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इबोला वायरस

परिचय

इबोला वायरस से होने वाला रोग (जिसे पहले इबोला हिमोरहेजिक बुखार के नाम से जाना जाता था) एक गंभीर रोग है जिसमें अक्‍सर मृत्‍यु हो जाती है और मृत्‍यु दर 90 प्रतिशत तक है। यह बीमारी मनुष्‍यों के साथ-साथ गैर मानव प्रजातियों (प्राइमेट्स) (वानर, गोरिल्‍ला और चिंपेंजी) को अपनी चपेट में लेती है।

जेनस इबोला वायरस फिलोविरिडी परिवार के तीन सदस्‍यों में से एक है। इस वंश के दो अन्‍य सदस्‍यो के नाम जेनस मारवर्ग वायरस और क्‍यूवे वायरस हैं। जेनस इबोला वायरस की पांच विशिष्‍ट प्रजातियां से निर्मित हैं-

1   बुंडीबुगियोबोलावायरस (बीडीबीवी)

2   जायरे इबोलावायरस (इबीओवी)

3   रेस्‍टर्न इबोलावायरस (आरईएसटीवी)

4   सूडान इबोलावायरस (एसयूडीवी)

5   ताई फोरेस्‍ट इबोलावायर (टीएएफवी)

  • 18 मई 2014 तक गिनी के स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय ने इबोला वायरस रोग के कुल 253 मामलों की जानकारी दी जिसमें 176 मृत्‍यु के मामले भी शामिल हैं। इस बीमारी के मामलों/मृत्‍यु और बीमारी से ग्रस्‍त देशों के बारे में नवीनतम आंकड़ों की जानकारी विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन की वेबसाइट पर देखी जा सकती है।

संक्रमण

  • मनुष्‍यों में इबोला घनि‍ष्‍ठ संपर्क से फैलता है। संक्रमि‍त पशुओं के शरीर से नि‍कलने वाले रक्‍त तथा बंदरों, वन्‍य वनचरों और साहि‍यों के संक्रमि‍त अंग स्राव से यह बीमारी फैलती है।
  • मानव से मानव में संक्रमण – संक्रमण सीधे संपर्क का परि‍णाम होता है (यह टूटे चर्म अथवा चर्म तंतुओं के कारण हो सकता है)। रक्‍त, स्राव, अंगों अथवा संक्रमि‍त लोगों के शारीरि‍क अंगों के स्राव तथा अप्रत्‍यक्ष संपर्क के कारण भी यह हो सकता है। संक्रमि‍त स्रावों के चलते भी यह वायरस फैल सकता है। मरीजों का इलाज करने के कारण स्‍वास्‍थ्‍यकर्मी प्राय: संक्रमि‍त पाए गए है और उनमें ईवीडी की पुष्‍टि‍ हुई है।
  • यह वायरस संक्रमि‍त व्‍यक्‍ति‍ के वीर्य से भी फैल सकता है, यदि‍ संक्रमणकारी व्‍यक्‍ति‍ सात हफ्ते से कम समय पहले रोग मुक्‍त हुआ हो।
  • स्‍वास्थ्यकर्मी प्राय: मरीजों का इलाज करते समय अथवा संदि‍ग्‍ध ईवीडी पुष्‍टि‍ वाले मरीजों का इलाज करते समय इससे संक्रमि‍त हो जाते हैं, कारण है मरीजों के साथ घनि‍ष्‍ठ संपर्क, जब पूरे सतर्कता प्रावधानों का पालन न कि‍या गया हो।
  • जो लोग इस बीमारी से लंबे समय तक संक्रमि‍त होते रहते हैं उनके रक्‍त और स्रावों से यह वायरस फैलता है। संक्रमि‍त व्‍यक्‍ति‍ के वीर्य में ईबोला 61 दि‍न बाद भी प्रयोगशाला में पाया गया।

चि‍ह्न और लक्षण

  • ईवीडी एक गंभीर बीमारी है और इसके नि‍म्‍नलि‍खि‍त लक्षण एकाएक प्रकट होते हैं:
  • बुखार
  • बहुत कमजोरी
  • मांसपेशि‍यों में दर्द
  • सि‍र दर्द
  • गला खराब होना
  • उल्‍टी
  • पेचि‍श
  • शरीर पर चकत्‍ते
  • संक्रमि‍त कि‍डनी और संक्रमि‍त लि‍वर तथा
  • कुछ मामलों में आंतरि‍क और बाह्य दोनों प्रकार का रक्‍त स्राव
  • प्रयोगशाला में जांच कर रक्‍त में श्‍वेत प्रकोष्‍ठ और प्‍लेटलेट काउंट तथा सामान्‍य से ज्‍यादा लि‍वर एंजाइम पाए गए।
  • संक्रमण अवधि‍: 2 से 21 दि‍न

ईबीवीडी परि‍भाषा

संदि‍ग्ध (क्‍लीनि‍कल) मामला:

  • जब कोई व्‍यक्‍ति‍ इस बीमारी से संक्रमि‍त होता है यानि उसे यह बीमारी लगती है तो पहला क्‍लीनि‍कल लक्षण बुखार होता है। उसमें रक्‍त स्राव के लक्षण-जैसे मसूड़ों से खून आना, नाक से खून आना, आंख लाल होने की बीमारी के लक्षण, शरीर पर लाल धब्‍बे, रक्‍त सहि‍त मल और काले रंग का मल अथवा खून की उल्‍टियां  आदि‍ लक्षण दि‍खाई देते हैं। यह जरूरी नहीं होता कि‍ ईबीवीडी मामले का कोई दस्‍तावेज उपलब्‍ध हो।

संभावि‍त मामला (रक्‍त स्राव रहि‍त अथवा सहि‍त) :

  • कोई मरीज (जि‍न्‍दा या मुर्दा) जि‍सका ऐसे व्‍यक्‍ति‍ के साथ संपर्क हुआ हो, जो ईएचएफ का क्‍लीनि‍कल केस हो और उसे तेज बुखार हो चुका हो।

अथवा

  • कोई मरीज (जि‍न्‍दा या मुर्दा) जि‍से तेज बुखार के साथ नि‍म्‍नलि‍खि‍त में से तीन या ज्‍यादा लक्षण हों - सि‍र दर्द/वमन/मूर्छा/भूख न लगना/पेचि‍श/बहुत थकावट/पेट में दर्द/सामान्‍य मांसपेशी का अथवा जोड़ दर्द/नि‍गलने में कठि‍नाई/सांस लेने में कठि‍नाई/हि‍चकी आना।

अथवा

ऐसी मौत जि‍सका कारण स्‍पष्‍ट न हो

  • जहां तक इस बीमारी के लक्षण सामने आने और उन पर नि‍यंत्रण का सवाल है, संदि‍ग्‍ध मामले और संभावि‍त मामले में फर्क वास्‍तव में सापेक्ष रूप से महत्‍वपूर्ण नहीं है।

संपर्क

  • कोई मरीज जि‍समें लक्षण मौजूद न हो, और ऐसे व्‍यक्‍ति‍ के शारीरि‍क संपर्क में वह पि‍छले तीन हफ्तों में आया हो। शारीरि‍क संपर्क पक्‍का हो या संदि‍ग्‍ध हो सकता है (हो सकता है कि‍ वह संक्रमि‍त व्‍यक्‍ति‍ के साथ एक ही कमरे/बि‍स्तर पर सोया हो) अथवा संक्रमि‍त व्‍यक्‍ति‍ के अंग स्राव छुए हों, अथवा नि‍कट रूप से मृत मरीज की अंत्‍येष्‍टि में भाग लि‍या हो (यानी शव के शारीरि‍क संपर्क में आया हो)

ऐसा मामला जि‍सकी पुष्‍टि‍ हो चुकी हो

  • एक ऐसा संदि‍ग्‍ध मामला जि‍सकी प्रयोगशाला में पुष्‍टि‍ कर दी गई है (पॉजि‍टि‍व आईजीएम एंटीबॉडी, पॉजि‍टि‍व पीसीआर अथवा वायरल आइसोलेशन)

पड़ताल

  • ईवीडी पड़ताल से पहले जिन अन्‍य बी‍मारि‍यों की संभावना नहीं होनी चाहि‍ए। इसमें शामि‍ल हो सकता है- मलेरि‍या, टाइफाइड बुखार, शि‍गालोसि‍स, हैजा, लेप्‍टोसपि‍रोसि‍स, प्‍लेग, रि‍केटसि‍ओसि‍स, रि‍लैपसिंग फीवर, मस्‍ति‍ष्‍क ज्‍वर, हेपाटि‍सि‍स और अन्‍य रक्‍त स्राव से होने वाले बुखार।
  • इबोला वायरस के संक्रमण की जांच वि‍भि‍न्‍न प्रकार के प्रयोगशाला टेस्‍टों के जरि‍ए नि‍श्‍चि‍त रूप से की जा सकती है:

१.एंटीबॉडी कैप्‍चर एंजाइम से जुड़ा इम्‍यूनोसारबेंट एसे (एलीसा)

२.एंटीजन डि‍टेकशन टेस्‍ट

३.सि‍रम न्‍यूट्रालाइजेशन टेस्‍ट

४.रि‍वर्स ट्रांसक्रि‍प्‍टेज़ पॉलीमेरेज चेन रि‍एक्‍शन (आरटी- पीसीआर) एसे

५.इलेक्‍टॉन माइक्रोसकॉपी

६.सेल कल्‍चर के जरि‍ए वायरस आइसोलेशन

७.मरीज में मि‍लने वाले लक्षण बेहद अधिक जैव नुकसान के जोखिम वाले हैं। परीक्षण, अधि‍कतम जैवि‍क नि‍वारण(कंटेनमेंट) परि‍स्‍थि‍ति‍यों में टेस्‍ट कि‍ए जाने चाहि‍ए।

नि‍वारण और नि‍यंत्रण

इबोला वायरस के संक्रमण के खतरे और इनसे कैसे बचें

सार्वजनि‍क स्‍थानों में ऐसे व्‍यक्‍ति के साथ संक्षिप्‍त संपर्क, जो संक्रमि‍त न हों, इबोला वायरस का संक्रमण नहीं करते। पैसे/वस्‍तुओं का लेन-देन करते अथवा एक ही तरण-ताल में इबोला वायरस का संक्रमण नहीं होता। मच्‍छरों से भी इबोला वायरस नहीं फैलता

इबोला वायरस साबुन, ब्‍लीच, तेज धूप अथवा धूप में सुखाने से आसानी से खत्‍म हो जाता है। इबोला वायरस ऐसे सतहों पर सि‍र्फ थोड़े समय तक बरकरार रह पाता है जो धूप में सुखाए गए होते हैं।

लोगों में इबोला संक्रमण का जोखिम और उसे कम करने के उपाय

कारगर इलाज और एक मानव टीका की गैर-मौजूदगी में इबोला संक्रमण से जुड़े खतरों और व्यक्ति विशेषों द्वारा उठाये जाने वाले सुरक्षात्मक कदमों के बारे में जागरुकता पैदा करना ही मानव संक्रमण और मृत्यु को घटाने का एकमात्र रास्ता है।

संक्रमित चमगादड़ों या बंदरों/लंगूरों के साथ संपर्क में आने या उनके कच्चें मांस के सेवन से जंगली जानवरों से मानव संपर्क से संक्रमण के जोखिम को कम करना। जानवरों के संपर्क में आने की स्थिति में दस्तानों या अन्य उपयुक्त सुरक्षात्मक कपड़ों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। पशु उत्पादों (रक्त एवं मांस) को उपयोग से पहले पूरी तरह पकाया जाना चाहिए।

समुदाय में संक्रमित मरीजों खासकर उनके शरीर द्रव्यों के साथ प्रत्यक्ष या करीबी संपर्क से पैदा होने वाले मानव से मानव संक्रमण के जोखिम को कम करना। इबोला मरीजों के साथ करीबी शारीरिक संपर्क से बचना चाहिए। घर पर बीमार मरीजों की देखभाल करते समय दस्तानों और उपयुक्त व्यक्तिगत सुरक्षात्मक उपकरण धारण किए जाने चाहिए और जैव सुरक्षा दिशानिर्देशों के अनुरुप इस्तेमाल के बाद उनका निपटान कर देना चाहिए। अस्पतालों में भर्ती एवं घरों पर भी मरीजों की देखभाल करने के बाद नियमित रुप से हाथ धोने चाहिए।

मृत रोगियों की अंत्येष्टि/दफन भी जैवसुरक्षा सावधानियों के साथ ही की जानी चाहिए।

स्वास्थ्य देखभाल के दौरान संक्रमण पर नियंत्रण

इबोला वायरस का मानव से मानव संक्रमण मुख्य रुप से रक्त एवं द्रव्यों के साथ प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष संपर्क से जुड़ा हुआ है। स्वास्थ्य देखभाल करने वाले कार्यकर्ताओं को संक्रमण की घटनाएं तब सामने आई हैं जब उपयुक्त संक्रमण नियंत्रण उपायों का पालन नहीं किया गया है।

इबोला वायरस ग्रस्त मरीजों की पहचान करना हमेशा ही संभव नहीं हैं क्योंकि प्रारंभिक लक्षण बहुत विशिष्ट नहीं हो सकते हैं। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि स्वास्थ्य देखभाल करने वाले कार्यकर्ता हर वक्त, हर कार्यस्थलों पर, हर मरीज चाहे उसकी पड़ताल हुई हो या नहीं, के साथ नियमित रुप से मानक सावधानियों का अनुपालन करें। इनमें मूलभूत हस्त स्वच्छता, सांस संबंधी स्वच्छता, व्यक्‍ति‍गत सुरक्षात्मक उपकरणों (द्रव्यों के छीटों के जोखिमों या संक्रमित सामग्रियों के साथ अन्य संपर्क के अनुसार) का इस्तेमाल, सुई लगाने के सुरक्षित प्रचलनों और मत्यु के बाद संक्रमित रोगियों का सुरक्षित रुप से कार्य नि‍ष्‍पादन शामिल है।

संदि‍ग्‍ध या इबोला वायरस की पुष्टि हो चुके रोगियों की देखभाल करने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को अन्य मानक सावधानियों के अतिरिक्त मरीजों के रक्त एवं शरीर द्रव्यों के साथ किसी संसर्ग और संभावित प्रदूषित वातावरण के साथ प्रत्यक्ष असुरक्षित संपर्क से बचने के लिए अन्य संक्रमण नियंत्रण उपाय करने चाहिए। इबोला वायरस से संक्रमित रोगियों के साथ करीबी संपर्क (एक मीटर के भीतर) में आने वाले स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ताओं को एक चेहरा ढ़ाल (एक चेहरा कवच या एक मेडिकल मास्क और चश्में), एक साफ जीवाणुरहित लंबे वस्तु एवं दस्ताने (कुछ प्रक्रियाओं के लिए जीवाणुरहित दस्ताने) पहनने चाहिए।

प्रयोगशाला में काम करने वाले कार्यकर्ता जो जोखिम के दायरे में रहते हैं संदिग्ध मानव एवं पशु इबोला मामलों से पड़ताल के लिए लिए गए नमूनों की जांच प्रशिक्षित कर्मचारियों द्वारा किया जाना चाहिए तथा उपयुक्त रुप से सुसज्जित प्रयोगशालाओं में उनका परिशोधन किया जाना चाहिए।

स्त्रोत :

अंतिम बार संशोधित : 10/25/2019



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