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लकवाग्रस्त बच्चों का पुनर्स्थापन

लकवाग्रस्त बच्चों का पुनर्स्थापन

भूमिका

पोलियो के कारण लकवाग्रस्त बच्चों की कुछ खास मुलभूत पुनर्स्थापन के मुद्दों पर मदद की जा सकती है| जिससे कि वह अपने परिधीय गतिशीलता के अभ्यासों को प्रभावित अंग के लिए कर सकें| हर बच्चे में बिभिन्न प्रकार के मेल वाली गंभीर लकवाग्रस्त मांसपेशियाँ होती हैं| अतः उन सबकी अपनी विशेष जरूरत भी होती है|

कुछ बच्चों के लिए सामान्य व्यायाम एवं खेलों की जरुरत हो सकती है परन्तु कुछ दूसरों को खास किस्म के व्यायाम एवं खेल के सामान की जरुरत हो सकती है| इसके साथ ही दूसरों को बेहतर गतिशील बनाने की मदद हेतु वैशाखी या बंधनी की जरुरत होती है| जिससे वे काम सरलता से कर सकें, अपने शरीर को स्वस्थ रख सकें तथा ज्यादा उपयोगी स्थिति अपना सके| जो बहुत ज्यादा लकवाग्रस्त हैं उन्हें पहियेवाली गाड़ी या पहियाकुर्सी से मदद पहुँचाई जा सकती है|

जुड़ीं हुई दो कहानियां

1.विमला जब एक वर्ष की थी, तब उसका पाँव लकवाग्रस्त हो गया था| चूँकि वह लकवा काफी गंभीर  था| अतः वह खड़ी नहीं हो सकती| वह हर समय अपने घर के आस-पास बैठी रहती है| जब वह एक जगह से दूसरी जगह जाती है तो अपने घुटनों (पैरों) व हाथों के बल घिसटती है| उसके माता-पिता शरीरिक क्रिया (भौतक) उपचार के बारे में नहीं जानते और न ही आस-पास कोई पुनर्वास केंद्र है अतः उसके पैरों व कूल्हों में गंभीर संकुचन आ गए हैं|

विमला का लकवाग्रस्त होना, चल फिर न सकना तथा घिसटना उसका भाग्य है| जिसे कि उसने स्वीकार कर लिया है| जैसे-जैसे विमल बड़ी होती गयी उसे एक जगह से दूसरी जगह पहुंचना कठिन हो गया और सामाजिक रूप से उसे शमे भी महसूस होने लगी| 20 साल से विमला खड़े होना या चलना फिरना नहीं कर सकती थी| उसके दोनों कूल्हों एवं घुटनों का ऑपरेशन किया गया तथा लगभग तीन माह तक प्लास्टर चढाने व अंगों को सीधा करने के बाद बंधनी या खपच्ची के उपयोग लायक बनाया जा सका| उसके भाई ने घर पर उसे व्यायाम कराने में सहयता दी| अंत में विमला खड़े होने योग्य हो सकी| वह बीस साल पहली बार अपने पैरों पर खड़ी हो सकी|

२. मुरुगन का परिवार मुत्तुर पालापाड़ी गाँव में, 20 घरों के बीच रहता है| उसके माता-पिता एक जमींदार के यहाँ साधारण मजदूर के रूप में काम करते हैं तथा दैनिक मजदूरी से काम चलाते हैं| मुरुगन जब चार माह का था तब उसे तीन दिनों तक बुखार आया| उसकी माँ पास के डॉक्टर को दिखाने ले गई, जहाँ उसने बाएं पाँव में सुई लगाईं| उसका वही पाँव लकवाग्रस्त हो गया|

मुरुगन के माता-पिता बड़े परेशान हुए और दूसरे डॉक्टर के पास ले गए, जिसने बताया कि उसके बच्चे को पोलियो हो चूका है| वे लम्बे समय तक डॉक्टर, उपचारक तथा अस्पतालों में खोज-बीन करते रहे ताकि वह ठीक हो सके|

सबसे पहले वे अपने घर से 80 किमी दूर कटपाड़ी जाकर एक वैद्य से मिले| इसके बाद में वे मद्रास शहर के अन्य डॉक्टर से मिले| डॉक्टर ने उनके बच्चे का ठीक होने का दिलासा देकर दवाईयां दे दी| लेकिन दुच भी नहीं हुआ| निराश होने के बावजूद, उसके माता-पिता मुरुगन को लेकर कांजीपुरम एक वैद्य के पास गए| उन्हें दो बार एक विशेष प्रकार का तेल दिया गया, जो उन्हें बच्चे के पाँव में मलना था, लेकिन उससे भी सुधार नहीं हुआ|

उम्मीदों पर उम्मीद टिकाये, उसके माता-पिता या अनेक तेलों, दवाओं को अपनाया और धार्मिक कर्मकांड किये| इस तरह उन्होंने अपना सारा धन खर्च कर दिए और 10,0 000 रूपये से ज्यादा बर्बाद हो गए|

उस दौरान मुरुगन के कुल्हें, घुटने और टखने में संकोचन हो गए| उसने हंसना, बोलना या चलना बंद कर दिया, अब वह 5 साल का है|

यह उस समय की बात है जब मुरुगन के माता-पिता ने अलामपोंडी के गाँधी ग्रामीण पुर्नस्थापन के बारे में सुना, जो की उनके गाँव के पास ही शुरू हुआ था| यहाँ पर ये लोग उस कार्यकर्ता से मिले हो पोलियो ग्रस्त बच्चों की देखभाल हेतु प्रशिक्षित था|

मुरुगन की शुरुआत एक व्यायाम से हुई| उसकी माँ हर शनिवार को सेंटर पर आने लगी, उसे ज्यादा व्यायाम सिखाकर घर पर  कराए जाते थे| धीरे-धीरे उसमें कुछ सुधार हुआ चूँकि मुरुगन के संकोचन बहुत ख़राब हो चुके थे अतः उन्हें ऑपरेशन करने की जरुरत थी| पुर्नस्थापन केंद्र की सहयता से मुरुगन का जिला अस्पताल में ऑपरेशन हुआ| उसकी माँ को यह भी सिखाया गया कि ऑपरेशन के बाद किस तरह देखभाल करनी है| आज मुरुगन उस योग्य है कि वह मुस्कराहट के साथ स्कूल जाता है|

स्रोत:- जेवियर समाज सेवा संस्थान, राँची|

अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020



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