डोम वाले मॉडल 2000 के निर्माण रख – रखाव एवं उपयोग के संबंध में मार्गदर्शन बिन्दु
1. संयंत्र को लगाने के लिए जगह उपलब्ध होनी चाहिए। संयंत्र के पास ही खाद के गड्ढ़े की भी जगह होनी चाहिए जिससे कि खाद को सही रूप में रख कर प्रयोग में लाया जा सके।
2. पानी के उपलब्धता संयंत्र के पास होनी चाहिए, जिससे कि गोबर का घोल सही रूप में बनाया जा सके। अकसर देखा गया है कि दूर से पानी लाने पर सही मात्रा में संयंत्र में पानी नहीं डाला जाता है।
3. पशुशाला भी संयंत्र के पास होनी चाहिए। जिससे गोबर को आसानी से उठा कर संयंत्र में डाला जा सकें। पशुशाला दूर होने पर संयंत्र को जितने गोबर की आवश्यकता होती है उतना गोबर लाने में ढिलाई बरतते है। डोम वाले संयंत्र निर्माण की जो विधि है, यदि उस विधि को हैं, यदि उस विधि को आज मिस्त्री नहीं अपनाते है तो ऐसे संयंत्र के खराब होने की संभावना बढ़ जाती है।
1. जिस परिवार में बायोगैस संयंत्र की स्थापना करनी है, यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उस परिवार की संयंत्र स्थापित करने में पूर्ण रुचि हो, क्योंकि देखा गया है कि किसी दबाव या प्रलोभन में जो संयंत्र बनाये जाते हैं, ऐसे संयंत्र व्यक्ति या परिवार की रुचि या उत्सुकता न होने के कारण कालान्तर बंद हो जाते है।
चिन्ह लगाना – जिस जगह पर संयंत्र को बनाना है उस जगह को समतल करके सफाई करनी चाहिए।
2. संयंत्र लगाने का चन्द्र निश्चित करके उस जगह एक लकड़ी की खूँटी या कील को लगा देना रस्सी या तार को अर्धव्यास के बराबर लेकर बीच में लगाईं हुई लकड़ी की खूँटी में बाँध देना चाहिए। अर्धव्यास के दूसरे सिरे पर दूसरी लकड़ी की खूँटी व कील को बांध कर जमीन पर गोलाई का चिन्ह बना देना चाहिए।
3. इसके उपरांत एक बड़ी रस्सी लेकर, गोले के बीच से दो भागों में बाँट कर लम्बा निशान लगा देना चाहिए, आउटलेट की ओर, ही खाद का गड्ढा बनाया जाता है। आउटलेट का पहला गड्ढा लगभग चौकोर होता है उसे चिन्हित कर देना चाहिए। आउटलेट की दूसरी कुण्डी जो कि गोल है, उसका नाप संयंत्र की क्षमता के अनुसार, एक गोल निशान लगा देना चाहिए। इन्लेट के लिए के फुट का चौकोर निशान (चिन्ह) आउटलेट के ठीक सामने लगा देना चाहिए। इन चिन्हों की सही खुदाई करने हेतु फावड़े से गहरा निशान लगा देना चाहिए।
4. इसी समय जमीन की ऊंचाई व निचाई को ध्यान में रखते हुए गड्ढे की गहराई को निकाल कर एक बांस पर आर. एक का चिन्ह देना जरूरी होता है, क्योकि इसी माप के अनुसार गड्ढे की खुदाई की जाती है। संयंत्र का लेवल आस – पास की जमीन से ऊँचा ही रखना चाहिए।
5. गड्ढे की खुदाई सीधे एक कूएँ की तरह होनी चाहिए। इनलेट की पाईप लगाने की खुदाई उसी समय पर देनी चाहिए। रेतीली या पत्थरीली जमीन की खुदान, माप से अधिक गुलाई में करनी चाहिए क्योंकि मिट्टी ढहने कर डर बना रहता है।
गड्ढे की खुदाई पूर्ण होने के बाद संयंत्र की तली की खुदाई जो कि कड़ाहीदार की जाती है, इस की खुदाई से पूर्व सर्वप्रथम खोदे गए गोल गड्ढे को, ऊपर से चार भागों में बाँट कर केंद्र बिन्दु को निकाल लेना चाहिए। इसी के साथ संयंत्र को भूमि के लेवल से कितना ऊँचा करना है, उस निर्धारित ऊंचाई तक भूमि के ऊपर ईंटों को रख कर चार पिलर बना देना चाहिए। इन पिलरों के ऊपर लम्बा बांस, बल्ली या तार को लगा कर केंद्र बिन्दु पर एक रस्सी बांध कर, रस्सी की लम्बाई आर. 2 के बराबर करके गड्ढे को आर, 2 के अनुसार ही पूरी की जाती है। इस रस्सी को चारों और घुमा कर खुदाई को चेक कर लेना चाहिए।
आउटलेट की पहली कुण्डी, जो चौकोर खोदी गई है, इसकी तली को डाइजेस्टर के कालर से 3 ईंच ऊंची ही रखनी चाहिए। खुदाई का कार्य पहले ही कर लेना चाहिए। बाद में खोदने से फाउंडेशन की रोडी पर मिट्टी गिरने का भय रहता है।
1) फाउन्डेशन बनाने के लिए जिस रोडी, मोटी बालू, सीमेंट का मसाला तैयार करना है, इस मसाले को बनाने के लिए, किसी पक्की जगह का चयन करना चाहिए। यदि पक्की जगह न हो तो ईंटों को बिछा कर पक्का फर्श बना लेना चाहिए।
2) यदि रोडी में मिट्टी मिली हो तो इसके के ऊपर पानी डाल कर मिट्टी को धो देना चाहिए।
3) मोती बालू, सीमेंट के मसाले को अलग से बना कर सूखा ही रोडी के चट्टे पर डाल कर थोड़ी – थोड़ी मात्रा में पानी डाल कर मिलना चाहिए। इस रोडी के मसाले का अनुपात 1:2:4 यानि एक भाग सीमेंट, दो भाग मोटी बालू एवं चार रोडी होना चाहिए।
4) जितनी मोटाई में रोडी का मसाला डालना हो उस की ऊंचाई के अनुसार गड्ढे में जगह – जगह पर मसाले से ठिये बना लेना चाहिए या फिर ईंट के टूकड़ों को भी रखकर ऊंचाई निकाली जा सकती है।
5) गड्ढे के अंदर रोडी डालने से पूर्व थोड़ी सूखी बालू को बिछा कर, पानी का छिड़काव करना चाहिए।
6) रोड़ी के मसाले को कभी भी गड्ढे के ऊपर से नहीं फेंकना चाहिए। ऊपर से मसाले को फेंकने से रोडी छिटक कर अलग हो जाती है।
सर्वप्रथम गड्ढे के बीच में लगभग 2 फुट की जगह में मिट्टी को डालकर बीच केंद्र के अनुसार ईंट द्वारा एक पिलर 9 ईंच X 9 ईंच का फाउन्डेशन की ऊंचाई तक नक्शे के अनुसार ही बना लेना चाहिए। संयंत्र के केंद्र बिन्दु पर बने पिलर पर एक 3 ईंच ता 4 ईंच की कील को अच्छी तरह से लगा देना चाहिए।
उपरोक्त कार्य के बाद फाउन्डेशन पर रोडी के मसाले को निर्धारित ऊंचाई तक डाला जाना चाहिए।
डाइजेक्टर की चिनाई कार्य के लिए एक बांस में कील को लगा कर जो कि आर. 1 के अनुसार बनाया जाता है, इसी बांस को सेंटर पिलर पर रख कर लगी हुई कील के बराबर फाउन्डेशन के कालर को निर्धारित ऊंचाई तक बना देना चाहिए।
फाउन्डेशन में रोडी डालने के बाद इस रोड को दुरमूट की मदद से हल्के हाथ से चारों ओर कुटाई कर देना चाहिए। कुटाई करने का कार्य उसी समय करना आवश्यक है। कुटाई के न करने से रोडी ठीक तरह से बैठती नहीं है। और फर्श की शक्ति कम हो जाती है।
फाउन्डेशन की ढलाई के साथ ही आउटलेट की पहली कुण्डी के फाउन्डेशन की भी ढलाई की भी कर दिन चाहिए। इस की ऊंचाई कालर से 3 ईंच ऊपर की ओर रखी जाती है।
डाइजेस्टर निर्माण को कार्य फाउन्डेशन की ढलाई के दूसरे दिन ही शुरू करते हैं। उसी दिन निर्माण करने में मजदूरों और राज मिस्त्री के मिट्टी पर चलने से ढलाई फट जाती है।
नोट – गड्ढे की खुदाई की जगह यदि भराई की हुई हो या पानी की सतह ऊपर हो, ऐसी जगह पर आर. सी. सी. का फाउन्डेशन बनाना चाहिए। 10 एम एम की सरिया से कालर के ऊपर से लेकर तली तक नाप के अनुसार चार रिंग बना कर सरिया का जाल रख ही रोडी को डालना उचित होता है।
1. चिनाई कार्य के लिए बांस का बनाना – डोम वाले बायोगैस संयंत्र के डोम का निर्माण कार्य बगैर ढूले के किया जाता है।
इस के डोम को बनाने के लिए केवल एक बांस का प्रयोग करते है। बांस को निम्नानुसार विधि के अनुसार तैयार किया जाता है।
एक सीधे पतले मजबूत बांस की आवश्यकता होती है, संयंत्र की क्षमता के अनुसार बांस पर आर. एक लम्बाई से 10 मि. मी. अधिक नाप लेकर एक कील 3 ईंच या 4 ईंच की लगा देनी चाहिए, कील से 4 ईंच आगे लम्बाई में बांस को काट चाहिए, इसी बांस को काट चाहिए, इसी बांस के पिछले भाग को थोड़ा छीलकर तैयार करते है
बांस को सावधानी पूर्वक बनाया जाता है। इसी बांस की सहायता से फाउन्डेशन कालर भी बनाते है। बांस को निर्माण कार्य शुरू करने के पहले ही तैयार कर लेना उचित है।
2. हुक – डोम वाले बायोगैस संयंत्र का डाइजेस्टर व डोम चूंकि बगैर ढूले के बनाया जाता है। हुक के पिछले भाग में एक रस्सी को बांध कर उस रस्सी के पीछे ईंट को बांधा जाता है।
डाइजेस्टर की चिनाई पर हर नै लगने वाली ईंट के ऊपर एक हुक को रोका जाता है। रस्सी में बंधी हुई ईंट डाइजेस्टर के पीछे की ओर लटका दी जाती है जो की ईंट पर दबाव बना कर झुकी हुई ईंट को रोकती है।
अ. 1 घ. मी. से 3 घ. मी. तक के संयंत्र के लिए 30 हुकों की आवश्यकता होती है।
ब. 4 घ. मी. से 6. घ. मी. तक के संयंत्र के लिए 40 हुकों की आवश्यकता होती है। प्रत्येक हुक के पीछे मीटर लम्बी रस्सी बाँधी जाती है।
3. अ. 1 घ. मी. से 3 घ. मी. तक डोम वाला बायोगैस संयंत्र की चिनाई 2.5 ईंच (75 एम एम) में खड़ी ईंट से की जाती है प्रथम श्रेणी के ईंट के साथ इस चिनाई कार्य के लिए 1:3 के अनुपात में सीमेंट और मोटी बालू (रेत) का प्रयोग करते है। 1 भाग सीमेंट 3 मोटी बालू (रेत)।
4. ब. 4 घ. मी. के संयंत्र की चिनाई 115 मि. मी. 4.5 ईंच की जाती है, प्रथम श्रेणी की ईंट के साथ इस चिनाई कार्य के लिए 1:4 के अनुपात में सीमेंट और मोटी बालू (रेत) का प्रयोग करते है। 1 – भाग सीमेंट = 4 भाग मोटी बालू (रेत)।
5. सीमेंट व बालू (रेत) के मसाले को पक्के फर्श पर ही बनाना चाहिए, यदि रेत में मिट्टी मिली हो तो उस को धोकर ही प्रयोग करना चाहिए।
6. मसाला ज्यादा बनाकर नहीं रखनी चाहिए, केवल इतना मसाला बनाये जिसका प्रयोग 3 या 4 घंटे में हो सके ज्यादा देर तक बने हुए मसाले की शक्ति कम हो जाती है।
7. जिस ईंट की तराई एक दिन पूर्व की गई थी उसी का प्रयोग करना चाहिए। ईंट को संयंत्र के पास मिट्टी पर नहीं रखना चाहिए, सीमेंट की खाली बोरी, लकड़ी आदि के तख्तों पर ही रखना चाहिए।
8. चिनाई का कार्य प्रारंभ करने से पूर्व फाउन्डेशन की तराई करके ही चिनाई का कार्य प्रारंभ करना चाहिए।
9. फाउन्डेशन के कालर पर सीमेंट पानी का घोल डाल कर ही मसाला लगाना चाहिए।
1. फाउन्डेशन के कालर पर कुछ भाग पर करनी से सीमेंट के मसाले को बिछा कर, इस के ऊपर एक ईंट के आर वन के बांस की सहायता से रख देना चाहिए, बांस का पिछला भाग सेंटर की कील पर रूकना चाहिए, और आगे की कील को अंदर की ओर करके ईंट को कील से मिला कर रखना चाहिए, ईंट के ऊपर जो कि डिब्बी का निशान या कम्पनी का नाम लिखा होता है उस भाग को डाइजेस्टर के पीछे की ओर रखा जाना चाहिए।
2. पहली ईंट के बाद जब दूसरी ईंट को बांस की सहायता से रखते है तो दोनों ईंटों के बीच में लगभग 1/2 ईंच की दूरी होना चाहिए, ईंट के ज्वाईंट में दोनों, और से मसाले को भरकर करनी से ईंट को बगल से ढक देना चाहिए, ऐसा करने से दोनों ईंट मसाले के साथ चिपक जाती है। यह कार्य प्रत्येक ईंट लगाने के समय करना अति आवश्यक है।
3. इस प्रकार जब एक लेयर (रदद्) पूरा हो जाये, तो दूसरी लाईन को उसी स्थान से शुरू करते हैं। जिस स्थान पर पहली लाईन की पहली ईंट लगाईं गई थी। दूसरी पर ही आउटलेट की पहली कुण्डी जो कि चौकोर है उसकी भी चिनाई 4 ईंच में करते जाना चाहिए, जिससे कि डाइजेस्टर की दीवार के साथ ही आउटलेट की दीवार जुड़ सके, इसी जगह से आउटलेट का गेट बनाना शुरू हो जाता है।
1. डाइजेस्टर, चिनाई जब 300 मि. मी. की ऊंचाई पर पहुँचने को होती है। उस समय इनलेट पाईप को रोकने के लिए, आउटलेट गेट के ठीक सामने डाइजेस्टर की चिनाई में एक ईंट की लम्बाई में रखकर आधी ईंट को डाइजेस्टर के अंदर की ओर बाहर निकाल कर लगा देते है। पाईप की लम्बाई आर. वन बांस पर कील होती है उससे 4 ईंच अधिक होती है इस बांस के बराबर पाइप को काट लेना चाहिए। पाईप को निकाली गई ईंट के किनारे पर रोक कर पाईप का स्लोप (ढलान) निकालते है।
डाइजेस्टर की पिछली ईंट से मिला कर एक बांस को साहुल की सहायता से सीधा खड़ा करके, संयंत्र के ऊपरी लेवल से बांस से पीछे की ओर 450 मि. मी. की दूरी लेकर पाईप को मजबूती के साथ लगा दिया जाता है, इस प्रकार पाईप का स्लोप (ढलान) निकाला जाता है। इस पाईप को डाइजेस्टर की चिनाई के बीच में दबाते हुए चिनाई करते जाना चाहिए।
2. यदि शौचालय को भी संयंत्र के साथ जोड़ना हो तो इसी पाईप के बराबर थोडा सा हट दूसरा ए सी पाईप भी लगा देते हैं, शौचालय के पाईप की लम्बाई लगभग 1 फूट से अधिक रखी जाती है।
3. इनलेट और शौचालय के पाईप को हमेशा ही आउटलेट के गेट के सामने ही लगाया जाता है पाईप को इधर – उधर लगाने से एच. आर. टी. प्रभावित होता है। जिसका प्रभाव गैस उत्पादन पर पड़ता है।
1. डाइजेस्ट की चिनाई आगे की ओर करते समय आउटलेट के गेट को छोड़ते हुए आउटलेट के पहले पिट की चिनाई साथ ही करते रहते है।
2. दूसरे दिन चिनाई प्रारंभ करने से पहले सर्वप्रथम तराई का कार्य करना चाहिए, इसके पश्चात डाइजेस्टर के बाहरी भाग पर 1:4 (एक भाग सीमेंट और चार भाग रेत) के मसाले से प्लास्टर किया जाता है, इसके उपरांत ही उसी विधि से डाइजेस्टर की चिनाई करते है।
1. गेट आर्च लगाने के लिए 75 मि. मी. (3 ईंच) डाइजेस्टर की दीवार को नीचे रखकर गेट को ढूला बनाया जाता है। गेट की दोनों दीवारों से मिलाकर ढूले के लिए ईंटों को रख देते है। ईंटों के थोड़े से भाग को डाइजेस्टर के अंदर की ओर निकाल कर रखते है। इन ईंटो के ऊपर एक लकड़ी का छोटा तख्ता या बांस के टुकड़े रखकर कुछ ईंटों की टुकड़े गीली मिट्टी से कुछ गोलाईदार यानी तीर कमान की तरह ढूला तैयार किया जाता है। इस ढूले की ऊंचाई मानचित्र के अनुसार बीच से नापी जाती है। इस ढूले के ऊपर थोड़ी सी बालू (रेत) को डाल देना चाहिए।
आर्च लगाने के लिए गेट के दोनों ओर की दीवारों एक ईंट को कुछ तिरछा काट कर हुक की सहायता से लगा देना चाहिए, आर्च लगाने के लिए 1:3 का मसाला प्रयोग किया जाता है, और आर्च लगाने में ईंट के आद्धों का प्रयोग करना चाहिए, इन आद्धों को खड़ा करके लगाते है, अद्धों के ऊपर मसाला लगा कर जो डाइजेस्टर की दीवार पर कुछ पीछे हटाकर तिरछी ईंट लगाई गई थी उससे मिलाकर लगा देना चाहिए। इस प्रकार गेट के दोनों ओर जो ईंट लगाई जाती है इस ईंट का निचला भाग लगभग एक ईंच डाइजेस्टर की दीवार पर रूकना चाहिए। इन ईंटों को लगाने के लिए बांस का प्रयोग करते है, इसी विधि से दोनों और एक – एक ईंट रखते रहते है और प्रत्येक ज्वाईंट में करनी से मसाले की भराई करते रहना चाहिए। प्रत्येक ईंट के ऊपर हुक लगा दिए जाते हैं जो कि आगे की ओर झुकने वाली ईंट को रोके रहते है।
इस उपरांत डाइजेस्टर की चिनाई का कार्य करना चाहिए, प्रत्येक ईंट के ऊपर हुक को लगाना चाहिए ईंट के ज्वाईंट में मसाला भरने के बाद ईंट के ऊपर और किनारे से करनी पर लगे लकड़ी के बेंट से ठोकने बाद हुक को लगाना चाहिए। हुक लगाने के बाद ही बांस को निकालकर दूसरी लगने वाली ईंट पर लगा देना चाहिए।
समय – समय पर डाइजेस्टर को चारों ओर घूमकर भी देखते रहना जरूरी है। यदि ईंटों के ज्वाईंट पर क्रेक आ रहा हो तो चिनाई को रोक देना चाहिए, और केक के स्थान पर थोड़ा पानी डाल कर करनी से दबा देना चाहिए।
डाइजेस्टर के पिछले भाग पर जो प्लास्टर किया जाता है उसकी चिनाई का कार्य एक दिन पूर्व होना चाहिए। यह प्लास्टर केवल आउटलेट के गेट आर्च से नीचे तक करते है। इसके ऊपर का प्लास्टर डोम को बंद करने के बाद ही किया जाता है। ऊपरोक्त विधि के अनुसार डोम की चिनाई करते हुए जब लगभग 600 मि. मी. (2’ – 0’) का भाग रह जाता है उसको एक ढूला बनाकर बंद करते है।
एक दिन पूर्व जो डोम का ऊपरी भाग लगभग 600 मि. मी. की गोलाई में खुला छोड़ा गया था उस को बंद करने के लिए संयंत्र के अंदर एक छोटा ढूला बनाया जाता है। इस कार्य के लिए लकड़ी को तख्ते या बांस के टुकड़े से लगभग 700X700 मि. मी. की एक चौकार चाली बनाई जाती है। इस चाली को डाइजेस्टर के अंदर चार बांस की टेक लगाकर खुले हुए भाग से मिला कर लगा दिया जाता है। इस चाली के ऊपर कुछ गीली मिट्टी को रख कर कुछ सूखी मिट्टी डालकर डोम को गोलाई के अनुसार बना दिया जाता है। मिट्टी के ऊपर बालू को डाल देना चाहिए।
गैस आउटलेट पाईप को इस विधि के अनुसार बनाकर तैयार करना चाहिए, 50 मी. की दूरी तक के लिए ½ ईंच व्यास का 7 ईंच लम्बा वी क्लास की जी. आई. पाईप पर दोनों ओर चूड़ियाँ काट कर बनाना चाहिए। ½ ईंच के दो सोकेट लेकर एक सोकेट पर नीचे की ओर आमने सामने दो लोहे की सरिया के 3 ईंच लम्बे टूकड़ों को 75 को पर वेल्डिंग करके जोड़ देना चाहिए, इस सोकेट को पाईप पर कस देना चाहिए। सरिया को ऊपर की ओर रखना चाहिए, दूसरे सोकेट को पाईप के दूसरी ओर कसना चाहिए।
डोम को बंद करने के लिए ईंट के टुकड़े (आद्धों) का प्रयोग किया जाता है, ढूले के ऊपर ईंट के टूकड़ों को ½ ईंच की दूरी पर रखा जाता है डोम के बीच में गैस आउटलेट पाईप को बैल्डिंग किये हुए सोकेट के साथ ईंटों के बीच में सीधा लगा देना चाहिए।
डोम को बंद करने के लिए 1:3 का मसाला कुछ पतला तैयार किया जाता है। इस मसाले को डोम के ऊपर डाल कर करनी की सहायता से ईंट के प्रत्येक ज्वाईंट में अच्छी तरह से भर देना चाहिए।
डोम को बंद करने के बाद निम्नलिखित कार्य करके प्लास्टर करना आवश्यक है।
1. डोम के ऊपर चिनाई करते सी जो सीमेंट ईंटों के बाहर निकल आता है। उसको करनी से काट कर हटा देना चाहिए।
2. डोम को झाड़ू से झाड कर साफ कर देना चाहिए।
3. डोम को पानी से साफ कर देना चाहिए।
4. सीमेंट पानी का घोल डोम के ऊपर डालना चाहिए।
5. 1:4 के मसाले से डोम के ऊपर पहला कोट प्लास्टर ½ ईंचे (10 मि.मी.) की मोटाई में लकड़ी के रूसे सर दबा कर अच्छी तरह करना चाहिए। इस प्लास्टर को गेट की आर्च के नीचे तक पहले दिए गये प्लास्टर को थोड़ा काटकर करना चाहिए ताकि ज्वाईंट न आ सके।
6. दूसरे दिन सुबह डोम के ऊपर दूसरा कोट प्लास्टर करने के लिए सर्व प्रथम पानी से तराई करने के बाद, सीमेंट पानी का घोल डालकर 1:2:3 (एक भाग सीमेंट 2 भाग बालू (रेत) 3 भाग मोटी बालू) के मसाले से ½ ईंच (10 म.) की मोटाई में रफ प्लास्टर किया जाता है, इस को केवल करनी से ही करते है, इस प्लास्टर में रूसे का प्रयोग नहीं करते है। यह दूसरा कोट प्लास्टर की हवा व धुप से सुरक्षा करता है।
आउटलेट की पहली कुण्डी जो कि चौकोर है उसकी ऊंचाई मानचित्र के अनुसार होने पर, दूसरी गोल कुण्डी के लिए फाउन्डेशन की ढलाई भी गोल आकार में, डोम के साथ मिलाकर की जाती है, इसकी मोटाई 75 मि. मी. 3 ईंच रखी जाती है।
इसको गोल बनाने के लिए पहली कुण्डी की पिछली दीवार पर मध्य बिन्दु को निकालकर एक कील को लगा कर जाम कर देना चाहिए।
जिस प्रकार संयंत्र का डोम बनाने के लिए आर. वन का बांस बनाते है इसी प्रकार एक बांस आर – 3 के अनुसार बनाकर (मानचित्र के अनुसार) डोम की चिनाई की तरह आउटलेट की दूसरी कुण्डी का निर्माण किया जाता है, जिसको बंद करने के लिए एक ढक्कन को बनाया जाता है।
घोल कुण्डी का गोलाई में फाउन्डेशन बनाते समय इनलेट पाईप तक नाली बनाने के लिए भी 1 फीट – 6 ईंच – 9 ईंच की ढलाई साथ ही कर दी जाती है। डोम वाले घोल कुण्डी की दीवार गोलाई में 75 मि. मी. (3 ईंच) में खड़ी ईंट द्वारा बनाई जाती है। घोल कुण्डी में इनलेट पाईप की आकार एक 150 X 150 मि.मी. का खुला सुराख छोड़ा जाता है। इस सुराख से इनलेट पाईप तक एक नाली 250 मि. मी. (9 ऊंचाई) की बनाई जाती है घोल कुण्डी और नाली को जोड़ पर सुराख को बंद करने के लिए लकड़ी की पट्टी लगाने के लिए एक खांच बना दिया जाना चाहिए।
घोल कुण्डी की तली के बीच में एक सोकेट को जाम कर देते है। घोल कुण्डी के ऊपर आमने – सामने 6 ईंच लम्बू 3 सूत के दो बोल्ट भी जाम कर देना चाहिए, इस पर गोबर घोल का पंखा भी लगाया जा सकता है।
1. तीन चार दिन पूर्व जो ढूला डोम बंद करने के लिए बनाया गया था। सर्व प्रथम आउटलेट के गेट से अंदर जाकर इसको हटा देना चाहिए। ढूले में प्रयोग होने वाले सामान को आउटलेट से बाहर निकाल कर झाड़ू की सहायता से अंदर सफाई करनी चाहिए।
2. पानी से अंदर तराई करने के बाद सीमेंट पानी का घोल आउटलेट गेट की आर्च से ऊपर की और लगाना चाहिए।
3. डोम के अंदर प्लास्टर करने के लिए 1:3 (एक भाग सीमेंट तीन भाग बालू रेत) का मसाला प्रयोग में लाते है इस प्लास्टर कार्य को गेट आर्च से ऊपर की और पूर्ण डोम में किया जाता है। इस प्लास्टर को दबाकर अच्छी तरह करने के लिए लकड़ी के गोल से प्रयोग करते है। प्लास्टर कार्य पूर्ण होने के तुरंत बाद सीमेंट की पॉलिश करना चाहिए, पॉलिश के लिए सीमेंट में थोड़ा पानी डालकर पेस्ट की तरह बनाकर छोटी करनी की सहायता से करना चाहिए।
4. दूसरे दिन डाइजेस्टर और फर्श का प्लास्टर कार्य उपरोक्त विधि के ही अनुसार पूर्ण किया जाता है। इस प्रकार एक मिस्त्री द्वारा अंदर का प्लास्टर जो की बहुत महत्व है दो दिन में किया जाता है। इस प्रकार एक मिस्त्री द्वारा अंदर का प्लास्टर जो की बहुत महत्व पूर्ण है दो दिन में किया जाता है। कटफावड़ी को आउटलेट के कुछ गोबर का घोल पास में पहले से चल रहे किसी भी संयंत्र के आउटलेट के कुछ गोबर का घोल निकाल कर संयंत्र में डाल दिया जाये तो गैस का उत्पादन जल्दी शुरू हो जाता है। जैसे – जैसे संयंत्र में गैस बनती जाती है वैसे – वैसे आउटलेट की दूसरी कुण्डी में गोबर का घोल ऊपर की ओर बढ़ता जाता है। जब गोबर निकास द्वार तक पहुँच जाए उस समय संयंत्र पर लगे हुए गेट वाल्व को खोलकर गैस को बाहर निकाल देना उचित है, क्योंकि इसमें जलने वाली गैस के साथ कुछ और भी गैसे व हवा की मात्रा अधिक होने पर यह जलती नहीं है।
गैस समाप्त होने पर घोल का लेवल जब कुण्डी के फर्श पहुँच जाए तब फिर गेट वाल्व को बंद कर देना चाहिए एक दो दिन में जब फिर लेवल ऊपर आ जाए, तब गैस प्रयोग के लिए तैयार है।
डोम वाले बायोगैस संयंत्र की तकनीक तथा इसका संचालन लाभार्थियों के लिए आसान तथा साधारण है। डोम वाले बायोगैस संयंत्र का निर्माण कार्य स्थानीय साधन द्वारा संयंत्र मालिक की आँखों के सामने ही किया जाता है।
इसलिए यह आवश्यक है कि संयंत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए इसके रख – रखाव की पूर्ण जानकारी होने पर संयंत्र का पूर्ण लाभ लिया जा सकें।
1. संयंत्र की क्षमता के अनुसार गोबर पानी का घोल (1:1) यानि (गोबर के बजन के बराबर पानी) अवश्य ही डाले।
2. गोबर को एकत्रित करते समय ही गोबर से कंकड़, पत्थर मिट्टी, रेट व अन्य ठोस पदार्थों को अलग कर देना चाहिए। अन्यथा उक्त पदार्थ संयंत्र की सतह में एकत्र होकर डाइजेस्टर की जगह को कम देते है।
3. गोबर का घोल बनाते समय ही घोल कुण्डी से पत्ते चारा अन्य बेकार वस्तुओं को बहार निकाल देना चाहिए। ऐसे पदार्थ संयंत्र के अंदर जाकर गोबर घोल की ऊपरी सतह पर जमा कर पपड़ी बना देते हैं, जिस का प्रभाव गैस के उत्पादन पर पड़ता है।
4. गोबर के घोल संयंत्र में डालने के बाद जो मिट्टी रेत, घोल कुण्डी की सतह में बैठ जाती है। उसका घोल कुण्डी के पिछले सुराक से पानी द्वारा धोकर बाहर निकल देना चाहिए।
5. ऐसे पदार्थ संयंत्र के अंदर जा कर संयंत्र की सतह में बैठ जाते है। और धीरे – धीरे डाइजेस्टर की जगह को कम कर देते है।
6. गेट वाल्व को केवल उसी समय खोलना चाहिए जब गैस का उपयोग करना हो। रात के समय कार्य समाप्त होने पर गेट बाल्व को बंद देना चाहिए।
7. गैस चूल्हे पर रेगुलेटर (नोव) को उसी समय खोलना चाहिए। जब भोजन की साडी तयारी कर ली जाये, माचिस भी पास होनी चाहिए।
8. गैस चूल्हे पर लगे रेगुलेटर को आधा खोल कर तुरंत माचिस लगाना चाहिए। फिर आवश्यक अनुसार गैस को खोलिए।
9. लैम्प जलाने के लिए भी पहले गैस को खोल कर तुरंत माचिस लगाना चाहिए। यदि पहले माचिस लगाकर गैस खोल जायेगा तो लैम्प पर लगा मेंटिल टूट जायगा।
10. भोजन पकाने के बाद प्रतिदिन गैस चूल्हे की अवश्य सफाई करे।
11. खाद के गड्ढे के ऊपर, घर और पशुपालन का झाड़ा हुआ कूड़ा डाल कर ढक देना चाहिए, उस प्रकार अच्छा कम्पोस्ट तैयार होता है।
12. भोजन पकाने के बाद गैस रेगुलेटर को अच्छी तरह बंद करना चाहिए।
1. आउटलेट के ढक्कन को हटा कर एक लम्बे बांस की खटपावडी से गोबर की ऊपरी साथ पर जमी हुई पपड़ी को तोड़ देना चाहिए और डाइजेस्टर के अंदर भी ऊपरी व बीच के भाग में बांस को डालकर गोबर के घोल को हिला देना चाहिए।
2. गेट वाल्व, चूल्हे लैम्प के नोजिल एवं पाईप लाईन के प्रत्येक ज्वाईंट पर सर्फ साबुन का घोल डालकर लीकेज को देखना चाहिए, यदि किसी स्थान से गैस का रिसाव हो तो तुरंत ठीक किया जाये।
3. वाटर रिमूवर (पानी निकास)को खोल कर जमे हुए पानी को बाहर निकाल देना चाहिए। पाईप लाईन में पानी होने पर गैस सही प्रकार से जलती नहीं है।
4. गेट वाल्व, चूल्हे पर लगे कार्क एवं लैम्प को खोलने व बंद करने के स्थान पर कुछ तेल डाल देना चाहिए ऐसा करने से घिसावट से बचा जा सकता है।
5. आउटलेट टैंक में स्लरी निकास द्वारा को साफ व खुला रखें जिससे स्लरी आसानी से प्रतिदिन खाद के गड्ढे में जा सकें।
6. माह में एक बार संयंत्र से वाल्व को खोल कर पूरी गैस बाहर निकाल कर आउटलेट टैंक को स्लरी स्तर जरूर चैक करना चाहिए, यदि संयंत्र से गैस समाप्त होने के बाद, स्लरी दूसरे बड़ी गोल कुण्डी में रह जाती है इस बड़ी स्लरी को एक बाल्टी की सहायता से बाहर निकाल देना चाहिए। इस कार्य के ऊपरांत गेट वाल्व को बंद कर देना चाहिए।
7. जिस समय गोबर घोल को बाहर निकाले उस समय गेट वाल्ब को खुला रखना चाहिए। उपरोक्त क्रिया को करने से गैस अधिक प्राप्त होती है।
8. गैस चुल्हे पर रेगुलेटर के पीछे लगे एयर इंजेक्शन (गोल पहिये) को नियंत्रण करने से हवा व गैस का मिश्रण सही करने से नील रंग की लौ प्राप्त हो जाती है।
9. चुल्हे व लैम्प को खोल कर गर्म पानी से धोना चाहिए, बर्नर के सुराखों को साफ कर देना चाहिए, गैस इंजेक्शन के अंदर हुई की सहायता से जमे हुए कार्बन को भी साफ़ कर देना चाहिए।
1. पाईप लाइन और उपकरणों में कहीं गैस व पानी तो नहीं निकल रहा है यह चैक करना चाहिए।
2. यदि कोई उपकरण या यंत्र ख़राब हो गया हो तो उसकी मरम्मत कर देनी चाहिए।
3. जो उपकरण काम लायक न हो उसको बदल देना चाहिए।
4. गेट वाल्व खोलकर सभी गैस को संयंत्र से निकाल देनी चाहिए। इसके बाद गोबर घोल निकलने वाली कुण्डी में स्लरी के स्तर को देखना चाहिए, यदि स्लरी का स्तर निकलने वाली कुण्डी के नीचे आर्च के ऊपर हो तो ज्यादा स्लरी को निकाल कर उसका स्तर कार्य आर्च तक (दूसरों फर्श) कर देना चाहिए।
1. संयंत्र को अंदर से पूरा खाली देना चाहिए और उसके तह (तली) में बैठा हुआ अकार्बनिक तत्व तथा फर्श की सतह को साफ कर देना चाहिए।
2. गैस पाइप लाईन की पूरी जाँच कर लेना चाहिए। जिससे गैस निकलने (लीकेज) की कहीं पर कोई संभावना न रहे।
3. पाचित्र (डाइजेस्टर) से पानी लीक करने की संभावना न हो, इसकी जाँच कर लेनी चाहिए।
4. गैस संग्रह और डोम से गैस लीक करने की संभावना की जा जाँच कर लेनी चाहिए।
5. संयंत्र को पुनः ताजे गोबर के घोल से भरना चाहिए। डोम के अंदर (काले एनामिल पेंट से पेंटिंग करना चाहिए)
1. संयंत्र का साइज क्या हो इसका निर्णय, संयंत्र मालिक के पास कितने पशु है तथा उनसे वास्तव में एक दिन में कितना गोबर प्राप्त होता है, उसके अनुसार किया जाना चाहिए।
2. जहाँ तक संभव हो यह प्रयास होना चाहिए कि संयंत्र लगाने की जगह रसोई और पशुपालन से नजदीक हों।
3. संयंत्र को खुले स्थान पर ही बनाना चाहिए। जहाँ पूरे दिन में अधिक समय तक सूर्य की गर्मी मितली रहे। यह स्थिति वर्षभर रहनी चाहिए।
4. पचित्र (डाइजेस्टर) के बाहर वाली दीवार के साथ की मिट्टी को भली भांति बैठा देना चाहिए जिससे वह खूब मजबूत हो जाये।
5. गोबर और पानी को सही अनुपात में अच्छी तरह मिलकर ही संयंत्र में डालना चाहिए। एक भाग जानवरों का गोबर और एक भाग पानी वजन के अनुसार मिलकर मिश्रण तैयार करना चाहिए।
6. ध्यान रहे कि गोबर घोल (पानी और गोबर का मिश्रण) में मिट्टी या बालू (रेत) नहीं आने पाए।
7. कम गैस से और बिना परेशानी के खाना बनाने के लिए सही प्रमाणित गैस चूल्हे और गैस लैंप का ही उपयोग करे।
8. गैस कॉक को उसी समय खोले जब इसका प्रयोग करना हो।
9. गैस चूल्हे पर रेगूलेटर के पिछले भाग पर लगे एयर इजेक्टर के पहिए को घुमाकर इस प्रकार सही स्थिति में लाये की नीले रंग की लौ निकलने लगे। यही वह सही स्थिति है, जब अधिकतम आग (ताप) मिलती है।
10. गैस कॉक खोलने से पहले माचिस की तीली जलाकर रखे।
11. निकलने वाले टैंक (आउटलेट के मेन होल) को लकड़ी, पत्थर या सीमेंट के ढक्कन से बंद रखना चाहिए।
12. समय – समय पर निकास कुण्डी (आउटलेट टैंक) में गोबर (स्लरी) के लेवल को चैक करना चाहिए। बढ़े हुए लेवल की स्लरी को बाहर निकाल देना चाहिए।
1. यदि आप के पास आवश्यकतानुसार पशुओं की संख्या या गैस उत्पादन के लिए उपयोग होने वाली अन्य सामग्री नहीं है तो कभी भी बड़े साईज का संयंत्र नहीं लगाना चाहिए।
2. गैस पाईप की लागत कम रखने एवं देख – रेख में असुविधा न हो संयंत्र को रसोईघर से बहुत दूरी पर नहीं लगाना चाहिए।
3. गैस संयंत्र को वृक्ष के नीचे घर के अंदर या किसी भी छाया वाले स्थान पर नहीं लगाना चाहिए।
4. पाचित्र (डाइजेस्टर) के चारों ओर मिट्टी को ढीला नहीं रखना चाहिए, इससे पाचित्र को नुकसान हो सकता है।
5. गोबर व पानी की मात्रा जितनी होनी चाहिए उससे अधिक या कम मत रखिए क्योंकि ऐसा करने से गैस उत्पादन की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
6. पाचित्र (डाइजेस्टर) के अंदर मिट्टी, बालू (रेत) के अंदर नहीं जाने देना चाहिए।
7. पाचित्र (डाइजेस्टर) के अंदर इस्कम तैरने वाला पदार्थ नहीं बनने देना चाहिए। इससे गैस उत्पादन बंद हो जाता है
8. गैस पाईप से गैस को सीधा कभी भी नहीं जलाना चाहिए व चाहे परिक्षण के लिए ही क्यों न हो, क्योंकि वह कभी भी जान लेवा साबित हो सकती है।
9. गैस चूल्हे को खुले स्थान में नहीं जलाना चाहिए क्योंकि इससे लौ की आग में काफी कमी हो जाती है।
10. जब गैस का उपयोग न हो रहा हो तो गैस कॉक को खुला नहीं छोड़ना चाहिए।
11. यदि गैस की लौ पीली हो या ज्यादा वह आने से ठीक प्रकार नहीं जल रही हो ऐसी स्थिति में एयर इंजेक्टर को घुमाकर सही करना चाहिए ताकि लौ नीली रंग की हो जाये।
12. गैस पाईप में पानी की कभी इकट्ठा नहीं होने देना चाहिए। अन्यथा इससे गैस इ जितना दबाव होना चाहिए उतना नहीं होगा। फलस्वरूप लौ में फकफकाहट की आवाज होगी।
13. खाद के गड्ढे में गहराई 1 मीटर (3 फीट) से अधिक नहीं रखनी चाहिए।
14. बायोगैस को कभी सूंघना नहीं चाहिए क्योंकि यह स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक है।
15. जब नए संयंत्र में गोबर घोल भरा गया हो तो गैस को उपयोग करने के लिए बहुत जल्दी नहीं करना चाहिए क्योंकि गैस बनने में 10 से 25 दिन तक लग जाते है।
1. बायोगैस गैस संयंत्र के फेल होने के मुख्य कारण
अ. तकनीकी खामियां
ब. संयंत्र के रख – रखाव में कमियां
स. संयंत्र को सुचारू रूप से चलाने की जानकारी नहीं होना।
2. बायोगैस संयंत्र की कमियों को निराकरण
3. पाइपलाइन, चूल्हा, लैम्प का रख - रखाव
4. गोबर व गोबर घोल की सावधानियां
5. डोम से गैस रिसाव की जाँच करने की विधि
6. डोम की मरम्मत करने के कार्य
7. संयंत्र को सुचारू रूप से चलाने की जानकारी देना
8. ऐसा न करें
9. बायोगैस प्लांट की सफलता के कारण
10. बायोगैस संयंत्र को खाली करने की विधि
11. प्रतिदिन कम गोबर डालने से संयंत्र के अंदर निम्नलिखित कमियां उत्पन्न हो जाती है।
12. सावधानियां
13. तुलनात्मक लागत।
14. विभिन्न क्षमताओं के बायोगैस संयंत्र की लागत व रेखाचित्र
अभी तक भारत वर्ष में बहुत से बायोगैस संयंत्रों के निर्माण कार्य हो चुका है। लेकिन इनमें कुछ संयंत्र सुचारू रूप से कार्य नहीं कर रहे है। ऐसे संयंत्रों से पूर्ण लाभ प्राप्त नहीं हो पा रहा है। ऐसे प्लांटों का प्रभाव भी अच्छा नहीं पड़ता है।
इसको ध्यान में रखते हुए यह कहना आवश्यक है कि इन कमियों को दूर करते हुए संयंत्रों का पूर्ण लाभ उठाया जाए। क्योंकि यही एक ऐसा साधन है जो कि ऊर्जा की पूर्ती करते हुए ग्रामीण परिवारों को उन्नति की ओर बढ़ा सकता है। यह ऊर्जा के साथ एक उत्तम खाद भी प्रदान करता है।
1. प्रतिदिन उपलब्ध गोबर की सही मात्रा क्या है और किसगोबर को आसानी के साथ संयंत्र में डाला जा सकता है। इसी के आधार पर संयंत्र का साईज निर्धारित करना चाहिए। यदि साईज के अनुसार प्रतिदिन गोबर का घोल नहीं डाला जायेगा तो ऐसे संयंत्रों से कुछ समय के बाद पूर्ण लाभ नहीं मिल पायेगा और असंतुष्टि ही प्राप्त होती है।
2. यदि पानी की कमी होती है तो ऐसी स्थिति में गोबर की मात्रा के बराबर पानी न मिलाने से भी संयंत्रों से गैस प्राप्त होना बंद हो जाता है।
3. संयंत्र निर्माण के साथ भी यदि उचित नहीं चुना गया है जैसे कि संयंत्र रसोई सर बहुत दूर है, या फिर पशुशाला संयंत्र से दूर है, या पानी जो गोबर के घोल में प्रयोग करते है अधिक दूर है ऐसे संयंत्रों की देख रेख भी सही नहीं हो पाती है और संयंत्र फेल हो जाते है।
4. निर्माण कार्य में कमियां
यदि संयंत्र का निर्माण कार्य सही प्रकार नहीं किया गया है, इसमें बताई गई सामग्री में कोई कमी नहीं की गई है, या इसके माप में किसी प्रकार की गलती की गई है, इस स्थिति में भी संयंत्र ख़राब हो जाते है। यदि संयंत्र का निर्माण कार्य कुशल राजमिस्त्रियों और कुशल तकनीकी विशेषज्ञों की देखरेख में नहीं हुआ है तो भी इस तरह के संयंत्र फेल हो जाया करते है।
1. विधि
संयंत्र निर्माण की विधि सब पहलुओं पर गोर करके बनाई गई है। अत: यदि विधि के अनुसार संयंत्र का निर्माण ने किया गया तो संयंत्र के ख़राब होने की संभावना है।
2. निर्माण सामग्री का चयन
यदि सही नही किया गया है। जैसे प्रथम श्रेणी की ईंट अच्छा सीमेंट निर्माण सामग्री में मिट्टी से न बचाना, पत्थर की रोडी में मिट्टी आदि से न बचना। किये गये कार्य पर पानी की तराई की कमी, ईंटों का प्रयोग करने से पहले अच्छी तरह से तराई न करना।
3. सीमेंट बालू का अनुपात
यदि सीमेंट व बालू का बताये गये अनुपात में प्रयोग नहीं किया गया तो संयंत्र के लीक या क्रेक होने के संभावना रहती है।
4. गैस पाईप लाईन से गैस लीक होना
यदि गैट वाल्व अच्छी क्वालिटी का नहीं है और गैस लीक हो रही है, तो उसको सही करना पाईप लाईन में पानी निकास का स्थान न देना, पीबीसी की पाईप का प्रयोग करना, यदि संयंत्र से रसोई घर के बीच में हि कहीं गैस लीक हो रही है, जिसका कारण गैस की कमी हो जाती ई और पूर्ण लाभ नहीं मिलता है।
5. संयंत्र का निर्माण कार्य बहूत जल्दी में (कम समय में) निर्माण विधि के अनुसार नहीं करने से भी संयंत्र ख़राब हो जाते है।
6. संयंत्र के अंदर यदि मोटी बालू का प्लास्टर किया गया है, और उसके ऊपर सीमेंट पॉलिश नहीं की गई है, तो ऐसे संयंत्रों से भी गैस लीक होती है।
जैसा बुरा प्रभाव तकनिकी कमियों का पड़ता है, वैसे जो प्रभाव संयंत्र धारक को संयंत्र के रख रखाव की जानकारी न होने का भी पड़ता है और यदि उसको जानकारी होते हुए भी उसको नहीं करता है इसी स्थिति में भी संयंत्रों से पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता है।
1. यदि संयंत्र में माप के अनुसार प्रतिदिन गोबर पानी का सही रूप में घोल नहीं डाला जाता है तो ऐसे संयंत्रों से भी पूर्ण रूप से गैस प्राप्त नहीं होती है और कुछ समय के बाद बंद भी हो जाया करते है।
2. गैस पाईप लाईन, गेट वाल्व, और चूल्हे लगे हुए कॉर्क से भी गैस लीक होती रहती है। इन कारणों से भी पूर्ण गैस प्राप्त नहीं होती है।
3. पानी निकास का स्थान संयंत्र और गैस प्रयोग के बीच में यदि नहीं दिया गया है तो भी गैस सही रूप से नहीं जलती क्योंकि पाईप लाईन में पानी इकठ्ठा होने से गैसके जाने में रूकावट उत्पन्न होती है।
4. चूल्हे पर कार्क के पिछले भाग में जो एयर इंजेक्टर है यदि वह सही जगह पर नहीं है। इस स्थिति में भी गैस सही रूप से नहीं जलती है। क्योंकि गैस को जलने के लिए कुछ हवा की भी जरूरत होती है।
5. संयंत्र के माप के अनुसार जो गोबर का घोल प्रतिदिन डाला जाता है उसका 90 से 95 प्रतिशत यदि खाद रोज बाहर नहीं निकलती है इस स्थिति के संयंत्र भी कुछ दिन में खराब गोबर से भर जाया करते है और इन संयंत्रों में गैस इकट्ठा होने का स्थान नहीं करता है।
6. बाहर निकालने वाली खाद पर भी ध्यान नहीं दिया जाता है जैसा घोल डाला जाता है वैसी खाद बाहर आ रही है, या नहीं, केवल रंग कुछ काले रूख का होना चाहिए, सिर्फ गन्दा पानी ही बाहर निकलता है तो ऐसी स्थिति में खाद की शक्ल में जो गोबर बाहर जाना चाहिए उसका बाहर निकालने का समय (एच आर टी) बढ़ जाता है।
बताई गई कमियों पर यदि ध्यान रखा जाये तो बायोगैस संयंत्रों से पूर्ण लाभ उठाया जा सकता है।
7. चूल्हा और लैम्प
चूल्हा
जिस चूल्हे को प्रयोग किया जाता है कुछ समय प्रयोग में आने के बाद इनके नौजिल में कार्बन जम जाता है चूल्हे के सूराख भी अक्सर खाने पकाने के पदार्थ गिर जाने से बंद हो जाते है। पर कोई कमी अवश्य रह गयी है। इस समय निम्न बातों पर ध्यान देकर उसको सुधारने का कार्य करना चाहिए।
1. प्लांट धारक से कुछ बातें मालूम करना चाहिए।
अ. पहली गोबर की भराई के विषय में कि कितने दिनों में पहली भराई का कार्य पूर्ण किया गया है।
आ. संयंत्र निर्माण कार्य के विषय में यदि कुछ जानकारी प्राप्त हो सकती है रो भी कर लेनी चाहिए।
2. आउटलेट (निकास कुण्डी) का ढक्कन हटाकर संयंत्र के अंदर भरे हुए गोबर का निरिक्षण करना चाहिए, कि गोबर पहली भराई के लेबिल से ऊपर की और बढ़ा है कि नहीं एक बांस के टुकड़े की सहायता से गोबर को हिलाकर देख लेना चाहिए कि गोबर अधिक गाढ़ा तो नहीं है या जैसा घोल प्रथम बार डाला गया था वैसा ही है, अक्सर प्रथम गोबर की भराई के बाद नये डायजेस्टर की दीवारें भी कुछ पानी सोख लेती है, जिसके कारण गोबर का घोल गाढ़ा हो जाता है और गैस बनने की क्रिया सही रूप से नहीं होती है। इस स्थिति में संयंत्र के अंदर और पानी डालकर गोबर का घोल सही आकर देना चाहिए। यदि गोबर के घोल में अधिक पानी है तो संयंत्र के अंदर सजे इसी पानी को निकालकर और दूसरे गोबर के साथ घोलकर पुन: प्लांट में डाल देना चाहिए।
उपरोक्त दोनों की गयी क्रियाओं के बाद कुछ समय बाद तक गैस बनने का इंतजार करना चाहिए। उपरोक्त क्रिया के उपरांत गैस मिलना प्रारंभ हो जाएगी।
3. चालू गैस प्लांट से अचानक गैस के रूकने या कम पैदा करना के संबंध में भी शिकायत होती है। इसमें कुछ बातें देखने योग्य है।
1. प्रतिदिन पर्याप्त मात्रा में गोबर का घोल दिया जा रहा है और गोबर का घोल 1:1 के अनुपात में डाला जा रहा है या नहीं। कभी कभी गैस संयंत्र रखने वाले लोग कुछ दिनों तक प्लांट में गोबर नहीं डालते या कम मात्रा में डालते है। फलस्वरूप इस स्थिति में गोबर पानी से अलग होकर गोबर की ऊपरी सतह पर एवं आउटलेट की टंकी में इकट्ठा होता रहता है। इस क्रिया से डाइजेस्टर का आयतन कम हो जाता है। इस भाग में बैक्टरियल एक्टिविटीज बंद सी हो जाती है। जो बाकी हिस्सा ऊपर का गैस प्लांट का बचता है, उसी हिस्से में गोबर का सड़ना तथा गैस के बनने का कार्य पूर्वत: होता रहता है इस प्रकार जैसे – जैसे तली में गोबर जमा होता जाता है। गोबर व गैस बनाने का भाग कम होता जाता है और अनुपात में गैस उत्पादन कम होता जाता है। ऐसे संयंत्र जो सावधानी पूर्वक नहीं चलाये जाते और उसमें गोबर घोलने का काम सुचारू रूप से नहीं होता। वह धीरे – धीरे अपनी उपयोगिता कम करते है। इसके अतिरिक्त गोबर की मात्रा देने से से भी जमाव की क्रिया होने लगेगी और गैस का उत्पादन कम होगा।
यदि उपरोक्त बातों पर ध्यान न दिया जाये तो इसका परिणाम यह होता है कि बहुत से संयंत्र बंद हो जाते हैं।
स्त्रोत: ग्रामीण विकास मंत्रालय , भारत सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/13/2023
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