तेज बुखार आना
पेट के निचले हिस्से में तीव्र पीड़ा होना
योनि से खून या गंदे पानी का बहना
अगर ओ आर एस का पैकेट उपलब्ध न हो तो क्या करे? धर पर जो तरल पदार्थ उपलबध हो वह दें, जैसेः-
मासिक चक्र के पहले ओैर पॉचवें दिन के भीतर कभी भी-रक्तस्राव के पहले दिन को मासिक चक्र के पहले दिन के रूप में गिनें।
प्रसव के बाद-अगर स्तनपान न करा रही हो तो छह हफ्ते के बाद
अगर स्तनपान करा रही हो तो छह महीने के बाद
अगर गर्भपात हुआ हो तो उसके तुरंत बाद
मासिक चक्र के पहले और पॉचवें दिन के बीच किसी भी दिन पहली गोली शुरू करें
रोज एक गोली लें, अच्छा हो रात्रि भोजन के बाद
28 गोलियों का पैकेट खत्म होने पर अगले दिन नया पैकेट शुरू कर दें जिससे गोली का क्रम टूटने न पाए।
अगर किसी दिन गोली लेना भूल जाऍ तो याद आते ही दो गोलियॉ लें
अगर लगातार दो या तीन गोलियॉ लेना भूल जाऍ तो रोजना दो गोलियॉ लें जब तक कि रोज एक गोली का सिलसिला फिर से शुरू न हो जाए और अगले सात दिनों तक कोई अन्य तरीका जैसे कंडोम भी इस्तेमाल न करें।
अगर दो बाद मासिक धर्म न हो तो स्वास्थ्य केन्द्र जाकर जॉच करॉए कि कही गर्भ तो नहीं ठहर गया।
रोज लेने पर बहुत अधिक असरकारी तरीका
यदि मासिक चक्र के पॉचवे दिन तक शुरू की जाए तो तत्काल असर करती है
इस्तेमाल के पहले अन्दरूनी जॉच की जरूरत नहीं पडती
संभोग में कोई बाधा नहीं होती
कोई नुकसान नहीं पहुॅचती
इस्तेमाल आसान है
इन्हें खाना बन्द करने पर लगभग दो से तीन मास के भीतर गर्भधारण हो जाता है
कोई प्रशिक्षित कार्यकर्त्ता भी इन्हें बॉट सकता है। डाक्टर से ही लेना जरूरी नहीं है
मासिक चक्र नियमित हो जाएगा, मासिक धर्म में खून कम बहेगा, तकलीफ भी कम होगी
मासिक धर्म में खून कम बहेगा तो शरीर में आयरन की कमी भी कम होगी
गर्भाशय की अन्दरूनी सतह के और बीजदानी के कैंसर से बचाव होगा
स्तन-रोगों की आशंका कम होगी
पेंडू में सूजन से बचाव होगा
बहुत असरदार (97.99 तक )
तुरंत असर
लंबे अर्से तक लाभप्रद
संभोग में कोई बाधा नहीं पहुॅचती
प्रशिक्षित व्यक्ति द्वारा कभी भी निकाली जा सकती है
निकालने के बाद तत्काल संभव
स्तनपान को नुकसान नहीं पहुॅचाती
यदि क्लाइंट कोई दवा ले रही है तो भी इसे लगवा सकती है
बहूत मामूली परेशानी/नुकसान
एक बार लग जाने पर इसकी आपूर्ति (सप्लाई) नहीं करन पड़ती
किसी भी उम्र की स्त्री के लिए लाभप्रद
इसे लगाने और हटाने के लिए कोई प्रशिक्षित व्यक्ति चाहिए
क्लाइंट को यह लगने से पहले अंदरूनी जॉच करानी जरूरी है
यौन रोग और एड्स से बचाव की सुरक्षा नहीं
कॉपर-टी से पैदा होनेवाली कुछ आम शिकायतें:-
पहले 3-5वें दिन मे
पेट के निचले हिस्सों में मामूली दर्द
खून बहना या दाग-धब्बा लगना
पहले तीन महीनों में
इन्हें कॉपर-टी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिएः-
मासिक चक्र के पहले और सातवें दिन के भीतर यानी तब जब खून रूक गया हो
प्रसव के छह हफ्ते बाद
अगर कोई संक्रमण न हो तो गर्भपात के तुरंत बाद या कभी भी
जब लैम कारगर न हो और अन्य गर्भनिरोधक की जरूरत हो
पुरूष नसबन्दी या आदमियों के लिए आपरेशन
महिला नसबन्दी या स्त्रिीयों के लिए आपरेशन
प्रजनन प्रणाली इन कारणों से संक्रमित हो सकती है
यौन रोग कैसे फैलते है
ऐसे व्यक्ति के साथ असुरक्षित संभोग से (बिना कंडोम के) जो इनसे ग्रस्त हो
फिर चाहे संभोग योनिमार्ग से किया गया हो, या गुदा से या मुख-मैथुन के रूप में
यौन रोगों के बारे में खास हिदायतें
एक संक्रमित व्यक्ति के साथ केवल एक बार यौन संबंध होने पर भी यौन रोग का खतरा है, यदि कंडोम का प्रयोग न किया हो।
यौन रोग पुरूष ओैर स्त्री, दोनों को पीड़ित कर सकते है
यौन रोग से कोई सुरक्षित नहीं
किसी स्त्री/पुरूष को देखने भर से यह तय करना मुश्किल है कि वह इन रोगों से ग्रस्त है या नहीं। किसी व्यक्ति को एक से अधिक यौन रोग हो सकते है, फिर भी वह स्वस्थ्य दिखाई पड़ सकता है
प्रजनन अंगों के संक्रमण/यौन रोगों का शीध्र उपचार क्यों जरूरी है? यदि शीध्र इलाज न कराया जाए तो निम्नलिखित सभी समस्यायें हो सकती हैः
एच आई वी, एच आई वी संक्रमण और एड्स में क्या फर्क है?
1- बच्चों के लिए
2- नवजात शिशु की देखभाल
3- बच्चे का सांस देखना
4- गर्म रखना
5- वजन लेना
6- स्तनपान कराना
7- कम वजन वाले बच्चे की देखभाल
8- प्रथम चार माह तक मॉ का दूध देना
9- पॉच माह से उपरी आहार देना
10-बच्चे का टीकाकरण कराना
11-अधतय को रोकथाम के लिए विटामिन ए का धोल देना
12-ओ आर एस का धोल दस्त लगने पर लगातार देना
13-तीव्र सांस रोग की शीध्र पहचान एवं उपचार
रक्त अल्पता इलाज
आज की वर्तमान स्थिति में 6 माह से 9 माह की उम्र के लगभग एक तिहाई बच्चे को ही मॉ के दूध के अलावे ठोस आहार दिया जा रहा है।
4 माह तकः
केवल मॉ का दूध देवे
4 से 6 माह तक (बच्चा करवट व बैठने लगता है)
बिमारी के दौरान भी स्तनपान व आहार देना जारी रखें
दाल व चावल का पानी सब्जियों या फलों का रस दें
6 माह के अंत तक आहार की आधी कटोरी तक दें
6 से 9 माह तकः- (बच्चा बिना किसी सहारे के बैठने लगता है तथा हाथ से चीजें उठाने लगता है)
कम से कम चार बार मसले हुए अनाज/दालें/आलू, केले, सब्जियॉ/अण्डा आदि दें।
धीरे-धीरे मात्रा बढ़ाये
एक चम्मच धी या मक्खन दें
9 से 12 माह तकः-
(बच्चे धुटनों के बल से चलने व सहारे से खड़ा होने लगता है)
कम से कम चार बार आधी कटोरी भोजन(चावल/रोटी, सब्जी/दाल) आदि खिलाना शुरू करना चाहिए, हरी सब्जी भी दे सकते हैं
याद रखिएः
1- भोजन साफ तरीके से पकाऍ
2- कटोरी, चम्मच आदि बर्तन साफ हों
3- हाथ धोकर बच्चे को भोजन खिलाऍ
4- खाना अच्छा पका हुआ हो (उबला हुआ)
5- बिना मिर्च मसाले का सादा खाना दें।
6- नमकीन चाजों के लिए आयोडिन युक्त नमक का उपयोग करें।
7- बिमारी के दौरान स्तनपान कराना ओर आहार देना जारी रखें
8- भोजन तैयार करने और बच्चे को खिलाने के पहले हाथ धो लें
बच्चे को तैयार किया गया आहार ही दें
जन्म से एक माह के अंदर |
वी सी जी का टीका |
डेढ़ माह पर |
डी पी टी का पहला खुराक/पोलियो |
ढाई माह पर |
डी पी टी/पोलियो का दूसरा खुराक |
साढे तीन माह पर |
डी पी टी/पोलियो का तीसरा खुराक |
नौ माह पर |
खसरा का 1 टीका व विटामिन ए |
16 से 24 माह पर |
डी टी/पोलियो/विटामिन ए |
गर्भवती महिला के लिए
1. गर्भावस्था में शीध्रः-
टिटेनस टाक्साईड प्रथम खुराक
2. एक माह बादः-
टिटेनस टाक्साईड दूसरा खुराक
स्वास्थ्य को बनाए रखने में पोषण का विशेष महत्व है।
पोषण की कमी के परिणामः-
गर्भावस्था में:-
अधूरा शिशु जन्म, मृत शिशु के संभावना, शिशु में पोषण संबंधी विशिष्ट कमी।
शिशु में:-
शारीरिक वृद्धि व विकास में कमी, मानसिक विकास में कमी।
वयस्क में:-
वजन घटना, दुर्बलता, मांसपेशियों में कमजोरी, रक्त अल्पता, संक्रमण का जल्दी प्रभाव, आंतरिक अंगों की बिमारियॉ।
कुपोषण के सहायक कारणः-
1- जुडवा बच्चे का होना
2- जन्म के समय शिशु को दो किलोग्राम से कम वजन
3- जन्म से समय शिशु को मॉ का दूध नहीं मिल पाना
4- परिवार में अधिक बच्चे
5- 4 माह बाद शिशु को अतिरिक्त आहार शुरू न करना
6- बार-बार दस्त व निमोनिया अधिक होना
जन्म के तुरंत बाद, आधे घंटे के भीतर स्तनपान प्रारंभ करना और प्रथम छः माह के दौरान केवल स्तनपान कराना बच्चे तथा माता दोनों ही के लिए अत्यधिक उपयोगी होता है
स्तनपान शिशु का पहला टीकाकरण है। ये शिशु को गंभीर रोग एवं संक्रमण से बचाव का काम करता है
शुरू के पहले पीले गाढे दूध में रोग प्रतिरोधक शक्ति होती है
स्तनपान विटामिन 'ए' की कमी होने से बचाव करता है
मॉ का दूध शिशु के लिए पौष्टिक, संक्रमण रहित मांग पर आधारित आसानी से उपलब्ध सवौत्तम आहार है।
स्तनपान से मस्तिष्क को विकसित करने वाले आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं
स्तनपान के समय मॉ ओैर बच्चे की आपस की प्रतिक्रियाये बच्चे के सामाजिक, बौद्धिक, भावनात्मक एवं व्यक्तित्व विकास का आधार होती हैं।
स्तनपान का मतलब है बच्चे को जन्म से लेकर छह मात तक सिर्फ मॉ का दूध और उसके बाद 2 साल या अधिक उम्र तक मॉ के दूध के साथ कुछ अनुपूरक भोजन। यह बच्चे के पोषण का सबसे अच्छा तरीका है। यह बच्चे को उपयुक्त पोषण देता है, और बिमारियों से लडने की ताकत बढ़ाता है। यह मॉ और बच्चे के बीच प्यार बढाता है, और दो बच्चों के जन्म में अंतर रखने में भी सहायक होता है। स्तनपान कराने से मॉ, खून की कमी तथा स्तन कैंसर एवं गर्भाशय कैंसर से बचती है। गर्भ के समय गर्भाशय बड़ा हो जाता है और स्तनपान उस बढे गर्भाशय का प्रसवोपरान्त सिकोड़ने का काम भी करता है।
1. स्तनपान का आरम्भ
पैदा होने के साथ ही बच्चे को सुखाकर और पोछकर मॉ को सौंप देना चाहिए। प्रथम आधा धण्टा के अंदर ही बच्चे को मॉ के साथ शारीरिक स्पर्श होना चाहिए, तथा पहले धण्टे के अन्दर ही बच्चे को मॉ का दूध पिलाने की कोशिश करनी चाहिए। साफ करने के पहले ही मॉ का दूध पिलाना चाहिए। हल्दी दूध पिलाने के अनेक फायदे हैं जैसे किः-
पहले आधा से एक धण्टा में शिशु को चेतना एवं फुर्ती अधिक होती है।
शिशु की दूध चूसने की इच्छा पहले आधा धण्टे में अधिक तेज होती है।
जल्दी दूध पिलाने से माताऍ पहले 6 माह तक सिर्फ मॉ का दूध पिलाने की सम्भावना को बढाती है।
यह मॉ ओर बच्चे के बीच मानसिक संबंध एवं प्यार बढाता है।
जन्म के बाद होनेवाला मॉ का रक्त स्राव कम करता है।
यह पहला दूध गाढ़ा और पीले रंग का होता है, जिसे 'खिरसा' कहते हैं। यह खिरसा नवजात शिशु का पहला टीका है जो अनेक संक्रामक रोगों से बचाता है।
2. सिर्फ स्तनपान
पहले छः माह तक मॉ के दूध के अलावे बच्चे को कुछ भी नहीं पिलाने की प्रक्रिया को सिर्फ स्तनपान करना कहते है। इसका अर्थ यह है कि बच्चे को पानी, पानी मिश्री, पानी ग्लूकोज, दूसरा कोई आहार आदि कोई चीज नहीं देना चाहिए। यह सब बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है। डॉ0 की सलाह पर, जरूरत पडने पर, विटामिन या दवाई पिलाया जा सकता है।
याद रहेः-
गर्मी के मौसम में भी मॉ के दूध के अलावा पानी देना जरूरी नहीं है। पानी पिलाने से शिशुओं में दूध पीने की इच्छा कम हो जाती है जबकि पानी बीमारी का जड़ भी हो सकता है। दूसरा कोई भी पेय पदार्थ सफल स्तनपान में बाधक बन जाता है। मगर छः माह तक सिर्फ स्तनपान कराते रहने से बच्चों के मस्तिष्क का संपूर्ण विकास होता रहता है जिससे बच्चा तेज बृद्धि वाला हो जाता है।
इससे बच्चों मे छुआछुत रोग, दमा, एक्जिमा एवं अन्य एलर्जी रोग होने की संभावना की कम होती है।
इससे दो बच्चों के जन्म में अंतर रखने में मदद मिलाता है। स्तनपान परिवार को नियोजित रखने में सफल भूमिका अदा करता है।
यह माताओं में स्तन और गर्भाशय के कैंसर तथा खून की कमी के खतरे को कम करता है।
3. पूर्व आहार और चुसनी
स्तनपान शुरू कराने से पहले दिया जानेवाले कोई भी आहार एवं चुसनी को 'पूर्व आहार' कहा जाता है।
यह इसलिए नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकिः-
चीनी, पानी, शहद, मक्खन आदि दिये जाने से नवजात शिशु के बीमार पडने की आशंका रहती है। इससे बच्चों में स्तनपान की इच्छा कम होने लगती है। जिससे स्तनपान से होनवाले फायदे नहीं मिलते।
रबर के चुसनी से उपयुर्क्त आहार देने पर नवजात बच्चों में भ्रम पैदा होता है जिससे स्तनपान में सफलता नहीं मिली । बच्चों को रबर के चुसनी का और मॉ के स्तन का अलग-अलग अनुभव होता है।
4. स्तनपान के लिए सही स्थितिः-
शारीरिक स्थितिः मॉ को किसी भी स्थिति में आराम से बैठकर दूध पिलाना चाहिए। साथ-साथ उसे बच्चे को निहारते रहना चाहिए।
चुसने की स्थितिः
बच्चे को सही स्थिति में रखकर स्तनपान कराना चाहिए। मॉ को चुसनी और उसके चारों ओर के काला वाला भाग का अधिक से अधिक हिस्सा बच्चे के मुँह में जाय तथा बच्चे की ठुड्डी मॉ के स्तन पर टिकी रहे। बच्चे का मुँह पर्याप्त खुला रेहे ओर उसका निचला होट बाहर की ओर धूमा रहे। इससे बच्चे के मुँह में ठीक से दूध जाता रहता है और मॉ को दूध पिलाने के दौरान दर्द नहीं होता है।
सही स्थिति में रहने सेः-
यह स्तन में दर्द या सूजन की संभावना को कम करता है।
इससे बच्चे को पर्याप्त मात्रा में दूध मिलता है।
शारीरिक स्थिति
शरीर की सही स्थिति |
शरीर की गलत स्थिति |
मॉ बच्चे को निहारती रहे |
मॉ का ध्यान बच्चे से कहीं और है |
बच्चे का सिर और नाम सीधे में हो ओर बच्चे का शरीर मॉ की ओर धूमा हुआ हो। |
बच्चे का सिर और नाक सीध में नहीं होता है, जिसका सिर थोड़ा पीछे की ओर झुका रहता है। |
बच्चे का शरीर मॉ के स्तन से बिल्कुल सटा हो। |
बच्चे का शरीर मॉ की ओर धूमा हुआ नहीं हो। |
बच्चा पूरी तरह से मॉ की गोद में हो। |
बच्चा मॉ से लिपटा हुआ न हो। |
बच्चे और मॉ की ऑख आपस में मिली हुई हो। |
बच्चे का शरीर मॉ की गोद से बाहर की ओर लटका हुआ हो। |
|
मॉ की ऑखे बच्चे से दूर हो। |
चुसने की स्थिति
चुसने की सही स्थिति |
चुसने की गलत स्थिति |
बच्चे की ठुड्डी स्तन के बिल्कुल सटा हुआ हो। |
बच्चा थोड़ा हट के केवल भेटुआ ही चूस रहा हो। |
बच्चे का मुँह ज्यादा खुला हुआ है ओर इसका निचला होट बाहर की ओर धुमा हुआ हो। एरिओला (भेटुआ के चारों तरफ वाला काला हिस्सा) का ज्यादातर भाग बच्चे के मुँह के अंदर हो, उसका मुँह स्तन के बिल्कुल नीचे हो। |
बच्चे का मुँह ज्यादा खुला हुआ नहीं है। स्तन का ज्यादातर भाग बच्चे के मुँह सं दूर हो, जिससे एरिओला (काला वाला भाग) एवं दूध को नहीं भी बच्चे के मुँह से बाहर रह जाता हो। |
इस स्थिति में चूसने में भेंटुआ के आस-पस दर्द नहीं होता। |
बच्चे की ठुड्डी स्तन से दूर हो। |
|
इस स्थिति में चूसने से मॉ को दर्द हो सकता है। |
स्तनपान कराने से बच्चा कम बीमार पड़ता हे इससे परिवार को आर्थिक लाभ भी होता है।
5. शिशु की मॉग पर बार-बार दुध पिलानाः-
बच्चा जब भी मांगे उसे मॉ का दूध मिलना चाहिए। 24 धंटे में दस या बारह बार दोनों तरफ से दूध पिलाया जा सकता है। एक से डेढ घंटे में स्तन अपने आप दूध से भर जाता है। ओर 2-2 घंटे पर दूध पिलाया जा सकता है। हर बच्चे का दूध पीने का अपना तरीका होता है। जो बच्चा कम दूध पीता है उसे दूध पीने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए पर दूध पीने के लिए जबरजस्ती नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से मॉ अपने जुडवे बच्चों को भी दूध का पूर्ति कर सकती है। अगर मॉ बार-बार दूध पिलाएगी तो दूध की मात्रा अपने आप बढ जायेगी। मॉ को रात में अपना दूध पिलाना चाहिए, क्योंकिः
यह दूध की मात्रा बढाता है।
रात में भी अगर बच्चा दूध मांगे तो देना चाहिए क्योंकि रात में एक प्रकार का हॉरमोन मॉ के शरीर में पैदा होता है जो दूध की मात्रा को बढ़ाने का काम करता है, और इसमें मॉ को आराम भी होता है।
6. अनुपुरक खानाः-
कोई भी धरेलु खाना मॉ के दूध के साथ देने से बच्चे का सम्पूर्ण भोजन एवं संतुलित आहार बन जाता है। 6 माह के बाद, मॉ का दूध सम्पूर्ण पोषण के लिए काफी नहीं होता है।
अनुपूरक खाना/पोषण के सुझावः-
खाना देने के लिए छः माह सही वक्त है क्योंकि पोषण, तथा बच्चे का पर्याप्त ऊर्जा मॉ के दूध से सम्भव नहीं होता है।
अगर इसके पहले, अनुपूरक खाना दिया जाता है, जाता है तो यह विकास में किसी तरह का मदद नहीं करना है, पर मॉ के दूध का स्थान जरूर ले लेता है।
ऐसे बच्चे जिन्हें 6 महीने से पहले अनुपूरक भोजन मिला है, उनमें बीमारी 13 गुणा अधिक होती है।
अगर अनुपूरक खाना 6 माह के बहुत बाद आरम्भ होता है, तो या ऊर्जा एवं पोषण की जरूरतों में कमी लाता है।
कितनी बार अनुपूरक खाना देना चाहिए?
यह 6-9 माह तक 2 से 3 बार प्रतिदिन एवं 9-12 महीना तक 3 से 5 बार प्रतिदिन देना चाहिए।
कैसे खिलावें?
मॉ को कटोरी/कप चम्मच से शिशु को खिलाना चाहिए। 10-12 महीनों में बच्चे को स्वयं चम्मच पकड़ाना चाहिए।
7. सही अनुपूरक खाना
6 से अधि माह के बच्चे को उत्तम, स्वच्छ, पौष्टिक, पर्याप्त मात्रा में, ताजा खाना देना चाहिए, इस तरह वह घर के खाना के अनुकुलित हो जाता है।
पतले, अनुपूरक खाना दाल या अन्य से बने होना चाहिए तभी यह पोषण एवं ऊर्जा के लिए पर्याप्त होता है।
शुरू में एक या दो बार गीला खाना देना चाहिए धीरे-धीरे इसकी मात्रा एवं बारम्बारता बढ़ाना चाहिए। जो गीला खाना दिया जाता है, वो बच्चे को आसानी से पचता है, एवं उसमें अधिक ऊर्जा रहता है। पौष्टिक खाना जैसे की सुजी, दलिया, खीर, खिचडी,रागी, चावल, दूध के साथ मिलाकर दीजिए मात्रा एवं बारम्बारता बढाते रहिए। यह अन्न, धी, मक्खन या तेल के साथ मिला हो तो ज्यादा पौष्टिक होता हेै।
घर का खाना मॉ के दूध के साथ अगर मिलाया जाय तो उसे शिशु ज्यादा पसन्द करेगा एवं वह अधिक पौष्टिक भी जो जाएगा। शिशु को जबरन खाना नहीं खिलाना चाहिए। उसे अपने खाने देना चाहिए। उसे सिर्फ मदद एवं प्रोत्साहित करना चाहिए। इससे बच्चा अपने हाथ का इस्तेमाल करने में निपुण हो जाता है। खाने के समय उसे खाना का नाम सिखाना चाहिए, इससे उसका मानसिक विकास भी बेहतर होता है।
8 लम्बे समय तक स्तनपान
बच्चे को 2 साल तक उचित अनुपूरक खाना के साथ मॉ का दूध मिलना चाहिए। क्योंकि वह बच्चे काः-
ताकत बढ़ाता है
वजन भी उचित तरिके से बढ़ता है तथा शिशु को बीमारियों से बचाता है।
इस प्रक्रिया से मॉ के साथ अटूट और सशक्त रिश्ता बढाता है।
9. अगर मॉ धर के बाहर काम करती है तो
अगर मॉ धर के बाहर काम करती है तो उसे परिवार या समुदाय द्वारा पूर्णतः सहयोग किया जाना चाहिए, ताकि वे बच्चे को स्तनपान कराना जारी रख सके।
अगर उन्हें मातृत्व छुट्टी या दूध पिलाने का अवकाश मिलता हो तो स्तनपान कराने में कोई बाधा नहीं है एवं उसे सफलतापूवर्कक जारी रखा जा सकता है।
कार्यस्थल पर यदि बच्चों को रखने की सुविधा हो तो मॉ बच्चों को बीच-बीच में दूध पिला सकती है।
अगर ऊपर वर्णित सारी सुविधायें उपलब्ध नहीं हो तो मॉ अपने दूध को किसी साफ वर्तन में निचोड़ कर रख सकती है, जिससे उनकी अनुपस्थिति में परिवार का कोई आदमी बच्चे को दूध पिला सके। यह दूध ढंककर रखा जाना चाहिए।
छुट्टी के बाद जब माताऍ काम फिर से शुरू करें:-
काम पर जाने से पहले उन्हें बच्चे को दूध पिलाना जारी रखना चाहिए। काम से लौटने के बाद फिर उन्हें रात में ऐसा करना चाहिए।
माताऍ जब काम पर होती हैं उनके पास निम्नलिखित विक्लप होते हैः-
उन्हें नियमित अंतराल पर एक साफ बर्तन में अपना दूध निचोडते रहना चाहिए, ताकि इसका उपयोग बच्चे को देखरेख करने वाला/वाली घर पर कर सके। मॉ के दूध आठ घण्टे तक (कमरे के तापक्रम पर) खराब नहीं होता।
अगर रेफ्रीजिरेटर में रखा जाय तो यह 24 घंटे तक खराब नहीं होता है तो बच्चे की देख-रेख करनेवाले को यह निचोड़ा हुआ दूध करोटी में रखकर चम्मच से देना चाहिए। चुसनी के प्रयोग से बचना चाहिए।
अगर काम करने का स्थान घर से नजदीक हो तो वे स्तनपान, छुट्टी लेकर, अपने बच्चे को दूध पिला सकती है।
अगर काम करने के स्थान पर केश अथवा शिशु देख-रेख की सुविधा उपलबध हो तो वे अपने बच्चे को वहॉ रख सकती है। छुट्टी के दौरान वहॉ वे जाकर अपने बच्चे को दूध पिला सकती है।
अगर इनमें से कुछ सम्भव नहीं हो तो उन्हें अपना दूध निचोड़ना चाहिए। अच्छे दूध के प्रावह को कायम रखने के लिए स्तन से दूध को हटाते रहना चाहिए।
10. अगर मॉ अथवा बच्चा बीमार होः-
अगर मॉ बीमार हो तो स्तनपान सावधानी के साथ जारी रखा जा सकता है। डॉक्टर की सलाह के बाद ही उसे बन्द करना चाहिए। बच्चे को डायरिया होने पर भी मॉ का दूध फायदेमंद होता है।
स्तनपान के दौरान माताऍ जो दवा लेती है उनमें अधिकांश सुरक्षित होती है। मॉ का दूध वैसे बच्चे के लिए भी फायदेमंद होता है, जिसका जन्म नौ महीना से पहले हुआ हो अथवा कम बजन वाले हों। जो बच्चे छाती से लगकर दूध नहीं पी पाते हो उन्हें निचोड़ा हुआ दूध कटोरी चम्मच से ही पिलाना चाहिए।
11. विशेष परिस्थितियों में
मॉ के मर जाने की स्थिति में अथवा बच्चा गोद लेने की स्थिति में देख-रेख करने वाले को दूध पिलाने के विकल्पों के बारे में डॉक्टर से बात करनी चाहिए।
निष्कर्षः-
बी0पी0एन0आई0 प्रथम छः माह तक के बच्चे को सिर्फ स्तनपान कराये जाने की सलाह देता है इसे दो वर्ष या उससे अधिक समय तक जारी रखा जाना चाहिए। छः माह के बाद बच्चे को अनुपूरक खाना भी देना चाहिए। बच्चे के पालने-पोसने का यही सबसे उत्तम तरीका है।
स्रोत: ज़ेवियर समाज सेवा संस्थान, राँची|
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
इस भाग में कुछ परिवेशीय कारक के बारे में जानकारी ...
इस भाग में गर्भ काल के समय बाह्य उद्दीपनों (मधुर -...
इस भाग में गर्भकालीन विकास के विभिन्न प्रवृत्तियों...
इस भाग में गर्भ काल के दौरान जैविकीय एवं परिवेशीय ...