के पास या मलत्याग करने वाले स्थान के पास नहीं खेलना चाहिये। शौचकूपों और शौचालयों के पास जूते पहनने से संक्रमण से बचाव होता रहता है, इससे जंतु पैर की त्वचा के द्वारा शरीर में प्रवेश नहीं कर सकते।
साबुन और पानी से रोज चेहरा धोने से ऑंखों के संक्रमण से बचाव होता है। विश्व के कुछ हिस्सों में, आँखों का संक्रमण ट्रॅकोमा की ओर ले जाता है जिसके कारण अंधत्व भी आ सकता है।
पानी किसी सुरक्षित स्रोत से ही लें या फिर शुद्ध किया हुआ पानी ही प्रयोग करें। पानी साफ रखने के लिये पानी के बर्तन ढक कर रखना आवश्यक है।
परिवार और समुदाय अपने पानी के स्रोतों को इस प्रकार साफ रख सकते हैं-
परिवार अपने घर में पानी इस प्रकार साफ रख सकते हैं:
यदि पीने के पानी के बारे में कोई भी अनिश्चितता हो, तो स्थानीय प्राधिकरणों से संपर्क किया जा सकता है।
कच्चा या बचा हुआ खाना खतरनाक हो सकता है। कच्चा खाना धोकर और पका कर खाएँ। पका हुआ खाना पूरी तरह से गर्म करके बिना विलंब खाना चाहिये।
कच्चा खाना, विशेषत: पॉल्ट्री और समुद्री खाना, इनमें प्राय: रोगाणु होते हैं। पका हुआ खाना कच्चे खाने में से रोगाणु ले सकता है। इसीलिये कच्चे और पके हुए खाने को अलग रखना चाहिये वरना पके हुए खाने में कच्चे खाने से रोगाणु आ ही जायेंगे। चाकू, सब्जी काटने के बोर्डस् और खाना पकाने की जगहों की सफाई का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिये और इन सब वस्तुओं को प्रयोग के बाद धोकर रखना चाहिये।
खाना, बर्तन और खाना पकाने के स्थान को साफ रखना चाहिये। खाना बर्तनों में ढक कर रखा जाना चाहिये।
खाने पर बैठे हुए रोगाणु निगले जा सकते हैं और बीमारी ला सकते हैं। खाने को रोगाणुओं से बचाने के लिये:
घर के पूरे कूड़े करकट का सुरक्षित निपटारा बीमारियों से बचाव करता है।
खाने पर बैठे हुए रोगाणु निगले जा सकते हैं और बीमारी ला सकते हैं। खाने को रोगाणुओं से बचाने के लिये:
रोगाणुओं का फैलाव मक्खियों, तिलचट्टे और चूहे के द्वारा होता है जो कूड़े करकट में खाना ढूँढने के लिये घुसकर रोगाणुओं को जगह देते हैं। जैसे सब्जियों के छिलके और फलों के टुकड़े आदि।
यदि कूड़े का सामुदायिक एकत्रीकरण नहीं किया जा रहा, तो प्रत्येक परिवार को एक कूड़ेदान की आवश्यकता होगी जहाँ प्रतिदिन घरेलू कूड़ा जलाया या दबाया जा सकता है।
आसपास के क्षेत्र को मल, कूड़ा आदि, इस्तेमाल किया हुआ पानी इन सब से मुक्त और साफ रखने से बीमारियों से बचाव होता है। इस्तेमाल किया हुआ पानी इकट्ठा करने के लिये एक गड्ढा खोदना चाहिये जिससे कि यह पानी किचन गार्डन या खेतों की ओर निकाल दिया जाये।
कीटनाशक और वनौषधियों जैसे रसायन, यदि उनकी एक अत्यंत छोटी मात्रा भी खाना, हाथ या पैर या पानी में घुल जाये तो खतरनाक हो सकते हैं। रसायनों का काम करते हुए इस्तेमाल किये हुये कपड़े और कंटेनरों को घरेलू इस्तेमाल करने वाले पानी के स्रोत के पास न धोएँ।
कीटनाशक और अन्य रसायनों का प्रयोग घर के आसपास या पानी के स्रोत के पास नहीं किया जाना चाहिये। रसायनों का संग्रह पानी के स्रोत या खाने के स्थान के पास नहीं करना चाहिये। कभी भी खाद्यान्न का संग्रह रसायनों, कीटनाशकों के डिब्बों आदि में न करें।
स्त्रोत : यूनीसेफ
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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