बच्चे के आकार में वृद्धि के साथ, शरीर के विभिन्न अंगों में वृद्धि भिन्न- भिन्न गति से होती है। पिछले अध्यायों में कहा जा चुका है की गर्भकालीन अवस्था के प्रथम चरण में, सर्वप्रथम भ्रूण के सिर के विकास तीव्र गति से होता है तथा अंगों का उसके बाद। जन्म से शैशवावस्था तक, सिर और अन्य अंगों का विकास तो तेजी से होता रहता है परंतु शरीर के बीच वाला भाग तथा पैरों के हिस्से का विकास काफी मंद गति से हो पाता है। ऐसा सिफैलो कॉडलप्रवृति अथार्त ‘सिर से पैर की ओर’ विकास के नियम के अनुसार होता है। गर्भावस्था में सम्पूर्ण शरीर से पैरों का अनुपात 1:4 से भी कम होता है। जन्म के समय यह अनुपात 1:3 तथा व्यस्कावास्था तक 1:2 का हो जाता है।
शैशवावस्था एवं बाल्यावस्था में विकास, निकट – दूर नियम का अनुसरण करता है, अथार्त मध्य से शूरू होकर विकास शरीर के बाहरी भाग और अंत में हाथ का विकास होता है। परन्तु किशोरावस्था में विकास का यह संरूप विपरीत ढंग का जो जाता है। सर्वप्रथम हाथ पैर तथा टांगों का और अंत में धड़ विकसित होता है (ह्वीलर, 1991)। इसलिए पूर्व किशोरावस्था में किशोर का आकार- प्रकार बेढंगा प्रतीत होता है।
यद्यपि शैशवावस्था ववं बाल्यावस्था में लड़के/लड़कियों के शारीरिक अनुपात में समानता पायी जाती है तथापि किशोरावस्था में दोनों समूहों में भिन्नता पायी जाती है। ऐसा यौन हारमोंस का, हड्डियों के कंकाल पर पड़ने वाले प्रभाव के कारण होता है। स्त्री यौन हार्मोन इस्ट्रोजेन की क्रियाशीलता के कारण स्त्रियों का पिछला भाग भरी होता जाता है तथा एंड्रोजेन के कारण पुरूषों के कंधो के पिछले भागों में फैलाव पाया जाता है। लड़कों में लड़कियों की अपेक्षा वय: संधि की आयु अधिक होने के कारण लड़कों के हाथों की लम्बाई अधिक होती है (टैनर, 1990)।
स्रोत: जेवियर समाज सेवा संस्थान, राँची
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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