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पोषाहार

प्रोटीन : इसका महत्व

प्रोटीन एमिनो एसिड से बने होते हैं और ये प्राणियों के जीवन से संबंधित आवश्यक कामों के निष्पदान के लिए बहुत जरूरी होते हैं । हमारे शरीर में लगभग आधा प्रोटीन मांसपेशियों के रूप में उपस्थित रहता है। खाद्य पदार्थों में उपस्थित आवश्यक एमिनो एसिड की मात्रा पर प्रोटीन की गुणवत्ता निर्भर होती है।

कार्य :

  1. शरीर में होनेवाले बहुत से आवश्यक कामों के लिए एंजाइम या हारमोन के रूप में रहने वाले प्रोटीन की आवश्यकता होती है।
  2. प्रोटीन शरीर के गठन के लिए आवश्यक पदार्थों की आपूर्ति करता है तथा बच्चों एवं किशोरों की शारीरिक वृद्धि और विकास में मदद करता है।
  3. व्यस्कों में प्रोटीन शरीर में होनेवाली क्षति की पूर्ति करता है।
  4. गर्भावस्था और स्तनपान के समय महिलाओं में अधिक मात्रा में प्रोटीन की आवश्यकता होती है। ताकि बच्चे का उचित ढंग से विकास हो सके।

भोजन में प्रोटीन की मात्रा

  1. जानवरों से मिलने वाले प्रोटीन की गुणवत्ता अच्छी होती है, क्योंकि उनमें उचित मात्रा में आवश्यक एमीनो एसिड की मात्रा पायी जाती है।
  2. शाकाहारी लोग भी अनाज, बाजरा, दाल आदि के द्वारा काफी मात्रा में प्रोटीन प्राप्त कर सकते हैं।
  3. दूध और अंडा में भी प्रचुर मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है। इसके अलावा दाल, तेलवाले बीज, दूध एवं दूध से बने सामान, मांस, मछली और मुर्गी में भी प्रोटीन भारी मात्रा में उपिस्थत रहता है। पौधों से मिलनेवाले खाद्य पदार्थों में सोयाबीन में सबसे अधिक मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है। इसमें 40 प्रतिशत से अधिक प्रोटीन होता है। 16 से 18 वर्ष के आयु वर्गवाले लड़के, जिनका वजन 57 किलोग्राम है, उनके लिए प्रतिदिन 78 ग्राम प्रोटीन की आवश्यकता होती है। इसी तरह समान आयु वर्ग वाली लड़कियों के लिए, जिनका वजन 50 किलोग्राम है, उनके लिए प्रतिदिन 63 ग्राम प्रोटीन का सेवन जरूरी है। गर्भवती महिलाओं के लिए 63 ग्राम, जबकि स्तनपान करानेवाली महिलाओं के लिए (छह माह तक) प्रतिदिन 75 ग्राम प्रोटीन का सेवन जरूरी है।

भोज्य पदार्थ

प्रोटीन की मात्रा
ग्राम / 100 खाने योग्य प्रोटीन

सोयाबीन

43.2

बंगाल चना, काला चना, हरा चना, मसूर, और लाल चना

22

मूंगफली, काजू, बदाम

23

मछली

20

मांस

22

दूध (गाय )

3.2

अंडा

13.3(प्रति अंडा)

भैंस

4.3

सूक्ष्म पोषक तत्व-सुरक्षित भोजन

सूक्ष्म पोषक तत्व ऐसे विटामिन और खनिज पदार्थ हैं, जो हमारे शरीर में बीमारियों से लड़ने के लिए, शरीर संबंधी आवश्यक कामों के लिए और संक्रामक बीमारियों से बचाने के लिए बहुत कम मात्रा में जरूरी होते हैं। साथ ही, शरीर को स्वस्थ रखने एवं लंबी आयु के लिए भी ये महत्वपूर्ण होते हैं। विटामिन ए- यह वसा में घुलनेवाला विटामिन है। यह सामान्य दृष्टि, शरीर को बीमारियों से बचाने और त्वचा को स्वस्थ रखने में काफी लाभदायी होता है। भारत में तीन प्रतिशत स्कूली बच्चों में विटामिन ए की कमी पायी जाती है। ऐसे बच्चों में आंख के सफेद भाग में दाग या धब्बा पाया जाता है, जिसे बाइटॉट स्पॉट कहा जाता है। इसके अलावा इसकी कमी से रतौंधी रोग भी हो सकता है।

विटामिन ए का महत्व

  • सामान्य दृष्टि के लिए विटामिन ए जरूरी है। इसकी कमी से रतौंधी या अन्य बीमारी भी हो सकती है।
  • शोध में पाया गय़ा है कि गर्भावस्था य़ा इससे पहले औरतों में विटामिन ए की कमी को दूर करके मृत्यु दर एवं अस्वस्थता दर को कम किय़ा जा सकता है।
  • विटामिन ए की कमी से होनेवाली बीमारियों से बचने के लिए खाद्य पदार्थों द्वारा विटामिन ए का सेवन करना चाहिए।

विटामिनयुक्त भोजन

  • पत्तेदार हरी सब्जियां, पीले और नारंगी रंग के फल और सब्जियों में बीटा-केरोटीन काफी अधिक मात्रा में पायी जाती है।
  • प्रो विटामिन जैसे बीटा केरोटीन विटामिन ए में परिवर्तित हो जाते हैं। केवल पशुओं के लिए बने खाद्य पदार्थों में ही पहले से विटामिन ए पाया जाता है।
  • दूध या दूध से बने खाद्य पदार्थ, अंडा का पीला वाला भाग, लाल खजूर तेल, मछली और मछली के जीगर के तेल में भी विटामिन ए प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

खाद्य-पदार्थों के नाम

बी कैरोटिन μ/ 100 खानेयोग्य प्रोटीन

धनिया पत्ता

4800

करी पत्ता

7110

सहजन

19690

मेथी पत्ता

9100

गाजर

6460

पका हुआ आम

1990

पपीता (पका हुआ),
कद्दू

880
1160

विटामिन सी

विटामिन सी एक आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व और जारण विरोधक है। यह संक्रामक रोगों से शरीर को बचाता है। विटामिन सी की कमी से स्कर्वी नामक बीमारी होती है, जिसके कारण कमजोरी होना, मसूड़ों से खून का स्राव होना और हड्डियों का सही तरीके से विकास न होना जैसी समस्याएँ होती हैं। विटामिन सी घाव भरने में एमिनो एसिड एवं कार्बोहाइड्रेट का उपापचय और हारमोन की उत्पति मे लाभदायक होता है ।
विटामिन सी युक्त भोजन

यह खट्टे फल जैसे - संतरा, नींबू , आंवला में पाया जाता है। अंकुरित चने में भी विटामिन सी काफी मात्रा मे पायी जाती है ।

लौह पदार्थ

लौह पदार्थ एक महत्वपूर्ण पदार्थ है, जो लाल रक्त कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन के बनने में सहायक होता है। इसके अलावा ऑक्सीजन के निर्वहण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। हमारे देश में युवाओं, किशोरियों और गर्भवती महिलाओं में एनिमिया एक गंभीर समस्या है। लगभग 50 प्रतिशत जनसंख्या एनिमिया से प्रभावित है। एनिमिया के कारण काम करने की क्षमता एवं बच्चों मे सीखने की क्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है।
लौह पदार्थ युक्त खाना खायें

  • हरी सब्जियां, सूखे फल एवं दाल मे लौह पाया जाता है। इसके अलावा बाजरा और रागी जैसे अनाज लौह य़ुक्त होते हैं। य़ाद रखें कि केवल 3 से 5 प्रतिशत आय़रन ही शरीर द्वारा ग्रहण किया जाता है।
  • माँस-मछली एवं मुर्गी में भी लौह पदार्थ पाया जाता है ।
  • कुछ विटामिन सी युक्त फल जैसे- आंवला, अमरुद एवं खट्टे फल भी लौह पदार्थ ग्रहण करने में लाभदायक होते हैं ।
  • खाने के बाद चाय या कॉफी का सेवन नहीं करना चाहिए।

आयोडीन

  • थॉयरायड द्वारा बननेवाला हारमोन आयोडीन से बना होता है जो सामान्य शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए आवश्यक है।
  • प्रतिदिन 100 से 150 माइक्रोग्राम आयोडीन की आवश्यकता होती है । इसकी आवश्यकता ऊम्र और शारीरिक अवस्था के अनुरूप बदलती रहती है।
  • भारत में लोगों में आयोडीन की कमी से होनेवाली बीमारियां मुख्य रूप से सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से होती है।
  • गर्भावस्था के दौरान आयोडीन की कमी से भ्रूण विकास एवं मानसिक विकास प्रभावित होता है ।
  • आयोडीन की कमी हाईपो थॉयरायडिज्म, घेंघा और विकास में रुकावट का कारण बन सकता है ।
  • आयोडीन हमें समुद्री खाद्य पदार्थ और पानी में मिल सकता है ।
  • ग्वायटरोजेंस नामक तत्व सब्जियां, जैसे फूलगोभी, बंदगोभी और आलू से बने खाद्य पदार्थों में पाया जाता है और इनके सेवन से शरीर में आयोडीन की कमी को दूर किया जा सकता है।
  • आयोडीन की कमी को पूरा करने के लिये प्रतिदिन आयोडीन युक्त नमक का सेवन करना चाहिए ।

किशोरावस्था के विकास का उद्यम

अगर भारत की जनसंख्या पर गौर करें, तो पायेंगे कि भारतीय जनसंख्या का पांचवां हिस्सा किशोरों का है । किशोर शब्द लैटिन भाषा एडोलिस्येर से लिया गया है, जिसका मतलब है- बढ़ना , परिपक्व होना, जो युवावस्था की विशेषता है।
किशोरावस्था को मुख्य रूप से तीन अवस्था मे बांटा जा सकता है -

  • पूर्व किशोरावस्था (9-13वर्ष)- इस दौरान शारीरिक संरचनाओं में तेजी से विकास होने के साथ लिंग संबंधी विकास भी होता है
  • मध्य किशोरावस्था (14-15वर्ष)- इस अवस्था के दौरान युवा माता-पिता से अलग पहचान बनाते हैं एवं हम उम्र दोस्तों से संबंध बनाते हैं और विपरीत लिंग की ओर आकर्षित होते हैं। साथ ही उनमें नये चीजों की खोज की इच्छा तीव्र होती है।
  • उत्तर किशोरावस्था काल (16-19 वर्ष)- इस अवस्था के दौरान युवाओं का पूर्ण शारीरिक (व्यस्कों के समान) विकास होता है। उनकी एक अलग पहचान बनती है और उनमें एक नयी सोच और विचार का जन्म होता है।

आयु समूह

ऊर्जा
किलो कैलोरी/ दिन

प्रोटीन
ग्राम/
दिन

वसा
ग्राम/
दिन

कैल्शियम
मिलीग्राम/
दिन

आयरन
मिलीग्राम/
दिन

विटामीन ए
माइक्रोग्राम/
दिन (बिटा
केरोटिन

10- 12 वर्ष
(लड़के)
10- 12वर्ष
(लड़कियां)

2190

 

1970

54

 

57

22

 

22

600

 

600

34

 

19

2400

 

2400

13- 15 वर्ष
(लड़के)
13- 15वर्ष
(लड़कियां)

2450

 

2060

70

 

65

22

 

22

600

 

600

41

 

28

2400

 

2400

16- 18 वर्ष
(लड़के)
16- 18 वर्ष
(लड़कियां)

2640

 

2060

78

 

63

22

 

22

500

 

500

50

 

30

2400

 

2400

हमें ऊर्जा क्यों चाहिए ?

मनुष्य को अपने दैनिक कार्यों के निष्पादन और शरीर के तापमान को सन्तुलित रखने के अलावा चयापचय के लिए और विकास के लिए पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता होती है। नेशनल न्यूट्रीशन मॉनिटरिंग ब्यूरो द्वारा किये गये शोध के अनुसार भारत में 50 प्रतिशत पुरुष एवं महिलाओं में ऊर्जा की दीर्घ कालीन कमी पायी जाती है।

  • प्रतिदिन होनेवाली ऊर्जा के खर्च पर ऊर्जा की आवश्य़कता निर्भर करती है। य़ह मनुष्य की उम्र, शरीर के वजन, शारीरिक कार्य का स्तर, विकास तथा शारीरिक स्थिति पर भी निर्भर करती है। भारत में 70 से 80 प्रतिशत कैलोरी खाद्य पदार्थ जैसे, दाल, बाजरा और कंद में मिलते हैं।
  • बच्चों एवं किशोरों में प्रतिदिन खर्च होनेवाले ऊर्जा का 55 से 60 प्रतिशत भाग कार्बोहाइड्रेट से प्राप्त किया जा सकता हैं।
  • स्वस्थ वृद्धि के लिए किशोरों में अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। 16 से 18 वर्ष के उम्र के बालक और बालिकाओं को क्रमश: 2060 किलो और 2640 कैलोरी की आवश्यकता होती है।
  • गर्भावस्था के दौरान भ्रूण के विकास और गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए अधिक मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
  • ऊर्जा की कमी से कुपोषण और अधिकता से मोटापा हो सकता है।

ऊर्जायुक्त भोजन

  • अनाज, दाल, बाजरा, कंद, सब्जी से उत्पन्न होनेवाले तेल, घी, मक्खन, तेल उत्पन्न करनेवाले बीज, चीनी और गुड़।
  • अनाज से हमें काफी मात्रा में ऊर्जा मिलती है, इसलिए हमें अनाज का अत्यधिक सेवन करना चाहिए।
  • कठोर और रुखड़े अनाज जैसे- ज्वार, बाजरा और रागी सस्ते और ऊर्जा प्रचुर होते हैं।

खाद्य पदार्थ

ऊर्जा (किलो कैलोरी/100 ग्राम खाने योग्य प्रोटीन

चावल         
गेहूं का आटा
ज्वार
बाजरा
रागी
मकई

345
341
349
361
328
342

वसा व मानव स्वास्थ्य

वसा भोजन का एक आवश्यक भाग है और हमारे शरीर के बहुत सारे कामों में उपयोगी साबित होता है। यह ऊर्जा का एक ठोस साधन है और नौ किलो कैलोरी प्रति ग्राम ऊर्जा का उत्पादन करता है। चर्बी में घुलनेवाले विटामीन ए, डी, ई और विटामीन के को इस्तेमाल करने के लिए न्यूनतम आवश्यक वसा हमारे भोजन में रहता है।

  • पौधों एवं पशुओं से मिलनेवाले भोजन से वसा प्राप्त किया जा सकता है।
  • सब्जियों से बनने वाले तेल आवश्यक वसा अम्ल एवं अन्य असंतृप्त वसा अम्ल जैसे एकल असंतृप्त वसा अम्ल और बहुल असंतृप्त वसा अम्ल (मुफा एवं पुफा) के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
  • भोजन से प्राप्त होने वाले आवश्य़क वसायुक्त त्वचा बनाने में और अन्य चयापचय संबंधी आवश्यक कार्यो मे लाभदायक होता है।
  • मक्खन, घी आदि सूखे चर्बी का सेवन वयस्कों को काफी कम मात्रा मे करनी चाहिए ।
  • सब्जियों से बननेवाले तेल में (नारियल तेल को छोड़ कर) असंतृप्त वसा अम्ल प्रचुर मात्रा में पायी जाती है। ।
  • वसायुक्त खाद्य पदार्थों जैसे मक्खन, घी आदि का अत्यधिक सेवन करने से खून में वसा की अधिकता हो जाती है, जो स्वास्थ के लिए अच्छा नहीं है। इससे मोटापा और हृदय संबंधी बीमारियां भी हो सकती हैं ।
  • खाना बनाने के लिए ऊपयोग मे लाये जानेवाले तेल, वनस्पति, मक्खन और घी को प्रत्यक्ष वसा के नाम से जाना जाता है, जबकि खाद्य पदार्थों में मौजूद वसा को अप्रत्यक्ष वसा कहते हैं ।
  • पशुओं से प्राप्त होनेवाले खाद्य पदार्थों मे वसा पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है ।

कितना खाना चाहिए (RECOMMENDED DIETARY ALLOWANCE)

  • बड़े बच्चों और युवाओं को 25 ग्राम प्रत्यक्ष वसा युक्त भोजन करना चाहिए।
  • वैसे वयस्क जो हमेशा बैठे रहते हैं उन्हें प्रतिदिन 20 ग्राम वसायुक्त भोजन का सेवन करना चाहिए।
  • गर्भवर्ती और स्तनपान करानेवाली महिलाओं को प्रतिदिन 30 ग्राम प्रत्यक्ष रूप से वसा युक्त भोजन करना चाहिए, ताकि उनका शरीर स्वस्थ रहे।

तेल

लीन

लेन

कुल इएफए

घी

1.6

0.5

2.1

नारियल

2.2

-

2.2

वनस्पति

3.4

-

3.4

पामोलीन

12.0

0.3

12.3

सरसो तेल

13.0

9.0

22.0

मूंगफली

28.0

0.3

28.3

चोकर

33.0

1.6

34.6

तिल

40.0

0.5

40.5

सूर्यमुखी का तेल

52.0

ट्रेस

52.0

सोयाबीन

52.0

5.0

57.0

कुसुम

74.0

0.5

74.5

मोटापा एवं पोषाहार

मोटापा शरीर की वह स्थिति है, जिसमें शरीर के उत्तक में अत्यधिक वसा जमा हो जाती है और यह शरीर के वजन को 20 प्रतिशत तक बढ़ा देती है। शरीर पर मोटापे का काफी बुरा प्रभाव पड़ सकता है, और यह असामयिक मौत का कारण भी बन सकता है। मोटापा खून में वसा की अधिकता, उच्च रक्तचाप, हृदय संबंधी रोग , मधुमेह, पथरी एवं कुछ प्रकार के कैंसर जैसी बीमारियों की ओर ले जाती है।

कारण

  1. अधिक खाना खाना और कम शारीरिक कार्य करना मोटापे का प्रमुख कारण है। इसके अलावा जीन के कारण भी आप मोटापे का शिकार हो सकते हैं ।
  2. ऊर्जा का सेवन एवं ऊर्जा के उपयोग के बीच का असन्तुलन मोटापे एवं शरीर के वजन मे वृद्धि का कारण है।
  3. इसके अलावा अत्यधिक मात्रा में वसायुक्त भोजन करने से भी मोटापा जैसी समस्या होती है। कसरत में कमी एवं स्थिर जीवनयापन मोटापे का प्रमुख कारण है।
  4. जटिल व्यवहार एवं कुछ मनोवैज्ञानिक कारणों से लोग ज्यादा भोजन करने लगते हैं, इस कारण भी मोटापा की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
  5. शरीर में भोजन के सही तरीके से पाचन नहीं होने की स्थिति में भी ऊर्जा का कम उपयोग होता है, जिससे शरीर में चर्बी जमा होने लगती है।
  6. बचपन एवं किशोरावस्था का मोटापा व्यस्क होने पर आपको मोटा बना सकता है।
  7. औरतों मे गर्भावस्था एवं माहवारी के बाद मोटापा बढ़ जाता है ।

शरीर का सही वजन

मनुष्य के शरीर का वजन उसकी लंबाई और शारीरिक संरचना के अनुरूप होनी चाहिए। वजन मापने का सबसे सरल साधन है बॉडी मास इन्डेक्स। इसके द्वारा शरीर के वजन (किलो ग्राम में) को लम्बाई (मीटर ) के वर्ग से भाग करके निकाला जा सकता है ।

वजन कैसे कम करें?

  • तला खाना कम खायें।
  • अधिक मात्रा मे फल एवं सब्जी खायें।
  • रेशायुक्त खाद्य पदार्थ जैसे चना एवं अंकुरित चना का सेवन करें।
  • शरीर के वजन को संतुलित रखने के लिए रोजाना कसरत करें ।
  • धीरे परन्तु लगातार वजन में कमी करने की कोशिश करें।
  • उपवास से शारीरिक नुकसान हो सकता है।
  • विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ का सेवन करना चाहिए, जिससे हमारी शारीरिक क्षमता संतुलित रहे।
  • छोटे-छोटे अंतराल पर थोड़ा-थोड़ा खाना चाहिए।
  • खाने में कम चीनी लें, अत्यधिक चर्बीवाले भोज्य पदार्थ का सेवन न करें एवं अल्कोहल से बचें।
  • कम वसावाले दूध का सेवन करें।
  • वजन कम करनेवाले खाद्य पदार्थों में प्रोटीन की मात्रा अधिक होनी चाहिए और कार्बोहाइड्रेट एवं चर्बी की मात्रा कम होनी चाहिए।

गर्भावस्था में पोषण

गर्भावस्था के समय पौष्टिक आहार की मांग बढ़ जाती है। गर्भ में पल रहे शिशु एवं गर्भवती महिलाओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए अधिक मात्रा में भोजन की आवश्यकता होती है । भारत में यह देखा गया है कि गरीब तबके की महिलाएं गर्भावस्था और स्तनपान कराने के समय भी अन्य सामान्य महिलाओं की ही तरह भोजन करती हैं।

  • माताओं की पोषण में कमी के कारण बच्चे के वजन में कमी हो जाती है और जच्चा और बच्चा की मृत्यु दर में वृद्धि होती है ।
  • बच्चे के वजन को बढ़ाने के लिए और मां के शरीर में वसा की मात्रा को बढ़ाने के लिए अधिक से अधिक भोजन की आवश्यकता होती है।
  • स्तनपान करानेवाली महिलाओं को अधिक पौष्टिक भोजन की आवश्यकता होती है, ताकि उनमें अधिक से अधिक दूध बन सके।

गर्भवती महिलाओं की भोजन संबंधी आवश्यकताएं

  • गर्भवती महिलाओं के भोजन का प्रभाव होनेवाले बच्चे के वजन पर पड़ता है।
  • गर्भावस्था में महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा पौष्टिक आहार देना चाहिए, ताकि उन्हें किसी प्रकार का शारीरिक कष्ट या बीमारी न हो।
  • गर्भावस्था के मध्य काल में महिलाओं को अतिरिक्त 300 किलो कैलोरी ऊर्जा, अतिरिक्त 15 ग्राम प्रोटीन एवं अतिरिक्त 10 ग्राम वसा गर्भावस्था के मध्यकाल से आवश्यक है ।
  • गर्भावस्था और स्तनपान कराने के दौरान महिलाओं में कैल्शियम की अधिक आवश्यकता होती है । इससे गर्भ में पल रहे बच्चे की हड्डियों एवं दांत का सही ढंग से विकास होता है और माता में अधिक मात्रा में दूध बनता है।
  • गर्भावस्था में आयरन की कमी से होनेवाली एनीमिया के कारण माताओं की मृत्यु दर बढ़ जाती है। इसलिए आयरनयुक्त भोजन का सेवन करना चाहिए।

गर्भावस्था के दौरान क्या करें , क्या न करें--

  • गर्भावस्था एवं स्तनपान के दौरान अधिक भोजन करें ।
  • सामान्य से अधिक भोजन उचित है ।
  • चना, अंकुरित चना और उबला हुआ भोजन का सेवन करें।
  • दूध, मांस एवं अंडे खायें।
  • अधिक मात्रा में सब्जी एवं फल खायें।
  • शराब एवं तंबाकू का सेवन न करें ।
  • बिना सलाह के दवा न लें ।
  • गर्भावस्था के 14 से 16 सप्ताह के बाद आयरन एवं कैल्शियम अधिक मात्रा में लें और इनकी मात्रा स्तनपान कराते समय भी अधिक होनी चाहिए।
  • भोजन से पहले या बाद मे चाय या कॉफी का सेवन न करें इससे शरीर में आयरन की कमी हो जाती है।
  • गर्भवती महिलाओं को टहलना एवं अन्य शारीरिक कार्यो की आवयश्कता होती है, परन्तु गर्भावस्था के आखिरी माह में भारी शारीरिक कार्य नहीं करना चाहिए।

पोषाहार

स्त्रोत-

  • पोर्टल विषय सामग्री टीम

अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020



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