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टैरिफ पॉलिसी

परिचय

  1. विद्युत् आधिनियम, 2003  की धारा 3 को अनुपालन करते हुए 12 फरवरी, 2005  को अधिसूचित की गई राष्ट्रीय विद्युत नीति (एनईपी) के अनुसार केंद्र सरकार एतद द्वारा टैरिफ निति को अधिसूचित करती है|
  2. 12वीं और 11वीं योजना अवधि के दौरान राष्ट्रीय विद्युत नीति में एक लाख मे.वा. से भी अधिक की नयी उत्पादन क्षमता की अभिवृद्धि का लक्ष्य निर्धारित किया गया है जिसमें प्रतिवर्ष विद्युत की 1000 यूनिटों से भी अधिक की प्रति व्यक्ति उपलब्धता हासिल करना है और केवल उर्जा और व्यस्ततमकालीन कमी को दूर करना ही नहीं है, बल्कि प्रणाली में 5% को सुरक्षित (स्पिनिंग रिजर्व) भी करना है| विद्युत क्षेत्र को आगामी पांच वर्षों में सभी घरों को बिजली की उपलब्धता को सुगम बनाने हेतु चुनौती का सामना करना है|
  3. केंद्र और राज्य सरकार, बजटीय संसाधनों से अपेक्षित धनराशि मुहैया कराने में असमर्थ हैं अतः निवेश पर उपयुर्क्त रिटर्न मुहैया कराते हुए विद्युत क्षेत्र में पर्याप्त निवेश को आकर्षित करना अनिवार्य है| देश के आर्थिक विकास में तेजी लाने लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाने का लक्ष्य प्राप्त करने हेतु उपभोक्ताओं की विभिन्न श्रेणियों को उचित दर पर बिजली की उपलब्धता को समान रूप से सुनिश्चित कराना आवश्यक है|
  4. क्षेत्र में पर्याप्त निवेशों को आकर्षित कर जरूरत को संतुलन करते हुए तथा उपभोक्ताओं हेतु उपयोगकर्त्ता शुल्क (यूजर चार्ज) के औचित्य को सुनिश्चित करना नियामक प्रक्रिया के लिए संकटपूर्ण चुनौती है| विद्युत क्षेत्र का त्वरित विकास और आवश्यक निवेशों को आकर्षित करने की क्षमता के साथ-साथ पूरे देश में नियामक दृष्टिकोण का विस्तार करना| राज्यों की अधिक संख्या और जटिलताओं पर विचार करते हुए दृष्टिकोण में निरंतरता अंत्यत आवश्यक है|

विधायी स्थिति

  1. विद्युत अधिनियम, 2003  की धारा  3(1) के जरिये केंद्र सरकार को टैरिफ निति निरूपण का अधिकार दिया गया है| अधिनियम की धारा 3(3) के जरिये केंद्र सरकार को समय-समय पर विद्युत निति की समीक्षा करने अथवा टैरिफ निति को संशोधित करने का अधिकार दिया गया है|
  2. अधिनियम में यह भी अपेक्षा की गई है कि केन्द्रीय विद्युत विनियामक आयोग और राज्य विद्युत विनियामक आयोग की अधिनियम की धारा 61 के अंतर्गत विनियम निरूपण के साथ-साथ कार्य निष्पादन में टैरिफ नीति से निर्देशित होंगे|
  3. अधिनियम के धारा 61 में प्रावधान किया गया है कि उत्पादन कम्पनियों और पारेषण लाइसेंस धारकों के लिए टैरिफ की निर्धारण हेतु नियामक आयोग, केन्द्रीय आयोग द्वारा विनिदृष्टि सिद्धांतों और कार्य प्रणालियों से निर्देशित होंगे|
  4. अधिनियम के प्रावधान के अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा नियामक मंच का गठन किया गया है, जो अन्य बातों के साथ-साथ वितरण के क्षेत्र में नीतिगत निरंतरता बनाएं रखने में सहयोग करेगा|

नीति का विकास

राज्य सरकारों और केद्रीय विद्युत प्राधिकरण के साथ परामर्श करके और केद्रीय विद्युत विनियामक आयोग की सलाह और विभिन्न पणधारियों (स्टेक होल्डरों) के सुझावों के मद्देनजर टैरिफ नीति को तैयार किया गया है|

नीति के लक्ष्य

टैरिफ नीति के उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

(क)  उचित दरों पर उपभोक्ताओं की विद्युत् की उपलब्धता सुनिश्चित करना|

(ख)  क्षेत्र की वित्तीय व्यवहार्यता सुनिश्चित करना और निवेश को आकर्षित करना|

(ग)  नियामक क्षेत्राधिकार में पादर्शिता व निरंतरता को बढ़ावा देना और रेग्युलेटरी के जोखिम को कम करना|

(घ)  प्रचालन में प्रतिस्पर्धा, दक्षता का संवर्द्धन करना और आपूर्ति की गुणवत्ता में सुधार करना|

टैरिफ के प्रति सामान्य दृष्टिकोण

१. विद्युत उद्योग के विभिन्न खण्डों में प्रतिस्पर्धा का समावेश करना, विद्युत अधिनियम की मुख्य विशेषताओं में से एक है| प्रतिस्पर्धा से पूंजी लागत में कमी के जरिये तथा प्रचालन में दक्षता उपभोक्ताओं को लाभ होगा| इससे प्रतिस्पर्धात्मक रूप से मूल्य निर्धारण की सुविधा उपलब्ध होंगी केद्र सरकार ने दिनाँक 19 जनवरी, 2005 की शासकीय अधिसूचना के जरिये मध्यम अथवा लम्बी अवधि के लिए वितरण लाइसेंसधारकों द्वारा विद्युत् उपलब्ध कराने हेतु बोली प्रक्रिया पर आधारित टैरिफ के विस्तृत निदेश पहले ही जारी किये हैं|

वितरण लाइसेंस धारकों द्वारा प्रतिस्पर्धात्मक रुप से विद्युत् की सभी भावी आवश्यकताओं को प्राप्त किया जाना चाहिए सिवाय मौजूदा परियोजनाओं का विस्तार करने के मामले में, अथवा जहाँ पर चिन्हित किये गये विकासकर्ता के रूप में राज्य द्वारा नियंत्रित/स्वामित्व वाली कम्पनी हो और जहाँ पर रेग्युलेटरों को मानकों पर आधारित, टैरिफ निर्धारण का सहारा लेना पड़ता हो बशतें कि इस प्रयोजनार्थ निजी विकासकर्त्ताओं द्वारा विद्युत उत्पादन क्षमता का विस्तार किया जाना एक समय की अभिवृद्धि तक ही सिमित होगी जो विद्यमान क्षमता के 50% से अधिक नहीं होगी|

यहाँ तक की सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाओं के सम्बन्ध में भी सभी नई विद्युत् उत्पादन एवं पारेषण परियोजनाओं की टैरिफ का निर्णय पांच वर्षों की अवधि के पश्चात् अथवा जब विनियामक आयोग इस बात से संतुष्ट हो जाये कि वर्तमान स्थिति इस प्रकार की प्रतिस्पर्धा आरंभ करने के लिए अनुकूल है के बाद प्रतिस्पर्धात्मक बोली प्रक्रिया के आधार पर किया जाना चाहिए|

२. प्रतिस्पर्धा का वास्तविक लाभ केवल उपयुक्त बाजार पर ही उपलब्ध होगा| विद्युत् आपूर्ति की कमी की नियंत्रित करने की जरुरत होगी| विभिन्न निष्पादनकर्ता प्रतिस्पर्धा के जरिये सेवा की गुणवत्ता में वृद्धि करेंगे| विद्युत उद्योग को उस स्थिति में लाने हेतु सभी प्रयास किये जाने की जरुरत होगी जिसमें उपभोक्ताओं के समग्र हितों की रक्षा हो| पारेषण और वितरण अर्थात् वायर के व्यवसाय को प्राकृतिक एकाधिकार की विशेषताओं के कारण अन्तर्राष्ट्रीय रूप से मान्यता प्राप्त है, जिसमें लागत की संवीक्षा के आधार पर रेगुलेटेड रिटर्न में जटिलताएं अंतर्निहित हैं|
३. उत्पादन, पारेषण और वितरण के सामान्य पहलुओं के सन्दर्भ में सेवा नियमन की निष्पादन आधारित लागत हेतु टैरिफ निति निम्नांकित फ्रेमवर्क प्रस्तुत करती है| ये प्रतिस्पर्धात्मक बोली वाली परियोजना के लिए लागू नहीं होगी जैसा कि पैरा 6.1 और पैरा 7.1 (6) में संदर्भित है| क्षेत्रगत पहलुओं पर उत्तरवर्ती खण्डों में विचार किया गया है|

(क) निवेश पर रिटर्न

रिटर्न की दर को तय करते समय उपभोक्ताओं के हितों और निवेश की जरूरत के मध्य संतुलन की जरुरत है| रिटर्न द्वारा निवेश को आकर्षित करने के लिए यदि विद्युत क्षेत्र की वरीयता प्राप्त हो तो भी उसे अन्य क्षेत्रों के बराबर रखा जाए ताकि क्षेत्र पर्याप्त क्षमता का सृजन करने में समर्थ हो सके| रिटर्न दर ऐसी होनी चाहिए जिसमें सेक्टर का विकास करने में उचित सरप्लस उत्पादन की गुंजाइश हो|

केन्द्रीय आयोग समग्र जोखिम और पूंजी की प्रचालित लागत को ध्यान में रखते हुए उत्पादन तथा पारेषण परियोजनाओं के लिए इक्विटी  पर रिटर्न दर को समय-समय पर अधिसूचित करेगा, जिसका एसईआरसी द्वारा भी अनुसरण किया जाएगा| पारेषण के लिए सीईआरसी द्वारा अधिसूचित रिटर्न दर को राज्य विद्युत विनियामक आयोगों (एसईआरसी) द्वारा वितरण के लिए उपयुक्त संशोधन के साथ अपनाया जायेगा, ऐसा करते समय जोखिमों को भी ध्यान में रखा जायेगा| इस मामले में समान दृष्टिकोण हेतु नियामक मंच के माध्यम से आम सहमति बनाना वांछनीय होगा|

परियोजना की सम्पूर्ण पूंजीगत लागत की अनुमति प्रदान करते समय यथोचित आयोग यह सुनिश्चित करेगा कि ये युक्तिसंगत है और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विनियामक आयोगों द्वारा पूंजीगत लागत सम्बन्धी अपेक्षित बेंचमार्कों को तैयार किया जाना चाहिए|

स्पष्टीकरण:  इक्विटी पर रिटर्न के प्रयोजनार्थ कपनी के शेयर प्रीमियम खाते में उपलब्ध नकद संसाधनों अथवा विचारधीन परियोजना की इक्विटी वचनबद्धताओं को वित्तपोपोषित करने में प्रयुक्त होने वाले उसके आंतरिक संसाधनों से उपलब्ध नकद संसाधनों को इक्विटी समझा जाना चाहिए बशेतें कि ऐसा नीचे (ख) में शामिल सीमाओं के अध्याधीन हो|

केद्रीय आयोग पूंजी पर लाभ के माध्यम से नियत्रण की वैकल्पिक व्यवस्था अपना सकता है|

केद्रीय आयोग इक्विटी पर लाभ दृष्टिकोण या पूंजी पर लाभ दृष्टिकोण जो भी उपभोक्ताओं के हित में बेहतर समझा गया हो को अपना सकती है|

राज्य आयोग उपयुक्त समय पर वितरण व्यवसाय में रिटर्न के लिए “ वितरण मार्जिन” पर विचार कर सकता है| रेग्युलेटर संघ को एक वर्ष के भीतर लिए “ वितरण मार्जिन” सम्बन्धी एक व्यापक दृष्टिकोण तैयार करने चाहिए| ऐसा प्रस्ताव तैयार करते समय विचार-विमर्श में अन्य बातों के साथ साथ कुल तकनीकी एंव  वाणिज्यिक हानियों में कमी करना, कार्य निष्पादन मानकों में सुधार करना और आपूर्ति लागत में कमी करना जैसे मुद्दों को शामिल किया जायेगा|

(ख)  इक्विटी मानदंड

परियोजनाओं के पूंजीगत लागत की वित्त व्यवथा के लिए 70:30  के ऋण इक्विटी अनुपात को अपनाया जाना चाहिए| प्रवर्तक, इक्विटी निवेशों की उच्चतर मात्रा प्राप्त करने में स्वतंत्र होंगे| इक्विटी इस मानदंड से अधिक होने पर इसे ब्याज की औसत भारित दर पर और ब्याज दरों की उपयुक्तता सुनिश्चित करने के पश्चात परियोजना के दीर्घावधिक ऋण घटक की औसत भारित गति के लिय और की गई ऋण पुनर्संरचना यदि कोई हो के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए अग्रिम ऋण माना जाये| इक्विटी नियामक स्तर से कम होने के मामले में टैरिफ संगणना में इक्विटी पर रिटर्न निर्धारक के लिए वास्तविक इक्विटी को उपयोग में लाया जाएग||

(ग)  मूल्यह्रास

केन्द्रीय आयोग, उत्पादन और पारेषण परिसम्पत्तियों के ह्रास ड्रोन को अधिसूचित कर सकता है| अधिसूचित की गई ऐसी ह्रास दरें रेग्युलेटरों के फोरम द्वारा किये गए उचित संसोधन के साथ वितरण के लिए भी लागू की जाएगी|

मूल्यह्रास की अधिसूचित दरें टैरिफ और लेखांकन के प्रयोजन हेतु भी लागू होंगी|

मूल्यह्रास के विरुद्ध किसी अग्रिम की जरूरत नहीं होनी चाहिए|

परिसम्पत्तियों के मूल्यह्रास के पश्चात् कम की गई टैरिफ का लाभ उपभोक्ताओं को मिलते रहना चाहिए|

(घ)  ऋण की लागत

टैरिफ घटाने के मद्देनजर ऋण की अवधि समेत उसकी संरचना को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए| ऋण की अनुवर्ती पुनर्संरचना के कारण लागतों में बचत को विनियामक आयोगों द्वारा उपभोक्ताओं के हितों का ध्यान रखते हुए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए|

(ड.) विदेशी विनियम जोखिम प्रबंधन की लागत:

विदेशी विनियम की भिन्नता संबधी जोखिम पास थ्रू नहीं होंगे| विदेशी मुद्राओं में प्राप्त ऋणों के सबंध में विदेशी विनियम भिन्नताओं को रोकने के लिए यथाचित लागतों की अनुमति होनी चाहिए| यह प्रावधान केवल उन परियोजनाओं के लिए होना चाहिए जहाँ कि टैरिफ की निर्धारण प्रतिस्पर्धात्मक बोली के आधार पर नहीं किया गया है|

(च) प्रचालन मानदंड

उपभोक्ताओं के साथ दक्षताओं प्रचालनों का लाभ शेयर करने हेतु प्रोत्साहन और अप्रोत्साहन को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त निष्पादन मानदंड विकसित किये जाने की जरुरत होगी पैरा  5.3 (ज) (2) में उल्लिखित मामलों को छोड़कर टैरिफ में प्रचालन पैरामीटर को केवल नियामक स्तर होना चाहिए और “ नियामक और वास्तविकता के स्तर से कम” का नहीं होना चाहिए| प्रचालन सम्बन्धी बेहतर निष्पादन के लिए इसे प्रोत्साहित किया जाना जरुरी ha है| मानदंड विगत निष्पादन से जुड़े हुए उत्तरोतर दक्षताओं को प्रतिबिंबित करते हुए, ईंधन, बेहतर उपकरणों का संग्रहण, प्रचालनों की प्रकृति, उपभोक्ताओं आदि को दी जाने वाली सेवा के स्तर पर भी प्रौद्योगिकी नवीनता लिए हुए होने चाहिए| सतत एवं प्रमाणित अक्षमता को नियंत्रित एवं दण्डित किया जाना चाहिए|

केन्द्रीय आयोग, केद्रीय विद्युत् प्राधिकरण के परामर्श से उत्पादन और पारेषण हेतु समय-समय पर प्रचालनगत मानदंडों को अधिसूचित करेगा| राज्य विद्युत विनियामक आयोग (एसईआरसी) इन मानदंडों को अपनाएगा| उन मामलों में, जहाँ पर पिछले कई वर्षों से मानदंड अत्यंत कम होने की स्थिति में राज्य विद्युत विनियामक आयोग, उचित रूप से आसान मानदंड निर्धारित कर सकते हैं और केद्रीय आयोग द्वारा अधिसूचित किये गए मानदंडों को प्राप्त करने के लिए समय रहते है तरीका बदला सकते हैं|

वितरण नेटवर्कों हेतु प्रचालन के मानदंड का समबन्धित राज्य विद्युत विनियामक आयोग द्वारा अधिसूचित किया जायेगा| वितरण हेतु ऐसे मानदंडों  का निर्धारण करने में दृष्टिकोणगत समानता के लिए नियामक मंच राज्य विशिष्ट के लिए सही दृष्टिकोण व दिशा-निर्देश तय करें|

(छ) नवीकरण और आधुनिकीकरण

उच्चतर दक्षता स्तरों के लिये नवीकरण और आधुनिकीकरण (इसमें आवधिक मरम्मत शामिल नहीं होगी) को प्रोत्साहित किये जाने की जरुरत है| मल्टी ईयर टैरिफ फ्रेमवर्क का निर्धारण किया जाए, जिसमें नवीकरण और आधुनिकीकरण के लिए आवश्यक पूंजीगत निवेश शामिल हों, साथ ही जिसमें यथोचित आयोग द्वारा निर्धारित किये जाने वाले विशेष व संशोधित निष्पादन मानकों के सबंध में यूटिलिटियों एवं लाभार्थियों के बीच दक्षता सुधार के लाभों का आदान-प्रदान करने सम्बन्धि प्रोत्साहन ढांचा भी शामिल हो| पूर्व निर्धारित दक्षता लाभों के लिए अपेक्षित पूंजी लागत और उच्चस्तरीय निष्पादन को बनाये रखने के लिए जरुर्री है कि उपयुक्त आयोग इसका मूल्यांकन krकरे|

(ज) बहुवर्षीय टैरिफ (एमवाईटी)

1)  अधिनयम की धरा 61 के अनुसार टैरिफ निर्धारण के लिए सेवा शर्तों के लये उपयुक्त आयोग अन्य बातों के साथ-साथ बहुवर्षीय टैरिफ सिद्धांतों से निर्देशित होगा| 01 अप्रैल, 2006 से निर्धारित की जाने वाली किसी टैरिफ के लिए एमवाईटी अपनाये जाने के लिए अधिमानतः 5 वर्ष की नियंत्रण अवधि होनी चाहिए| आंकड़ों सबंधी अनिश्चिता व अन्य व्यावहारिक कारणों से नियामक आयोग द्वारा जरुरी माने जाने पर पारेषण व वितरण के लिए आरंभिक तौर पर तीन वर्ष की नियत्रण अवधि भी हो सकती है| विश्वसनीय आंकड़ों के आभाव वाले मामलों में उपयुक्त आयोग प्रथम नियंत्रण अवधि के लिए एमवाईटी में अनुमान प्रस्तुत कर सकता है तथा और अधिक विश्वसनीय आंकड़े प्राप्त होने पर नियंत्रण अवधि नये सिरे से शुरू हो सकती है|

2)  ऐसे मामले जहाँ पर सक्रिया पिछले कई वर्षों से मानदंडों से काफी कम है वहाँ पर राजस्व जरूरत निर्धारित करने सम्बन्धि व्यवस्था अपेक्षित निष्पादन मानक प्राप्त करने के लिए उपयुक्त बेंचमार्किंग अध्ययन आयोजित किये जाएँ| न्यूनतम सेवा सबंधी मानकों को पूरा करने के लिए आवश्यक पूंजीगत व्यय के निमित्त प्रत्येक यूटिलिटी के लिए पृथक से अध्ययनों की जरूरत होगी|

3)  एकबार नियंत्रण अवधि की शुरुआत में राजस्व जरुरत तय हो जाने के पश्चात् विनियामक आयोग को विनियामक आयोग को निवेश लागत घटकों के बजाय उत्पादन विनियामन पर ध्यान देना चाहिए| नियंत्रण अवधि की समाप्ति पर निष्पादन की व्यापक समीक्षा की जाये|

4)  विगत लागतों के बोझ से भावी उपभोक्ताओं को बचाने के लिए नियंत्रित न की जा सकने वाली लागतों को तेजी से वसूल किया जाना चाहिए| नियंत्रित न की जा सकने वाली लागतों (सिमित नहीं) में ये शामिल है- ईंधन लागत, मुद्रास्फीति के कारण लागत, कर एवं उपकर, विपरीत प्राकृतिक घटनाओं के मामले में हाइड्रो-थर्मल मिश्रण समेत विद्युत क्रय यूनिट लागतों में भिन्नता|

5)  विनियामक आयोग सूचना देने के बारे में स्पष्ट दिशा-निर्देश व नियम बनाएं| अधिनियम की धारा 62(2) उपयुक्त आयोग को यह अधिकार प्रदान करती है कि उत्पादन, पारेषण व टैरिफ निर्धारण के लिए वितरण के बारे में विनिद्रिष्टि  पृथक ब्योरों को दर्शाने के लिए लाइसेंसधारकों से कहे|

(झ) सीडीएम के अंतर्गत लाभ

ऐसी सभी विद्युत परियोजनाएँ (उत्पादन पारेषण व वितरण) जो सम्बंधित बेस लाईन की तुलना में ग्रीनहाउस गैस का अपेक्षाकृत कम उत्सर्जन करती है, के लिए टैरिफ निधारित करते समय क्लीन डेवलपमेंट मैकेनिज्म (सीडीएम) से प्राप्त लाभों को भी इस प्रकार ध्यान में रखा जाना चाहिए ताकि परियोजना विकासकों को पर्याप्त प्रोत्साहन प्रदान किया जा सके|

हम जानते हैं कि राज्य सरकारों के साथ विद्युत क्रय और उपयोग पर शुल्क, कर और उपकर लगाने का अधिकार है, अतएव लेवी चयनित आधार और एवं समान रूप से होने पर प्रतियोगिता और संसाधनों के इष्टतम उपयोग का स्वरुप विकृत हो सकता है|

कुछ मामलों में विद्युत खपत सम्बन्धी शुल्कों आदि को उत्पादन (यथा kaikaikaikaiकैप्टिव उत्पादन) आदि से जोड़ा जाता है और लगाये गये शुल्कों का स्तर ग्रिड से विद्युत लेने वाले उसी श्रेणी के उपभोक्ताओं पर लगाए गए शुल्क की तुलना में काफी अधिक होता है| इस प्रकार का भेदभाव पक्षपातपूर्ण और अनुपयुक्त है| कैप्टिव उत्पादन को पूर्ण  स्वतंत्रता देने का प्रयोजन यह है की उद्योग विश्वसनीय, गुणवत्तापरक और किफायती विद्युत प्राप्त कर सकें| विशेषतया उपभोक्ता समूह द्वारा स्थापति किये जा सकने वाले कैप्टिव विद्युत् संयंत्रों सम्बन्धी प्रावधानों को इस लक्ष्य को ध्यान में रखकर मान्यता दी गई है कि देश भर में लघु एवं मध्यम उद्योगों के विस्तार से तीव्र आर्थिक विकास को गति मिलेगी और बड़े पैमाने पर रोजागर के अवसर पैदा होंगे|

उपभोक्ताओं को उचित और प्रतिस्पर्धात्मक कीमतों पर विद्युत उपलब्ध कराने सम्बन्धी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु जरुरी है कि ऐसे शुल्कों को उचित स्तर पर रखा जाए|

 

यद्यपि अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार वितरण में खुली पहुँच आरंभ करने की वाह्य सीमा 27-1-2009  है लेकिन फिर भी यह वांछनीय होगा कि जिस भी राज्य में परिस्थिति अनुमति प्रदान करती हो वहाँ विनियामक आयोग इस अंतिम सीमा से पूर्व इस प्रकार की खुली पहुँच आरंभ करेंगे|

उत्पादन

मांग में अनुमानित वृद्धि को पूरा करने के लिए उत्पादन क्षमता क्षेत्र का त्वरित विकास आवश्यक है| विद्युत बाजारों के कुशल कार्यव्यापार के लिए पर्याप्त उत्पादन भी जरुरी है| साथ ही, उपभोक्ता हितों की रक्षा के लिए नई क्षमता अभिवृद्धि पर अत्यंत किफायती दरों पर

1. विद्युत की प्राप्ति

जैसा कि पैरा 5.1 में निर्धारित है, भावी जरूरतों की दृष्टि से विद्युत अर्जन, केंद्र सरकार द्वारा दिनांक 19 जनवरी, 2005 की शासकीय अधिसूचना के तहत जारी दिशा-निर्देशों की आलोक में पारदर्शी प्रतिस्पर्धात्मक बोली प्रकिया के जरिये होना चाहिए| इन दिशानिर्देशों में आधारभूत भार जरूरत और व्यस्ततमकालीन भार जरूरतों एक लिए विद्युत अर्जन व्यवस्था है| इससे व्यस्ततमकालीन मांग को पूरा करने के लिए उत्पादन क्षमता बढ़ोतरी में मदद मिलेगी|

2. टैरिफ ढांचा और सहबद्ध मामले

a)  मैरिट ऑर्डर डिस्पैच को सरल बनाने के लिय सभी दीर्घावधिक अनुबंधों के लिए दो प्रकार का टैरिफ ढांचा अपनाया जाना चाहिए| राष्ट्रीय विद्युत नीति के अनुसार उपलब्धता आधारित टैरिफ (एबीटी) को राज्य स्तर पर अप्रैल, 2006  तक आंरभ किया जाना है| एसइआरसी के निर्णयानुसार इस ढांचे का उत्पादन स्टेशनों (एसइआरसी द्वारा यथा निर्धारित क्षमताताओं वाले ग्रिड से जड़े कैप्टिव संयंत्रों समेत) तक विस्तार किया जायेगा| उपयुक्त आयोग बेहतर भार प्रबंधन के लिए व्यवस्ततम व गैर- व्यस्ततमकालीन घंटों के लिए निर्धारित प्रभार की दो दरें भी तय कर सकता है|

b)  विद्युत खरीद समझौते में उत्पादन कम्पनियों के लिए पर्याप्त एंव बैंक ग्राह्य भुगतान सुरक्षा प्रबध सुनिश्चित किया जाना चाहिए| लैटर ऑफ़ क्रेडिट, एस्क्रो ऑफ़ कैश फ्लों आदि जैसी उपलब्ध भुगतान सुरक्षा तंत्र के बाबजूद भी लगातार चूक के मामले ने उत्पादन कम्पनियों दूसरे क्रेताओं को बिक्री कर सकती है|

c)  कोयला आधारित उत्पादन केन्द्रों के मामलों में कोल वाशरीज कोयला हितकारी प्रणाली, शुष्क राख लदान एवं निपटान प्रणाली स्थापना की उपयुक्त लागत भी परियोजना लागत में शामिल होगी|

d)  कैप्टिव उत्पादन को उपयोग में लाना

कैप्टिव उत्पादन प्रतियोगी विद्युत उपलब्ध कराने के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है| उपयुर्क्त आयोग को ऐसा वातावरण तैयार करना चाहिए जो कैप्टिव विद्युत संयंत्रों को ग्रिड के साथ जोड़ने में प्रोत्साहन प्रदान करे| ऐसे कैप्टिव संयंत्र उत्पादन कम्पनियों पर लागू होने वाले नियम के तहत अधिशेष विद्युत को ग्रिड में प्रवेश करा सकते हैं| अधिनियम की धारा 63 के अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों के आलोक में वितरण लाइसेंसियों द्वारा कैप्टिव संयंत्रों से सुनिश्चित आपूर्ति प्राप्त की जा सकती है|

व्यस्ततम और गैर- व्यस्ततमकालीन आपूर्ति के लिए पृथक-पृथक कीमत तय की जानी चाहिए और टैरिफ में वास्तिवक स्तर पर उत्पादन की परिवर्तनीय लागत और क्षमता प्रभारों हेतु उचित मुआवजा शामिल किया जाना चाहिए|

वैकल्पिक रूप से फ्रीक्वेंसी आधारित रियल टाइम मैकेनिज्म प्रयोग में लाया जा सकता है| एबीटी मैकेनिज्म के अंतर्गत ग्रिड को बल प्रदान करने हेतु कैप्टिव जेनरेटर्स को छूट की जा सकती है|

सम्बन्धित राज्य आयोग प्रभारों को उचित एवं सही ठहराते हुए कार्यान्वयन के लिए व्हीलिंग प्रभार और अन्य सेवा शर्तें जोड़ना निर्धारित करे|

e)  सह-उत्पादन समेत उर्जा उत्पादन के अपारंपरिक स्रोत:

1)  अधिनियम की धारा 86  (1) (ड.) के प्रावधानों के अनुसरण में उपयुक्त आयोग क्षेत्र में ऐसे संसाधनों की उपलब्धता और फुटकर टैरिफ पर इसके प्रभाव को ध्यान में रखते हुए ऐसे संसाधनों से उर्जा क्रय को न्यूनतम प्रतिशत निर्धारित कर सकता है| उर्जा खरीद के लिए ऐसा प्रतिशत अंततः 01 अप्रैल, 2006 तक एसईआरसी द्वारा निर्धारित की जाने वाली टैरिफ पर लागू होगा|

विद्युत कीमत के सन्दर्भ में अपरम्परागत तकनीकें परम्परागत साधनों के साथ मुकाबला कर सकें इसमें कुछ समय लगेगा| अतः वितरण कम्पनियों द्वारा विद्युत का अर्जन उपयुक्त आयोग द्वारा निर्धारित टैरिफ वरीयता के आधार पर किया जायेगा|

2)  भावी जरूरतों के लिए ऐसा अर्जन लाइसेंसियों द्वारा यथासंभव आपूर्तिकर्ताओं के उसी प्रकार अपारंपरिक उर्जा स्रोत प्रस्तावों के तहत अधिनियम के खंड 63 के अंतर्गत प्रतिस्पर्धात्मक बोली प्रकिया के जरिये किया जायेगा|  दीर्घावधि में इन प्रौद्योगिकियों को लागत के मामले में अन्य स्रोतों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ेगी|

3)  केन्द्रीय आयोग को अपारंपरिक साधनों से अनिश्चित विद्युत के मूल्य निर्धारण हेतु तीन महीने के भीतर दिशानिर्देशों जारी करना चाहिए| इसका अनुसरण ऐसे मामलों में किया जायेगा जहाँ पर विद्युत का अर्जन प्रतियोगी बोली के माध्यम से नहीं है|

पारेषण

देश में पारेषण प्रणाली क्षेत्रीय नेटवर्क पर आधारित है, अंतःक्षेत्रीय सम्बन्ध के जरिये विद्युत को 5 प्रदेशों और राज्य नेटवर्क में पहुँचाया जाता है| भारत में राष्ट्रीय पारेषण नेटवर्क इस समय विकास की अवस्था में है| राज्य नेटवर्कों का विकास एक समान नहीं रहा है और इन नेटवर्कों में सक्षमता में विस्तार की जरूरत है| ये नेटवर्क अंतःराज्यीय विद्युत प्रवाह और क्षेत्रीय व राष्ट्रीय प्रवाह में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे| टैरिफ और पारेषण नीति से निम्नांकित उद्देश्यों की पूर्ति होगी-

  1. देश में उत्पादन एवं पारेषण सम्पतियों के कुशल उपयोग को प्रोत्साहित करने के लये पारेषण नेटवर्क का इष्टतम विकास सुनिश्चित करना|
  2. पारेषण क्षेत्र अपेक्षित निवेश आकर्षित करना और पर्याप्त रिटर्न उपलब्ध कराना|

7.1 पारेषण कीमत निर्धारण

1)  राज्य के भीतर हस्तांतरण और मध्यवर्ती राज्य में विद्युत पारेषण, जो ऐसे अंतःराज्य पारेषण की आनुषांगिक हो, को मिलाकर अंतःराज्य पारेषण के लिए उपयुक्त पारेषण टैरिफ ढांचा बनाये जाने की जरूरत है ताकि समूचे देश में सभी परिसम्पत्तियों के प्रभावी उपयोग को प्रोत्साहन किया जा सके और अपेक्षित नई पारेषण क्षमताओं का तीव्र विकास किया जा सके|

2)  राष्ट्रीय विद्युत नीति के अनुसार कार्यान्वयनाधीन राष्ट्रीय टैरिफ ढांचा दूरी, दिशा और विद्युत प्रवाह परिणाम के प्रति संवेदनशील होना चाहिए| सीईए की सलाह को ध्यान में रखते हुए इसे सीईआरसी द्वारा विकसित किया जायेगा| यह टैरिफ कार्यविधि  01 अप्रैल, 2006 से लागू होगी|

3)  इस ढांचे के अतर्गत पारेषण प्रभार प्रति सर्किल किलोमीटर आधार जोनल पोस्टल स्टैम्प आधार अथवा व्यावहारिकता आधार पर निर्धारित किया जा सकता ही| इसका प्रयोजन यही है कि पारेषण प्रणाली प्रयोक्ताओं के बीच पारेषण लागत का बंटवारा पारेषण प्रणाली उपयोग के आधार पर हो सके| समग्र टैरिफ ढांचा इस प्रकार होना चाहिए कि वह नियोजित विकास/पारेषण प्रणाली के विस्तार के प्रभावित न करे बल्कि गैर-इष्टतम पारेषण निवेश को हतोत्साहित करे|

4)  एनईपी द्वारा निर्धारित दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए नेटवर्क विस्तार के लिए लाभार्थियों के साथ पूर्व करार पूर्ण शर्त नहीं होनी चाहिए| सीटीयू/एसटीयू को नेटवर्क का विस्तार स्टेकहोल्डरों के साथ परामर्श करके और राष्ट्रीय विद्युत योजना के अनुसार आवश्यकता का पता लगाने के पश्चात और उचित नियामक अनुमोदनों के पश्चात कार्य आरंभ करने के बाद करना चाहिए|

5)  केन्द्रीय आयोग एक वर्ष की अवधि के भीतर पूंजी एवं प्रचालन सम्बन्धी लागत के लिए मानदंड तथा विभिन्न वाल्टेज स्तरों पर पारेषण लाइनों के लिए प्रचालनात्मक मानक एंव निष्पादन सूचक तैयार करेगा|

6)  सीटीयू/एसटीयू के अलावा पारेषण विकासकर्ता द्वारा निवेश प्रतिस्पर्धात्मक बोली के जरिये आमंत्रित की जाएगी| पारेषण क्षमताओं के विकास के लिए बोली प्रक्रिया हेतु केद्र सरकार तीन माह के भीतर दिशानिर्देश जारी करेगी| पांच वर्षों के अवधि के पश्चात अथवा जब विनियामक आयोग यह समझे कि अब ऐसी प्रतिस्पर्धा शुरू करने का उचित समय (जैसा कि पैरा 5:1  में वर्णित ही) सीटीयू/एसटीयू द्वारा विकसित की जाने वाली परियोजनाओं की टैरिफ भी प्रतिस्पर्धात्मक बोली के आधार पर निर्धारित की जाएगी|

7)  अंतःराज्य पारेषण के लिए प्रस्तावित ढांचे कार्यान्वयन के पश्चात् आगामी दो वर्षों में एसईआरसी द्वारा दूरी, दिशा व प्रवाह परिणाम आदि जैसे कारकों पर भली भांति विचार करते हए उसी प्रकार का दृष्टिकोण अपनाया जाए|

8)  प्रस्तावित पारेषण टैरिफ ढांचे की जरूरतों के मुताबिक मिटिरिंग को प्राथमिकता आधार पर पूरा किया जाए| मिटिरिंग एबीटी जरूरतों के अनुकूल होनी चाहिए, इससे टाइम ऑफ़ डे टैरिफ का कार्यान्वयन भी आसान होगा|

7.2 पारेषण हानि आबंटन सम्बन्धी दृष्टिकोण

1)   पारेषण प्रणाली सम्बन्धी वोल्टेज स्तर पर समान दूरी एवं दिशागत संवेदनशीलता पर उपयुक्त विचार करने के पश्चात औसत हानियों के आधार और सौदे किये जाने चाहिए| अंतः राज्य पारेषण के लिए इस बारे में सीईआरसी द्वारा निर्धारित पद्धति के आधार पर नियामक मंच अंतःराज्य पारेषण के लिए समान दृष्टिकोण विकसित कर सकता है|

हानिगत ढांचे में यह सुनिश्चित कराया जाये कि क्षतिपूर्ति जरुरी है और इससे तकनीकी हानिगत बेंचमार्क से जोड़ा जाये| उपयुक्त आयोग सीईए की सलाह पर विचार करते हुए बेंचमार्क तय करे|

बढ़ती हुई हानियों को ध्यान में रखते हुए हानि की क्षतिपूर्ति के लिए एक प्रणाली बनाना वांछनीय होगा क्योंकि पारेषण क्षमतातों में मौजूद कमियों को नेटवर्क विस्तार के जरिये पूरा किया जा सकता है|

2)  उपयुक्त आयोग को नेटवर्क व पारेषण प्रणाली विस्तार के लिए अपेक्षित व्यय तथा प्रणालियों हानियों को कम करने के लिए प्रणालीगत हानि का एक अनुमत्य स्तर तय करने के लिए आवश्यक अध्ययन कराने जरुरी होंगे| चूँकि एक स्तर के बाद अतिरिक्त भार से हानियाँ अपेक्षाकृत बढ़ जाती है, अतएव भार अतिरेक की स्थिति से बचने के लिए सीटीयू/एसटीयू को पारेषण प्रणालियों की उन्नयन को सुनिश्चित करना चाहिए| पारेषण प्रणाली की उन्नयन के लिए उपयुक्त आयोग को नई परिसम्पत्तियों में पर्याप्त पूंजी निवेशों को अनुमति प्रदान करनी चाहिए|

7.3  पारेषण में अन्य मामले

1) इन संगठनों के लिए की परफारमेंस इंडिकेटर्स (केपीआई) के आसपास सिटीयू तथा एसटीयू हेतु वित्तीय प्रोत्साहन व अप्रोत्साहन लागू किये जाने चाहिए| ऐसे केपीआई में कुशल नेटवर्क निर्माण, प्रणालीगत उपलब्धता व हानि में कमी शामिल है|

2) सीटीयू/एसटीयू तथा भार प्रेषण केन्द्रों द्वारा प्रयोक्ताओं के साथ सभी उपलब्ध सूचना विशेषतया उपलब्ध पारेषण क्षमता व भार प्रवाह अध्ययन सम्बन्धि सूचना को शेयर किया जाना चाहिए|

वितरण

कुशल तरीके से तथा उचित दर पर विनिद्रिष्टि मानकों के मुताबिक विश्वसनीय एंव अच्छी बिजली उपलब्ध कराना राष्ट्रीय विद्युत निति क एक मुख्य उद्देश्य है| राज्य आयोग को सभी उपभोक्ताओं के लिए सेवा की गुणवत्ता, निरंतरता एवं विश्वसनीयता के लिए लाइसेंसियों के निष्पादन-मानक निर्धारित एवं अधिसूचित करने चाहिए| यह आवश्यक है कि विनियामक मंच सेवा मानकों पर मूल ढांचा निर्धारित करें| यथाशीघ्र सेवा के अपेक्षित स्तर पर पहुँचने के लिए लाइसेंसियों को उपयुक्त ट्रांजिशन संरचना उपलब्ध कराया जा सकता है| उक्त मानकों का पालन नहीं करने पर अधिनियम की धारा 57  के अनुसार लाइसेंसियों पर दंड आरोपित किये जा सकते हैं|

उद्योग के वितरण पक्ष को कुशल बनाना विद्युत क्षेत्र सुधार में तथा विनिद्रिष्टि मानकों के अनुसार सेवा का प्रावधान सफलता की कुंजी है| यह जरुरी है कि नियामक आयोग वितरण लाइसेंसियों की वाणिज्यिक व्यवहार्यता की आवश्यकताओं तथा उपभोक्ता हितों के बीच संतुलन सुनिश्चित करें| हानिकारक यूटिलिटियों को लाभपरक यूटिलिटियों में बदलने से भारत अपनी पूरी विकास संभावना संदोहन में समर्थ बनने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मानकों की सेवाएं उपलब्ध कराने हेतु पूंजी बाजारों से आवश्यक संसाधन जुटा सकता है| प्रचालनगत क्षमता को प्रोत्साहित किया जाए| उपभोक्ता और लाइसेंसधारकों, दोनों को इसका लाभ प्राप्त हो सके|

8.1 मल्टी ईयर टैरिफ (एमवाईटी ) ढांचे का कार्यान्वयन

1) इससे यूटिलिटियों और उपभोक्ताओं का जोखिम कम होगा, क्षमता में सुधार होगा तथा प्रणालीगत हानियों में कमी आएगी और निवेश आकर्षित होंगे तथा इससे विद्युत् खरीद कीमतों और मुद्रास्फीति सूचकांकों के ज्ञात सूचकों में टैरिफ समायोजन को सिमित करके समग्र सरूप से उपभोक्ता|

टैरिफ के सम्बन्ध में व्यापक अनुमान तैयार हो सकेंगे| यह ढांचा सरकारी तथा निजी दोनों यूटिलिटियों पर लागू होगा|

2)राज्य आयोगों को समग्र एमवाईटी ढांचे के एक भाग के रूपमें उपभोक्ताओं के लाभ और हानियों के शेयर करने किए कार्यविधि विकसित करनी चाहिए| पहली नियंत्रण अवधि में यूटिलिटियों का प्रोत्साहन प्रतिशत यूटिलिटी द्वारा वहन की गई हानियों की तुलना में अपेक्षाकृत उच्च स्तरों पर यूटिलिटी द्वारा धारित अधिक लाभ प्रतिशत से विषम हो सकता है| निष्पादन में सुधार और हानियों मी कमी के लिए यह जरुरी है और दीर्घकाल में टैरिफ में कमी के जरिये इससे उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा हो सकेगी|

3) जैसा कि पैरा 5.3 (ज) में इंगित है| आरंभिक नियंत्रण अवधि में कार्यान्वित किया गया एमवाईटी ढांचा पूरी की जा रही मीटरिंग के परिणामस्वरूप बेसलाइनों में होने वाले परिवर्तनों क समायोजन करने के लिए पर्याप्त रूप से लचीला होना चाहिए|

4) यदि प्रतिस्पर्धात्मक दशाओं में आवश्यक हो तो लाइसेसियों के पास राज्य आयोग द्वारा अनुमोदित टैरिफ से कम टैरिफ वसूलने के नम्यता हो सकती है, बशतें वे अधिनियम की धारा 62  के अनुसार इसके कारण अतिरिक्त राजस्व की आवश्यकता की पूर्ति के लिए दावा न करें|

5) नियंत्रण अवधि के आरंभ में जब वास्तविक मूल्य भावी प्रक्षेपणों के लिए आधार तैयार करती हो, अपेक्षित टैरिफ और वर्तमान रूप में लागू टैरिफों के बीच बहुत बड़ा अंतराल हो सकता है इस अंतराल को टैरिफ शुल्कों और वैकल्पिक साधनों के माध्यम से पूरा किया जाना चाहिए जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ वित्तीय पुनर्गठन और संक्रमणकालीन वित्त व्यवस्था शामिल है|

6) पदधारी लाइसेंसयोंधारियों के पास उस क्षेत्र के लिए पृथक राजस्व आवश्यकताओं और टैरिफ फाइल करने का विकल्प होना चाहिए जहाँ राज्य आयोग ने राष्ट्रीय विद्युत नीति के पैरा 5.4.7 के साथ पठित अधिनियम की धारा 14  प्रावधानों के अनुसरण में बहुवितरण लाइसेंस जारी किये हैं|

7) उपयुक्त आयोगों को लाइसेंसयोंधारियों द्वारा समय पर फाइल न किये जाने की स्थिति में  अपनी ओर से टैरिफ निर्धारण और विनयामक जाँच शुरू करनी चाहिए| यह वांछनीय है कि अपेक्षित टैरिफ परिवर्तन प्रत्येक वित्तीय वर्ष के आरंभ की तारीख से प्रभावी हो और फाइलिंग में विलम्ब के कारण होने वाला अंतराल लाइसेंसधारियों के कारण होना चाहिए|

8.2 राजस्व आवश्यकताओं और लागतों हेतु ढांचा

8.2.1  टैरिफ निर्धारण मने निम्नलिखित तथ्यों पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है-

1) सभी विद्युत क्रय लागतों का वैध समझा जाना आवश्यक है जब तक कि यह स्थापित न कर दिया जाए कि मेरिट आदेश सिद्धांत का उल्लंघन किया गया है और अनुचित दरों पर विद्युत का क्रय किया गया गया है| सकल तकनीकी एवं वाणिज्यिक (एटीसी) हानियों को उजागर किये जाने की आवश्यकता है, किन्तु 24  घंटें की आपूर्ति के लिए विद्युत क्रय और आवश्यक एवं उचित ओ एंड एम तथा प्रणाली उत्थान हेतु निवेश के लिए अपेक्षित राजस्व को अस्वीकार किये बिना| विशेष रूप से उन उपभोक्ताओं को जो ऐसी टैरिफ का भुगतान करने के लिए तैय्रार है जो वास्तविक लागतों पर आधारित है, गुणवत्तापरक विद्युत की चौबीसों घंटें नियमित आपूर्ति पाने का अधिकार है| एम वाई टी ट्रेजेक्टरी में इंगित टी एंड डी हानियों के नियामक स्तर के अनुसार कुल फुटकर बिक्री का वास्तविक आकलन करना चाहिए ताकि उचित विद्युत खरीद अनुपात अंतर (उदाहरणार्थ’, कम बारिश होने की स्थिति में ताप विद्युत उतपादन से और अधिक उर्जा खरीदी जा सकती है) की शर्त पर एस ई आर सी की विनियमों के अनुसार विद्युत खरीद की लागत तथा ईंधन अधिकार समायोजन को अनुमति दी जा सके|

2) प्राप्त किये जाने योग्य ट्राजेक्टरी को एमवाईटी ढांचे में लाभ से जोड़कर एटीसी हानि कमी को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए| व्यापक पारदर्शिता और उपभोक्ता समुदायों का पालन प्रभावकारी होगा| सरकारी स्वामित्व वाली यूटिलिटियों के संबध में एटोसी हानि कमी प्राप्त करने के लिए शासन में सुधार करना राज्य विद्युत नियामक आयोगों के लिए एक बहुत ही कठिन कार्य एवं गभीर चुनौती होगी| पूरी लागतों को सम्मिलित करने का लक्ष्य रखने वाले विभिन्न एटीसी हानि स्तरों से सम्बद्ध आगामी वर्षों में उपभोक्ता टैरिफों के विभिन्न स्तरों के साथ एमवाईटी व्यवस्था चोरी को कम करने के लिए प्रभावी कार्यवाही हेतु अपेक्षित राजनितिक इच्छा का सृजन कर सकता है क्योंकि इसका विकल्प टैरिफ वृद्धि होगा| विभिन्न क्षेत्रों/मोहल्लों के उर्जा लेखा परिणामों की तृतीय पक्ष जाँच का इस्तेमाल एटीसी हानि स्तरों हेतु क्षेत्र/मोहल्ला विशेष अधिशुल्क लगाने के लिए किया जा सकता है और बदले में इससे अच्छे शासन के लिए प्रभावी कार्यवाही हेतु स्थानीय सामंजस्य का सृजन हो सकता है| राज्य विद्युत नियामक आयोग हानियों में कमी से सम्बद्ध यूटिलिटियों के स्टाफ के लिए उपयुक्त स्थानीय क्षेत्र आधारित प्रोत्साहक एंव गैर-प्रोत्साहक योजना को भी प्रोत्साहित कर सकते हैं|

एसईआरसी लाइसेंसी के प्रत्येक वितरण सर्किल के सम्बन्ध में विभिन्न पैरामीटरों हेतु बेस लाईन आंकड़ों का स्वतंत्र मूल्यांकन करेगा और यह कार्य मार्च, 2007 तक पूरा हो जाना चाहिए|

एसईआरसी लाइसेंसियों द्वारा प्रस्तुत वित्तीय और तकनीकी आंकड़ों की स्वतंत्र जाँच की एक प्रणाली भी स्थापित करेगा|

चूँकि मीटरिंग वितरण नेटवर्क उचित स्तर तक पूरी हो चुकी है इसलिए तकनीकी हानियों के मार्च, 2007 से पहले पृथक करना सम्भव होना चाहिए| तदनुसार. एमवाईटी ढांचें के अंतर्गत तकनीकी हानि कमी को तब वाणिज्यिक हानि कमी से अलग समझा जाना चाहिए जिसके लिए अलग दृष्टिकोण अपेक्षित होता है|

3) अधिनियम की धारा 65 प्रावधान करती है कि राज्य आयोग द्वारा निर्धारित किये गए टैरिफ में उपभोक्ताओं को सब्सिडी प्रदान करने के सम्बन्ध में राज्य सरकार का कोई निर्देश प्रभावी नहीं होगा यदि राज्य आयोग द्वारा निर्धारित सब्सिडी के कारण भुगतान यूटिलिटियों को नहीं किया जाता है और राज्य आयोग द्वारा निर्धारित टैरिफ इस सबंध में आयोग द्वारा जारी किये गये आदेशों की तर्रिख से लागू होगा| राज्य आयोगों को यूटिलिटियों की वित्तीय व्यवहार्यता को सुनिश्चित करने के लिए कानून के इस प्रावधान के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए, राज्य आयोग को राज्य सरकार द्वारा वचनबद्धता पर विचार किये बिना आरंभ में टैरिफ निर्धारण करना चाहिए और उपभोक्ताओं की सम्बन्धित श्रेणियों के लिए राज्य सरकार द्वारा सब्सिडी पर विचार करने के पश्चात सब्सिडी प्राप्त टैरिफ निर्धारित होगी|

4) यूटिलिटियों द्वारा सामना किये जा रहे ट्रांजिशन मामलों जैसे कि बिलों की वसूली में प्रगतिकात्मक सुधार आदि की पर्याप्त रूप से पहचान करते हुए कार्यशील पूंजी की अनुमति दी जानी चाहिए| संदिग्ध ऋणों को विकसित नीतियों के अनुसार तथा राज्य आयोग के अनुमोदन के अधीन अभिज्ञात किया जाना चाहिए|

5) पिछली हानियों और लाभों के पास-थ्रू की अनुमति गैर-नियंत्रणीय कारक एमवाईटी ढांचे के अंतर्गत निर्धारित अनुपातों में युटिलिटियों  और उपभोक्ताओं के अनुसार होने चाहिए|

6) आकस्मिक कोष राज्य आयोग के विनियमों के माध्यम से विनिदिष्ट आकस्मिक दशाओं की स्थिति में ही केवल राज्य आयोग के पूर्व अनुमोदन के साथ बनाये जाने चाहिए|

8.2.2  किसी विशेष वर्ष में टैरिफ प्रभाव  को सिमित करने के लिए गत समय में नियामक परिसम्पत्ति की सुविधा को कुछ नियामक आयोगों द्वारा अपनाया गया है| यह केवल अपवाद के रूप में ही किया जाना चाहिए और निम्नलिखित दिशानिर्देशों का अधीन होना चाहिए-

क) परिस्थितियों को नियमों के माध्यम से स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए और इसमें केवल प्राकृतिक कारणों या जबरनबंदी की दशाओं को शामिल किया जाना चाहिए| सामान्य शर्तों के रूप  में व्यापार के अंतर्गत, पूरा न किये गए अंतराल के आरंभिक शेषों को ट्रांजिक्शन वित्त व्वयस्था अथवा पूंजी पुनर्गठन के माध्यम से पूरा किया जाना चाहिए|

ख) नियामक परिसम्पत्ति की लागत की अनुमति यूटिलिटियों को दी जानी चाहिए|

ग) नियामक परिसम्पति की वसूली समयबद्ध होनी चाहिए और अधिकतम तीन वर्ष की अवधि के भीतर होनी चाहिए तथा वरीय रूप से नियंत्रण अवधि के भीतर होनी चाहिए|

घ) नियामक परिसम्पत्ति की सुविधा के प्रयोग की पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए|

ड.) उन मामलों में जहाँ नियामक परिसम्पत्ति को अपनाने का प्रस्ताव है, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इक्विटी पर रिटर्न किसी वर्ष में अनुसूचित रूप से कम नहीं होनी चाहिए ताकि लाइसेंसी की ऋण लेने की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े|

8.3  टैरिफ डिजाईन: टैरिफ को सेवा लागत से जोड़ा जाना

यह व्यापक रूप से अभिज्ञात किया गया है कि विद्युत का यौक्तिक एवं आर्थिक मूल्य निर्धारण उर्जा संरक्षण और भू-जल संसाधनों के स्थिर प्रयोग हेतु बड़े उपकरणों में से एक हो सकता है|

अधिनियम की धारा 61 (छ) की शर्तों के अनुसार उपयुक्त आयोग इस उद्देश्य से दिशानिर्देशित होगा कि टैरिफ विद्युत की आपूर्ति लागत को कुशलता एवं दूरदर्शितापूर्ण तरीके से उतरोत्तर प्रतिबिंबित करे|

राज्य सरकारें अधिनियम की धारा 65 के प्रावधानों के अनुसार उपयुक्त मानी गई सीमा तक सब्सिडी दे सकती हैं| प्रत्यक्ष सब्सिडी उपभोक्ताओं की गरीब श्रेणियों को सहायता देने के लिए देश के बाहर टैरिफ को क्रास सब्सिडाइज करने की प्रणाली से अधिक अच्छा तरीका है| सब्सिडियों को प्रभावी रूप से और पारदर्शक रूप में लक्षित किया जाना चाहिए| क्रास-सब्सिडियों के विकल्प के रूप में, राज्य सरकार के पास विद्युत शुल्क प्रणाली के माध्यम से संसाधन जुटाने और केवल जरूरतमंद उपभोक्ताओं को प्रत्यक्ष सब्सिडियों का लाभ प्रदान करने का एक विकल्प विद्यमान है, सब्सिडी का प्रभावी रूप से लक्ष्य बनाने का यह अच्छा तरीका है|

तदनुसार निम्नलिखित सिद्धांत अपनाएं जायेंगे:-

1) राष्ट्रीय विद्युत नीति के अनुसार, गरीबी रेखा से नीचे के उपभोक्ता जो 30 यूनिट प्रतिमाह के विनिद्रिष्टि स्तर से नीचे उपभोग करते हैं , को क्रोस सब्सिडी के माध्यम से विशेष सहायता प्राप्त हो सकती है| उपभोक्ताओं के ऐसे नामित समूह के लिए टैरिफ आपूर्ति की औसत लागत का कम से कम 50%  होगी| इस प्रावधान की पांच वर्ष के पश्चात दुबारा जाँच की जाएगी|

2) विद्युत आपूर्ति की लागत को टैरिफ द्वारा उत्तरोतर प्रतिबिम्बित करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, राज्य विद्युत् नियामक आयोग सितबर, 2005  तक रोड मैप अधिसूचित करेगा जिसका लक्ष्य होगा कि टैरिफ 2010-2011  के अंत तक, आपूर्ति की औसत लागत का +20% हो | क्रोस सब्सिडी में क्रमिक कमी के दृष्टिकोण के आधार पर रोड मैप मध्यस्थ माइलस्टोन भी होंगे|

उदाहरणार्थ यदि सेवा की औसत लागत वर्ष 2010-2011  के अंत में 3 रूपये प्रति यूनिट है तो उपरोक्त पैरा 1 में संदर्भित श्रेणियों को छोड़कर क्रास सब्सिडी वाली श्रेणियों के लिए टैरिफ 2.40 पये प्रति यूनिट अधिक नही होनी चाहिए|

3) कृषि उपयोग हेतु टैरिफ निर्धारित करते समय, संपोषित तरीके से भू-जल संसाधनों के प्रयोग की आवश्यकता के निर्देशों को भी आपूर्ति की औसत लागत के अतिरिक्त ध्यान में रखना होगा| कृषि उपयोग हेतु टैरिफ भू-जल की अत्यधिक हानि को रोकने के लिए भू-जल तालिका की स्थिति के आधार पर राज्य के विभिन्न भागों के लिए विभिन्न स्तरों पर निर्धारित की जा सकती है| अधिनियम की धारा 62(3) प्रबंध करती है कि किसी क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति टैरिफ अंतर के लिए मानदंड हो सकती है| उस क्षेत्र के गरीब किसानों की सहायता देने के लिए सब्सिडी के अधिकतम स्तर का विचार किया जा सकता हिया जहाँ भूजल स्तरों की देखरेख और सतत भूजल प्रयोग को सुनिश्चित करने के लिए उचित प्रतिबन्धों के अधीन सिंचाई उद्देश्यों हेतु विद्युत की बड़ी मात्रा की आवश्यकता होती है|

4) उपभोक्ताओं की विभिन्न श्रेणियों के लिए सब्सिडी की सीमा विभिन्न सम्बन्धित पहलुओं को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार द्वारा निर्धारित की जा सकती है| किन्तु निशुल्क विद्युत का प्रावधान वांछनीय नहीं है क्योंकि यह विद्युत के व्यर्थ उपभोग को प्रोत्साहित करता है, इसके अलावा बहुत से मामलों में जल तालिका मी कमी होती है जिससे आने वाली पीढ़ियों के लिए सिंचाई और पीने की कमी की परिहार्य समस्या पैदा होती है| इससे विद्युत की मांग में तीव्र वृद्धि होने की भी सम्भावना है जिससे वितरण नेटवर्क पर बल पड़ता है और इस प्रकार विद्युत की आपूर्ति की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है| अतः यह आवश्यक है की उचित स्तर प्रयोगकर्ता शुल्क लगाएं जाएँ| विद्युत की सब्सिडी प्राप्त दरों की अनुमति उपभोग के केवल पूर्व-अभिज्ञात स्तर तक ही दी जानी चाहिए जिसके बाद सेवा के की दक्ष लागत प्रदर्शित करने वाली टैरिफ उपभोक्ताओं से लिए जाने चाहिए| यदि राज्य सरकार उपभोक्ताओं की गरीब श्रेणी को विद्युत की लागत का कुछ भाग ही प्रतिपूर्ति के रूप में देना चाहती है तो इस राशि को नकद अथवा किसी अन्य उपयुक्त तरीके से दिया जा सकता है| पूर्व-देय मीटरों के प्रयोग से भी ऐसे उपभोक्ताओं को सब्सिडी का स्थानान्तरण सुगम हो सकता है|

5) कृषि/ग्रामीण उपभोक्ताओं के सबंध में आपूर्ति की मीटरिंग पंचायत संस्थानों, प्रयोगकर्त्ता संगठनों, सहकारी समितियों आदि की भागेदारी से फ्रैचाइजियों के साथ वाणिज्यिक व्यवस्था के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय वितरण के प्रबंधन द्वारा प्रभावी तरीके से तथा उपभोक्ताकी सुविधानुसार प्राप्त की जा सकती है| सिमित प्रयोग उपभोक्ताओं, जो सब्सिडी प्राप्त विद्युत के लिए पात्र हो, के मामलों में मीटरिंग हेतु किफायती विकल्प के रूप में स्वयं बंद होने वाल्व नियंत्रकों (लोड लिमिटरों) को प्रोत्साहित किया जा सकता है|

8.4 टैरिफ घटकों की परिभाषा और उनको लागू करना

1) अलग-अलग स्थायी और परिवर्तनीय शुल्कों तथा समय अन्तराल वाले टैरिफ की विशेषता वाले टू-पार्ट टैरिफों को बड़े उपभोक्ताओं (अर्थात् 1 मेगावाट से अधिक की मांग वाले उपभोक्ता) के लिए प्राथमिक रूप से शुरू किया जायेगा| इसे व्यस्ततम मांग को पूरा करने और विभिन्न संरक्षण उपायों को कार्यान्वित करने में भी मदद मिलेगी|

2) राष्ट्रीय विद्युत नीति बताती है कि उत्पादन कम्पनियों के साथ हुए विद्यमान पीपीए को उत्तराधिकारी वितरण कम्पनियों को उपयुक्त रूप से सौपें जाने की आवश्यकता होगी|  राज्य सरकारें वितरण कम्पिनियों की विभिन्न लोड प्रोफाइलों को ध्यान में रखते हुए ऐसी व्यवस्था कर सकती है ताकि उपभोक्ताओं की विभिन्न श्रेणियों के लिए राज्य में रिटेल टैरिफ समान रहें| इसके पश्चात रिटेल टैरिफ प्रतियोगी लागतों पर विद्युत प्राप्त करने, चोरी को नियंत्रित करने और अन्य वितरण हानियों को कम करने में वितरण कम्पिनयों की सम्बन्धित दक्षता उजागार होगी|

3) राज्य आयोग विशेष रूप से उपभोक्ताओं की उन श्रेणियों के लिए मीटरीकृत टैरिफों के आधार मीटरिंग और विलिंग को प्रोत्साहित करने के लिए प्रोत्साहन दे सकती है जिनका वर्तमान में काफी हद तक मीटरिंग नही होती है| मीटरिंग टैरिफ और प्रोत्साहनों का व्यापक प्रचार किया जाना चाहिय|

4) राज्य विद्युत नियामक आयोग वितरण लाइसेंसी द्वारा वसूल किये जाने वाले कनैक्शन प्रभारों को पर्याप्त रूप से नियंत्रित भी कर सकती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दूसरा वितरण लाइसेंसी अनुचित कनैक्शन  प्रभारों की मांग करके अतिरिक्त मुनाफे का सहारा न ले| दुसरे लाइसेंसी का कनेक्शन शुल्क वर्तमान लाइसेंसी द्वारा देय शुल्क से अधिक नहीं होना चाहिए|

8.5  खुली पहुँच के लिए क्रास सब्सिडी अधिभार एवं अतिरिक्त अधिमार

1) राष्ट्रीय विद्युत नीति के अनुसार क्रास सब्सिडी अधिमार और खुली पहुँच की अनुमति वाले उपभोक्ताओं से वसूल किया जाने वाला अतिरिक्त अधिमार इतना अधिक नहीं होना चाहिए कि वह प्रतिस्पर्धा को समाप्त कर दे जो कि खुली पहुँच के माध्यम से प्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ता के लिए विद्युत उत्पादन व आपूर्ति में विकसित की जानी है|

उपभोक्ता, जिसे खुले पहुँच की अनुमति प्राप्त है, को उत्पादनकर्त्ता, पारेषण लाइसेंसधारक, जिसकी पारेषण प्रणालियों, व्हीलिंग प्रभारों के लिए वितरण यूटिलिटी के आलावा क्रास सब्सिडी अधिभार, को उपयोग में लाया जाता है, को भुगतान करना होगा| अतः क्रास सब्सिडी अधिमार का परिकलन इस प्रकार से करने  की जरुरत है वितरण लाइसेंसी क्षतिपूर्ति की दशा में खुली पहुँच के जरिये प्रतिस्पर्धा में बाधा नहीं आए उपभोक्ता खुली पहुँच की सुविधा तभी लेगा जब सभी प्रभारों क भुगतान करने पर भी उसे लाभ प्राप्त हो|  वितरण लाइसेंसी के हित संरक्षण  की स्थिति में यह जरुरी होगा कि अधिनियम के प्रावधानों जिसमें चरणबद्ध ढंग से खुली पंहुच को शुरू करने की अपेक्षा की गई है, को उपभोक्ताओं के व्यापक हित में प्रतिस्पर्धा हेतु उपयोग में लाया जाए|

तदनुसार, यदि खुली पहुँच की अनुमति प्रदान की जाती है तो धारा 38, 39, 40  के प्रयोजन और धारा 42 की उपधारा 2 के प्रयोजन के लिए सरचार्च का आंकलन (1) सम्बन्धित श्रेणी के उपभोक्ताओं के लिए लागू टैरिफ और (ii)  लागू वर्ग के उपभोक्ताओं के लिए विद्युत आपूर्ति किये जाने हेतु विद्युत लाइसेंसधारी की लागत के बीच अंतर के रूप में किया जायेगा| यदि कोई उपभोक्ता खुली पंहुच का विकल्प अपनाता है अति वितरण लाइसेंसीधारी मैरिट क्रम के मार्जिन पर विद्युत की खरीद रोक सकता है| तदनुसार, इस प्रयोजनार्थ उपभोक्ताओं के लिए आपूर्ति लागत का आंकलन (क) सम्बन्धित वोल्टता स्तर की औसत हानि प्रतिपूर्ति के लिए समायोजित और एसईआरसी द्वारा अनुमोदित मैरिट क्रम, में तरल पदार्थ ईंधन आधारित उत्पादन को छोड़कर, मार्जिन पर शीर्षतम 5% विद्युत की खरीद लागत का भारित औसत (स्थिर व परिवर्तनशील प्रभार समेत) और (ख) अंतःराज्यीय पारेषण प्रभारों के लिए यथा निद्रिष्ट सिद्धांतों पर निर्धारित वितरण प्रभार आदि के कुल योग  के रूप में किया जा सकता है|

सरचार्ज फार्मूला

S=T-[1+L/100)+D]

जिसमें

S – सरचार्ज

T-  उपभोक्ताओं की सम्बन्धित श्रेणी द्वारा देय टैरिफ

C - तरल पदार्थ ईंधन आधारित उत्पादन अक्षय उर्जा को छोड़कर, मार्जिन पर शीर्षतम 5% विद्युत की खरीद की भारित औसत लागत

D – व्हीलिंग प्रभार

L – लागू वोल्टता स्तर हेतु प्रणालीगत हानियाँ जो प्रतिशत के रूप में व्यस्त हैं|

क्रास सब्सिडी सरचार्ज को उत्तरोत्तर कम किया जाना चाहिए और जहाँ तक संभव हो लाइनियर रेट पर वर्ष 2010-11 तक अधिकतम इसके आरंभिक स्तर के 20% तक|

2) विद्युत अधिनियम 1948 (अब निरस्त) की धारा 43(ए) (सी) के अंतर्गत सक्षम सरकार की सहमति के साथ विद्युत उत्पादन कम्पनियों द्वारा बेचीं जा रही विद्युत पर और भारतीय विद्युत अधिनियम, 1910 (अब निरस्त) की धारा 27 के अंतर्गत राज्य सरकार की अनुमति की आधार पर जब तक यह अनुमति वैध है, वितरण लाइसेंसी द्वारा आपूर्ति की जा रही है विद्युत पर किसी प्रभार का भुगतान करना अपेक्षित नहीं होगा|

3) अधिभार वितरण लाइसेंसी, पारेषण लाइसेंसी, एसटीयू यह सीटीयू किसी के द्वारा एकत्रित किय जा सकता| इस आधार पर कि विद्युत प्राप्त करने के लिए किसकी सुविधाएँ उपयोग में लाई जा रही है| सभी मामलों में किसी विशेष उपभोक्ता से एकत्रित राशियाँ उस वितरण लाइसेंसी को दी जानी चाहिए जिसके क्षेत्र में उपभोक्ता स्थित है| एक ही क्षेत्र में आपूर्ति कर रहे दो लाइसेंसधारियों के मामले में उस लाइसेंसधारी को एकत्रित की गई राशियाँ दी जाएँगी जिससे उपभोक्ता आपूर्ति का लाभ उठा रहा है|

4) अधिनियम की धारा 42(4) के अनुसार आपूर्ति के उत्तरदायित्व हेतु अतिरिक्त प्रभार केवल तभी लागू होना चाहिए जब अंतिम रूप से यह दर्शा दिया जाए कि विद्युत क्रय प्रतिबद्धताओं के सन्दर्भ में लाइसेंसी का उतरदायित्व समाप्त हो गया है या हो रहा है या ऐसे करार के परिणामस्वरूप निर्धारित की गई लागतों को वहन करने की अपरिहार्य देयताएं और स्थिति मौजूदा हैं| नेटवर्क परिसम्पत्तियों से सम्बन्धित निर्धारित लागतों को व्हीलिंग प्रभारों के माध्यम से वसूल किया जाएगा|

5) व्हीलिंग प्रभार अंतःराज्यीय पारेषण प्रभारों के लिए निर्धारित किये गए सिद्धांतों के आधार पर निर्धारित किये जाने चाहिए और इसके अलावा इसमें सम्बन्धित वोल्टेज स्तर का  औसतन हानि मुवावजा शामिल होगा|

6) खुली पहुँच वाले उपभोक्ता को जनरेटर आपूर्ति बंद होने के मामले में लाइसेंसी द्वारा उस उपभोक्ता श्रेणी के लिए उसे अस्थाई कनैक्शन देकर टैरिफ के भुगतान पर आरक्षित अव्यवस्था की जानी चाहिए जैसा कि उपयुक्त आयोग द्वारा निर्धारित किया गया है|

व्यापार मार्जिन

अधिनियम में यह व्यवस्था है कि उपयुक्त आयोग जरूरत होने पर व्यापार मार्जिन तय करे| यद्यपि बाजार को प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के लिए बिजली क्षेत्र में व्यापर को प्रोत्साहित करने की जरूरत है तो भी उपयुक्त आयोग लगातार व्यापार, लेने देंने के निगरानी करे और यह सुनिश्चित करे कि बिजली के व्यापारी बिजली कमी की स्थिति में ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने की मुहिम  में शामिल न हों| इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु व्यापार मार्जिन का निर्धारण जरुरी है|

 

स्रोत: विद्युत मंत्रालय, भारत सरकार|

अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020



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