इस भाग में शिशु के आयु वृद्धि के साथ – साथ अनुकरण करने की क्षमता बढ़ती जाती है| लेकिन अपरिपक्वा शिशु के जन्म के साथ साथ बहूत सारी कठिनाइयाँ भी उत्पन्न होती है।
इस भाग में शिशुओं के उछलना, घुटने के बल चलना खिसकना, आदि का जगह विशेष पर से भी प्रभाव पड़ता है इस बात उल्लेख किया गया है।
इस भाग में शिशु के व्यवहारगत विशेषताएँ वैयक्तिक एवं सांस्कृतिक भिन्नताओं की जानकारी दी गयी है|
इस भाग में शिशु के नये नये व्यवहार का उल्लेख किया गया है ।
इस पूरे भाग में शिशु के क्रमिक विकास के anअंतर्गत शिशु के दूध पीने की क्रियाएँ बाल रूदन के मनोवैज्ञानिक कारण इस सब की जानकारी दी गयी है|
इस भाग में शिशु के शारीरिक संरचनाओं के विकास का उल्लेख किया गया है।
इस भाग में शिशु के जन्म से एक माह तक विकास की गति के बारे में जानकारी दी गयी है|
इस भाग में अपरिपक्व शिशु में अनेक प्रकार की शारीरिक, मानसिक एवं व्यवहारपरक समस्याएं पायी जाती हैं| इसका प्रभाव उसके भावी विकास पर होता है।
इस भाग में शिशुओं के मस्तिष्क के विकासात्मक चरण की जानकारी दी गयी है|
शैशवावस्था एवं बाल्यावस्था में लड़के/लड़कियों के शारीरिक अनुपात के बारे में उल्लेख किया गया है|
इस भाग में शिशुओं की वृद्धि का उल्लेख किया गया|
इस भाग में शिशुओं के लम्बाई, वजन, दांतों का उगना, चलना आदि होने वाले परिवर्तनों के बारे में बताया गया |
इस भाग में शिशुओं स्नायुविक संस्थानों का विकास गर्भावस्था में एवं जन्म के बाद तीन चार वर्षों तक तीव्रतम गति से होता है इस तथ्य की जानकारी दी गयी है|
इस भाग में शिशुओं के शारीरिक विकास में शारीरिक तत्व के साथ बाहरी तत्व भी प्रभावित करते है का उल्लेख किया गया है|
शिशुओं के आयु वृद्धि के साथ शरीर की मांसपेशियों एवं हड्डियों के विकास बारे में उल्लेख किया गया है|
इस भाग में शिशुओं के महत्वपूर्ण परिवर्तनों का उल्लेख किया गया है |
इस भाग में शिशुओं के तंत्रिका तंत्र एवं स्नायु तंत्र के विकास का उल्लेख किया गया है|