स्वाईन फ्लू एक वायरस या विषाणु जन्य बीमारी है। ये मूल रूप से सूअर के फ्लू बीमारी से निकलती है। लेकिन मानव को दूसरे रोगियों से या सूअर से संक्रमण होता है। यह विषाणु शरीर के बाहर ज्यादा समय टिक नही पाता। इसलिए गर्मीयों मे इसका फैलाव कम होता है। बरसात या जाडे के दिनों में स्वाईन फ्लू ज्यादा फैलता है। स्वाईन फ्लू अन्य फ्लू के जैसी ही एक बीमारी है। इसमें मृत्यू की संभावना वैसे बहुतही कम होती है। यह विषाणु खॉंसी, छींक और सॉंस से फैलता है तथा रोगी के इस्तेमाल की वस्तुएं जैसे रुमाल, बेडशिट आदि से संक्रमित हो सकता है। लेकिन संक्रमण होने पर भी हर किसी को बीमारी नही होती, चंद लोगों को ही बीमारी होती है। सामान्यत: इससे बुखार, खॉंसी, सिरदर्द, बदनदर्द, गले की खराश और नाक से पानी बहना आदी लक्षण होते है। लेकिन तुरंत विषाणुरोधक दवा लेने की जरुरी नही। इसलिए दवा लेने की जल्दबाजी ना करे। विषाणु विरोधी दवाओं के नुकसानदेह असर भी हो सकते है। अगर आपको स्वाईन फ्लू के संसर्ग का विशेष खतरा है तो डॉक्टर की सलाह से विषाणुरोधक दवाएँ अवश्य लें । स्वाईन फ्लू रोग ज्यादा बढकर न्यूमोनिया होकर श्वसन रुकने से मृत्यू संभव है। लेकिन ऐसा बहुत कम रोगियों में होता है। इसलिए डरे नही लेकिन सावधानी रखे।
स्वाईन फ्लू के लक्षण अन्य फ्लू जैसेही होते है। इसलिए उसकी विशेष जॉंच करनी पडती है। इसके लिए नाक और गले के अंदरुनी नमुना फाहे पर लेकर लॅबोरेटरीमें भेजा जाता है। इसके परीक्षण का रिपोर्ट अड़तालीस घंटों में प्राप्त हो सकता है।
स्वाईन फ्लू के सामान्य रूप के बीमारी के लिए घरमें रहकर इलाज करना सुरक्षित और पर्याप्त है। बुखार और दर्द के लिए पॅरासिटामॉल गोली और तरल पदार्थों का सेवन करे। ज्यादातर लोग इस इलाज से हफ्तेभर में बिलकुल ठीक हो जाते है। इसके लिए अस्पताल भरती होने की जरुरत नही। इंजेक्शन और सलाईन की भी जरुरत नही होती।
लेकिन अगर सॉंस लेने में मुश्किल महसूस हो या बुखार तीन दिन से ज्यादा चला हो तब डॉक्टर की सलाह लेना उचित होगा। जिनके बच्चों को बुखार और न्युमोनिया जैसे लक्षण हो और दौरे पडते हो तो बच्चा और माता-पिता खतीर मानकर डॉक्टर से संपर्क करे।
स्वाईन फ्लू से बचने के लिए इस प्रकार सावधानी बरतें
स्त्रोत: भारत स्वास्थ्य
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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