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पलायन और एच.आई.वी./एड्स की संभावनाएं

भूमिका

एचआईवी और एड्स एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य मुद्दा है, और देश का एक बड़ापलायनउप खंड प्रवासी आबादी है, सबूत यह बतलाते है कि प्रवासियों को एचआईवी और एड्स की संभावनाएं अधिक है। एचआईवी और प्रवासन के बीच संबंध समय के साथ उभरा है और इस उभरते हुए स्वरुप को देखते हुए राष्ट्रीय कार्यक्रम ने  उत्तरदायी होने के लिए प्रयास किए हैं।

पलायन का परिचय

‘पलायन’ या ‘प्रवासन’ अथवा 'माइग्रेशन' अस्थायी या स्थायी रूप से या अर्द्ध स्थायी रूप से बसने के इरादे से, एक भौगोलिक क्षेत्र से दूसरे भौगोलिक क्षेत्र के लिए लोगों का स्थानिक गतिशीलता है। यह पलायन आर्थिक (आजीविका, आर्थिक असंतुलन, रोजगार के अवसर आदि), पर्यावरणीय कारकों (सूखा), जनसांख्यिकीय कारणों (परिवार प्रवास, युवा और सेवानिवृत्त व्यक्तियों के आंदोलन) या राजनीतिक कारणों (शरणार्थी आंदोलनों आदि) - से किया जाता रहा है ।

पलायन के कई रूप हो सकते हैं:

  • शहरी बनाम ग्रामीण - ग्रामीण से ग्रामीण, शहरी से  शहरी अथवा ग्रामीण से शहरी ।
  • व्यक्ति-एकल पुरुष, एकल महिला, जोड़े, बच्चों के साथ जोड़ा अथवा पूरा परिवार ।
  • स्थान-अंतर जिला, राज्य के भीतर, अंतर राज्य, अंतर्राष्ट्रीय ।
  • दूरी-लघु दूरी, लंबी दूरी की।
  • रुकने की समय - अस्थायी (3 महीने तक ), एक साल में अर्द्ध स्थायी ( 6 महीने तक  बरसात के दौरान वापस), स्थायी (केवल) प्रमुख छुट्टियों के लिए लौटना ।
  • बाह्य व भीतरी – राज्य में आने तथा राज्य से बाहर जाने वाले ।

पलायन की स्थिति

ग्रामीण क्षेत्र से रोजाना रोजगार की तलाश में बड़ी संख्या में ग्रामीण पलायन कर रहे हैं। खास बात यह है कि इन ग्रामीणों के पास कृषि भूमि है, लेकिन केवल एक फसल लेने की वजह से उनका गुजर-बसर मुश्किल हो गया है। गर्मी में कोई काम नहीं होने की वजह से काम की तलाश में अन्य जगहों पर रोजगार की तलाश में जा रहा है। मुख्य रूप से वे मुंबई,जम्मू कश्मीर, पुणे, कोलकाता, राजस्थान, ओडिशा के बड़े शहरों का रुख कर रहे हैं।

गौरतलब है कि शासन ने ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू की है। महिला स्वसहायता समूह का गठन करा कर जहां महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराने का प्रयास किया गया है। वहीं मनरेगा जैसी योजनाएं ग्रामीणों को साल में 150 दिन का रोजगार देने का दावा करता रहा है। बावजूद इसके बाद लोगों को रोजगार उपलब्ध नहीं हो रहा है। इसके चलते लोग बड़े शहरों का रुख कर रहे हैं। 10 से 20 एकड़ कृषि भूमि वाले भी रोजगार के लिए बड़े शहर जा रहे हैं। जहां वे रोजी मजदूरी कर रहे हैं।

मुख्यतः रोजगार के लिए लोग पलायन करते हैं, इसमें एक से छह महीने तक लोग अपना गांव, शहर, जिला या राज्य छोड़कर कहीं बाहर चले जाते हैं। अमूमन मौसमी पलायन खेती आधारित है, खेती की आवश्यकता के अनुसार लोग पलायन कर जाते हैं। एक निश्चित समय के बाद ये सभी वापस लौट आते हैं। बढते शहरीकरण के कारण इस तरह का पलायन तेजी से विस्तार कर रहा है। इस तरह का मौसमी पलायन झारखंड, बिहार, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में हो रहा है।

मनरेगा कुछ हद तक पलायन रोकने में सफल रहा है. इसकी सफलता और असफलता इसके क्रियान्वयन से जुड़ी है जहां इसे बेहतर तरीके से संचालित किया जा रहा है और खास कर पलायन करने वाले वर्ग को लक्षित किया जा रहा है, वहां इस योजना की सफलता भी दिख रही है।

पलायन और एच.आई .वी. /एड्स का संबंध

बढ़ती और एचआईवी संक्रमण के प्रसार में माइग्रेशन / गतिशीलता के महत्व की बढ़ती मान्यता है. प्रवासियों के बीच एचआईवी/ एड्स के प्रसार सबूत पाएं गए हैं। उच्च जोखिम वाले समूहों के बाद प्रवासियों(अनौपचारिक कार्यकर्ताओं) के बीच एचआईवी/ एड्स के प्रसार सबसे ज्यादा है।

भारत में किये गए कई अध्ययनों से यह परिलक्षित होता है कि प्रवासियों के बीच जोखिम भरा व्यवहार (जैसे, पत्नियों के बिना रहने वाले पति और उनका असुरक्षित व्यवहार) , उच्च जोखिम भरा मजदूरी और शराब का प्रयोग , प्रवासी पुरुषों साथियों के दबाव, और और नीरस काम करने और रहने की स्थिति में प्रवासी पुरुष का असुरक्षित सेक्स में लिप्तता उनके बीच / एड्स की सम्भावना को बढ़ा देता है । अध्ययन बतलाते हैं कि अनौपचारिक श्रमिकों सामान्य आबादी की तुलना में अधिक खतरा काफी हैं । असुरक्षित यौन- व्यवहार और उनसे होने वाले एचआईवी संक्रमण/ एड्स तथा एस.टी.आई .की गंभीरता को देखते हुए सरकार ने व्यापक स्तर पर जागरूकता एवं बचाव कार्यक्रम पर बल डाला है।

सरकार की पहल

सरकार ने वर्तमान सरकारी व गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से स्थिति की गंभीरता को समझते हुए निपटने की कोशिश की है। यह कार्यक्रम मुख्यतः पलायन प्रभावित राज्यों के प्रभावित जिलों, प्रखंडों और गाँवों में जाकर परिवार तक पहुँच कर लक्ष्य प्राप्त करना है । इस कार्यक्रम का प्रमुख लक्ष्य समूह पलायित पुरुष, उनकी पत्नी व परिवार है। ग्रामीण स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम के माध्यम से पलायित प्रभावित क्षेत्रों में प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं के माध्यम से एच.आई .वी. /एड्स और एस.टी.आई. की जानकारी देने के साथ ही इससे बचाव के तरीके की जानकारी उपलब्ध कराई जाती है । इसके साथ ही प्रचार –प्रसार के विभिन्न माध्यमों के द्वारा लक्षित समूहों को बीमारी से जागरूक करने का प्रयास किया जाता है ।

इस कार्यक्रम को मूर्त रूप देने के लिए प्रभावित राज्यों में प्रमुख रूप से इन लोगों की सम्मिलित सहभागिता आवश्यक होती है :-

  • स्थानीय सरकार और अस्पताल
  • गैर- सरकारी संस्थान
  • युवा और महिला समूह
  • पंचायती राज संस्थायें
  • स्थानीय धार्मिक संस्थायें
  • स्वयं सेवी संस्थायें
  • राज्य में राज्य एड्स नियंत्रण समिति से जुड़े सभी संस्थान व कार्यकर्ता
  • पुलिस प्रशासन और जिला स्तरीय अन्य विभाग

राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण समिति (नाको) का प्रयास

राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण समिति (नाको ) व संबंधित राज्यों के राज्य एड्स नियंत्रण समिति के प्रयास से प्रभावित राज्यों में नियमित रूप से लक्षित पहल समूह के बीच में कार्य किये जा रहें हैं।

प्रवासियों के बीच हो रहे एस.टी.आई./एच.आई.वी.संक्रमण/एड्स की गंभीरता को देखते हुए नाको व राज्य एड्स नियंत्रण समिति के द्वारा मुख्यतः इन क्षेत्रों में कार्य किया जा रहा है :-

  • सोर्स माइग्रेशन पर प्रयास  :

प्रभावित राज्यों के स्रोत जिलों (जहाँ से लोग पलायन करते हैं।) में प्रचार-प्रसार, जागरूकता व स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराना ।

  • ट्रांजिट माइग्रेशन पर प्रयास :

प्रमुख ट्रांजिट पोइंट्स जैसे रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड जहाँ पर प्रवासी कुछ देर रुकते है, एस.टी.आई./एच.आई.वी.संक्रमण/एड्स संबंधी प्रचार-प्रसार, जागरूकता कार्यक्रम चलाना ।

  • डेस्टिनेशन पर प्रयास :

गंतब्य (डेस्टिनेशन ) पर जहाँ लोग अधिक संख्या में रोजगार कर रहें है उन सभी उद्योगों, कामगारों के काम स्थल व कंपनी के सहयोग से प्रचार-प्रसार, जागरूकता व स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराना ।

वर्तमान में,ये सभी प्रमुख स्थानों को लक्षित कर एस.टी.आई./एच.आई.वी.संक्रमण/एड्स संबंधी प्रचार-प्रसार, जागरूकता कार्यक्रम व स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने का काम किया जा रहा है । इस कार्य में राज्य एड्स नियंत्रण समिति, नाको के दिशा-निर्देश के अनुरूप और स्थानीय संस्थाओं के सहयोग से कर रही है ।

अधिक जानकारी के लिए नाको (राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण समिति) के वेबसाइट पर जाएँ।

अंतिम बार संशोधित : 10/4/2020



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