हां, कानून के अंतर्गत बच्चे की परिभाषा के अनुसार नाबालिग भी 'घरेलू संबंध' की परिभाषा की परिधि में आते हैं। पीडब्ल्यूडीवीए की धारा 2 (बी) के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति, जोकि 18 वर्ष से कम आयु का है, बच्चा परिभाषित होता है। इसमें कोई भी गोद लिया हुआ बच्चा, सौतेला बच्चा या पाला-पोषा हुआ बच्चा है।
मां अपने नाबालिग बच्चे (चाहे लड़का हो या लड़की) की ओर से आवेदन कर सकती है। ऐसे मामलों में जहां मां न्यायालय से अपने लिए राहत मांगती है, पीडब्ल्यूडीवीए के अंतर्गत बच्चों को भी सह-आवेदक के रूप में शामिल किया जा सकता है। न्यायालय उचित समय पर अभिभावक या बच्चे का प्रतिनिधित्व करने के लिए किसी व्यक्ति को नियुक्त कर सकता है।
विवाह की तरह के संबंध का तात्पर्य वैसे संबंधों से है जिसमें दो व्यक्तियों के बीच किसी कानून के अंतर्गत विवाह की पवित्रता भाव से विवाह नहीं हुआ हो, फिर भी दोनों पक्ष दुनिया की निगाह में एक दूसरे को दंपत्ति दिखाते हैं और उनके संबंध में स्थिरता और निरंतरता है। ऐसे संबंध को समान कानून विवाह के रूप में भी जाना जाता है।
कानून सभी महिलाओं, चाहे वह बहन हो, मां हो, पत्नी हो या साझी गृहस्थी में सहभागी के रूप में साथ-साथ रह रहे हों, की सुरक्षा का प्रावधान करता है। सुरक्षा प्रदान करने तक कानून विवाहित और अविवाहित का फर्क नहीं करता, लेकिन कानून कहीं भी यह नहीं कहता कि एक अवैध विवाह वैध है। कानून हिंसा से सुरक्षा देता है, साझी गृहस्थी में रहने का अधिकार प्रदान करता है और बच्चों की अल्पकालिक संरक्षा प्रदान करता है। लेकिन पुरूष की संपत्ति के उत्तराधिकार या बच्चे की वैधता के लिए देश के सामान्य कानून और पक्षों की वैयक्तिक कानूनों पर भरोसा करना होगा।
महिला हिंसा का अपराध (धारा-2(क्यू) किसी भी वयस्क पुरूष के विरूद्ध शिकायत दर्ज करा सकती है। ऐसे मामलों में जब महिला विवाहित है और विवाह की तरह संबंध में रह रही है, तो वह हिंसा, अपराध करने वाले पति/पुरूष के पुरूष या महिला संबंधियों के विरूद्ध भी शिकायत दर्ज करा सकती है। पीडब्ल्यूडीवीए में भारतीय दंड संहिता की धारा-498ए के अंतर्गत धारा-2(क्यू) शामिल किया गया। इससे क्रूरता के लिए पति के संबंधियों, चाहे वह पुरूष या महिला हो, के खिलाफ मुकदमा चलाना संभव है। ऐसे उदाहरणों में सास, ससुर, ननद आदि आते हैं।
पीडब्ल्यूडीवीए में संबंधी शब्द परिभाषित नहीं किया गया है। इसलिए इसका सामान्य अर्थ निकालना होगा। संबंधियों के उदाहरण पिता, माता, बहन, चाचा, ताऊ और प्रतिवादी का भाई अनुच्छेद 2(क्यू) में संबंधी के रूप में शामिल किये जा सकते हैं। अनुच्छेद 498ए संबंधी शब्द का इस्तेमाल करता है, जोकि परिभाषित नहीं है। इस तरह संबंधी शब्द का सामान्य अर्थ में महिला संबंधी भी शामिल होंगी।
हां, पति के महिला संबंधियों के विरूद्ध आदेश जारी किये जा सकते हैं। लेकिन अनुच्छेद 19(1) के प्रावधान के अनुसार महिला संबंधी के विरूद्ध बेदखली की छूट नहीं दी जा सकती। अनुच्छेद 19(1) की राय में अनुच्छेद 19 (1 बी) के तहत प्रतिवादी (महिला) को साझी गृहस्थी से हटाने का आदेश पारित करने का निर्देश नहीं देता।
पीडि़त महिला अपने पति के पुरूष संबंधियों या अन्य पुरूष साथियों के विरूद्ध सुरक्षा प्राप्त कर सकती है। भरण-पोषण भत्ता (मौद्रिक सहायता के लिए आदेशों के तहत) वही व्यक्ति प्राप्त कर सकते हैं, जो अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के दायरे में आते हैं।
नहीं, सांस बहू के विरूद्ध आवेदन नहीं कर सकती (अनुच्छेद 2 (क्यू), लेकिन पुत्र और बहू के हाथों हिंसा झेल रही सास अपने बेटे और बहू के विरूद्ध, बेटे द्वारा किये गये हिंसा अपराध में बढ़ावा देने के लिए, आवेदन दायर कर सकती है। लेकिन सास साझी गृहस्थी से बहू की बेदखली की मांग नहीं कर सकती।
पीडब्ल्यूडीवीए के फार्म 1 में डीआईआर का प्रारूप दिया गया है।पीड़ितमहिला इसका इस्तेमाल संरक्षा अधिकारी और सेवा प्रदाता के समक्ष घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कराने के लिए कर सकती है। यह इस तथ्य का रिकॉर्ड होता है कि हिंसा की घटना की रिपोर्ट की गई है, यह एनसीआर (गैर दंडनीय अपराध रिपोर्ट) की तरह है। इसे संरक्षा अधिकारी या पंजीकृत सेवा प्रदाता द्वारा करना पड़ता है और हस्ताक्षर करना पड़ता है। यह सार्वजनिक दस्तावेज है।
डीआईआर को महिला के सच्चे बयान को विश्वास रूप में रिकॉर्ड किया जाता है। इसका अर्थ यह है कि सभी तरह की शिकायतें पीडब्ल्यूडीवीए के दायरे में पक्षपात रहित रूप में दर्ज की जानी चाहिए।
अगर कोई महिला अपनी पीड़ा नहीं बता पाती, तब संरक्षा अधिकारी उसे बाद में डीआईआर भरने के लिए बुला सकते हैं। संरक्षा अधिकारी महिला के आगमन संबंधी ब्योरों का दैनिक डायरी रखेंगे।
संरक्षा अधिकारी डीआईआर को मजिस्ट्रेट को अग्रसारित करते हैं। डीआईआर की एक प्रति क्षेत्राधिकार में आने वाले थाने के प्रभारी को अग्रसारित की जाएगी।
यदि महिला चाहे तो सेवा प्रदाता डीआईआर को संरक्षा अधिकारी तथा मजिस्ट्रेट को भेज सकता है। ऐसे मामलों में न्यायालय में दाखिल आवेदन के साथ डीआईआर संलग्न होना चाहिए।
मजिस्ट्रेट रिकॉर्ड रखने के लिए डीआईआर सुरक्षित रखेंगे।पीड़ितमहिला द्वारा दाखिल किसी मामले में इसको भेजा जा सकता है। इसका इस्तेमाल वैसे मामलों में भी हो सकता है, जो मामला संरक्षा अधिकारी की सहायता से दायर हो और डीआईआर बाद में दिया जाए।
नहीं, संरक्षा अधिकारी या पंजीकृत सेवा प्रदाता फार्म-1 में डीआईआर भरेंगे और इस पर दोनों में से एक का हस्ताक्षर होगा। चूंकि डीआईआर सार्वजनिक दस्तावेज है, इसलिए इसे कोई सरकारी अधिकारी ही भरेगा। अनुच्छेद 30 पीडब्ल्यूडीवीए के अंतर्गत अपने कार्यों के संपादन में सभी संरक्षा अधिकारियों और सेवा प्रदाताओं को लोक सेवक मानता है।
हां,पीड़ितमहिला राहत के लिए डीआईआर भरे बिना आवेदन दे सकती है।
न्यायालय में आवेदन देते समय डीआईआर की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि डीआईआर का चरण और उद्देश्य (हिंसा, घटना की रिकार्डिंग) अस्तित्व में नहीं रहता। एक बार न्यायालय में आवेदन दाखिल किये जाने के बाद मजिस्ट्रेट संरक्षा अधिकारी को घर का दौरा करने का आदेश दे सकता है या नियम 10 (1) के अंतर्गत परिस्थिति के अनुसार रिपोर्ट का आदेश दे सकता है।
नहीं, संरक्षा अधिकारी न्यायालय के आदेश के बिना घर का दौरा नहीं कर सकता।
आपराधिक प्रक्रिया संहिंता (सीआरपीसी) की धारा 125 के अंतर्गत व्यक्तियों की सभी श्रेणियां इस कानून के अंतर्गत गुजारे भत्ते का दावा करने की पात्र हैं। इनमें पत्नी, अवयस्क बच्चे भले ही वे वैध हों या अवैध, शारीरिक या मानसिक असमान्यता या चोट से पीड़ित वयस्क बच्चे और माता शामिल हैं। अपने निजी कानून के अंतर्गत अन्य पात्र भी दावा कर सकते हैं।
अधिनियम की धारा 20 के अंतर्गत- धन राहत की राशि पर्याप्त, समुचित और वाजिब तथा पीड़ित महिला के पहले के जीवन स्तर के अनुरूप स्तर के अनुसार होनी चाहिए। धन राहत की राशि की गणना करते हुए अदालतें गुजारे भत्ते के कानून के अंतर्गत निर्धारित मानकों का पालन करेंगी।
[एचएएमए की धारा 23(2)] न्यायालय को दिये जाने वाले गुजारे भत्ते की राशि तय करते हुए निम्नलिखित कारकों पर विचार करना होगा।
धारा 12(2) के प्रावधान में कहा गया कि जब किसी पीड़ित व्यक्ति के पक्ष में कोई अदालत मुआवजे और क्षति की कोई राशि की डिक्री का आदेश देती है तो अधिनियम के अंतर्गत मजिस्ट्रेट द्वारा आदेश के अनुरुप भुगतान की गई या भुगतान की जाने वाली राशि ऐसी डिक्री के अंतर्गत भुगतान की जाने वाली राशि के बदले अलग कर दी जाएगी और शेष राशि, यदि पृथक किए जाने के बाद शेष बची, के लिए डिक्री लागू की जाएगी। आदेश दिए जाने के बाद राशि में से सीआरपीसी की धारा 125 या एचएएमए या किसी अन्य कानून के प्रावधानों के अनुरूप राशि कम कर दी जाएगी।
कोई मुस्लिम महिला जिसने तलाक नहीं लिया हो वह इस अधिनियम के अंतर्गत धन राहत की मांग कर सकती है। अगर वह तलाकशुदा है तो उसके अधिकार मुस्लिम महिला (तलाक के अधिकारों की रक्षा) अधिनियम, 1986 के अंतर्गत तय किए जाएंगे और उसे सीआरपीसी की धारा 125 के अंतर्गत कानून का सहारा लेना होगा (देखें डेनियल लतीफ बनाम यूनियन ऑफ इंडिया [(2001)7 एससीसी 740]
कोई मुस्लिम महिला अपने पुत्र के लिए धन राहत के आदेश के लिए आवेदन कर सकती है।
अदालत कैसे यह सुनिश्चित करेगा कि प्रतिवादी के पास राहत और मुआवजे के भुगतान करने के साधन नहीं होने पर किस तरह धन राहत और मुआवजे, वैकल्पिक आवास के आदेश लागू किया जाएं?
उच्चतम न्यायालय ने लीलावती बनाम स्टेट ऑफ उत्तर प्रदेश [1982 (1) एससीसी437] में राय दी है कि यदि कोई व्यक्ति स्वस्थ और स्वस्थ शरीर का है तो उसके पास अपनी पत्नी, बच्चों और अभिभावकों को मदद देने के अवश्य साधन होने चाहिए। न्यायालय सीआरपीसी की धारा 125(3) के अंतर्गत कार्रवाई शुरू कर सकता है और प्रतिवादी की गिरफ्तारी भी की जा सकती है अगर वह धारा 125 के अंतर्गत के आदेश पर भुगतान नहीं करता।
नियम 6(5) में प्रावधान है कि घरेलू हिंसा से महिलाओं के बचाव अधिनियम, 2005 के अंतर्गत सभी आदेशों को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत निर्धारित तरीके से लागू किया जाएगा।
नियम 10(ई) में प्रावधान है कि मजिस्ट्रेट द्वारा लिखित में निर्देश दिए जाने पर संरक्षण अधिकारी अधिनियम के अंतर्गत मजिस्ट्रेट द्वारा निर्धारित तरीके से न्यायालय के आदेश को लागू करने में मदद देगा। ऐसा करने के लिए धारा 12, 18, 19, 20, 21, 23 के अंतर्गत आदेश शामिल हैं।
घरेलू हिंसा से महिलाओं के बचाव अधिनियम, 2005 के अंतर्गत आदेशों के पालन की कार्रवाई सीआरपीसी की धारा 125(3) के अंतर्गत शुरू की जा सकती है। मजिस्ट्रेट देय राशि प्राप्त करने के लिए जुर्माना वसूलने के लिए निर्धारित तरीके के अनुरूप वारंट जारी कर सकता है और किसी व्यक्ति को मासिक राशि के किसी भाग या पूरी राशि के लिए या धनराहत के आदेश में वर्णित किसी अन्य राशि के लिए जेल भी भेज सकता है।
समुचित मामलों में न्यायालय प्रतिवादी के नियोक्ता को पीड़ित व्यक्ति को इस अधिनियम की धारा 20(6) के अंतर्गत सीधे भुगतान का निर्देश दे सकता है, इसके लिए सम्पति कुर्क आदि भी की जा सकती है।
मजिस्ट्रेट जब संरक्षण आदेश के साथ धन राहत का आदेश देता है तो आदेश का पालन नहीं किए जाने का मतलब अधिनयम की धारा 31 के अंतर्गत कानून का उल्लंघन होगा। सदैव किसी अन्य राहत के साथ संरक्षण आदेश का अनुरोध करने की सलाह दी जाती है।
धारा 20(4) के अंतर्गत मजिस्ट्रेट को धन राहत के आदेश की प्रति पुलिस को भेजनी होगी।
पुलिस को जब आदेश दिया जाता है तो पीड़ित व्यक्ति को आदेश के पालन में पुलिस को सहायता देने का निर्देश का आदेश मांगना चाहिए।यदि ऐसा निर्देश नहीं दिया जाता तो घरेलू हिंसा का रिकार्ड पुलिस के पास रखा जाना जरूरी है ताकि पुलिस के पास मामले का इतिहास रहे और वह आवश्यकता पड़ने पर सहायता दे सकें। जब कोई संरक्षण आदेश धन राहत के आदेश के संयोजन में दिया जाता है तो संरक्षण आदेश का उल्लंघन संज्ञेय अपराध होता है और धारा 31 के अंतर्गत पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराई जा सकती है।
जी हां अधिनियम की धारा 21 के अंतर्गत ऐसा किया जा सकता है। यह ध्यान रखना चाहिए कि देखरेख के आदेश के लिए आवेदन या संरक्षण या अन्य आदेशों के अलावा किया जाना चाहिए। इसका अर्थ है कि घरेलू हिंसा होने की स्थिति में महिला अगर संरक्षण आदेश आदि चाहती है तो वह अस्थाई देखरेख के आदेश के लिए आवेदन कर सकती है।
मजिस्ट्रेट केवल बच्चों की अस्थाई देखरेख के आदेश दे सकता है। इससे किसी अन्य पक्ष को किसी समुचित मंच पर बच्चों की स्थाई देखरेख या संयुक्त देखरेख का अनुरोध करने से रोका नहीं जा सकेगा।
अगर बच्चों की देखरेख के बारे में किसी न्यायालय में मामला लंबित है तो उसी न्यायालय में बच्चों के अस्थाई देखरेख का आवेदन दिया जा सकता है।
अस्थाई देखरेख के आवेदन पर फैसला करते समय बच्चों के श्रेष्ठ हितों या बच्चों के कल्याण को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए। रोजी जैकब बनाम जैकब चक्रामाकल में उच्चतम न्यायालय ने संरक्षक नियुक्त करने के मामले पर विचार करते हुए राय दी कि
"अवयस्क का कल्याण क्या होगा इसका विचार करते हुए न्यायालय को नाबालिग की आयु, लिंग और धर्म, प्रस्तावित संरक्षक की क्षमता और चरित्र तथा नाबालिग के साथ उस व्यक्ति की निकटता को ध्यान में रखना चाहिए"
बच्चे के कल्याण का फैसला केवल भौतिक आराम के पहलू के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए। मैकग्राथ (इनफेंट्स) (1983) एक अध्याय 143, अनुमति से उल्लेखित, धनवंति जोशी बनाम माधव उंडे (1998)1 एससीसी 112 में यह व्यवस्था दी गई है कि
"बच्चे का कल्याण का आकलन केवल धन या केवल भौतिक आराम के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए। 'कल्याण' शब्द का अर्थ व्यापक भाव के अनुरूप किया जाना चाहिए।
नैतिक और धार्मिक कल्याण पर भौतिक कल्याण पर विचार किया जाना चाहिए। स्नेह के संबंधों को दरकिनार नहीं किया जा सकता।"
वाकर बनाम वाकर-6 1981 न्यू जी रिसेन्ट लॉ 257
"कल्याण एक व्यापक शब्द है। इसमें भौतिक कल्याण शामिल है जिसमें एक घर और आरामदायक जीनव स्तर तथा अच्छा स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त देखभाल और निजी गौरव की भावना समाहित है। हालांकि भौतिक आधारों का भी स्थान है लेकिन वे गौंण हैं। देखभाल और मार्गदर्शन की समझबूझ, करूणामय संबंधों की गर्माहट भी बच्चे के अपने चरित्र, व्यक्तित्व और प्रतिभा के विकास के लिए आवश्यक हैं।"
अगर बातचीत फोन से है तो इसका रिकार्ड रखा जाएगा और पीड़ित व्यक्ति को कॉलर आईडी लगाने की सलाह दी जा सकती है। अगर ई-मेल से संपर्क किया जाता है तो इसका रिकार्ड रखा जा सकता है तो इसे प्रमाण के तौर पर न्यायालय में पेश किया जा सकता है। अगर प्रतिवादी पीड़ित व्यक्ति को उसके कार्यालय या घर में मिलने जाता है तो पीड़ित व्यक्ति को तुरंत पुलिस बुलानी चाहिए ताकि आदेश का उल्लंघन कर प्रतिवादी को गिरफ्तार किया जा सके।
नियम 10(ई): मजिस्ट्रेट द्वारा अगर ऐसा करने का निर्देश दिया गया है तो वह अधिनियम के अंतर्गत मजिस्ट्रेट द्वारा निर्धारित तरीके से कार्रवाई के आदेश लागू करने में मदद देगा इसमें धारा 12, 18, 19, 20, 21, 23 के आदेश शामिल हैं।
संरक्षण अधिकारी को प्रतिवादी द्वारा किए गए संपर्क या बातचीत के बारे में सूचित किया जाए या उससे संपर्क किया जाए ताकि इस अधिनियम के अंतर्गत निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार तत्काल कार्रवाई की जा सके।
धारा 19(4) के अंतर्गत शांति बनाए रखने का बॉन्ड भी भरा जाना चाहिए (और आगे घरेलू हिंसा रोकने के लिए)। पीड़ित महिला के बचाव के लिए पुलिस मदद ली जा सकती है। इस कानून के अंतर्गत किसी आदेश को लागू कराने के लिए भी वह पुलिस मदद ले सकती है।
मजिस्ट्रेट धारा 19(3) के तहत प्रतिवादी को भविष्य में घरेलू हिंसा रोकने के लिए बॉन्ड भरने का आदेश दे सकता है जिसमें निवास के आदेश के प्रावधान हैं। धारा 19 के अंतर्गत किसी उल्लंघन को सीआरपीसी के अध्याय 8 में निर्धारित प्रक्रिया के अनुरूप निपटा जाएगा। अतः बॉन्ड की शर्तों के उल्लंघन पर गिरफ्तार किया जा सकता है।
स्त्रोत: पीआईबी एवंं लायर्स क्लेक्टिव वुमेन्स राइट्स इनिशिएटिव
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020