वे बच्चे जो बार-बार बीमार पड़ जाते हैं, जल्दी थक जाते हैं, धीमी गति से चीज़ों को समझते हैं, वे कुपोषण से ग्रस्त हो सकते हैं। बच्चे के जन्म से लेकर 2 साल की आयु तक उसके कुपोषण से ग्रस्त होने की सम्भावना अधिक होती है। यह बच्चे के समग्र दीर्घकालिक विकास के लिए महत्वपूर्ण समय होता है। कुपोषण की शुरूआत जन्म से पहले ही हो जाती है, आमतौर पर यह किशारोवस्था में, इसके बाद व्यस्क जीवन में और आने वाली पीढि़यों में भी जारी रह सकता है। अक्सर इसे ठीक करना सम्भव नहीं होता। ये अपरिवर्तनीय लक्षण जो जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य एवं जीवन की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव डालते हैं, इन्हें रोकने के लिए जल्द से जल्द इस कुपोषण को रोकना ज़रूरी है।
जैसे एक मरा हुआ पौधा उचित देखभाल, पोषण जैसे मिट्टी, पानी, ताज़ा हवा और धूप के बिना हरे-भरे पेड़ में विकसित नहीं हो सकता, उसी तरह एक बच्चा उचित देखभाल और पोषण के बिना स्वस्थ व्यस्क के रूप में विकसित नहीं हो सकता।
एक बार बन जाने के बाद जिस तरह से खराब बने मिट्टी के घड़े को दुबारा ठीक नहीं किया जा सकता, उसी तरह जो बच्चे अपने जीवन की शुरूआती अवस्था में कुपोषण का शिकार हो जाते हैं, उन्हें पूरी तरह से स्वस्थ नहीं बनाया जा सकता।
कुपोषण के लक्षणों और इसके दुष्परिणामों के बारे में जागरुकता पैदा करना इस वीडियो का लक्ष्य है, ताकि समुदाय को इस पर उचित कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। यह व्यापक स्तर पर समुदाय को जानकारी देने के लिए है।
स्त्रोत: यूनिसेफ एवं अन्य विकास साझेदारों के सहयोग से महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा निर्मित।
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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