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कोढ़ (कुष्ठ रोग)

परिचय

  • कोढ़ एक छुतहा बीमारी है।  रोगी के चमड़ी छूने उसके छीकने, खासने या थूकने से बीमारी फैलिती है।
  • कोढ़ रोग के कीटाणु चमड़ी पर अपना असर छोड़ते हैं।
  • शक होने पर सुन्न हुए धब्बे की जाँच जरूर करवा लें।
  • चमड़ी के तह में कीटाणु बसते हैं, उसकी जाँच जरूरी है
  • हर तरह की जाँच अस्पताल में होती है, कुष्ट रोगों के लिए खास अस्पतालों की भी इन्तजाम है।
  • पीला धब्बा, दाग जैसा धब्बा पर खास ख्याल रखें।

लक्षण

  • कोढ़ से चमड़ी पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है
  • चमड़ी को छूने से रोगी पर कोई असर नहीं पड़ता
  • कोढ़ से पावों का लकवा भी हो सकता है
  • बदन के किसी हिस्से में चमड़ी पर धब्बा हो सकता है – हाथ, पांव, चेहरा, कान, कलाई, घुटना।
  • शुरुआत में बाहर की ओर उगे बल उड़ जाते हैं, फिर सारी भोंहें सापक हो जाती है
  • नक् के छेद मोटे और सख्त हो जाते हैं
  • नक् से खून भी बह सकता है
  • साँस लेने में कठिनाई होती है
  • नाक की हड्डी गल सकती है
  • हाथों और पावों के पंजे में लकवा हो सकता है।

उपचार

  • सभी तरह के कोढ़ के रोगी का इलाज हो सकता है
  • इलाज में कई साल लग सकते हैं, कभी-कभी जीवन भर
  • धीरज रख कर इस रोग का इलाज जरूर करावें।

बचाव

  • पावों और हाथों को आग से बचावें, उन्हें करने से भी बचाएं
  • नंगे पांव नहीं चलें
  • खाना बनाते समय आग के बहुत पास न बैठें
  • बीड़ी, सिगरेट, हुक्का न पिएं
  • रात के समय बदन को ठीक से देखें – कोई धब्बा तो नहीं है, कोई अंग सुन्न तो नहीं होगा।
  • आँखों का विशेष ख्याल रखें, धूल न घुसने दें। उन्हें साफ रखें।  धून न घुसने दें और आँखों पर मक्खियां न बैठने दें।

स्त्रोत: संसर्ग, ज़ेवियर समाज सेवा संस्थान

अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020



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