गर्भधारण करना एक नैसर्गिक प्रक्रिया है और माँ बनना तो प्रकृति का सर्वोत्तम उपहार। मां बनने की प्रक्रिया में महिला के शरीर में काफी परिवर्तन होते हैं और इस दौरान महिला की जरूरतें भी आम महिला से अलग हो जाती है। हर महिला की चाहत होती है मां बनना। साथ ही उनकी इच्छा रहती है कि गर्भावस्था और प्रसव के समय उसे परेशानियों का सामना न करना पड़े और वे एक स्वस्थ शिशु को जन्म दें। इसके लिये जरूरी है कि महिला व उसके परिवार वाले गर्भावस्था और सुरक्षित प्रसव को आसान बनाने के उपाय समझें। कुछ जानकारी के ज्ञान को अपनाकर गर्भवती महिला स्वस्थ शिशु को जन्म दे सकती है। सरकार ने सुरक्षित प्रसव के लिये संबंधित विभागों के माध्यम से कई योजना चला रखी है इसकी भी जानकारी से महिला को मिल सकता है सुरक्षित मातृत्व।
मासिक धर्म होने के लगभग दो सप्ताह बाद हर माह स्त्री के डिम्बकोश से एक डिम्ब बाहर आता है। यह डिम्बनाल से गुजरता है। इस बीच संभोग हुआ हो तो डिम्ब-नाल में ही कहीं यह पुरुष के शुक्राणु से मिलता है। शुक्राणु और डिम्ब के इस प्रकार मिलने से स्त्री को गर्भ ठहरता है।
गर्भिैत डिम्ब, डिम्बनाल से गुजरता हुआ गर्भाशय की ओर जाता है और उसकी अन्दरूनी झिल्ली से चिपक जाता है। यहॉं एक मोटा तथा स्पंज के समान लचीला अवयव बनता है। यह आंवल (प्लासेन्टा, बीज-अंडाशय ) कहलाता है। आंवल का एक सिरा गर्भाशय की अन्दरूनी दीवार से चिपका रहता है। दूसरा सिरा आंवल नाल से जुड़ा होता है। आंवल नाल, आंवल अर्भात प्लासेन्टा को विकसित होतु शिशु से जोड़ती है। गर्भ में लगातार बढ़ता शिशु भ्रूण कहलाता है। भ्रूण को एक पूरे शिशु में बदलने में 38 से 40 हफ्ते का समय लगता है। भ्रूण की सुरक्षा के लिए उसमें एक थैली होती है जिसमें पानी भरा हुआ होता है। बच्चा हर समय इसी पानी में नहाता रहता है।
गर्भावस्था के दौरान इस द्व्य पदार्थ के निम्न काम हैं :
प्रसव पीड़ा के समय यह तरल पदार्थ :
गर्भ में पल रहा शिशु लड़का होगा या लड़की, यह डिम्ब और शुक्राणु के मिलने के समय ही निर्धारित हो जाता है। दरअसल भ्रूण का लिंग इस बात पर निर्भर होता है कि स्त्री का डिम्ब पुरुष डिम्ब के किस प्रकार के शुक्राणु द्वारा गर्भित हुआ है।स्त्री और पुरुष दोनों के बीजों में एक प्रकार की धागे जैसी संरचनाऍं पाई जाती है। यह गुण सूत्र (क्रोमोसोम) कहलाती है। स्त्री के अंड डिम्ब में दो XX क्रोमोसोम पाए जाते हैं। पुरुष के शुक्राणु में एक X और एक Y क्रोमोसोम होता है। यदि डिम्ब को शुक्राणु से क्रोमोसोम मिलता है तो स्त्री X और पुरुष के द्वारा लड़का पैदा होता है। लेकिन पुरुष के शुक्राणु से भी X क्रोमोसोम मिला तो XX के मिलने से लड़की जन्म लेती है।
इसलिए बच्चे के लिंग निर्घारण के लिए पुरुष जिम्मेवार होता है, स्त्री नहीं। लड़का पैदा होने पर स्त्री को दोष देना या उसे बुरा-भला कहना उचित नहीं है।
पति का शुक्राणु पत्नी का डिम्ब
XY XX
XX लड़की XY लड़का
गर्भावस्था में स्वस्थ बने रहने के लिए स्त्री को चाहिए कि वह :
डॉक्टरी जांच व सलाह के लिए नियमित रूप से डॉक्टर/नर्स से मिलती रहें और लौह टिकियों व टिटनस से बचने वाले दो टीकों का कोर्स ले। टिटनस के टीके गर्भ ठहरने के बाद 16 से 36 सप्ताह के बीच लें एवं दोनों टीकों बीच 4 सप्ताह का अन्तराल रखें।
1. जी मिचलाना तथा कै होना |
गर्भ के शुरू में दो-तीन महीने तक यह समस्या लगभग सभी औरतों को होता है। तीसरे माह के बाद अपने आप ठीक होने लगती है। गर्भवती को चाहिए कि वह भर पेट भोजन करने की बजाए थोड़ा-थोड़ा करके कई बार भोजन करे।गर्भ के अन्तिम तीन महीनों में कै होना खतरनाक है। अगर ऐसा हो तो तुरन्त डॉक्टर को दिखाऍं।
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2. पेट व छाती में दर्द या जलन की शिकायत |
- थोड़ा-थोड़ा भोजन कई बार करने व ठंडा दूध पीने से इस कद्गट में आराम मिलता है। गर्भवती को चाहिए कि वह तला भुना और अधिक मसालों वाला भोजन न खाए। |
3. पैरों की सूजन |
पैरों पर सूजन आ जाए तो दिन में थोड़ी-थोड़ी देर के लिए कई बार पैर ऊपर रख कर आराम करना चाहिए। इसके अतिरिक्त खाने में नमक कम कर देने या बिना नमक खाना खाने से भी पैरों की सूजन में कमी आ जाती है।
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4. कमर के निचले हिस्से में दर्द |
गर्भवती को चाहिए कि वह बैठने व खड़े होने में कमर को बिल्कुल सीधा रखें। बिस्तर बहुत मुलायम व ढीला न हो। चौकी पर पतला गद्दा डालकर सोने से आराम मिलता है। कमर पर हल्के हाथ से हल्के गरम तेल की मालिश से भी आराम मिलता है।
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5. खून की कमी व कुपोषण |
गर्भवती औरत को संतुलित भोजन |
गर्भावस्था में देखभाल
गर्भावस्था में भोजन थोड़ा-थोड़ा कई बार में खाना चाहिये तथा मसाले एवं तेल का प्रयोग कम करना चाहिये। पानी अधिक पीना चाहिए। कई बार ऐसा देखा गया है कि ऐसी अवस्था में स्त्री के स्वाद में परिवर्तन हो जाता है तो स्त्री को अपने स्वाद के हिसाब से खाना चाहिए उसमें रोका-टेकी की आवश्यकता नहीं रहती।
(क) साधारण जॉंच
(ख) पेट की जॉंच
(ग) खून की जॉंच
(घ) मूत्र की जॉंच
(क) साधारण जॉंच
ऊॅंचाई नापना –
एक न्यूनतम ऊॅंचाई जो कि भारतीय परिवेद्गा में 145 सेमी. है से कम लम्बाई की महिलाओं के प्रसव में रूकावट और मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है इसलिए दाई को अपने पास 145 सेमी. की लम्बाई का डण्डा या छड़ रखनी चाहिए जिससे वह महिला की न्यूनतम लम्बाई का अन्दाजा लगा सके।
वजन नापना -
गर्भ के दौरान
औसत वजन वृद्धि - (10-12 किलो)
पहली तिमाही - |
अल्प या कुछ वृद्धि नहीं |
दूसरी तिमाही - |
1 किलोग्राम प्रति महीना |
तीसरी तिमाही |
1.5 से 2 किलोग्राम महीना |
गर्भावस्था के दौरान वजन अगर अचानक बढ़ जाए (3 किलो 2 महीने में) तो झटके की बीमारी होने का डर होता है। इसलिए 12 किलो से ज्यादा वजन नहीं बढ़ने देना चाहिए। ज्यादा वजन बढ़ने से पीठ और मांसपेशियों पर तनाव रहता है इससे रह-रह कर दर्द और कमजोरी, थकावट महसूस होती है व प्रसव के दौरान परेशानी भी हो सकती है।
3. रक्तचाप की जॉंच -
सही रक्तचाप - ऊपर वाला 100-120 मिमी (मिलीमीटर)
नीचे वाला 50-80 मिमी
ज्यादा रक्तचाप- ऊपर वाला 140 मिमी से अधिक
नीचे वाला 90 मिमी से अधिक
रक्तचाप नपवाएं -
1- प्रत्येक गर्भवती महिला को रक्तचाप महीने में एक बार अवश्य नपवाना चाहिए
2- कभी भी ज्यादा रक्तचाप मिलने पर 6 घंटे के विराम के बाद दुबारा नपवाएं।
यदि रक्तचाप दो बार या उससे अधिक बार ज्यादा आये तो उसे तुरन्त किसी नजदीकी अस्पताल भिजवा दें।
अधिक रक्तचाप की शंका -
(ख) पेट की जॉंच -
मॉं के पेट पर पहले किसी ऑपरेशन का निशान ।
(ग) खून की जॉंच -
यह जॉंच गर्भावस्था में खून की कमी जानने के लिए बहुत जरूरी है।
हीमोग्लोबिन की सामान्य सीमा - 10 से 12 ग्राम
असामान्य सीमा - 10 ग्राम से कम
असामान्य सीमा - 10 ग्राम से कम
रक्त का ग्रुप - आर एच धनात्मक या ऋणात्मक
(घ) मूत्र परीक्षण -
संक्रमण की भी जॉंच की जाती है।
यदि मां में निम्नलिखित लक्षणों में से कोई भी लक्षण पाया जाता है अथवा पहले गर्भ धारण के समय इनमें से कोई भी लक्षण रहा हो तो उसे प्रसव के लिए स्वास्थ्य केन्द्र् या सरकारी अस्पताल ले जाने की सलाह देनी चाहिये।
निम्न लक्षण होने पर तुरन्त रेफर करें
मरीज को भेजते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए
एक प्रसूति किट तैयार करें, जिसमें निम्न वस्तुएं होनी चाहिए -
प्रसव एक प्राकृतिक क्रिया है और यदि गर्भावस्था में कोई समस्या न हो तो बिना किसी सहायता के बच्चा पैदा हो जाता है, प्रसव समय में जितनी कम छेड़-छाड़ होगी उतनी ही आसानी से सब कुछ ठीक-ठाक हो जायेगा। प्रसव शुरू होने से कुछ समय पहले बच्चा गर्भाशय में नीचे की ओर सरकता है। प्रसव शुरू होने पर पहले थोड़ी से द्गलेद्गमा झिल्ली या म्यूकस बाहर निकलता है, जिसके साथ कभी-कभी थोड़ा खून भी लगा होता है तो मॉं को अचानक पेशाब की तरह नीचे से भींगने का अहसास होता है।
1- प्रसव को जल्दी कराने के लिए दर्द बढ़ाने का टीका न लगायें।
2- मॉं से कहें कि वह दर्द के शुरू में ही या दर्द के बीच में ही बच्चे को बाहर न धकेलें।
3- पेट पर जोर लगाना या बच्चे को धक्के से बाहर निकालने की कोद्गिाद्गा नहीं करनी चाहिए।
4- योनि को फटने से बचाने के लिए सिर को धीरे-धीरे ही बाहर निकालें।
5- अब ऑंवल बाहर आ जाये तो आंवल और झिल्ली पूरी है या नहीं यह देखिये यदि ऑंवल पूरी बाहर न आयी हो तो मां को तुरन्त अस्पताल भेजना चाहिए।
6- यदि बच्चा पैदा होने के बाद एक घंटे तक आंवल बाहर न आये और चाहे अधिक रक्तस्राव न भी हो रहा हो तो भी तुरन्त अस्पताल जाना चाहिए।
प्रसव के दौरान निम्न परेशानियाँ होने पर महिला को अस्पताल भेजें -
1- बच्चे के नाल, हाथ या पैर का योनि से बाहर आना।
2- किसी भी समय अत्यधिक रक्तस्राव होना।
3- महिला को झटके आना या दौरा पड़ना।
4- महिला के पेट में तेज दर्द या उल्टी के साथ देखने में परेशानी होना।
5- पानी की थैली फूटने के 12 घंटे बाद भी बच्चे का पैदा न होना चा दर्द का शुरू न होना।
6- प्रसव शुरू होने के 16 से 18 घंटे के बीच बच्चा पैदा न होना।
7- बच्चे का पेट में मल कर देना जिससे कि गहरे हरे रंग का पानी योनि द्वार पर दिखाई देता है।
8- बच्चे का घूमना बन्द हो जाना
9- बच्चे का सिर काफी समय से बाहर दिखाई देने पर भी बच्चा न पैदा होना।
बच्चा पैदा होने के एक घंटे बाद भी आवल न आये और चाहे खून न पड़ रहा हो तो भी मदद लेनी चाहिए।
प्रसव के बाद मॉं की देखभाल -
1- योनि को साफ करें तथा देखें कि अन्दर या बाहर कोई जखम तो नहीं है।
2- यदि जखम हो गया और खून ज्यादा पड़ रहा हो तो कपड़े का पैड रखकर कम से कम 5 मिनट तक दबाव डालिए। यदि फिर भी खून गिरना बन्द न हो तो महिला को अस्पताल भेजिए।
3- महिला के कमर के निचले हिस्से को पानी से धोएं, उसे अच्छी तरह सुखायें तथा साफ कपड़े पहनायें।
4- मॉं को साफ सुथरा कर योनि द्वार पर कपड़े का पैड बॉंधें और उसे गरम चाय या दूध पीने को दें।
5- बच्चे को तेल लगाकर साफ कर लें तथा नहलाकर कपड़े पहनाकर माूं के नजदीक करवट से लिटा दें।
6- प्रसव के बाद जल्दी से जल्दी मॉं से छाती धो कर दूध पिलाने को कहें और उसके हर 3 घन्टे में दूध पिलाने को कहें।
7- प्रसव के अगले दिन मॉं को जाकर देखें कि कहीं बुंखार तो नहीं है या अधिक खून तो नहीं जा रहा है। जरूरत होने पर उसे स्वास्थ्य केन्द्र् भेजें।
8- मॉं को पेट के बल लेटने को कहें तथा घुटना एवं छाती का व्यायाम करने को कहें।
9- इस समय मॉं को पौष्टिक आहार देना चाहिए क्योंकि वह बच्चे को दूध पिला रही है।
10-मॉं को कहें कि अपने बच्चे को टीकाकरण के लिए स्वास्थ्य केन्द्र् लें जाये और नियमित रूप से वजन भी लें।
निम्न बिन्दुओं पर ध्यान दें -
प्रसव उपरान्त भी एक हफ्ते तक मॉं एवं बच्चे की देखभाल करना।
निम्नलिखित बातें नहीं करनी चाहिए -
स्रोत: ज़ेवियर समाज सेवा संस्थान, राँची|
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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