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भारतीय पेटेन्ट प्रणाली का इतिहास

1856 का अधिनियम VI

1856 1852 के ब्रिटिश पेटेन्ट कानून के आधार पर अण्वेषण की संरक्षा हेतु 1856 का अधिनियम VI

नए निर्माताओं के अन्वेषकों को 14 वर्षों की अवधि हेतु कुछ अनन्य विशेषाधिकार अनुदानित किए गए। 1859 अधिनियम XV के रूप में संशोधित अधिनियम; पेटेन्ट एकाधिकार अनन्य विशेषाधिकार कहा गया (विनेर्देश दाखिल करने की तारीख से 14 वर्षों के लिए आविष्कार के भारत में निर्माण, विक्रय एवं उपयोग करना तथा अन्य लोगों को इसका प्राधिकार देना) । 1872 पेटेन्ट व डिजाइन संरक्षा अधिनियम 1883 आविष्कार संरक्षा अधिनियम 1888 आविष्कार व डिजाइन अधिनियम के रूप में एकीकृत 1911 भारतीय पेटेन्ट व डिजाइन अधिनियम 1972 पेटेन्ट अधिनियम (1970 का अधिनियम 39) 20 अप्रैल 1972 को प्रभावी हुआ। 1999 26 मार्च 1999 को पेटेन्ट (संशोधन) अधिनियम, (1999) 01-01-1995 से प्रभावी । 2002 पेटेन्ट (संशोधन) अधिनियम 2002, 20 मई 2003 से प्रभावी हुआ। 2005 पेटेन्ट (संशोधन) अधिनियम 2005, 1ली जनवरी, 2005 से प्रभावी ।

भारतीय पेटेन्ट पद्धति के बारे में संक्षिप्त विवरण

1. भारत में पेटेन्ट से संबंधित प्रथम विधान 1856 का अधिनियम VI था। इस विधान का उद्देश्य नवीन एवं उपयोगी वस्तुओं के आविष्कार को उत्साहित करना तथा आविष्कारकों को उनके आविष्कारों के रहस्य बताने के लिए राजी करना था। किन्तु इस अधिनियम को बाद में 1857 के अधिनियम IX द्वारा निरस्त कर दिया गया क्योंकि इसे राज्य की स्वीकृति के बिना लागू किया गया था। 1859 में ‘अनन्य विशेषाधिकार अनुदान करने हेतु एक नया विधान 1859 के अधिनियम XV के रूप में प्रारंभ किया गया। इस विधान में पूर्ववर्ती विधान के कुछ संशोधन शामिल थे जैसे, केवल उपयोगी आविष्कारों को ही अनन्य विशेषाधिकार अनुदान तथा प्रायिकता अवधि का 6 से 12 माह तक विस्तार। इस अधिनियम में आयातकों को आविष्कारक की परिभाषा से अलग कर दिया गया। 1856 का अधिनियम 1852 के युनाइटेड किंगडम अधिनियम पर आधारित था जिसमें कुछ अंतर भी थे जैसे कि समनुदेशिती को भारत में आवेदन करने की अनुमति एवं नवीनता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से भारत अथवा युनाइटेड किंगडम में आम उपयोग अथवा पूर्व प्रकाशन करना।

2. 1872 में 1859 के अधिनियम को एकीकृत किया गया ताकि अभिकल्प से संबंधित संरक्षा प्रदान की जा सके। इसे 1872 के अधिनियम XIII के तहत "पैटर्नस एण्ड डिजाइन्स प्रोटेक्शन एक्ट" के रूप में पुनर्नामित किया गया । पुनः 1872 के अधिनियम को 1883 में (1883 के अधिनियम XVI) द्वारा संशोधित किया गया जिसमें आविष्कार की नवीनता की संरक्षा का प्रावधान शामिल किया गया जो उनकी संरक्षा के लिए आवेदन दाखिल करने के पहले भारत की प्रदर्शनियों में दिखाया गया था। ऐसी प्रदर्शनी के प्रारंभ होने की तारीख के बाद ऐसे आवेदन दाखिल करने के लिए 6 महीने की अतिरिक्त अवधि का प्रावधान था।

3. यह अधिनियम लगभग 30 वर्षों तक बिना किसी परिवर्तन के प्रभावी रहा किन्तु वर्ष 1883 में युनाइटेड किंगडम के पेटेन्ट कानून में कुछ संशोधन किए गए एवं यह माना गया कि उन संशोधनों को भारतीय कानून में भी शामिल किया जाना चाहिए। 1888 में यूनाइटेड किंगडम कानून में किये गये संशोधनों के अनुरुप आविष्कार तथा अभिकल्प संबंधी कानून को एकीकृत तथा संशोधित करने के लिए नया विधान प्रस्तुत किया गया।

4. पेटेन्ट और डिजाइन के पूर्व के सभी विधानों को बदलते हुए भारतीय पेटेन्ट और डिजाइन अधिनियम 1911 (1911 का अधिनियम II) लाया गया। इस अधिनियम ने पहली बार पेटेन्ट प्रशासन को नियंत्रक, पेटेन्ट्स के प्रबंधन के अधीन ला दिया। 1920 में इस अधिनियम में संशोधन कर सुरक्षा प्रायिकता के लिए युनाइटेड किंगडम तथा अन्य देशों के साथ परस्पर समझौता में शामिल होने का प्रावधान किया गया। 1930 में, अन्य बातों के अतिरिक्त, गुप्त पेटेन्ट अनुदान, अतिरिक्त पेटेन्ट, सरकार द्वारा आविष्कार के उपयोग, पेटेन्ट रजिस्टर में संशोधन करने की नियंत्रक की शक्ति तथा पेटेन्ट अवधि को बढ़ाकर 14 से 16 वर्ष करने संबंधी प्रावधानों को शामिल करने हेतु पुनः संशोधन किए गए। 1945 में नौ महीनों के भीतर

औपबंधिक विनिर्देश दाखिल करने तथा पूर्ण विनिर्देश प्रस्तुत करने का प्रावधान करने के लिए अन्य संशोधन किए गए।

5. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद यह महसूस किया गया कि भारतीय पेटेन्ट एवं डिजाइन अधिनियम, 1911 अपने उद्देश्य को पूर्ण नहीं कर पा रहा है। देश की राजनितिक एवं आर्थिक स्थितियों में व्यापक परिवर्तन के मद्देनजर विस्तृत पेटेन्ट कानून लागू करने की आवश्यकता समझी गई। तदनुसार, सरकार ने 1949 में राष्ट्रीय हितों के अनुरूप पेटेन्ट प्रणाली सुनिश्चित करने के उद्देश्य से भारत के पेटेन्ट कानून की समीक्षा करने हेतु लाहौर उच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायधिश न्यायमूर्ति (डॉ) बक्शी टेक चंद की अध्यक्षता में एक समिति गठित की।

समिति की विचारार्थ मुद्दों में शामिल थे-

भारत की पेटेन्ट प्रणाली की कार्यविधि की समीक्षा करना एवं रिपोर्ट देना; भारत में विद्यमान पेटेन्ट विधान का परीक्षण तथा उसमें सुधार करने के लिए संस्तुति । करना, विशेषकर पेटेन्ट अधिकारों के दुरूपयोग को रोकने संबंधी प्रावधानों के संदर्भ में; खाद्य और औषधी से संबंधित पेटेन्ट पर विशेष प्रतिबंध लगाये जाने के विकल्पों पर विचार करना; पेटेन्ट प्रणाली तथा पेटेन्ट साहित्य विशेषकर भारतीय आविष्कारकों द्वारा प्राप्त पेटेन्ट के संबंध में प्रभावी प्रचार सुनिश्चित करने हेतु उठाए जाने वाले कदमों का सुझाव देना; एक राष्ट्रीय पेटेन्ट ट्रस्ट के गठन की आवश्यकता तथा औचित्य पर विचार करना; पेटेन्ट एजेंट के व्यवसाय को नियंत्रित करने की इच्छा अथवा अनिच्छा पर विचार करना; पेटेन्ट कार्यालय की कार्यपद्धति तथा आम जनता को प्रदान करने वाली सेवाओं का परीक्षण तथा इसके संवर्द्धन हेतु उपयुक्त संस्तुती देना; तथा।

आविष्कार तथा वाणिज्यिक विकास तथा आविष्कारों के उपयोग के प्रोत्साहन द्वारा भारतीय पेटेन्ट प्रणाली को राष्ट्रीय हित में अधिक सार्थक बनाने के लिए समिति के विचार में उपयुक्त सुधार की संस्तुति देना।

6. समिति ने 4थी अगस्त, 1949 को अपनी अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें 1919 तथा 1949 के युनाइटेड किंगडम अधिनियमों के तर्ज पर भारत में पेटेन्ट अधिकार के दुरूपयोग रोकने तथा पेटेन्ट्स व डिजाइन अधिनियम, 1911 की धारा 22, 23 तथा 23 (क) में संशोधन करने की सिफारिश की। समिति ने यह भी पाया कि खाद्य और औषधि और शल्य चिकित्सा और निदान उपकरण पेटेन्टग्राही को युक्तिसंगत प्रतिकर देने के अनुरूप आम जनता को सस्ते मूल्य पर उपलबधता सुनिश्चित कराने के लिए पेटेन्ट अधिनियम में स्पष्ट संकेत होने चाहिए।

7. समिति की उपर्युक्त सिफारिशों के आधार पर आविष्कारों तथा अनिवार्य लाइसेंस/निरसन के कार्य के संदर्भ में 1911 के अधिनियम को 1950 (1950 का XXXII अधिनियम) में संशोधित किया गया। अन्य प्रावधान सरकार द्वारा कि आवेदन पर 'अधिकार का लाइसेंस' शब्द के साथ पेटेन्ट के पृष्ठांकन से संबंधित था ताकि नियंत्रक लाइसेंस अनुदान कर सके। 1952 में (1952 के अधिनियम LXX) द्वारा खाद्य एवं औषधियों, कीटनाशक, जर्मीसाइड या फंगीसाइड तथा वस्तु उत्पादन की प्रक्रिया अथवा शल्य चिकित्सकीय या रोग-निदान उपकरणों से संबंधित किसी आविष्कार के संदर्भ में अनिवार्य लाइसेंस प्रदान करने हेतु एक संशोधन किया गया। अनिवार्य लाइसेंस केन्द्रीय सरकार के अधिसूचना पर भी उपलब्ध था। समिति की सिफारिशों के आधार पर 1953 में संसद में एक बिल (1953 का बिल सं. 59) प्रस्तुत किया गया। हालाँकि सरकार ने इस बिल पर विचार करने का दबाव नहीं डाला और इसे समाप्त होने दिया गया।

8. 1957 में भारत सरकार ने पेटेन्ट कानून में संशोधन के प्रश्न का परीक्षण करने तथा सरकार को तदनुरूप सुझाव देने हेतु न्यायमूर्ति एन. राजगोपाल अयंगर समिति नियुक्त की। समिति की दो खंडों की रिपोर्ट सितम्बर 1959 में दाखिल हुई। प्रथम खंड में पेटेन्ट कानून के सामान्य संदर्भो का विवरण था तथा द्वितीय खंड में 1953 के व्यपगत बिल के कई उपबंधों पर विस्तृत टिप्पणी दी गई थी। प्रथम खंड में पेटेन्ट प्रणाली के दुर्गुणों और समाधान के वर्णन के साथ-साथ कानून के संदर्भ में सिफारिशें की गई हैं। समिति ने पेटेन्ट प्रणाली की कमियों के बावजूद इसे बनाये रखने की सिफारिश की। इस रिपोर्ट ने कानून में मुख्य बदलावों की सिफारिश की जो पेटेन्ट बिल, 1965 के प्रस्तावना का आधार बना। यह बिल लोकसभा में 21 सितम्बर 1965 को पेश किया गया जो, हालाँकि, व्यपगत हो गया। 1967 में एक संशोधित बिल पेश किया गया जिसे संयुक्त संसदीय समिति को प्रेषित किया गया था एवं समिति की अंतिम अनुसंशा के आधार पर पेटेन्ट अधिनियम 1970 पास किया गया। इस अधिनियम में पेटेन्ट कानून के संदर्भ में 1911 के अधिनियम को निरस्त एवं प्रतिस्थापित किया। हालाँकि 1911 का अधिनियम डिजाइन पर लागू रहा। 1970 के अधिनियम के अधिकांश प्रावधान 20 अप्रैल 1972 को पेटेन्ट नियम 1972 के प्रकाशन के साथ प्रभावी हुए।

9. यह अधिनियम दिसम्बर 1994 तक 24 वर्षों के लिए बिना किसी परिवर्तन के प्रभाव में रहा। अधिनियम में कुछ परिवर्तन लाने वाला एक अध्यादेश 31 दिसम्बर 1994 को जारी किया गया, 6 महीने के पश्चात जिसका कार्य समाप्त हो गया है। इस अध्यादेश के स्थान पर बाद में पेटेन्ट (संशोधन) अधिनियम 1999 लाया गया जो भूतलक्षी प्रभाव से पहली जनवरी 1995 से लागू हुआ। संशोधित अधिनियम में भेषज, दवाओं तथा जैव रसायन के क्षेत्र में उत्पाद पेटेन्ट हेतु आवेदन दाखिल करने का प्रावधान था जबकि ऐसे पेटेन्ट अनुमत्य नहीं किये जा सके। हालाँकि, ऐसे आवेदनों का परीक्षण केवल 31 दिसम्बर, 2004 के बाद ही होना था। इस बीच कुछ शर्तों को पूरा करने के बाद आवेदक को भारत में इन उत्पादों के विक्रय अथवा वितरण का अनन्य विपणन अधिकार (EMRs) अनुमत्त किया जा सकता था।

10. पेटेन्ट (संशोधन) अधिनियम, 2002 (2002 का 38वाँ अधिनियम) द्वारा 1970 के अधिनियम में दूसरा संशोधन किया गया। यह अधिनियम पूर्व विद्यमान पेटेन्ट नियम, 1972 के स्थान पर नये पेटेन्ट नियम, 2003 की प्रस्तुति के साथ 20 मई 2003 से लागु हुआ।

11. पेटेन्ट (संशोधन) अध्यादेश, 2004 द्वारा दिनांक 1 जनवरी 2005 के प्रभाव से पेटेन्ट अधिनियम, 1970 में तीसरा संशोधन प्रस्तुत किया गया। बाद में दिनांक 4 अप्रैल 2005 को पेटेन्ट (संशोधन)

अधिनियम, 2005 (2005 का अधिनियम 15) द्वारा यह अध्यादेश प्रतिस्थापित हुआ तथा पहली जनवरी 2005 से लागू हुआ।

पेटेन्ट नियम

12. प्रावधानों के तहत पेटेन्ट अधिनियम 1970 की धारा 159 केन्द्रीय सरकार को अधिनियम लागू करने हेतु नियम बनाने तथा पेटेन्ट प्रशासन के विनियमन हेतु प्राधिकृत करता है। तदनुसार, पेटेन्ट नियम, 1972 अधिसूचित किया गया तथा 20 अप्रैल 1972 के प्रभाव से लागू हुआ । इन नियमों में समय समय पर संशोधन किए गए जो 20 मई 2003 तक जारी रहे जबकि 1972 के नियम के स्थान पर नया पेटेन्ट नियम, 2003 लागू हुआ। ये नियम पुनः पेटेन्ट (संशोधन) नियम, 2005 तथा पेटेन्ट (संशोधन) नियम, 2006 द्वारा संशोधित किए गए। अंतिम संशोधन 5 मई 2006 से प्रभावी हुआ।

 

स्रोत: भारत सरकार वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय (औद्योगिक नीति और संवर्द्धन विभाग)

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



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