भारत में सौर विद्युत उत्पादन पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इससे न केवल संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन की कार्यसूची के प्रति देश का पर्यावरणीय दायित्व पूरा होगा बल्कि इस क्षेत्र में रोजगार की उपलब्धता बढ़ाने में भी योगदान मिलेगा।
हिमालय की गोद में बसे राज्य अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले के दूर-दराज के क्षेत्र में स्थित थुंबरा गांव की रिनचिन चोटोन कोई साधारण युवती नहीं है। मैं अभी हाल में इस राज्य की यात्रा के दौरान उससे मिली हूं। यह राज्य वर्षों से बिजली की कमी का सामना कर रहा है। स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ने वाली यह लड़की अपने मोबाइल और एक आपातकालीन लैम्प को चार्ज करने के लिए रोजाना एक छोटे पीवी पैनल का उपयोग करती है।
सैकड़ों विभिन्न समस्याओं के बावजूद चोटोन ने सुगम्यता और उपलब्धता के लिए अपने इस विकल्प को बड़ी बुद्धिमानी से चुना है। उसका गांव लगभग 7,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है, जहां बहुत कम बारिश होती है लेकिन साल के अधिकांश महीनों में यहां चमकदार धूप निकलती है। दिल्ली में मानसून के तीन महीनों के दौरान होने वाली बारिश के कुछ दिनों को छोड़कर अधिकांश महीनों में तेज धूप रहती है लेकिन यहां के कितने साक्षर, उच्च शिक्षित युवाजनों ने अपने मोबाइल फोन रिचार्ज करने के लिए सौर ऊर्जा के उपयोग के विकल्प को चुना है?
शायद आप इस उत्तर को जानते हों। यही कारण है कि मैंने चोटोन को एक असाधारण युवती क्यों कहा। चोटोन एक आदर्श नागरिक का प्रतीक है। जिसकी भारत सरकार ने परिकल्पना की है, क्योंकि उसका विकल्प सूर्य की पर्याप्त गर्मी प्राप्त करने वाले हमारे देश में व्यापक सौर ऊर्जा की व्यापक संभावनाओं के दोहन की उम्मीद जगाता है।
भारत के ऊर्जा सांचे में सौर ऊर्जा लक्ष्यों को बढ़ाने पर अधिक, लेकिन पारंपरिक प्रदूषणकारी ऊर्जा पर कम ध्यान दिया गया है जिसके कारण पर्यावरण को अक्सर नुकसान पहुंचता रहा है। भारत में सौर विद्युत पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इससे प्रदूषण फैलाने वाली गैसों के उत्सर्जन को कम करके न केवल संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन की कार्यसूची के प्रति देश का पर्यावरणीय दायित्व पूरा होगा बल्कि इस क्षेत्र में रोजगार की उपलब्धता बढ़ाने में भी योगदान मिलेगा और लद्दाख तथा कच्छ के रण जैसे दूरदराज के क्षेत्रों में विकास को भी बढ़ावा मिलेगा।
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अपनी कार्य योजना में संयुक्त राष्ट्र को प्रस्तुत इच्छित राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (आईएनडीसी) में भारत ने अपने नवीकरणीय ऊर्जा के लक्ष्य को 175 गीगावॉट के ऊंचे स्तर पर करने का वायदा किया है जिसमें वर्ष 2022 तक सौर ऊर्जा बढ़कर 100 गीगावॉट हो जाने की उम्मीद है। इसमें से 40 गीगावॉट रूफटॉप सौर ऊर्जा के लिए निर्धारित है।
सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक मई 2016 तक सौर ऊर्जा की कुल स्थापित क्षमता 7564 मेगावाट है और चालू वर्ष के लिए ग्रिड से जुड़ी सौर ऊर्जा के लिए 10,500 मेगावाट का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। दो साल पहले सत्ता संभालने के बाद सरकार ने 'सोलर पार्क' की स्थापना की घोषणा की थी और 21 राज्यों में 20,000 मेगावाट की कुल क्षमता के साथ 34 'सोलर पार्क' की स्वीकृति प्रदान की गई है। जिनमें आंध्र प्रदेश की 1500 मेगावाट क्षमता की इकाई भी शामिल है जो विश्व में ऐसी सबसे बड़ी परियोजना है।
सबसे अच्छी बात यह है कि सौर विद्युत उत्पादन बढ़ाने के काम को पूरा करने के लिए निजी कंपनियों और नामित एंजेसियों के अलावा सरकार भी सौर विद्युत उत्पादन में प्रमुख भूमिका निभा रही है। 2015 में कोच्चि हवाई अड्डे को सबसे पहले सौर ऊर्जा से जगमग किया गया था। अन्य हवाई अड्डे, दिल्ली मेट्रो, भारतीय रेलवे और अगर सभी राज्य सरकारी इमारतें नहीं तो निश्चित रूप से सीपीडब्ल्यूडी द्वारा बनाए गए केंद्रीय सरकारी भवन और टोल प्लाजा सभी सौर विद्युत से प्रकाशित हैं। ये सभी पहले से ही इस विषय में क्रियाशील हैं या क्रियाशील होने की प्रक्रिया में हैं।
इस विकास को केवल 'ऊर्जा क्षेत्र घटना' के रूप में देखने के अलावा इस बात की भी जरूरत है की सौर विद्युत को एक सामाजिक बदलाव के वाहक के रूप में देखा जाए। विशेष रूप से जबकि इसकी ग्रिड से न जुड़े स्थानों / गांवों के संबंध में बात हो रही हो। निश्चित रूप से राज्यों ने ऐसी नीतियों बनायी हैं जो 'सौर प्रथम' की जरूरत के अनुरूप हैं तथापि उन्हें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि इस तरह की नीतियों के कार्यान्वयन प्रभावी हों।
इस साल जनवरी में, महाराष्ट्र सरकार ने अगले पांच साल में कम में से कम 500 मेगावाट विद्युत बचाने के उद्देश्य से 'सौलर ऑफ ग्रिड पालिसी' को मंजूरी दी है। इस नीति के हिस्से के रूप में, शहरी, स्थानीय निकाय और नगर निगम के अधिकारियों को विकास नियंत्रण मानदंडों (डीसी) में इस प्रकार परिवर्तन करने का निर्देश दिया गया है जिससे केवल उन्हीं इमारतों को निर्माण करने की अनुमति दी जाए जिन्होंने सौर वॉटर हीटर पैनल लगाएं हों। सरकारी कालोनियों में सभी भवनों, आदिवासी स्कूलों और यहां तक कि नए निजी भवनों में भी ऐसे सभी अनिवार्य निर्देशों का पालन करने की आवश्यकता होगी।
पर्याप्त तरल मुद्रा के साथ, अनेक निजी इकाइयों ने पहले ही सौर ऊर्जा की ओर रूख कर लिया है। इस बात की कल्पना करें कि बिजली की उपलब्धता राज्य की राजधानी से दूरदराज के स्थानों में कितना परिवर्तन ला सकती है। लेकिन जब वास्तविक रूप से ग्रिड से महरूम स्थानों जैसे पूर्वी महाराष्ट्र के एक छोटे कस्बे सिरोंचा की वस्तुगत स्थिति का जिक्र करें तो उसकी कहानी अरुणाचल प्रदेश के चोटोन गांव से कुछ भी अलग नहीं है।
अरुणाचल प्रदेश ऊर्जा विकास एजेंसी (एपीडा) ने पांच साल की व्यापक वारंटी और बिना ग्रिड वाले 1058 गांवों के ग्रामीण विद्युतीकरण के लिए 300 डब्ल्यूपी सौर पावर पैक्स के रखरखाव के साथ डिजाइन, आपूर्ति, स्थापना, परीक्षण और कार्य शुरुआत के लिए अप्रैल 2016 से एक प्रक्रिया शुरू कर रखी है। अरुणाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाकों के दूर-दराज के गांवों में रहने वाले लोगों ने सौर पीवी पैनल का विकल्प शुरू कर दिया है। अनेक संस्थानों, विशेष रूप से आवासीय विद्यालयों ने सौर वॉटर हीटर पैनलों का उपयोग शुरू कर दिया है जबकि इस राज्य में सौर ऊर्जा जगमगती स्ट्रीट लाइटें बहुत ही आम बात हो गई है। दोनों राज्यों में आम समस्या यह है कि निजी और सरकारी प्रयास किसी भी रूप में सौर ऊर्जा की स्थापना की दिशा में निर्देशित हैं और इनका प्रारंभिक उत्साह कहीं से भी दीर्घकालिक दिखाई नहीं दे रहा है क्योंकि दूरदराज के स्थानों में पैनल ब्रिकी के बाद सेवाओं की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध नहीं हैं।
ऐसे अनेक स्कूल हैं जहां सौर वॉटर हीटर लगाए गए थे लेकिन आज उनके सामने स्पेयर पार्ट्स की कमी और क्षतिग्रस्त उपकरणों की उचित देखभाल करने वाले, मरम्मत करने वाले व्यक्तियों का अत्यंत अभाव है। वास्तव में, इस स्थिति को 'कौशल भारत' के अवसर में बदला जा सकता है जिससे द्वारा इन दूरदराज के क्षेत्रों में भी सौर उपकरण की स्थापना और बाद में उनकी मरम्मत के कार्य में युवाओं को दक्ष किया जा सकता है।
एक बात जिस पर विशेष ध्यान दिये जाने की जरूरत है, वह है ‘सूर्य मित्र’ एप्प का उचित कार्यान्वयन- जो सौर पैनलों की स्थापना, सेवा, मरम्मत के लिए उपभोक्ता की समस्या के तत्काल समाधान का वादा करता है। यह शहरी और अर्ध शहरी क्षेत्रों में एक वास्तविक रूप से एक हाथ का औजार हो सकता है क्योंकि इसने स्मार्ट फोन के प्रसार को देखा है। लेकिन इसे वास्तव में दूरदराज के क्षेत्रों के लिए लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि ऐसे क्षेत्रों में अधिकतर गरीब लोग रहते हैं। ऐसे स्थानों पर मोबाइल के सिग्नल नहीं मिलते हैं और ऐसे क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में एप्प के उपयोग को समझने की क्षमता का भी अभाव देखने को मिलता है। वस्तुगत और लाक्षणिक रूप से वास्तव में ग्रिड से महरूम क्षेत्रों के लिए सौर विद्युत की सफलता सामाजिक बदलाव को एक उपकरण के रूप में सुनिश्चित करेगी।
लेखिका : निवेदिता खांडेकर, स्वतंत्र पत्रकार
स्त्रोत: पत्र सूचना कार्यालय
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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