मानवीय आँख कुछ–कुछ कैमरे की तरह काम करती हैं। सामान्य रूप से लैंस एक पारदर्शी अंग होता है। प्रकाश पुतली के जरिए आँख में प्रवेश करता है और सामान्य व साफ लैंस से गुजरता है। लैंस उसे दृष्टि पटल पर फोकस करता है इससे मस्तिष्क में एक संदेश जाता है और व्यक्ति अपने आसपास की वस्तुएं देखने में समर्थ होता है ।
मोतियाबिंद को सफेद मोतिया के नाम से भी जाना जाता है। इसमें आँख का साफ लैंस अपारदर्शी हो जाता है और एक पर्दे की तरह काम करने लगता है जिस व्यक्ति को सफेद मोतिया होता है, जिसे कुछ कम दिखना शुरू हो जाता है ।
मोतियाबिंद होने के कारण
मोतियाबिंद के लक्षण
मोतियाबिंद का उपचार
मोतियाबिंद का एकमात्र इलाज आपरेशन है। यह किसी दवा से ठीक नहीं हो सकता। मोतियाबिंद का आपरेशन इसके पकने की अवस्था पर नहीं, बल्कि रोगी की दृष्टि संबंधी जरूरतों पर निर्भर करता है। अब, मोतियाबिंद के लगभग सब आपरेशन एक लैंस के प्रत्यारोपण के साथ किए जाते हैं।
बिना टांके की सर्जरी में आपरेशन द्वारा आपरदर्शी लैंस को निकाल लिया जाता है
बिना टांका की सर्जरी के लाभ
आँखों का गोला एक आधा ठोस अंग है आँखों में दो तरह के तरलों की मौजूदगी के कारण आँख के गोले का आकार बना रहता है। ग्लोकोमा एक ऐसी स्थिति हैं जिसमें जल – द्रव के अतिरिक्त उत्पादन या उसके घटे निकास के कारण आँख के भीतर दबाव बढ़ जाता है।
ग्लूकोमा के कारण
लक्षण
1. तीव्र ग्लोकोमा
2. दीर्घकालिक ग्लोकोमा : इसका अक्सर पता नहीं लगता. क्योंकी दृष्टि अंत तक ठीक भी रहती है । एक मात्र प्रकट लक्षण है : परिधि पर रखी चीजों का न दिखना।
दृष्टि का समाप्त होना
आँखों में अधिक दबाव नेत्र - स्नायु के सामान्य क्रियाकलाप को बाधित करता है । इसलिए दृश्य संकेत पूरी तरह मस्तिष्क तक नहीं पहुँच पाता, अत: दृष्टि कमजोर हो जाती है । मोतियाबिंद के उलट, इस रोग में दृष्टि को वापस नहीं लाया जा सकता ।
रोग का जल्दी पता लगाना
ग्लोकोमा का पता लगाने के लिए आंख के दबाव की सालाना और सम्पूर्ण जाँच कराने की सलाह दी जाती है, खासकर 40 वर्ष के आयु के बाद । जल्दी पता लगाने के लिए, जब भी जरूरत हो ऑटोमेटिड फिल्ड एक्जामिनेशन की मदद से नेत्र- कप और अंत:नेत्र – तनाव रिकोर्ड की जरूरत होती है ।
तीव्र ग्लोकोमा की प्रारंभिक आवस्था का उपचार दवाओं व लेजर के जरिए किया जाता है । दीर्घकालिक ग्लोकोमा की प्रारंभिक आवस्था का उपचार भी दवाओं के जरिए ही किया जाता है । लेकिन दोनों ही ग्लोकोमा की बाद की अवस्थाओं में सर्जरी द्वारा उपचार की जरूरत पड़ती है । समय पर उपचार कराने से दृष्टि और ख़राब नहीं होती और अंधेपन को भी रोका जा सकता है, पर दृष्टि को हो चुके नुकसान को नहीं सुधारा जा सकता, इसलिए रोग का पहले पाता लगना जरूरी है ।
मधुमेह में दृष्टिपटल संबंधी रोग (रेटिनोपैथी)
मधुमेह एक ऐसी आवस्था है जिसमें रक्त मर ग्लूकोस का स्तर सामान्य से अधिक होता है इसका पूरे शरीर की रक्त वाहिकाओं पर बुरा प्रभाव पड़ता है । शरीर में मौजूद रक्त वाहिकाओं कमजोर हो जाती हैं, जबकि नई बनने वाली रक्त वाहिकाओं बहुत पतली और कमजोर होती है । आंख को रक्त पहूँचाने वाली वाहिकाओं में भी इसी तरह का बदलाव होता है । दृष्टि पटल में बनने वाली नई रक्त वाहिकाओं के कारण मेटाबोलाइट और तरल जमा हो सकते हैं, बल्कि फट भी जा सकती है । इससे दृष्टि को गंभीर नूकसान हो सकता है । मधुमेह के रोगी को बहुत जल्दी संक्रमण होता है । ऐसे लोगों के लिए बहुत जरूरी है की सर्जरी कराने से पहले, वे रक्त शक्कर में कमी लाएं ।
मधुमेह में दृष्टि पटल के रोगों का पता लगाने का महत्व
शरीर में आँख ही एक ऐसा हिस्सा है जिसमें उपयुक्त उपकरणों के जरिए रक्तवाहिकाओं को साफ साफ देखा जा सकता है । दृष्टिपटल की रक्त वाहिकाओं में होने वाले परिवर्तनों की सूचना देते हैं । इसलिए, ऐसे रोगियों को अपने पूरे शरीर की जाँच करानी चाहिए, विशेषकर गुर्दों की । दीर्घकालिक मधुमेह में उन पर सबसे अधिक असर पड़ता है ।
मधुमेह के रोगी के आँखों में होने वाले परिवर्तन
अपने मधुमेह को अच्छी तरह नियंतित्र करने वाले रोगी की आँखों में शूरूआती परिवर्तन आने में 10-15 साल का समय लग जाता है । लेकिन, जिन रोगियों का मधुमेह नियंत्रित नहीं है, उनमें ये परिवर्तन जल्दी और तेजी से आते हैं ।
उपचार
मधुमेह के कारण दृष्टि पटल रोग से ग्रस्त व्यक्तियों को रोग की आवस्था की जानकारी के लिए आँख की बेसलाइन फ्लोंरेसेंस एंजियोग्राफी करानी होती है । उसके बाद, जरूरत होने पर दृष्टि पटल के केन्द्रीय (मैक्युला यानी एक धब्बे के रूप में अन्य तंतुओं से अलग दिखने वाले ) हिस्से के लेजर द्वारा उपचार किया जा सकता है, क्योंकी दृष्टि में अधिक खराबी के लिए यही हिस्सा जिम्मेदार होता है ।
लेजर उपचार के प्रभाव
लेजर उपचार से दृष्टि में सुधार नहीं होता, पर उसे और खराब होने से रोका जा सकता है । एक बार दृष्टि खो जाने के बाद, उसे वापस लौटाना लगभग संभव नहीं ।
आयु बढ़ने के साथ होने वाली मेक्यूला की खराबी
उम्र बढ़ने के साथ – साथ आँख के विभिन्न अंग ख़राब होने लगते हैं । दृष्टिपटल में आने वाली खराबी दृष्टि के ज्यादा कमजोर होने के कारण बनती है । ऐसा आमतौर पर 45 वर्ष की आयु से अधिक उम्र के लोगों के साथ होता है 75 वर्ष से अधिक उम्र के एक तिहाई लोगों के साथ अक्सर ऐसा होता है । दृष्टिपटल का केन्द्रीय भाग, मैक्यूला, उम्र के साथ प्रभावित होने लगता है और वह दृष्टि के लिहाज से दृष्टिपटल का सबसे महत्वपूर्ण अंग है ।
उम्र के साथ मेक्यूला में आने वाले दोषों के प्रकार
1. शुष्क दोष – इससे दृष्टि में बस थोड़ी सी ही खराबी आती है ।
आर्द्र दोष – ये अधिक नुकसान देह होते हैं और इनसे दृष्टि गंभीर रूप से प्रभावित हो सकती है ।
प्रकार |
लक्षण |
पता लगाना |
उपचार |
शुष्क |
दृष्टि का धीरे-धीरे कमजोर होना |
आमतौर तौर पर रूटीन जाँच में पता चल पाता है |
अधिक मात्रा में विटामिन ई, जस्ता, सेलेनियम वाला भोजन लाभदायक होता है |
गीला |
दृष्टि का अचानक और अधिक कमजोर होना |
तब पता लगता है, जब रोगी दृष्टि का अचानक और काफी अधिक खराब हो जाने की शिकायत करता है |
ज्यादातर मामलों में लेजर उपचार संभव नहीं होता, क्योंकी इसमें दृष्टिपटल प्रभावित होता है जो कि आँख का सबसे महत्वपूर्ण अंग है । लेकिन, नई तरह की लेजर और सर्जीकल तकनीक विकसित हो चुकी हैं जो जीवन के बाद के वर्गों में लाभदायक साबित हो सकती हैं । |
जोखिम पैदा करने वाले कारण
1. सूरज की रोशनी के अधिक सम्पर्क में रहना
2. धूम्रपान
3. हृदयरोग
4. प्लस पावर वाले चश्मे
5. आँखों (आइरिस) का हल्के रंग का होना
स्त्रोत: हेल्पेज इंडिया/ वोलंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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