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मध्यप्रदेश में लघु जल विद्युत आधारित विद्युत परियोजनाओं क्रियान्वयन नीति

मध्यप्रदेश में लघु जल विद्युत आधारित विद्युत परियोजनाओं क्रियान्वयन नीति

प्रस्तावना

1.1 जल विद्युत् ऊर्जा एक स्वच्छतम्, व्यावहारिक एवं चिर-नवीन ऊर्जा स्रोत है। अपारम्परिक ऊर्जा उत्पादन तथा संयंत्रों की स्थापना हेतु मध्यप्रदेश शासन द्वारा निरन्तर प्रयास किये गये हैं तथा इस कार्य के लिये नीति निर्धारण, प्रोत्साहन, विशिष्ट एजेन्सियों का गठन आदि किया गया है।

1.2 राज्य के भीतर उपलब्ध जल विद्युत् उत्पादन की विपुल क्षमता तथा उसके अद्यतन अनुपयोग के दृष्टिगत यह अत्यावश्यक है एक विर्निदिष्ट, व्यापक एवं उदार नीति बनाई जाए जिससे जल विद्युत् स्रोतों की क्षमता का त्वरित दोहन हो सके।

1.3 लघु जल विद्युत् ऊर्जा के क्षेत्र की आवश्यकताओं के सभी आयामों को सम्मिलित करते हुए यह नई नीति बनाई गई है, जिसमें विद्युत् उत्पादन एवं वितरण की वर्तमान वैधानिक स्थितियों एवं नियंत्रक ढांचे को ध्यान में रखा गया है।

संभावनाएं

2.1 यह नीति 25 मेगावाट क्षमता तक की सभी लघु जल विद्युत् परियोजनाओं पर लागू होगी जिन्हें जल संसाधन विभाग, नर्मदा घाटी

विकास प्राधिकरण, मध्यप्रदेश ऊर्जा उत्पादन कम्पनी मर्यादित किसी अन्य राज्य एजेन्सी अथवा किसी निजी एजेन्सी द्वारा चिन्हित किया गया हो। यह नीति उन परियोजनाओं के लिये भी लागू होगी जिनका आवंटन मध्यप्रदेश विद्युत् मण्डल (अब मध्यप्रदेश राज्य विद्युत् मंडल) या जल संसाधन विभाग/नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण द्वारा लघुजल विद्युत् परियोजना के विकास हेतु जारी प्रोत्साहन नीति दिनांक 26-9-1994 या दिनांक 8-8-2006 के अन्तर्गत किया गया हो, किन्तु जो अभी वाणिज्यिक उत्पादन की स्थिति तक न पहुँच सकी हो।

2.2 यह परियोजनाएं केप्टिव ऊर्जा परियोजनाएं अथवा स्वतंत्र ऊर्जा परियोजनाएं के लिये भी हो सकती है। केप्टिव परियोजना की परिभाषा विद्युत् अधिनियम, 2003 की धारा 2(8), धारा (9) के साथ पठित के अनुरूप होगी, जिसका वर्णन भारत शासन के ऊर्जा मंत्रालय द्वारा दिनांक 8 जून 2005 को अधिसूचित नियमावली 2005 में किया गया है।

2.3 सभी प्रकार से चिन्हित लघु जल विद्युत् परियोजनाओं, जिनकी उत्पादन क्षमता 25 मेगावाट तक है, की सूची अधिसूचित की जाएगी। यह सूची किसी भी राज्य एजेन्सी अथवा निजी एजेन्सी द्वारा किसी नवीन परियोजना स्थल के चिन्हित होने की सूचना प्राप्त होने पर तत्काल प्रभाव से अद्यतन की जाती रहेगी तथा आवेदकों की सुविधा के लिए वेबसाईट पर उपलब्ध रहेगी। ऐसी सभी योजनायें यदि शासन के किसी विभाग के अन्तर्गत चिन्हित है, विभागीय चिन्हित जल विद्युत् परियोजनाओं की श्रेणी में आयेंगी (ऐसी योजनाओं को नीति में श्रेणी 1 के अन्तर्गत वर्गीकृत किया गया है)।

2.4 किसी भी राज्य एजेन्सी (शासकीय विभागों/अभिकरणों इत्यादि) द्वारा चिन्हित किए गए परियोजना स्थलों के अतिरिक्त निजी क्षेत्रों/ व्यक्तियों द्वारा पहचान किये गये स्थलों को स्वचिन्हित परियोजना के रूप में मान्य किया जाएगा, जिसके प्रावधान इस नीति के अन्तर्गत अलग से किये गये हैं (ऐसी योजनाओं को नीति में श्रेणी 2 के अन्तर्गत वर्गीकृत किया गया है)।

नियामक ढांचा

3.1 विद्युत् अधिनियम, 2003 जून 2003 से पारित एवं प्रभावशील है। इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार कोई भी निजी व्यक्ति अथवा एजेन्सी विद्युत् उत्पादन संयंत्र लगाने हेतु स्वतंत्र है तथा उसे पारेषण सुविधा के मुक्त उपयोग का अधिकार होगा।

3.2 मध्यप्रदेश विद्युत् नियामक आयोग वर्ष 1999 से कार्यशील है तथा आयोग द्वारा समय-समय पर पारित आदेश/नियमन इस नीति के प्रावधानों पर लागू होंगे। इसी प्रकार भारत शासन द्वारा ऊर्जा-प्रक्षेत्र में समय-समय पर पारित किए गए अधिनियम भी इस नीति के प्रावधानों पर लागू होंगे। इस नीति के प्रावधान एवं मध्यप्रदेश विद्युत् नियामक आयोग द्वारा जारी किए गए आदेश/ विनियम के मध्य कोई विसंगति की दशा में मध्यप्रदेश विद्युत् नियामक आयोग के आदेश/विनियम लागू होंगे।

नीति के उद्देश्य

नीति के उद्देश्य निम्नानुसार हैं:-

4.1 निजी क्षेत्रों की सहभागिता से प्रदूषण मुक्त लघु जल विद्युत् उत्पादन को प्रोत्साहन।

4.2 निजी क्षेत्र के प्रतिभागियों को दिए जाने वाले प्रोत्साहन एवं लाभ को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना।

4.3 लघु जल विद्युत् उत्पादन क्षेत्र को प्रोत्साहन प्रदान करने हेतु अनुकूल वातावरण का निर्माण,

4.4 नीति क्रियान्वयन हेतु युक्तिसंगत संरचना का निर्धारण।

खण्ड अ - नीति के मार्गदर्शी सिद्धांत

1.0 प्रभावशीलता की अवधि

1.1 यह नीति मध्यप्रदेश राज्य के राजपत्र में अधिसूचना जारी होने की तिथि से प्रभावकारी होगी।

1.2 इस नीति के अन्तर्गत आवंटित या आवंटित की जाने वाली सभी परियोजनाएं निर्माण स्वामित्व, चालन तथा स्थानान्तर बूट के आधार पर संचालित होगी। बूट की अवधि वाणिज्यिक प्रचालन तिथि से प्रारंभ होगी और यह अवधि 35 वर्ष या परियोजना की आयु, जो भी पहले होगी, के बराबर होगी। बूट की अवधि के अन्त में सम्पूर्ण परियोजना, जिसमें जल ढांचे एवं ऊर्जा उत्पादन की सभी चल एवं अचल परिसम्पतियाँ सम्मिलित होगी, बिना मूल्य के राज्य शासन को हस्तांतरित होगी।

2.0 लघु जल विद्युत् परियोजना का वर्गीकरण निम्नानुसार है:-

श्रेणी-1 ऐसी परियोजनाएं जिसे म। प्र। शासन/शासन के उपक्रमों के द्वारा चिन्हित किया गया है।

श्रेणी-2 ऐसी परियोजनाएं जिसको विकासक द्वारा चिन्हित किया गया है।

प्रतिभागिता

परियोजना विकास के लिये किसी भी व्यक्ति/फर्म/सोसायटी/संस्था/पंजीकृत कंपनी इत्यादि द्वारा आवेदन किया जा सकेगा। जो भी संस्था/ व्यक्ति परियोजना विकास के लिये आवेदन करता है उसी को परियोजना के आवंटन/क्रियान्वयन/संचालन का अधिकार होगा। परियोजना आवंटन तथा उसके उपरान्त, परियोजना के क्रियान्वयन से लेकर वाणिज्यिक उत्पादन के पांच वर्ष तक संचालन के लिये वही व्यक्ति/संस्था या उसके द्वारा धारित ऐसी संस्था जिसमें उसका अंश 51 प्रतिशत या अधिक हो अधिकृत होगी।

चयन प्रक्रिया

सफल भागीदार का चयन निम्नानुसार किया जाएगा।

4.1 श्रेणी-1 की परियोजनाएं:-

4.1.1 इन परियोजनाओं के आवंटन हेतु खुली निविदायें दो चरणों में आमंत्रित की जाएगी। प्रथम चरण में आवेदकों से परियोजना प्रस्ताव (आर. एफ. पी.) आमंत्रित किया जाएगा। आर. एफ. पी. के साथ आवेदकों द्वारा वचनबद्धता शुल्क जो कि रुपये एक लाख प्रति मेगावाट या उसका अंश, जमा करना होगा।

4.1.2 प्रथम चरण के आवेदकों को परियोजना से संबंधित तकनीकी डाटा प्रदान किया जाएगा तथा तीन माह का समय परियोजना के अध्ययन हेतु दिया जायेगा।

4.1.3 तीन माह की अवधि समाप्त होने से 15 दिवस के अन्दर, द्वितीय चरण के प्रस्ताव चरण एक के आवेदकों से आमंत्रित किये जाएंगे। द्वितीय चरण के प्रस्ताव नि:शुल्क ऊर्जा के रूप में होंगे। जो उम्मीदवार सबसे ज्यादा नि:शुल्क ऊर्जा का प्रस्ताव देगा उसका चयन परियोजना विकास हेतु किया जायेगा। नि:शुल्क ऊर्जा का प्रस्ताव नीति की कण्डिका 5।2 में निर्धारित न्यूनतम नि:शुल्क ऊर्जा के ऊपर व उससे अधिक होगा।

4.1.4 यदि एक से अधिक उम्मीदवार एक समान नि:शुल्क ऊर्जा का प्रस्ताव देता है तो ऐसे उम्मीदवारों से पुन: नि:शुल्क ऊर्जा हेतु प्रस्ताव आमंत्रित किया जाएगा व अधिकतम नि:शुल्क ऊर्जा वाले उम्मीदवार का चयन परियोजना विकास हेतु किया जायेगा।

4.2 श्रेणी-2 की परियोजनाएं:-

4.2.1 विकासक स्वयं के द्वारा चिन्हित योजनाओं हेतु आवेदन कर सकते हैं।

4.2.2 स्वचिन्हित परियोजनाओं हेतु शासन द्वारा समय-समय पर, सामान्यत: वर्ष में चार बार, प्रत्येक त्रैमास में एक बार, आवेदन आमंत्रित किये जायेंगे। निर्धारित समय-सीमा के अन्तर्गत जो भी उम्मीदवार उनके द्वारा चिन्हित परियोजना का प्रस्ताव देना चाहते हैं तो निर्धारित प्रारूप में तकनीकी मापदण्डों के साथ आवेदन कर सकेंगे। तकनीकी मापदण्ड जिससे कि परियोजना की सीमांकन किया जा सकता है, आवेदकों की सुविधा के लिये सार्वजनिक तौर पर तथा वेबसाईट पर भी उपलब्ध रहेंगे।

4.2.3 विकासक को आवेदन के साथ जो कि रुपये एक लाख प्रति मेगावाट या उसका अंश होगा, परियोजना शुल्क के रूप में जमा करना होगा,

4.2.4 आवेदक से प्राप्त तकनीकी मापदण्डों को जल संसाधन विभाग/नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण/राज्य की संबंधित विद्युत् कंपनी या अन्य संबंधित विभागों को अभिमत हेतु प्रस्तुत किया जाएगा। संबंधित विभागों द्वारा 60 दिवस के अंदर अभिमत प्रस्तुत करना होगी। इस समयावधि के अन्दर अभिमत नहीं प्राप्त होने पर अनापत्ति मानी जाएगी। इस अनापत्ति में संबंधित विभाग द्वारा यह सुनिश्चित किया जाएगा कि प्रस्तावित योजना से उनके विभाग की कोई योजना प्रभावित न हो रही हो व उनके द्वारा इस परियोजना को पूर्व में चिन्हित नहीं किया गया है।

4.2.5 यदि किसी स्थल के लिए एक ही आवेदन प्राप्त होता है, तो ऐसे विकासक को परियोजना विकास के लिए चयनित किया जायेगा। एक से अधिक विकासक द्वारा यदि एक ही स्थल या समान तकनीकी मापदण्डों या ऐसे तकनीकी मापदण्ड जो अन्य स्वचिन्हित परियोजना से किसी रूप में मेल करते हों, के साथ परियोजना हेतु आवेदन किया जाता है तो परियोजना स्थल का आवंटन प्रतिस्पर्धा के माध्यम से किया जायेगा। यह प्रतिस्पर्धा नि:शुल्क ऊर्जा के रूप में होगी। जो उम्मीदवार सबसे ज्यादा वार्षिक नि:शुल्क ऊर्जा का प्रस्ताव देगा, का चयन परियोजना विकास हेतु किया जायेगा। कुल वार्षिक नि:शुल्क ऊर्जा की गणना उम्मीदवार द्वारा प्रस्तावित परियोजना की क्षमता व 30 प्रतिशत पी. यू. एफ. के मानक आधार पर होगी। नि:शुल्क ऊर्जा का प्रस्ताव नीति की कण्डिका 5.2 में निर्धारित न्यूनतम नि:शुल्क ऊर्जा के ऊपर व उससे अधिक होगा।

4.2.6 यदि कण्डिका 4.2.4 के अन्तर्गत किसी संबंधित विभाग द्वारा अनापत्ति नहीं दी जाती है तो परियोजना विकास के लिए कण्डिका 4.2.3 में निर्धारित शुल्क आवेदकों को वापिस कर दिया जायेगा।

5.0 परियोजना का विकास :

5.1 आवंटन पत्र (LOA) व जल विद्युत विकास अनुबंध) (HPDA) :

5.1.1 विकासक के चयन (कण्डिका-4) होने के 15 दिवस के अन्दर LOA जारी किया जायेगा। 5.1.2 आवंटन पत्र जारी होने के 7 दिवस के अन्दर विकासक अपनी स्वीकृति देगा।

5.1.3 विकासक को परियोजना निष्पादन गारण्टी (performance guarantee) जो कि एक लाख रुपये प्रति मेगावाट होगी, LOA जारी होने के 30 दिवस के अंदर जमा करना होगा। यह राशि बैंक गारंटी। डिमाण्ड ड्राफ्ट या सावधि जमा की रसीद के रूप में हो सकती है। यह गारंटी परियोजना के वाणिज्यिक उत्पादन से तीन माह तक की अवधि तक के लिये विद्यमान्य होनी चाहिए।

5.1.4 निष्पादन गारंटी जमा करने के 30 दिवस के अंदर चयनित विकासक द्वारा जल विद्युत् विकास अनुबंध (HPDA)का निष्पादन करना होगा।

5.1.5 प्रस्ताव को सर्वेक्षण, अनुसंधान एवं तकनीकी आर्थिक साध्यता प्रतिवेदन (TEFR) तैयार करने या उसकी जांच हेतु किये गये सम्पूर्ण व्यय उनके स्वयं के स्त्रोतों से करने होंगे उक्त व्यय की प्रतिपूर्ति के दावे का अधिकार किसी भी परिस्थिति में (भले ही परियोजना साध्य हो अथवा नहीं) नहीं होगा।

5.1.6 यदि किसी चयनित विकासक द्वारा उपरोक्तानुसार निष्पादन गारण्टी जमा नहीं की जाती है तो उसको आवंटित परियोजना निरस्त मानी जाएगी। ऐसी स्थिति में श्रेणी 1 की परियोजनाओं हेतु पुनः से नीति के प्रावधानों के अनुसार निविदाएं आमंत्रित की जाएगी व श्रेणी 2 की परियोजनाओं को शासन द्वारा चिन्हित परियोजनाओं के अन्तर्गत वर्गीकृत करते हुए आगे कार्यवाही की जायेगी।

5.2 न्यूनतम निःशुल्क ऊर्जा :-चयनित विकासक को परियोजना से उत्पादित ऊर्जा में से नि:शुल्क ऊर्जा का प्रदाय शासन को नीचे उल्लेखित तालिका के अनुसार करना होगा। कण्डिका 4.1.3 के अनुसार अतिरिक्त निःशुल्क ऊर्जा का प्रदाय, श्रेणी एक के विकासकों द्वारा किया जाएगा। इसी प्रकार श्रेणी दो के विकासकों द्वारा जिन्हें परियोजना का आवंटन कण्डिका 4.2.5 के अंतर्गत किया गया है के अनुसार अतिरिक्त नि:शुल्क ऊर्जा का प्रदाय करना होगा। नि:शुल्क ऊर्जा प्रदाय करने तथा पावर पर्चेस करने का अनुबंध (एग्रीमेंट), वित्त विभाग एवं ऊर्जा विभाग की सहमति से विभाग द्वारा अनुमोदित किये गये एग्रीमेंट के माध्यम से किया जायेगा।

क्रम.सं.

अनुमानित स्थापित क्षमता

 

नि:शुल्क ऊर्जा वास्तविक उत्पादन के प्रतिशत के रूप में (सहायक खपत को छोड़कर)

1

5 मेगावाट तक

 

5 प्रतिशत, वाणिज्यिक चालन तिथि से प्रथम सात (7) वर्ष के अंदर, विकासक द्वारा चयनित किसी 2 वर्ष के ब्लाक की छूट के साथ।

 

2

5 मेगावाट से अधिक एवं 10 मेगावाट तक

 

8 प्रतिशत, वाणिज्यिक चालन तिथि से प्रथम सात (7) वर्ष के अंदर, | विकासक द्वारा चयनित किसी 2 वर्ष के ब्लाक की छूट के साथ।

 

3

10 मेगावाट से अधिक एवं 25 मेगावाट तक

 

10 प्रतिशत, वाणिज्यिक चालन तिथि से प्रथम सात (7) वर्ष के अंदर, विकासक द्वारा चयनित किसी 2 वर्ष की छूट के साथ।

 

 

5.3 स्वीकृति तथा निकासी

5.3.1 अनुबंध (HPDA) निष्पादित होने के बाद विकासक द्वारा आवश्यक स्वीकृतियां जिसमें विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन भी शामिल है प्राप्त की जाएंगी तथा चौबीस महीनों के भीतर वित्तीय समापन किया जाएगा। इस अवधि को प्रत्येक प्रकरणवार कुल अधिकतम 6 माह के लिए बढ़ाया जा सकेगा। शासन द्वारा स्वीकृतियां प्राप्त करने के लिए विकासक को हर संभव सहायता प्रदान करेगा, किन्तु स्वीकृति प्राप्त करने की प्रारंभिक जिम्मेदारी विकासक की होगी। निर्धारित अवधि में स्वीकृति अप्राप्त रहने या वित्तीय समापन नहीं करने की दशा में अनुबंध (HPDA) स्वयमेव निरस्त हो जाएगा तथा निष्पादन गारण्टी राजसात कर ली जाएगी।

5.3.2 वित्तीय समापन से तीस दिवस के अंदर विकासक द्वारा परियोजना लागत का 0.5 प्रतिशत अतिरिक्त निष्पादन गारंटी जो कि बैंक गारंटी या डिमाण्ड ड्राफ्ट या सावधि जमा की रसीद के रूप में हो सकती है, देनी होगी। यह गारंटी परियोजना के वाणिज्यिक उत्पादन के तीन माह की अवधि तक विद्यमान्य होनी चाहिए।

5.3.2 राज्य अथवा केन्द्र शासन द्वारा स्वीकृति प्रदाय नहीं की जाने की दशा में निष्पादन गारण्टी विमुक्त कर दी जाएगी। ऐसी स्थिति में श्रेणी 1 के विकासकों द्वारा कण्डिका 4.1.1 में जमा की गई वचनबद्धता शुल्क व श्रेणी 2 के विकासकों द्वारा कण्डिको 4.2.3 के अन्तर्गत जमा की गई परियोजना शुल्क विकासक को वापिस कर दी जायेगी।

5.4 परियोजना विकास के संकेतक चरण:-

5.4.1 अनुबंध (HPDA) निष्पादित होने की तिथि से परियोजना को कार्यशील करने व अन्य संकेतक चरण पूर्ण करने की समय सीमा निम्नानुसार होगी:

क्रम.सं.

स्थापित क्षमता

 

50 प्रतिशत या अधिक परियोजना की भौतिक और वित्तीय प्रगति

परियोजना को कार्यशील होने की अवधि

 

1

5 मेगावाट तक

30 माह

35 माह

2

5 मेगावाट से अधिक एवं 10 मेगावाट तक

30 माह

40 माह

3

10 मेगावाट से अधिक एवं 25 मेगावाट तक

33 माह

 

48 माह

 

 

यदि कण्डिका 5.3.1 के अनुसार समय बढ़ाया जाता है तो उपरोक्त सीमा तदनुसार बढ़ी मानी जायेगी।

5.4.2 वाणिज्यिक परिचालन तिथि तक परियोजना विकास के संकेतक चरणों का अनुबंध (HPDA) का हिस्सा होगा।

5.4.3 देवीय कारणों के अलावा, विकासक की ओर से परियोजना के कार्यशील होने में देरी की दशा में, अनुबंध में वर्णित विभिन्न संकेतक चरणों के परिप्रेक्ष्य में विकासक को उतने समय के लिये नि:शुल्क ऊर्जा मुआवजे का भुगतान करना होगा, जितनी की अनुबंध में वर्णित समय-सीमा में ऊर्जा उत्पादन में देरी हुई है। इस क्षति की पूर्ति वाणिज्यिक उत्पादन प्रारंभ होने पर समान मात्रा में नि:शुल्क ऊर्जा प्रदाय कर की जाना होगी, जो निर्धारित नि:शुल्क प्रदाय की मात्रा के अतिरिक्त होगी।

5.4.4 यदि विकासक परियोजना को निर्धारित समय-सीमा से पहले कार्यशील कर देता है तो उसे प्रोत्साहन स्वरूप वास्तविक वाणिज्यिक परिचालन तिथि से, अनुबंध के अनुसार निर्धारित वाणिज्यिक परिचालन तक ऊर्जा प्रदाय पर देय निशुल्क ऊर्जा राजस्व के भुगतान से छूट होगी।

5.5 त्रैमासिक प्रगति प्रतिवेदन तथा रद्दकरण :

5.5.1 विकासक अनुबंध (HPDA) की तिथि से वाणिज्यिक संचालन की तिथि तक त्रैमासिक प्रगति प्रतिवेदन निर्धारित प्रपत्र में संबंधित दस्तावेजों के साथ प्रस्तुत करेगा। प्राप्त प्रगति प्रतिवेदन का सत्यापन किया जायेगा, परियोजना की प्रगति नीति में दी गई समयावधि तथा संकेतक चरणों के अनुरूप अनिवार्यतः होगी। इस संबंध में किसी विलम्ब का स्पष्टीकरण विकासक द्वारा समाधानप्रद रूप में करना होगा।

5.5.2 यदि विकासक द्वारा दिया गया स्पष्टीकरण संतोषप्रद नहीं है तो विकासकर्ता को सुनवाई का मौका दिया जायेगा और शासन द्वारा आवंटित की गई परियोजना को, किसी भी प्रकम में रद्द किया जा सकेगा।

5.6 निष्पादन गारण्टी की विमुक्त -

वाणिज्यिक उत्पादन की तिथि से 3 माह के उपरान्त निष्पादन गारण्टी को विमुक्त किया जाएगा।

5.7 भूमि आवंटन-परियोजना निर्माण हेतु यदि शासकीय भूमि उपलब्ध है तो भूमि उपयोग की अनुमति केवल जल विद्युत् संयंत्र के लिए आवश्यक जल वाहक, उपकेन्द्र स्थापना और पॉवर हाउस निर्माण के लिए ही किया जाएगा।

5.7.1 शासकीय भूमि के आवंटन हेतु :

5.7.1.1 जल संसाधन विभाग/नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण या राज्य शासन के अन्य विभाग के स्वामित्व की भूमि के लिए विभाग संबंधित विभाग से अनापत्ति प्राप्त करते हुये भूमि का अधिपत्य प्राप्त करेगा एवं तत्पश्चात् विकासक को भूमि उपयोग की अनुमति देगा। इसकी सूचना संबंधित जिला-कलेक्टर को दी जायेगी।

5.7.1.2 शासकीय राजस्व भूमि के उपयोग की अनुमति हेतु राजस्व विभाग, मध्यप्रदेश शासन द्वारा जारी परिपत्र क्रमांक एफ 16-3-93 सात-2ए, दिनांक 06-09-2010 एवं क्र. एफ 6-53-2011-सात-नजूल, दिनांक 08-08-2011 में अधिकथित शर्ते लागू होगी।

5.7.1.3 शासकीय भूमि का उपयोग विकासक द्वारा अन्य किसी प्रयोजन के लिए किया जाता है तो भूमि उपयोग की अनुमति तत्काल प्रभाव से निरस्त की जाएगी व शासकीय मानी जाएगी। भूमि पर विकासक द्वारा किया गया निर्माण/संयंत्र राजसात किया जाएगा।

5.7.1.4 राज्य शासन/जिला कलेक्टर द्वारा अधिकृत व्यक्ति द्वारा परियोजना के उपयोग की भूमि का निरीक्षण किसी भी समय किया जा सकेगा व यह सुनिश्चित किया जाएगा कि निर्धारित प्रायोजन के अलावा भूमि का उपयोग अन्य किसी कार्य हेतु नहीं किया जा रहा है।

5.7.2 वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 तथा भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय तथा राज्य शासन द्वारा समय-समय पर जारी दिशा-निर्देश समस्त वन भूमियों पर लागू होंगे। वन भूमि के सर्वेक्षण हेतु आवेदन, संबंधित सक्षम प्राधिकारी वन विभाग मध्यप्रदेश शासन को प्रस्तुत किए जाएंगे। सर्वेक्षण के पश्चात् भूमि के उपयोग हेतु आवेदन विहित प्रारूप में तैयार कर मध्यप्रदेश शासन के वन विभाग के संबंधित सक्षम प्राधिकारों को प्रस्तुत किए जाएंगे।

5.7.3 बूट अनुबंध की अवधि में विकासक सभी परिसम्पतियों का यथोचित रूप से बीमा कराएगा तथा इनका संधारण एवं रखरखाव इस प्रकार करेगा जिससे की बूट अवधि के उपरांत शासन/या शासन की एजेंसी को हस्तांतरित करते समय परिसम्पत्तियां उचित अवस्था में हो। हस्तांतरण के समय संत्रय चलित स्थिति में होना चाहिए व स्थापित संयंत्रों के पूर्ण विवरण, यदि किसी मुख्य संयंत्र की स्थापना, उपरांत बदलाव किया जाता है तो उसका विवरण व बीमा के कागजात हस्तांतरण के समय प्रस्तुत करना होगा।

5.8 ग्रिड संयोजन एवं निष्क्रमण प्रबंधःउत्पादन स्थल से निकटतम सब-स्टेशन या अंतर संयोजन स्थल या समीपस्थ पारेषण लाईन को जोड़ने का कार्य, जिसमें ट्रांसफार्मर पैनल, संरक्षण, मीटरिंग इत्यादि सम्मिलित हैं, का उत्तरदायित्व विकासक का होगा जो कि मध्यप्रदेश ग्रिड संहिता, मध्यप्रदेश विद्युत प्रदाय संहिता, 2004, मध्यप्रदेश विद्युत नियामक आयोग एवं केन्द्रीय विद्युत नियामक आयोग के समय-समय पर संशोधित तकनीकी एवं सुरक्षा मापदण्डों के अनुरूप होगा। यह कार्य मध्यप्रदेश पारेषण कंपनी लिमिटेड एवं/अथवा अन्य संबंधित वितरण कंपनी द्वारा किया जायेगा जिसका भुगतान विकासक द्वारा वहन किया जायेगा। इस विषय में नियामक आयोग द्वारा लिया गया निर्णय अंतिम होगा।

5.9 पारेषण एवं वितरण:--

5.9.1 उत्पादन स्थल से उपभोग स्थल तक अपनी स्वयं की समर्पित पारेषण लाईन निर्माण करने के लिए विकासक स्वतंत्र होगा। विकासक को विद्युत अधिनियम, 2003 में निहित प्रावधानों के अनुसार राज्य की विद्यमान पारेषण सुविधाओं का उपयोग करने का भी अधिकार होगा। इस नीति में उल्लेखित शर्तों के अंतर्गत विकासक मध्यप्रदेश ऊर्जा पारेषण कंपनी लिमिटेड (MPPTCL)/अन्य वितरण कंपनी के साथ व्हीलिंग अनुबंध करेगा।

5.9.2 यदि विकासक तृतीत उपभोक्ता पक्ष/अनुज्ञप्तिधारी वितरक/ ऊर्जा वितरण कंपनी को ऊर्जा विक्रय करता है तो वह मध्यप्रदेश ऊर्जा पारेषण कंपनी लिमिटेड (MPPTCL)/अन्य वितरण कंपनी को व्हीलिंग एवं पारेषण शुल्क देने के लिए बाध्य होगा, जिसके संबंध में मध्यप्रदेश विद्युत नियामक आयोग द्वारा लिया गया निर्णय अंतिम होगा।

5.9.3 मध्यप्रदेश ऊर्जा पारेषण कंपनी लिमिटेड (MPPTCL)/संबंधित वितरण कंपनी द्वारा निर्दिष्ट मीटरिंग उपकरण उत्पादन स्थल उपभोक्ता स्थल पर मध्यप्रदेश विद्युत प्रदाय संहिता 2004 एवं मीटरिंग हेतु मध्यप्रदेश विद्युत नियामक आयोग द्वारा निर्धारित मापदण्डों के प्रावधानों के अनुरूप विकासक के व्यय पर स्थापित किए जाएंगे। मध्यप्रदेश ऊर्जा पारेषण कंपनी लिमिटेड/ वितरण कंपनी के अधिकारियों द्वारा इनका निरीक्षण किया जा सकेगा।

6.0 ऊर्जा का विक्रयः

मध्यप्रदेश राज्य में स्थित किसी भी उपभोक्ता/इच्छुक वितरण कंपनी अथवा ऊर्जा विपणन कंपनी को स्वतंत्र ऊर्जा उत्पादन से उत्पादन संपूर्ण ऊर्जा या केप्टिव ऊर्जा उत्पादन (CPP) से उत्पादित अतिशेष ऊर्जा का विक्रय किया जा सकेगा।

7.0 परियोजना निरीक्षणः

7.1 राज्य शासन से अधिकृत अधिकारियों को परियोजना की सुरक्षा की दृष्टि से परियोजना निरीक्षण का अधिकार होगा। निरीक्षण के समय इन अधिकारियों को विकासक द्वारा आवश्यक सहायता उपलब्ध कराई जाएगी।

7.2 विकासक द्वारा ऊर्जा उत्पादन से संबंधित (क्षमता, उत्पादन, उत्पादन में गतिरोध इत्यादि) अभिलेख का संधारण किया जाएगा तथा निरीक्षण के समय अधिकृत अधिकारियों को समस्त अभिलेख उपलब्ध कराए जाएंगे।

8.0 मध्यप्रदेश विद्युत नियामक आयोग का अनन्य अधिकार क्षेत्र:

8.1 विद्युत अधिनियम, 2003 में प्रबंधन हेतु व्यवस्था के अंतर्गत निहित प्रावधानों, विद्युत विक्रय दर, ऊर्जा क्रय अनुबंध, व्हीलिंग,बैकिंग, वितरण, पारेषण क्षति शुल्क इत्यादि के संबंध में मध्यप्रदेश विद्युत नियामक आयोग (MPERC) का विशेषाधिकार रहेगा। इसी प्रकार विद्युत अधिनियम, 2003 में निहित प्रावधानों के अनुसार अपारंपरिक ऊर्जा स्त्रोतों की उन्नति, ऊर्जा पारेषण सुविधा, मध्यप्रदेश ऊर्जा पारेषण कंपनी लिमिटेड (MPPTCL)/ पारेषण का अनुज्ञप्तिधारी/अनुज्ञप्तिधारी वितरक के मध्य ऊर्जा क्रय करने की सहभागिता इत्यादि मध्यप्रदेश विद्युत नियामक आयोग (MPERC) के अधिकार क्षेत्र में रहेगा। इस विषय में मध्यप्रदेश विद्युत नियामक आयोग द्वारा समय-समय पर जारी दिशा-निर्देश, मार्गदर्शन, व्यवस्था नियम के पालन हेतु सभी पक्ष बाध्य होंगे।

8.2 विकासक एवं जल संसाधन विभाग/नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण अथवा मध्यप्रदेश ऊर्जा पारेषण कंपनी लिमिटेड/पारेषण का अनुज्ञप्तिधारी/अनुज्ञप्तिधारी वितरक के मध्य नीति की व्याख्या संबंधी अथवा अनुबंध की शर्ते/कंडिकाओं पर विवाद की स्थिति में प्रकरण विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 86 (i) के अंतर्गत शासन अथवा मध्यप्रदेश विद्युत नियामक आयोग की ओर निर्णय हेतु प्रेषित किया जाएगा।

खण्ड-ब: सामान्य प्रावधान

1.0 ऐसे विकासकों जिनको परियोजना का आवंटन मध्यप्रदेश राज्य विद्युत मण्डल द्वारा 1994 की नीति के अंतर्गत किया गया है एवं ऐसी परियोजनाओं द्वारा अब तक वाणिज्यिक उत्पादन प्रारंभ नहीं किया गया है का प्रर्यापण इस नीति में किया जाएगा। ऐसे विकासक जिनकी परियोजना का नीति 2006 के अंतर्गत जल संसाधन विभाग/नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण द्वारा परियोजना आवंटन प्रक्रिया में लिया गया है, उन्हें इस नीति में प्रत्यार्पित किया जायेगा। प्रत्यार्पित विकासकों को इस नीति के अनुसार परिशोधित कार्ययोजना तथा इस नीति में प्रावधानित नियम व शर्तो पर सहमति हेतु समझौता ज्ञापन (Mou) इस नीति के अधिसूचित होने से दो माह के अंदर निष्पादित करना होगा। नीति प्रकाशन की सूचना विकासकों अधिसूचना की तिथि से 7 दिवस के अंदर दी जाएगी। यदि विकासक समझौता ज्ञापन हस्ताक्षरित नहीं करता है तो ऐसी स्थिति में उनका आवेदन निरस्त माना जाएगा।

2.0 स्वतंत्र ऊर्जा उत्पादक (IPP) को केप्टिव ऊर्जा उत्पादक (CPP) के रूप में या इसके विपरीत परिवर्तित करने का विकल्प होगा, तथापि दी गई अनुमति मध्यप्रदेश विद्युत नियामक आयोग के दिशा-निर्देशों के अनुरूप होगी।

3.0 मध्यप्रदेश विद्युत नियामक आयोग के दिशा-निर्देशों के अंतर्गत विकासक को तृतीय पक्ष से अनुज्ञप्तिधारी अथवा एक तृतीय उपभोक्ता पक्ष से दूसरे तृतीय उपभोक्ता पक्ष को ऊर्जा विक्रय की अनुमति प्रदान की जा सकेगी।

4.0 परियोजना का समर्पणःअनुबंध निष्पादन के उपरांत विकासक परियोजना समपर्ण हेतु स्वतंत्र होगा, किन्तु ऐसी स्थिति में निष्पादन गारण्टी राजसात कर ली जाएगी।

5.0 परियोजना हस्तांतरणः--

5.1 वाणिज्यिक उत्पादन से 5 वर्ष तक विकासक द्वारा परियोजना का हस्तांतरण किसी अन्य को नहीं किया जा सकेगा।

5.2 मध्यप्रदेश शासन की अनुमति उपरांत एवं हस्तांतरण हेतु शासन द्वारा निर्धारित शुल्क के भुगतान के पश्चात् विकासक परियोजना का कार्य अन्य विकासक को हस्तांतरित कर सकेगा।

खण्ड – स:  प्रोत्साहन

1.0 मध्यप्रदेश राज्य में लघु जल विद्युत परियोजना के विकास के लिए निम्नलिखित सुविधाएं उपलब्ध होंगी:

1.1 इस नीति के अंतर्गत स्थापित लघु जल विद्युत् परियोजना द्वारा उत्पादित ऊर्जा का केंप्टिव उपयोग, वितरण कंपनी, राज्य में स्थित तृतीय पक्ष उपभोक्ताओं, राज्य की ऊर्जा विपणन कंपनी को विक्रय किये जाने की सुविधा होगी।

1.2 तृतीय पक्ष को ऊर्जा विक्रय की स्थिति में मध्यप्रदेश विद्युत् पारेषण कंपनी लिमिटेड अथवा संबंधित राज्य वितरण कंपनी द्वारा मध्यप्रदेश विद्युत् नियामक आयोग द्वारा निर्धारित दरों पर व्हीलिंग आफ पावर की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। मध्यप्रदेश राज्य में स्थित तृतीय पक्ष को विक्रय के मामले में राज्य शासन द्वारा 4.0 प्रतिशत की दर से व्हीलिंग अनुदान प्राप्त होगा।

1.3 लघु जल विद्युत् परियोजना से की गई विद्युत् आपूर्ति पर ऊर्जा उपकर में छूट नीति प्रभावशील होने के दिनांक से 10 वर्ष तक रहेगी।

1.4 इस नीति के अधीन क्रियान्वित परियोजनाओं को उद्योग का दर्जा प्राप्त होगा और उन्हें समय-समय पर यथा संशोधित राज्य शासन की ‘उद्योग संवर्धन नीति' के अधीन सभी सुविधाएं प्राप्त होगी।

1.5 लघु जल विद्युत् परियोजना से ऊर्जा क्रय का विकल्प देने वाले औद्योगिक उपभोक्ता को स्थायी आधार पर संविदा मांग में समानुपातिक कटौती की अनुमति होगी परन्तु इस संबंध में मध्यप्रदेश विद्युत् नियामक आयोग का निर्णय अंतिम होगा। संविदा मांग कम करने का प्रावधान प्रथम 200 मेगावाट की परियोजनाओं के अनुबंध (HPDA) होने की सीमा तक लागू होगा।

1.6 लघु जल विद्युत् परियोजना द्वारा जल उपभोग के लिए जल दर देय नहीं होगी। यह छूट तभी लागू होगी यदि जल उपयोग में कोई जल की खपत न हो।

1.7 यदि विकासक ग्रामीण क्षेत्रों में जो कि राज्य शासन के परिपत्र क्रमांक 2010-एफ-13-05-13-2006, दिनांक 25 मार्च, 2006 द्वारा अधिसूचित है, ऊर्जा उत्पादन एवं वितरण की योजना तैयार करता है तो उसे ऊर्जा उत्पादन एवं वितरण हेतु अनुज्ञा पत्र लेना आवश्यक नहीं होगा, परन्तु वह केन्द्रीय विद्युत् प्राधिकरण द्वारा निर्धारित विद्युत् अधिनियम की धारा 53 में उल्लेखित मापदण्डों के पालन हेतु बाध्य होगा।

2.0 बैंकिंग

प्रत्येक वित्तीय वर्ष में शत-प्रतिशत ऊर्जा संचय की अनुमति निम्नलिखित शर्तों पर प्रदान की जाएगी।

2.1 वित्तीय वर्ष में संचित ऊर्जा के आंकड़ों का सत्यापन संबंधित राज्य वितरण कंपनी/राज्य विद्युत् वितरण कंपनी के अधिकारियों द्वारा किया जाएगा। विकासक द्वारा संचित ऊर्जा का 2.0 प्रतिशत संचय शुल्क के रूप में संबंधित राज्य वितरण कंपनी/राज्य विद्युत् विपणन कंपनी को भुगतान करना होगा।

2.2 संचित की गई ऊर्जा की वापिसी विद्युत् नियामक आयोग द्वारा समय-समय पर जारी विनियमनों के आधार पर होगी।

2.3 वापिस ली गई संचित ऊर्जा के बाद यदि कोई ऊर्जा वित्तीय वर्ष के अन्त में शेष रहती है तो राज्य वितरण कंपनी/राज्य विद्युत् विपणन कम्पनी नियामक आयोग द्वारा जारी नियमों/निर्देशों के अनुसार शेष ऊर्जा क्रय करेगी।

3.0 अन्य सुविधाएं

3.1 लघु जल विद्युत् परियोजनाओं को केप्टिव उपयोग अथवा तृतीय पक्ष विक्रय के मामले में ऊर्जा खपत पर विद्युत् शुल्क के भुगतान में छूट अधिसूचना क्रमांक 1475-तेरह-2002, दिनांक 1 मार्च 2002 तथा अधिसूचना क्रमांक 4328-तेरह-2006, दिनांक 12 जुलाई 2006 में निहित प्रावधानों के अनुसार छूट प्राप्त होगी।

3.2 कार्बन क्रेडिट या इस प्रकार के अन्य प्रोत्साहन जो इस प्रकार की लघु जल विद्युत् परियोजना को उपलब्ध होंगे वह विद्युत् नियामक आयोग के द्वारा समय-समय पर जारी दिशा निर्देशों के अनुसार विकासक को उपलब्ध होंगे।

3.3 लघु जल विद्युत् परियोजना के उपयोग में आने वाले उपकरण/संयंत्र/मशीनों को राज्य में लाने पर प्रवेश कर में छूट प्रदान की जाएगी। यह छूट जल विद्युत् विकास अनुबंध करने की तिथि से आगामी पांच वर्षों तक प्रभावशील रहेगी। वर्ष 1994 व 2006 की नीति में स्थानांतरित है तथा जिनके द्वारा इस सुविधा का लाभ नहीं उठाया गया है, उन्हें पुरानी नीति से नई नीति में स्थानांतरण की अनुमति प्रदान करने की तिथि से यह सुविधा आगामी पांच वर्षों तक प्रभावशील रहेगी।

3.4 लघु जल विद्युत् परियोजनाओं में निवेश करने पर मध्यप्रदेश औद्योगिक निवेश प्रोत्साहन नीति सहायता योजना, 2010 के अंतर्गत वाणिज्य एवं उससे संबंधित कर पर उपलब्ध सहायता की सुविधा की पात्रता, लघु जल विद्युत् परियोजना इकाई अथवा ऐसी औद्योगिक इकाई जो लघु जल विद्युत् परियोजना से ऊर्जा का उपभोग करती है, को होगी। लघु जल विद्युत् परियोजना इकाई द्वारा परियोजना के प्रारंभ में ही यह विकल्प देना होगा कि करों में राहत संबंधी लाभ किसे प्राप्त होगा।

3.5 परियोजनाओं के सुचारू क्रियान्वयन में आ रही कठिनाईयों के निराकरण एवं अंतर्विभागीय समन्वय के विषयों पर निराकरण हेतु मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित परियोजना स्वीकृति एवं क्रियान्वयन बोर्ड (PCIB) के समक्ष प्रकरण प्रस्तुत किए जा सकेंगे।

स्त्रोत: जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय, भारत सरकार

अंतिम बार संशोधित : 3/4/2020



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